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जैव विविधता और पर्यावरण

बढ़ता वायु प्रदूषणः कितना खतरनाक?

  • 12 Jun 2019
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

पर्यावरण की रक्षा हेतु दुनिया भर में जागरूकता और कार्रवाई को प्रोत्साहित करने के लिये प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाया जाता है। इस बार पर्यावरण दिवस की थीम भी "वायु प्रदूषण" (Air Pollution) है।

वायु प्रदूषण क्या है?

  • वायुमंडल की गैसों के विभिन्न घटकों की आदर्श स्थिति में रासायनिक रूप से होने वाला अवांछनीय परिवर्तन जो वातावरण/पर्यावरण को किसी-न-किसी रूप में दुष्प्रभावित करता है, उसे वायु प्रदूषण कहते हैं।
  • जून 2015 में चिली ने वायु प्रदूषण की खतरनाक स्थिति को देखते हुए सेंटियागो में पर्यावरणीय आपातकाल घोषित कर दिया था। इसी तरह दिसंबर 2015 और दिसंबर 2016 में चीन की राजधानी बीजिंग में वायु प्रदूषण के कारण दो बार रेड अलर्ट घोषित किया जा चुका है।

वायु प्रदूषण के संदर्भ में भारतीय महानगरों की स्थिति

  • राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक के मुताबिक देश के 15 से अधिक शहरों में वायु की गुणवत्ता तय मानक से काफी कम है। वहीं ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम’ की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 10 भारत के हैं।
  • दिल्ली में प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से कई गुना ज़्यादा है। इसके अलावा सड़क की धूल, उद्योग एवं ऊर्जा कारखाने, निर्माण गतिविधियों से उत्पन्न धूल, हरियाणा-पंजाब में पुआल को जलाना इत्यादि ज़िम्मेदार हैं।

वायु प्रदूषण के कारण

  • वायु प्रदूषण प्राकृतिक एवं मानवीय कारकों द्वारा होता है। प्राकृतिक कारकों में ज्वालामुखी क्रिया, वनाग्नि, कोहरा, परागकण, उल्कापात आदि हैं। परंतु प्राकृतिक स्रोतों से उत्पन्न वायु प्रदूषण कम खतरनाक होता है क्योंकि प्रकृति में स्व-नियंत्रण की क्षमता होती है।
  • मानवीय क्रियाकलापों में वनोन्मूलन, कारखाने, परिवहन, ताप विद्युत गृह, कृषि कार्य, खनन, रासायनिक पदार्थ, अग्नि शस्त्रें का प्रयोग तथा आतिशबाजी द्वारा वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।
  • विकसित तथा विकासशील देशों में विकास एवं अन्य मानकों में आगे निकलने की होड़ ने पर्यावरण को इतना प्रदूषित कर दिया है कि आज विश्व के सामने जलवायु परिवर्तन, भूमंडलीय तापन एवं ओज़ोन क्षरण की समस्या ने मानव के अस्तित्व के समक्ष ही संकट खड़ा कर दिया है।

वायु प्रदूषण के प्रभाव

  • हवा में अवांछित गैसों की उपस्थिति से मनुष्य, पशुओं तथा पक्षियों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे दमा, सर्दी, अंधापन, श्रवण शक्ति कमज़ोर होना, त्वचा रोग आदि बीमारियाँ पैदा होती हैं।
  • वायु प्रदूषण के कारण अम्लीय वर्षा का खतरा बढ़ा है क्योंकि बारिश के पानी में सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन डाईऑक्साइड आदि जहरीली गैसों के घुलने की संभावना बढ़ी है जिससे पेड़-पौधे, भवनों व ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुँचा है।

वायु प्रदूषणः नियंत्रण के उपाय

  • वायु प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये कारखानों को शहरी क्षेत्र से दूर स्थापित किया जाना तथा कारखानों की चिमनियों की अधिक ऊँचाई व इनमें फिल्टरों के उपयोग की अनिवार्यता आवश्यक है।
  • जनसंख्या की वृद्धि को स्थिर करने की आवश्यकता है जिससे खाद्य व आवास के लिये पेड़ों व वनों को न काटना पड़े। साथ ही आम जनता को वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों का ज्ञान कराना भी जरूरी है जिससे वे स्वयं प्रदूषण नियंत्रण के सार्थक उपायों को अपनाकर इसे नियंत्रित करने में योगदान दे सकें। इसके लिये सभी प्रकार के प्रचार माध्यमों का उपयोग करना चाहिये।
  • गाडि़यों एवं दुपहिया वाहनों की ट्यूनिंग की जानी आवश्यक है ताकि अधजला धुआँ बाहर आकर पर्यावरण को दूषित न करे। साथ ही सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है। इस संदर्भ में ऑड-ईवन नियम एक सराहनीय कदम है, जिसे हाल में दिल्ली सरकार द्वारा अपनाया गया है।
  • निर्धूम चूल्हा व सौर ऊर्जा की तकनीक को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • इसको पाठ्यक्रम में शामिल करके बच्चों में इसके प्रति चेतना जागृत की जानी चाहिये।
  • पर्यावरण के संबंध में पहला सम्मेलन वर्ष 1972 में स्टॉकहोम में हुआ और इसी सम्मेलन में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में घोषित किया गया। भारत में वायु प्रदूषण नियंत्रण हेतु विशेष कार्रवाई वर्ष 1970 के दशक में प्रारंभ हुई तथा वर्ष 1981 में वायु प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम पारित हुआ।

भविष्य की स्थितियों का अनुमान

  • वायु प्रदूषण के कारण मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं पर ही प्रश्नचिह्न लग सकता है। बोतलबंद पानी की तर्ज पर बोतलबंद हवा का भी कारोबार फैल सकता है।
  • इसके अलावा शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पर्यावरण की तलाश में प्रवसन की प्रवृत्ति में वृद्धि हो सकती है। ऑक्सीजन की कमी के कारण रोगों में होने वाली वृद्धि जीवन प्रत्याशा पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी। वायु प्रदूषण के कारण कृषि तथा जलवायु पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

निष्कर्ष

प्रत्येक नागरिक को स्वच्छ पर्यावरण में जीने का अधिकार है जो संविधान के अनुच्छेद 21 में दिये गए ‘जीवन जीने के अधिकार’ में निहित है। मानव सभ्यता व समाज को प्रकृति व औद्योगीकरण के बीच सामंजस्य स्थापित करना अति आवश्यक है। प्राकृतिक असंतुलन मानव समाज को विनाश की ओर ले जाएगा। अतः हमें वायु प्रदूषण को कम करने के लिये पर्यावरण संरक्षण की दिशा में गैर सरकारी संगठनों, नागरिक समाज व आम आदमी की भागीदारी को प्रोत्साहित करना होगा।

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