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डेली न्यूज़

  • 18 Aug, 2023
  • 47 min read
शासन व्यवस्था

संगठित अपराध और जॉर्जिया RICO अधिनियम

प्रिलिम्स के लिये:

RICO अधिनियम, महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999, संगठित अपराध

मेन्स के लिये:

भारत में संगठित अपराध से निपटने में चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर उनके 18 सहयोगियों के साथ जॉर्जिया रीको (रैकेटियर से प्रभावित और भ्रष्ट संगठन-Racketeer Influenced and Corrupt Organizations) अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए हैं।

  • इन आरोपों में कथित तौर पर कई आपराधिक गतिविधियाँ जिनमें मुख्य रूप से जालसाज़ी, झूठे बयान देना, छद्म रूप से सरकारी अधिकारी के तौर पर स्वयं को प्रस्तुत करना, गवाहों को प्रभावित करना और साज़िश रचना आदि शामिल हैं।
  • रीको (RICO) अधिनियम और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (Maharashtra Control of Organised Crime Act- MCOCA), 1999 में कुछ समानताएँ हैं।

नोट: जॉर्जिया संयुक्त राज्य अमेरिका के 50 अमेरिकी राज्यों में से एक है और यह दक्षिण-पूर्वी मुख्य भूमि में स्थित है।

जॉर्जिया रीको/RICO अधिनियम:

  • वर्ष 1970 में रीको अधिनियम अमेरिकी संघीय कानून का हिस्सा बना
  • यह मूलतः संगठित अपराध, विशेष रूप से माफिया-संबंधित गतिविधियों से निपटने के लिये अभिकल्पित है।
  • संघीय कानून के प्रभावी होने के कुछ वर्षों के भीतर राज्यों ने अपना रीको कानून पारित करना शुरू किया।
  • वर्ष 1980 में पारित जॉर्जिया का रीको अधिनियम, "रैकेटियरिंग गतिविधि के पैटर्न" के माध्यम से अपराध संबंधी किसी "गतिविधि" में भाग लेना, उस पर नियंत्रण अथवा ऐसा करने की साज़िश करने को गैरकानूनी घोषित करता है।
  • जॉर्जिया में रीको अधिनियम के तहत धोखाधड़ी के आरोप में दोषी पाए जाने पर 20 वर्ष तक की जेल हो सकती है।
  • कठोर दंड का प्रावधान इस अधिनियम के अनुप्रयोग की गंभीरता को रेखांकित करता है।

महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999

  • इसे महाराष्ट्र में संगठित आपराधिक गतिविधियों से निपटने के लिये पेश किया गया था।
  • यह अधिनियम केवल महाराष्ट्र राज्य तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य पर भी लागू होता है।
  • इस अधिनियम के तहत प्रत्येक अपराध एक संज्ञेय अपराध है।
  • इस अधिनियम के तहत दंडनीय प्रत्येक अपराध की सुनवाई केवल इस अधिनियम के तहत गठित विशेष न्यायालय द्वारा की जाएगी।
  • यह अधिनियम शक्ति के दुरुपयोग, कानून सम्मत कार्य करने में विफल होने की स्थिति के लिये सख्त प्रावधान करता है, दोषी पाए गए व्यक्ति को तीन वर्ष तक का कारावास हो सकता है या उस पर ज़ुर्माना लगाया जा सकता है।

संगठित अपराध:

  • आर्थिक अथवा अन्य लाभ के इरादे से किसी गिरोह या सिंडिकेट के सदस्यों द्वारा संयुक्त रूप से या अलग-अलग किये गए कृत्य को संगठित आपराधिक गतिविधियों के रूप में जाना जाता है।
  • संगठित अपराध के प्रकार: संगठित गिरोह अपराध, रैकेटियरिंग, सिंडिकेट अपराध, तस्करी आदि।
  • वे ऐसा कानून प्रवर्तन और विनियमों में व्याप्त कमियों का लाभ उठाकर करते हैं।

संगठित अपराध और भारत की विधिक व्यवस्था:

  • भारत में हमेशा ही किसी-न-किसी रूप में संगठित अपराध का अस्तित्व रहा है। हालाँकि कई सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक कारकों तथा विज्ञान व प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति के कारण आधुनिक समय में इसका उग्र रूप देखा गया है।
    • हालाँकि ग्रामीण भारत भी संगठित अपराध से अछूता नहीं है, किंतु यह मूलतः एक शहरी परिघटना है।
  • भारत में राष्ट्रीय स्तर पर संगठित अपराध से निपटने के लिये कोई विशिष्ट कानून नहीं है। राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 तथा स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 जैसे मौजूदा कानून इस संदर्भ में अपर्याप्त हैं क्योंकि ये व्यक्तियों पर लागू होते हैं, न कि आपराधिक समूहों अथवा उद्यमों पर।
  • कुछ राज्यों, जैसे कि गुजरात (गुजरात संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 2015), कर्नाटक (कर्नाटक संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 2000) और उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 2017) ने संगठित अपराध का मुकाबला करने के लिये अपने कानून बनाए हैं।
  • भारत कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और संधियों (जिनका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर संगठित अपराध का उन्मूलन करना है) का भी भागीदार है। 

संगठित अपराध से निपटने में चुनौतियाँ:

  • अपर्याप्त विधिक संरचना: संगठित अपराध समूहों और उद्यमों पर लागू किये जा सकने योग्य समर्पित कानून का अभाव।
  • अपराध का प्रमाण प्राप्त करने में कठिनाई: पदानुक्रम उच्च नेतृत्व को प्रेरित करता है; गवाहों को अपनी जान का भय रहता है।
  • संसाधन और प्रशिक्षण की कमी: संगठित अपराध की जाँच के लिये संसाधन, प्रशिक्षण और सुविधाओं की कमी।
  • समन्वय की कमी: समन्वय और सूचना के आदान-प्रदान के लिये राष्ट्रीय एजेंसी का अभाव
  • आपराधिक, राजनीतिक और नौकरशाही गठजोड़: आपराधिक सिंडिकेट/समूह का राजनेताओं, नौकरशाहों तथा मीडिया के साथ संबंध होना बड़ी चुनौती उत्पन्न करता है।

आगे की राह

  • रीको अधिनियम जैसे सफल अंतर्राष्ट्रीय मॉडल से प्रेरित एक व्यापक राष्ट्रीय कानून विकसित किया जाना चाहिये।
  • कानून प्रवर्तन के लिये विशेष प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करना, संगठित अपराध से लड़ने हेतु आवश्यक तकनीकों का उपयोग।
  • खुफिया जानकारी, साक्ष्य एकत्र करने और अंतर-एजेंसी सहयोग को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी व बुनियादी ढाँचे हेतु वित्त में वृद्धि की जानी चाहिये।
  • संगठित अपराध से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये राज्यों और केंद्रीय प्रवर्तन निकायों के बीच समन्वय स्थापित करने हेतु एक केंद्रीय एजेंसी की स्थापना की जानी चाहिये। अपराध पैटर्न और इसके प्रमुख क्षेत्रों की पहचान के लिये उन्नत डेटा एनालिटिक्स तथा कृत्रिम बुद्धिमता का लाभ उठाते हुए निर्बाध सूचना के आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • आपराधिक-राजनीतिक गठजोड़ पर अंकुश लगाने के लिये सख्त निगरानी तंत्र का क्रियान्वयन अत्यंत आवश्यक है। जवाबदेही सुनिश्चित करने व सत्ता के दुरुपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिये नागरिक समाज समूहों और मानवाधिकार संगठनों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

लैंगिक रूढ़िवादिता पर SC हैंडबुक

प्रिलिम्स के लिये:

लैंगिक रूढ़िवादिता पर SC हैंडबुक, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, भारत का मुख्य न्यायाधीश, लैंगिक रूढ़िवादिता

मेन्स के लिये:

लैंगिक रूढ़िवादिता पर SC हैंडबुक, लैंगिक रूढ़िवादिता का मुद्दा और भारतीय समाज में महिलाओं पर इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) ने एक हैंडबुक जारी की, जिसमें लैंगिक रूढ़िवादिता (Gender Stereotypes) का मुकाबला करने तथा न्यायिक आदेशों और फैसलों में महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी और गलत सोच दर्शाने वाली भाषा का इस्तेमाल न करने के बारे में विस्तार से बताया गया है।

हैंडबुक:

  • परिचय:
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) ने कानूनी भाषा तथा निर्णयों में निहित लैंगिक रूढ़िवादिता को पहचानने, समझने और समाप्त करने में न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं की सहायता करने के उद्देश्य के साथ लैंगिक रूढ़िवादिता पर हैंडबुक जारी की है।
    • यह सामान्य रूढ़िवादी शब्दों और वाक्यांशों पर प्रकाश डालती है जिनका उपयोग प्राय: कानूनी दस्तावेज़ों में महिलाओं का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
    • यह उन उदाहरणों की ओर ध्यान आकर्षित करती है जहाँ ऐसी भाषा महिलाओं की भूमिकाओं और व्यवहार के बारे में पुरानी या गलत धारणाओं को कायम रखती है।
    • यह भाषा के विशिष्ट उदाहरण भी प्रदान करती है जिन्हें अधिक तटस्थ और सटीक शब्दों से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये।
      • उदाहरण के लिये इसमें "कैरियर महिला" के बजाय "महिला", "छेड़छाड़" के बजाय "सड़क पर यौन उत्पीड़न" और "ज़बरन बलात्कार" के बजाय "बलात्कार" का उपयोग करने का सुझाव दिया गया है।

  • उद्देश्य:
    • हैंडबुक का उद्देश्य न्यायिक चर्चा में अधिक न्यायसंगत और निष्पक्ष भाषा के उपयोग को बढ़ावा देना है।
    • हैंडबुक का लक्ष्य भाषा में बदलाव को प्रोत्साहित करना है ताकि लैंगिकता को लेकर आधुनिक और सम्मानजनक समझ को प्रदर्शित करने के साथ ही सभी व्यक्तियों के लिये चाहे उनका लिंग कुछ भी हो, समान अधिकारों को बढ़ावा दिया जा सके।

न्यायाधीशों के लिये सही शब्दों का प्रयोग करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • हैंडबुक में तर्क दिया गया है कि न्यायाधीश जिस भाषा का उपयोग करते हैं, वह न केवल कानून की उनकी व्याख्या को दर्शाती है, बल्कि समाज के बारे में उनकी धारणा को भी दर्शाती है।
  • यहाँ तक ​​कि जब रूढ़िबद्ध भाषा का उपयोग किसी मामले के नतीजे को नहीं बदलता है, तब भी रूढ़िबद्ध भाषा हमारे संवैधानिक लोकाचार के विपरीत विचारों को मज़बूत कर सकती है।
  • जीवन के नियम के लिये भाषा महत्त्वपूर्ण है। शब्द वह साधन हैं जिनके माध्यम से मान्यताओं के नियमों का संचार किया जाता है।
  • शब्द कानून निर्माता या न्यायाधीश के अंतिम उद्देश्य को राष्ट्र तक पहुँचाते हैं।

अन्य देशों द्वारा किये गए प्रयास:

  • अन्य देशों में शिक्षाविदों एवं अभ्यासकर्त्ताओं दोनों द्वारा संचालित परियोजनाएँ रही हैं, जो न्यायालय की प्रथाओं के लिये दर्पण के रूप में हैं।
  • उदाहरण के लिये कनाडा का महिला न्यायालय, महिला वकीलों, शिक्षाविदों और कार्यकर्त्ताओं का एक समूह, समानता कानून पर "सैडो डिसीज़न" प्रस्तुत करता है।
  • भारत में भारतीय नारीवादी निर्णय परियोजना पर भी नारीवादी आलोचना के साथ 'पुनर्लिखित' निर्णयों को प्रस्तुत करती है।

लैंगिक रूढ़िवादिता:

  • परिचय:
    • लैंगिक रूढ़िवादिता का तात्पर्य व्यक्तियों को केवल उनके लिंग के आधार पर विशिष्ट गुण, विशेषताएँ या भूमिकाएँ सौंपने की प्रथा से है।
    • यह रूढ़िवादिता समाजों में व्यापक रूप से प्रभावित कर सकती है कि लोग लिंग के आधार पर एक-दूसरे के लिये किस प्रकार की समझ रखते हैं और उनके साथ कैसा व्यवहार करते हैं।
      • उदाहरण के लिये महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे पोषित रहे और प्रभुत्व से बचें, जबकि पुरुषों से अपेक्षा की जाती है कि वे अभिकर्मक बनें और कमज़ोरियों से बचें।
  • महिलाओं पर लैंगिक रूढ़िवादिता का प्रभाव:
    • लैंगिक रूढ़िवादिता लड़कियों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में बाधा के रूप में कार्य करती है।
      • उदाहरण के लिये घरेलू और पारिवारिक क्षेत्र तक ही सीमित महिलाओं की भूमिका के बारे में रूढ़िवादिता लड़कियों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच में सभी बाधाओं को रेखांकित करती है।
  • महिलाओं को प्राय: समाज में उच्च पदों से वंचित रखा जाता है।
  • शिक्षा, रोज़गार और वेतन में लगातार अंतर कुछ हद तक लैंगिक रूढ़िवादिता का कारण है।
  • अनैतिक लैंगिक रूढ़िवादिता, स्त्रीत्व और पुरुषत्व की कठोर संरचनाएँ एवं लैंगिक रूढ़िवादिता महिलाओं के खिलाफ लिंग आधारित हिंसा के मूल कारण हैं।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

विश्वकर्मा योजना और लखपति दीदी योजना

प्रिलिम्स के लिये:

स्वयं सहायता समूह, विश्वकर्मा योजना, ड्रोन, लखपति दीदी योजना, स्वाधार गृह, सुकन्या समृद्धि योजना, प्रधानमंत्री महिला शक्ति केंद्र योजना

मेन्स के लिये:

कारीगरों और महिला सशक्तीकरण से संबंधित सरकारी पहलें

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने पूरे भारत में कारीगरों और महिला स्वयं सहायता समूहों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से दो महत्त्वपूर्ण पहलों की घोषणा की।

  • ये पहलें हैं: विश्वकर्मा योजना और लखपति दीदी योजना तथा इसके तहत महिला स्वयं सहायता समूहों हेतु ड्रोन का प्रावधान

विश्वकर्मा योजना:

  • परिचय
    • विश्वकर्मा योजना विशेष रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग समुदाय के पारंपरिक शिल्प कौशल में कुशल व्यक्तियों के उत्थान के लिये शुरू की गई एक अग्रणी योजना है।
    • इस योजना का नाम दिव्य वास्तुकार और शिल्पकार विश्वकर्मा के नाम पर रखा गया है, यह विभिन्न व्यवसायों में लगे कारीगर परिवारों को कौशल प्रदान करने की गुरु-शिष्य परंपरा को संरक्षण और विकास पर केंद्रित है।
  • प्रमुख विशेषता
    • मान्यता और समर्थन: इस योजना में नामांकित कारीगरों और शिल्पकारों को पीएम विश्वकर्मा प्रमाण पत्र और एक पहचान पत्र प्रदान किया जाएगा।
      • ये कामगार और शिल्पकार 5% की रियायती ब्याज दर पर 1 लाख रुपए (पहली किश्त) और 2 लाख रुपए (दूसरी किश्त) तक की संपार्श्विक-मुक्त ऋण सहायता के लिये भी पात्र होंगे।
    • कौशल विकास और सशक्तीकरण: विश्वकर्मा योजना को वर्ष 2023-2024 से 2027-2028 तक पाँच वित्तीय वर्षों के लिये 13,000 करोड़ रुपए से 15,000 करोड़ रुपए तक का बजट आवंटित किया गया है।
      • यह योजना कौशल प्रशिक्षण के लिये 500 रुपए और आधुनिक उपकरणों की खरीद के लिये 1,500 रुपए का वज़ीफा प्रदान करती है।
    • सीमा और कवरेज: इस योजना में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में 18 पारंपरिक व्यापार शामिल हैं। इन व्यवसायों में बढ़ई, नाव बनाने वाले, लोहार, कुम्हार, मूर्तिकार, मोची, दर्जी और आदि शामिल हैं।
    • पंजीकरण और कार्यान्वयन: विश्वकर्मा योजना के लिये पंजीकरण का कार्य गाँवों में सामान्य सेवा केंद्रों पर पूरा किया जा सकता है।
      • इस योजना के लिये जहाँ केंद्र सरकार धन उपलब्ध कराएगी, वहीं राज्य सरकारों से भी सहयोग मांगा जाएगा।
    • मूल्य शृंखलाओं के साथ एकीकरण: इस योजना का एक उल्लेखनीय उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कारीगरों को घरेलू तथा वैश्विक दोनों मूल्य शृंखलाओं में निर्बाध रूप से एकीकृत किया जाए, ताकि उनकी बाज़ार पहुँच और अवसरों में वृद्धि हो।

लखपति दीदी योजना:

  • परिचय: सरकार का लक्ष्य गाँवों में दो करोड़ "लखपति दीदी (Lakhpati Didi)" (Prosperous Sisters/समृद्ध बहनें) बनाना है। यह योजना गरीबी उन्मूलन और आर्थिक सशक्तीकरण के व्यापक मिशन के अनुरूप है।
    • इस योजना के तहत महिलाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा ताकि वे प्रतिवर्ष 1 लाख रुपए से अधिक कमा सकें।
  • विशेषताएँ
    • कृषि गतिविधियों के लिये महिला स्वयं सहायता समूहों (SHG) को ड्रोन उपलब्ध कराए जाएंगे।
      • इस पहल का उद्देश्य ग्रामीण समुदायों में महिलाओं को सशक्त बनाते हुए कृषि परिदृश्य को बदलने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना है।
      • लगभग 15,000 महिला स्वयं सहायता समूहों को ड्रोन के संचालन और मरम्मत का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
        • इस प्रशिक्षण से महिलाओं को अत्याधुनिक कौशल के साथ-साथ आय सृजन के नए अवसर भी प्राप्त होंगे।
      • ड्रोन में परिशुद्ध कृषि, फसल निगरानी और कीट नियंत्रण के माध्यम से कृषि में क्रांति लाने की क्षमता है।
    • इस योजना के तहत महिलाओं को LED बल्ब बनाने, प्लंबिंग (Plumbing) समेत अन्य कौशलों में प्रशिक्षित किया जाएगा।

नोट: स्वयं सहायता समूह (Self-Help Group- SHG) उन लोगों का अनौपचारिक संघ है जहाँ लोग अपने जीवन की परिस्थितियों को बेहतर बनाने के बारे में चर्चा करने के लिये इकट्ठा होते हैं।

  • इसे समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले तथा सामूहिक रूप से सामान्य उद्देश्य पूरा करने की इच्छा रखने वाले लोगों के स्वशासित समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

महिला सशक्तीकरण और गरीबी उन्मूलन से संबंधित अन्य पहलें:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. क्या महिला स्वयं सहायता समूहों के माइक्रोफाइनेंसिंग के माध्यम से लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुष्चक्र को तोड़ा जा सकता है? उदाहरण सहित समझाइये। (2021)

प्रश्न. "समसामयिक समय में स्वयं सहायता समूहों (SHGs) का उद्भव विकासात्मक गतिविधियों से राज्य की धीमी लेकिन स्थिर वापसी की ओर इंगित करता है"। विकासात्मक गतिविधियों में SHG की भूमिका एवं SHG को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार द्वारा उठाए गए उपायों की जाँच कीजिये? (2017)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय विरासत और संस्कृति

लाल किला: भारत का स्वतंत्रता दिवस समारोह स्थल

प्रिलिम्स के लिये:

लाल किला, 1857 का विद्रोह, भारतीय राष्ट्रीय सेना, राष्ट्रीय ध्वज, नियति के साथ साक्षात्कार, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

मेन्स के लिये:

लाल किले का महत्त्व, भारतीय विरासत के प्रतीकात्मक तत्त्व 

चर्चा में क्यों ? 

हाल ही में भारत ने अपना 77वाँ स्वतंत्रता दिवस मनाया, एक बार फिर सुर्खियों का केंद्र दिल्ली का प्रतिष्ठित लाल किला था। यह ऐतिहासिक स्मारक, सदियों की कहानियों और संघर्षों से परिपूर्ण रही है।

लाल किले से जुड़ी घटनाओं की शृंखला: 

  • लाल किला का ऐतिहासिक महत्त्व: 
    • दिल्ली सल्तनत के अंर्तगत: दिल्ली सल्तनत (वर्ष 1206-1506) के दौरान दिल्ली एक निर्णायक राजधानी के रूप में उभरी।
      • मुगल वंश के संस्थापक बाबर ने 16वीं शताब्दी में दिल्ली को 'पूरे हिंदुस्तान की राजधानी' कहा था।
      • स्थानांतरण (अकबर ने अपनी राजधानी आगरा स्थानांतरित कर दी) के बावजूद, शाहजहाँ के शासनकाल में मुगलों ने वर्ष 1648 में शाहजहानाबाद के साथ दिल्ली को अपनी राजधानी के रूप में पुनर्स्थापित किया, जिसे आज पुरानी दिल्ली के नाम से जाना जाता है।
        • शाहजहाँ ने लाल-किले की नींव रखी थी।
    • मुगल सम्राट का प्रतीकात्मक महत्त्व: 18वीं सदी तक मुगल सम्राट अपने अधिकांश क्षेत्र और शक्तियाँ खो चुके थे।
      • समाज के कुछ वर्गों द्वारा उन्हें अभी भी भारत के प्रतीकात्मक शासकों के रूप में माना जाता था, विशेषकर उन लोगों द्वारा जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद (British Colonialism) का विरोध करते थे।
        • 1857 का विद्रोह इस संबंध का प्रतीक था, जब लोगों ने लाल किले की ओर मार्च किया और वृद्ध बहादुर ज़फर को अपना नेता घोषित किया।
  • ब्रिटिश शाही शासन और लाल किले का परिवर्तन: 
    • दिल्ली पर ब्रिटिश कब्ज़ा: 1857 के विद्रोह में विजय ने के बाद, अंग्रेज़ों का इरादा शाहजहानाबाद को ध्वस्त करके मुगल विरासत को मिटाने का था।
      • लाल किले को छोड़ते हुए, उन्होंने इसकी भव्यता छीन ली, कलाकृतियाँ लूट लीं और आंतरिक संरचनाओं को ब्रिटिश इमारतों से बदल दिया।
      • इस परिवर्तन ने लाल किले पर ब्रिटिश शाही अधिकार की अमिट छाप छोड़ी।
    • प्रतीकात्मक अधिकार का उपयोग: अंग्रेज़ों ने दिल्ली की प्रतीकात्मक शक्ति को पहचाना।
      • दिल्ली दरबार समारोहों ने ब्रिटिश प्रभुत्व को मज़बूत किया और वहाँ के सम्राट को भारत का सम्राट घोषित किया।
      • वर्ष 1911 में, अंग्रेज़ों ने अपनी राजधानी को दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया तथा एक नए शहर का निर्माण किया जो भारतीय लोकाचार और केंद्रीकृत प्राधिकरण का प्रतीक था।

लाल किला बना भारत के स्वतंत्रता दिवस समारोह का स्थल:

  • 1940 के दशक में लाल किले पर भारतीय राष्ट्रीय सेना के परीक्षणों ने इसके प्रतीकवाद को बढ़ाया। इन परीक्षणों ने INA के प्रति सहानुभूति जगाई और ब्रिटिश शासन के खिलाफ राष्ट्रवादी भावनाओं को तीव्र किया, जिससे ब्रिटिश सरकार की अवज्ञा के प्रतीक के रूप में लाल किले की भूमिका मज़बूत हुई।
  • जैसे ही भारत आज़ादी के करीब पहुँचा, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का फैसला किया।
    • 15 अगस्त, 1947 को, जवाहरलाल नेहरू ने प्रिंसेस पार्क में राष्ट्रीय ध्वज "तिरंगा" फहराया, जिसके बाद 16 अगस्त, 1947 को लाल किले में उनका ऐतिहासिक "ट्रिस्ट विद डेस्टिनी" भाषण हुआ।
    • यह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से किले को पुनः प्राप्त करने और भारत की संप्रभुता एवं पहचान पर ज़ोर देने का एक प्रतीकात्मक संकेत था। इसने स्वतंत्रता के लिये भारत के लंबे और कठिन संघर्ष की परिणति को भी चिह्नित किया।
  • तब से, हर साल 15 अगस्त को भारत के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं और लाल किले से राष्ट्र को संबोधित करते हैं।
    • यह परंपरा भारत के स्वतंत्रता दिवस समारोह का एक अभिन्न अंग बन गई है और इसके गौरव एवं और देशभक्ति को दर्शाती है।

लाल किले के बारे में:

  • लाल किला, जिसे इसमें बड़े पैमाने पर प्रयोग किये गए पत्थर के लाल रंग के कारण कहा जाता है, योजना में अष्टकोणीय है, जिसमें पूर्व और पश्चिम में दो लंबी भुजाएँ हैं।
  • यह किला मुगल वास्तुकला की उत्कृष्ट कृति है और उनकी सांस्कृतिक एवं कलात्मक उपलब्धियों का प्रतीक है। इसे 2007 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) के रूप में नामित किया गया था।
    • साथ ही 500 रुपये के नए नोट के पीछे किले को दर्शाया गया है।
  • इसका प्रबंधन वर्तमान में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा किया जाता है, जो इसके संरक्षण और रखरखाव के लिये ज़िम्मेदार है। 
    • ASI ने आगंतुकों के लिये संग्रहालय, गैलरी, ऑडियो गाइड, लाइट एंड साउंड शो आदि की भी स्थापना की है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. औपनिवेशिक भारत के संदर्भ में, शाह नवाज़ खान, प्रेम कुमार सहगल और गुरबख्श सिंह ढिल्लों याद किये जाते हैं (2021)

(a) स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के नेता के रूप में
(b) 1946 की अंतरिम सरकार के सदस्यों के रूप में
(c) संविधान सभा में प्रारूप समिति के सदस्यों के रूप में
(d) आज़ाद हिंद फौज के अधिकारियों के रूप में

उत्तर: (d) 

  • प्रेम कुमार सहगल, शाह नवाज़ खान और गुरबख्श सिंह ढिल्लों भारतीय राष्ट्रीय सेना के दूसरे श्रेणी के कमांडर थे। अंग्रेजों द्वारा वर्ष 1945 में लाल किले पर उनका कोर्ट-मार्शल किया गया और उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई। हालाँकि, इस कारण भारत में हुए व्यापक विरोध और अशांति के बाद उन्हें रिहा करना पड़ा। अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।

प्रश्न. भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018) 

  1. फतेहपुर सीकरी स्थित बुलंद दरवाजा तथा खानकाह के निर्माण में सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया था।
  2. लखनऊ स्थित बड़ा इमामबाड़ा और रूमी दरवाजा के निर्माण में लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर का उपयोग किया गया था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

PMAY-U की नई पूरक योजनाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी, अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्प्लेक्स, GHTC इंडिया, अंगीकार अभियान, महिला सशक्तीकरण

मेन्स के लिये:

PMAY-U की विशेषताएँ, बुनियादी ढाँचे के विकास से संबंधित सरकारी पहल

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में प्रधानमंत्री ने 77वें स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में शहरी गरीबों द्वारा सामना की जाने वाली आवास संकट की समस्या का समाधान करने हेतु एक नई योजना का उल्लेख किया।

प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी

  • परिचय
    • आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के तत्त्वावधान में क्रियान्वित प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी का उद्देश्य आर्थिक रूप से वंचित वर्गों के बीच शहरी आवास की कमी का समाधान करना है।
    • इस मिशन के तहत वर्ष 2022 तक सभी पात्र शहरी परिवारों को "पक्के" (टिकाऊ और स्थायी) घर उपलब्ध कराना है।
      • इस लक्ष्य की पूर्ति के लिये फंडिंग पैटर्न और कार्यान्वयन पद्धति में बदलाव किये बिना सभी स्वीकृत घरों के निर्माण का कार्य पूरा करने हेतु इस योजना को दिसंबर 2024 तक बढ़ा दिया गया है।
  • लाभार्थी: यह मिशन झुग्गीवासियों/स्लम सहित EWS/LIG और MIG श्रेणियों के बीच शहरी आवास की कमी को संबोधित करता है।
    • आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (Economically Weaker Section- EWS)- अधिकतम वार्षिक पारिवारिक आय 3,00,00 रुपए।
    • निम्न आय समूह (Low Income Group- LIG)- अधिकतम वार्षिक पारिवारिक आय 6,00,000 रुपए।
    • मध्यम आय समूह (Middle Income Groups- MIG I & II)- अधिकतम वार्षिक पारिवारिक आय 18,00,000 रुपए।
      • लाभार्थी परिवार में पति, पत्नी, अविवाहित बेटे और/या अविवाहित बेटियाँ शामिल होंगी।
  • PMAY-U के घटक: 
    • इन-सीटू स्लम पुनर्विकास (In-situ Slum Redevelopment- ISSR): ISSR कार्यक्रम निजी डेवलपर्स के सहयोग से संसाधन के रूप में भूमि का उपयोग करते हुए पुनर्विकास के दौरान योग्य स्लम निवासियों के लिये प्रति आवास 1 लाख रुपए की केंद्रीय सहायता प्रदान करता है।
      • राज्यों/शहरों के पास इस केंद्रीय सहायता को अन्य स्लम पुनर्विकास परियोजनाओं के लिये आवंटित करने की छूट है।
    • क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना (Credit Linked Subsidy Scheme- CLSS): यह योजना EWS/LIG, मध्यम आय समूह (MIG)-I और MIG-II के लाभार्थियों को आवास खरीदने, निर्माण करने या विस्तार के लिये आवास ऋण की मांग को करने में सहायता करता है।
      • व्यक्ति ये लाभ उठा सकते हैं:
        • 6 लाख रुपए तक की ऋण राशि पर 6.5% की ब्याज सब्सिडी
        • 9 लाख रुपए तक की ऋण राशि पर 4% की ब्याज सब्सिडी
        • 12 लाख रुपए तक की ऋण राशि पर 3% की ब्याज सब्सिडी
      • आवास और शहरी विकास निगम (HUDCO), राष्ट्रीय आवास बैंक (NHB) और भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India- SBI) नामित केंद्रीय नोडल एजेंसियाँ ​​(CNAs) हैं जो ऋण संस्थानों के माध्यम से सब्सिडी देने तथा प्रगति की निगरानी के लिये ज़िम्मेदार हैं।
    • अफोर्डेबल हाउसिंग इन पार्टनरशिप (AHP):
      • AHP के तहत भारत सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के प्रत्येक परिवार को आवास के लिये 1.5 लाख रुपए की केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है।
      • किफायती आवास परियोजनाओं (Affordable Housing Projects) में विभिन्न श्रेणियों को शामिल किया जा सकता है, लेकिन वे केवल तभी केंद्रीय सहायता के लिये योग्य हैं जब इनमें कम-से-कम 35% आवास EWS श्रेणी के लिये हों।
      • राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने सामर्थ्य सुनिश्चित करने के लिये EWS घरों की बिक्री मूल्य पर ऊपरी सीमा निर्धारित की है।
    • लाभार्थी द्वारा व्यक्तिगत आवास निर्माण/संवर्द्धन (BLC-N/ BLC-E):
      • योग्य आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के परिवारों को घरों के निर्माण व सुधार के लिये केंद्रीय सहायता के रूप में 1.5 लाख रुपए तक प्रदान किये जाते हैं।
      • शहरी स्थानीय निकाय भूमि के स्वामित्व, आर्थिक स्थिति और पात्रता की पुष्टि के लिये लाभार्थी की जानकारी और भवन योजना का सत्यापन करते हैं।

नोट: PMAY-U महिला सदस्य के नाम पर या संयुक्त नाम पर घरों का स्वामित्व प्रदान करके महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देता है।

  • प्रगति:
    • नवीनतम अपडेट के अनुसार, PMAY-U पहल के तहत कुल 118.9 लाख घर बनाए जा चुके हैं, जिनमें से 76.25 लाख घरों में लोग रह रहे हैं।
  • संबंधित पहल: 
    • किफायती किराये के आवास परिसर (ARHCs): MoHUA ने PMAY-U के अंर्तगत एक उप-योजना ARHCs प्रारंभ की है।
      • इससे शहरी प्रवासियों/औद्योगिक क्षेत्र के गरीबों के साथ-साथ गैर-औपचारिक शहरी अर्थव्यवस्था में रहने वाले लोगों को आसानी होगी और उन्हें अपने कार्यस्थल के समीप ही किफायती किराये के आवास तक पहुँच प्राप्त होगी।
    • अंगीकार अभियान: यह सामुदायिक गतिशीलता और IEC गतिविधियों के माध्यम से PMAY-U लाभार्थियों के लिये जल और ऊर्जा संरक्षण, अपशिष्ट प्रबंधन, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता जैसी सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने पर केंद्रित है।
      • यह अभियान औपचारिक रूप से 150वीं गांधी जयंती के उपलक्ष्य में 2 अक्तूबर, 2019 को शुरू किया गया था।
    • GHTC इंडिया: MoHUA ने ग्लोबल हाउसिंग टेक्नोलॉजी चैलेंज - इंडिया (GHTC इंडिया) की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य आवास निर्माण क्षेत्र के लिये विश्व स्तरीय नवीन निर्माण प्रौद्योगिकियों की पहचान करके इसे मुख्यधारा में लाना है जो टिकाऊ, पर्यावरण-अनुकूल और आपदा-लचीली हो।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

प्रधानमंत्री-इलेक्ट्रिक बस सेवा

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री-इलेक्ट्रिक बस सेवा, इलेक्ट्रिक बसें, सार्वजनिक-निजी भागीदारी, ई-मोबिलिटी, नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड, ग्रीनहाउस गैस

मेन्स के लिये:

प्रधानमंत्री-इलेक्ट्रिक बस सेवा, धारणीय गतिशीलता और ग्रीनहाउस गैस कटौती में इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

भारतीय मंत्रिमंडल ने "पी.एम.ई-बस सेवा अथवा प्रधानमंत्री-इलेक्ट्रिक बस सेवा" योजना को मंज़ूरी दे दी है, जिसका लक्ष्य सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के माध्यम से 10,000 इलेक्ट्रिक बसें शुरू करके शहरों में बसों के संचालन को बढ़ावा देना है।

प्रधानमंत्री-इलेक्ट्रिक बस सेवा:

  • परिचय:
    • इसका उद्देश्य शहरी परिवहन दक्षता में वृद्धि करना और पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देना है।
  • खंड A: सिटी बस सेवाओं में वृद्धि करना (169 cities):
    • यह खंड सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के तहत 10,000 ई-बसों द्वारा शहरी परिवहन को सुदृढ़ करने हेतु समर्पित है।
    • यह योजना इलेक्ट्रिक बसों के प्रभावी संचालन के लिये इलेक्ट्रिक बसों हेतु सबस्टेशन जैसे महत्वपूर्ण विद्युत बुनियादी ढाँचे के निर्माण के अतिरिक्त बस डिपो के बुनियादी ढाँचे के निर्माण अथवा उन्नयन की आवश्यकता को चिह्नित करती है।
  • खंड B: हरित शहरी गतिशीलता पहल [Green Urban Mobility Initiatives (181 शहर)]:
    • इस खंड में बसों की  प्राथमिकता बढ़ाना, बुनियादी ढाँचे में सुधार, मल्टीमॉडल इंटरचेंज सुविधाएँ उपलब्ध करना, नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड (National Common Mobility Card- NCMC)-बेस्ड ऑटोमेटेड फेयर कलेक्शन सिस्टम लागू करना और आवश्यक चार्जिंग बुनियादी ढाँचे का निर्माण शामिल है।
    • इस योजना का लक्ष्य इन टिकाऊ प्रथाओं को एकीकृत करके शहरी गतिशीलता परिदृश्य को बदलना है।
  • लक्षित जनसंख्या और पहुँच से वंचित क्षेत्र:
    • यह योजना 2011 की जनगणना के आँकड़ों के आधार पर तीन लाख और उससे अधिक की आबादी वाले शहरों को शामिल करेगी।
    • इस व्यापक दृष्टिकोण में केंद्रशासित प्रदेशों की सभी राजधानियाँ, देश के उत्तर पूर्वी हिस्से के क्षेत्र और पहाड़ी राज्य शामिल हैं।
    • इस योजना का एक महत्त्वपूर्ण आकर्षण संगठित बस सेवाओं की कमी वाले शहरों पर इसका ध्यान केंद्रित करना है तथा शहरी गतिशीलता अंतर को कम करना है।
  • संचालन एवं सुविधा:
    • इस योजना का परिचालन पहलू, नियुक्त बस ऑपरेटरों को भुगतान करते समय बस सेवाओं को प्रबंधित करने तथा बनाए रखने की ज़िम्मेदारी राज्यों और शहरों पर डालता है।
    • केंद्र सरकार की भूमिका योजना में उल्लिखित सब्सिडी प्रदान करके इन कार्यों को सुविधाजनक बनाना और इनका समर्थन करना है।

योजना का महत्त्व: 

  • रोज़गार के अवसर:
    • इस योजना से 45,000 से 55,000 लोगों के रोज़गार की अनुमानित सीमा के साथ प्रत्यक्ष रोज़गार अवसर बढ़ने का अनुमान है।
    • यह बढ़ावा सिटी बस संचालन में इलेक्ट्रिक बसों की तैनाती से होगा, जो शहरी गतिशीलता की जरूरतों को पूरा करते हुए आर्थिक विकास में योगदान देगा।
  • ई-मोबिलिटी को बढ़ावा देना:
    • यह ई-मोबिलिटी को अपनाने के लिये प्रेरित करती है, जो अपेक्षित मीटर के पीछे विद्युत के बुनियादी ढाँचे के लिये व्यापक समर्थन पर आधारित है।
    • इसके अलावा शहरों को ग्रीन अर्बन मोबिलिटी पहल के हिस्से के रूप में महत्त्वपूर्ण चार्जिंग के बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये समर्थन प्राप्त होगा।
    • यह समग्र दृष्टिकोण न केवल ऊर्जा-कुशल इलेक्ट्रिक बसों को अपनाने में तेज़ी लाता है बल्कि ई-मोबिलिटी क्षेत्र में नवाचार को भी बढ़ावा देता है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव और GHG में कमी:
    • विद्युत गतिशीलता की ओर बदलाव से बड़े पर्यावरणीय लाभ होने का अनुमान है।
    • ध्वनि और वायु प्रदूषण को कम करने के साथ कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाकर, यह योजना व्यापक स्थिरता लक्ष्यों को हासिल करेगी
    • बस-आधारित सार्वजनिक परिवहन के बढ़ते उपयोग से भी एक बदलाव आएगा, जिससे ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में कमी आएगी।

ई-मोबिलिटी को बढ़ावा देने के लिये सरकारी पहल:

आगे की राह

  • "पी.एम.-ईबस सेवा" योजना टिकाऊ शहरी गतिशीलता और इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने को बढ़ावा देने में एक महत्त्वपूर्ण पहल है।
  • प्रत्यक्ष रोज़गार सृजन, बुनियादी ढाँचे के विकास और पर्यावरण संरक्षण तक विस्तृत अपने बहुआयामी दृष्टिकोण के साथ, यह योजना लचीली एवं पर्यावरण-अनुकूल शहरी परिवहन प्रणाली बनाने के लिये भारत की प्रतिबद्धता का उदाहरण प्रस्तुत करती है।
  • इस दूरगामी सोच वाली रणनीति का शहरी विकास और पर्यावरण प्रबंधन दोनों पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।

स्रोत: द हिंदू


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