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सामाजिक न्याय

मानव तस्करी-रोधी विधेयक का मसौदा

  • 05 Jul 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 23 (1)

मेन्स के लिये:

भारत में मानव तस्करी को प्रतिबंधित करने हेतु किये गए प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने मानव तस्करी विरोधी विधेयक, व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, देखभाल और पुनर्वास) विधेयक, 2021 का मसौदा जारी किया।

  • इस विधेयक को अंतिम रूप देने और कानून बनने के लिये कैबिनेट की मंज़ूरी तथा संसद के दोनों सदनों से सहमति की आवश्यकता होगी।
  • इससे पूर्व वर्ष 2018 में  एक मसौदा पेश किया गया था, लेकिन सांसदों और विशेषज्ञों के कड़े विरोध के बीच इसे राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सका।

प्रमुख बिंदु 

पूर्व विधेयक की आलोचना:

  • संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों के अनुसार, यह अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के अनुरूप नहीं था।
  • ऐसा प्रतीत होता है कि यह विधेयक यौन संबंधी कार्यों और प्रवासन को तस्करी के साथ जोड़ता है।
  • मानव अधिकार आधारित और पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ पूरक होने के बजाय आपराधिक कानून परिप्रेक्ष्य के माध्यम से तस्करी को संबोधित करने के लिये विधेयक की आलोचना की गई थी।
  •  पुलिस द्वारा "रेस्क्यू रेड" को बढ़ावा देने के साथ-साथ पुनर्वास के नाम पर पीड़ितों के संस्थागतकरण के लिये भी इसकी आलोचना की गई थी।
  • यह बताया गया था कि कुछ अस्पष्ट प्रावधानों से उन गतिविधियों का व्यापक अपराधीकरण हो जाएगा जो अनिवार्य रूप से तस्करी से संबंधित नहीं हैं।

नए विधेयक में प्रावधान:

  • यह भारत के अंदर और साथ ही भारत के बाहर सभी नागरिकों तक विस्तृत है।
    • भारत में पंजीकृत किसी भी जहाज़ या विमान पर सवार व्यक्ति, चाहे वह कहीं भी हो या भारतीय नागरिकों को कहीं भी ले जा रहा हो।
    • एक विदेशी नागरिक या एक राज्यविहीन व्यक्ति जिसका इस अधिनियम के तहत अपराध किये जाने के समय भारत में निवास है। और
    • यह कानून सीमा पार प्रभाव वाले व्यक्तियों की तस्करी के मामले में प्रत्येक अपराध पर लागू होगा।
  • इसके अंतर्गत आने वाले पीड़ित:
    • यह पीड़ितों के रूप में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा से परे है और अब इसमें ट्रांसजेंडर के साथ-साथ कोई भी ऐसा व्यक्ति शामिल है जो तस्करी का शिकार हो सकता है।
    • यह इस प्रावधान को भी समाप्त करता है कि पीड़ित के रूप में परिभाषित करने के लिये पीड़ित को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की आवश्यकता होती है।
  • शोषण:
    • वेश्यावृत्ति शोषण या अश्लील साहित्य सहित यौन शोषण के अन्य रूप, शारीरिक शोषण से संबंधित कोई भी कार्य, जबरन श्रम या सेवाएँ, दासता या दासता के समान व्यवहार, अंगों को जबरन अलग करना, अवैध नैदानिक ​​​​दवा परीक्षण या अवैध जैव-चिकित्सा अनुसंधान।
  • अपराधियों के रूप में सरकारी अधिकारी:
    • अपराधियों में रक्षाकर्मी और सरकारी कर्मचारी, डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ या प्राधिकार की स्थिति में कोई भी शामिल होगा।
  • दंड/जुर्माना (Penalty): 
    • तस्करी के अधिकतर मामलों में कम-से-कम सात वर्ष की सज़ा का प्रावधान है जिसे 10 वर्षों तक की कैद और 5 लाख रुपए के जुर्माने तक बढ़ाया जा सकता है।
    • एक से अधिक बच्चों की तस्करी के मामले में वर्तमान में आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान है।
  • धन शोधन अधिनियम से समानता:
    • इस तरह की आय के माध्यम से खरीदी गई संपत्ति के साथ-साथ तस्करी के लिये उपयोग की जाने वाली संपत्ति को अब धन शोधन अधिनियम के समान प्रावधानों के साथ ज़ब्त किया जा सकता है।
  • जाँच एजेंसी:
    • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (National Investigation Agency- NIA) मानव तस्करी की रोकथाम और उससे निपटने हेतु उत्तरदायी राष्ट्रीय जाँच और समन्वय एजेंसी के रूप में कार्य करेगी।
  • राष्ट्रीय मानव तस्करी विरोधी समिति:
    • एक बार कानून बन जाने के बाद केंद्र इस कानून के प्रावधानों के समग्र प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये एक राष्ट्रीय मानव तस्करी विरोधी समिति को अधिसूचित और स्थापित करेगा।
    • इस समिति में विभिन्न मंत्रालयों का प्रतिनिधित्व होगा, जिसमें गृह सचिव अध्यक्ष और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव सह-अध्यक्ष के रूप में होंगे।
    • राज्य एवं ज़िला स्तर पर मानव तस्करी-रोधी समितियों का भी गठन किया जाएगा।

महत्त्व:

  • विधेयक ट्रांसजेंडर समुदाय (Transgender Community) और किसी भी अन्य व्यक्ति को शामिल करता है जो स्वचालित रूप से अंगों की अवैध विक्री  जैसी गतिविधियों को अपने दायरे में लाएगा।
  • साथ ही ज़बरन मज़दूरी जैसे मामले, जिसमें लोग नौकरी के लालच में दूसरे देशों में चले जाते हैं, जहांँ उनके पासपोर्ट और दस्तावेज़ छीनकर उन्हें काम पर लगाया जाता है, भी इस नए कानून के दायरे में आएंगे।

भारत में मानव तस्करी को प्रतिबंधित करने वाले कानून:

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 23 (1) मानव तस्करी और ज़बरन श्रम पर रोक लगाता है।
  • अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम (ITPA), 1956 व्यावसायिक यौन शोषण के लिये मानव तस्करी को दंडित करता है।
  • बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 और किशोर न्याय अधिनियम के माध्यम से बंधुआ एवं ज़बरन श्रम को प्रतिबंधित किया गया है।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 336 (A) और 337 क्रमशः नाबालिगों के अपहरण और वेश्यावृत्ति पर रोक लगाती हैं।

अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, प्रोटोकॉल और अभियान:

  • अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के एक भाग के रूप में वर्ष 2000 में व्यक्तियों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने, अपराधियों को पकड़ने और दंडित करने के लिये प्रोटोकॉल। संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय (United Nations Office on Drugs and Crime- UNODC) प्रोटोकॉल को लागू करने के लिये ज़िम्मेदार है। यह राज्यों को कानूनों मसौदा तैयार करने, व्यापक राष्ट्रीय तस्करी विरोधी रणनीति बनाने और उन्हें लागू करने के लिये संसाधन उपलब्ध कराकर व्यावहारिक सहायता प्रदान करता है। 
  • भूमि, समुद्र और वायु मार्ग से प्रवासियों की तस्करी के खिलाफ प्रोटोकॉल: यह 28 जनवरी, 2004 को लागू हुआ था। यह अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन का भी पूरक है। प्रोटोकॉल का उद्देश्य प्रवासियों के अधिकारों की सुरक्षा और प्रवासियों का दुरुपयोग करने वाले संगठित आपराधिक समूहों की शक्ति एवं प्रभाव को कम करना है।
  • मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (1948) एक गैर-बाध्यकारी घोषणा है जो प्रत्येक मनुष्य को सम्मान के साथ जीने का अधिकार प्रदान करती है और दासता को प्रतिबंधित करती है।
  • ब्लू हार्ट अभियान: ब्लू हार्ट अभियान, UNODC द्वारा शुरू किया गया एक अंतर्राष्ट्रीय तस्करी-रोधी कार्यक्रम है।
  • सतत् विकास लक्ष्य: विभिन्न SDG का उद्देश्य इसकी जड़ों और साधनों को लक्षित कर तस्करी को समाप्त करना है, जैसे- लक्ष्य 5 (लैंगिक समानता हासिल करना और सभी महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाना), लक्ष्य 8 (निरंतर, समावेशी और सतत् आर्थिक विकास, पूर्ण  एवं उत्पादक रोज़गार तथा सभी के लिये अच्छे काम को बढ़ावा देना), लक्ष्य 16 (सतत् विकास के लिये शांतिपूर्ण और समावेशी समाजों को बढ़ावा देना, सभी के लिये न्याय तक पहुँच प्रदान करना व सभी स्तरों पर प्रभावी, जवाबदेह और समावेशी संस्थानों का निर्माण करना)।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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