अंतर्राष्ट्रीय संबंध
मानव तस्करी (रोकथाम, सुरक्षा और पुनर्वास) विधेयक, 2018 को मंज़ूरी
- 03 Mar 2018
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चर्चा में क्यों?
- हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मानव तस्करी (Human Trafficking) की रोकथाम और इसके पीड़ितों हेतु सुरक्षा एवं पुनर्वास सुनिश्चित करने के लिये महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित मानव तस्करी (रोकथाम, सुरक्षा और पुनर्वास) विधेयक, 2018 को लोकसभा में पेश करने की स्वीकृति दे दी है।
- यह विधेयक अत्यंत कमज़ोर व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं एवं बच्चों को, प्रभावित करने वाले घृणित और अदृश्य अपराधों से निपटने का समाधान प्रदान करता है।
पृष्ठभूमि
- मानव तस्करी बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाला तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है किंतु इस अपराध से निपटने के लिये अभी तक कोई विशेष कानून नहीं है।
- इसको देखते हुए मानव तस्करी (रोकथाम, सुरक्षा तथा पुनर्वास) विधेयक, 2018 तैयार किया गया है।
- तस्करी एक वैश्विक चिंता है और अनेक दक्षिण एशियाई देश इससे प्रभावित हैं।
- प्रस्तावित कानून भारत को तस्करी से मुकाबला करने में दक्षिण एशियाई देशों का नेतृत्वकर्त्ता बनाएगा। इन देशों में भारत व्यापक विधेयक तैयार करने वाला अग्रणी देश है।
- यह विधेयक मंत्रालयों, विभागों, राज्य सरकारों, स्वयंसेवी संगठनों तथा इस क्षेत्र के विशेषज्ञों से परामर्श करके तैयार किया गया है।
- इस विधेयक में महिला और बाल विकास मंत्रालय को प्राप्त सैंकड़ों याचिकाओं में दिये गए सुझावों को बड़ी संख्या में शामिल किया गया है। 60 से अधिक स्वयंसेवी संगठनों सहित विभिन्न हितधारकों के साथ क्षेत्रीय परामर्श दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई में किया गया। विधेयक का मंत्रियों के समूह द्वारा भी अध्ययन किया गया है।
विधेयक की प्रमुख विशेषताएँ
मानव तस्करी की विस्तृत परिभाषा
- तस्करी के गंभीर रूपों में ज़बरदस्ती मज़दूरी कराना, भीख मंगवाना, समय से पहले यौन परिपक्वता के लिये किसी व्यक्ति को रासायनिक पदार्थ या हार्मोन देना, विवाह के लिये या विवाह के बहाने से या विवाह के बाद महिलाओं और बच्चों की तस्करी शामिल है।
- मानव तस्करी को बढ़ावा देने और तस्करी में सहायता के लिये जाली प्रमाण-पत्र बनाने, छापने और सरकारी एजेंसियों से मंजूरी तथा आवश्यक दस्तावेज़ प्राप्त करने के लिये जालसाज़ी करने वाले व्यक्ति के लिये सज़ा का प्रावधान है।
नोडल एजेंसी एवं संस्थागत ढाँचा
- राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) गृह मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर तस्करी विरोधी ब्यूरो की तरह कार्य करेगी। इसके लिये NIA अधिनियम को अलग से संशोधित किया जाएगा।
- यह विधेयक अपराध के पारदेशीय स्वभाव से भी व्यापक रूप से निपटता है। इसके लिये राष्ट्रीय तस्करी विरोधी ब्यूरो विदेशी देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के अधिकारियों के साथ अंतर्राष्ट्रीय तालमेल करेगा, जाँच में अंतर्राष्ट्रीय सहायता देगा, साक्ष्यों और सामग्रियों, गवाहों के अंतर्राज्यीय सीमापार स्थानातंरण में सहायता देगा और न्यायिक कार्यवाहियों में अंतर्राज्यीय और अंतर्राष्ट्रीय वीडियो कॉन्फ्रेसिंग में सहायता देगा।
- NIA को महिलाओं की सुरक्षा के लिये मानव तस्करी की जाँच करने हेतु एक सेल स्थापित करने के लिये निर्भया फंड के अंतर्गत वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
- यह विधेयक ज़िला, राज्य तथा केंद्र स्तर पर समर्पित संस्थागत ढाँचा स्थापित करता है। यह तस्करी की रोकथाम, सुरक्षा जाँच और पुनर्वास कार्य के लिये उत्तरदायी होगा।
- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संगठित गठजोड़ को तोड़ने के लिये संपत्ति की कुर्की, जब्ती तथा अपराध से प्राप्त धन को जब्त करने का प्रावधान है।
संबंधित पक्षों की निजता
- विधयेक यह सुनिश्चित करता है कि पीड़ितों, गवाहों तथा शिकायत करने वालों की पहचान को गोपनीय रखा जाए। पीड़ितों की गोपनीयता को उनके बयान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये दर्ज करके बनाए रखा जाएगा। साथ ही, इससे सीमा पार और अंतर्राज्यीय अपराधों से निपटने में भी मदद मिलेगी।
पीड़ितों के पुनर्वास और त्वरित सुरक्षा के लिये प्रावधान
- इस विधेयक में पहली बार पुनर्वास कोष स्थापित करने का प्रावधान शामिल किया गया है।
- इसका उपयोग पीड़ित के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक देखभाल के लिये किया जाएगा। इसमें पीड़ितों की शिक्षा, कौशल विकास, स्वास्थ्य देखभाल, मनोवैज्ञानिक सहायता, कानूनी सहायता और सुरक्षित निवास आदि शामिल हैं।
- समयबद्ध अदालती सुनवाई और संज्ञान की तिथि से एक वर्ष की अवधि के अंदर पीड़ितों को वापस अपने मूल स्थान पर भेजा जाएगा।
- पीडित को शारीरिक, मानसिक आघात से निपटने के लिये 30 दिनों के अन्दर अंतरिम राहत का और चार्जशीट दाखिल होने की तिथि से 60 दिनों के अंदर उचित सहायता पाने का अधिकार होगा।
- पीड़ित का पुनर्वास अभियुक्त के विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई शुरू होने या मुकदमे के फैसले पर निर्भर नहीं करेगा।
विशेष अदालतों का गठन
- मुकदमों की तेज़ी से सुनवाई के लिये प्रत्येक ज़िले में विशेष अदालतों का गठन किया जाएगा।
- विधयेक में 10 वर्ष के सश्रम कारावास की न्यूनतम सज़ा से लेकर अधिकतम आजीवन कारावास तथा कम-से-कम एक लाख रुपए के आर्थिक दंड का प्रावधान शामिल किया गया है।