हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक-2022
प्रिलिम्स के लिये:राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी कानून, धर्म की स्वतंत्रता पर संवैधानिक प्रावधान, संविधान का अनुच्छेद 21। मेन्स के लिये:हरियाणा धार्मिक कानून के गैर-कानूनी धर्मांतरण की रोकथाम विधेयक, 2022; धर्मांतरण विरोधी कानून और संबंधित मुद्दे; संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हिमाचल प्रदेश सरकार ने बड़े पैमाने पर धर्मांतरण की प्रक्रिया का अपराधीकरण करने की मांग करते हुए हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2022 का प्रस्ताव दिया है।
- विधेयक द्वारा हिमाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2019 में संशोधन किया गया, जिसे एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण पर रोकने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था।
प्रस्तावित संशोधन:
- हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2019 अनुचित टिप्पणी, बल, अनुचित प्रभाव, ज़बरदस्ती, प्रलोभन या किसी अन्य कपटपूर्ण तरीके से या शादी से और उससे जुड़े मामलों के लिये एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण को प्रतिबंधित करता है।
- हालाँकि, बड़े पैमाने पर धर्मांतरण को रोकने के लिये कोई प्रावधान नहीं है।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान:
- यह सामूहिक धर्मांतरण को एक ही समय में दो या दो से अधिक व्यक्तियों के धर्मांतरण के रूप में परिभाषित करता है।
- यदि कोई व्यक्ति सामूहिक धर्म परिवर्तन के संबंध में धारा 3 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो सज़ा को अधिकतम 10 वर्ष तक बढ़ाने और जुर्माने की राशि में वृद्धि का प्रस्ताव किया गया है।
- स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 3 में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति अनुचित टिप्पणी, बल, अनुचित प्रभाव, ज़बरदस्ती, प्रलोभन, विवाह अथवा किसी भी धोखाधड़ी के माध्यम से या किसी अन्य व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित या परिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा।
- प्राप्त शिकायतों की जाँच किसी ऐसे पुलिस अधिकारी द्वारा की जानी चाहिये जो सब-इंस्पेक्टर के पद से नीचे का न हो।
- इस अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय होंगे।
- यदि कोई व्यक्ति अपने धर्म को छुपाकर किसी से विवाह करता है और उसके पश्चात अपने धर्म के अनुपालन का दबाव बनाता है तो उसे न्यूनतम तीन वर्ष और अधिकतम 10 वर्ष के कारावास की सज़ा दी जाएगी।
धर्मांतरण :
- धर्मांतरण दूसरे के बहिष्कार हेतु एक विशेष धार्मिक संप्रदाय के साथ पहचाने गए विश्वासों के एक समूह को अपनाना है।
- इस प्रकार "धर्मांतरण" एक संप्रदाय के अनुपालन को छोड़कर दूसरे के साथ संबद्धता होती है।
- उदाहरण के लिये ईसाई बैपटिस्ट से मेथोडिस्ट या कैथोलिक, मुस्लिम शिया से सुन्नी।
- कुछ मामलों में, धर्मांतरण "धार्मिक पहचान के परिवर्तन और विशेष अनुष्ठानों का प्रतीक है"।
धर्मांतरण विरोधी कानूनों की आवश्यकता:
- धर्मांतरण का अधिकार नहीं:
- संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
- धर्मांतरण किसी अन्य व्यक्ति को धर्म परिवर्तन करने वाले के धर्म से परिवर्तनकर्त्ता के धर्म में परिवर्तित करने का प्रयास है।
- अंतःकरण और धर्म की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार का विस्तार धर्मांतरण के सामूहिक अधिकार के अर्थ में नहीं किया जा सकता।
- क्योंकि धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार धर्मांतरण करने वाले और परिवर्तित होने की मांग करने वाले व्यक्ति के लिये समान रूप से है।
- संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
- कपटपूर्ण विवाह:
- हाल के दिनों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जिसमें लोग अपने धर्म को छुपाकर या गलत तरीके से दूसरे धर्म के व्यक्तियों के साथ शादी करते हैं तथा शादी के बाद ऐसे दूसरे व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित करने के लिये मज़बूर करते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:
- हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐसे मामलों का न्यायिक संज्ञान लिया।
- न्यायालय के अनुसार, इस तरह की घटनाएँ न केवल धर्मांतरित व्यक्तियों की धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती हैं, बल्कि हमारे समाज के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के भी खिलाफ हैं।
भारत में धर्मांतरण विरोधी कानूनों की स्थिति:
- संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद-25 के तहत भारतीय संविधान धर्म को मानने, प्रचार करने और अभ्यास करने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है तथा सभी धर्म के वर्गों को अपने धर्म के मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति देता है, हालाँकि यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।
- कोई भी व्यक्ति अपने धार्मिक विश्वासों को ज़बरन लागू नहीं करेगा और इस प्रकार व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी भी धर्म का पालन करने के लिये मज़बूर नहीं किया जाना चाहिये।
- मौजूदा कानून:
- धार्मिक रूपांतरणों को प्रतिबंधित या विनियमित करने वाला कोई केंद्रीय कानून नहीं है।
- हालाँकि वर्ष 1954 के बाद से कई मौकों पर धार्मिक रूपांतरणों को विनियमित करने हेतु संसद में निजी सदस्य विधेयक (Private Member’s Bill) पेश किये गए।
- इसके अलावा वर्ष 2015 में केंद्रीय कानून मंत्रालय ने कहा था कि संसद के पास धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करने की विधायी शक्ति नहीं है।
- वर्षों से कई राज्यों ने बल, धोखाधड़ी या प्रलोभन द्वारा किये गए धार्मिक रूपांतरणों को प्रतिबंधित करने हेतु 'धार्मिक स्वतंत्रता' संबंधी कानून बनाए हैं।
धर्मांतरण विरोधी कानूनों से संबद्ध मुद्दे:
- अनिश्चित और अस्पष्ट शब्दावली:
- गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, प्रलोभन जैसी अनिश्चित और अस्पष्ट शब्दावली इसके दुरुपयोग हेतु एक गंभीर अवसर प्रस्तुत करती है।
- यह काफी अधिक अस्पष्ट और व्यापक शब्दावली है, जो धार्मिक स्वतंत्रता के संरक्षण से परे भी कई विषयों को कवर करती है।
- अल्पसंख्यकों का विरोध:
- एक अन्य मुद्दा यह है कि वर्तमान धर्मांतरण विरोधी कानून धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करने हेतु धर्मांतरण के निषेध पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
- हालाँकि धर्मांतरण निषेधात्मक कानून द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली व्यापक भाषा का इस्तेमाल अधिकारियों द्वारा अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और भेदभाव करने के लिये किया जा सकता है।
- धर्मनिरपेक्षता विरोधी:
- ये कानून भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने और हमारे समाज के आंतरिक मूल्यों व कानूनी व्यवस्था की अंतर्राष्ट्रीय धारणा के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं।
विवाह और धर्मांतरण पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
- वर्ष 2017 का हादिया मामला:
- हादिया मामले में निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ‘अपनी पसंद के कपड़े पहनने, भोजन करने, विचार या विचारधाराओं और प्रेम तथा जीवनसाथी के चुनाव का मामला किसी व्यक्ति की पहचान के केंद्रीय पहलुओं में से एक है।
- ऐसे मामलों में न तो राज्य और न ही कानून किसी व्यक्ति को जीवन साथी के चुनाव के बारे में कोई आदेश दे सकते हैं एवं न ही वे ऐसे मामलों में निर्णय लेने के लिये किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर सकते हैं।
- अपनी पसंद के साथी के साथ विवाह करने का अधिकार अनुच्छेद-21 का अभिन्न अंग है।
- के.एस. पुट्टास्वामी या 'गोपनीयता' निर्णय 2017:
- किसी व्यक्ति की स्वायत्तता से आशय जीवन के महत्त्वपूर्ण मामलों में उसकी निर्णय लेने की क्षमता से है।
- अन्य मामले:
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विभिन्न निर्णयों में माना है कि जीवन साथी चुनने के वयस्क के पूर्ण अधिकार पर आस्था, राज्य और न्यायालय का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।
- भारत एक ‘स्वतंत्र और गणतांत्रिक राष्ट्र’ है तथा एक वयस्क के प्रेम एवं विवाह के अधिकार में राज्य का हस्तक्षेप व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
- विवाह जैसे मामले किसी व्यक्ति की निजता के अंतर्गत आते हैं, जो कि उल्लंघन योग्य नहीं हैं, साथ ही विवाह या उसके बाहर जीवन साथी के चुनाव का निर्णय व्यक्ति के ‘व्यक्तित्व और पहचान’ का हिस्सा है।
- किसी व्यक्ति के जीवन साथी चुनने का पूर्ण अधिकार कम-से-कम धर्म/आस्था से प्रभावित नहीं होता है।
आगे की राह
- ऐसे कानूनों को लागू करने के लिये सरकार को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वे किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को सीमित न करते हों और न ही इनसे राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुँचती हो; ऐसे कानूनों के मामले में स्वतंत्रता एवं दुर्भावनापूर्ण धर्मांतरण के मध्य संतुलन बनाना बहुत ही आवश्यक है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रिलिम्स:प्रश्न. निजता का अधिकार जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक भाग के रूप में संरक्षित है। निम्नलिखित में से कौन-सा भारत के संविधान में उपर्युक्त्त कथन का सही और उचित अर्थ है? (2018) (a) अनुच्छेद 14 और संविधान के 42वें संशोधन के तहत प्रावधान। उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही है। प्रश्न. धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी मॉडल से किस प्रकार भिन्न है? चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतःविषयक साइबर-भौतिक प्रणालियों पर राष्ट्रीय मिशन
प्रिलिम्स के लिये:साइबर-भौतिक प्रणाली, प्रौद्योगिकी नवाचार हब, स्मार्ट सिटीज, सतत् विकास लक्ष्य (SDG)। मेन्स के लिये:अंतःविषयक साइबर-भौतिक प्रणालियों पर राष्ट्रीय मिशन के उद्देश्य और महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने अंतःविषयक साइबर-भौतिक प्रणालियों पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Interdisciplinary Cyber-Physical Systems- NM-ICPS) के तहत संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं पर चर्चा करने हेतु कार्यशाला का आयोजन किया है।
- कुल 35 संयुक्त परियोजनाओं की पहचान की गई है जिन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रौद्योगिकी नवाचार हब (TIH) और अनुसंधान संस्थानों द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा।
- यह प्रयास साइबर-भौतिक प्रणाली (CPS) के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोगात्मक अनुसंधान और विकास हासिल करने में मदद करेगा।
साइबर-भौतिक प्रणाली (Cyber-Physical Systems)
- परिचय:
- साइबर-भौतिक प्रणालियाँ भौतिक वस्तुओं और बुनियादी ढाँचे में संवेदन, गणना, नियंत्रण और नेटवर्किंग को एकीकृत करती हैं तथा उन्हें इंटरनेट से एक-दूसरे जोड़ती हैं।
- अनुप्रयोग:
- स्मार्ट सड़कों पर एक दूसरे के साथ सुरक्षित रूप से संचार करने वाली चालक रहित कारें,
- स्वास्थ्य की बदलती परिस्थितियों का पता लगाने के लिये घर में सेंसर
- कृषि पद्धतियों में सुधार और वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन आदि से उत्पन्न होने वाले मुद्दों के समाधान के लिये सक्षम बनाना।
- महत्त्व:
- साइबर-भौतिक प्रणालियों में प्रगति: क्षमता, अनुकूलन क्षमता, मापनीयता, लचीलापन, सुरक्षा और उपयोगिता को सक्षम करेगी जो आज के सरल एम्बेडेड सिस्टम से कहीं अधिक होगी।
राष्ट्रीय मिशन-अंतःविषय साइबर-भौतिक प्रणाली
- परिचय:
- इसे 2018 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा नए युग की प्रौद्योगिकियों में नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिये पांँच साल की अवधि के लिये 3,660.00 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ लॉन्च किया गया था।
- इसमें संपूर्ण भारत शामिल है जिसमें केंद्रीय मंत्रालय, राज्य सरकारें, उद्योग और शिक्षाविद शामिल हैं।
- लक्ष्य:
- NM-ICPS एक व्यापक मिशन है जो साइबर फिजिकल सिस्टम (CPS) और संबंधित प्रौद्योगिकियों में प्रौद्योगिकी विकास, अनुप्रयोग विकास, मानव संसाधन विकास तथा कौशल वृद्धि, उद्यमिता एवं स्टार्ट-अप विकास को संबोधित करेगा।
- मिशन का उद्देश्य 15 प्रौद्योगिकी नवाचार हब (TIH), छह अनुप्रयोग नवाचार केंद्र (AIH) और चार प्रौद्योगिकी अनुवाद अनुसंधान पार्क (TTRP) की स्थापना करना है।
- ये हब और TTRP एक हब और स्पोक मॉडल में देश भर के प्रतिष्ठित शैक्षणिक, अनुसंधान एवं विकास और अन्य संगठनों में समाधान विकसित करने में शिक्षाविदों, उद्योग, केंद्रीय मंत्रालयों और राज्य सरकार की सहायता करेंगे।
- हब और TTRP में चार केंद्रित क्षेत्र हैं जिनके साथ इस मिशन का कार्यान्वयन किया जायेगा, इसमें शामिल हैं:
- प्रौद्योगिकी विकास,
- मानव संसाधन विकास और कौशल विकास,
- नवाचार, उद्यमिता और स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र विकास और
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।
- महत्त्व:
- CPS प्रौद्योगिकियाँ एक राष्ट्र की वैज्ञानिक, इंजीनियरिंग और तकनीकी रूप से नवीन क्षमताओं को आधुनिकता प्रदान करती हैं; ये सरकार के अन्य मिशनों का समर्थन कर औद्योगिक और आर्थिक प्रतिस्पर्धात्मकता प्रदान करते हैं इसी क्रम में ये एक रणनीतिक संसाधन की भूमिका का निर्वहन करते हैं।
- यह मिशन, विकास के एक इंजन के रूप में कार्य कर सकता है जो स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा, पर्यावरण, कृषि, रणनीतिक सह-सुरक्षा और औद्योगिक क्षेत्रों, उद्योग 4.0, स्मार्ट सिटीज़, सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) आदि में राष्ट्रीय पहलों को लाभान्वित करेगा।
- CPS आगामी प्रौद्योगिकी की एक एकीकृत प्रणाली है, जिसे विकास की दौड़ में शामिल देशों द्वारा प्राथमिकता के आधार पर अपनाया जा रहा है। CPS वास्तव में संपूर्ण कौशल सेट आवश्यकताओं में एक आदर्श बदलाव लाएगा।
- उद्योग/समाज की आवश्यकता के अनुसार उन्नत कौशल प्रदान करके और कुशल जनशक्ति पैदा करके मिशन के माध्यम से रोजगार के अवसरों को बढ़ाया जाएगा।
स्रोत: पी.आई.बी.
बाल सामूहिक बलात्कार कानून की वैधता
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, धारा 376-DB, धारा 376-AB, भारतीय दंड संहिता, अनुच्छेद 21, अनुच्छेद 14। मेन्स के लिये:भारतीय दंड व्यवस्था में आजीवन कारावास में आवश्यक सुधार। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महाराष्ट्र में नौ वर्ष की बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार के ज़ुर्म में उम्रकैद की सज़ा काट रहे एक 29 वर्षीय व्यक्ति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई है।
- सर्वोच्च न्यायालय उस कानून की वैधता की जाँच करेगा जो 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे के साथ सामूहिक बलात्कार के ज़ुर्म में दोषी व्यक्ति को या तो आजीवन कारावास या अपराध का प्रायश्चित अथवा सुधार करने का अवसर दिये बगैर फांँसी की सज़ा देता है।
याचिका में रेखांकित मुद्दे:
- न्यायाधीश के विकल्पों को प्रतिबंधित करना:
- इसने तर्क दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 376DB (12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे का सामूहिक बलात्कार) ने ट्रायल न्यायाधीशों को प्राप्त विकल्पों को व्यक्ति के शेष जीवन के लिये सज़ा अथवा मृत्युदंड तक सीमित कर दिया है।
- हालाँकि आजीवन कारावास प्रावधान के तहत न्यूनतम, अनिवार्य सज़ा का प्रावधान किया गया है।
- इसने तर्क दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 376DB (12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे का सामूहिक बलात्कार) ने ट्रायल न्यायाधीशों को प्राप्त विकल्पों को व्यक्ति के शेष जीवन के लिये सज़ा अथवा मृत्युदंड तक सीमित कर दिया है।
- वर्ष 2018 के संशोधन में व्याप्त विसंगति:
- याचिकाकर्त्ता ने आगे तर्क दिया कि अगस्त 2018 में किये गए आपराधिक संशोधनों के माध्यम से निर्मित दंड प्रणाली में एक विसंगति है।
- धारा 376DB को वर्ष 2018 में पेश किया गया था जब बलात्कार के अपराध के लिये कठोर सज़ा प्रदान करने के लिये दंड संहिता में संशोधन किया गया था।
- याचिकाकर्त्ता ने आगे तर्क दिया कि अगस्त 2018 में किये गए आपराधिक संशोधनों के माध्यम से निर्मित दंड प्रणाली में एक विसंगति है।
- मनमानी:
- जबकि धारा 376-AB में 12 साल से कम उम्र की लड़की से दुष्कर्म के दोषी व्यक्ति को कम से कम 20 साल की सजा का प्रावधान था।
- जबकि धारा 376-DB में 12 साल से कम उम्र की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार में शामिल प्रत्येक व्यक्ति के लिये आजीवन कारावास की अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान है।
- दोनों धाराओं में अधिकतम सजा के रूप में मौत की सजा का प्रावधान है।
- बिना छूट के इस आजीवन कारावास का मतलब उस व्यक्ति के लिये 60-70 साल की जेल हो सकती है जिसकी आयु अभी 20 वर्ष से कम है।
- जीवन के अधिकार का उल्लंघन:
- धारा 376DB ने निचली न्यायालय को आजीवन कारावास या मृत्युदंड की उच्च सजा के अलावा कोई विकल्प नहीं दिया।
- याचिका में तर्क दिया गया कि धारा 376DB संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करती है।
- वैश्विक परिदृश्य:
- इस मुद्दे के वैश्विक संदर्भ को देखते हुए, विंटर बनाम यूनाइटेड किंगडम के मामले में यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय ने फैसला सुनाया कि पैरोल की वास्तविक संभावना के बिना आजीवन कारावास मानव अधिकारों पर यूरोपीय सम्मेलन के अनुच्छेद 3 का उल्लंघन था।
- यह माना गया कि आजीवन कारावास को केवल सजा नहीं माना जा सकता क्योंकि उन्होंने कैदी को प्रायश्चित का कोई अवसर प्रदान नहीं किया और ऐसे वाक्य मानवीय गरिमा के सम्मान के साथ असंगत थे।
- संयुक्त राज्य अमेरिका सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि चरम मामलों में असंगत वाक्य ने आठवें संशोधन का उल्लंघन किया, जो अमेरिकी संविधान क्रूर और असामान्य दंड को प्रतिबंधित करता है।
- इस मुद्दे के वैश्विक संदर्भ को देखते हुए, विंटर बनाम यूनाइटेड किंगडम के मामले में यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय ने फैसला सुनाया कि पैरोल की वास्तविक संभावना के बिना आजीवन कारावास मानव अधिकारों पर यूरोपीय सम्मेलन के अनुच्छेद 3 का उल्लंघन था।
सर्वोच्च न्यायलय का दृष्टिकोण:
- सर्वोच्च न्यायलय ने अनिवार्य मौत की सजा को असंवैधानिक बताते हुए पहले ही रद्द कर दिया है इसलिये ने इस सवाल पर विचार करने की आवश्यकता बताई।
- इसके अलावा, इसने एक अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के साथ-साथ याचिकाकर्ता को इस मुद्दे पर लिखित प्रस्तुतियाँ और प्रस्ताव प्रस्तुत करने को कहा।
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
- वर्ष 1983 में 'मिठू बनाम पंजाब' में सर्वोच्च न्यायलय ने फैसला सुनाया था कि आईपीसी की धारा 303 उस हद तक असंवैधानिक थी, जिसमें किसी अन्य मामले में उम्रकैद की सजा काटते हुए हत्या करने वाले व्यक्ति को अनिवार्य मौत की सजा का प्रावधान था।
- धारा 303 में यह अनिवार्य किया गया है कि सर्वोच्च न्यायलय को ऐसे मामलों में मौत की सजा के अलावा कोई अन्य सजा नहीं देनी चाहिये।
- वर्ष 1983 में 'मिठू बनाम पंजाब' में सर्वोच्च न्यायलय ने फैसला सुनाया था कि आईपीसी की धारा 303 उस हद तक असंवैधानिक थी, जिसमें किसी अन्य मामले में उम्रकैद की सजा काटते हुए हत्या करने वाले व्यक्ति को अनिवार्य मौत की सजा का प्रावधान था।
बाल संरक्षण के लिये संबंधित अन्य पहल:
- यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो)
- बाल यौन उत्पीड़न एवं शोषण रोकथाम
- बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना
- किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021
- बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006
- बाल श्रम निषेध और विनियमन अधिनियम, 2016
स्रोत: द हिन्दू
पीरियड पॉवर्टी
प्रिलिम्स के लिये:पीरियड प्रोडक्ट एक्ट, सरकार की पहलें मेन्स के लिये:भारत में मासिक धर्म स्वास्थ्य की स्थिति, महिलाओं से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
स्कॉटलैंड फ्री पीरियड प्रोडक्ट तक पहुँच के अधिकार की कानूनी रूप से रक्षा करने वाला दुनिया का पहला राष्ट्र बन गया है और इसने पीरियड प्रोडक्ट एक्ट पारित करके पीरियड प्रोडक्ट को सभी के लिये निःशुल्क कर दिया है।
- पीरियड पॉवर्टी तब होती है जब कम आय वाले लोग आवश्यक पीरियड प्रोडक्ट/उत्पादों (जैसे टैम्पोन, सैनिटरी पैड आदि) को वहन नहीं कर सकते या उन तक पहुँच नहीं बना सकते।
स्कॉटलैंड की पहल
- परिचय:
- पीरियड प्रोडक्ट्स एक्ट के तहत स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के साथ-साथ स्थानीय सरकारी निकायों को अपने बाथरूम में कई तरह के पीरियड उत्पाद मुफ्त में उपलब्ध कराने चाहिये।
- स्कॉटलैंड में प्रत्येक परिषद को मासिक धर्म/पीरियड उत्पादों के लिये सबसे अच्छा पहुँच बिंदु निर्धारित करने के लिये स्थानीय समुदायों के साथ आवश्यक है।
- सुलभता:
- मोबाइल फोन ऐप (PickUpMyPeriod) लोगों को निकटतम स्थान जैसे कि स्थानीय पुस्तकालय या सामुदायिक केंद्र खोजने में भी मदद करता है जहाँ वे पीरियड प्रोडक्ट्स को प्राप्त कर सकते हैं।
- पीरियड प्रोडक्ट्स पुस्तकालयों, स्विमिंग पूल, सार्वजनिक जिम, सामुदायिक भवनों, टाउन हॉल, फार्मेसियों और डॉक्टर के कार्यालयों में उपलब्ध होंगे।
भारत में मासिक धर्म स्वच्छता की स्थिति:
- वर्ष 2011 में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के एक अध्ययन के अनुसार:
- भारत में केवल 13% लड़कियों को मासिक धर्म से पहले मासिक धर्म की जानकारी होती है।
- मासिक धर्म के कारण 60% लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया।
- मासिक धर्म के कारण 79% को कम आत्मविश्वास का सामना करना पड़ा और 44% प्रतिबंधों पर शर्मिंदा और अपमानित हुई।
- मासिक धर्म महिलाओं की शिक्षा, समानता, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5:
- 15-24 वर्ष की आयु की महिलाओं में पीरियड प्रोडक्ट्स का उपयोग:
- सत्रह राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 90% या उससे अधिक महिलाएंँ पीरियड उत्पादों का उपयोग करती हैं।
- पुददुचेरी तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पीरियड प्रोडक्ट्स का उपयोग करने वाली महिलाओं का अंश 99% था।
- त्रिपुरा, छत्तीसगढ़, असम, गुजरात, मेघालय, मध्य प्रदेश और बिहार - में 70 प्रतिशत या उससे कम महिलाएंँ पीरियड प्रोडक्ट्स का उपयोग करती हैं।
- बिहार इकलौता ऐसा राज्य है जहाँ 60 फीसदी से भी कम का आंँकड़ा दर्ज किया गया है।
- सत्रह राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 90% या उससे अधिक महिलाएंँ पीरियड उत्पादों का उपयोग करती हैं।
- शीर्ष तीन राज्य जिन्होंने महिलाओं के पीरियड प्रोडक्ट्स के उपयोग में NFHS 4 से NFHS 5 के बीच वृद्धि दर्ज की:
- बिहार: 90%
- ओड़िशा: 72%
- मध्य प्रदेश: 61%
- 15-24 वर्ष की आयु की महिलाओं में पीरियड प्रोडक्ट्स का उपयोग:
मासिक धर्म स्वच्छता के लिये भारत सरकार की पहल:
- शुचि योजना:
- शुचि योजना का उद्देश्य किशोरियों में मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में जागरूकता पैदा करना है।
- यह 2013-14 में शुरू में केंद्र प्रायोजित रूप में शुरू किया गया था।
- हालाँकि, केंद्र ने राज्यों को 2015-16 से इस योजना को अपने नियंत्रण में लेने के लिये कहा।
- मासिक धर्म स्वच्छता योजना:
- मासिक धर्म स्वच्छता योजना 2011 में चयनित ज़िलों के ग्रामीण क्षेत्रों में किशोरियों (10-19 वर्ष) के बीच मासिक धर्म स्वच्छता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
- सबला कार्यक्रम:
- इसे महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा लागू किया गया था।
- यह पोषण, स्वास्थ्य, स्वच्छता और प्रजनन और यौन स्वास्थ्य पर केंद्रित है।
- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन:
- यह सेनेटरी पैड बनाने के लिये स्वयं सहायता समूहों और छोटे निर्माताओं की मदद करता है।
- स्वच्छ भारत अभियान और स्वच्छ भारत: स्वच्छ विद्यालय (SB:SV):
- मासिक धर्म संबंधी स्वच्छता प्रबंधन भी स्वच्छ भारत मिशन का एक अभिन्न अंग है।
- स्वच्छता (2017) में लिंग संबंधी मुद्दों के लिये दिशानिर्देश:
- ये पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय द्वारा स्वच्छता के संबंध में महिलाओं तथा लड़कियों के लैंगिक समानता तथा सशक्तीकरण को सुनिश्चित करने के लिये विकसित किये गए हैं।
- सुरक्षित और प्रभावी मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन किशोरियों और महिलाओं के बेहतर और मज़बूत विकास के लिये एक आवश्यक घटक है।
- मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन पर राष्ट्रीय दिशा-निर्देश:
- इसे पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय द्वारा वर्ष 2015 में जारी किया गया था।
- यह मासिक धर्म स्वच्छता के हर घटक को संबोधित करता है, जिसमें जागरूकता बढ़ाना, व्यवहार परिवर्तन करना, बेहतर स्वच्छता उत्पादों की मांग बढ़ाना और क्षमता निर्माण शामिल हैं।
आगे की राह:
- भारत सरकार को भी स्कॉटलैंड के दृष्टिकोण पर विचार करना चाहिये और पीरियड प्रोडक्ट को या उचित मूल्य/छूट पर उपलब्ध कराना चाहिये।
- सरकार कम लागत वाले पैड को अधिक आसानी से उपलब्ध कराने के लिये छोटे पैमाने पर सैनिटरी पैड निर्माण इकाइयों को भी बढ़ावा दे सकती है, इससे महिलाओं को आय सृजन में भी मदद मिलेगी।
- सरकार को मासिक धर्म और मासिक धर्म स्वच्छता, और सुरक्षित उत्पादों तक पहुँच, जल, सफाई एवं स्वच्छता (WASH) बुनियादी ढाँचे के बारे में जागरूकता और शिक्षा के लिये निर्देशित प्रयास प्रदान करने की आवश्यकता है।
- हालाँकि मासिक धर्म स्वास्थ्य केवल सरकारी प्रयासों के माध्यम से प्राप्त नहीं किया जा सकता है, एक सामाजिक मुद्दे के रूप में सामुदायिक और पारिवारिक स्तर पर हस्तक्षेप आवश्यक है।
स्रोत: द हिंदू
भारत-गैबॉन संबंध
प्रिलिम्स के लिये:UNSC, NAM, ISA मेन्स के लिये:भारत- गैबॉन संबंध और उसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गैबॉन के एक प्रतिनिधिमंडल ने भारत का दौरा किया और भारतीय व्यापारिक समुदाय के साथ बातचीत की, साथ ही भारत ने गैबॉन को उसके स्वतंत्रता दिवस (17 अगस्त) पर बधाई दी।
- इससे पहले, भारत के उपराष्ट्रपति ने गैबॉन का दौरा किया, जहाँ उन्होंने दो MoUs (समझौता ज्ञापन) पर हस्ताक्षर किये।
समझौता ज्ञापन क्या हैं :
- भारत और गैबॉन की सरकारों के बीच एक संयुक्त आयोग की स्थापना।
- राजनयिकों के प्रशिक्षण संस्थान, सुषमा स्वराज इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन सर्विसेज और गैबोनीज मिनिस्ट्री ऑफ फॉरेन अफेयर्स।
- भारत ने द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय स्तरों पर विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को मज़बूत करने के लिये गैबॉन के साथ काम करने के लिए हस्ताक्षर किया।
भारत-गैबॉन साझेदारी:
- कूटनीतिक:
- भारत और गैबॉन के बीच गैबॉन के स्वतंत्रता-पूर्व युग से ही मधुर और मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं।
- भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति ने मई 2022 में अफ्रीकी राष्ट्र गैबॉन का दौरा किया,जो भारत की पहली उच्च स्तरीय गैबॉन यात्रा थी।
- भारत और गैबॉन दोनों वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के अस्थायी सदस्यों के रूप में कार्यरत हैं।
- व्यापार एवं वाणिज्य :
- दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2021-22 में 1.12 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
- गैबॉन से निर्यात के लिये भारत दूसरा सबसे बड़ा गंतव्य है।
- व्यापार क्षेत्र में, 50 से अधिक भारतीय कंपनियांँ गैबॉन विशेष आर्थिक क्षेत्रों में संलग्न हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सहयोग:
- भारत और गैबॉन दोनों गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के सदस्य हैं।
- NAM विकासशील दुनिया के लिये प्रासंगिकता के मुख्यधारा के समकालीन मुद्दों पर केंद्रित है।
- गैबॉन विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के हितों समर्थन करता है।
- भारत ने गैबॉन को वर्ष 2022-23 की अवधि के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में चुने जाने पर बधाई दी।
- भारत ने एज़ुलविनी सर्वसम्मति और सिर्ते घोषणा में निहित आम अफ्रीकीयों की स्थिति का समर्थन किया है।
- एज़ुलविनी सर्वसम्मति अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और संयुक्त राष्ट्र के सुधार पर एक समझौता है, जिस पर अफ्रीकी संघ द्वारा सहमति व्यक्त की गई है।
- यह एक अधिक प्रतिनिधिमूलक और लोकतांत्रिक सुरक्षा परिषद का आह्वान करता है, जिसमें अफ्रीका भी विश्व के अन्य देशों की भांति, प्रतिनिधित्त्व करता हो।
- सिर्ते घोषणा (1999), अफ्रीकी संघ की स्थापना हेतु अपनाया गया एक संकल्प था।
- एज़ुलविनी सर्वसम्मति अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और संयुक्त राष्ट्र के सुधार पर एक समझौता है, जिस पर अफ्रीकी संघ द्वारा सहमति व्यक्त की गई है।
- भारत और गैबॉन दोनों गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के सदस्य हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन:
- गैबॉन, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन समझौते पर हस्ताक्षर करने और इसकी पुष्टि करने वाले पहले देशों में से एक है।
- भारत ने गैबॉन को उसके नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये हर संभव मदद प्रदान करने का आश्वासन दिया है।
- गैबॉन ने वर्ष 2030 तक 100% स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त करने की योजना बनाई है।
- शिक्षा:
- कई गैबॉन नागरिक भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) और ICCR योजनाओं के तहत भारत द्वारा प्रदान की जाने वाली छात्रवृत्ति/प्रशिक्षण कार्यक्रमों का अनुसरण करते हैं।
- ऊर्जा सहयोग:
- भारत ने वर्ष 2021-22 में गैबॉन से लगभग 670 मिलियन अमेरिकी डाॅलर का कच्चा तेल आयात किया, जिससे यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा आवश्यकता के लिये महत्त्वपूर्ण भागीदार बन गया।
- भारतीय डायस्पोरा:
- भारतीय समुदाय के लोग मूल रूप से बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं, व्यापार, लकड़ी और धातु स्क्रैप के निर्यात में लगे हुए हैं।
- गैबॉन के विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय प्रवासी महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
- गैबॉन में भारतीय समुदाय ने भारतीय संस्कृति को जीवित रखा है और प्रमुख भारतीय त्योहार पूरे समुदाय द्वारा एक साथ मनाए जाते हैं।
आगे की राह
- अन्य क्षेत्रों में जैसे हरित ऊर्जा, सेवाओं, स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्र में भारत-गैबॉन सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है।
- दोनों देशों को निवेश आकर्षित करने के लिये अपनी आर्थिक साझेदारी को व्यापक बनाना चाहिये।
- भारत से गैबॉन तक कृषि क्षेत्र में ज्ञान हस्तांतरण जैसे कृषि में सहयोग की अपार संभावनाएँ हैं।
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
श्रीलंका में चीनी पोत
प्रिलिम्स के लिये:युआंग वांग पोत, भारतीय और श्रीलंका संबंध मेन्स के लिये:भारत के हितों, भारत और उसके पड़ोस, भारत-श्रीलंका संबंधों पर नीतियों और देशों की राजनीति का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, चीन का उपग्रह ट्रैकिंग पोत युआंग वांग 5 श्रीलंका के दक्षिणी हंबनटोटा बंदरगाह पर पहुँचा है, जबकि भारत और अमेरिका ने इस सैन्य जहाज़ की यात्रा पर चिंता व्यक्त की है।
युआंग वांग 5 और हंबनटोटा बंदरगाह:
- युआंग वांग 5:
- यह युआंग वांग शृंखला की तीसरी पीढ़ी का पोत है जो वर्ष 2007 में सेवारत है।
- पोत की इस शृंखला में "मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम का समर्थन एवं उपग्रह ट्रैकिंग" भी शामिल हैं।
- अर्थात् इसमें उपग्रहों और अंतर-महाद्वीपीय मिसाइलों को ट्रैक करने की क्षमता है।
- हंबनटोटा बंदरगाह:
- हंबनटोटा इंटरनेशनल पोर्ट समूह श्रीलंका सरकार एवं चीन मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स (CMPort) के मध्य एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी की रणनीतिक विकास परियोजना है।
- श्रीलंका द्वारा चीनी ऋण चुकाने में विफल रहने के बाद यह बंदरगाह चीन को 99 वर्ष के पट्टे पर दिया गया था।
- इसे चीन के "डेट ट्रैप" कूटनीति के रूप में देखा जाता है।
श्रीलंका में चीन की मौज़ूदगी भारत के लिये चिंता का विषय:
- हाल ही में श्रीलंका में चीन की मौज़ूदगी बड़े पैमाने पर बढ़ी है।
- चीन श्रीलंका का सबसे बड़ा द्विपक्षीय लेनदार है।
- श्रीलंका के कुल सार्वजनिक क्षेत्र में ऋण केंद्र सरकार के विदेशी ऋण का 15% है।
- श्रीलंका अपने विदेशी कर्ज़ के बोझ को कम करने के लिये बहुत अधिक हद तक चीनी ऋण पर निर्भर है।
- महामारी की चपेट में आने के तुरंत बाद चीन ने श्रीलंका को लगभग 2.8 बिलियन अमेरीकी डॉलर का ऋण दिया, लेकिन वर्ष 2022 चीन ने इस मामले में सक्रिय कदम नहीं उठाया और श्रीलंका की अर्थव्यवस्था संकट में आ गई।
- चीन ने वर्ष 2006-19 के बीच श्रीलंका की बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में करीब 12 अरब डॉलर का निवेश किया है।
- चीन दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में दक्षिण पूर्व एशिया और प्रशांत क्षेत्र की तुलना में अधिक अधिकार जताता है।
- चीन को ताइवान के विरोध, दक्षिण चीन सागर और पूर्वी एशिया में क्षेत्रीय विवादों और अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ असंख्य संघर्षों का सामना करना पड़ रहा है।
- चीन श्रीलंका का सबसे बड़ा द्विपक्षीय लेनदार है।
- चीन की मौजूदगी से भारत की चिंता:
- श्रीलंका ने कोलंबो पोर्ट सिटी के चारों ओर विशेष आर्थिक क्षेत्र और चीन द्वारा वित्त पोषित नया आर्थिक आयोग स्थापित करने का निर्णय लिया है।
- कोलंबो बंदरगाह भारत के ट्रांस-शिपमेंट कार्गो का 60% संभालता है।
- हंबनटोटा और कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना को पट्टे पर देने से चीनी नौसेना के लिये हिंद महासागर में स्थायी उपस्थिति होना लगभग तय हो गया है जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये चिंताजनक होगा।
- भारत को घेरने की चीनी रणनीति को स्ट्रिंग्स ऑफ पर्ल्स स्ट्रैटेजी कहा जाता है।
- बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव जैसे अन्य दक्षिण एशियाई देश भी बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये चीन की ओर रुख कर रहे हैं।
- श्रीलंका ने कोलंबो पोर्ट सिटी के चारों ओर विशेष आर्थिक क्षेत्र और चीन द्वारा वित्त पोषित नया आर्थिक आयोग स्थापित करने का निर्णय लिया है।
भारत का दृष्टिकोण:
- सामरिक हितों को संरक्षित करना:
- भारत के लिये हिंद महासागर क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों को संरक्षित करने हेतु श्रीलंका के साथ नेबरहुड फर्स्ट की नीति का पोषण करना महत्त्वपूर्ण है।
- क्षेत्रीय मंचों का लाभ उठाना:
- प्रौद्योगिकी संचालित कृषि, समुद्री क्षेत्र के विकास, आईटी और संचार बुनियादी ढाँचे आदि जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये बिम्सटेक/BIMSTEC, सार्क/SAARC, सागर/ SAGAR और IORA जैसे प्लेटफार्मों का लाभ उठाया जा सकता है।
- चीनी विस्तार को रोकना:
- भारत को जाफना में कांकेसंतुराई बंदरगाह और त्रिंकोमाली में ऑइल टैंक फार्म परियोजना पर काम करना जारी रखना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि चीन श्रीलंका में आगे कोई पैठ नहीं बना सके।
- दोनों देश आर्थिक लचीलापन पैदा करने के लिये निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाने में भी सहयोग कर सकते हैं।
- भारत की सॉफ्ट पावर का लाभ उठाना:
- प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारत अपनी IT कंपनियों की उपस्थिति का विस्तार करके श्रीलंका में रोज़गार के अवसर पैदा कर सकता है।
- ये संगठन हज़ारों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार पैदा कर सकते हैं और द्वीपीय राष्ट्र की सेवा अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकते हैं।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (B) सही है। |