पालघाट दर्रा
पालघाट दर्रा जिसे अक्सर पश्चिमी घाटों में एक महत्त्वपूर्ण विच्छिन्नता कहा जाता है, लगभग 40 किमी. चौड़ा एक अद्भुत भौगोलिक क्षेत्र है, जो नीलगिरि और अन्नामलाई पहाड़ियों को अलग करता है, दोनों की ऊँचाई समुद्र तल से 2,000 मीटर है।
पालघाट दर्रा का महत्त्व:
- उत्पत्ति और गठन: गोंडवाना भू-भाग से ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के विभाजन के बाद महाद्वीपीय तल खिसकने लगे, जिससे पालघाट दर्रे की उत्पत्ति हुई।
- इस दर्रा का निर्माण भारत और मेडागास्कर के विभाजन के कारण लगभग 100 मिलियन वर्ष पूर्व हुआ।
- वनस्पति: पश्चिमी घाट के उष्णकटिबंधीय वर्षावनों के विपरीत पालघाट दर्रा में वनस्पति को शुष्क सदाबहार वन के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- महत्त्व:
- ऐतिहासिक:
- केरल का प्रवेश बिंदु: केरल में एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश बिंदु के रूप में पालघाट दर्रा का ऐतिहासिक महत्त्व रहा है, जो कोयम्बटूर और पलक्कड़ के बीच सड़क और रेल मार्ग की सुविधा प्रदान करता है।
- साथ ही भरतपुझा नदी पालघाट दर्रा से होकर बहती है जिससे परिवहन मार्ग के रूप में इसका महत्त्व बढ़ जाता है।
- केरल का प्रवेश बिंदु: केरल में एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश बिंदु के रूप में पालघाट दर्रा का ऐतिहासिक महत्त्व रहा है, जो कोयम्बटूर और पलक्कड़ के बीच सड़क और रेल मार्ग की सुविधा प्रदान करता है।
- भौगोलिक:
- अपरूपण क्षेत्र: पालघाट दर्रा एक भूवैज्ञानिक अपरूपण क्षेत्र है जो पूर्व से पश्चिम की ओर है और यह पृथ्वी की भू-पर्पटी में एक कमज़ोर क्षेत्र है।
- इस भूवैज्ञानिक विशेषता से कोयंबटूर क्षेत्र में कभी-कभी आने वाले भूकंपों के विषय में जानकारी मिलती है।
- जलवायु: पालघाट दर्रा के उत्तर में उत्तरी-पश्चिमी घाटों में वार्षिक वर्षा अधिक होती है, जबकि दक्षिणी-पश्चिमी घाटों में वर्ष भर अधिक समान रूप से वर्षा होती है।
- अपरूपण क्षेत्र: पालघाट दर्रा एक भूवैज्ञानिक अपरूपण क्षेत्र है जो पूर्व से पश्चिम की ओर है और यह पृथ्वी की भू-पर्पटी में एक कमज़ोर क्षेत्र है।
- पारिस्थितिक:
- जैव-भौगोलिक अंतर: ऐसा माना जाता है कि पालघाट दर्रा के दोनों ओर की विशिष्ट वनस्पतियाँ और जीव प्राचीन नदी प्रणालियों अथवा समुद्री जल का तटीय क्षेत्रों में प्रवेश का परिणाम हैं।
- आनुवंशिक विविधताएँ: आनुवंशिक अध्ययनों से पता चला है कि अन्नामलाई और पेरियार अभयारण्यों की तुलना में नीलगिरि के किनारे पाई जाने वाली हाथियों की आबादी के माइटोकॉन्ड्रियल DNA में अंतर है।
- पक्षी प्रजाति भिन्नता: IISc बंगलूरू द्वारा किये गए शोध में व्हाइट-बेल्ड शॉर्टविंग, एक स्थानिक और खतरे वाली पक्षी प्रजातियों में आनुवंशिक भिन्नता पर प्रकाश डाला गया है।
- नीलगिरि ब्लू रॉबिन और व्हाइट-बेल्ड ब्लू रॉबिन आबादी ऊटी और अन्नामलाई पहाड़ियों के आसपास अपने स्थान के आधार पर उपस्थिति में मामूली भिन्नता प्रदर्शित करती है।
- प्रजाति समृद्धि और फाइलोजेनेटिक विविधता: हैदराबाद स्थित CCMB और अन्य संस्थानों के समूहों द्वारा हाल ही में किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि पालघाट दर्रा के दक्षिण में स्थित पश्चिमी घाट के दक्षिणी क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में प्रजातीय समृद्धता और फाइलोजेनेटिक विविधता पाई जाती है।
- इस क्षेत्र में 450 से अधिक वृक्ष प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें मैगनोलिया चम्पाका (चंपा; तमिल: सांबागन) जैसी प्राचीन प्रजातियाँ शामिल हैं, यह 130 मिलियन वर्षों से अधिक समय से समृद्ध है।
- ऐतिहासिक:
- अन्य दर्रा:
- थालघाट (मुंबई और नासिक)
- भोरघाट (मुंबई और पुणे)
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. कभी-कभी सामाचारों में आने वाली 'गाडगिल समिति रिपोर्ट' और 'कस्तूरीरंगन समिति रिपोर्ट' संबंधित हैं: (2016) (a) संवैधानिक सुधारों से उत्तर: (d) |
स्रोत: द हिंदू
भूमि पुनरुद्धार
प्रिलिम्स के लिये:भूमि पुनरुद्धार, तटीय क्षेत्र, समुद्र का बढ़ता स्तर, तटीय बाढ़, ग्लोबल वार्मिंग, मैंग्रोव मेन्स के लिये:भूमि पुनरुद्धार की वर्तमान सीमा, भूमि पुनरुद्धार से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
विशेष रूप से पूर्वी एशिया, मध्य-पूर्व और पश्चिम अफ्रीका में तटीय क्षेत्रों के बढ़ते आर्थिक महत्त्व के परिणामस्वरूप विश्व स्तर पर भूमि पुनरुद्धार के काफी कार्य हुए हैं। इन परियोजनाओं से होने वाले आर्थिक लाभ के बावजूद इनके कारण समुद्र स्तर में वृद्धि तथा तूफान जैसी पर्यावरणीय बाधाओं से उत्पन्न होने वाले खतरों की संभावना बनी रहती है।
भूमि पुनरुद्धार:
- परिचय:
- भूमि पुनरुद्धार से तात्पर्य समुद्र, नदियों, झीलों अथवा दलदल जैसे मौजूदा जलाशयों की स्थलाकृति में बदलाव करके नई भूमि का निर्माण करने की प्रक्रिया से है।
- आर्द्रभूमि अथवा अन्य जल निकायों का रूपांतरण आमतौर पर समुद्र तट के आसपास के क्षेत्र में किया जाता है, हालाँकि यह अंतर्देशीय क्षेत्र भी हो सकता है।
- कृषि और औद्योगिक उद्देश्यों के लिये तटीय क्षेत्रों का विस्तार करने हेतु भूमि पुनरुद्धार कार्य ऐतिहासिक रूप से किया जाता रहा है।
- पारंपरिक भूमि पुनरुद्धार:
- परंपरागत रूप से भूमि पुनरुद्धार का मतलब ज्वारीय दलदल या उथले अपतटीय जल को घेरने हेतु तटबंधों की एक शृंखला का निर्माण करना एवं शुष्क भूमि बनाने के लिये इन तटबंधों को हटाना था।
- कुछ मामलों में इन क्षेत्रों में अतिरिक्त तलछट ले जाने हेतु धाराओं को मोड़ दिया गया, जिससे उच्च स्तर परआ भूमि का निर्माण हुआ।
- मुख्य भूमि से मृदा और पत्थरों का उत्खनन कर और समुद्र तट के साथ या मौजूदा द्वीपों के तट पर डंप करके उत्तरोत्तर समुद्र में विस्तारित किया जा सकता है।
- आधुनिक भूमि पुनरुद्धार:
- वर्तमान में प्रमुख इंजीनियरिंग परियोजनाओं द्वारा कई किलोमीटर की अपतटीय कंक्रीट बाधा दीवारों का निर्माण किया जाता है, जिसमें रेत, गाद, मृदा या चट्टान की पर्याप्त मात्रा का प्रयोग होता, जिन्हें प्रायः दूरस्थ स्थापित किया जाता है।
- रिक्लेमेशन साइट को हाइड्रोलिक रिक्लेमेशन प्रक्रिया द्वारा जल के साथ मिश्रित समुद्री तल से निकाली गई मृदा से भी भरा जा सकता है।
- भूमि पुनरुद्धार की वर्तमान सीमा:
- इस अध्ययन, जिसने कम-से-कम 1 मिलियन की आबादी वाले तटीय शहरों की उपग्रह इमेजरी की जाँच की, से पता चला है कि विश्व भर के 106 शहरों में पुनरुद्धार परियोजनाओं के चलते कुल मिलाकर लगभग 2,530 वर्ग किलोमीटर (900 वर्ग मील से अधिक) तटीय भूमि का निर्माण किया गया था।
- पिछले दो दशकों में पूर्वी एशिया में लगभग 90% नई तटीय भूमि का निर्माण किया गया, इसके तहत वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था में उद्योग हेतु और बंदरगाहों पर सुविधाओं के लिये सड़क निर्माण किया गया था।
- अकेले चीन ने वर्ष 2000 और 2020 के दौरान सिंगापुर और दक्षिण कोरिया में इंचियोन में भी लगभग 350 वर्ग किलोमीटर के विशाल नए क्षेत्र को जोड़ा।
भूमि पुनरुद्धार से जुड़े मुद्दे
- समुद्र तटीय बाढ़: हाल ही में तटीय भूमि का अधिकांश विस्तार निचले इलाकों में हुआ है तथा वर्ष 2046 और 2100 के बीच इस भूमि के 70% से अधिक भाग पर समुद्र तटीय बाढ़ के उच्च जोखिम का अनुमान है," यह स्थिति आंशिक रूप से ग्लोबल वार्मिंग की वजह से उत्पन्न तूफान व भूमि के धँसने के जोखिम के कारण है।
- तेज़ तूफान और विनाशकारी बाढ़ के कारण तटीय समुदाय अधिक प्रभावित हो रहे हैं।
- सी-बेड इकोसिस्टम की विकृति: समुद्री और नदी पारिस्थिकी से प्राप्त रेत जैसी सामग्री का उपयोग किये जाने से जीवों के निवास स्थान और स्पॉइंग ग्राउंड का विनाश हो सकता है।
- कई देशों ने भूमि पुनरुद्धार के लिये रेत के निर्यात पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया है। इसके परिणामस्वरूप रेत की कमी के चलते कुछ निर्माण कंपनियाँ समुद्र तल से रेत और मृदा निकालने के लिये मजबूर हैं। इससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को काफी नुकसान हुआ है।
- आर्द्रभूमि का नुकसान: मैंग्रोव, लवणीय दलदल और ज्वारनदमुख जैसी तटीय आर्द्रभूमियाँ काफी उत्पादक पारिस्थितिक तंत्र हैं जिनसे कई पारिस्थितिक लाभ प्राप्त होते हैं।
- भूमि पुनरुद्धार के अंतर्गत अक्सर इन आर्द्रभूमियों की जल निकासी अथवा उन्हें भरने का कार्य शामिल होता है जो इनके नष्ट या परिवर्तित होने का कारण बनता है।
- आर्द्रभूमि का यह नुकसान तटीय पारिस्थितिक तंत्र के प्राकृतिक संतुलन को बाधित करने के साथ ही जल की गुणवत्ता, मत्स्य नर्सरी और तटीय क्षेत्र की समग्र सुनम्यता को प्रभावित कर सकता है।
आगे की राह
- रणनीतिक तटीय योजना: भूमि पुनरुद्धार के दीर्घकालिक प्रभावों को ध्यान में रखने और पर्यावरणीय स्थिरता के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करने वाले व्यापक तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाओं को विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
- हरित इंजीनियरिंग समाधान: तटीय पारिस्थितिक तंत्र पर भूमि पुनरुद्धार के प्रभाव को कम करने वाली नवीन व हरित इंजीनियरिंग तकनीकों को नियोजित करने की आवश्यकता है।
- उदाहरण के लिये पारगम्य संरचनाओं, तैरते द्वीपों और रेत से भरे कंटेनर जैसे इंजीनियरिंग समाधानों को अपनाना, जो पानी का प्रवाह सुनिश्चित करते हैं और तटीय गतिविद्घियों में व्यवधान को कम करते हैं।
- तटीय निगरानी के लिये AI: तटीय परिवर्तनों की निगरानी करने, कटाव हॉटस्पॉट की भविष्यवाणी करने और तटीय प्रबंधन हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं रिमोट सेंसिंग तकनीकों का उपयोग करने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रश्न. शहरी भूमि उपयोग में जल निकायों के सुधार के पर्यावरणीय प्रभाव क्या हैं? उदाहरण सहित समझाइये। (2021) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
आर्कटिक में पर्माफ्रॉस्ट का विगलन और औद्योगिक संदूषण
प्रिलिम्स के लिये:आर्कटिक में पर्माफ्रॉस्ट का विगलन, औद्योगिक संदूषण, नासा, पर्माफ्रॉस्ट, खनन, जलवायु परिवर्तन मेन्स के लिये:आर्कटिक में पर्माफ्रॉस्ट का विगलन और औद्योगिक संदूषण |
चर्चा में क्यों?
एक नए अध्ययन के अनुसार, "पर्माफ्रॉस्ट का विगलन ऐतिहासिक रूप से औद्योगिक संदूषण वाले हज़ारों स्थलों में पर्यावरणीय खतरा उत्पन्न कर सकता है", साथ ही पर्माफ्रॉस्ट के विगलन से आर्कटिक क्षेत्र में विषाक्त पदार्थों का प्रसार हो सकता है।
पर्माफ्रॉस्ट:
- पर्माफ्रॉस्ट अथवा स्थायी तुषार भूमि वह क्षेत्र है जो कम-से-कम लगातार दो वर्षों से शून्य डिग्री सेल्सियस (32 डिग्री F) से कम तापमान पर जमी हुई अवस्था में है।
- ये स्थायी रूप से जमे हुए मैदान अक्सर आर्कटिक क्षेत्रों जैसे- ग्रीनलैंड, अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, रूस और पूर्वी यूरोप में पाए जाते हैं।
- नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के अनुसार, पर्माफ्रॉस्ट "मृदा, चट्टानों और रेत के संयोजन से बने हैं जो बर्फ द्वारा एक साथ संयोजित होते हैं। पर्माफ्रॉस्ट में मृदा और बर्फ वर्ष भर जमी रहती है।
- हालाँकि यहाँ भूमि हमेशा जमी रहती है, जबकि पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र हमेशा बर्फ से ढके नहीं होते हैं।
प्रमुख बिंदु
- क्षेत्र में दूषित स्थल:
- पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र में 4,500 औद्योगिक संचालनों के चलते 13,000 से 20,000 दूषित स्थलों के निर्माण की आशंका है।
- अब तक लगभग 1,000 ज्ञात औद्योगिक स्थल और 2,200-4,800 तक ज्ञात दूषित स्थल पहले से ही पर्माफ्रॉस्ट के विगलन के कारण अस्थिर होने के जोखिम में हैं।
- आर्कटिक में औद्योगिक अपशिष्ट:
- इस क्षेत्र में ज्ञात औद्योगिक अपशिष्ट के प्रकारों में ड्रिलिंग व खनन अपशिष्ट, मृदा व तरल पदार्थ जैसे दूषित पदार्थ, खदान अपशिष्ट डंपिंग साइट्स, भारी धातु, फैला हुआ तरल ईंधन और रेडियोधर्मी अपशिष्ट शामिल हैं।
- तेज़ी से पिघलना और औद्योगिक साइट को अस्थिर करना:
- जलवायु परिवर्तन के कारण शेष ग्रह की तुलना में आर्कटिक लगभग चार गुना तेज़ी से गर्म हो रहा है और इसलिये पर्माफ्रॉस्ट तेज़ी से पिघल रहा है, जो न केवल औद्योगिक स्थलों बल्कि दूषित क्षेत्रों को भी अस्थिर कर सकता है।
- इस शताब्दी के अंत तक लगभग 2,100 औद्योगिक स्थलों और 5,600-10,000 तक दूषित स्थलों पर अस्थिरता का खतरा मंडरा रहा है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण शेष ग्रह की तुलना में आर्कटिक लगभग चार गुना तेज़ी से गर्म हो रहा है और इसलिये पर्माफ्रॉस्ट तेज़ी से पिघल रहा है, जो न केवल औद्योगिक स्थलों बल्कि दूषित क्षेत्रों को भी अस्थिर कर सकता है।
- ऐसी साइट्स के निर्माण का कारण:
- कभी सतत् स्थिर और भरोसेमंद माना जाने वाला आर्कटिक क्षेत्र वास्तव में एक निर्जन और अछूते क्षेत्र से बहुत दूर है।
- यह तेल क्षेत्रों व पाइपलाइन, खदानों और सैन्य ठिकानों जैसी अनगिनत औद्योगिक सुविधाओं से युक्त है।
- इन औद्योगिक स्थलों से निकलने वाले ज़हरीले कचरे को पर्माफ्रॉस्ट में इस उम्मीद के साथ दफनाया गया था कि यह अनिश्चित काल तक ढका रहेगा और सारा बुनियादी ढाँचा उसी पर खड़ा किया गया है।
- अब ग्रह लगातार गर्म हो रहा है जिससे खतरा मंडरा रहा है।
- शीत युद्ध के दौरान आर्कटिक क्षेत्र ने विकास में वृद्धि का अनुभव किया तथा यह संसाधन निष्कर्षण और सैन्य संचालन का केंद्र बन गया।
- नतीजतन, औद्योगिक और ज़हरीले कचरा पर्माफ्रॉस्ट पर या उसके अंदर जमा हो गया और इसे हटाने के लिये कोई उपाय नहीं किये गए।
- कभी सतत् स्थिर और भरोसेमंद माना जाने वाला आर्कटिक क्षेत्र वास्तव में एक निर्जन और अछूते क्षेत्र से बहुत दूर है।
पर्माफ्रॉस्ट के विगलन के प्रभाव:
- इसके सबसे खतरनाक परिणामों में से एक ग्रीनहाउस गैसों (GHG) का वायुमंडल में मुक्त होना है।
- नासा की वर्ष 2022 की एक रिपोर्ट में कहा गया है, “अकेले आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट में लगभग 1,700 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन है, जिसमें मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड शामिल हैं। यह 2019 में जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के रूप में जारी कार्बन की मात्रा का लगभग 51 गुना है।
- पर्माफ्रॉस्ट में जमे हुए पौधे में निहित पदार्थ सड़ता नहीं है, लेकिन जब पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, तो मृत पौधों की सामग्री के भीतर के रोगाणु पदार्थ को तोड़ना शुरू कर देते हैं और कार्बन को वायुमंडल में छोड़ते हैं।
- कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा 2022 के एक अध्ययन में पाया गया कि पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से हज़ारों निष्क्रिय वायरस और बैक्टीरिया बाहर निकल आएंगे।
- इनमें से कुछ "नए या प्राचीन वायरस हो सकते हैं जिनके खिलाफ मनुष्यों में प्रतिरक्षा और इलाज की कमी है या ऐसी बीमारियाँ जिन्हें समाज ने चेचक या ब्यूबोनिक प्लेग (Bubonic Plague) के रूप में समाप्त कर दिया है।"
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न. आर्कटिक की बर्फ और अंटार्कटिक के ग्लेशियरों के पिघलने से पृथ्वी पर मौसम के पैटर्न और मानव गतिविधियों पर अलग-अलग प्रभाव कैसे पड़ता है? व्याख्या कीजिये। (2021) |
स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस
AePS की खामियों का साइबर अपराधियों द्वारा दुरुपयोग
प्रिलिम्स के लिये:आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS), आधार लॉक, सिलिकॉन थम्ब्स मेन्स के लिये:AePS से संबंधित खामियाँ, वित्तीय लेन-देन में बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण का उपयोग करने की चुनौतियाँ, AePS धोखाधड़ी को रोकने में वित्तीय साक्षरता और डिजिटल कौशल की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत में साइबर अपराधियों द्वारा आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS) की खामियों के दुरुपयोग का मामला देखा गया और उन्होंने उपयोगकर्त्ताओं के बैंक खातों तक अनधिकृत पहुँच प्राप्त कर ली।
- स्कैमर्स द्वारा लीक हुए बायोमेट्रिक विवरणों का उपयोग पीड़ितों के खातों से धन निकालने के लिये किया गया जिसमें वन टाइम पासवर्ड (OTP) की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
- हाल ही में AePS में कई खामियाँ देखने को मिली हैं जिस कारण साइबर अपराधी ग्राहकों को धोखा देने के लिये सिस्टम की खामियों का फायदा उठा रहे हैं।
AePS:
- परिचय:
- AePS एक बैंक-आधारित मॉडल है जो आधार प्रमाणीकरण का उपयोग करके किसी भी बैंक के बिज़नेस कॉरेस्पोंडेंट (BC) के माध्यम से पॉइंट ऑफ सेल (PoS) या माइक्रो-एटीएम पर ऑनलाइन इंटरऑपरेबल वित्तीय लेन-देन की अनुमति देता है।
- इसे भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI), भारतीय बैंक संघ (IBA) और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की एक संयुक्त परियोजना द्वारा अपनाया गया था।
- AePS का उद्देश्य समाज के गरीब और सीमांत वर्गों, विशेषकर ग्रामीण व दूरवर्ती क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं तक आसान और सुरक्षित पहुँच प्रदान करना है।
- यह OTP, बैंक खाता विवरण और अन्य वित्तीय जानकारी की आवश्यकता को समाप्त करता है।
- आधार नामांकन के दौरान केवल बैंक का नाम, आधार संख्या और कैप्चर किये गए फिंगरप्रिंट के साथ लेन-देन किया जा सकता है।
- लाभ:
- मज़बूत सामाजिक सुरक्षा:
- इंटरऑपरेबिलिटी को सक्षम करना:
- AePS विभिन्न बैंकों और वित्तीय संस्थानों के बीच इंटरऑपरेबिलिटी को सक्षम बनाता है, जिससे ग्राहक किसी भी बैंक के बिज़नेस कॉरेस्पोंडेंट (BC) या माइक्रो-एटीएम के माध्यम से अपने बैंक खातों तक पहुँच प्राप्त कर सकते हैं।
- कमियाँ:
- न तो भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) और न ही NPCI स्पष्ट रूप से उल्लेख करते हैं कि AePS डिफॉल्ट रूप से सक्षम है या नहीं।
AePS की खामियाँ:
- लीक बायोमेट्रिक विवरण:
- साइबर अपराधी लीक बायोमेट्रिक जानकारी प्राप्त करते हैं, जिसमें आधार नामांकन के दौरान कैप्चर किये गए फिंगरप्रिंट शामिल हैं।
- वे द्वि-कारक प्रमाणीकरण या OTP की आवश्यकता के बिना बायोमेट्रिक POS डिवाइस और एटीएम संचालित करने के लिये इस चोरी किये गए डेटा का उपयोग करते हैं। इन सुरक्षा उपायों की उपेक्षा कर वे यूज़र्स के बैंक खातों से धनराशि ट्रांसफर कर सकते हैं।
- साइबर अपराधी लीक बायोमेट्रिक जानकारी प्राप्त करते हैं, जिसमें आधार नामांकन के दौरान कैप्चर किये गए फिंगरप्रिंट शामिल हैं।
- सिलिकॉन थम्ब्स:
- स्कैमर्स बायोमेट्रिक उपकरणों को धोखा देने हेतु सिलिकॉन थम्ब्स का उपयोग करने के लिये जाने जाते हैं।
- वे फिंगरप्रिंट सेंसर पर कृत्रिम थम्स लगाते हैं, जिससे सिस्टम को उनके धोखाधड़ी वाले लेन-देन को प्रमाणित करने में मदद मिलती है।
- यह तरीका उन्हें खाताधारक की ओर से अनधिकृत वित्तीय गतिविधियों को करने की अनुमति देता है।
- स्कैमर्स बायोमेट्रिक उपकरणों को धोखा देने हेतु सिलिकॉन थम्ब्स का उपयोग करने के लिये जाने जाते हैं।
- लेन-देन संबंधी सूचना का अभाव:
- कुछ मामलों में AePS घोटालों के पीड़ितों को अनधिकृत लेन-देन के संबंध में उनके बैंकों से कोई सूचना प्राप्त नहीं होती है।
- जब तक वे अपने बैंक खाते की शेष राशि में विसंगतियों को नोटिस नहीं करते तब तक वे धोखाधड़ी की गतिविधि से अनजान रहते हैं।
- तत्काल अलर्ट करने की यह कमी स्कैमर को धन की निकासी जारी रखने में सक्षम बनाती है।
- कमज़ोर सुरक्षा उपायों का फायदा उठाना:
- AePS सिस्टम के सुरक्षा प्रोटोकॉल में खामियाँ जैसे- अपर्याप्त पहचान सत्यापन या प्रमाणीकरण प्रक्रिया, साइबर अपराधियों को अपनी धोखाधड़ी गतिविधियों को अंजाम देने के अवसर प्रदान करते हैं। वे इन कमज़ोरियों का फायदा उठाकर सिस्टम का दुरुपयोग करते हैं और यूज़र्स के बैंक खातों तक पहुँच बनाते हैं।
- प्रणालीगत मुद्दे:
- AePS को बायोमेट्रिक बेमेल, खराब कनेक्टिविटी कुछ बैंकिंग भागीदारों की कमज़ोर प्रणाली आदि जैसे मुद्दों का भी सामना करना पड़ता है, जो इसके प्रदर्शन और विश्वसनीयता को प्रभावित करते हैं।
- कभी-कभी इन कारणों से लेन-देन विफल हो जाता है, लेकिन धनराशि ग्राहकों के खातों से बिना उनकी जानकारी के डेबिट हो जाती है।
- AePS को बायोमेट्रिक बेमेल, खराब कनेक्टिविटी कुछ बैंकिंग भागीदारों की कमज़ोर प्रणाली आदि जैसे मुद्दों का भी सामना करना पड़ता है, जो इसके प्रदर्शन और विश्वसनीयता को प्रभावित करते हैं।
AePS धोखाधड़ी को कैसे रोकें?
- आधार विनियम 2016 में संशोधन:
- UIDAI ने आधार (सूचना साझा करना) विनियम, 2016 में संशोधन का प्रस्ताव दिया है।
- संशोधन में आधार संख्या रखने वाली संस्थाओं को विवरण साझा नहीं करने की आवश्यकता है जब तक कि आधार संख्या को संपादित या ब्लैक आउट नहीं किया गया हो।
- UIDAI ने आधार (सूचना साझा करना) विनियम, 2016 में संशोधन का प्रस्ताव दिया है।
- आधार लॉक:
- उपयोगकर्त्ताओं को सलाह दी जाती है कि वे UIDAI की वेबसाइट या मोबाइल एप का उपयोग करके अपनी आधार जानकारी को लॉक करें।
- आधार को लॉक करने से वित्तीय लेन-देन के लिये बायोमेट्रिक जानकारी के अनधिकृत उपयोग को रोका जा सकता है।
- बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण की आवश्यकता होने पर आधार को अनलॉक किया जा सकता है, जैसे कि संपत्ति पंजीकरण या पासपोर्ट नवीनीकरण के लिये।
- आवश्यक प्रमाणीकरण के बाद सुरक्षा उद्देश्यों के लिये आधार को फिर से लॉक किया जा सकता है।
- अन्य निवारक उपाय:
- QR कोड को स्कैन करने या अज्ञात या संदिग्ध स्रोतों द्वारा भेजे गए लिंक पर क्लिक करने से बचने की सलाह दी जाती है।
- अधिकृत बैंक शाखाओं या ATM के अलावा अन्य स्थानों से पैसे निकालने में सहायता करने वाले व्यक्तियों पर भरोसा करने से सावधान रहें और उन पर भरोसा करने से बचें।
- PoS मशीन पर फिंगरप्रिंट प्रदान करने से पहले, प्रदर्शित राशि को सत्यापित करने और प्रत्येक लेन-देन के लिये रसीद का अनुरोध करने की सिफारिश की जाती है।
- मोबाइल नंबर से जुड़े बैंक खाते के बैलेंस और ट्रांजेक्शन अलर्ट की नियमित जाँच करना।
- संदेह अथवा धोखाधड़ी की स्थिति में तुरंत ही बैंक और पुलिस दोनों को सूचना देनी चाहिये।
- भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, किसी भी धोखाधड़ी और अनधिकृत लेन-देन के विषय में तीन कार्यदिवसों के भीतर सूचित करना उपभोक्ता के लिये अनिवार्य है।
AePS से संबंधित चुनौतियाँ:
- जागरूकता और साक्षरता का अभाव:
- बहुत से ग्राहकों को AePS के लाभों और विशेषताओं अथवा इसे सुरक्षित रूप से उपयोग करने के तरीके के बारे में जानकारी नहीं है। उनके पास वित्तीय साक्षरता और डिजिटल कौशल की भी कमी है जिस कारण वे धोखाधड़ी और लेन-देन संबंधी त्रुटियों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
- अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और कनेक्टिविटी:
- AePS बायोमेट्रिक डिवाइस, PoS मशीन, इंटरनेट, विद्युत आपूर्ति जैसे बुनियादी ढाँचे और कनेक्टिविटी की उपलब्धता तथा गुणवत्ता पर निर्भर करता है। हालाँकि ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में जहाँ AePS की सबसे अधिक आवश्यकता होती है, अक्सर इनकी कमी अथवा इन प्रणालियों के प्रति अविश्वसनीयता देखी गई है।
- विनियामक और नीतिगत मुद्दे:
- AePS को आधार प्रमाणीकरण की कानूनी वैधता, बायोमेट्रिक डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा, लेन-देन के लिये MDR शुल्क, ग्राहकों के लिये शिकायत निवारण तंत्र जैसे विनियामक एवं नीतिगत मुद्दों का भी सामना करना पड़ता है।
आगे की राह
- AePS लेन-देन की सुरक्षा और प्रमाणीकरण को मज़बूत बनाना:
- लेन-देन डेटा की सुरक्षा के लिये एन्क्रिप्शन और डिजिटल हस्ताक्षर लागू किया जाना।
- बायोमेट्रिक डेटा की क्लोनिंग अथवा स्पूफिंग को रोकने के लिये बायोमेट्रिक लाइवनेस डिटेक्शन को शामिल करना चाहिये।
- AePS लेन-देन के लिये उपयोग किये जाने वाले उपकरणों का प्रमाणीकरण और संदिग्ध गतिविधियों के लेन-देन की निगरानी करना।
- जागरूकता का प्रसार करना:
- उपयोगकर्त्ताओं को आधार संख्या और बायोमेट्रिक्स साझा करने से जुड़े जोखिमों के बारे में शिक्षित करना।
- बायोमेट्रिक्स तक पहुँच को नियंत्रित करने के लिये आधार लॉक/अनलॉक सुविधा का उपयोग करना।
- सेवा प्रदाता अधिकारियों द्वारा जारी दिशा-निर्देशों और मानकों का पालन तथा डेटा सुरक्षा कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करना।
- हितधारकों के बीच समन्वय और सहयोग को बढ़ावा देना:
- UIDAI, NPCI, RBI, बैंकों, फिनटेक कंपनियों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और नागरिक समाज संगठनों के बीच सूचना साझा करने की सुविधा प्रदान करना।
- साइबर अपराध की चुनौतियों से निपटने के लिये संयुक्त रणनीति और कार्ययोजना विकसित करना।
- हितधारकों को तकनीकी सहायता प्रदान करना और उनकी क्षमता बढ़ाना।
- AePSसे संबंधित शिकायतों की रिपोर्टिंग और समाधान के लिये तंत्र स्थापित करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में किसी व्यक्ति को साइबर बीमा कराने पर निधि की हानि की भरपाई एवं अन्य लाभों के अतिरिक्त सामान्यतः निम्नलिखित में से कौन-कौन से लाभ दिये जाते हैं? (वर्ष 2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 4 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसके लिये साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना कानूनी रूप से अनिवार्य है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. साइबर सुरक्षा के विभिन्न घटक क्या हैं? साइबर सुरक्षा में चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए जाँच कीजिये कि भारत ने व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति को किस हद तक सफलतापूर्वक विकसित किया है? (मुख्य परीक्षा, 2022) |
स्रोत: द हिंदू
आदर्श कारागार अधिनियम, 2023
प्रिलिम्स के लिये:जेल अधिनियम, 1894, जेल, राज्य का विषय, NCRB, NALSA, ई-जेल मेन्स के लिये:आदर्श कारागार अधिनियम, 2023, भारत में कारागार से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
गृह मंत्रालय (MHA) ने 'मॉडल जेल अधिनियम, 2023' तैयार किया है, जो ब्रिटिश युग के कानून (1894 का जेल अधिनियम) की जगह लेगा, ताकि जेल प्रशासन में सुधार किया जा सके, यह कैदियों के सुधार और पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करेगा।
आदर्श कारागार अधिनियम, 2023:
- आवश्यकता:
- पुराने स्वतंत्रता-पूर्व अधिनियम, 1894 के कारागार अधिनियम में "कई खामियाँ" हैं और मौजूदा अधिनियम में सुधारात्मक फोकस की "स्पष्ट चूक" था।
- जेल अधिनियम 1894 मुख्य रूप से अपराधियों को हिरासत में रखने और जेलों में अनुशासन एवं व्यवस्था को लागू करने पर केंद्रित है। इस अधिनियम में कैदियों के सुधार तथा पुनर्वास का कोई प्रावधान नहीं है।
- नए अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ:
- कारागारों में मोबाइल फोन जैसी प्रतिबंधित वस्तुओं के इस्तेमाल पर कैदियों और कारागार कर्मचारियों के लिये दंड का प्रावधान।
- उच्च सुरक्षा वाले कारागारों, खुले कारागारों (खुले एवं अर्द्ध खुले ) की स्थापना एवं प्रबंधन।
- कुख्यात और आदतन अपराधियों की आपराधिक गतिविधियों से समाज को सुरक्षित रखने के प्रावधान।
- अच्छे आचरण को प्रोत्साहित करने के लिये कैदियों को कानूनी सहायता, पैरोल, फर्लो और समय से पहले रिहाई प्रदान करना।
- कैदियों का सुरक्षा मूल्यांकन और अलगाव, किसी व्यक्ति की सज़ा का निर्धारण; शिकायत निवारण, कारागार विकास बोर्ड, कैदियों के प्रति व्यवहार में बदलाव एवं महिला कैदियों, ट्रांसजेंडर आदि के लिये अलग आवास का प्रावधान।
- कारागार प्रशासन में पारदर्शिता लाने की दृष्टि से इसमें प्रौद्योगिकी के उपयोग का प्रावधान, न्यायालयों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का प्रावधान, कारागारों में वैज्ञानिक तथा तकनीकी हस्तक्षेप आदि का प्रावधान किया गया है।
- महत्त्व:
- भारत में कारागार और 'उसमें हिरासत में रखे गए व्यक्ति' राज्य का विषय है। आदर्श कारागार अधिनियम, 2023 का उपयोग राज्यों द्वारा प्रत्येक राज्य की सीमाओं के भीतर अपनाए जाने वाले आदर्श कानून के रूप में किया जा सकता है।
- कैदी अधिनियम, 1900 और कैदियों का स्थानांतरण अधिनियम, 1950 दशकों पुराना है तथा इन अधिनियमों के प्रासंगिक प्रावधानों को आदर्श कारागार अधिनियम, 2023 में शामिल किया गया है जिससे भारतीय कारागार प्रणाली को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ संरेखित करने और आवश्यक सुधार होने की उम्मीद है।
भारत में कारागार से संबंधित मुद्दे:
- कारागार में क्षमता से अधिक भीड़:
- यह भारत में कारागार प्रणाली का गंभीर मुद्दा रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार, कारगारों की अधिभोग दर (Occupancy Rate) जेल क्षमता का 118.5% है।
- यह पाया गया कि 4,03,700 की क्षमता वाले कारगारों में कैदियों की संख्या लगभग 4,78,600 थी।
- भीड़भाड़ के कारण रहने की स्थिति खराब होती है। इससे कई संचारी रोगों के संचरण का जोखिम बना रहता है।
- स्वास्थ्य और स्वच्छता:
- बहुत से कारागारों में उचित चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। इससे कई कैदियों की अनदेखी भी की जाती है और उनमें से अधिकांश अनुपचारित ही रहते हैं। कैदियों के लिये साफ-सफाई व स्वच्छता की भी व्यवस्था ठीक नहीं है।
- ट्रायल में विलंब:
- ऐसा देखा जाता है कि कई मामले कई वर्षों से लंबित हैं। इससे जेल प्रशासन प्रणाली में व्यवधान उत्पन्न होता है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने हुसैनारा खातून बनाम गृह सचिव मामला 1979 में कैदियों के त्वरित परीक्षण/ट्रायल के अधिकार को मान्यता दी।
- हिरासत में यातना:
- कैदियों को हिरासत में यातनाएँ काफी प्रचलित है। हालाँकि वर्ष 1986 में डी.के. बसु के मामले में लिये गए ऐतिहासिक फैसले के बाद पुलिस को थर्ड-डिग्री यातना देने की अनुमति नहीं है, फिर भी जेलों के अंदर क्रूर हिंसा का प्रचलन है।
- गृह मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2017-2018 के दौरान पुलिस हिरासत में मौत के कुल 146 मामले दर्ज किये गए, पिछले पाँच वर्षों में हिरासत में मौत की सबसे अधिक संख्या (80) गुजरात में, इसके बाद महाराष्ट्र ( 76), उत्तर प्रदेश (41) में दर्ज की गई।
- महिलाएँ और बच्चे:
- महिला अपराधियों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। हालाँकि उन्हें स्वच्छता सुविधाओं की कमी, गर्भावस्था के दौरान देखभाल की कमी, शैक्षिक प्रशिक्षण की कमी सहित शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- बच्चों को ज़्यादातर जेलों के बजाय सुधार गृहों में रखा जाता है ताकि वे खुद को सुधार सकें और अपने सामान्य जीवन में वापस जा सकें। हालाँकि उन्हें बहुत अधिक दुर्व्यवहार का भी सामना करना पड़ता है एवं मनोवैज्ञानिक आघात से गुज़रना पड़ता है।
इन समस्याओं पर नियंत्रण:
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में जेल सुधारों पर अपने सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया।
- भीड़भाड़ यानी स्पीडी ट्रायल, वकीलों से कैदियों के अनुपात में वृद्धि, विशेष न्यायालयों की शुरुआत, स्थगन से बचने की समस्या को दूर करने हेतु सिफारिशें की गईं।
- उन्होंने जेल के पहले सप्ताह में प्रत्येक नए कैदी हेतु निःशुल्क फोन कॉल की भी सिफारिश की। समिति ने आधुनिक रसोई सुविधाओं की भी सिफारिश की।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 304 हिरासत में मौत हेतु सज़ा का प्रावधान करती है। मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 30 में जेलों के अंदर CCTV लगाने के बारे में सिफारिश की है।
भारत में कारागार सुधारों से संबंधित पहलें:
कारागार योजना का आधुनिकीकरण: कारागारों, कैदियों और कर्मियों की स्थिति में सुधार के उद्देश्य से कारागारों के आधुनिकीकरण की योजना वर्ष 2002-03 में शुरू की गई थी।
- कारागार योजना का आधुनिकीकरण (2021-26): सरकार ने निम्नलिखित के लिये कारागार में आधुनिक सुरक्षा उपकरणों का उपयोग करने हेतु योजना के माध्यम से राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया है:
- कारागारों की सुरक्षा बढ़ाई जाए।
- प्रशासनिक सुधार कार्यक्रमों के माध्यम से कैदियों के सुधार और पुनर्वास के कार्य को सुगम बनाना।
- ई-कारागार योजना: ई-कारागार योजना का उद्देश्य डिजिटलीकरण के माध्यम से जेल प्रबंधन में दक्षता लाना है।
- मॉडल प्रिज़न मैनुअल 2016: मैनुअल कारागार के कैदियों को उपलब्ध कानूनी सेवाओं (मुफ्त सेवाओं सहित) के संदर्भ में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।
- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA): इसका गठन विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत किया गया था, जो 9 नवंबर, 1995 को समाज के कमज़ोर वर्गों को मुफ्त और सक्षम विधिक सेवाएँ प्रदान करने के लिये एक राष्ट्रव्यापी समान नेटवर्क स्थापित करने के लिये लागू हुआ था।
निष्कर्ष:
- भारत की कारागार प्रणाली में प्राचीन काल से महत्त्वपूर्ण सुधार हुए हैं लेकिन आधुनिक समय में अभी भी इसमें और सुधार की आवश्यकता है।
- भारत में लागू किये गए विभिन्न कारागार सुधारों के बावजूद स्थिति में उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है। यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि यद्यपि कैदियों ने अपराध किये हैं, फिर भी उनके पास कुछ ऐसे अधिकार हैं जो उनसे छीने नहीं जा सकते।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
छठा हिंद महासागर सम्मेलन
प्रिलिम्स के लिये:हिंद महासागर क्षेत्र, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संघ (आसियान), बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग हेतु बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC), जलवायु परिवर्तन, समुद्री प्रदूषण मेन्स के लिये:हिंद महासागर क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
छठे हिंद महासागर सम्मेलन, जो कि ढाका, बांग्लादेश में आयोजित किया गया, के दौरान हिंद महासागर क्षेत्र में कनेक्टिविटी में सुधार एवं विस्तार प्रमुख केंद्र बिंदु रहा है।
- सम्मेलन में "शांति समृद्धि और लचीले भविष्य हेतु साझेदारी" थीम के साथ क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता बनाए रखते हुए आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के तरीकों पर चर्चा करने के लिये 25 से अधिक देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
प्रमुख बिंदु
- कनेक्टिविटी: भारत हिंद महासागर क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता होने के नाते बेहतर कनेक्टिविटी हासिल करने में विभिन्न चुनौतियों का सामना करता है।
- दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भूमि संपर्क स्थापित करना भारत के लिये बड़ी कठिनाइयाँ हैं। चुनौतियों के बावजूद बाधाओं को दूर करने एवं कनेक्टिविटी में सुधार हेतु सामूहिक प्रयासों का आह्वान किया गया है।
- भारतीय विदेश मंत्री ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के साथ एक प्रभावी और कुशल कनेक्टिविटी स्थापित करने के संभावित क्रांतिकारी प्रभाव पर ज़ोर दिया।
- भारत की खाड़ी और मध्य एशिया में मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी विकसित करने इच्छा है।
- कनेक्टिविटी चुनौतियों से निपटने और क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिये हिंद- महासागरीय क्षेत्र के देशों को सहयोग की सराहना करने और दीर्घकालिक परिणामों की ओर देखने आवश्यकता है:
- बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (बिम्सटेक) जैसे उदाहरण मज़बूत सहयोग और साझा प्रयासों के महत्त्व को प्रदर्शित करते हैं।
- दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भूमि संपर्क स्थापित करना भारत के लिये बड़ी कठिनाइयाँ हैं। चुनौतियों के बावजूद बाधाओं को दूर करने एवं कनेक्टिविटी में सुधार हेतु सामूहिक प्रयासों का आह्वान किया गया है।
- कानूनी दायित्त्वों और समझौतों को बनाए रखना: कानूनी दायित्त्वों की अवहेलना करने अथवा लंबे समय से चले आ रहे समझौतों का उल्लंघन करने से सदस्य देशों के बीच विश्वास और भरोसे में कमी आ सकती है। निरंतर प्रगति सुनिश्चित करने के लिये सहयोग का दीर्घकालिक दृष्टिकोण रखना आवश्यक है।
- स्थिर अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना के लिये अंतर्राष्ट्रीय कानून, मानदंडों और नियमों का पालन महत्त्वपूर्ण है।
- धारणीय परियोजनाएँ और ऋण: अव्यवहार्य परियोजनाओं द्वारा सृजित अवहनीय ऋण इस क्षेत्र के देशों के लिये एक चिंता का विषय है (उदाहरण-श्रीलंका)।
- आने वाले समय में जटिलताओं से बचने के लिये पारदर्शी ऋण प्रथाओं को प्रोत्साहित करना और बाज़ार की वास्तविकताओं पर विचार करना आवश्यक है।
- साझा ज़िम्मेदारी और विषय: हिंद महासागर क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिये साझा ज़िम्मेदारी और केंद्रित प्रयासों की आवश्यकता है।
- समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करना एक सामूहिक ज़िम्मेदारी है, व्यक्तिगत प्रभुत्त्व के लिये इससे समझौता नहीं किया जाना चाहिये। साथ ही कई व्यावहारिक कदम उठाए जाने की भी आवश्यकता है।
- इस सम्मेलन में जलवायु कार्रवाई और आतंकवाद विरोधी पहल के महत्त्व पर भी प्रकाश डाला गया। देशों को अपने सामाजिक संरचना की रक्षा करते हुए उग्रवाद और कट्टरवाद से उत्पन्न खतरों से निपटने के लिये आवश्यक समाधान सुनिश्चित करना चाहिये।
हिंद महासागर सम्मेलन:
- हिंद महासागर सम्मेलन, क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास (सागर) हेतु क्षेत्रीय सहयोग की संभावनाओं पर विचार-विमर्श करने के लिये हिंद महासागर के देशों का एक प्रमुख परामर्शी मंच है। यह प्रक्रिया वर्ष 2016 में शुरू हुई थी।
- हिंद महासागर सम्मेलन का पहला संस्करण वर्ष 2016 में सिंगापुर में और पाँचवाँ वर्ष 2021 में अबू धाबी, संयुक्त अरब अमीरात में आयोजित किया गया था।
हिंद महासागर क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ:
- भू राजनीतिक प्रतियोगिता: हिंद महासागर क्षेत्र प्रमुख शक्तियों और क्षेत्रीय अभिनेताओं के बीच भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा के लिये एक आकर्षण का केंद्र है। प्रतियोगिता में रणनीतिक हित, प्रभाव और संसाधनों तक पहुँच शामिल है, जिससे तनाव और संघर्ष होते हैं।
- हिंद महासागर भारत, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और मध्य-पूर्व तथा अफ्रीका के देशों सहित प्रमुख वैश्विक शक्तियों के बीच एक केंद्रीय स्थिति रखता है।
- यह क्षेत्र शक्ति प्रक्षेपण और क्षेत्रीय मामलों पर प्रभाव की अनुमति देता है। होर्मुज़ जलडमरूमध्य, बाब अल-मंडेब जलडमरूमध्य और मलक्का जलडमरूमध्य जैसे प्रमुख चोकपॉइंट्स की उपस्थिति इसके सामरिक महत्त्व को और बढ़ाती है।
- चीन का सैन्यीकरण का कदम: चीन हिंद महासागर में भारत के हितों और स्थिरता के लिये एक चुनौती रहा है।
- भारत के पड़ोसी चीन से सैन्य और ढाँचागत सहायता प्राप्त कर रहे हैं, जिसमें म्याँमार के लिये पनडुब्बियाँ, श्रीलंका के लिये फ्रिगेट और जिबूती (हॉर्न ऑफ अफ्रीका) में इसका विदेशी सैन्य अड्डा शामिल है।
- साथ ही हंबनटोटा बंदरगाह (श्रीलंका) पर भी चीन का कब्ज़ा है, जो भारत के तटों से कुछ सौ मील की दूरी पर है।
- समुद्री सुरक्षा खतरे: IOR समुद्री डकैती, तस्करी, अवैध मछली पकड़ने और आतंकवाद सहित विभिन्न समुद्री सुरक्षा खतरों के प्रति संवेदनशील है।
- साथ ही हिंद महासागर की विशालता इसके समुद्री क्षेत्र की प्रभावी ढंग से निगरानी और सुरक्षा करना चुनौतीपूर्ण बना देती है।
- पर्यावरणीय चुनौतियाँ: जलवायु परिवर्तन, समुद्र का बढ़ता स्तर, प्रवाल भित्तियों का क्षरण और समुद्री प्रदूषण IOR में महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियाँ शामिल हैं।
- ये मुद्दे तटीय समुदायों, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और लाखों लोगों की आजीविका को प्रभावित करते हैं।
आगे की राह
- नीली अर्थव्यवस्था की पहल : IOR समुद्री संसाधनों से समृद्ध है और नीली अर्थव्यवस्था का लाभ उठाने से स्थायी आर्थिक विकास हो सकता है। समुद्री संसाधनों से नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने, टिकाऊ मत्स्य पालन का समर्थन करने, समुद्री जैव प्रौद्योगिकी को विकसित करने और पर्यावरण पर्यटन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- समुद्री सुरक्षा सहयोग: IOR के रणनीतिक महत्त्व को देखते हुए समुद्री सुरक्षा को बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है।
- सूचना-साझाकरण तंत्र को मज़बूत करने, समुद्री डोमेन जागरूकता के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने, संयुक्त नौसैनिक अभ्यास एवं गश्त को बढ़ावा देने तथा समुद्री डकैती, अवैध मत्स्यन और तस्करी जैसे समुद्री खतरों को कम करने में सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- जलवायु परिवर्तन लचीलापन: IOR जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है, जिसमें समुद्र का बढ़ता स्तर, चरम मौसमी घटनाएँ और समुद्र का अम्लीकरण शामिल है। नवोन्मेषी रणनीतियाँ जलवायु-लचीले बुनियादी ढाँचे को लागू करने, पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करने, स्थायी तटीय प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने तथा जलवायु परिवर्तन अनुकूलन एवं शमन के लिये क्षेत्रीय सहयोग को सुविधाजनक बनाने पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत निम्नलिखित में से किसका सदस्य है? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स परीक्षाप्रश्न. भारत-रूस रक्षा सौदों के बदले भारत-अमेरिका रक्षा सौदों का क्या महत्त्व है? हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता के संदर्भ में चर्चा कीजिये। (2020) |