पैरोल एवं फर्लो के लिये संशोधित दिशा-निर्देश
प्रिलिम्स के लियेपैरोल एवं फर्लो में अंतर मेन्स के लियेCOVID-19 के मद्देनज़र कैदियों की रिहाई और सामाजिक सुरक्षा |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने मॉडल जेल मैनुअल, 2016 (Model Prison Manual, 2016) में पैरोल (Parole) एवं फर्लो (Furlough) से संबंधित दिशा-निर्देशों को संशोधित किया है।
प्रमुख बिंदु:
- केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों को एक एडवाइज़री जारी करते हुए संशोधित दिशा-निर्देशों का पालन करने के लिये कहा है। जिसमें मंत्रालय ने तर्क दिया है कि ‘पैरोल पर रिहाई एक पूर्ण अधिकार नहीं है यह एक ‘रियायत’ मात्र है अतः राज्यों को अपनी मौजूदा प्रथाओं की समीक्षा करनी चाहिये।
संशोधित दिशा-निर्देश:
- केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों को पैरोल एवं फर्लो (Furlough) पर उन कैदियों को रिहा नहीं करने का आदेश दिया है जिन्हें राज्य या व्यक्तियों की सुरक्षा के लिये खतरा माना जाता है।
- सजा के एक तरीके के अलावा कारावास का उद्देश्य आपराधिक गतिविधियों से समाज की रक्षा करना भी है इसलिये पैरोल पर रिहाई एक पूर्ण अधिकार नहीं बल्कि एक रियायत मात्र है इसलिये कैदियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने तथा समाज को और अधिक नुकसान से बचाने के बीच एक संतुलन स्थापित किया जाना आवश्यक है।
- इस प्रकार के पैरोल के लाभ एवं हानि के बारे में राज्यों के पैरोल नियमों की समीक्षा की जाएगी।
- पैरोल एवं फर्लो (Furlough) को नियमित कार्यक्रम का विषय नहीं माना जा सकता है और अधिकारियों एवं व्यवहार विशेषज्ञों की एक समिति कैदियों विशेष रूप से यौन अपराध एवं हत्या, बाल अपहरण, हिंसा आदि जैसे गंभीर अपराधों के लिये सजा पाने वाले, के संबंध में निर्णय ले सकती है।
- मनोवैज्ञानिक/अपराधविज्ञानी/सुधारक प्रशासन विशेषज्ञों को समीक्षा बोर्ड या समिति में सदस्य के रूप में शामिल करना जो कैदियों को पैरोल एवं फर्लो (Furlough) की छूट का निर्णय करती है।
पृष्ठभूमि:
- COVID-19 महामारी के मद्देनज़र जेलों में भीड़भाड़ से बचने के लिये सरकार पर कैदियों को रिहा करने का दबाव है। इससे पहले भारत के उच्चतम न्यायालय ने भी COVID-19 के प्रकोप के कारण जेलों, सुधार घरों एवं निवारक केंद्रों पर COVID-19 निवारक उपायों पर आदेश जारी किया है।
- उल्लेखनीय है कि जेल, राज्य सूची का विषय है और सभी राज्यों में कैदियों के अच्छे आचरण के आधार पर पैरोल, फर्लो (Furlough), माफी एवं समय से पहले रिहाई के अपने-अपने नियम हैं।
- केंद्रीय गृहमंत्रालय के दिशा-निर्देश पैरोल एवं फर्लो (Furlough) पर जारी किये गए कई कैदियों की रिपोर्ट की पृष्ठभूमि में आए हैं जिनमें से कुछ जेल से बाहर अपराधों में लिप्त पाए गए हैं।
पैरोल (Parole):
- यह एक कैदी को सजा के निलंबन के साथ रिहा करने की व्यवस्था है। इसमें कैदी की रिहाई सशर्त होती है जो आमतौर पर कैदी के व्यवहार पर निर्भर करती है, जिसमें समय-समय पर अधिकारियों को रिपोर्टिंग की आवश्यकता होती है।
- पैरोल एक अधिकार नहीं है, इसे एक विशिष्ट कारण के लिये कैदी को दिया जाता है जैसे- परिवार में किसी अपने की मृत्यु या करीबी रिश्तेदार की शादी आदि।
- इसमें एक कैदी को पैरोल देने से मना भी किया जा सकता है यदि सक्षम प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट हो जाता है कि दोषी को रिहा करना समाज के हित में नहीं है।
फर्लो (Furlough):
- कुछ महत्त्वपूर्ण अंतरों के साथ यह पैरोल के समान है। इसे लंबी अवधि के कारावास के मामलों में दिया जाता है। एक कैदी को दी गई फर्लो (Furlough) की अवधि को उसकी सजा की छूट के रूप में माना जाता है।
- पैरोल के विपरीत इसे एक कैदी के अधिकार के रूप में देखा जाता है। इसे समय-समय पर बिना किसी कारण के कैदी को दिया जाता है जिससे कैदी परिवार एवं सामाजिक संबंधों को बनाए रखने और जेल में बिताए लंबे समय के बुरे प्रभावों का मुकाबला करने में सक्षम हो सके।
- यद्यपि पैरोल एवं फर्लो (Furlough) दोनों को कैदी की सुधार प्रक्रिया के रूप में माना जाता है। ये प्रावधान जेल प्रणाली को मानवीय बनाने के उद्देश्य से पेश किये गए थे।
- पैरोल एवं फर्लो (Furlough) को जेल अधिनियम 1894 (Prisons Act of 1894) के तहत सृजित किया गया है।
आगे की राह:
- राज्य अधिकारियों हेतु यह सुनिश्चित करने के लिये उनके दिशा-निर्देशों की समीक्षा करना आवश्यक है कि उन्हें (कैदियों) राहत एवं पुनर्वास प्रदान करने के इरादे से पैरोल, फर्लो (Furlough) और समय से पहले रिहाई आदि के माध्यम से कैदियों को दी जाने वाली सुविधा एवं रियायत का दुरुपयोग न हो सके।