जैव विविधता और पर्यावरण
पर्माफ्रॉस्ट पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव
- 14 Sep 2021
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:आर्कटिक, पर्माफ्रॉस्ट, ग्रीनहाउस गैस मेन्स के लिये:पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से उत्पन्न पर्यावरणीय चिंताएंँ |
चर्चा में क्यों?
IPCC की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने से आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट में कमी आएगी और उसके पिघलने से मीथेन एवं कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होने की संभावना है।
प्रमुख बिंदु
- पर्माफ्रॉस्ट:
- पर्माफ्रॉस्ट अथवा स्थायी तुषार भूमि वह क्षेत्र है जो कम-से-कम लगातार दो वर्षों से शून्य डिग्री सेल्सियस (32 डिग्री F) से कम तापमान पर जमी हुई अवस्था में है।
- ये स्थायी रूप से जमे हुए भूमि-क्षेत्र मुख्यतः उच्च पर्वतीय क्षेत्रों और पृथ्वी के उच्च अक्षांशों (उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवों के निकट) में पाए जाते हैं।
- पर्माफ्रॉस्ट विश्व का लगभग 15% भूमि क्षेत्र को कवर करता है।
- यद्यपि ये भूमि-क्षेत्र जमे हुए होते हैं लेकिन आवश्यक रूप से हमेशा ये बर्फ से ढके नहीं होते।
- पर्माफ्रॉस्ट के बड़े हिस्सों वाले भू-दृश्यों (Landscapes) को अक्सर टुंड्रा कहा जाता है। टुंड्रा शब्द एक फिनिश (Finnish) शब्द है जो एक वृक्ष रहित मैदानी (Treeless Plain) क्षेत्र को संबोधित करता है। उच्च अक्षांशों और ऊंँचाई पर स्थित क्षेत्र को टुंड्रा कहा जाता है, जहांँ पर्माफ्रॉस्ट की एक बहुत पतली सक्रिय परत होती है।
- पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने के संबंध में चिंताएंँ:
- बुनियादी ढाँचे पर प्रभाव:
- यह उन देशों के बुनियादी ढाँचे को प्रभावित करेगा जहांँ सड़कों या इमारतों का निर्माण पर्माफ्रॉस्ट पर किया गया है।
- ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन:
- पर्माफ्रॉस्ट के कारण कार्बनिक पदार्थ जमकर ज़मीन में दब जाते हैं।
- यदि पर्माफ्रॉस्ट पिघलना शुरू हो जाती है, तो यह सामग्री विखंडित होकर सूक्ष्मजीवों के लिये उपलब्ध हो जाएगी।
- कुछ सूक्ष्मजीव वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं और अन्य जीव मीथेन का, जो कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में ग्रीनहाउस गैस के रूप में लगभग 25 से 30 गुना अधिक शक्तिशाली है।
- पर्माफ्रॉस्ट के कारण कार्बनिक पदार्थ जमकर ज़मीन में दब जाते हैं।
- कार्बन स्टोरहाउस/भंडारण से कार्बन उत्सर्जक में परिवर्तन:
- कुछ पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र कार्बन स्टोरहाउस से ऐसे स्थानों में परिवर्तित हो गए हैं जो कार्बन के शुद्ध उत्सर्जक हैं।
- वनाग्नि की घटनाओं में वृद्धि:
- इस वर्ष रूस में वनाग्नि की घटना देखी गई जिसका कुल क्षेत्रफल पुर्तगाल के आकार के बराबर था। आमतौर पर आग लगने के बाद अगले 50 से 60 वर्षों में वनों के पुनर्स्थापन की उम्मीद की जाती है। यह पारिस्थितिकी तंत्र में कार्बन स्टॉक को पुनर्स्थापित करता है।
- लेकिन टुंड्रा में पीट वह जगह है जहाँ कार्बनिक पदार्थ होते हैं और इसे जमा होने में बहुत लंबा समय लगता है। इसलिये यदि पीट को जलाया जाता है और वातावरण में छोड़ा जाता है, तो उस कार्बन स्टॉक को ज़मीनी स्तर पर बहाल करने में सदियों लगेंगे।
- नए बैक्टीरिया या वायरस उत्पन्न होना:
- न केवल मानव जीवन के लिये बल्कि वायरस और बैक्टीरिया के विकास या वृद्धि हेतुः भी पर्यावरण अब हिमयुग की तुलना में बहुत अधिक उपयुक्त है।
- इसलिये नए बैक्टीरिया या वायरस के उभरने की संभावनाओं को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है।
- बुनियादी ढाँचे पर प्रभाव:
- उठाए जाने वाले कदम:
- तीव्र जलवायु परिवर्तन को रोकना: जलवायु परिवर्तन को कम करने और पर्माफ्रॉस्ट को बचाने के लिये अनिवार्य है कि अगले दशक में वैश्विक CO2 उत्सर्जन को 45% तक कम किया जाए और 2050 तक पूर्णतः समाप्त किया जाए।
- धीमी गति से क्षरण: वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ ने इसके कटाव को रोकने के लिये आर्कटिक पिघलने से सबसे बुरी तरह प्रभावित ‘जैकबशवन ग्लेशियर’ (ग्रीनलैंड) के सामने 100 मीटर लंबा बाँध बनाने का सुझाव दिया।
- कृत्रिम हिमखंडों का आपसी संयोजन: एक इंडोनेशियाई वास्तुकार ने अपनी परियोजना के लिये पुरस्कार जीता है, उसके अनुसार इसमें आर्कटिक को रिफ्रीज़ करना, उसमें पिघले हुए ग्लेशियरों से पानी इकट्ठा करना, ‘डिसेलिनेट’ करना और बड़े
- ‘हेक्सागोनल’ बर्फ ब्लॉक बनाने के लिये इसे फिर से जमा करना शामिल है।
- उनकी मोटाई बढ़ाना: कुछ शोधकर्त्ता अधिक बर्फ के निर्माण के लिये एक समाधान प्रस्तावित करते हैं। उनके प्रस्ताव में ग्लेशियर के नीचे से पवन ऊर्जा द्वारा संचालित पंपों के माध्यम से बर्फ को ऊपरी शिखरों पर फैलाने हेतु इसे इकट्ठा करना शामिल है, ताकि यह जम जाए, इस प्रकार यह इसकी स्थिरता को मज़बूती प्रदान करता है।
- लोगों को जागरूक करना: टुंड्रा और उसके नीचे का पर्माफ्रॉस्ट हमसे बहुत दूर हो सकते हैं, लेकिन हम कहीं भी रहते हों, हमारे द्वारा किये जाने वाले रोज़मर्रा के कार्य जलवायु परिवर्तन में योगदान करते हैं।
- अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करके, ऊर्जा-कुशल उत्पादों में निवेश करके और जलवायु-अनुकूल व्यवसायों, कानून एवं नीतियों का समर्थन कर हम दुनिया के पर्माफ्रॉस्ट को संरक्षित करने और हमेशा गर्म होने वाले ग्रह के दुष्चक्र को टालने में मदद कर सकते हैं।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस