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जैव विविधता और पर्यावरण

भारत का आर्कटिक नीति मसौदा

  • 25 Jan 2021
  • 11 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने एक नया आर्कटिक नीति मसौदा तैयार किया है, जिसका उद्देश्य आर्कटिक क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान, स्थायी पर्यटन और खनिज तेल एवं गैस की खोज को बढ़ावा देना है।

प्रमुख बिंदु

नीति के बारे में

  • नोडल निकाय: भारत ने आर्कटिक में घरेलू वैज्ञानिक अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ावा देने और विभिन्न वैज्ञानिक निकायों के बीच समन्वय हेतु वैज्ञानिक अनुसंधान का नेतृत्त्व करने के लिये गोवा स्थित नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (NCPOR) को एक नोडल निकाय के रूप में नामित किया है।
  • उद्देश्य
    • आर्कटिक में वैज्ञानिक अध्ययन को बढ़ावा देना: भारतीय विश्वविद्यालयों में पृथ्वी विज्ञान, जैविक विज्ञान, भू-विज्ञान, जलवायु परिवर्तन आदि विषयों के पाठ्यक्रम में आर्कटिक को शामिल करना और आर्कटिक में वैज्ञानिक अध्ययन को बढ़ावा देना।
    • योजनाबद्ध अन्वेषण: पेट्रोलियम अनुसंधान संस्थानों में खनिज/तेल और गैस की खोज के लिये आर्कटिक से संबंधित कार्यक्रमों हेतु प्रभावी योजना तैयार करना।
    • आर्कटिक पर्यटन को बढ़ावा देना: विशेष क्षमता के निर्माण और जागरूकता द्वारा आर्कटिक क्षेत्र में पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्रों को प्रोत्साहित करना।

आर्कटिक के बारे में

  • आर्कटिक पृथ्वी के सबसे उत्तरी भाग में स्थित एक ध्रुवीय क्षेत्र है।
  • आर्कटिक के अंतर्गत आर्कटिक महासागर, निकटवर्ती समुद्र और अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड (डेनमार्क), आइसलैंड, नॉर्वे, रूस और स्वीडन को  शामिल किया जाता है।

Arctic-Ocean

आर्कटिक पारिस्थितिकी पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव

  • समुद्र का बढ़ता स्तर: बर्फ के पिघलने और समुद्री जल के तापमान में हो रही बढ़ोतरी के कारण समुद्र स्तर, लवणता का स्तर और अवक्षेपण पैटर्न प्रभावित होता है।
  • टुंड्रा का ह्रास: टुंड्रा क्षेत्र का दलदल में बदलना, पर्माफ्रॉस्ट के विगलन, अचानक आने वाले तूफानों के कारण तटीय इलाकों को होने वाली क्षति और वनाग्नि की वजह से कनाडा एवं रूस के आंतरिक भागों में भारी तबाही के मामलों में वृद्धि हुई है।
    • टुंड्रा: टुंड्रा पारिस्थितिक तंत्र आर्कटिक में और पहाड़ों की चोटी पर पाया जाने वाला वह क्षेत्र है, जहाँ वृक्ष नहीं पाए जाते हैं, प्रायः यहाँ की जलवायु ठंडी होती है और वर्षा भी बहुत कम होती है।
  • जैव विविधता के लिये खतरा: आर्कटिक क्षेत्र की अभूतपूर्व समृद्ध जैव विविधता गंभीर खतरे की स्थिति में है।
    • बर्फबारी में कमी और उच्च तापमान के कारण आर्कटिक समुद्री जीवन, पौधों और पक्षियों के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो रहा है, जबकि कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों के जीव इस क्षेत्र की ओर स्थानांतरित हो रहे हैं।
  • विलक्षण संस्कृतियों का विलुप्त होना: आर्कटिक में लगभग 40 अलग-अलग स्वदेशी समूह निवास करते हैं, जिनकी संस्कृति, अर्थव्यवस्था और जीवनयापन का तरीका अलग-अलग है। तापमान में बढ़ोतरी के कारण इन विभिन्न समूहों की विशिष्ट संस्कृति पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।

आर्कटिक का वाणिज्यिक महत्त्व

  • संसाधन: आर्कटिक क्षेत्र शिपिंग, ऊर्जा, मत्स्य पालन और खनिज संसाधनों में संपूर्ण विश्व के समक्ष विशाल वाणिज्यिक एवं आर्थिक अवसर प्रस्तुत करता है।
  • वाणिज्यिक नेवीगेशन
    • उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR): यह एक छोटे ध्रुवीय चाप के माध्यम से उत्तरी अटलांटिक महासागर को उत्तरी प्रशांत महासागर से जोड़ता है, जो कि रूस और स्कैंडिनेवियाई देशों के व्यापार में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है।
      • इस मार्ग के खुलने से रॉटर्डम (नीदरलैंड) से योकोहामा (जापान) की दूरी में 40% की कटौती (स्वेज नहर मार्ग की तुलना में) होगी।
      • यह परिवहन अवधि और ईंधन की खपत को कम करने, पर्यावरण उत्सर्जन को सीमित करने तथा समुद्री डकैती के जोखिम को कम करने में मददगार साबित हो सकता है। 
    • तेल और प्राकृतिक गैस भंडार
      • एक अनुमान के अनुसार, विश्व में अब तक न खोजे गए नए प्राकृतिक तेल और गैस के भंडारों में से 22% आर्कटिक क्षेत्र में हैं, साथ ही अन्य खनिजों के अतिरिक्त ग्रीनलैंड में विश्व के 25% दुर्लभ मृदा धातुओं के होने का अनुमान है। बर्फ के पिघलने के बाद इन बहुमूल्य खनिज स्रोतों तक आसानी से पहुँचा जा सकेगा। 

संबंधित मुद्दे

  • इस क्षेत्र में नौचालन की स्थिति खतरनाक है और यह गर्मियों में प्रतिबंधित है।
  • गहरे पानी वाले बंदरगाहों की कमी, बर्फ तोड़ने वाले जहाज़ों की आवश्यकता, ध्रुवीय परिस्थितियों के लिये प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी और उच्च बीमा लागत आर्कटिक के संसाधनों के दोहन हेतु कठिनाइयों को बढ़ाता है।
  • इसके अलावा खनन और गहरे समुद्र में ड्रिलिंग कार्य में भारी आर्थिक और पर्यावरणीय जोखिम बना रहता है।
  • अंटार्कटिका के विपरीत आर्कटिक ‘ग्लोबल कॉमन’ का हिस्सा नहीं है और न ही इसे नियंत्रित करने वाली कोई विशिष्ट संधि मौजूद है।

आर्कटिक क्षेत्र संबंधी विवाद

  • इस क्षेत्र में विस्तारित महाद्वीपीय भागों और समुद्र की तलहटी में संसाधनों पर अधिकार के दावों के लिये रूस, कनाडा, नॉर्वे और डेनमार्क के बीच टकराव है।
  • हालाँकि रूस इस क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति है, जिसके पास सबसे लंबा आर्कटिक समुद्र तट, आधी आर्कटिक आबादी और एक मज़बूत सामरिक नीति है। 
    • रूस यह दावा करते हुए कि उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR) उसके क्षेत्रीय जल के भीतर है, अपने बंदरगाहों और बर्फ तोड़ने वाले जहाज़ों के उपयोग समेत वाणिज्यिक यातायात से भारी लाभांश की उम्मीद करता है।
    • रूस ने अपने उत्तरी सैन्य ठिकानों को भी सक्रिय कर दिया है, इसके अलावा वह अपने परमाणु सशस्त्र पनडुब्बी बेड़े को नवीनीकृत करने के साथ-साथ अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन भी कर रहा है, जिसमें पूर्वी आर्कटिक में चीन के साथ एक संयुक्त अभ्यास भी शामिल है।
  • अपने आर्थिक लाभ को देखते हुए चीन ने ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना’ (BRI) के विस्तार के रूप में एक ‘ध्रुवीय सिल्क रोड’ की अवधारणा प्रस्तुत की है और साथ ही उसने इस क्षेत्र में बंदरगाहों, ऊर्जा, बुनियादी ढाँचे एवं खनन परियोजनाओं में भारी निवेश किया है।

आर्कटिक क्षेत्र में भारत का हित

  • पर्यावरणीय हित
    • भारत की व्यापक समुद्री तटरेखा समुद्र की धाराओं, मौसम के पैटर्न, मत्स्य पालन और मानसून पर आर्कटिक वार्मिंग के प्रभाव के प्रति हमें संवेदनशील बनाती है।
    • आर्कटिक अनुसंधान से भारत के वैज्ञानिक समुदाय को हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की दर का अध्ययन करने में मदद मिलेगी।
  • वैज्ञानिक हित
    • शोध केंद्र: भारत ने वर्ष 2007 में आर्कटिक महासागर में अपना पहला वैज्ञानिक अभियान शुरू किया और ग्लेशियोलॉजी, एट्रोसोनिक विज्ञान तथा जैविक विज्ञान जैसे विषयों में अध्ययन करने के लिये जुलाई 2008 में नॉर्वे के स्वालबार्ड में ‘हिमाद्री’ नाम से एक शोध केंद्र खोला।
    • हिमालयी ग्लेशियरों का अध्ययन: आर्कटिक के बदलावों पर हो रहे वैज्ञानिक अनुसंधान, जिसमें भारत का अच्छा रिकॉर्ड रहा है, तीसरे ध्रुव (हिमालय) में जलवायु परिवर्तन को समझने में सहायक होगा।
  • रणनीतिक हित
    • चीन का मुकाबला: आर्कटिक क्षेत्र में चीन की सक्रियता के रणनीतिक निहितार्थ और वर्तमान में रूस के साथ इसके आर्थिक तथा रणनीतिक संबंधों में हो रही वृद्धि सर्वविदित है, अतः वर्तमान में इसकी व्यापक निगरानी की आवश्यकता है।
    • आर्कटिक परिषद की सदस्यता: भारत को आर्कटिक परिषद (Arctic Council) में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है, जो आर्कटिक पर्यावरण और विकास के पहलुओं पर सहयोग के लिये प्रमुख अंतर-सरकारी मंच है।

आगे की राह

  • वर्तमान में यह बहुत आवश्यक है कि आर्कटिक परिषद में भारत की उपस्थिति को आर्थिक, पर्यावरणीय, वैज्ञानिक और राजनीतिक पहलुओं को शामिल करने वाली सामरिक नीतियों के माध्यम से मज़बूती प्रदान की जाए। इस प्रकार नया आर्कटिक नीति मसौदा तैयार करना मौजूदा समय में काफी महत्त्वपूर्ण है। 

स्रोत: द हिंदू

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