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डेली न्यूज़

  • 16 Oct, 2021
  • 29 min read
शासन व्यवस्था

गर्भ के चिकित्‍सकीय समापन संबंधी नियम

प्रिलिम्स के लिये:

गर्भ के चिकित्‍सकीय समापन संबंधी नए नियम 

मेन्स के लिये:

महिलाओं से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने गर्भ का चिकित्‍सकीय समापन (Medical Termination of Pregnancy) (संशोधन) अधिनियम, 2021 के तहत नए नियमों को अधिसूचित किया है।

MTP

प्रमुख बिंदु

  • नियमों के बारे में:
    • बढ़ी हुई गर्भावधि सीमा: कुछ श्रेणियों की महिलाओं के लिये गर्भावस्था को समाप्त करने की गर्भकालीन सीमा को 20 से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया है। इसमें सात विशिष्ट श्रेणियाँ हैं:
      • यौन हमले या बलात्कार की स्थिति में;
      • अवयस्क;
      • विधवा और तलाक होने जैसी परिस्थितियों अर्थात् वैवाहिक स्थिति में बदलाव के समय की गर्भावस्था ;
      • शारीरिक रूप से अक्षम महिलाएँ;
      • मानसिक रूप से बीमार महिलाएँ;
      • भ्रूण की विकृति जिसमें बच्चे के असामान्य होने का पर्याप्त जोखिम होता है या बच्चा पैदा होने के बाद गंभीर शारीरिक या मानसिक असामान्यताओं से पीड़ित हो सकता है;
      • जटिल मानवीय परिस्थितियों,आपदा या आपातकाल के दौरान गर्भावस्था वाली महिलाएँ।
    • राज्य-स्तरीय मेडिकल बोर्ड: भ्रूण की विकृति के मामलों में 24 सप्ताह के बाद गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है या नहीं, यह तय करने के लिये एक राज्य-स्तरीय मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाएगा।
      • मेडिकल बोर्ड को अनुरोध प्राप्त होने के तीन दिनों के भीतर गर्भावस्था के मेडिकल टर्मिनेशन के प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार करना होता है।
      • गर्भपात प्रक्रिया बोर्ड को अनुरोध प्राप्त होने के पाँच दिनों के भीतर की जानी चाहिये।
  • महत्त्व:
    • नए नियम सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) 3.1, 3.7 और 5.6 को पूरा करने में मदद के लिये ये नए नियम मातृ मृत्यु दर को प्रबंधित करने में योगदान देंगे।
    • SDG 3.1 मातृ मृत्यु अनुपात को कम करने से संबंधित है, जबकि SDG 3.7 और 5.6 यौन और प्रजनन स्वास्थ्य एवं अधिकारों तक सार्वभौमिक पहुँच से संबंधित है।
    • नए नियम सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक महिलाओं के दायरे और पहुँच को बढ़ाएंगे तथा उन महिलाओं के लिये गरिमा, स्वायत्तता, गोपनीयता और न्याय सुनिश्चित करेंगे जिन्हें गर्भावस्था को समाप्त करने की आवश्यकता है।
  • संबंधित मुद्दे:
    • हालाँकि नए नियमों ने कुछ हद तक गर्भपात तक पहुँच बढ़ा दी है, लेकिन वे MPT अधिनियम में एक मौलिक दोष को ठीक करने में विफल रहे हैं कि एक महिला को गर्भावस्था को समाप्त करने का निर्णय मूल अधिकार है या नहीं।
    • राज्य मेडिकल बोर्ड का गठन उनकी पहुँच खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के लिये अतिरिक्त चिंताएँ पैदा करता है।
    • अधिनियम में केवल स्त्री रोग या प्रसूति में विशेषज्ञता वाले डॉक्टरों द्वारा गर्भपात करने की आवश्यकता है।
      • चूँकि ग्रामीण क्षेत्रों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में ऐसे डॉक्टरों की 75% कमी है, इसलिये गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात के लिये सुविधाओं तक पहुँचने में मुश्किल हो सकती है।
    • समाज अभी भी महिलाओं को प्रजनन स्वायत्तता सुनिश्चित करने में असमर्थ है, जिनमें से कई को न केवल गर्भधारण की योजना बनाने की स्वतंत्रता की कमी है, बल्कि गर्भपात के लिये कई बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

BSF के क्षेत्राधिकार का विस्तार

प्रिलिम्स के लिये:

सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल

मेन्स के लिये:

BSF के क्षेत्राधिकार में विस्तार के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गृह मंत्रालय ने असम, पश्चिम बंगाल और पंजाब में अंतर्राष्ट्रीय सीमा से 50 किलोमीटर तक ज़ब्ती, तलाशी और गिरफ्तारी हेतु ‘सीमा सुरक्षा बल’ (BSF) के क्षेत्राधिकार का विस्तार करने के लिये एक अधिसूचना जारी की है।

प्रमुख बिंदु

  • आदेश के संबंध में:
    • यह अधिसूचना बीएसएफ अधिनियम, 1968 के तहत वर्ष  2014 के एक आदेश को प्रतिस्थापित करेगी, जिसमें मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय को भी शामिल किया गया था।
      • इसमें विशेष रूप से दो नवनिर्मित केंद्रशासित प्रदेशों- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का भी उल्लेख है।
    • जिन उल्लंघनों के मामले में सीमा सुरक्षा बल तलाशी और ज़ब्ती की कार्यवाही कर सकता है, उनमें नशीले पदार्थों की तस्करी, अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी, विदेशियों का अवैध प्रवेश और किसी अन्य केंद्रीय अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध आदि शामिल हैं।
    • किसी संदिग्ध को हिरासत में लेने या निर्दिष्ट क्षेत्र के भीतर एक खेप ज़ब्त किये जाने के बाद बीएसएफ केवल ‘प्रारंभिक पूछताछ’ कर सकती है और 24 घंटे के भीतर संदिग्ध को स्थानीय पुलिस को सौंपना आवश्यक है।
      • संदिग्धों पर मुकदमा चलाने का अधिकार बीएसएफ के पास नहीं है।
  • संबंधित मुद्दे:
    • सार्वजनिक व्यवस्था बनाम राज्य की सुरक्षा: सार्वजनिक व्यवस्था, जो कि सार्वजनिक शांति और सुरक्षा का प्रतीक है, को बनाए रखना मुख्य रूप से राज्य सरकार का दायित्त्व है (प्रविष्टि-1, राज्य सूची)।
      • हालाँकि जब कोई गंभीर सार्वजनिक अव्यवस्था, जो राज्य या देश की सुरक्षा या रक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करती है, तो स्थिति केंद्र सरकार के लिये भी चिंता का विषय बन जाती है (संघ सूची की प्रविष्टि 1)।
    • संघवाद की भावना को कमज़ोर करना: राज्य सरकार की सहमति प्राप्त किये बिना जारी यह अधिसूचना, राज्यों की शक्तियों पर अतिक्रमण करने के समान है।
      • पंजाब सरकार का कहना है कि यह अधिसूचना सुरक्षा या विकास की आड़ में राज्य सरकार की शक्तियों पर केंद्र सरकार का अतिक्रमण है।
    • बीएसएफ के कामकाज पर प्रभाव: भीतरी इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था को बनाए रखना सीमा सुरक्षा बल के दायरे में नहीं आता है, बल्कि इसका प्राथमिक दायित्व अंतर्राष्ट्रीय सीमा की रक्षा करना है, ऐसे में यह अधिसूचना प्राथमिक दायित्व के निर्वहन को लेकर बीएसफ की क्षमता को कमज़ोर करेगी।

राज्यों में सशस्त्र बलों की तैनाती पर संवैधानिक दृष्टिकोण:

  • केंद्र अनुच्छेद 355 के तहत राज्य को "बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति" से बचाने के लिये अपने बलों को तैनात कर सकता है, तब भी जब संबंधित राज्य, केंद्र से सहायता की मांग नहीं करता है और केंद्रीय बलों की तैनाती हेतु अनिच्छुक है।
  • संघ के सशस्त्र बलों की तैनाती के संदर्भ में किसी राज्य के विरोध के मामले में केंद्र द्वारा पहले संबंधित राज्य को अनुच्छेद 355 के तहत निर्देश जारी किया जाता है।
  • केंद्र सरकार के निर्देश का पालन न करने की स्थिति में केंद्र अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) के तहत आगे की कार्रवाई कर सकता है।

सीमा सुरक्षा बल:

  • भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद 1965 में बीएसएफ का गठन किया गया था।
  • यह गृह मंत्रालय (MHA) के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत भारत के सात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में से एक है।
    • अन्य केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल हैं: असम राइफल्स (एआर), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ), केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) और सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) )
  • पाकिस्तान और बांग्लादेश की सीमाओं पर 2.65 लाख सैनिक तैनात हैं।
  • इसमें एक एयर विंग, मरीन विंग, एक आर्टिलरी रेजिमेंट और कमांडो यूनिट है।
    • बीएसएफ अरब सागर में सर क्रीक और बंगाल की खाड़ी में सुंदरबन डेल्टा जैसी भौगोलिक स्थितियों में भी सुरक्षा प्रदान कर रही है।
    • कानून और व्यवस्था बनाए रखने तथा शांतिपूर्ण चुनाव कराने में राज्य प्रशासन की मदद करने में बीएसएफ की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
    • बीएसएफ प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भी सुरक्षा प्रदान करती है ताकि ज़रूरत पड़ने पर मानव जीवन को बचाया जा सके।
  • यह हर साल अपनी प्रशिक्षित जनशक्ति का एक बड़ा दल भेजकर संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन को समर्पित सेवाओं में योगदान देता है।
  • इसे भारतीय क्षेत्रों की रक्षा की पहली पंक्ति कहा गया है।

आगे की राह 

  • राज्य की सहमति वांछनीय है: भारत के पड़ोस में सुरक्षा की स्थिति को देखते हुए केंद्रीय सशस्त्र बलों और राज्य के पुलिस अधिकारियों के बीच मौजूदा संबंधों में किसी बदलाव की आवश्यकता नहीं है।
    • हालाँकि यह वांछनीय है कि केंद्र सरकार द्वारा अपने सशस्त्र बलों को राज्यों में तैनात करते समय  जहाँ भी संभव हो, राज्य सरकार से परामर्श किया जाना चाहिये।
  • राज्य का आत्मनिर्भर बनना: प्रत्येक राज्य सरकार अपनी सशस्त्र पुलिस को मज़बूत करने के लिये केंद्र सरकार के परामर्श से अल्पकालिक और दीर्घकालिक व्यवस्था कर सकती है।
    • इसका उद्देश्य सशस्त्र पुलिस को काफी हद तक आत्मनिर्भर बनाना है ताकि गंभीर गड़बड़ी की स्थिति में ही केंद्रीय सशस्त्र बलों की सहायता ली जाए।
  • क्षेत्रीय व्यवस्था: पड़ोसी राज्यों के एक समूह की आम सहमति से ज़रूरत पड़ने पर एक-दूसरे की सशस्त्र पुलिस के उपयोग की स्थायी व्यवस्था हो सकती है।
    • क्षेत्रीय परिषद ऐसी व्यवस्था तैयार करने के लिये एक क्षेत्र के भीतर राज्यों की सहमति प्राप्त करने के लिये सबसे अच्छा मंच होगा।
  • पुलिस सुधार: विभिन्न समितियों और निर्णयों द्वारा अनुशंसित पुलिस सुधारों को पूरा करने के लिये यह उचित समय है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

किशोरों का यौन और प्रजनन स्वास्थ्य: राजस्थान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘राजस्थान में किशोरों के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य में निवेश पर रिटर्न’ नामक एक अध्ययन के निष्कर्ष जारी किये गए।

  • किशोर 10 से 19 वर्ष की आयु के विशिष्ट समूह हैं, जो विकास के विभिन्न चरणों में हैं, ये अलग-अलग परिस्थितियों में रहते हैं और उनकी अलग-अलग आवश्यकताएँ हैं।

Cost-Benefit

प्रमुख बिंदु

  • अध्ययन के बारे में:
    • यह उन आर्थिक और स्वास्थ्य लाभों की जाँच करता है जो राजस्थान में किशोरों के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य-विशिष्ट हस्तक्षेपों में बढ़े हुए निवेश से प्राप्त हो सकते हैं।
      • अध्ययन ने लाभ-लागत अनुपात की गणना इस निष्कर्ष के आधार पर की है कि किशोरों की अन्य ज़रूरतों को पूरा करने पर खर्च किये गए प्रत्येक 100 रुपए पर स्वास्थ्य देखभाल लागत की बचत के रूप में लगभग 300 रुपए की वापसी होगी।
    • यह गर्भ निरोधकों तक पहुँच जैसी सेवाओं को बढ़ाने की क्षमता का भी पता लगाता है; इसमें व्यापक गर्भपात देखभाल (CAC); साप्ताहिक आयरन और फोलिक एसिड सप्लीमेंटेशन (WIFS) और राज्य में मासिक धर्म स्वच्छता योजनाएँ (MHS) शामिल हैं।
  • भारत में किशोर:
    • जनसंख्या: 253 मिलियन किशोरों के साथ (जिसका अर्थ है कि भारत में प्रत्येक पाँचवाँ व्यक्ति किशोर है) भारत के पास आर्थिक विकास में तेज़ी लाने और गरीबी को कम करने का एक अभूतपूर्व अवसर है।
    • स्वस्थ विकास की चुनौतियाँ: विभिन्न कारक जिनमें संरचनात्मक गरीबी, सामाजिक भेदभाव, प्रतिगामी सामाजिक मानदंड, अपर्याप्त शिक्षा और कम उम्र में विवाह एवं बच्चे पैदा करना, विशेष रूप से आबादी के हाशिये पर तथा कम सेवा वाले वर्ग शामिल हैं।
  • राजस्थान के संदर्भ में:
    • किशोर जनसंख्या: राजस्थान की कुल किशोर जनसंख्या 15 मिलियन या राज्य की कुल जनसंख्या का 23% है। इनमें 53 फीसदी पुरुष और 47 फीसदी महिलाएँ हैं।
    • बाल विवाह और किशोर गर्भावस्था: राजस्थान में यह चिंता का विषय बना हुआ है क्योंकि एक- तिहाई से अधिक (35.4%) लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले हो जाती है और 15-19 वर्ष की उम्र की 6.3% पहले से ही माँ हैं।
      • यह राष्ट्रीय औसत 27% से काफी अधिक है।
    • माँ और शिशु पर प्रभाव: 
      • जन्म से संबंधित जटिलताएँ: 10-19 वर्ष की आयु की किशोर माताओं को उच्च आयु वर्ग की महिलाओं की तुलना में एक्लम्पसिया, प्यूपरल एंडोमेट्रैटिस (गर्भाशय संक्रमण) और अन्य प्रणालीगत संक्रमण जैसी जन्म संबंधी जटिलताओं के अधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है।
      • नवजात शिशु के लिये जोखिम: किशोर माताओं से पैदा होने वाले शिशुओं को भी जन्म के समय कम वज़न, समय से पहले जन्म, चोट लगने, मृत जन्म और शिशु मृत्यु दर का अधिक जोखिम होता है।
      • कॅरियर विकल्पों को प्रतिबंधित करना: स्वास्थ्य समस्याएँ, शिक्षा की कमी और माता-पिता की ज़िम्मेदारियाँ किशोरों के भविष्य के आर्थिक अवसरों और कॅरियर विकल्पों को प्रतिबंधित करती हैं।
  • सुझाव: 
    • प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिये नए मानकों और दिशा-निर्देशों का विकास।
    • राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिये समझदारी के साथ निवेश करना चाहिये कि कार्यरत आयु की आबादी स्वस्थ और साक्षर हो और संसाधनों तक उनकी पहुँच हो।
      • जबकि किशोर-विशिष्ट स्वास्थ्य हस्तक्षेपों में उनकी आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशीलता को ध्यान में रखना आवश्यक है, पोषण पूरकता कार्यक्रमों को भी मज़बूती प्रदान के साथ-साथ बढ़ाया जाना चाहिये।
    • 2021-25 की अवधि में इस अंतराल को भरने के लिये आधुनिक गर्भनिरोधक प्रसार दर को मौजूदा 10.1% से बढ़ाकर 32% कर दिया गया है।
    • Increase in the modern contraceptive prevalence rate for spacing methods from the existing 10.1% to 32% in the 2021-25 period.
    • किशोरों तक पहुँचने के लिये बहुआयामी और अभिनव दृष्टिकोण अपनाना।

महत्त्वपूर्ण पहल

  • राजस्थान:
    • शून्य किशोर गर्भावस्था अभियान: अभियान का उद्देश्य राजस्थान में किशोर गर्भावस्था के बारे में अधिक जागरूकता पैदा करना और हितधारकों को किशोर गर्भावस्था को समाप्त करने के प्रति प्रतिबद्धता के लिये प्रोत्साहित करना है।
  • राष्ट्रीय पहलें:

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2021

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2021

मेन्स के लिये:

बच्चों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) 2021 में भारत को 116 देशों में से 101वाँ स्थान प्राप्त हुआ है। वर्ष 2020 में भारत 94वें स्थान पर था।

Global-Hunger-Index-2021

प्रमुख बिंदु 

  • वैश्विक भुखमरी सूचकांक के बारे में:
    • वार्षिक रिपोर्ट: कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्थुंगरहिल्फ द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित।
      • यह पहली बार 2006 में जारी किया गया था। यह हर वर्ष अक्तूबर में जारी किया जाता है। इसका 2021 संस्करण GHI के 16वें संस्करण को संदर्भित करता है।
    • उद्देश्य: वैश्विक, क्षेत्रीय और देश के स्तर पर भूख को व्यापक रूप से मापना और ट्रैक करना।
    • गणना: इसकी गणना चार संकेतकों के आधार पर की जाती है:
      • अल्पपोषण: अपर्याप्त कैलोरी सेवन वाली जनसंख्या।
      • चाइल्ड वेस्टिंग: पाँच साल से कम उम्र के बच्चों का हिस्सा, जिनका वज़न उनकी ऊंँचाई के हिसाब से कम है, यह तीव्र कुपोषण को दर्शाता है।
      • चाइल्ड स्टंटिंग: पाँच साल से कम उम्र के बच्चों का हिस्सा, जिनका वज़न उनकी उम्र के हिसाब से कम है, यह कुपोषण को दर्शाता है।
      • बाल मृत्यु दर: पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर।
    • स्कोरिंग:
      • चार संकेतकों के मूल्यों के आधार पर GHI 100-बिंदु पैमाने पर भूख का निर्धारण करता है जहाँ 0 सबसे अच्छा संभव स्कोर है (शून्य भूख) और 100 को सबसे खराब माना जाता है।
      • प्रत्येक देश के GHI स्कोर को गंभीरता के आधार पर निम्न से लेकर अत्यंत खतरनाक तक वर्गीकृत किया जाता है।
    • आँकड़ा संग्रहण:
  • वैश्विक परिदृश्य:
    • भुखमरी समाप्त करने संबंधी कार्यक्रम का निष्पादन बहुत अच्छा नही पाया गया।
      • वर्तमान GHI अनुमानों के आधार पर पूरी दुनिया, विशेष रूप से 47 देश वर्ष 2030 तक भूख के निम्न स्तर को प्राप्त करने में विफल रहेंगे।
    • खाद्य सुरक्षा की अस्थिरता:
      • बढ़ते संघर्ष, वैश्विक जलवायु परिवर्तन से जुड़े मौसम की चरम सीमा और कोविड-19 महामारी से जुड़ी आर्थिक एवं स्वास्थ्य चुनौतियाँ भुखमरी के स्तर को बढ़ा रही हैं।
    • दशकों की गिरावट के बाद कुपोषण का वैश्विक प्रसार (वैश्विक भूख सूचकांक का एक घटक) बढ़ रहा है।
      • यह बदलाव भूख के अन्य उपायों की विफलता का एक प्रमुख संकेतक हो सकता है।
    • क्षेत्रों, देशों और समुदायों के बीच व्यापक असमानता है जिससे सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) "किसी को भी पीछे न छोड़ने" पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
    • अफ्रीका विशेष रूप से उप-सहारा और दक्षिण एशिया ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ भुखमरी का स्तर सबसे अधिक है। दोनों क्षेत्रों में भूख का स्तर गंभीर बना हुआ है।
  • भारतीय परिदृश्य:
    • वर्ष 2000 के बाद से भारत ने इस क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति की है, लेकिन अभी भी बाल पोषण चिंता का मुख्य क्षेत्र बना हुआ है।
    • वर्ष 2000 में भारत का GHI स्कोर 38.8 (चिंताजनक) जबकि वर्ष 2021 में यह घटकर 27.5 (गंभीर) हो गया है।
    • जनसंख्या में कुपोषितों का अनुपात और पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर अब अपेक्षाकृत निम्न स्तर पर है।
    • भारत में चाइल्ड स्टंटिंग में उल्लेखनीय कमी देखी गई है- वर्ष 1998-1999 के स्तर 54.2% से घटकर यह 2016-2018 में 34.7% हो गई थी लेकिन इस क्षेत्र में अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है।
    • भारत के GHI स्कोर में चाइल्ड वेस्टिंग का स्तर 17.3% था जो अन्य देशों की तुलना में बहुत पिछड़ा हुआ है, भारत का यह स्कोर वर्ष 1998-1999 के 17.1% की तुलना में थोड़ा अधिक है।
    • इस स्कोर के आधार पर भारत का स्थान 15 सबसे निम्नतम देशों में है।
    • भारत के अधिकांश पड़ोसी देशों का स्थान भारत से भी पीछे है। पाकिस्तान- 92, नेपाल और बांग्लादेश- 76 तथा श्रीलंका 65वें स्थान पर है।
  • भारत का पक्ष:
    • महिला और बाल विकास मंत्रालय ने रिपोर्ट की आलोचना करते हुए दावा किया है कि FAO द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कार्यप्रणाली अवैज्ञानिक है।
    • सरकार के अनुसार, वैश्विक भुखमरी सूचकांक रिपोर्ट 2021 और 'द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2021' पर FAO रिपोर्ट ने निम्नलिखित तथ्यों को पूरी तरह से नज़रअंदाज किया है:
      • इस रिपोर्ट का मूल्यांकन 'चार आधारों' किया गया है, यह सर्वे भौतिक रूप से न कर टेलीफोन के माध्यम से आयोजित किया गया था।
        • अल्पपोषण के वैज्ञानिक माप के लिये वज़न और ऊंँचाई की माप की आवश्यकता होती है, जबकि टेलीफोनिक सर्वे के दौरान इसमें विसंगतितियाँ पाई गई थीं।
      • रिपोर्ट में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) और आत्मनिर्भर भारत योजना जैसी कोविड अवधि के दौरान खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के सरकार के बड़े पैमाने पर प्रयास की अवहेलना की गई है।

भारत द्वारा प्रारंभ पहलें:

  • ईट राइट इंडिया मूवमेंट: भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा नागरिकों को उचित खाद्य पदार्थों को भोजन में शामिल करने के लिये प्रेरित किये जाने हेतु आयोजित एक आउटरीच गतिविधि।
  • पोषण अभियान: इसे महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018 में शुरू किया गया, इसका लक्ष्य स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों के बीच) को कम करना है।
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना: यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा क्रियान्वित एक केंद्र प्रायोजित योजना है, यह 1 जनवरी, 2017 से देश के सभी ज़िलों में लागू एक मातृत्व लाभ कार्यक्रम है।
  • फूड फोर्टिफिकेशन: फूड फोर्टिफिकेशन या फूड एनरिचमेंट प्रमुख विटामिनों तथा खनिजों जैसे- आयरन, आयोडीन, जिंक, विटामिन ए और डी को चावल, दूध एवं नमक आदि मुख्य खाद्य पदार्थों में शामिल करना है ताकि उनकी पोषण सामग्री में सुधार हो सके।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013: यह कानूनी रूप से ग्रामीण आबादी के 75% और शहरी आबादी के 50% हिस्से को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत रियायती खाद्यान्न प्राप्त करने का अधिकार देता है।
  • मिशन इंद्रधनुष: यह 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को 12 वैक्सीन-निवारक रोगों (वीपीडी) के खिलाफ टीकाकरण के लिये लक्षित करता है।
  • एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना: 2 अक्तूबर, 1975 को शुरू की गई, आईसीडीएस योजना के तहत छह सेवाओं (पूरक पोषण, पूर्व-विद्यालयी गैर-औपचारिक शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच एवं रेफरल सेवाओं) का पैकेज, 0-6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को उपलब्ध कराया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


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