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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

प्रीलिम्स फैक्ट्स : 23 दिसंबर, 2017

  • 23 Dec 2017
  • 19 min read

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक,2017

15 दिसम्बर, 2017 को मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक 2017 को स्वीकृति प्रदान की गई। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा इस विधेयक के तहत चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था को पहले से अधिक पारदर्शी और गुणवत्तायुक्त बनाने के लिये राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का गठन किया जाएगा। यह आयोग, भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) का स्थान लेगा।

इस विधेयक में निम्नलिखित प्रावधानों को शामिल किया गया है:

  • चिकित्सा परिषद 1956, अधिनियम को परिवर्तित करना।
  • चिकित्सा शिक्षा सुधार के क्षेत्र में दूरगामी कार्य करना।
  • प्रक्रिया आधारित नियमन के बजाए परिणाम आधारित चिकित्सा शिक्षा नियमन का अनुपालन करना।
  • स्वशासी बोर्डों की स्थापना करके नियामक के अंदर उचित कार्य विभाजन सुनिश्चित करना।
  • चिकित्सा शिक्षा में मानक बनाए रखने के लिये उत्तरदायी और पारदर्शी प्रक्रिया बनाना।
  • भारत में पर्याप्त स्वास्थ कार्यबल सुनिश्चित करने का दूरदर्शी दृष्टिकोण विकसित करना। 

नए कानून के प्रत्याशित लाभ क्या-क्या हैं?

  • चिकित्सा शिक्षा संस्थानों पर कठोर नियामक नियंत्रण की समाप्ति और परिणाम आधारित निगरानी व्यवस्था।
  • राष्ट्रीय लाइसेंस परीक्षा लागू करना। यह पहला मौका होगा जब देश के किसी उच्च शिक्षा क्षेत्र में ऐसा प्रावधान लागू किया जाएगा जैसा कि इससे पहले नीट तथा साझा काउंसलिंग व्यवस्था के रूप में किया किया गया था।
  • चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र को और अधिक उदार तथा मुक्त बनाने के उद्देश्य से यूजी और पीजी स्तरीय सीटों की संख्या में वृद्धि की जाएगी। इससे अवसंरचना क्षेत्र में भी निवेश के नए अवसरों का सृजन होगा।
  • आयुष चिकित्सा प्राणाली के साथ बेहतर समन्वय स्थापित होगा।
  • चिकित्सा महाविद्यालयों में 40 प्रतिशत सीटों के नियमन से किसी भी वित्तीय स्थिति के मेधावी विधार्थियों हेतु मेडिकल सीटों तक पहुँच को सुनिश्चित किया जा सकेगा।

मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम, 2017

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम के अंतर्गत देश में मानसिक स्वास्थ्य सुधार हेतु आधार आधारित वैधानिक ढाँचा अपनाए जाने पर बल दिया गया है। इस विधेयक में मानसिक स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे लोगों के अधिकारों को सुरक्षित रखने और उनके लिये अधिक से अधिक देखभाल तथा सम्मान के साथ जीवन सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के प्रावधान में समानता के पक्ष को बेहद मज़बूत रूप में प्रस्तुत किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • यह अधिनियम स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण तथा उचित मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिये संस्थागत व्यवस्था को मज़बूती प्रदान करता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में सरकारी और निजी क्षेत्रों के दायित्व को भी सुनिश्चित करता है। 
  • मानसिक स्वास्थ्य संबंधी व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व शामिल है। 
  • रोगियों की देखभाल के लिये केन्द्रीय तथा राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण स्थापित करने की व्यवस्था।
  • अग्रिम निर्देश का प्रावधान, नामित प्रतिनिधि, दाखिला, उपचार, स्वच्छता तथा व्यक्तिगत साफ-सफाई से संबंधित महिलाओं और बच्चों के लिये विशेष धारा का प्रबंध। 
  • इलेक्ट्रो-कनवल्सिव थेरेपी तथा साइकोसर्जरी के उपयोग पर प्रतिबंध।
  • इस अधिनियम का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष आत्महत्या को अपराधीकरण के दायरे से मुक्त बनाना है, जिससे आत्महत्या के प्रयासों के दबाव का उचित प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके।

एन.सी.डी. के फ्लेक्सी पूल (flexi pool) में मानसिक स्वास्थ्य प्रोग्राम  

  • मानसिक स्वास्थ्य प्रोग्राम को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के गैर-संचारी रोगों (non-communicable diseases - NCDs) के फ्लेक्सी पूल (flexi pool) के अंतर्गत शामिल किया गया है। 
  • एन.सी.डी. के फ्लेक्सी पूल (flexi pool) हेतु आवंटित राशि को पिछले दो वर्षों में तकरीबन तीन गुना बढ़ाया गया है। यानी अब राज्यों द्वारा केंद्र-प्रायोजित योजनाओं के कोष का उपयोग विशेषज्ञों एवं अन्य सुविधाओं के भुगतान में किया जा सकता है।

“लक्ष्‍य”- प्रसव कक्ष गुणवत्ता सुधार पहल

माँ एवं नवजात शिशुओं की उच्च मृत्यु दर में कमी लाने के उद्देश्य से शिशुओं के जन्‍म के समय प्रसव कक्षों में  देखभाल की बेहतर गुणवत्तापूर्ण व्यवस्था स्थापित करना अत्‍यंत ज़रूरी होता है, ताकि माँ एवं नवजात शिशु दोनों के ही जीवन को कोई खतरा न हो।

  • इस तथ्‍य को ध्‍यान में रखते हुए स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा ‘लक्ष्‍य‘- प्रसव कक्ष गुणवत्ता सुधार पहल की शुरुआत की गई है। ‘लक्ष्‍य’ के माध्यम से प्रसव कक्षों और ऑपरेशन थियेटर में गर्भवती माँ की बेहतर देखभाल सुनिश्चित की जा सकती है। 
  • इसके साथ-साथ यह नवजात शिशुओं के जन्‍म के समय उत्पन्न होने वाली अवांछनीय प्रतिकूल स्थितियों से भी सुरक्षा प्रदान करेगी।  
  • यह पहल सरकारी मेडिकल कॉलजों के अलावा ज़िला अस्‍पतालों (District Hospitals - DHs), अधिक डिलीवरी लोड वाले उप-ज़िला अस्‍पतालों (Sub- District Hospitals – SDHs) और सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों (Community Health Centres – CHCs) में भी प्रभाव में लाई जाएगी।  

प्रसूति उच्च निर्भरता इकाइयों एवं गहन देखभाल इकाइयों के लिये परिचालन दिशा- निर्देश 

    • नवजात शिशु के जन्‍म के समय माँ की मृत्‍यु की संभावनाओं को कम करने के लिये सबसे ज़रूरी यह है कि जटिल मामलों के संदर्भ में अत्‍यधिक देखभाल सुनिश्चित की जाए।  
    • इसके लिये भारत सरकार द्वारा वर्ष 2016 में प्रसूति उच्च निर्भरता इकाइयों एवं गहन देखभाल इकाइयों की स्‍थापना हेतु परिचालन दिशा-निर्देश जारी किये गए।  
    • इन दिशा-निर्देशों के तहत प्रसूति उच्च निर्भरता इकाइयों एवं गहन देखभाल इकाइयों की एक व्‍यापक अवधारणा पेश की गई।
    • ये दिशा-निर्देश न केवल मौजूदा राष्‍ट्रीय दिशा-निर्देशों के पूरक साबित होंगे, बल्कि इनसे राज्‍यों एवं राज्‍य स्‍तरीय नीति निर्माताओं को मेडिकल कॉलेजों एवं ज़िला अस्‍पतालों में उन गहन देखभाल इकाइयों की स्‍थापना एवं परिचालन करने में भी मदद मिलेगी, जो गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को जन्‍म देने वाली माताओं को समर्पित होंगी। 

सुरक्षित प्रसव एप

      • ‘सुरक्षित प्रसव एप’ (Safe Delivery Application) एक मोबाइल हेल्‍थ टूल है, जिसका उपयोग परिधीय क्षेत्रों में शिशुओं के सामान्य एवं जटिल प्रसव का प्रबंधन करने वाले स्‍वास्‍थ्‍य कर्मचारियों के लिये किया जा सकता है। 
      • इस एप में महत्त्वपूर्ण प्रसूति प्रक्रियाओं पर नैदानिक निर्देशात्‍मक फिल्में डाली गई हैं, जिनसे स्‍वास्‍थ्‍य कर्मचारियों को अपने कौशल को व्‍यवहार में लाने में मदद मिलेगी।  इस एप को भारतीय स्थितियों के संदर्भ के अनुरूप तैयार किया गया है।

प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान Pradhan Mantri Surakshit Matritva Abhiyan (PMSMA)

स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा शुरू किये गए इस कार्यक्रम का उद्देश्य हर महीने की 9 तारीख को सभी गर्भवती महिलाओं को प्रसव-पूर्व निशुल्क सुनिश्चित, व्यापक और गुणवत्तापूर्ण सेवा प्रदान करना है।

      • 4500 से अधिक स्वयंसेवकों को सभी राज्य/संघ-शासित प्रदेशों में पी.एम.एस.एम.ए. पोर्टल पर पंजीकृत किया गया है।
      • पी.एम.एस.एम.ए. का आयोजन सभी राज्य/संघ-शासित प्रदेशों में 12500 से अधिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर किया जाता है।
      • अभियान के तहत व्यापक सेवाओं के लिये पी.एम.एस.एम.ए. साइटों पर 90 लाख से अधिक प्रसव-पूर्व परीक्षण किये गए हैं।
      • पी.एम.एस.एम.ए. के तहत 5 लाख से अधिक उच्च जोखिम वाली गर्भधारण करने वाली महिलाओं की पहचान की गई है।

राष्ट्रव्यापी डायरिया नियंत्रण पखवाड़ा (आई.डी.सी.एफ.)

स्‍वास्‍थ्य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय ने अतिसार के कारण बच्‍चों की मौत की घटनाओं की रोकथाम के लिये सघन दस्‍त नियंत्रण पखवाड़े (आई.डी.सी.एफ.) का शुभारंभ किया। मंत्रालय ने बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य के स्‍तर को दुनिया के स्‍वास्‍थ्‍य स्‍तर के समान लाने के लिये इसे राष्‍ट्रीय प्राथमिकता प्रदान की। 

      • मंत्रालय द्वारा अपनी इस पहल के माध्‍यम से दस्‍त के नियत्रंण में निवेश को प्राथमिकता देने के लिये स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों, राज्‍य सरकारों और अन्‍य हितधारकों को वरीयता दी जा रही है। 
      • इसका लक्ष्‍य दस्‍त के सबसे सस्‍ते और सबसे प्रभावकारी उपचार मौखिक पुनर्जलीकरण साल्‍ट के मिश्रण (ओ.आर.एस.) घोल और जिंक टेबलेट का इस्‍तेमाल करने के लिये जन जागरूकता पैदा करना है।
      • पखवाडे़ के दौरान गाँव, ज़िला और राज्‍य स्‍तर पर स्‍वच्‍छता के लिये गहन समुदाय जागरूकता अभियान और ओ.आर.एस. एवं जींक थेरेपी का प्रचार किया जाएगा। इस कार्यक्रम के अंतर्गत देश भर में 5 वर्ष से कम की आयु के लगभग 12 करोड़ बच्‍चों को शामिल किया जाएगा।
      • इस बीमारी की रोकथाम के लिये पहले से ही क्षमता निर्माण सभी सरकारी स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों पर बच्‍चों में दस्‍त की रोकथाम  के लिये कर्मचारियों के सेवा प्रावधानों के साथ ही विटामिन ए की आपूर्ति, शीघ्र स्‍तनपान की शुरुआत, पहले 6 माह तक बच्‍चों को केवल स्‍तनपान, समुचित पोषण जैसे उपाय लागू किये गए हैं।

राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आर.बी.एस.के.)

स्‍वास्‍थ्य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय द्वारा फरवरी 2013 में राष्‍ट्रीय बाल स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम नामक एक नई पहल की शुरुआत की गई। इसका उद्देश्‍य 0 से 18 वर्ष के 27 करोड़ से भी अधिक बच्‍चों में चार प्रकार की परेशानियों की जाँच करना है, जिनमें जन्‍म के समय किसी प्रकार के विकार, बीमारी, कमी और विकलांगता सहित विकास में रूकावट की जाँच शामिल है। 

ज़िला शुरूआती जाँच केंद्र (डीईआईसी

      • ज़िला अस्‍पताल में एक शुरुआती जाँच केंद्र (अर्ली इंटरवेंशन सेंटर) खोला जाएगा। इस केंद्र का उद्देश्‍य स्‍वास्‍थ्‍य जाँच के दौरान स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी समस्‍या वाले बच्‍चों को रेफरल सहायता उपलब्‍ध कराना है। 
      • इसकी सेवाएँ उपलब्‍ध कराने के लिये शिशु चिकित्‍सक, चिकित्‍सा अधिकारी, स्‍टाफ नर्सो, पैराचिकित्‍सक वाले एक दल की नियुक्ति की जाएगी। 
      • इसके तहत एक प्रबंधक की नियुक्ति का भी प्रावधान है जो पर्याप्त रेफरल सहायता सुनिश्चित करने के लिये सरकारी संस्‍थानों में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के बारे में पता लगाएगा। 
      • स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय के साथ विचार-विमर्श के बाद राज्‍य सरकार द्वारा तय की गई दरों पर तृतीय स्‍तर के प्रबंध के लिये निध एन.आर.एस.एम. के तहत उपलब्‍ध कराई जाएगी।

नेशनल डिवॉर्मिंग डे (एनडीडी)

      • एसटीएच संक्रमण का मुकाबला करने के लिये स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने एनडीडी नामक एक दिन की रणनीति को अपनाया है, जिसमें स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों के मंच के माध्यम से 1-19 वर्ष से आयु वर्ग के बच्चों को अल्बेंडाजोल की एक खुराक दी जाती है।
      • 88% कवरेज के साथ फरवरी और अगस्त 2017 में 50.6 करोड़ बच्चों को दो बार में इसमें शामिल किया गया।

राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके)

      • 2014 में एक व्यापक कार्यक्रम के तहत यौन प्रजनन स्वास्थ्य, पोषण, चोट लगने और हिंसा (लिंग आधारित हिंसा सहित) पर ध्यान केंद्रित किया गया।
      • स्वास्थ्य सुविधाओं, समुदाय और स्कूलों को प्लेटफॉर्म के रूप में हस्तक्षेप के लिये इस्तेमाल किया जाता है।

किशोरावस्था के अनुकूल स्वास्थ्य क्लिनिक 

      • ये किशोरों के साथ प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के संपर्क के पहले स्तर के रूप में कार्य करते हैं। आज तक देश भर में 7632 एएफएचसी स्थापित किये गए हैं और करीब 29.5 लाख किशोरों ने 2017-18 की दूसरी तिमाही के दौरान सेवाओं का लाभ उठाया है।

साप्ताहिक आयरन फोलिक एसिड सप्लीमेंटेशन (वाईफ) प्रोग्राम

      • इसमें स्कूली लड़कों और लड़कियों के लिये साप्ताहिक पर्यवेक्षण आईएफए गोलियों का प्रावधान और पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा के अलावा दो वर्षीय बच्चों और दो वर्षीय अल्बेन्डाजोल की गोलियाँ शामिल हैं। 

मासिक धर्म स्वच्छता योजना

      • यह योजना ग्रामीण इलाकों में किशोरियों के लिये लागू की जा रही है। सेनेटरी नैपकिन की खरीद को वर्ष 2014 से विकेंद्रीकृत किया गया है।
      •  टेंडर प्रक्रिया के तहत सेनिटरी नैपकिन की विकेंद्रीकृत खरीद के लिये एनएचएम के माध्यम से 42.9 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं, जबकि आठ राज्य, राज्य निधि के माध्यम से इस योजना को कार्यान्वित कर रहे हैं।

पीयर एजुकेशन प्रोग्राम

    • इस कार्यक्रम के तहत चार पीयर एडुकेटर्स (साथी) - स्वास्थ्य समस्याओं पर किशोरों को जानकारी देने के लिये प्रति 1000 आबादी के लिये दो पुरुष और दो महिलाओं का चयन किया जाता है।
    • पीयर एजुकेशन प्रोग्राम को 211 ज़िलों में लागू किया जा रहा है। अब तक 1.94 लाख पीई चुने गए हैं। इसके साथ ही एएनएम और पीयर शिक्षक के लिये प्रशिक्षण भी जारी है।
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