डेली न्यूज़ (16 May, 2023)



पश्चिमी घाट

Western Ghats


कार्बन डेटिंग

प्रिलिम्स के लिये:

कार्बन डेटिंग, ASI, ज्ञानवापी मस्जिद, शिवलिंग, कार्बन-14, उपासना स्थल अधिनियम, 1991

मेन्स के लिये:

संरचना की आयु निर्धारित करने हेतु कार्बन डेटिंग और अन्य तरीके

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archeological Survey of India- ASI) को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर स्थित 'शिवलिंग' की कार्बन डेटिंग करने की अनुमति दी।

  • याचिकाकर्त्ताओं ने ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर संबंधित वस्तु के "शिवलिंग" होने का दावा किया है। इस दावे को मुस्लिम पक्ष द्वारा विवादित माना गया है और कहा गया है कि यह वस्तु "फव्वारे" का हिस्सा है।
  • इसने वाराणसी ज़िला न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसके तहत संरचना की कार्बन डेटिंग सहित वैज्ञानिक जाँच की याचिका खारिज कर दी गई थी।

कार्बन डेटिंग: 

  • परिचय: 
    • कार्बन डेटिंग कार्बनिक पदार्थों यानी जो वस्तुएँ कभी जीवित थीं, की आयु का पता लगाने के लिये व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली विधि है।
    • सजीव वस्तुओं में विभिन्न रूपों में कार्बन होता है।
    • डेटिंग पद्धति इस तथ्य पर आधारित है कि कार्बन-14 (C-14) रेडियोधर्मी है और उचित दर पर इसका क्षय होता है।
      • C-14 कार्बन का समस्थानिक है जिसका परमाणु भार 14 है।
      • वायुमंडल में कार्बन का सबसे प्रचुर समस्थानिक C-12 है।
      • वायुमंडल में C-14 की बहुत कम मात्रा मौजूद होती है।
        • वातावरण में C-12 की तुलना में C-14 का अनुपात लगभग स्थिर है और ज्ञात है।
  • हाफ लाइफ:
    • प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से पौधे कार्बन प्राप्त करते हैं, जबकि जानवर इसे मुख्य रूप से भोजन के माध्यम से प्राप्त करते हैं। इस तथ्य के कारण कि पौधे और जानवर अपना कार्बन पर्यावरण से प्राप्त करते हैं, वे भी वातावरण में मौजूद कार्बन के लगभग बराबर अनुपात में C-12 एवं C-14 प्राप्त करते हैं।
    • जब पौधे का जीवन चक्र समाप्त हो जाता है तब वातावरण के साथ उसका संपर्क बंद हो जाता है। चूँकि C-12 स्थिर होता है, रेडियोधर्मी C-14 को आधा होने में जितना समय लगता है उसे 'अर्द्ध-जीवन/हाफ लाइफ' कहते हैं और यह समय लगभग 5,730 वर्ष होता है।
    • किसी पौधे अथवा पशु का जीवन समाप्त होने के बाद उसके अवशेषों में C-12 से C-14 के परिवर्तित होते अनुपात को मापा जा सकता है और इसका उपयोग उक्त जीव की मृत्यु के अनुमानित समय का आकलन करने के लिये किया जा सकता है।
  • निर्जीव वस्तुओं की आयु का निर्धारण: 
    • कार्बन डेटिंग को सभी परिस्थितियों में लागू नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिये इसका उपयोग चट्टानों जैसी निर्जीव वस्तुओं की आयु निर्धारित करने के लिये नहीं किया जा सकता है।
    • साथ ही कार्बन डेटिंग से 40,000-50,000 वर्ष से अधिक पुरानी वस्तुओं की आयु का पता नहीं लगाया जा सकता है।
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि हाफ लाइफ के 8-10 चक्रों के बाद C-14 की मात्रा लगभग बहुत कम हो जाती है जिसके विषय में पता नहीं लगाया जा सकता है।
    • निर्जीव वस्तुओं की आयु निर्धारित करने के लिये कार्बन के बजाय उसमें मौजूद अन्य रेडियोधर्मी तत्त्वों के क्षय को काल निर्धारण पद्धति का आधार बनाया जा सकता है।
      • इन्हें रेडियोमीट्रिक काल निर्धारण विधि कहा जाता है। इनमें से कई तत्त्वों की  हाफ लाइफ अरबों वर्षों से अधिक की होती है जो वैज्ञानिकों को बहुत पुरानी वस्तुओं की आयु का विश्वसनीय रूप से अनुमान लगाने में मदद करती है।

निर्जीव वस्तुओं के आयु निर्धारण के लिये रेडियोमीट्रिक विधि: 

  • पोटेशियम-आर्गन और यूरेनियम-थोरियम-लेड: चट्टानों की डेटिंग के लिये आमतौर पर नियोजित दो तरीके पोटेशियम-आर्गन डेटिंग और यूरेनियम-थोरियम-लेड डेटिंग हैं।
    • पोटेशियम के रेडियोधर्मी समस्थानिक का आर्गन में क्षय हो जाता है और उनका अनुपात चट्टानों की आयु के बारे में जानकारी प्रदान करने में मदद कर सकता है।
    • यूरेनियम और थोरियम में कई रेडियोधर्मी समस्थानिक होते हैं और इन सभी का स्थिर लेड परमाणु में क्षय हो जाता है। किसी भी वस्तु/सामग्री में मौजूद इन तत्त्वों के अनुपात को माप कर उसकी आयु के बारे में अनुमान लगाने के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आना: यह निर्धारित करने के तरीके भी हैं कि कोई वस्तु कितने समय तक सूर्य के प्रकाश के संपर्क में रही है। यह विभिन्न तकनीकों पर निर्भर करती है लेकिन फिर से रेडियोधर्मी क्षय पर आधारित होती है और विशेष रूप से दफन वस्तुओं या टोपोलॉजी में परिवर्तन का अध्ययन करने में उपयोगी है।
    • इनमें से सबसे साधारण को कॉस्मोजेनिक न्यूक्लाइड डेटिंग या CRN कहा जाता है, और ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ के कोर की आयु का अध्ययन करने के लिये नियमित रूप से इसका उपयोग किया जाता है।
  • अप्रत्यक्ष कार्बन डेटिंग: कुछ स्थितियों में कार्बन डेटिंग का उपयोग अप्रत्यक्ष रूप से भी किया जा सकता है।
    • एक ऐसा तरीका जिसमें विशाल बर्फ की चादरों के अंदर फँसे कार्बन डाइऑक्साइड अणुओं का अध्ययन करके ग्लेशियरों और ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ के कोर की आयु निर्धारित की जाती है।
      • फँसे हुए अणुओं का बाहरी वातावरण से कोई संपर्क नहीं होता है और वह उसी अवस्था में पाए जाते हैं जिस अवस्था में वे फँस गए थे। इनकी उम्र का निर्धारण उस समय का कच्चा अनुमान देता है जब बर्फ की चादरें बन रही थीं।

ज्ञानवापी शिवलिंग के आयु निर्धारण की सीमाएँ:

  • इस मामले में विशिष्ट सीमाएँ हैं जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित हैं और विघटनकारी तरीकों या संरचना को उखाड़ने से रोकती हैं।
  • इसलिये कार्बन डेटिंग जैसे पारंपरिक तरीके, जिसमें संरचना के नीचे फँसी हुई कार्बनिक सामग्री का विश्लेषण करना शामिल है, इस विशेष स्थिति में संभव नहीं हो सकता है।

ज्ञानवापी विवाद: 

  • ज्ञानवापी विवाद वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के इर्द-गिर्द घूमता है। हिंदू याचिकाकर्त्ताओं का दावा है कि मस्जिद एक प्राचीन हिंदू मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी। उनका तर्क है कि "शिवलिंग" की उपस्थिति मंदिर के अस्तित्त्व के प्रमाण के रूप में है। याचिकाकर्त्ताओं ने मस्जिद परिसर की बाहरी दीवार पर माँ शृंगार गौरी की पूजा का अधिकार मांगा है। 
  • हालाँकि मस्जिद की प्रबंधन समिति का कहना है कि भूमि वक्फ संपत्ति है और तर्क देती है कि उपासना स्थल अधिनियम, 1991 मस्जिद के स्वरूप में किसी भी बदलाव पर रोक लगाता है।
  • ऐतिहासिक रूप से ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण 1669 में मुगल बादशाह औरंगज़ेब के शासन काल में हुआ था। इसका निर्माण प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर के विध्वंस के बाद किया गया था। मंदिर के चबूतरे को बरकरार रखा गया था और इसे मस्जिद के आँगन के रूप में उपयोग किया गया था, जबकि मक्का की ओर एक दीवार को किबला दीवार के रूप में संरक्षित किया गया था। भगवान शिव को समर्पित वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर बाद में 18वीं शताब्दी में रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा मस्जिद के बगल में बनाया गया था।
  • पिछले कुछ वर्षों में कई दावे किये गए हैं, जिनमें से कुछ का दावा है कि मस्जिद स्थल मूल रूप से हिंदुओं की पूजा का पवित्र स्थान है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


AI का वाटर फुटप्रिंट

प्रिलिम्स के लिये:

ChatGPT, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, GTP-4, AI मॉडल

मेन्स के लिये:

संसाधन संरक्षण और तकनीकी प्रगति में संतुलन, जल संसाधनों पर AI का प्रभाव

चर्चा में क्यों?  

बहुमुखी प्रतिभा और स्वचालन क्षमता से पूर्ण OpenAI के ChatGPT जैसे AI उपकरणों की बढ़ती लोकप्रियता के साथ ही पर्यावरण पर उनके प्रभावों को लेकर चिंता जताई जा रही है।

  • हालिया अध्ययन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) मॉडल के वाटर फुटप्रिंट पर प्रकाश डाला गया है जिसमे डेटा केंद्रों के रख-रखाव और इन मॉडलों को प्रशिक्षित करने के लिये आवश्यक जल की मात्रा को चिह्नित किया गया है।

AI का वाटर फुटप्रिंट: 

  • यह जल की वह मात्रा है जिसका उपयोग विद्युत उत्पन्न करने और AI मॉडल को चालित रखने वाले डेटा केंद्रों को शीतलन प्रदान करने के लिये किया जाता है।
  • इसे दो घटकों में विभाजित किया जा सकता है: जल की प्रत्यक्ष खपत और जल की अप्रत्यक्ष खपत
  • AI का वाटर फुटप्रिंट कई कारकों के आधार पर भिन्न हो सकता है, जैसे कि AI मॉडल का प्रकार और आकार, डेटा केंद्र का स्थान एवं दक्षता, विद्युत उत्पादन के विभिन्न स्रोत।
    • जल की प्रत्यक्ष खपत से आशय उस जल से है जो डेटा सेंटर सर्वरों की शीतलन प्रक्रिया के दौरान वाष्पिकृत हो जाता है या फिर अपशिष्ट के रूप में निकलता है।
    • जल की अप्रत्यक्ष खपत का संबंध उस जल से है जिसका उपयोग डेटा सेंटर सर्वरों को ऊर्जा प्रदान करने हेतु विद्युत उत्पादन करने में किया जाता है

AI द्वारा जल खपत की मात्रा:

  • "मेकिंग AI लेस 'थर्टी:' अनकवरिंग एंड एड्रेसिंग द सीक्रेट वॉटर फुटप्रिंट ऑफ AI मॉडल्स" नामक एक अध्ययन के अनुसार, GPT-3 जैसे एक विशाल AI मॉडल को प्रशिक्षित करने में सीधे 700,000 लीटर स्वच्छ ताज़े जल की खपत हो सकती है, जो 370 BMW कारों या 320 टेस्ला इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन करने के लिये पर्याप्त है।
  • इसी अध्ययन में यह भी अनुमान लगाया गया है कि ChatGPT जैसे AI चैटबॉट के साथ बातचीत में 20-50 सवालों और जवाबों के लिये 500 मिलीलीटर तक जल की खपत हो सकती है। यह मात्रा तब तक अधिक नहीं लगती है जब तक आप यह नहीं स्वीकार करते है कि ChatGPT के 100 मिलियन से अधिक सक्रिय उपयोगकर्त्ता हैं जो एक समय में कई बातचीतों में शामिल हैं।
  • GPT-4 मॉडल का आकार विशाल होने का अनुमान है, इसलिये जल की खपत के आँकड़ों के और बढ़ने की भविष्यवाणी की गई है।
    • हालाँकि गणना के लिये सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा की कमी के कारण GPT-4 के वॉटर फुटप्रिंट का अनुमान लगाना चुनौतीपूर्ण है।
  • यद्यपि AI मॉडल का उपयोग करने वाली ऑनलाइन गतिविधियाँ डिजिटल रूप से होती हैं तथा डेटा का भौतिक भंडारण और प्रसंस्करण डेटा केंद्रों में होता है
    • डेटा केंद्र काफी ऊष्मा उत्पन्न करते हैं, जिसके लिये जल-गहन शीतलन प्रणालियों की आवश्यकता होती है, ये सामान्यतः बाष्पीकरण कूलिंग टावरों का उपयोग करते हैं।
    • प्रणाली की अखंडता को बनाए रखने के लिये उपयोग किया जाने वाला जल शुद्ध एवं ताज़ा होना चाहिये और डेटा केंद्रों को भी विद्युत उत्पादन के लिये जल की महत्त्वपूर्ण रूप से आवश्यकता होती है।

AI के वॉटर फुटप्रिंट से संबंधित चिंताएँ:

  • जल का अभाव: 
    • जल का अभाव एक वैश्विक समस्या है और AI प्रौद्योगिकियाँ समस्या को बढ़ाती हैं। AI इंफ्रास्ट्रक्चर को शीतल करने के लिये बड़ी मात्रा में ताज़े जल की आवश्यकता होती है, जो सीमित जल संसाधनों पर दबाव डालता है। 
  • पर्यावरणीय प्रभाव:  
    • AI संचालन के लिये स्वच्छ जल का निष्कर्षण जलीय जैवविविधता को नुकसान पहुँचा सकता है।
    • AI के संचालन हेतु जल उपचार और परिवहन के लिये आवश्यक ऊर्जा कार्बन उत्सर्जन तथा जलवायु परिवर्तन में योगदान करती है।
  • अस्थिर संसाधन प्रबंधन:
    • जल का उपयोग AI के संचालन में किये जाने से मानव उपभोग, कृषि और अन्य महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं के लिये पानी तक पहुँच में बाधा आ सकती है।
  • इक्विटी और सामाजिक प्रभाव:
    • जल की कमी कमज़ोर समुदायों को असमान रूप से प्रभावित करती है जो अपनी आजीविका के लिये सीमित जल की आपूर्ति पर निर्भर हैं।
    • AI की जल-गहन प्रकृति उन समुदायों, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है, के लिये जल की उपलब्धता को बाधित कर असमानताओं को बढ़ा सकती है। 
  • दीर्घकालिक स्थिरता:
    • विस्तारित AI उद्योग वाटर फुटप्रिंट मुद्दे को संबोधित किये बिना जल संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव डाल सकता है।
    • AI के विकास और जल की उपलब्धता दोनों की दीर्घकालिक स्थिरता के लिये वाटर फुटप्रिंट को संबोधित करना आवश्यक है।

AI के वाटर फुटप्रिंट को कम करने के उपाय: 

  • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना:
    • बिजली उत्पन्न करने के लिये पवन या सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग कर हम आवश्यक पानी की मात्रा को काफी कम कर सकते हैं।
  • जल-कुशल शीतलन प्रणाली लागू करना:
    • अधिकांश डेटा केंद्र, जिनमें सर्वर और अन्य हार्डवेयर होते हैं जो AI सिस्टम को शक्ति प्रदान करते हैं, जल-आधारित शीतलन प्रणाली का उपयोग करते हैं। एयर कूलिंग या डायरेक्ट-टू-चिप लिक्विड कूलिंग जैसी जल-कुशल शीतलन तकनीकों को लागू करने से उपयोग की जाने वाले पानी की मात्रा को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • जल-कुशल एल्गोरिदम विकसित करना:
    • AI एल्गोरिदम को कंप्यूटेशनल पावर की आवश्यकता को कम करके या कम पानी-गहन प्रक्रियाओं का उपयोग करने हेतु एल्गोरिदम को अनुकूलित करके अधिक जल-कुशल के तौर पर डिज़ाइन किया जा सकता है।
  • हार्डवेयर कार्यावधि में वृद्धि:  
    • हार्डवेयर के जीवनकाल को बढ़ाने से इसके उत्पादन में उपयोग किये जाने वाले जल की मात्रा कम हो सकती है। ऐसे हार्डवेयर, जो लंबे समय तक संचालित हो सकें एवं अपग्रेड करने योग्य हों, को डिज़ाइन कर हार्डवेयर को बार-बार बदलने की समस्या  को कम किया जा सकता है। 
  • ज़िम्मेदार जल प्रबंधन को बढ़ावा देना:  
    • डेटा केंद्रों और अन्य AI कंपनियों द्वारा ज़िम्मेदार जल प्रबंधन प्रथाओं को प्रोत्साहित करने से AI के वाटर फुटप्रिंट को कम करने में मदद मिल सकती है।
      • इसमें अपशिष्ट जल को पुनर्चक्रित करने, वर्षा जल संचयन प्रणालियों का उपयोग करने और जल-कुशल भू-निर्माण प्रथाओं को लागू करने जैसे उपाय शामिल हैं।
    • मानकों, लक्ष्यों या करों को निर्धारित करके AI के वाटर फुटप्रिंट को कम करने हेतु प्रोत्साहित करने या अनिवार्य करने वाली नीतियों एवं विनियमों को अपनाना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)

  1. औद्योगिक इकाइयों में विद्युत की खपत को कम करना 
  2. सार्थक लघु कहानियों और गीतों की रचना 
  3. रोगों का निदान 
  4. टेक्स्ट-से-स्पीच (Text-to-Speech) में परिवर्तन 
  5. विद्युत ऊर्जा का बेतार संचरण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 3 और 5
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


सकारात्मक स्वदेशीकरण की चौथी सूची

प्रिलिम्स के लिये:

रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (DPSU), सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची (PIL), सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME), मिशन डेफस्पेस, iDEX योजना, रक्षा औद्योगिक कॉरिडोर, NETRA 

मेन्स के लिये:

भारत में रक्षा क्षेत्र के स्वदेशीकरण की स्थिति

चर्चा में क्यों? 

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने और आयात को कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रम (DPSU) को सकारात्मक स्वदेशीकरण की चौथी सूची (PIL) के लिये मंज़ूरी मिल गई है।

  • इस सूची में आयात प्रतिस्थापन मूल्य के लगभग 715 करोड़ रुपए के रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण 928 लाइन रिप्लेसमेंट यूनिट (LRU), उप-प्रणालियाँ, पुर्जे और घटक शामिल हैं।

सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची:

  • परिचय:  
    • सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची की अवधारणा इस बात पर केंद्रित है कि भारतीय सशस्त्र बल, जिसमें सेना, नौसेना और वायु सेना शामिल हैं, विशेष रूप से घरेलू निर्माताओं से सूचीबद्ध वस्तुओं को प्राप्त करेंगे। 
      • इन निर्माताओं में निजी क्षेत्र या रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (DPSU) की संस्थाएँ शामिल हो सकती हैं।
    • सकारात्मक स्वदेशीकरण की चौथी सूची पिछली तीन सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियों का अनुसरण करती है जो क्रमशः दिसंबर 2021, मार्च 2022 और अगस्त 2022 में प्रकाशित हुई थीं। 
      • अब तक 310 वस्तुओं का सफलतापूर्वक स्वदेशीकरण किया जा चुका है, जिनका विश्लेषण इस प्रकार है: प्रथम सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची- 262 वस्तुएँ, द्वितीय सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची- 11 वस्तुएँ और तृतीय सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची- 37 वस्तुएँ।
      • यह पहल भारत की 'आत्मनिर्भरता' के दृष्टिकोण के अनुरूप है और इसका उद्देश्य घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देना, निवेश बढ़ाना तथा आयात पर निर्भरता को कम करना है।
  • स्वदेशीकरण और आंतरिक विकास:
    • स्वदेशीकरण के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये DPSU सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) तथा भारत के निजी उद्योग की क्षमताओं के माध्यम से आंतरिक विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए 'मेक' श्रेणी के तहत विभिन्न मार्गों का उपयोग करना है।
    • यह दृष्टिकोण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा और रक्षा क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करेगा। इसके अतिरिक्त यह पहल अकादमिक और अनुसंधान संस्थानों को सक्रिय रूप से शामिल करके घरेलू रक्षा उद्योग की डिज़ाइन क्षमताओं के विकास को बढ़ावा देगी। 
  • खरीद और उद्योग की भागीदारी:
    • DPSU चौथी सकारात्मक सूची में सूचीबद्ध वस्तुओं हेतु खरीद कार्रवाई शुरू करने के लिये तैयार है। प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने हेतु सृजन पोर्टल डैशबोर्ड को विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया है।

भारत में रक्षा क्षेत्र के स्वदेशीकरण की स्थिति:

  • स्वदेशीकरण की आवश्यकता:
    • वर्ष 2013-17 और 2018-22 के बीच भारत को हथियारों के आयात में 11% की गिरावट आई है, हालाँकि देश वर्ष 2022 में भी सैन्य हार्डवेयर के मामले में विश्व का शीर्ष आयातक है, यह बात स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की एक रिपोर्ट में उजागर हुई है।
  • वर्तमान अनुमान और लक्ष्य:
    • वर्तमान अनुमान के अनुसार अगले पाँच वर्षों में भारत का रक्षात्मक पूंजीगत व्यय 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने की संभावना है।
    • रक्षा मंत्रालय ने अगले पाँच वर्षों में रक्षा निर्माण में 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर (1.75 लाख करोड़ रुपए) का टर्नओवर लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसमें 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के सैन्य हार्डवेयर का निर्यात लक्ष्य भी शामिल है। 
  • सरकारी पहल:
    • खरीद प्राथमिकता: रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP)- 2020 बाय इंडियन (IDDM) श्रेणी के तहत घरेलू स्रोतों से पूंजीगत वस्तुओं की खरीद को प्राथमिकता देती है।
    • उदारीकृत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति: FDI नीति अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी हेतु रक्षा उद्योग में स्वचालित मार्ग के तहत 74% FDI की अनुमति देती है और सरकारी मार्ग के माध्यम से 100% की अनुमति है। 
    • मिशन डेफस्पेस: अंतरिक्ष क्षेत्र में रक्षा संबंधी नवाचारों और विकास को बढ़ावा देने के लिये मिशन डेफस्पेस लॉन्च किया गया है।
    • रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (iDEX) योजना: iDEX योजना में रक्षा नवाचार परियोजनाओं में स्टार्टअप और MSME शामिल हैं, जो उनकी भागीदारी और योगदान को बढ़ावा देते हैं।
    • रक्षा औद्योगिक गलियारे: उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो रक्षा औद्योगिक गलियारे स्थापित किये गए हैं, जो रक्षा विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने एवं निवेश आकर्षित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
  • भारत में स्वदेशी रक्षा शस्त्रागार के उदाहरण:  
    • तेजस विमान: तेजस एक हल्का, बहु-भूमिका वाला सुपरसोनिक विमान है जिसे भारत में स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और विकसित किया गया है।
    • अर्जुन टैंक: रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defense Research and Development Organization- DRDO) द्वारा विकसित, अर्जुन टैंक तीसरी पीढ़ी का मुख्य युद्धक टैंक है जो बख्तरबंद वाहन प्रौद्योगिकी में भारत की विशेषज्ञता को प्रदर्शित करता है।
    • नेत्र (NETRA): नेत्र एक हवाई पूर्व चेतावनी और नियंत्रण प्रणाली है जिसे घरेलू स्तर पर विकसित किया गया है, जो महत्त्वपूर्ण निगरानी एवं टोही क्षमता प्रदान करती है।
    • अस्त्र (ASTRA): भारत ने सफलतापूर्वक अस्त्र विकसित किया है, जो देश की वायु रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने हेतु सभी मौसम में दृश्य-श्रेणी से परे हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल है।
    • LCH 'प्रचंड': यह पहला स्वदेशी मल्टी-रोल कॉम्बैट हेलीकॉप्टर है जिसमें शक्तिशाली ज़मीनी हमले एवं हवाई युद्ध क्षमता है।
    • ICG ALH स्क्वाड्रन: भारतीय तट रक्षक की क्षमताओं को और मज़बूत करने हेतु जून तथा दिसंबर 2022 में पोरबंदर एवं चेन्नई में ALH Mk-III स्क्वाड्रनों को कमीशन किया गया था। 
  • चुनौतियाँ:  
    • तकनीकी अंतराल:त्याधुनिक रक्षा तकनीकों का विकास करना और उन्नत क्षमताएँ प्राप्त करना भारत हेतु गंभीर चुनौती है।
      • देश पारंपरिक रूप से महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों हेतु विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भर रहा है और तकनीकी अंतर को समाप्त करने हेतु अनुसंधान एवं विकास (Research and Development- R&D) में पर्याप्त निवेश के साथ-साथ उद्योग तथा शिक्षा जगत के सहयोग की आवश्यकता है।
    • अवसंरचना और विनिर्माण आधार: स्वदेशी उत्पादन को समर्थन देने हेतु मज़बूत रक्षा औद्योगिक आधार और अवसंरचना तैयार करना बड़ी चुनौती है।
      • भारत में रक्षा निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को अवसंरचना में सुधार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, कुशल कार्यबल विकास और सुव्यवस्थित खरीद प्रक्रियाओं के साथ आधुनिक बनाने की आवश्यकता है।
    • परीक्षण और प्रमाणन: कठोर परीक्षण और प्रमाणन प्रक्रियाओं के माध्यम से स्वदेशी रूप से विकसित रक्षा प्रणालियों की गुणवत्ता, विश्वसनीयता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।
      • उपयोगकर्त्ताओं और निर्यात बाज़ारों का विश्वास हासिल करने के लिये मज़बूत परीक्षण केंद्र विकसित करना और प्रभावी गुणवत्ता नियंत्रण तंत्र स्थापित करना आवश्यक है। 

आगे की राह  

  • रक्षा नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण: रक्षा संगठनों, अनुसंधान संस्थानों, स्टार्टअप्स और प्रौद्योगिकी कंपनियों को एकजुट करने के लिये एक समर्पित रक्षा नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित किये जाने की आवश्यकता है।
  • इसकी सहायता से स्वदेशी रक्षा क्षमताओं में वृद्धि हेतु सहयोग, ज्ञान साझा करने और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • रक्षा प्रौद्योगिकी त्वरक: अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों पर काम कर रहे स्टार्टअप और लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) को सलाह, वित्त तथा संसाधन प्रदान करने के उद्देश्य से रक्षा प्रौद्योगिकी त्वरक की स्थापना की जानी चाहिये।
  • त्वरकों द्वारा रक्षा संगठनों के साथ जुड़ने, परीक्षण केंद्रों तक पहुँच प्रदान करने और नियामक प्रक्रियाओं में सहायता करने जैसी सुविधाओं को सरल बनाया जाना चाहिये।
  • रक्षा कौशल और प्रशिक्षण कार्यक्रम: रक्षा से संबंधित विषयों में शिक्षा एवं उद्योग के बीच के अंतर को कम करने के लिये कौशल तथा प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करने की आवश्यकता है।
  • रक्षा प्रौद्योगिकी आवश्यकताओं के अनुरूप विशेष पाठ्यक्रम और प्रमाणन तैयार करने के लिये विश्वविद्यालयों तथा तकनीकी संस्थानों के साथ मिलकर काम करना इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. भारत के रक्षा क्षेत्र के संदर्भ में “ध्रुव” क्या है? (2008)

(a) विमान ले जाने वाले युद्धपोत
(b) मिसाइल ले जाने वाली पनडुब्बी
(c) उन्नत हल्के हेलीकाप्टर
(d) अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल

उत्तर: (c)


मेन्स: 

प्रश्न. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थिरता के संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2020

प्रश्न. S-400 हवाई रक्षा प्रणाली, इस समय विश्व में उपलब्ध किसी भी अन्य प्रणाली की तुलना में किस प्रकार तकनीकी रूप से श्रेष्ठ है? (2021) 

स्रोत: पी.आई.बी.


SCO ने DPI को समर्थन देने के भारत के प्रस्ताव को अपनाया

प्रिलिम्स के लिये:

SCO, DPI, आधार, UPI, डिजिलॉकर

मेन्स के लिये:

SCO, डिजिटल पब्लिक गुड्स की अवधारणा और इसकी उपयोगिता, डिजिटल साधनों के माध्यम से सुशासन।

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) ने देश के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे (DPI) की स्वीकृति के साथ ही विकास को बढ़ावा देने हेतु भारत के प्रस्ताव को अपनाया है। 

  • यह कदम डिजिटल क्षेत्र में भारत के नेतृत्व और क्षेत्र में डिजिटल विभाजन को पाटने की इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

भारत के DPI प्रस्ताव में शामिल हैं:

  • भारत का DPI प्रस्ताव SCO के सदस्य राज्यों द्वारा भारत के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे के विकास और इसे अपनाने का समर्थन करता है।
  • भारत के DPI प्रस्ताव में SCO सदस्यों के साथ डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे जैसे- डिज़ाइन, विकास, कार्यान्वयन, मूल्यांकन और शासन के विभिन्न पहलुओं पर सहयोग करना शामिल है।

भारत के DPI प्रस्ताव का SCO सदस्यों को लाभ: 

  • उन्हें ओपन और अंतर-संचालानीयता API के आधार पर अपने स्वयं के DPI विकसित करने का मॉडल पेश करना।
  • यह प्रस्ताव SCO सदस्यों को क्षेत्र में कनेक्टिविटी, व्यापार, पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सुरक्षा बढ़ाने के अपने सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
  • यह SCO सदस्यों को डिजिटल युग में डिजिटल डिवाइड, साइबर खतरों, डेटा सुरक्षा और गोपनीयता की चुनौतियों का समाधान करने में भी मदद कर सकता है। 

डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा (DPI): 

  • डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा (DPI) डिजिटल पहचान, भुगतान अवसंरचना और डेटा विनिमय समाधान जैसे ब्लॉक या प्लेटफाॅर्म को संदर्भित करता है जो देशों को अपने नागरिकों को आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने, उन्हें सशक्त बनाने और डिजिटल समावेशन को सक्षम करके उनके जीवन में सुधार करने में मदद करता है।
  • भारत, इंडिया स्टैक के माध्यम से सभी तीन मूलभूत DPI- डिजिटल पहचान (आधार), रीयल-टाइम फास्ट पेमेंट (UPI) और डेटा एम्पावरमेंट प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर (DEPA) पर निर्मित अकाउंट एग्रीगेटर विकसित करने वाला पहला देश बन गया।

India-Stack

शंघाई सहयोग संगठन: 

  • परिचय: 
    • SCO एक क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठन है जो सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में अपने सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • उत्पत्ति: 
    • वर्ष 2001 में SCO के गठन से पहले कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिज़स्तान, रूस और ताजिकिस्तान शंघाई फाइव के सदस्य थे।
      • वर्ष 2001 में संगठन में उज़्बेकिस्तान के शामिल होने के बाद शंघाई फाइव का नाम बदलकर SCO कर दिया गया।
    • भारत और पाकिस्तान 2017 में इसके सदस्य बने।
    • पर्यवेक्षक देश: ईरान और बेलारूस।
      • वर्ष 2023 में जब भारत इस फोरम का अध्यक्ष होगा, ईरान सबसे बड़े क्षेत्रीय संस्थान- SCO का सबसे नया सदस्य बनेगा।
  • संरचना: 
    • राज्य परिषद के प्रमुख: यह SCO का सर्वोच्च निकाय है जो आंतरिक कामकाज़ और अन्य राज्यों तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ संवाद को लेकर फैसला करता है एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार करता है।
    • सरकारी परिषद के प्रमुख: यह SCO के भीतर आर्थिक क्षेत्रों से संबंधित मुद्दों पर बजट को मंज़ूरी देते हैं, विचार करते हैं और निर्णय लेते हैं।
    • विदेश मामलों के मंत्रियों की परिषद: यह परिषद दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों से संबंधित मुद्दों पर विचार करती है।
    • क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS): इसकी स्थापना आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद जैसे मुद्दों से निपटने के लिये की गई है।
  • राजभाषा:
    • SCO सचिवालय की आधिकारिक कामकाज़ी भाषा रूसी और चीनी है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018) 

  1. आधार कार्ड का उपयोग नागरिकता या अधिवास प्रमाण के रूप में किया जा सकता है।
  2. एक बार जारी करने के पश्चात इसे निर्गत करने वाला प्राधिकरण आधार संख्या को निष्क्रिय या लुप्त नहीं कर सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d) 


मेन्स:

प्रश्न. एस.सी.ओ. के लक्ष्यों और उद्देश्यों का विश्लेषणात्मक परीक्षण कीजिये। भारत के लिये इसका क्या महत्त्व है? (2021) 

स्रोत: फाइनेंसियल एक्सप्रेस


यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2013

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013, विशाखा दिशा-निर्देश, वन स्टॉप सेंटर योजना, नारी शक्ति पुरस्कार

मेन्स के लिये:

भारत में महिला सुरक्षा से संबंधित पहल

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में एक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) (Prevention of Sexual Harassment Act- PoSH) अधिनियम, 2013 के कार्यान्वयन को लेकर चिंता व्यक्त की।

  • न्यायालय ने इस अधिनियम से संबंधित गंभीर खामियों और अनिश्चितताओं पर प्रकाश डाला है जिसके कारण कई कामकाज़ी महिलाओं को अपनी नौकरी छोड़ने के लिये मजबूर होना पड़ा। 

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्यक्त प्रमुख चिंताएँ:  

  • PoSH अधिनियम के कार्यान्वयन में गंभीर खामियाँ और अनिश्चितताएँ पाई गई हैं, उदाहरण के लिये 30 राष्ट्रीय खेल संघों में से केवल 16 संघों द्वारा अनिवार्य आंतरिक शिकायत समितियों (Internal Complaints Committees- ICCs) का गठन किया गया था
    • यह PoSH अधिनियम को लागू करने के लिये ज़िम्मेदार राज्य के अधिकारियों, सार्वजनिक प्राधिकरणों, निजी उपक्रमों, संगठनों और संस्थानों पर खराब प्रभाव डालता है।
  • इन खामियों के कारण महिलाओं के आत्मसम्मान, भावनात्मक कल्याण और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त यह महिलाओं को यौन उत्पीड़न की घटनाओं की रिपोर्ट करने से हतोत्साहित करता है क्योंकि वे इसके परिणाम के बारे में अनिश्चित होती हैं और उनमें न्याय व्यवस्था को लेकर विश्वास की कमी भी होती है।
  • सिफारिश:  
    • यदि कार्यस्थल का माहौल शत्रुतापूर्ण, असंवेदनशील और अनुत्तरदायी बना रहता है, तो अधिनियम केवल औपचारिक बनकर रह जाएगा। कार्यस्थल पर महिलाओं की गरिमा और सम्मान सुनिश्चित करने हेतु अधिनियम को प्रभावशाली रूप से लागू किया जाना चाहिये।
    • प्रासंगिक निकायों ने अधिनियम के तहत ICC, स्थानीय समितियों (LC) और आंतरिक समितियों (IC) का गठन किया है या नहीं, यह सत्यापित करने के लिये एक समयबद्ध अभ्यास प्रक्रिया की आवश्यकता है।
      • निकायों को अपनी संबंधित समितियों का विवरण अपनी वेबसाइट्स पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया गया है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी मंत्रालयों, निकायों को अधिनियम 2013 के आदेशों का पालन करने के लिये आठ सप्ताह का समय दिया है।

PoSH अधिनियम, 2013: 

  • परिचय: 
    • PoSH अधिनियम 2013 में भारत सरकार द्वारा कार्यस्थल पर महिलाओं द्वारा सामना किये जाने वाले यौन उत्पीड़न के मुद्दे को हल करने के लिये बनाया गया एक कानून है।
      • अधिनियम का उद्देश्य महिलाओं के लिये एक सुरक्षित और अनुकूल कार्य वातावरण बनाना तथा उन्हें यौन उत्पीड़न के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करना है।
    • PoSH अधिनियम यौन उत्पीड़न को परिभाषित करता है जिसमें शारीरिक संपर्क और यौन प्रस्ताव, यौन अनुग्रह के लिये मांग या अनुरोध, अश्लील टिप्पणी करना, अश्लील चित्र दिखाना तथा किसी भी अन्य अवांछित शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिक व्यवहार जैसे अवांछित कार्य शामिल हैं। 
  • पृष्ठभूमि: सर्वोच्च न्यायालय ने विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य 1997 मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय में 'विशाखा दिशा-निर्देश' जारी किये। 
    • इन दिशा-निर्देशों में कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 ("यौन उत्पीड़न अधिनियम") को आधार बनाया। 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 15 (केवल धर्म, जाति, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव के खिलाफ) सहित संविधान के कई प्रावधानों से शक्ति प्राप्त की, साथ ही प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और मानदंडों जैसे सामान्य अनुशंसाओं का भी चित्रण किया, जैसे कि महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW), जिसे भारत ने वर्ष 1993 में अनुसमर्थित किया।
  • प्रमुख प्रावधान: 
    • रोकथाम और निषेध: अधिनियम कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न को रोकने और प्रतिबंधित करने के लिये नियोक्ताओं पर कानूनी दायित्व डालता है।
    • आंतरिक शिकायत समिति (ICC): यौन उत्पीड़न की शिकायतें प्राप्त करने और उनका समाधान करने के लिये नियोक्ताओं को 10 या अधिक कर्मचारियों वाले प्रत्येक कार्यस्थल पर एक ICC का गठन करना आवश्यक है।
      • शिकायत समितियों के पास साक्ष्य एकत्र करने के लिये दीवानी अदालतों की शक्तियाँ हैं।
    • नियोक्ताओं के कर्तव्य: नियोक्ताओं को जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने चाहिये, एक सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करना चाहिये और कार्यस्थल पर POSH अधिनियम के बारे में जानकारी प्रदर्शित करनी चाहिये।
    • शिकायत तंत्र: अधिनियम शिकायत दर्ज करने, पूछताछ करने और शामिल पक्षों को उचित अवसर प्रदान करने के लिये एक प्रक्रिया निर्धारित करता है।
    • दंड: अधिनियम के प्रावधानों का पालन न करने पर दंड का प्रावधान है, जिसमें ज़ुर्माना और व्यवसाय लाइसेंस रद्द करना शामिल है। 

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न पर जस्टिस वर्मा समिति की सिफारिशें: 

  • घरेलू कामगारों को PoSH अधिनियम के दायरे में शामिल किया जाना चाहिये।
  • यह एक सुलह प्रक्रिया का प्रस्ताव करता है जहाँ शिकायतकर्त्ता और प्रतिवादी को शुरू में बातचीत और समझौते के माध्यम से मुद्दे को हल करने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है।
  • नियोक्ता को यौन उत्पीड़न का शिकार हुई महिला को मुआवज़ा देना चाहिये।
  • PoSH अधिनियम में आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee- ICC) के बजाय एक रोज़गार न्यायाधिकरण की स्थापना करना।

महिला सुरक्षा से संबंधित अन्य पहलें: 

स्रोत: द हिंदू


चक्रवात मोखा

प्रिलिम्स के लिये:

चक्रवात मोखा, IMD, चक्रवात, अम्फान, ताउते, WMO, मानसून 

मेन्स के लिये:

चक्रवात, इसके प्रकार और भारत में चक्रवात की घटना

चर्चा में क्यों? 

चक्रवाती मोखा, जिसने हाल ही में म्याँमार को प्रभावित किया है, को भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (Indian Meteorological Department- IMD) द्वारा अत्यधिक गंभीर  चक्रवाती तूफान और विश्व भर की मौसम वेबसाइट ज़ूम अर्थ द्वारा 'सुपर साइक्लोन' के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

  • दक्षिण कोरिया के जेजू नेशनल यूनिवर्सिटी में टायफून रिसर्च सेंटर के अनुसार, वर्ष 2023 में यह पृथ्वी पर अब तक का सबसे शक्तिशाली चक्रवात बन गया है।
  • इस वर्ष अब तक उत्तरी और दक्षिणी दोनों गोलार्द्धों में 16 चक्रवात आ चुके हैं।

मोचा/मोखा: 

  • नामकरण: 
    • यमन ने 'मोचा' नाम सुझाया है जिसका उच्चारण मोखा के रूप में किया जाना चाहिये।
    • इस चक्रवात का नाम लाल सागर के एक बंदरगाह शहर के नाम पर रखा गया है जो अपने कॉफी उत्पादन के लिये जाना जाता है। इस शहर का लोकप्रिय पेय कैफे मोचा के रूप में प्रसिद्ध है।
  • उत्पत्ति:  
    • इसकी उत्पत्ति बंगाल की खाड़ी में हुई थी।
  • तीव्रता: 
    • इस चक्रवात में हवा की गति 277 किलोमीटर प्रति घंटे रिकॉर्ड की गई। चक्रवात मोखा अरब सागर और बंगाल की खाड़ी दोनों में वर्ष 1982 के बाद से उत्तर हिंद महासागर में गति और तीव्रता के मामले में चक्रवात फानी के साथ सबसे मज़बूत चक्रवात बन गया।
      • वर्ष 2020 में देखा गया अम्फान चक्रवात 268 किलोमीटर प्रति घंटे का था जबकि वर्ष 2021 में ताउते 222 किलोमीटर प्रति घंटे और गोनू ने वर्ष 2007 में 268 किलोमीटर प्रति घंटे की गति दर्ज की थी।

चक्रवात:

  • परिचय: 
    • चक्रवात एक कम दबाव वाले क्षेत्र के आसपास तेज़ी से हवा का संचार है। हवा का संचार उत्तरी गोलार्द्ध में वामावर्त और दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणावर्त दिशा में होता है।
    • चक्रवात विनाशकारी तूफान और खराब मौसम के साथ उत्पन्न होते हैं।
      • साइक्लोन शब्द ग्रीक शब्द साइक्लोस से लिया गया है जिसका अर्थ है साँप की कुंडलियांँ (Coils of a Snake)। यह शब्द हेनरी पेडिंगटन (Henry Peddington) द्वारा दिया गया था क्योंकि बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उठने वाले उष्णकटिबंधीय तूफान समुद्र के कुंडलित नागों की तरह दिखाई देते हैं।
  • प्रकार: 
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवात: विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) मौसम प्रणालियों को कवर करने के लिये 'उष्णकटिबंधीय चक्रवात' शब्द का उपयोग करता है जिसमें हवाएँ 'आँधी बल' (न्यूनतम 63 किमी प्रति घंटा) से तीव्र होती हैं।
      • उष्णकटिबंधीय चक्रवात मकर और कर्क रेखा के बीच के क्षेत्र में विकसित होते हैं।
    • अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय चक्रवात: इन्हें शीतोष्ण चक्रवात या मध्य अक्षांश चक्रवात या वताग्री चक्रवात या लहर चक्रवात भी कहा जाता है।
      • अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय चक्रवात समशीतोष्ण क्षेत्रों और उच्च अक्षांश क्षेत्रों में उत्पन्न होते हैं, हालाँकि वे ध्रुवीय क्षेत्रों में उत्पत्ति के कारण जाने जाते हैं।

उष्णकटिबंधीय चक्रवात:

  • परिचय: 
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवात एक तीव्र गोलाकार तूफान है जो गर्म उष्णकटिबंधीय महासागरों में उत्पन्न होता है और कम वायुमंडलीय दबाव, तेज़ हवाएँ व भारी बारिश इसकी विशेषताएँ हैं।
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की विशिष्ट विशेषताओं में एक चक्रवात की आंँख (Eye) या केंद्र में साफ आसमान, गर्म तापमान और कम वायुमंडलीय दबाव का क्षेत्र होता है।
    • इस प्रकार के तूफानों को उत्तरी अटलांटिक और पूर्वी प्रशांत में हरिकेन (Hurricanes) तथा दक्षिण-पूर्व एशिया एवं चीन में टाइफून (Typhoons) कहा जाता है। दक्षिण-पश्चिम प्रशांत व हिंद महासागर क्षेत्र में इसे उष्णकटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones) तथा उत्तर-पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में विली-विलीज़ (Willy-Willies) कहा जाता है।
    • इन तूफानों या चक्रवातों की गति उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई की दिशा के विपरीत अर्थात् वामावर्त (Counter Clockwise) और दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणावर्त (Clockwise) होती है।
  • गठन की स्थितियाँ:
    • उष्णकटिबंधीय तूफानों के बनने और उनके तीव्र होने हेतु अनुकूल परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं:
      • 27 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वाली एक बड़ी समुद्री सतह।
      • कोरिओलिस बल की उपस्थिति।
      • ऊर्ध्वाधर/लंबवत हवा की गति में छोटे बदलाव।
      • पहले से मौजूद कमज़ोर निम्न-दबाव क्षेत्र या निम्न-स्तर-चक्रवात परिसंचरण।
      • समुद्र तल प्रणाली के ऊपर विचलन (Divergence)।

Tropical-cyclone

निम्न दाब प्रणाली की तीव्रता के आधार पर वर्गीकरण: 

  • IMD ने बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में निम्न दाब प्रणालियों को नुकसान पहुँचाने की उनकी क्षमता के आधार पर वर्गीकृत करने हेतु मानदंड विकसित किया है जिसे WMO द्वारा अपनाया गया है।

नोट: 1 नॉट - 1.85 किमी प्रति घंटा

चक्रवातों के नाम के निर्धारण की प्रक्रिया:

  • विश्व भर में हर महासागर बेसिन में बनने वाले चक्रवातों को उष्णकटिबंधीय चक्रवात चेतावनी केंद्र (Tropical Cyclone Warning Centres- TCWCs) और क्षेत्रीय विशेष मौसम विज्ञान केंद्र (Regional Specialised Meteorological Centres- RSMC) द्वारा नामित किया जाता है। भारत मौसम विज्ञान विभाग और पाँच TCWCs सहित दुनिया में छह क्षेत्रीय विशेष मौसम विज्ञान केंद्र हैं।
    • विश्व में छह RSMC हैं, जिनमें भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) और पाँच TCWCs शामिल हैं।
  • वर्ष 2000 में संगठित हिंद महासागर क्षेत्र के आठ देश (बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्याँमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका तथा थाईलैंड) एक साथ मिलकर आने वाले चक्रवातों के नाम तय करते हैं। जैसे ही चक्रवात इन आठों देशों के किसी भी हिस्से में पहुँचता है, सूची से अगला या दूसरा सुलभ नाम इस चक्रवात का रख दिया जाता है।
  • यह सूची प्रत्येक राष्ट्र द्वारा प्रस्ताव प्रस्तुत करने के बाद WMO/ESCAP पैनल ऑन ट्रॉपिकल साइक्लोन (PTC) द्वारा तैयार की गई थी।
    • WMO/ESCAP का विस्तार करते हुए वर्ष 2018 में पाँच और देशों- ईरान, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यमन को शामिल किया गया।

भारत में चक्रवात की घटना:

  • भारत में द्विवार्षिक चक्रवात का मौसम होता है जो मार्च से मई और अक्तूबर से दिसंबर के बीच का समय है लेकिन दुर्लभ अवसरों पर जून और सितंबर के महीनों में भी चक्रवात आते हैं।
  • सामान्यत: उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र (बंगाल की खाड़ी और अरब सागर) में उष्णकटिबंधीय चक्रवात पूर्व-मानसून (अप्रैल से जून माह) तथा मानसून पश्चात् (अक्तूबर से दिसंबर) की अवधि के दौरान विकसित होते हैं।
  • मई से जून और अक्तूबर से नवंबर माह में गंभीर तीव्रता वाले चक्रवात उत्पन्न होते हैं जो भारतीय तटों को प्रभावित करते हैं। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) अक्षांशों में दक्षिणी अटलांटिक और दक्षिण-पूर्वी प्रशांत क्षेत्रों में चक्रवात उत्पन्न नहीं होता। इसके क्या कारण हैं? (2015) 

(a) समुद्री पृष्ठों के तापमान निम्न होते हैं
(b) अंतःउष्णकटिबंधीय अभिसारी क्षेत्र (इंटर ट्रॉपिकल कन्वर्जेन्स ज़ोन) बिरले ही होहोते हैं
(c) कोरिऑलिस बल अत्यंत दुर्बल होता है
(d) उन क्षेत्रों में भूमि मौजूद नहीं होती

उत्तर: (b) 

व्याख्या: 

  • दक्षिण अटलांटिक और दक्षिण-पूर्वी प्रशांत महासागर में चक्रवातों की कमी का सबसे प्रमुख कारण इस क्षेत्र में अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) की दुर्लभ घटना है।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति तब तक मुश्किल या लगभग असंभव हो जाती है, जब तक कि ITCZ द्वारा सिनॉप्टिक वोर्टिसिटी (यह क्षोभमंडल में एक दक्षिणावर्त या वामावर्त चक्रण है) और अभिसरण (यानी बड़े पैमाने पर चक्रण एवं तडित झंझा गतिविधि) उत्पन्न नहीं हो जाती है।

अतः विकल्प (b) सही उत्तर है


मेन्स:

प्रश्न. भारत के पूर्वी तट पर हाल ही में आए चक्रवात को "फाईलिन" कहा गया। विश्व भर में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को कैसे नाम दिया जाता है? विस्तार से बताइये। (2013) 

प्रश्न. भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा चक्रवात प्रवण क्षेत्रों के लिये मौसम संबंधी चेतावनियों हेतु निर्धारित  रंग-संकेत के अर्थ पर चर्चा कीजिये।(2022) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ