विंडफॉल टैक्स
प्रिलिम्स के लिये:विंडफॉल टैक्स, रूस-यूक्रेन संघर्ष, कोविड-19, राजकोषीय नीति। मेन्स के लिये:विंडफॉल टैक्स से संबंधित तर्क और मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त मंत्रालय ने जुलाई 2022 में घरेलू कच्चे तेल उत्पादकों पर विंडफॉल टैक्स /अप्रत्याशित कर लगाए जाने को उचित ठहराते हुए कहा है कि यह तदर्थ (अचानक बनाया या लिया गया) कदम नहीं है, बल्कि उद्योग के साथ पूर्ण परामर्श के बाद उठाया गया है।
- भारत के अलावा यूनाइटेड किंगडम, इटली और जर्मनी सहित कई देशों ने पहले ही ऊर्जा कंपनियों के सुपर नॉर्मल प्रॉफिट पर अप्रत्याशित लाभ कर (Windfall Profit Tax) लगा दिया है या ऐसा करने पर विचार कर रहे हैं।
विंडफॉल टैक्स:
- परिचय:
- विंडफॉल टैक्स किसी विशेष कंपनी या उद्योग को हुए अप्रत्याशित बढ़े मुनाफे पर लगाईं गई उच्च कर दर है। उदाहरण के लिये रूस-यूक्रेन संघर्ष के परिणामस्वरूप ऊर्जा मूल्य-वृद्धि।
- ये ऐसे लाभ हैं जिन्हें फर्म द्वारा किसी सक्रिय निवेश रणनीति या व्यवसाय के विस्तार के लिये ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
- अप्रत्याशित लाभ को "बिना किसी अतिरिक्त प्रयास या व्यय के आय में अनर्जित, अप्रत्याशित लाभ" के रूप में परिभाषित किया गया है।
- सरकारें आमतौर पर इस तरह के मुनाफे पर कर की सामान्य दरों के ऊपर पूर्वव्यापी रूप से एकमुश्त कर लगाती हैं, जिसे विंडफॉल टैक्स कहा जाता है।
- एक क्षेत्र जहाँ इस तरह के करों पर नियमित रूप से चर्चा की जाती है, वह है तेल बाज़ार, जहाँ कीमतों में उतार-चढ़ाव से उद्योग को अस्थिर या अनिश्चित लाभ होता है।
- औचित्य:
- अप्रत्याशित लाभ के पुनर्वितरण सहित कई कारणों से दुनिया भर की सरकारों द्वारा विंडफॉल टैक्स को पेश किया गया है, जब उपभोक्ता वस्तुओं की उच्च कीमतों से उत्पादकों को लाभ होता है, साथ ही सरकार को भी सामाजिक कल्याण योजनाओं के वित्तपोषण हेतु राजस्व की प्राप्ति होती है।
देशों द्वारा विंडफॉल टैक्स लगाने का कारण:
- पिछले वर्ष के अंत से और चालू वर्ष की पहली दो तिमाहियों में तेल, गैस एवं कोयले की कीमतों में तेज़ वृद्धि देखी गई है, हालाँकि हाल ही में इनमें कमी आई है।
- यह वृद्धि कारकों के संयोजन से उत्पन्न हुई है, जिसमें कोविड-19 का सामना करने हेतु आर्थिक सुधार के दौरान ऊर्जा की मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन जैसे कारक शामिल है, जो यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण और अधिक बढ़ गया है।
- रूस-यूक्रेन संघर्ष के परिणामस्वरूप महामारी से उबरने और आपूर्ति के मुद्दों ने ऊर्जा की मांग को बढ़ा दिया, जिससे वैश्विक कीमतें बढ़ गईं।
- बढ़ती कीमतों का अर्थ ऊर्जा कंपनियों के लिये भारी और रिकॉर्ड मुनाफा था, जिसका कारण बड़ी एवं छोटी अर्थव्यवस्थाओं में घरेलू बिलों हेतु बढ़े गैस और बिजली के बिल थे।
- यह कर ऐसे समय में लगाया गया है जब रिफाइनरों ने यूरोप जैसे घाटे में फँसे देशों को ईंधन निर्यात बढ़ाकर बड़ा लाभ कमाया है, जिसने अब रूस से तेल आयात का बहिष्कार किया है।
- राष्ट्र (United Nations-UN) के प्रमुख ने सभी सरकारों से इन अत्यधिक मुनाफे पर कर लगाने का आग्रह किया "और इस कठिन समय में सबसे कमजोर लोगों का समर्थन करने के लिये धन का उपयोग करने को कहा।"
- अप्रत्याशित करों को लागू करने के आह्वान को IMF जैसे संगठनों में भी समर्थन मिला, जिसने इस प्रकार के करों को आरोपित करने के विषय/तरीकों पर एक परामर्श-पत्र जारी किया।
विंडफॉल टैक्स से संबंधित मुद्दे:
- बाज़ार में अनिश्चितता:
- कर व्यवस्था में निश्चितता और स्थिरता होने पर कंपनियाँ किसी क्षेत्र में निवेश करने में विश्वास रखती हैं।
- चूँकि अप्रत्याशित कर पूर्वव्यापी रूप में लगाए जाते हैं और प्रायः अप्रत्याशित घटनाओं से प्रभावित होते हैं, ये भविष्य के करों के बारे में बाज़ार में अनिश्चितता पैदा कर सकते हैं।
- प्रकृति में लोकलुभावन:
- ऐसा माना जाता है कि इस तरह के कर अल्पावधि में लोकलुभावन और राजनीतिक रूप से उपयुक्त होते हैं।
- भविष्य के निवेश में कमी:
- एक अस्थायी अप्रत्याशित लाभ कर का परिचय भविष्य के निवेश को कम करता है क्योंकि संभावित निवेशक निवेश निर्णय लेते समय संभावित करों की संभावना का आकलन करेंगे।
- यदि कीमतों में तीव्र वृद्धि से एकतरफा लाभ में वृद्धि होती है, तो इसे वास्तविक रूप में अप्रत्याशित कहा जा सकता है, लेकिन यह तर्क दिया जा सकता है कि ये ऐसे लाभ हैं जिसे कंपनियों ने अंतिम उपयोगकर्त्ता को अंतिम उत्पाद प्रदान करने के क्रम में जोखिम लेने वाले उद्योगों के लिये एक पुरस्कार के रूप में अर्जित किया है।
- यह परिभाषित नहीं है कि यह कर किस पर लगाया जाना चाहिये, उच्च-मूल्य वाली बिक्री या छोटी कंपनियों के व्यापार के लिये ज़िम्मेदार बड़ी कंपनियाँ, यह सवाल उठाती हैं कि क्या एक निश्चित सीमा से नीचे के राजस्व या लाभ वाले उत्पादकों को छूट दी जानी चाहिये अथवा नहीं।
- एक अस्थायी अप्रत्याशित लाभ कर का परिचय भविष्य के निवेश को कम करता है क्योंकि संभावित निवेशक निवेश निर्णय लेते समय संभावित करों की संभावना का आकलन करेंगे।
UPSC सिविल सेवा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ):प्रश्न. संविधान (101वाँ संशोधन) अधिनियम, 2016 की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या करें। क्या आपको लगता है कि यह "करों के व्यापक प्रभाव को दूर करने और वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये सामान्य राष्ट्रीय बाज़ार प्रदान करने" हेतुे पर्याप्त प्रभावशाली है? (2017) |
स्रोत: द हिंदू
प्राकृतिक रबड़ की कीमतों में गिरावट
प्रिलिम्स के लिये:प्राकृतिक रबड़ (NR), हेविया ब्रासिलिएन्सिस, राष्ट्रीय रबड़ नीति। मेन्स के लिये:रबड़ और राष्ट्रीय रबड़ नीति का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय बाज़ार में प्राकृतिक रबड़ (Natural Rubber-NR) की कीमत 16 महीने के निचले स्तर पर पहुँचने के कारण किसानों और विभिन्न संगठनों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया।
कीमतों में तेज़ गिरावट का कारण:
- निम्न मांग और अन्य कारक: इसके अंतर्गत चीन की कमज़ोर मांग और उच्च मुद्रास्फीति के साथ यूरोपीय ऊर्जा संकट जैसे कारण शामिल हैं।
- जबकि चीन में निरंतर शून्य कोविड रणनीति, जो प्राकृतिक रबड़ की वैश्विक मात्रा का लगभग 42% खपत करती है, उद्योग को महंगा पड़ा है।
- अन्य देशों से आयात: घरेलू टायर उद्योग में आइवरी कोस्ट से ब्लॉक रबड़ और सुदूर पूर्व से मिश्रित रबड़ की पर्याप्त आपूर्ति होती है।
- प्राकृतिक रबड़ की कुल खपत के 73.1% हिस्से का उपयोग ऑटो-टायर निर्माण क्षेत्र में होता है।
गिरती कीमत का किसानो पर प्रभाव:
- फसल स्थानांतरण: कीमतों में गिरावट का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक महसूस किया जाता है, जहाँ ज़्यादातर लोग पूरी तरह से रबड़ की खेती पर निर्भर हैं, इसलिये वे अन्य फसलों के उत्पादन की तरफ रूख कर सकते हैं।
- यह रबड़ हिस्सेदारी के विखंडन का कारण भी बन सकता है।
- लघु और मध्यम उद्यमों पर प्रभाव: चूँकि अधिकांश उत्पादन छोटे और मध्यम उद्यमों में होता है, गिरती कीमत उन्हें अनिश्चित भविष्य की ओर ले जा सकती है और अस्थायी रूप से उत्पादन बंद करने के लिये मजबूर कर सकती है।
- केरल में डर का वातावरण: राज्य का योगदान कुल उत्पादन में लगभग 75% है, क्योंकि स्थानीय अर्थव्यवस्था रबड़ उत्पादन पर निर्भर करती है, इसलिये गिरती कीमत केरल के गाँवों में बड़ी दहशत पैदा कर सकती है।
प्राकृतिक रबड़:
- वाणिज्यिक रोपण फसल: रबड़ हेविया ब्रासिलिएन्सिस नामक पेड़ के लेटेक्स से बनाया जाता है। रबड़ को बड़े पैमाने पर रणनीतिक औद्योगिक कच्चे माल के रूप में माना जाता है और इसे रक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा एवं औद्योगिक विकास के लिये विश्व स्तर पर विशेष दर्जा दिया गया है।
- विकास हेतु आवश्यक स्थिति: यह भूमध्यरेखीय फसल है लेकिन विशेष परिस्थितियों में इसे उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भी उगाया जाता है।
- तापमान: नम और आर्द्र जलवायु के साथ 25 डिग्री सेल्सियस से ऊपर।
- वर्षा: 200 सेमी से अधिक।
- मृदा का प्रकार: समृद्ध जलोढ़ मृदा।
- इस रोपण फसल के लिये कुशल श्रम की सस्ती और पर्याप्त आपूर्ति की आवश्यकता है।
- विश्व स्तर पर प्रमुख उत्पादक: थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम, चीन और भारत।
- प्रमुख उपभोक्ता: चीन, भारत, अमेरिका, जापान, थाईलैंड, इंडोनेशिया और मलेशिया।
भारत में रबड़ उत्पादन की स्थिति:
- उत्पादन:
- अंग्रेज़ों ने भारत में पहला रबड़ बागान वर्ष 1902 में केरल में पेरियार नदी के तट पर स्थापित किया था।
- भारत वर्तमान में उच्चतम उत्पादकता के साथ इस प्राकृतिक सामग्री का पाँचवाँ सबसे बड़ा उत्पादक है।
- वर्ष 2020-21 की तुलना में वर्ष 2021-22 के दौरान रबड़ का उत्पादन 8.4% बढ़कर 7,75,000 टन हो गया।
- यह विश्व स्तर पर रबड़ का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता भी बना हुआ है।
- भारत की कुल प्राकृतिक रबड़ खपत का लगभग 40% वर्तमान में आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है।
- शीर्ष रबड़ उत्पादक राज्य: केरल > तमिलनाडु > कर्नाटक।
- सरकार की पहलें:
- रबड़ प्लांटेशन डेवलपमेंट स्कीम और रबड़ ग्रुप प्लांटिंग स्कीम, सरकार के नेतृत्त्व वाली पहल के प्रमुख उदाहरण हैं।
- रबड़ के बागानों में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति है।
- वाणिज्य विभाग ने राष्ट्रीय रबड़ नीति मार्च 2019 में पेश की।
- नीति में प्राकृतिक रबड़ उत्पादन क्षेत्र और संपूर्ण रबड़ उद्योग मूल्य शृंखला का समर्थन करने के लिये कई प्रावधान शामिल हैं।
- यह देश में रबड़ उत्पादकों के सामने आने वाली समस्याओं को कम करने के लिये रबड़ क्षेत्र में गठित टास्क फोर्स द्वारा पहचानी गई अल्पकालिक और दीर्घकालिक रणनीतियों पर आधारित है।
- मध्यम अवधि के ढाँचे (Medium Term Framework-MTF) में प्राकृतिक रबड़ क्षेत्र के सतत् और समावेशी विकास योजना को लागू करके रबड़ बोर्ड के माध्यम से उत्पादकों के कल्याण के लिये प्राकृतिक रबड़ क्षेत्र का समर्थन करने हेतु विकासात्मक एवं अनुसंधान गतिविधियों को निष्पादित किया जाता है।
- नीति में प्राकृतिक रबड़ उत्पादन क्षेत्र और संपूर्ण रबड़ उद्योग मूल्य शृंखला का समर्थन करने के लिये कई प्रावधान शामिल हैं।
रबड़ बोर्ड ऑफ इंडिया:
- इसका मुख्यालय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के प्रशासन के अंतर्गत केरल के कोट्टायम में अवस्थित है।
- रबड़ बोर्ड संबंधित अनुसंधान, विकास, विस्तार और प्रशिक्षण गतिविधियों को सहायता और प्रोत्साहित करके देश में रबड़ उद्योग के विकास का कार्य करता है।
- रबड़ अनुसंधान संस्थान, रबड़ बोर्ड के अधीन है।
आगे की राह
- सरकार को मिश्रित रबड़ पर आयात शुल्क बढ़ाने की ज़रूरत है ताकि इसे प्राकृतिक रबड़ के बराबर लाया जा सके।
- मूल्य स्थिरीकरण योजना के तहत सरकार को पुनर्रोपण सब्सिडी और फसल का समर्थन मूल्य बढ़ाकर किसानों की मांगों को पूरा करना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ):प्रिलिम्स: प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक पादप-समूह ‘नवीन विश्व (न्यू वर्ल्ड)’ में कृषि-योग्य बनाया गया तथा इसका प्रचलन ‘प्राचीन विश्व (ओल्ड वर्ल्ड)’ में था? (a) तंबाकू, कोको और रबड़ उत्तर: (a) व्याख्या:
अतः विकल्प (a) सही है। |
स्रोत: द हिंदू
पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल
प्रिलिम्स के लिये:भारत निर्वाचन आयोग, मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल, पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, चिह्न आदेश 1968 मेन्स के लिये:राजनीतिक दलों का विनियमन, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिकाएँ और ज़िम्मेदारियाँ, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
भारत के निर्वाचन आयोग ने 86 गैर-मौजूद पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (Registered Unrecognized Political Parties-RUPPs) को असूचीबद्ध कर दिया है और अतिरिक्त 253 दलों को निष्क्रिय RUPPs के रूप में घोषित किया है।
RUPPs को निर्वाचन आयोग द्वारा असूचीबद्ध करने का कारण:
- निष्क्रिय RUPPs:
- 253 RUPPs ने निर्वाचन आयोग दारा दिये गए पत्र/नोटिस का जवाब नहीं दिया है और न ही किसी राज्य की आम सभा या वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा अथवा राज्यसभा चुनाव में भाग लिया है।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के अनुसार, प्रत्येक राजनीतिक दल को अपने नाम, प्रधान कार्यालय, पदाधिकारियों, पते, पैन में किसी भी बदलाव के बारे में बिना किसी देरी के आयोग को सूचित करना होता है।
- असूचीबद्ध:
- संबंधित राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों द्वारा किये गए भौतिक सत्यापन के बाद या संबंधित RUPPs के पंजीकृत पते पर डाक प्राधिकरण से भेजे गए पत्रों/नोटिस की रिपोर्ट के आधार पर 86 RUPPs से कोई जवाब नही मिला।
- इसके अतिरिक्त वे निर्वाचन चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के तहत लाभ प्राप्त करने के हकदार नहीं होंगे।
- संबंधित राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों द्वारा किये गए भौतिक सत्यापन के बाद या संबंधित RUPPs के पंजीकृत पते पर डाक प्राधिकरण से भेजे गए पत्रों/नोटिस की रिपोर्ट के आधार पर 86 RUPPs से कोई जवाब नही मिला।
राजनीतिक दलों से संबंधित प्रमुख बिंदु:
पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल (RUPP):
- परिचय:
- ऐसे नए पंजीकृत दल जो राज्य स्तरीय दल बनने के लिये विधानसभा या आम चुनावों में पर्याप्त प्रतिशत वोट हासिल नहीं कर पाए हैं अथवा जिन्होंने पंजीकृत होने के बाद से कभी चुनाव नहीं लड़ा है, उन्हें गैर-मान्यता प्राप्त दल माना जाता है।
- ऐसे दलों को मान्यता प्राप्त दलों को दी जाने वाली सभी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता है।
- प्रतीक/ चिह्न आवंटन:
- चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के तहत RUPP को सामान्य चिह्न प्रदान किये जाते हैं।
- किसी राज्य के उक्त विधानसभा चुनाव के संबंध में कुल उम्मीदवारों में से कम-से-कम 5% उम्मीदवारों को खड़ा करने के लिये वचन के आधार पर RUPP को एक समान चिह्न का विशेषाधिकार दिया जाता है।
- चुनाव लड़े बिना स्वीकार्य अधिकारों का लाभ उठाकर चुनाव पूर्व उपलब्ध राजनीतिक स्थान पर कब्जा करने वाली ऐसी पार्टियों की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
- यह वास्तव में चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों की भीड़ को भी बढ़ाता है और मतदाताओं के लिये भ्रमित करने वाली स्थिति भी पैदा करता है।
- मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल:
- एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल या तो राष्ट्रीय दल या राज्यस्तरीय दल होगा यदि वह कुछ निर्धारित शर्तों को पूरा करता है।
- राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल बनने के लिये एक दल को पिछले चुनाव के दौरान राज्य विधानसभा या लोकसभा में मतदान के वैध वोटों का एक निश्चित न्यूनतम प्रतिशत या निश्चित संख्या में सीटें हासिल करनी होती हैं।
- राजनीतिक दलों को आयोग द्वारा दी गई मान्यता उन्हें प्रतीकों के आवंटन, राज्य के स्वामित्व वाले टेलीविज़न और रेडियो स्टेशनों पर राजनीतिक प्रसारण के लिये समय का प्रावधान तथा मतदाता सूची तक पहुँच जैसे कुछ विशेषाधिकारों को निर्धारित करती है।
राजनीतिक दलों के रूप में मान्यता हेतु निर्धारित शर्तें:
राष्ट्रीय दलों की मान्यता के लिये शर्तें |
राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता के लिये शर्तें |
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चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 द्वारा ECI को प्राप्त शक्तियाँ:
- आदेश के पैरा 15 के तहत चुनाव आयोग प्रतिद्वंद्वी समूहों या किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के वर्गों के बीच विवादों का फैसला कर सकता है और इसके नाम तथा चुनाव चिह्न पर दावा कर सकता है।
- आदेश के तहत विवाद या विलय के मुद्दों का फैसला करने के लिये निर्वाचन आयोग एकमात्र प्राधिकरण है। सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने वर्ष 1971 में सादिक अली और एक अन्य बनाम ECI मामले में इसकी वैधता को बरकरार रखा।
- यह मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य पार्टियों के विवादों पर लागू होता है।
- पंजीकृत लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों में विभाजन के मामलों में चुनाव आयोग आमतौर पर विवाद में शामिल गुटों को अपने मतभेदों को आंतरिक रूप से हल करने या अदालत जाने की सलाह देता है।
- चुनाव आयोग द्वारा अब तक लगभग सभी विवादों में पार्टी के प्रतिनिधियों/ पदाधिकारियों, सांसदों और विधायकों के स्पष्ट बहुमत ने एक गुट का समर्थन किया है।
- वर्ष 1968 से पहले चुनाव आयोग ने चुनाव नियम, 1961 के संचालन के तहत अधिसूचना और कार्यकारी आदेश जारी किये।
- जिस दल को पार्टी का चिह्न मिला था, उसके अलावा पार्टी के अलग हुए समूह को खुद को एक अलग पार्टी के रूप में पंजीकृत कराना पड़ा।
- वे पंजीकरण के बाद राज्य या केंद्रीय चुनावों में अपने प्रदर्शन के आधार पर ही राष्ट्रीय या राज्य पार्टी की स्थिति का दावा कर सकते थे।
जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम (RPA), 1951:
- मुख्य प्रावधान:
- यह चुनाव और उप-चुनावों के वास्तविक संचालन को नियंत्रित करता है।
- यह चुनाव कराने के लिये प्रशासनिक मशीनरी प्रदान करता है।
- यह राजनीतिक दलों के पंजीकरण से संबंधित है।
- यह सदनों की सदस्यता के लिये अर्हताओं और अयोग्यताओं को निर्दिष्ट करता है।
- इसमें भ्रष्ट आचरण और अन्य अपराधों पर अंकुश लगाने के प्रावधान किये गए हैं।
- इसमें चुनावों से उत्पन्न संदेहों और विवादों को निपटाने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है।
- राजनीतिक दलों से संबंधित प्रावधान:
- राजनीतिक दल बनने के लिये प्रत्येक संघ या निकाय को ECI के साथ पंजीकृत होना चाहिये जिसका निर्णय पंजीकरण के संबंध में अंतिम होगा।
- पंजीकृत राजनीतिक दल, समय के साथ 'राज्य पार्टी' या राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त कर सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही उत्तर है। |
स्रोत: पी.आई.बी.
भारत-मेक्सिको संबंध
प्रिलिम्स के लिये:ITEC, शीत युद्ध, औपनिवेशिक युग, लैटिन अमेरिका, कोविड-19, परमाणु अप्रसार, हरित क्रांति। मेन्स के लिये:भारत-मेक्सिको संबंधों का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
मेक्सिको राष्ट्रीय दिवस (16 सितंबर) के अवसर पर भारत ने मेक्सिको के नागरिकों को बधाई और शुभकामनाएँ दीं तथा राजनयिक संबंधों की स्थापना के 72 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया।
भारत-मेक्सिको संबंध:
- ऐतिहासिक संबंध:
- अतीत में भारत और मेक्सिको दोनों उपनिवेश रह चुके हैं, इस नाते दोनों देशों के औपनिवेशिक युग के यूरोप से साझा संबंध थे।
- मेक्सिको स्वतंत्रता के बाद भारत को मान्यता देने और वर्ष 1950 में भारत के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाला पहला लैटिन अमेरिकी देश था।
- 1960 के दशक में गेहूँ के संकर बीज तैयार करने में मेक्सिकन गेहूँ की किस्मों का इस्तेमाल किया गया जो भारत में ‘हरित क्रांति’ का आधार थी।
- शीत युद्ध के वर्षों में मेक्सिको और भारत ने संयुक्त राष्ट्र (UN) के सदस्यों के रूप में साथ मिलकर काम किया। दोनों देशों ने विकासशील देशों जैसे- ‘उरुग्वे राउंड ऑफ ट्रेड नेगोशिएशन’ (विश्व व्यापार संगठन के तहत) के हितों का सक्रिय रूप से समर्थन किया।
- दोनों देश G-20 के सदस्य हैं।
- राजनीतिक और द्विपक्षीय सहयोग:
- दोनों देशों द्वारा वर्ष 2007 में एक 'प्रिविलेज्ड पार्टनरशिप' की स्थापना की गई।
- वर्ष 2015 में दोनों देशों द्वारा 'रणनीतिक साझेदारी' हासिल करने की दिशा में काम करने पर सहमति व्यक्त की गई।
- दोनों देशों द्वारा कई द्विपक्षीय समझौतों और समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित किये गए हैं, जिनमें निवेश संवर्द्धन और संरक्षण, प्रत्यर्पण, सीमा शुल्क मामलों में प्रशासनिक सहायता, अंतरिक्ष सहयोग आदि शामिल हैं।
- भारत 'भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग' (ITEC) कार्यक्रम के तहत मेक्सिको को 20 छात्रवृति प्रदान करता है और मेक्सिकन राजनयिकों को भी 'भारतीय वन सर्वेक्षण' (FSI) में प्रशिक्षण दिया जाता है।
- आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध:
- भारत, मेक्सिको का 10वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और व्यापार संतुलन आठ वर्षों से भारत के पक्ष में बना हुआ है।
- मेक्सिको वर्तमान में लैटिन अमेरिका में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
- वर्ष 2021 में भारत से मेक्सिको को निर्यात 5.931 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँँच गया और मेक्सिको से आयात 4.17 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिससे कुल व्यापार 10.11 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- भारत का निर्यात: वाहन और ऑटो पार्ट्स, कार्बनिक रसायन, विद्युत मशीनरी तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, एल्युमीनियम उत्पाद, रेडीमेड वस्त्र, लोहा एवं इस्पात उत्पाद, रत्न और आभूषण।
- भारत का आयात: कच्चा तेल, खनिज ईंधन, उर्वरक आदि। कच्चा तेल मेक्सिको से निर्यात टोकरी का 75% हिस्सा रखता है।
- भारत के फार्मास्युटिकल उत्पादों का निर्यात वर्ष 2020 में स्थिर रहा और इसमें 80% से अधिक की वृद्धि हुई।
- सुरक्षा:
- दोनों देश बढ़ती पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों, विशेष रूप से वैश्विक आतंकवाद के उदय पर समान रूप से साझा चिंता व्यक्त करते हैं।
- सांस्कृतिक संबंध:
- ‘गुरुदेव टैगोर इंडियन कल्चरल सेंटर’ अक्तूबर 2010 से मेक्सिको में योग, शास्त्रीय नृत्य, संगीत आदि की शिक्षा दे रहा है।
- सांस्कृतिक सहयोग पर एक समझौता वर्ष 1975 से अस्तित्व में है और सहयोग गतिविधियों को चार वर्षीय 'सांस्कृतिक सहयोग के कार्यक्रमों' के माध्यम से संपन्न किया जाता है।
- भारतीय समुदाय:
- मेक्सिको में 7,000 से अधिक भारतीय समुदाय के लोग रह रहे हैं, जिनमें अधिकांश सॉफ्टवेयर इंजीनियर, शिक्षाविद/प्रोफेसर और निजी व्यवसायी हैं।
- दोनों देशों के मध्य पर्यटन के क्षेत्र में लगातार वृद्धि हो रही है और मेक्सिको वासियों को ऑनलाइन ई-टूरिस्ट वीज़ा की सुविधा दी गई है।
- साधारण पासपोर्ट रखने वाले भारतीय नागरिक, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और जापान के लिये वैध वीज़ा धारित करते हैं तथा एक ही देश या प्रशांत गठबंधन के सदस्य राज्यों में स्थायी निवास कर सकते हैं, लेकिन कोलंबिया, चिली और पेरू को लघु पर्यटन या मेक्सिको की व्यावसायिक यात्राओं के लिये वीज़ा की आवश्यकता नहीं है।
- मतभेद:
- परमाणु अप्रसार के मुद्दे पर मेक्सिको और भारत के अलग-अलग दृष्टिकोण रहे हैं। हालाँकि भारतीय प्रधानमंत्री की वर्ष 2016 की यात्रा के दौरान मेक्सिको ने भारत के लिये ‘परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG)’ का हिस्सा बनने हेतु समर्थन का वादा किया था।
- दोनों देशों में 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC)' में सुधारों के मुद्दे पर मतभेद है।
- मेक्सिको, कॉफी क्लब या यूनाइटिंग फॉर कन्सेंसस (Uniting for Consensus- UFC) का सदस्य रहा है, जो भारत तथा अन्य G-4 सदस्यों (जापान, जर्मनी और ब्राज़ील) की विचारधारा के विपरीत है तथा यूएनएससी में स्थायी सदस्यता के विस्तार का विरोध करता है।
हालिया गतिविधि:
- जून 2022 में भारत और मेंक्सिको ने व्यापार और निवेश से लेकर स्वास्थ्य और फार्मास्यूटिकल्स के क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अंतरिक्ष में सहयोग के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation-ISRO) की ओर से फसल निगरानी, सूखा मूल्यांकन और क्षमता निर्माण पर विशिष्ट सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
- ISRO और मेक्सिकन स्पेस एजेंसी (MSA) ने आखिरी बार अक्तूबर 2014 में शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये अंतरिक्ष सहयोग के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये थे।
आगे की राह:
- भारत और मेक्सिको में भू-जलवायु परिस्थितियों, जैव विविधता, विज्ञान, सांस्कृतिक और पारिवारिक मूल्यों में उल्लेखनीय समानताएँ हैं। दोनों एक महान सभ्यतागत विरासत के उत्तराधिकारी हैं और उनके मध्य संपर्क सदियों से हैं।
UPSC सिविल सेवा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. निम्नलिखित में से किस एक समूह के चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020) (a) अर्जेंटीना, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की उत्तर:(a) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल नए समुदाय
प्रिलिम्स के लिये:हट्टी जनजाति, गोंड समुदाय, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, नारिकोरावन और कुरीविक्करन, बिंझिया मेन्स के लिये:अनुसूचित जातियों और जनजातियों से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने राज्यों में लंबे समय से लंबित मांगों को पूरा करते हुए छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes-STs) की सूची में कुछ अन्य समुदायों को शामिल करने की मंज़ूरी दी है।
किसी समुदाय को अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल करने की प्रक्रिया:
- जनजातियों को ST की सूची में शामिल करने की प्रक्रिया संबंधित राज्य सरकारों की सिफारिश से शुरू होती है, जिसे बाद में जनजातीय मामलों के मंत्रालय को भेजा जाता है, जो समीक्षा करता है और अनुमोदन के लिये भारत के महापंजीयक को इसे प्रेषित करता है।
- इसके बाद अंतिम निर्णय के लिये कैबिनेट को सूची भेजे जाने से पहले राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की मंज़ूरी मिलती है।
अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल नए समुदाय:
- हट्टी जनजाति (हिमाचल प्रदेश):
- हट्टी एक घनिष्ठ समुदाय हैं, जिन्होंने कस्बों में 'हाट' नामक छोटे बाज़ारों में घरेलू सब्जियों, फसल, मांस और ऊन आदि बेचने की अपनी परंपरा से यह नाम प्राप्त किया।
- यह समुदाय वर्ष 1967 जब उत्तराखंड के जौनसार बावर इलाके में रहने वाले लोगों को आदिवासी का दर्जा दिया गया तब से इसकी मांग कर रहा है, जिसकी सीमा सिरमौर ज़िले से लगती है।
- वर्षों से विभिन्न महा खुंबलियों में पारित प्रस्तावों के कारण आदिवासी दर्जे की उनकी मांग को बल मिला।
- नारिकोरावन और कुरीविक्करन(तमिलनाडु):
- नारिकुरवा और कुरुविकार (सियार पकड़ने वाले और पक्षी खाने वाले) जैसी खानाबदोश जनजातियाँ शिकार तथा संग्रहण करने के अपने पारंपरिक व्यवसायों पर गर्व करती हैं।
- बिंझिया (छत्तीसगढ़)
- बिंझिया को झारखंड और ओडिशा में अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया था लेकिन छत्तीसगढ़ में नहीं।
- बिंझिया, मांसाहारी हैं और कृषि उनकी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। वे गोमांस एवं सूअर का मांस नहीं खाते हैं, लेकिन हंडिया (चावल की बीयर) सहित मादक पेय का सेवन करते हैं।
- चूँकि उनमें से अधिकांश या तो भूमिहीन या सीमांत किसान हैं, वे पशुपालन, मौसमी वन संग्रह, कृषि, निर्माण, औद्योगिक और खनन क्षेत्रों में मज़दूरी करके अपनी आजीविका की पूर्ति करते हैं।
- बिंझिया को झारखंड और ओडिशा में अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया था लेकिन छत्तीसगढ़ में नहीं।
- गोंड समुदाय (उत्तर प्रदेश):
- कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश के 13 ज़िलों में रहने वाले गोंड समुदाय को अनुसूचित जाति सूची से अनुसूचित जनजाति सूची में लाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी।
- इसमें गोंड समुदाय की पाँच उपश्रेणियाँ (धुरिया, नायक, ओझा, पथरी और राजगोंड) शामिल हैं।
- 'बेट्टा-कुरुबा' (कर्नाटक):
- कर्नाटक के कडू कुरुबा के पर्याय के रूप में बेट्टा-कुरुबा समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया।
- बेट्टा-कुरुबा समुदाय पिछले 30 वर्षों से इस वर्ग में शामिल करने की मांग कर रहा है।
अनुसूचित जनजाति की सूची में इन वर्गों को शामिल करने के लाभ:
- यह कदम अनुसूचित जनजातियों की संशोधित सूची में नए सूचीबद्ध समुदायों के सदस्यों को सरकार की मौजूदा योजनाओं के तहत अनुसूचित जनजातियों के लिये लाभ प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा।
- कुछ प्रमुख लाभों में पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति, विदेशी छात्रवृत्ति और राष्ट्रीय फेलोशिप, शिक्षा के अलावा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त और विकास निगम से रियायती ऋण तथा छात्रों के लिये छात्रावास शामिल हैं।
- इसके अलावा वे सरकारी नीति के अनुसार सेवाओं में आरक्षण और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लाभों के भी हकदार होंगे।
भारत में अनुसूचित जनजातियों की स्थिति:
- परिचय:
- 1931 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जनजातियों को "बहिष्कृत" और "आंशिक रूप से बहिष्कृत" क्षेत्रों में रहने वाली "पिछड़ी जनजाति" कहा जाता है। वर्ष 1935 के भारत सरकार अधिनियम ने पहली बार प्रांतीय विधानसभाओं में "पिछड़ी जनजातियों" के प्रतिनिधियों को शामिल करने हेतु प्रावधान किया।
- संविधान अनुसूचित जनजातियों की मान्यता के मानदंडों को परिभाषित नहीं करता है, इसलिये वर्ष 1931 की जनगणना में निहित परिभाषा का उपयोग स्वतंत्रता के बाद के प्रारंभिक वर्षों में किया गया था।
- हालाँकि संविधान का अनुच्छेद 366 (25) केवल अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने के लिये प्रक्रिया प्रदान करता है: "अनुसूचित जनजातियों का अर्थ ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदायों या जनजातियों या जनजातीय समुदायों के कुछ हिस्सों या समूहों से है जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति माना जाता है।
- 342(1): राष्ट्रपति किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में, जबकि राज्य के संदर्भ में राज्यपाल के परामर्श के बाद सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में जनजातियों या जनजातीय समुदायों के हिस्से या जनजातियों या जनजातीय समुदायों के भीतर के समूहों को अनुसूचित जनजाति के रूप में निर्दिष्ट कर सकता है।
- 705 से अधिक जनजातियाँ हैं जिन्हें अधिसूचित किया गया है। सबसे अधिक संख्या में आदिवासी समुदाय ओडिशा में पाए जाते हैं।
- संविधान की पाँचवीं अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अलावा अन्य राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन तथा नियंत्रण के लिये प्रावधान करती है।
- छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है।
- कानूनी प्रावधान:
- अस्पृश्यता के खिलाफ नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989
- पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006
- संबंधित पहल:
- संबंधित समितियाँ:
- शाशा समिति (2013)
- भूरिया आयोग (2002-2004)
- लोकुर समिति (1965)
UPSC सिविल सेवा, परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2013) जनजाति राज्य लिंबू (लिम्बु) : सिक्किम कार्बी : हिमाचल प्रदेश डोंगरिया कोंध : ओडिशा बोंडा : तमिलनाडु उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (a) व्याख्या:
अतः विकल्प (a) सही है। |
स्रोत: द हिंदू
यूक्रेन का जवाबी हमला
प्रिलिम्स के लिये:रूस-यूक्रेन संघर्ष, खार्किव ओब्लास्ट के क्षेत्र, नाटो, मिन्स्क प्रोटोकॉल मेन्स के लिये:यूक्रेन-रूस संघर्ष एवं यूक्रेन और रूस में भारत के हित, भारत पर संघर्ष के प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूक्रेन ने देश के उत्तर-पूर्व में जवाबी हमला किया है जिसमें आश्चर्यजनक क्षेत्रीय बढ़त देखी गई है।
- इसके बलों ने रूसी सैनिकों को खार्किव ओब्लास्ट के अधिकांश हिस्से से पीछे हटने को मजबूर कर हज़ारों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया है।
- यह पहली बार है जब रूस-यूक्रेन संघर्ष शुरू होने के बाद से यूक्रेनी सैनिकों ने युद्ध में रूसियों को पीछे हटा दिया।
यूक्रेन ने खार्किव ओब्लास्ट में रूस को पीछे हटाया:
- रूसी सेना का ठहराव:
- जुलाई 2022 में लिसीचांस्क पर कब्ज़ा करने और पूरे लुहांस्क प्रांत को अपने नियंत्रण में लेने के बाद रूस ने युद्ध रोक दिया।
- रूस इस समय यूक्रेन के लगभग 25% हिस्से को नियंत्रित कर रहा है।
- रूसी सेनाओं के रुकने से यूक्रेन को अपनी जवाबी-आक्रामक योजनाओं के साथ आगे बढ़ने का अवसर मिल गया।
- जुलाई 2022 में लिसीचांस्क पर कब्ज़ा करने और पूरे लुहांस्क प्रांत को अपने नियंत्रण में लेने के बाद रूस ने युद्ध रोक दिया।
- अमेरिका से मदद:
- हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम (HIMARS) जैसे उन्नत मिड-रेंज रॉकेट सिस्टम।
- 5 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से अधिक की सैन्य सहायता।
- अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों ने भी यूक्रेन को रूसी रक्षा की कमज़ोर कड़ी के बारे में जानकारी प्रदान की।
- रूस पर प्रतिबंध:
- रूस को प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा था, जिससे यह सुनिश्चित करना मुश्किल हो गया था कि उनकी आपूर्ति बरकरार रहे और उन्हें ईरान एवं उत्तर कोरिया की ओर रुख करना पड़ा।
- यूक्रेन के हमले:
- यूक्रेन ने दक्षिणी यूक्रेन के खेरसॉन में हमले शुरू किये और क्रीमिया में तोड़फोड़ की जिस पर रूस ने वर्ष 2014 में कब्ज़ा कर लिया था।
- दक्षिण में यूक्रेन के हमलों का सामना करने वाले रूस ने खेरसॉन और ज़ापोरिज्जिया की रक्षा व्यवस्था को मज़बूत किया।
- यूक्रेन ने उत्तर-पूर्व में अपेक्षाकृत कमज़ोर रक्षा व्यवस्था को तोड़ दिया और सफलतापूर्वक रूसियों को पीछे हटा दिया।
रूस यूक्रेन संघर्ष:
- इतिहास:
- वर्ष 2014 में रूस ने यूक्रेन से क्रीमिया को जल्दबाज़ी में जनमत संग्रह के लिये कहा, यह एक ऐसा कदम था जिससे पूर्वी यूक्रेन में रूस समर्थित अलगाववादियों और सरकारी बलों के मध्य लड़ाई छिड़ गई थी।
- यूक्रेन ने उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) से गठबंधन में देश की सदस्यता के प्रयास में तेज़ी लाने का आग्रह किया।
- रूस ने इस तरह के कदम को एक "रेड लाइन" घोषित किया और अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधनों के अपने सीमा तक विस्तार के परिणामों के बारे में चिंतित था।
- इसके कारण रूस और यूक्रेन के बीच वर्तमान युद्ध हुआ है।
- यूक्रेन का आक्रमण:
- यह संघर्ष द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यूरोप में एक राज्य द्वारा दूसरे पर किया गया सबसे बड़ा आक्रमण है और वर्ष 1990 के दशक में बाल्कन संघर्ष के बाद पहला है।
- यूक्रेन पर आक्रमण के साथ वर्ष 2014 के मिन्स्क प्रोटोकॉल और 1997 के रूस-नाटो अधिनियम जैसे समझौतों का उल्लंघन हुआ।
- अन्य देशों का पक्ष:
- वैश्विक स्तर पर:
- जी-7 देशों ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की कड़ी निंदा की।
- अमेरिका, यूरोपीय संघ (ईयू), यूके, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जापान द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाए गए हैं।
- चीन ने यूक्रेन पर रूस के कदम को "आक्रमण" कहने को खारिज कर दिया और सभी पक्षों से संयम बरतने का आग्रह किया।
- जी-7 देशों ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की कड़ी निंदा की।
- वैश्विक स्तर पर:
- भारत का पक्ष:
- भारत पश्चिमी शक्तियों द्वारा क्रीमिया में रूस के हस्तक्षेप की निंदा में शामिल नहीं हुआ।
- हालाँकि अगस्त 2022 में भारत ने यूक्रेन को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में "प्रक्रियात्मक वोट" के दौरान रूस के विरुद्ध मतदान किया।
- भारत पश्चिमी शक्तियों द्वारा क्रीमिया में रूस के हस्तक्षेप की निंदा में शामिल नहीं हुआ।
स्रोत: द हिंदू
पश्चिमी घाट पर याचिका
प्रिलिम्स के लिये:पश्चिमी घाट, पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ईएसए), गाडगिल समिति, पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (डब्ल्यूजीईईपी), कस्तूरीरंगन समिति। मेन्स के लिये:पश्चिमी घाटों का महत्त्व, पश्चिमी घाटों के समक्ष आने वाले खतरे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका (Public Interest Litigation-PIL) को खारिज कर दिया है, जिसने पश्चिमी घाट पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (Ecologically Sensitive Areas-ESA) पर गाडगिल और कस्तूरीरंगन समितियों को चुनौती दी थी।
पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESA):
- ESA पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा अधिसूचित क्षेत्र हैं।
- इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास कुछ गतिविधियों को विनियमित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों को शामिल करने वाले नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके।
जनहित याचिका द्वारा की गई मांग:
- याचिकाकर्त्ता ने सर्वोच्च न्यायालय से पश्चिमी घाट में विशेषज्ञ पैनल (गाडगिल समिति रिपोर्ट) और उच्च स्तरीय कार्य समूह (कस्तूरीरंगन समिति रिपोर्ट) की सिफारिशों को लागू नहीं करने का अनुरोध किया था।
- याचिकाकर्त्ता ने न्यायालय से केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF & CC) द्वारा वर्ष 2018 के मसौदा अधिसूचना को अल्ट्रा वायर्स (इसकी कानूनी शक्ति या अधिकार से परे) घोषित करने के लिये कहा क्योंकि इससे नागरिकों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।
- याचिकाकर्त्ता ने केरल के पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की वर्ष 2014 की रिपोर्ट को लागू करने पर जोर दिया।
- रिपोर्ट ने पश्चिमी घाटों में पर्यावरणीय रूप से भंगुर भूमि (Environmentally Fragile Land-EFL) के खंडों में परिवर्तन को लागू करने की सिफारिश की, जिसमें EFL क्षेत्रों को निर्धारित करने में हुई चूक को बताया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय का पक्ष:
- सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वर्ष 2018 में जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF & CC) मसौदा अधिसूचना को चुनौती दी गई थी, जिसके बाद जुलाई 2022 में पाँचवी मसौदा अधिसूचना जारी की गई थी।
- जुलाई में जारी मसौदा अधिसूचना खनन, थर्मल पावर प्लांट और सभी 'रेड' श्रेणी के उद्योगों को ESA में आने से रोकती है।
- न्यायालय को भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने का कोई कारण नहीं मिला।
समितियों के अनुसार
- गाडगिल समिति:
- पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (Western Ghats Ecology Expert Panel-WGEEP) के रूप में भी जाना जाता है, इसने सिफारिश की कि पश्चिमी घाटों को पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्रों (Ecological Sensitive Areas-ESA) के रूप में घोषित किया जाए, केवल सीमित क्षेत्रों में सीमित विकास की अनुमति दी जाए।
- इसने छह राज्यों में फैले पूरे पश्चिमी घाट को पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्रों (ESZ) के रूप में वर्गीकृत किया, जिसमें 44 ज़िले और 142 तालुका शामिल हैं।
- कस्तूरीरंगन समिति:
- इसने गाडगिल रिपोर्ट द्वारा प्रस्तावित प्रणाली के विपरीत विकास और पर्यावरण संरक्षण को संतुलित करने की मांग की।
- कस्तूरीरंगन समिति ने सिफारिश की कि पश्चिमी घाट के कुल क्षेत्रफल के बजाय, कुल क्षेत्रफल का केवल 37% ही ESA के तहत लाया जाना चाहिये और ESA में खनन, उत्खनन और रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये।
पश्चिमी घाट
- परिचय:
- पश्चिमी घाट भारत के पश्चिमी तट के समानांतर और केरल, महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों से गुज़रने वाले पहाड़ों की शृंखला से मिलकर बना है।
- महत्त्व:
- घाट भारतीय मानसून के मौसम के प्रतिरूप को प्रभावित करते हैं जो इस क्षेत्र की गर्म उष्णकटिबंधीय जलवायु में संतुलन स्थापित करते हैं।
- वे दक्षिण-पश्चिम से आने वाली वर्षा से भरी मानसूनी हवाओं के लिये बाधा के रूप में कार्य करते हैं।
- पश्चिमी घाट उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों के साथ-साथ विश्व स्तर पर संकटग्रस्त 325 प्रजातियों का घर है।
पश्चिमी घाट के लिये खतरा:
- विकासात्मक दबाव:
- कृषि विस्तार और पशुधन चराई के साथ शहरीकरण इस क्षेत्र के लिये गंभीर खतरा पैदा कर रहा है।
- लगभग 50 मिलियन लोगों के पश्चिमी घाट क्षेत्र में रहने का अनुमान है, जिसके परिणामस्वरूप विकासात्मक दबाव दुनिया भर के कई संरक्षित क्षेत्रों की तुलना में अधिक है।
- जैवविविधता संबंधित मुद्दे:
- वन क्षरण, आवास विखंडन, आक्रामक पौधों की प्रजातियों द्वारा आवास क्षरण, अतिक्रमण और रूपांतरण भी घाटों को प्रभावित कर रहे हैं।
- पश्चिमी घाट में विकास के दबाव के कारण होने वाले विखंडन से संरक्षित क्षेत्रों के बाहर वन्यजीव गलियारों और उपयुक्त आवासों की उपलब्धता कम हो रही है।
- जलवायु परिवर्तन:
- मध्यवर्ती वर्षों में जलवायु संकट ने गति पकड़ी है:
- पिछले चार वर्षों (2018-21) में बाढ़ ने केरल के घाट क्षेत्रों को तीन बार तबाह किया है, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए और बुनियादी ढाँचे और आजीविका को भारी नुकशान हुआ है।
- वर्ष 2021 में कोंकण के घाट क्षेत्रों में भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ ने तबाही मचा दी थी।
- अरब सागर के गर्म होने से चक्रवात भी तीव्रता से बढ़ रहे हैं, जिससे पश्चिमी तट विशेष रूप से संवेदनशील हो गया है।
- औद्योगीकरण से खतरा:
- पश्चिमी घाट में ESA नीति की अनुपस्थिति के कारण अधिक प्रदूषणकारी उद्योगों, खदानों, खानों, सड़कों और टाउनशिप की योजना बनाई जा सकती है।
- इसका मतलब है कि भविष्य में इस क्षेत्र के संवेदनशील परिदृश्य को और अधिक नुकसान होगा।
आगे की राह
- जलवायु परिवर्तन जो कि सभी लोगों की आजीविका को प्रभावित करेगा और देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा सकता है, को ध्यान में रखते हुए ऐसे संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र का संरक्षण विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिये।
- वैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित एक उचित विश्लेषण के बाद संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिये विभिन्न हितधारकों के बीच आम सहमति की तत्काल आवश्यकता है।
- वन भूमि, उत्पादों और सेवाओं पर खतरों तथा मांगों के बारे में समग्र दृष्टिकोण, शामिल अधिकारियों के लिये स्पष्ट रूप से बताए गए उद्देश्यों के साथ इनसे निपटने हेतु रणनीति तैयार होनी चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:Q कभी-कभी सामाचारों में आने वाली 'गाडमिल समिति रिपोर्ट' और 'कस्तूरीरंगन समिति रिपोर्ट' संबंधित हैं (2016): (a) संवैधानिक सुधारों से उत्तर: (d)
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