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देश-देशांतर : देश में वनों की सेहत (भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट-2017)
- 16 Feb 2018
- 21 min read
संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India-FSI) द्वारा देश में वन क्षेत्र की वस्तुस्थिति से अवगत कराने के लिये के वन स्थिति रिपोर्ट जारी की जाती है। 'भारत की वन स्थिति' नामक इस रिपोर्ट को देश के वन संसाधनों का आधिकारिक आकलन माना जाता है।
- 12 फरवरी, 2017 को भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2017 (India State of Forest Report-ISFR) जारी की गई, जो इस श्रृंखला में 15वीं रिपोर्ट है।
- 1987 से भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट द्विवार्षिक रूप से भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा प्रकाशित की जाती है।
वन की परिभाषा
रिपोर्ट में वनों को घनत्व के आधार पर तीन वर्गों--सघन वन (Very Dense Forest), घने वन (Moderately Dense Forest) और खुले वन (Open Forest) में बाँटा गया है।
- सघन वनों में ऐसे वन आते हैं जहाँ वृक्षों का घनत्व 70 प्रतिशत से अधिक है।
- घने वनों में वृक्षों का घनत्व 40 से 70 प्रतिशत होता है।
- खुले वनों में वृक्षों का घनत्व 10 से 40 प्रतिशत होता है।
- झाड़ियों में ऐसे वन क्षेत्र आते हैं जहाँ वन-भूमि में पेड़ों की पैदावार बहुत कमज़ोर होती है और वृक्षों का घनत्व 10 प्रतिशत से भी कम होता है।
- गैर-वन क्षेत्र में ऐसे क्षेत्र आते हैं जो वनों के किसी भी वर्गीकरण में शामिल नहीं हों।
क्या है इस रिपोर्ट में?
- रिपोर्ट तैयार करने के दौरान 1800 स्थानों का व्यक्तिगत रूप से और वैज्ञानिक तरीके से सर्वेक्षण किया गया।
- रिपोर्ट में दी गई जानकारी देश की वन संपदा की निगरानी और उसके संरक्षण के लिये वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित प्रबंधन व्यवस्था और नीतियाँ तय करने में काफी सहायक होती है।
- यह रिपोर्ट भारत सरकार की डिजिटल इंडिया की संकल्पना पर आधारित है, इसमें वन एवं वन संसाधनों के आकलन के लिये भारतीय दूरसंवेदी उपग्रह रिसोर्स सेट-2 से प्राप्त आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है।
- रिपोर्ट में सटीकता लाने के लिये आंकड़ों की जांच हेतु वैज्ञानिक पद्धति अपनाई गई है।
भारत शीर्ष 10 देशों में शामिल
रिपोर्ट में बताया गया है कि संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार भारत को दुनिया के उन 10 देशों में 8वाँ स्थान दिया गया है जहाँ वार्षिक स्तर पर वन क्षेत्रों में सबसे ज़्यादा वृद्धि दर्ज की गई है। इन देशों में भारत के अलावा रूस, ब्राज़ील, कनाडा, अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया, कांगो, इंडोनेशिया और पेरू शामिल हैं।
- वन क्षेत्र के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष 10 देशों में है। ऐसा तब है, जबकि अन्य 9 देशों में जनसंख्या घनत्व 150 व्यक्ति/वर्ग किलोमीटर है और भारत में यह 382 व्यक्ति/वर्ग किलोमीटर है।
- भारत के भू-भाग का 24.4 प्रतिशत हिस्सा वनों और पेड़ों से घिरा है, हालाँकि यह विश्व के कुल भू-भाग का केवल 2.4 प्रतिशत है और इस पर 17 प्रतिशत मनुष्यों की आबादी और मवेशियों की 18 प्रतिशत संख्या की ज़रूरतों को पूरा करने का दवाब है। इसके बावजूद भारत अपनी वन संपदा को संरक्षित करने और उसे बढ़ाने में सफल रहा है।
- संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार भारत को दुनिया के उन 10 देशों में 8वाँ स्थान दिया गया है, जहाँ वार्षिक स्तर पर वन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज हुई है।
भारत में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के वन
(टीम दृष्टि इनपुट) |
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु
2001 से लेकर 2015 तक के सर्वेक्षणों में देशभर से कुल 589 ज़िलों को शामिल किया जाता था, जबकि इस बार कुल ज़िलों की संख्या 633 है।
देश में वनों और वृक्षों से आच्छादित कुल क्षेत्रफल | 8,02,088 वर्ग किमी. (24.39%) |
भौगोलिक क्षेत्रफल में वनों का हिस्सा | 7,08,273 वर्ग किमी. (21.54%) |
वनों से आच्छादित क्षेत्रफल में वृद्धि | 6778 वर्ग किमी. |
वृक्षों से आच्छादित क्षेत्रफल में वृद्धि | 1243 वर्ग किमी. |
वनावरण और वृक्षावरण क्षेत्रफल में कुल वृद्धि | 8021 वर्ग किमी. (1%) |
भौगोलिक क्षेत्रफल में वनों और वृक्षावरण का हिस्सा | 24.39% |
राज्यों में वनों की स्थिति
- आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा। आंध्र प्रदेश में वन क्षेत्र में 2141 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई, जबकि कर्नाटक 1101 किलोमीटर और केरल 1043 वर्ग किलोमीटर वृद्धि के साथ दूसरे व तीसरे स्थान पर रहे।
- क्षेत्रफल के हिसाब से मध्य प्रदेश के पास 77414 वर्ग किलोमीटर का सबसे बड़ा वन क्षेत्र है, जबकि 66964 वर्ग किलोमीटर के साथ अरुणाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ क्रमश: दूसरे व तीसरे स्थान पर हैं।
- कुल भू-भाग की तुलना में प्रतिशत के हिसाब से लक्षद्वीप के पास 90.33 प्रतिशत का सबसे बड़ा वनाच्छादित क्षेत्र है। इसके बाद 86.27 प्रतिशत तथा 81.73 प्रतिशत वन क्षेत्र के साथ मिज़ोरम और अंडमान निकोबार द्वीप समूह क्रमश: दूसरे व तीसरे स्थान पर हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार देश के 15 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का 33 प्रतिशत भू-भाग वनों से घिरा है।
कार्बन स्टॉक (घने वनों का क्षेत्र)
- रिपोर्ट में सबसे उत्साहजनक संकेत घने वनों का बढ़ना है। घने वन क्षेत्र वायुमंडल से सर्वाधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड सोखने का काम करते हैं। घने वनों का क्षेत्र बढ़ने से खुले वनों का क्षेत्र भी बढ़ा है।
वैज्ञानिक यह मानते हैं कि वायु में कार्बन की मात्रा संतुलित रहेगी तो वातावरण का तापमान कम रहेगा और मृदा की उर्वरता बढ़ने से वनस्पति बढ़ेगी। कार्बनिक रूप में कार्बन ह्यूमिक एसिड व फ्यूमिक एसिड के रूप में रहता है। यह मृदा का पीएच मान 6 से 8 के मध्य रखता है, जो पौधों की वृद्धि के लिये आवश्यक है। जैसे-जैसे पौधा वृक्ष बनता जाता है, वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को सोखकर कार्बन के रूप में संचित करता है। इससे ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि होती है और तापमान भी नियंत्रित रहता है। अकार्बनिक और कार्बनिक रूप में वनों में जो कार्बन मौजूद रहता है, उसे ही कार्बन स्टॉक की संज्ञा दी गई है। वन क्षेत्रों में कार्बन की मात्रा कम होने को कार्बन स्टॉक में कमी होना कहा जाता है। वर्तमान मूल्यांकन के अनुसार देश के वनों में कुल कार्बन स्टॉक का अनुमान 7,082 मिलियन टन है, जो किपिछले आकलन की तुलना में 38 मिलियन टन अधिक है। (टीम दृष्टि इनपुट) |
- 7 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों, जैसे-मिजोरम, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, नगालैंड, मेघालय और मणिपुर का 75 प्रतिशत से अधिक भूभाग वनाच्छादित है।
- त्रिपुरा, गोवा, सिक्किम, केरल, उत्तराखंड, दादरा नगर हवेली, छत्तीसगढ़ और असम का 33 से 75 प्रतिशत के बीच का भू-भाग वनों से घिरा है।
- देश का 40 प्रतिशत वनाच्छादित क्षेत्र 10 हज़ार वर्ग किलोमीटर या इससे अधिक के 9 बड़े क्षेत्रों के रूप में मौजूद है।
33 प्रतिशत वन क्षेत्र का लक्ष्य (टीम दृष्टि इनपुट) |
मैंग्रोव वन
- देश में मैंग्रोव वनों का क्षेत्र 4921 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें वर्ष 2015 की तुलना में कुल 181 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। मैंग्रोव वनों वाले सभी 12 राज्यों में पिछले आकलन की तुलना में सकारात्मक बदलाव देखा गया है। मैंग्रोव वनस्पति जैव विविधता में समृद्ध होती है जो कई तरह की पारिस्थितिकीय आवश्यकताओं को पूरा करती है।
बाह्य वन एवं वृक्षावरण का कुल क्षेत्र
- देश में बाह्य वन एवं वृक्षावरण का कुल क्षेत्र 582.377 करोड़ घनमीटर अनुमानित है, जिसमें से 421.838 करोड़ घनमीटर क्षेत्र वनों के अंदर है, जबकि 160.3997 करोड़ घनमीटर क्षेत्र वनों के बाहर है।
- पिछले आकलन की तुलना में बाह्य एवं वृक्षावरण क्षेत्र में 5.399 करोड़ घनमीटर की वृद्धि हुई है, जिसमें 2.333 करोड़ घन मीटर की वृद्धि वन क्षेत्र के अंदर तथा 3.0657 करोड़ घन मीटर की वृद्धि वन क्षेत्र के बाहर हुई है। इस हिसाब से यह वृद्धि पिछले आकलन की तुलना में 3 करोड़ 80 लाख घनमीटर रही।
कार्बन सिंक (बाँस के वन)
- देश का कुल बाँस वाला क्षेत्र 1.569 करोड़ हेक्टेयर आकलित किया गया है। वर्ष 2011 के आकलन की तुलना में देश में कुल बाँस वाले क्षेत्र में 17.3 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। बाँस के उत्पादन में वर्ष 2011 के आकलन की तुलना में 1.9 करोड़ टन की वृद्धि दर्ज की गई है।
वृक्षों की श्रेणी से बाहर हुआ बाँस (टीम दृष्टि इनपुट) |
जल संरक्षण
- जल संरक्षण के मामले में वनों के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए रिपोर्ट में वनों में स्थित जल स्रोतों का 2005 से 2015 के बीच की अवधि के आधार पर आकलन किया गया है, जिससे पता चला है कि ऐसे जल स्रोतों में आकलन अवधि के दौरान 2647 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्ज हुई है। इनमें महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश शीर्ष राज्य हैं।
ग्रीन इंडिया मिशन
(टीम दृष्टि इनपुट) |
निष्कर्ष: भारत में वनों की क्षेत्रवार सूची को प्रणालीगत स्वरूप तथा नियमितता प्रदान करने की शुरुआत दो दशक पूर्व 1987 में हुई थी। नियमित समय पर वैज्ञानिक आधार पर प्रत्येक दो वर्ष में सुदूर संवेदी प्रौद्योगिकी के द्वारा वन स्थिति रिपोर्ट बनाना, देश के नवीनतम वन क्षेत्र का मूल्यांकन उपलब्ध कराना तथा इसमे आए बदलाव को ध्यान में रखना और राष्ट्रीय वन क्षेत्रों का सूचीकरण एवं वन क्षेत्रों के बाहरी वृक्षों के संसाधनों के जानकारी रखने का कार्य भारतीय वन सर्वेक्षण को सौंपा गया है। यह वन संसाधनों के आँकड़ों की सूची को संग्रहीत करने के लिये केंद्रीय एजेंसी है।
किसी देश की संपन्नता उसके निवासियों की भौतिक समृद्धि से अधिक वहाँ की जैव विविधता से आँकी जाती है। भारत में भले ही विकास के नाम पर बीते कुछ दशकों में वनों को बेतहाशा उजाड़ा गया है, लेकिन हमारी वन संपदा दुनियाभर में अनूठी और विशिष्ट है। ऑक्सीजन का केवल एकमात्र स्रोत वृक्ष हैं, इसलिये वृक्षों पर ही हमारा जीवन आश्रित है। यदि वृक्ष नहीं रहेंगे तो किसी भी जीव-जंतु का अस्तित्व नहीं रहेगा।