जल में रेडियोधर्मी प्रदूषण
प्रिलिम्स के लिये:रेडियोधर्मी प्रदूषण, रेडियोधर्मी उत्सर्जन, यूरेनियम, थोरियम, एक्टिनियम मेन्स के लिये:जल में रेडियोधर्मी प्रदूषण के स्रोत एवं इनका स्वास्थ्य पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जल में रेडियोधर्मी प्रदूषण और इससे जुड़े स्वास्थ्य प्रभावों को दुनिया के कई हिस्सों में देखा गया है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- रेडियोधर्मिता कुछ तत्त्वों के अस्थिर नाभिक से कणों या तरंगों के स्वतःस्फूर्त उत्सर्जन की घटना है। रेडियोधर्मी उत्सर्जन तीन प्रकार के होते हैं: अल्फा, बीटा और गामा।
- अल्फा कण धनावेशित हीलियम (He) परमाणु हैं, बीटा कण ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन हैं और गामा किरणें उदासीन विद्युतचुंबकीय विकिरण हैं।
- रेडियोधर्मी तत्त्व प्राकृतिक रूप से पृथ्वी की क्रस्ट में पाए जाते हैं। यूरेनियम, थोरियम और एक्टिनियम तीन ‘NORM’ (स्वाभाविक रूप से होने वाली रेडियोधर्मी सामग्री) शृंखला हैं जो जल संसाधनों को संदूषित करते हैं।
- सभी प्रकार के जल में थोड़ी मात्रा में विकिरण पाया जाता है लेकिन विकिरण की विस्तारित मात्रा मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होती है। पीने के पानी में रेडियोधर्मिता को सकल अल्फा परीक्षण द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।
- रेडियोधर्मिता को बेकुरल (SI इकाई) या क्यूरी में मापा जाता है। यूनिट सीवर्ट मानव ऊतकों द्वारा अवशोषित विकिरण की मात्रा को मापता है।
- रेडियोधर्मिता कुछ तत्त्वों के अस्थिर नाभिक से कणों या तरंगों के स्वतःस्फूर्त उत्सर्जन की घटना है। रेडियोधर्मी उत्सर्जन तीन प्रकार के होते हैं: अल्फा, बीटा और गामा।
- स्रोत:
- प्राकृतिक:
- जलीय प्रणाली में रेडियोटॉक्सिक तत्त्व: रेडियम, NORM शृंखला में पाए जाने वाले समूह का एक तत्त्व है जो जलीय प्रणालियों में पाए जाने वाले रेडियोटॉक्सिक तत्त्वों में से एक है जो निम्नलिखित माध्यमों से भूजल में प्रवेश कर सकता है-
(i) एक्वीफर रॉक विघटन (ii) 238U और 232Th के क्षय, या (iii) अवशोषण की प्रक्रिया द्वारा।- रेडियम एक रेडियोन्यूक्लाइड है जो पर्यावरण में यूरेनियम (U) और थोरियम (Th) के क्षय से निर्मित होता है।
- मैग्मा (Magma): कभी-कभी पर्यावरण में मैग्मा से रेडियोधर्मी गैसें भी उत्सर्जित होती हैं।
- मृदा तलछट: मिट्टी के तलछट से जलभृत तक NORM का रिसाव भूजल संदूषण का कारण बनता है।
- जलीय प्रणाली में रेडियोटॉक्सिक तत्त्व: रेडियम, NORM शृंखला में पाए जाने वाले समूह का एक तत्त्व है जो जलीय प्रणालियों में पाए जाने वाले रेडियोटॉक्सिक तत्त्वों में से एक है जो निम्नलिखित माध्यमों से भूजल में प्रवेश कर सकता है-
- मानवजनित:
- कॉस्मोजेनिक रेडियोन्यूक्लाइड्स का वायुमंडलीय जमाव:
- कॉस्मोजेनिक रेडियोन्यूक्लाइड्स का वायुमंडलीय जमाव (सूखा और आर्द्र दोनों) सतह के पानी में रेडियोधर्मी नाभिक जोड़ते है।
- कॉस्मोजेनिक रेडियोन्यूक्लाइड रेडियोधर्मी एक समस्थानिक हैं जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित होते हैं जो पृथ्वी प्रणाली के भीतर वितरित हैं।
- परमाणु रिएक्टर और हथियार:
- परमाणु रिएक्टर और परमाणु हथियार का प्रयोग मानव प्रेरित रेडियोन्यूक्लाइड निर्वहन के प्रमुख स्रोत हैं। परमाणु रिएक्टर रेडियो आइसोटोप (कोबाल्ट-60, इरिडियम-192 आदि) का उत्पादन करते हैं जो रेडियोथेरेपी तथा कई औद्योगिक उपकरणों में गामा विकिरण के स्रोत के रूप में बाहर निकलते हैं।
- तटीय क्षेत्रों में स्थित परमाणु ऊर्जा संयंत्र परमाणु कचरे को छोड़ कर समुद्री जल में रेडियोलॉज़िकल संदूषक उत्सर्जित करते हैं। इन बिजलीघरों में पानी को शीतलक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है, जो दूषित भी हो जाते हैं।
- रेडियोधर्मी कचरे का डंपिंग:
- परमाणु हथियारों, एक्स-रे, एमआरआई और अन्य चिकित्सा उपकरणों में रेडियोधर्मी तत्त्वों के प्रयोग से मनुष्य के संपर्क में आने का कारण बनता है। इन रेडियोधर्मी कचरे को सतही जल निकायों में डालने से जल प्रदूषण होता है।
- ट्रोंटियम-90, सीज़ियम-137 आदि कई अनावश्यक रेडियोआइसोटोपिक भी कचरे के साथ-साथ परमाणु रिएक्टरों से बनते हैं।
- खनन:
- यूरेनियम और थोरियम जैसे रेडियोधर्मी तत्त्वों की खनन गतिविधियाँ भी सतह और भूजल को प्रदूषित करती हैं।
- परमाणु दुर्घटनाएँ:
- प्रायः परमाणु पनडुब्बियाँ समुद्री वातावरण में रेडियोधर्मी संदूषण का कारण बनती हैं।
- पनडुब्बी दुर्घटनाओं के कारण रेडियोधर्मी प्रदूषण होता है।
- कोलोराडो में रॉकी फ्लैट्स प्लांट, फुकुशिमा और चेर्नोबिल परमाणु आपदा ऐसी परमाणु दुर्घटनाओं के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।
- कॉस्मोजेनिक रेडियोन्यूक्लाइड्स का वायुमंडलीय जमाव:
- प्राकृतिक:
- स्वास्थ्य प्रभाव
- विकिरण सिंड्रोम:
- मानव ऊतक प्रदूषित पानी और खाद्य पदार्थों के माध्यम से विकिरण को अवशोषित करते हैं, जिससे गंभीर स्वास्थ्य जोखिम हो सकते हैं। विकिरण की उच्च मात्रा विकिरण सिंड्रोम या त्वचीय विकिरण चोट का कारण बन सकती है।
- मानव शरीर क्रिया में विकार:
- विकिरण के संपर्क में आने से मानव शरीर में विभिन्न विकार होते हैं, जिनमें कैंसर, ल्यूकेमिया, आनुवंशिक उत्परिवर्तन, मोतियाबिंद आदि शामिल हैं।
- उत्परिवर्तन और संरचनात्मक परिवर्तन:
- आनुवंशिक प्रभाव, आयनकारी विकिरण रोगाणु कोशिकाओं (पुरुष शुक्राणु कोशिकाओं और महिला अंडाणु कोशिकाओं) में उत्परिवर्तन को प्रेरित करता है, जिसके परिणामस्वरूप रोगाणु कोशिकाओं के डीएनए में संरचनात्मक परिवर्तन होता है जो कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होता है।
- वंशानुगत विकारों से असामयिक मृत्यु और गंभीर मानसिक बीमारी हो सकती है।
- विकिरण सिंड्रोम:
आगे की राह
- मौजूदा समय में सुरक्षित जल आपूर्ति के लिये रेडियोधर्मी प्रदूषकों के उचित विश्लेषण एवं निगरानी की भी आवश्यकता है। रोकथाम और एहतियाती उपाय जल संसाधनों में रेडियोधर्मी संदूषण के मानवजनित स्रोतों को भी रोक सकते हैं।
- रेडियोधर्मी दूषित पानी के उपचार के लिये विभिन्न उपचार विधियाँ जैसे वातन, रिवर्स ऑस्मोसिस, आयन एक्सचेंज और ग्रेन्युल कार्बन अवशोषण प्रभावी उपचारात्मक उपाय हैं।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
समिट फॉर डेमोक्रेसी
प्रिलिम्स के लियेसमिट फॉर डेमोक्रेसी मेन्स के लियेलोकतंत्र: अर्थ और महत्त्व, चुनौतियाँ, भारत द्वारा इस संबंध में किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘लोकतंत्र को नवीनीकृत करने और निरंकुशता का सामना करने के लिये’ संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा ‘समिट फॉर डेमोक्रेसी’ का आयोजन किया गया।
- अमेरिकी राष्ट्रपति ने ‘प्रेसिडेंशियल इनिशिएटिव फॉर डेमोक्रेटिक रिन्यूअल’ की स्थापना संबंधी घोषणा की जो विदेशी सहायता पहल प्रदान करेगी।
- इस पहल को 424.4 मिलियन डॉलर की प्रारंभिक पूँजी के माध्यम से संचालित किया जाएगा और इसका उद्देश्य ‘मुक्त एवं स्वतंत्र मीडिया’ का समर्थन करना, भ्रष्टाचार से लड़ना, लोकतांत्रिक सुधारों को मज़बूत करना, लोकतंत्र के लिये प्रौद्योगिकी के उपयोग और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय
- इसका उद्देश्य यह प्रदर्शित करना है कि किस प्रकार स्वतंत्र और अधिकारों का सम्मान करने वाले समाज वर्तमान समय की चुनौतियों जैसे कि कोविड-19 महामारी, जलवायु संकट और असमानता से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये मिलकर काम कर सकते हैं।
- यह सम्मेलन तीन प्रमुख विषयों पर केंद्रित था:
- सत्तावाद से बचाव
- भ्रष्टाचार का संबोधन
- मानवाधिकारों के प्रति सम्मान बढ़ाना
- भारत का पक्ष
- लोकतंत्रों को संयुक्त रूप से सोशल मीडिया और क्रिप्टो से संबंधित मुद्दों से निपटना चाहिये, ताकि उनका उपयोग कमज़ोर करने के बजाय लोकतंत्र को सशक्त बनाने हेतु किया जा सके।
- भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जिसकी 2,500 साल पुरानी लोकतांत्रिक परंपराएँ हैं और डिजिटल समाधानों के माध्यम से भारत लोकतांत्रिक अनुभव को साझा कर सकता है।
- भारत में लिच्छवियों और अन्य लोगों के तहत प्राचीन शहर राज्यों में लोकतंत्र की सभ्यतागत परंपरा का उल्लेख मिलता है, जो वैदिक और बौद्ध काल के अंत में भारत में विकसित हुआ तथा प्रारंभिक मध्ययुगीन काल तक जारी रहा।
- लोकतंत्र ने दुनिया भर में विभिन्न रूप ले लिये हैं और ऐसे में लोकतांत्रिक प्रथाओं में कार्यप्रणाली में एकरूपता लाने की आवश्यकता है।
- लोकतांत्रिक प्रथाओं और प्रणालियों में लगातार सुधार करने और समावेश, पारदर्शिता, मानवीय गरिमा, उत्तरदायी शिकायत निवारण तथा सत्ता के विकेंद्रीकरण को लगातार बढ़ाने की आवश्यकता है।
लोकतंत्र
- अर्थ
- लोकतंत्र सरकार की एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें नागरिक सीधे सत्ता का प्रयोग करते हैं या एक शासी निकाय जैसे कि संसद बनाने के लिये आपस में प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं।
- इसे ‘बहुमत का शासन’ भी कहा जाता है। इसमें सत्ता विरासत में नहीं मिलती। जनता अपना नेता स्वयं चुनती है।
- प्रतिनिधि चुनाव में हिस्सा लेते हैं और नागरिक अपने प्रतिनिधि को वोट देते हैं। सबसे अधिक मतों वाले प्रतिनिधि को शक्ति प्राप्त होती है।
- संक्षिप्त इतिहास
- भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत वर्ष 1947 में अपनी स्वतंत्रता के बाद एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बन गया। इसके बाद भारत के नागरिकों को वोट देने और अपने नेताओं को चुनने का अधिकार प्राप्त हुआ।
- लोकतंत्र को मज़बूत करने में भारत की भूमिका:
- दुनिया भर में:
- क्षमता निर्माण
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में चुनाव आयोग के उल्लेखनीय रिकॉर्ड के अलावा, भारत ने कई दशकों तक एशिया, अफ्रीका और दुनिया के अन्य क्षेत्रों के हज़ारों चुनावी अधिकारियों को चुनाव प्रबंधन तथा संसदीय मामलों में प्रशिक्षण दिया है।
- विकासात्मक भागीदारी प्रशासन (DPA):
- भारत ने भौगोलिक क्षेत्रों में कई विकासशील और नए लोकतंत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण विकास सहायता परियोजनाओं की पेशकश करने के लिये विदेश मंत्रालय (MEA) के भीतर एक ‘विकासात्मक भागीदारी प्रशासन’ (DPA) का निर्माण किया है।
- इसमें अफगान संसद का निर्माण और म्याँमार को अपनी प्रशासनिक एवं न्यायिक क्षमताओं के उन्नयन के लिये सहायता प्रदान करना शामिल है।
- लोकतंत्र की निगरानी के लिये अनुदान:
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकतंत्र का समर्थन करने हेतु ‘संयुक्त राष्ट्र डेमोक्रेसी फंड’ (UNDEP) और ‘कम्युनिटी ऑफ डेमोक्रेसी’ के निर्माण में भारत ने अमेरिका के साथ मिलकर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- संयोग से, भारत UNDEF के सबसे बड़े योगदानकर्त्ताओं में से एक है, जो दक्षिण एशिया में 66 गैर-सरकारी संगठनों के नेतृत्व वाली परियोजनाओं का समर्थन करता है।
- संयुक्त राष्ट्र लोकतंत्र कॉकस:
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र डेमोक्रेसी कॉकस बनाने में भी मदद की, जो कि संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर साझा मूल्यों के आधार पर लोकतांत्रिक राज्यों को बुलाने वाला एकमात्र निकाय है।
- क्षमता निर्माण
- भारत में:
- नस्लीय भेदभाव को समाप्त करना:
- भारत में एक दलित महिला को उच्च पद (मुख्यमंत्री के रूप में) तक पहुंँचने के लिये प्रतिनिधित्व दिया गया।
- सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005:
- इस अधिनियम ने पूरी तरह से नागरिक समाज संचालित जमीनी आंदोलन को आम नागरिकों के लिये सूचना को सही मायने में लोकतांत्रिक बना दिया है।
- लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण:
- वर्ष 1992 में दो संवैधानिक संशोधन (73वें और 74वें) द्वारा जिस त्रि-स्तरीय प्रशासन (ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय) की स्थापना की गई उसने पिछले तीन दशकों में गहरा प्रभाव स्थापित किया है।
- 30 लाख प्रतिनिधियों के साथ विभिन्न स्तरों (ग्राम सभा, पंचायत समिति जिला परिषद) पर ,यह अब तक विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक व्यव्स्था है।
- नस्लीय भेदभाव को समाप्त करना:
- दुनिया भर में:
- लोकतंत्र से संबंधित चिंताएंँ:
- वैश्विक:
- राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता में गिरावट:
- दुनिया भर के लोकतंत्र नए स्थापित - कई प्रमुख मापदंडों पर गंभीर संकटों से जूझ रहे हैं।
- लोकतंत्र की निगरानी करने वाली संस्थाओं की रिपोर्टों के अनुसार, लोकतंत्र में खतरनाक गिरावट देखी जा रही है।
- डेमोक्रेसी इंडेक्स 2020 के अनुसार, विश्व की बहुत कम 9% आबादी ‘पूर्ण’ लोकतंत्र में रहती है।
- म्यांमार, ट्यूनीशिया और सूडान में हालिया सैन्य तख्तापलट लोकतंत्र विरोधी ताकतों के निरंतर उदय का प्रमाण है तथा इसकी बारंबारता वैश्विक लोकतंत्र समर्थकों की सामूहिक विफलता को दिखाती है।
- बढ़ती सत्तावादिता:
- सत्तावादी शक्तियों, विशेषकर चीन के निरंतर उदय से उत्पन्न बढ़ता खतरा एक प्रमुख चिंता का विषय है।
- ऐसे समय में जब पश्चिम, विशेष रूप से अमेरिका और समृद्ध यूरोपीय देशों ने लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अपनी वैश्विक प्रतिबद्धता को काफी हद तक समाप्त कर दिया है, चीन ने वैश्विक मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मानदंडों को फिर से परिभाषित करने पर अपनी नजरें गड़ा दी हैं।
- उदाहरण:
- चीन ने ताइवान को धमकाने के लिए सैन्य और कूटनीतिक साधनों का इस्तेमाल किया है, विवादित दक्षिण चीन सागर में अपने क्षेत्रीय दावों को मजबूर किया है, लाखों उइगर मुसलमानों को नजरबंदी शिविरों में डाल दिया है, हॉन्गकॉन्ग में राजनीतिक स्वतंत्रता को नियंत्रित किया है और कई भौगोलिक क्षेत्रों में अपने प्रभाव को मज़बूत करने के लिये अभियान शुरू किया है।
- राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता में गिरावट:
- भारत:
- फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2021’ रिपोर्ट में भारत की स्थिति को ‘स्वतंत्र’ से 'आंशिक रूप से स्वतंत्र' कर दिया है। वी-डेम रिपोर्ट ने इसे एक कदम ओर आगे बढ़ते हुए "चुनावी निरंकुशता" करार दिया है।
- ग्लोबल स्टेट ऑफ डेमोक्रेसी 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, ‘’बैकस्लाइडिंग के कुछ सबसे चिंताजनक उदाहरणों'' के साथ भारत 10 सबसे पीछे खिसकने वाले लोकतंत्रों में से एक था।
- वैश्विक:
आगे की राह
- संवैधानिक लोकतंत्र के संस्थागतकरण ने भारत के लोगों को लोकतंत्र के महत्त्व को समझने और उनमें लोकतांत्रिक संवेदनाओं को विकसित करने में मदद की है।
- साथ ही, यह महत्त्वपूर्ण है कि सरकार के सभी अंग देश के लोगों के विश्वास को बनाए रखने हेतु सद्भाव से कार्य करें और वास्तविक लोकतंत्र के उद्देश्यों को सुनिश्चित करें।
- सरकार को आलोचना को सिरे से खारिज करने के बजाय सुनना चाहिये। लोकतांत्रिक मूल्यों को समाप्त करने के सुझावों पर एक विचारशील और सम्मानजनक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।
- प्रेस और न्यायपालिका, जिन्हें भारत के लोकतंत्र का स्तंभ माना जाता है, को कार्यपालिका के कार्यों कीऑडिटिंग को सक्षम करने हेतु किसी भी कार्यकारी हस्तक्षेप से स्वतंत्र होने की आवश्यकता है।
स्रोत: द हिंदू
भारत में वन्यजीव संरक्षण
प्रिलिम्स के लिये:वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो, वन्यजीव के लिये संवैधानिक प्रावधान मेन्स के लिये:वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो, वन्य जीवन के लिये संवैधानिक प्रावधान, अवैध वन्यजीव व्यापार का प्रभाव |
चर्चा में क्यों ?
हालिया आँकड़ों के अनुसार वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) और राज्य वन तथा पुलिस अधिकारियों ने पिछले तीन वर्षों (2018-2020) के दौरान भारत में जंगली जानवरों की हत्या या अवैध तस्करी के लगभग 2054 मामले दर्ज़ किये गए है।
- इसे नियंत्रित करने के लिये WCCB ने राज्य प्रवर्तन एजेंसियों के समन्वय के साथ कई प्रजातियों के विशिष्ट प्रवर्तन अभियान चलाए हैं।
- WCCB देश में संगठित वन्यजीव अपराध से निपटने के लिये पर्यावरण और वन मंत्रालय के तहत भारत सरकार द्वारा स्थापित एक वैधानिक बहु-अनुशासनात्मक निकाय है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
प्रमुख बिंदु:
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अवैध वन्यजीव व्यापार का प्रभाव:
- अवैध वन्यजीव व्यापार से उत्पन्न मांगों के कारण प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।
- इसके अवैध व्यापार के कारण वन्यजीव संसाधनों का अत्यधिक दोहन पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा करता है।
- अवैध व्यापार संघ के हिस्से के रूप में अवैध वन्यजीव व्यापार देश की अर्थव्यवस्था को कमज़ोर करता है और इस तरह सामाजिक असुरक्षा पैदा करता है।
- जंगली पौधे जो फसलों के लिये आनुवंशिक भिन्नता प्रदान करते हैं (कई दवाओं के लिये प्राकृतिक स्रोत) अवैध व्यापार के कारण संकट में हैं।
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विभिन्न प्रजाति-विशिष्ट प्रवर्तन संचालन:
- ऑपरेशन सेव कुर्मा: जीवित कछुओं और कछुओं के अवैध शिकार, परिवहन तथा अवैध व्यापार पर ध्यान केंद्रित करना।
- ऑपरेशन टर्टशील्ड: इसे जीवित कछुओं के अवैध व्यापार से निपटने के लिये लिया गया था।
- ऑपरेशन लेसनो: वन्यजीवों की कम ज्ञात प्रजातियों में अवैध वन्यजीव व्यापार की ओर प्रवर्तन एजेंसियों का ध्यान आकर्षित करना।
- ऑपरेशन क्लीन आर्ट: नेवला हेयर ब्रश में अवैध वन्यजीव व्यापार की ओर प्रवर्तन एजेंसियों का ध्यान आकर्षित करने के लिये।
- ऑपरेशन सॉफ्टगोल्ड: शाहतोश शॉल (चिरू ऊन से बने) अवैध व्यापार से निपटने के लिये और इस व्यापार में लगे बुनकरों तथा व्यापारियों के बीच ज़ागरूकता फैलाने के लिये।
- ऑपरेशन बीरबिल: जंगली बिल्ली और जंगली पक्षी प्रजातियों के अवैध व्यापार पर अंकुश लगाने के लिये।
- ऑपरेशन वाइल्डनेट: इसका उद्देश्य देश के भीतर प्रवर्तन एजेंसियों का ध्यान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग करके इंटरनेट पर बढ़ते अवैध वन्यजीव व्यापार पर ध्यान केंद्रित करना था।
- ऑपरेशन फ्रीफ्लाई: जीवित पक्षियों के अवैध व्यापार को रोकने के लिये।
- ऑपरेशन वेटमार्क: देश भर के ‘वैट मार्केट्स’ में जंगली जानवरों के माँस की बिक्री पर रोक सुनिश्चित करना।
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वन्यजीव संरक्षण के लिये भारत का घरेलू कानूनी ढाँचा:
- वन्य जीवों के लिये संवैधानिक प्रावधान:
- 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 से वन और वन्य पशुओं तथा पक्षियों का संरक्षण राज्य से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया था।
- संविधान के अनुच्छेद 51 A (G) में कहा गया है कि वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा तथा सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा।
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 48 ए में कहा गया है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के जंगलों एवं वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
- कानूनी ढाँचा:
- वन्य जीवों के लिये संवैधानिक प्रावधान:
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वैश्विक वन्यजीव संरक्षण प्रयासों के साथ भारत का सहयोग:
- वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES)
- वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय (CMS)
- जैविक विविधता पर अभिसमय (CBD)
- विश्व विरासत अभिसमय
- रामसर अभिसमय
- वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क (TRAFFIC)
- वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम (UNFF)
- अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग (IWC)
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN)
- ग्लोबल टाइगर फोरम (GTF)
स्रोत- द हिंदू
हुनर हाट
प्रिलिम्स के लिये:हुनर हाट, उस्ताद योजना,अल्पसंख्यक समुदाय,अल्पसंख्यकों से संबंधित अन्य योजनाएँ मेन्स ले लिये:हुनर हाट, हुनर हाट के उद्देश्य एवं महत्त्व, उस्ताद योजना,प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम |
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने गुजरात में हुनर हाट के 34वें संस्करण का आयोजन किया है जिसमें 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के कारीगरों ने भाग लिया है।
प्रमुख बिंदु:
- हुनर हाट:
- यह अल्पसंख्यक समुदायों के कारीगरों द्वारा बनाए गए हस्तशिल्प और पारंपरिक उत्पादों की एक प्रदर्शनी है। जिसे पहली बार वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया था।
- हुनर हाट की अवधारणा वर्तमान वैश्विक प्रतिस्पर्धा में देश की कला और शिल्प की पैतृक विरासत की रक्षा और बढ़ावा देने तथा पारंपरिक कारीगरों और शिल्पकारों का समर्थन करने के लिये की गई है।
- हुनर हाट प्रदर्शनी में चुने गए कारीगर वे हैं जिनके पूर्वज इस तरह के पारंपरिक हस्तनिर्मित काम में शामिल थे और अभी भी इस पेशे को जारी रखे हुए हैं।
- थीम:
- आयोजक:
- हुनर हाट अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा ‘उस्ताद’ (विकास के लिये पारंपरिक कला/शिल्प में कौशल और प्रशिक्षण उन्नयन) योजना के तहत आयोजित किये जाते हैं।
- उस्ताद योजना का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों की पारंपरिक कला एवं शिल्प की समृद्ध विरासत को बढ़ावा देना और संरक्षित करना है।.
- हुनर हाट अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा ‘उस्ताद’ (विकास के लिये पारंपरिक कला/शिल्प में कौशल और प्रशिक्षण उन्नयन) योजना के तहत आयोजित किये जाते हैं।
- उद्देश्य
- ‘हुनर हाट’ का उद्देश्य कारीगरों, शिल्पकारों और पारंपरिक पाक कला विशेषज्ञों को बाज़ार में एक्सपोज़र एवं रोज़गार के अवसर प्रदान करना है।
- यह उन शिल्पकारों, बुनकरों और कारीगरों के कौशल को बढ़ावा देने की परिकल्पना करता है जो पहले से ही पारंपरिक पुश्तैनी काम में संलग्न हैं।
महत्त्व:
- 'हुनर हाट' कुशल कारीगरों और शिल्पकारों के लिये ‘सशक्तीकरण’ का एक माध्यम साबित हुआ है।
- यह कारीगरों और शिल्पकारों के लिये बेहद फायदेमंद तथा उत्साहजनक साबित हुआ है, क्योंकि लाखों लोग ‘हुनर हाट’ में जाते हैं और बड़े पैमाने पर कारीगरों के स्वदेशी उत्पादों को खरीदते हैं।
- यह देश भर के लाखों कारीगरों और शिल्पकारों को रोज़गार के अवसर भी प्रदान कर रहा है।
- वर्तमान में देश भर में लगभग 7 लाख लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हुनर हाट से जुड़े हुए हैं, उनमें से लगभग 40% महिला कारीगर हैं और अगले कुछ वर्षों में लगभग 17 लाख परिवारों के हुनर हाट में शामिल होने की उम्मीद है।
- यह देश भर के लाखों कारीगरों और शिल्पकारों को रोज़गार के अवसर भी प्रदान कर रहा है।
अल्पसंख्यकों से संबंधित अन्य योजनाएँ:
- प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम:
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों के लिये सामाजिक-आर्थिक और बुनियादी सुविधाएँ जैसे- स्कूल, कॉलेज, पॉलिटेक्निक, गर्ल्स हॉस्टल, आईटीआई, कौशल विकास केंद्र आदि विकसित करना है।
- बेगम हज़रत महल बालिका छात्रवृत्ति:
- इस छात्रवृत्ति योजना के तहत छह अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों (मुस्लिम, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध, पारसी और जैन) की मेधावी छात्राओं को छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है।
- गरीब नवाज़ रोज़गार योजना:
- केंद्र द्वारा अधिसूचित 6 अल्पसंख्यक समुदायों मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन से जुड़े युवाओं के लिये रोज़गारपरक अल्पावधि कौशल विकास पाठ्यक्रम उपलब्ध कराने के लिये वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान इस योजना की शुरुआत की गई थी।
- सीखो और कमाओ:
- इसका उद्देश्य मौजूदा कार्मिकों की रोज़गारपरकता को बेहतर बनाना तथा उनका स्थापन (प्लेसमेंट) सुनिश्चित करना और बीच में पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या में कमी लाना आदि है।
- नई मंज़िल:
- ‘नई मंजिल’ औपचारिक स्कूल शिक्षा और स्कूल छोड़ चुके बच्चों के कौशल विकास की एक योजना है। इस योजना की शुरुआत अगस्त, 2015 को हुई थी।
- उस्ताद (Upgrading the Skills and Training in Traditional Arts/Crafts for Development):
- इसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों की पारंपरिक कला/शिल्प की समृद्ध विरासत को संरक्षित करना है।
- नई रोशनी:
- अल्पसंख्यक महिलाओं में नेतृत्त्व क्षमता विकास करना।
स्रोत-पी.आई.बी
चाबहार बंदरगाह पर अमेरिकी प्रतिबंध की समाप्ति
प्रिलिम्स के लिये:चाबहार बंदरगाह परियोजना, ग्वादर बंदरगाह, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा मेन्स के लिये:भारत के लिये चाबहार बंदरगाह का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री ने संसद में जवाब दिया है कि ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों का भारत की चाबहार बंदरगाह परियोजना पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है और बंदरगाह अच्छी तरह से कार्य कर रहा है।
- सामरिक चाबहार बंदरगाह परियोजना के लिये भारत ने अमेरिका से अलग अपवाद वाला दृष्टिकोण अपनाया है।
प्रमुख बिंदु
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चाबहार बंदरगाह के बारे में:
- यह ईरान के सिस्तान प्रांत में हिंद महासागर में स्थित है।
- चाबहार बंदरगाह को मध्य एशियाई देशों के साथ भारत, ईरान और अफगानिस्तान द्वारा व्यापार के सुनहरे अवसरों का प्रवेश द्वार माना जाता है।
- बंदरगाह, जो भारत के पश्चिमी तट से आसानी से पहुँचा जा सकता है, को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के काउंटर के रूप में देखा जा रहा है जिसे चीन के निवेश के साथ विकसित किया जा रहा है।
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भारत के लिये चाबहार बंदरगाह का महत्त्व:
- वैकल्पिक मार्ग: चाबहार बंदरगाह सभी को वैकल्पिक आपूर्ति मार्ग का विकल्प प्रदान करता है, इस प्रकार व्यापार के संबंध में पाकिस्तान के महत्त्व को कम करता है।
- सामरिक आवश्यकताएँ: यह ओमान की खाड़ी पर स्थित है और पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह से केवल 72 किमी दूर है जिसे चीन द्वारा विकसित किया गया है।
- वन बेल्ट वन रोड (One Belt One Road- OBOR) परियोजना के तहत चीन अपने आक्रामक रूप से स्वयं के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को आगे बढ़ा रहा है।
- कनेक्टिविटी: भविष्य में चाबहार परियोजना और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा (International North South Transport Corridor) रूस तथा यूरेशिया के साथ भारतीय संपर्क/कनेक्टिविटी का अनुकूलन कर एक दूसरे के पूरक होंगे।
- साथ ही यह भारत को अफगानिस्तान और अन्य मध्य एशियाई गणराज्यों तक सीधी पहुंँच प्रदान करता है
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अमेरिकी प्रतिबंधों में अपवाद के कारण:
- अफगानिस्तान के हित में: अमेरिका स्वीकार करता है कि चाबहार बंदरगाह परियोजना न केवल भारत या ईरान के रणनीतिक हित में है बल्कि अफगानिस्तान के रणनीतिक हित में भी है।
- अफगानिस्तान एक भू-आबद्ध देश है जो व्यापार के लिये पाकिस्तान पर निर्भर है। इसका सारा व्यापार बड़े पैमाने पर पाकिस्तानी बंदरगाहों से होता है।
- पाकिस्तान अक्सर अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ व्यापार के लिये भारत को पारगमन से इनकार करता है।
- यह परियोजना अफगानिस्तान को एक रणनीतिक विकल्प प्रदान करती है और इसे भूमि से घिरे होने के बावजूद मदद करती है।
- पाकिस्तान को बायपास करना: यदि भविष्य में अमेरिका और ईरान के बीच के मसले सुलझ जाते हैं तो चाबहार बंदरगाह अमेरिका को पाकिस्तान को बायपास करने में सक्षम बनाएगा।
- पाकिस्तान अभी भी उन सभी प्रशासनिक मार्गों को नियंत्रित करता है जिनके द्वारा अफगानिस्तान को आपूर्ति की जा सकती है।
- इसके कारण अमेरिका हमेशा से ही आतंकवादियों, विशेषकर अफगान तालिबानों पर कार्रवाई करने से हिचकिचाता रहा है। चाबहार बंदरगाह अमेरिका को ऐसे आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने का विकल्प देता है।
- अफगानिस्तान के हित में: अमेरिका स्वीकार करता है कि चाबहार बंदरगाह परियोजना न केवल भारत या ईरान के रणनीतिक हित में है बल्कि अफगानिस्तान के रणनीतिक हित में भी है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना
प्रिलिम्स के लिये:बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना मेन्स के लिये:बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना का महत्त्व एवं उद्देश्य |
चर्चा में क्यों?
महिलाओं के सशक्तीकरण से संबंधित एक संसदीय समिति ने वर्ष 2014 से 2019 तक बालिकाओं पर लक्षित कार्यक्रमों विशेष रूप से ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ (BBBP) योजना के लिये आवंटित केंद्रीय धन के कम उपयोग पर चिंता जताई है।
प्रमुख बिंदु
- समिति के निष्कर्ष:
- निधि का कम उपयोग:
- वर्ष 2014-15 में BBBP की शुरुआत के बाद से के कोविड प्रभावित वित्तीय वर्ष 2020-21 को छोड़कर वर्ष 2019-20 तक इस योजना के तहत कुल बजटीय आवंटन 848 करोड़ रहा।
- इस दौरान राशि राज्यों को 622.48 करोड़ रुपये जारी किये गए लेकिन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा इस निधि की केवल 25.13% धनराशि खर्च की गई है।
- निधियों का अनुचित व्यय:
- फ्लैगशिप BBBP योजना के तहत मीडिया अभियानों पर 80% धनराशि खर्च की गई।
- इस योजना के तहत प्रत्येक ज़िले के लिये छ: विभिन्न प्रावधानों के अंतर्गत प्रतिवर्ष 50 लाख रुपए के व्यय की व्यवस्था की गई।
- 50 लाख रुपये में से 16% फंड अंतर-क्षेत्रीय परामर्श या क्षमता निर्माण के लिये, 50% नवाचार या जागरूकता पैदा करने की गतिविधियों के लिये 6% निगरानी और मूल्यांकन के लिये, 10% स्वास्थ्य में क्षेत्रीय हस्तक्षेप के लिये, 10% शिक्षा में क्षेत्रीय हस्तक्षेप के लिये एवं 8% फ्लेक्सी फंड के रूप में होगा।
- सिफारिशें:
- सरकार को BBBP योजना के तहत विज्ञापनों पर खर्च पर पुनर्विचार करना चाहिये तथा शिक्षा और स्वास्थ्य में क्षेत्रीय हस्तक्षेप हेतु नियोजित व्यय आवंटन पर ध्यान देना चाहिये।
- निधि का कम उपयोग:
- BBBP योजना:
- BBBP योजना के बारे में:
- इसे जनवरी 2015 में लिंग चयनात्मक गर्भपात (Sex Selective Abortion) और गिरते बाल लिंग अनुपात (Declining Child Sex Ratio) को संबोधित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, जो 2011 में प्रति 1,000 लड़कों पर 918 लड़कियों पर था।.
- यह महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक संयुक्त पहल है।
- यह कार्यक्रम देश के 405 ज़िलों में लागू किया जा रहा है।
- मुख्य उद्देश्य:
- लिंग आधारित चयन पर रोकथाम।
- बालिकाओं के अस्तित्व और सुरक्षा को सुनिश्चित करना।
- बालिकाओं के लिये शिक्षा की उचित व्यवस्था तथा उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना।
- बालिकाओं के अधिकारों की रक्षा करना।
- योजना का प्रदर्शन:
- जन्म के समय लिंग अनुपात
- स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (Health Management Information System- HMIS) से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014-15 में जन्म के समय लिंग अनुपात 918 था जो वर्ष 2019-20 में 16 अंकों के सुधार के साथ बढ़कर 934 हो गया है।
- महत्त्वपूर्ण उदाहरण:
- मऊ (उत्तर प्रदेश) में वर्ष 2014-15 से वर्ष 2019-20 तक लिंग अनुपात 694 से बढ़कर 951 हुआ है।
- करनाल (हरियाणा) में वर्ष 2014-15 से वर्ष 2019-20 तक यह अनुपात 758 से बढ़कर 898 हो गया है।
- महेन्द्रगढ़ (हरियाणा) में वर्ष 2014-15 से वर्ष 2019-20 तक यह 791 से बढ़कर 919 हुआ है।
- स्वास्थ्य:
- ANC पंजीकरण: पहली तिमाही में प्रसव पूर्व देखभाल (AnteNatal Care- ANC) पंजीकरण में सुधार का रुझान वर्ष 2014-15 के 61% से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 71% देखा गया है।
- संस्थागत प्रसव में सुधार का प्रतिशत वर्ष 2014-15 के 87% से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 94% तक पहुँच गया है।
- शिक्षा:
- सकल नामांकन अनुपात (GER): शिक्षा के लिये एकीकृत ज़िला सूचना प्रणाली (UDISE) के अंतिम आंँकड़ों के अनुसार, माध्यमिक स्तर पर स्कूलों में बालिकाओं के सकल नामांकन अनुपात (Gross Enrolment Ratio-GER) में 77.45 (वर्ष 2014-15) से 81.32 (वर्ष 2018-19) तक सुधार हुआ है।
- बालिकाओं के लिये शौचालय: बालिकाओं के लिये अलग शौचालय वाले स्कूलों का प्रतिशत वर्ष 2014-15 के 92.1% से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 95.1% हो गया है।
- मनोवृत्ति परिवर्तन:
- BBBP योजना कन्या भ्रूण हत्या, बालिकाओं में शिक्षा की कमी और जीवन चक्र की निरंतरता के अधिकार से उन्हें वंचित करने जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम है।
- ‘बेटी जन्मोत्सव’ प्रत्येक ज़िले में मनाए जाने वाले प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है।
- जन्म के समय लिंग अनुपात
- BBBP योजना के बारे में:
बालिकाओं के लिये अन्य पहलें:
- उज्ज्वला (UJJAWALA): यह मानव तस्करी की समस्या से निपटने से संबंधित है जो वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये किये गए यौन शोषण व तस्करी के शिकार पीड़ितों और उनके बचाव, पुनर्वास तथा एकीकरण के लिये एक व्यापक योजना है।
- किशोरी स्वास्थ्य कार्ड: किशोर लड़कियों का वज़न, ऊंँचाई, बॉडी मास इंडेक्स (Body Mass Index- BMI) के बारे में जानकारी दर्ज करने के उद्देश्य से इन स्वास्थ्य कार्डों को आंँगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से बनाया जाता है।
- किशोरियों के लिये योजना (Scheme for Adolescent Girls- SAG)।
- सुकन्या समृद्धि योजना (Sukanya Samridhi Yojana) आदि।
स्रोत: द हिंदू
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप
प्रिलिम्स के लिये:जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप, एक्सोप्लैनेट मेन्स के लिये:जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का अंतरिक्ष विज्ञान में महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2021 के अंत तक जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) को कक्षा में प्रक्षेपित किया जाना है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह ‘नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ (NASA) का सबसे शक्तिशाली इन्फ्रारेड टेलीस्कोप है।
- इसे हबल टेलीस्कोप का उत्तराधिकारी भी माना जाता है और यह अपनी खोजों का विस्तार करेगा।
- इसे वर्ष 1990 में पृथ्वी की निम्न कक्षा में लॉन्च किया गया, हबल स्पेस टेलीस्कोप ने 1.4 मिलियन से अधिक अवलोकन किये हैं, जिसमें ‘इंटरस्टेलर ऑब्जेक्ट्स’ पर नज़र रखना, बृहस्पति से टकराने वाले धूमकेतु को कैप्चर करना और प्लूटो के चारों ओर उपग्रहों की खोज करना शामिल है।
- हबल ने आकाशगंगाओं के विलय को कैप्चर किया, साथ ही सुपरमैसिव ब्लैक होल की जाँच की है और हमें हमारे ब्रह्मांड के इतिहास को समझने में मदद की है।
- यह नासा (NASA), यूरोपियन स्पेस एजेंसी (European Space Agency-ESA) और कनाडाई स्पेस एजेंसी (Canadian Space Agency-CSA) के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय मिशन है।
- जेम्स वेब नवीन और अप्रत्याशित खोजों को उजागर करेगा तथा मानव की ब्रह्मांड की उत्पत्ति तथा उसमें मानव के स्थान को समझने में मदद करेगा।
- टेलीस्कोप एक्सोप्लैनेट/बहिर्ग्रह (Exoplanet) के एक विस्तृत विविधतापूर्ण वायुमंडल का अध्ययन करेगा।
- यह पृथ्वी के समान वायुमंडल की भी खोज करेगा और जीवन के निर्माण खंडों को खोजने की उम्मीद में, मीथेन, जल, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा जटिल कार्बनिक अणुओं जैसे प्रमुख पदार्थों से संबंधित खोज करेगा।
- प्रक्षेपण:
- इसे दक्षिण अमेरिका के फ्रेंच गुयाना से एरियन 5 ESA रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा।
- एरियन 5 को सबसे विश्वसनीय लॉन्च व्हीकल्स में से एक माना जाता है।
- इसे दक्षिण अमेरिका के फ्रेंच गुयाना से एरियन 5 ESA रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा।
- लक्ष्य:
- बिग बैंग के बाद बनने वाली पहली आकाशगंगा की खोज करना।
- यह निर्धारित करने के लिये कि आकाशगंगाएँ अपने के गठन से अब तक कैसे विकसित हुईं।
- प्रथम चरण से लेकर ग्रह प्रणालियों के निर्माण तक तारों के निर्माण का निरीक्षण करना।
- ग्रह प्रणालियों के भौतिक और रासायनिक गुणों को मापने तथा ऐसी प्रणालियों में जीवन की संभावना की जाँच करने के लिये।
- जेम्स वेब बनाम हबल स्पेस टेलीस्कोप :
- तरंगदैर्ध्य:
- जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (जिसे JWST या वेब भी कहा जाता है) मुख्य रूप से इन्फ्रारेड रेंज में निरीक्षण के साथ 0.6 से 28 माइक्रोन तक कवरेज प्रदान करेगा।
- हबल के उपकरण मुख्य रूप से स्पेक्ट्रम के पराबैंगनी और दृश्य भाग में देखते हैं। यह इन्फ्रारेड में 0.8 से 2.5 माइक्रोन तक केवल एक छोटी सी सीमा का निरीक्षण कर सकता है।
- विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम का अवरक्त क्षेत्र लगभग 0.7 से लेकर 100 माइक्रोन तक की तरंगदैर्ध्य को कवर करता है।
- आकार:
- वेब के प्राथमिक दर्पण का व्यास 6.5 मीटर है जबकि हबल के दर्पण का व्यास 2.4 मीटर है जो वेब की तुलना में बहुत छोटा है।
- इसलिये हबल के कैमरे की तुलना में वेब का दृश्य क्षेत्र अधिक होगा।
- वेब में एक बड़ा सन शील्ड भी लगा होता है।
- वेब के प्राथमिक दर्पण का व्यास 6.5 मीटर है जबकि हबल के दर्पण का व्यास 2.4 मीटर है जो वेब की तुलना में बहुत छोटा है।
- दूरी:
- वेब के निकट और मध्य-अवरक्त उपकरण पहली गठित आकाशगंगाओं, एक्सोप्लैनेट तथा सितारों के जन्म का अध्ययन करने में मदद करेंगे।
- हबल "टोड्लर गैलेक्सी" के बराबर देख सकता है जबकि वेब टेलीस्कोप "बेबी गैलेक्सी " को देखने में सक्षम होगा।
- वेब के निकट और मध्य-अवरक्त उपकरण पहली गठित आकाशगंगाओं, एक्सोप्लैनेट तथा सितारों के जन्म का अध्ययन करने में मदद करेंगे।
- तरंगदैर्ध्य:
- अन्य प्रमुख इन्फ्रारेड टेलीस्कोप:
- हर्शेल स्पेस ऑब्जर्वेटरी टेलीस्कोप: यह एक इन्फ्रारेड टेलीस्कोप है जिसे वर्ष 2009 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा लॉन्च किया गया था।
- यह वेब की तरह सूर्य की परिक्रमा भी करता है वेब और हर्शेल के बीच प्राथमिक तरंगदैर्ध्य रेंज का अंतर है। वेब 0.6 से 28 माइक्रोन जबकि हर्शेल 60 से 500 माइक्रोन को कवर करता है।
- हर्शल का दर्पण वेब के दर्पण से छोटा होता है। इसका व्यास 3.5 मीटर है जबकि वेब के प्राथमिक दर्पण का व्यास 6.5 मीटर है।
- हर्शेल स्पेस ऑब्जर्वेटरी टेलीस्कोप: यह एक इन्फ्रारेड टेलीस्कोप है जिसे वर्ष 2009 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा लॉन्च किया गया था।