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टू द पॉइंट

सामाजिक न्याय

वर्षांत समीक्षा 2019: अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय

  • 25 Jun 2020
  • 21 min read

परिचय

प्रति वर्ष भारत सरकार के सभी मंत्रालय अपनी वार्षिक समीक्षा जारी करते हैं, जिनके अंतर्गत गत वर्ष में मंत्रालय द्वारा अर्जित उपलब्धियों, चुनौतियों और भावी योजनाओं के विषय में संक्षिप्त ब्यौरा दिया जाता है। प्रीलिम्स के नज़रिये से देखें तो संबंधित मंत्रालय के वार्षिक ब्यौरे में निहित सभी Terms महत्त्वपूर्ण हैं, इनके तथ्यात्मक पक्ष के साथ-साथ आप विवरणात्मक पक्ष पर विशेष ध्यान दीजिये। मुख्य परीक्षा के लिये उत्तर लेखन में मंत्रालय द्वारा दिये गए विवरण को शामिल करते हुए अपने उत्तर को और अधिक प्रमाणिक एवं प्रभावी बना सकते हैं। 

महत्त्वपूर्ण योजनाएँ और नीतियाँ

प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम

(Pradhanmantri Jan Vikas Karyakram)

  • इस योजना के अंतर्गत देश भर में 104 कॉमन सर्विस सेंटर (Common Service Centres) स्वीकृत किये गए हैं।
  • ये सेंटर ज़रूरतमंदों के लिये एकल-खिड़की सहायता केंद्र की तरह काम करेंगे, जहाँ आम लोगों को केंद्र-राज्य सरकार की विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी दी जाएगी। साथ ही ज़रूरतमंदों को इन सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ प्राप्त करने में सहायता दी जाएगी। 
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों के लिये सामाजिक-आर्थिक और बुनियादी सुविधाएँ जैसे- स्कूल, कॉलेज, पॉलिटेक्निक, गर्ल्स हॉस्टल, आईटीआई, कौशल विकास केंद्र आदि विकसित करना है।

‘बेगम हज़रत महल बालिका छात्रवृत्ति’

(Begum Hazrat Mahal Girls Scholarships)

  • इस छात्रवृत्ति योजना के तहत छह अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों (मुस्लिम, इसाई, सिक्ख, बौद्ध, पारसी और जैन) की मेधावी छात्राओं को छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है।
  • योजना का कार्यान्वयन मौलाना आज़ाद शिक्षा प्रतिष्ठान (Maulana Azad Education Foundation) द्वारा किया जा रहा है।
  • इस योजना के तहत छात्राओं को 9वीं, 10वीं (5000 रुपए प्रत्येक वर्ष), 11वीं और 12वीं कक्षाओं के लिये 6000 रुपए प्रतिवर्ष छात्रवृत्ति दी जाती है।

मौलाना आज़ाद शिक्षा प्रतिष्ठान

(Maulana Azad Education Foundation- MAEF)

  • MAEF की स्थापना वर्ष 1989 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम (Societies Registration Act), 1860 के तहत पंजीकृत एक स्वैच्छिक, गैर-राजनीतिक, गैर-लाभ प्राप्तकर्त्ता सोसायटी के रूप में हुई थी।

लक्ष्य एवं उद्देश्य:

  • MAEF का मुख्य उद्देश्य विशेष रूप से शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े अल्पसंख्यकों के लाभार्थ तथा सामान्यतः कमज़ोर वर्गों के लिये शैक्षिक योजनाएँ तैयार करना और उन्हें कार्यान्वित करना है।

गरीब नवाज़ रोज़गार योजना

(Gharib Nawaz Employment Scheme)

  • केंद्र द्वारा अधिसूचित 6 अल्‍पसंख्‍यक समुदायों मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन से जुड़े युवाओं के लिये रोज़गारपरक अल्‍पावधि कौशल विकास पाठ्यक्रम उपलब्‍ध कराने के लिये वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान इस योजना की शुरुआत की गई थी।
  • इस योजना का क्रियान्वयन मौलाना आज़ाद शिक्षा प्रतिष्ठान (Maulana Azad Education Foundation- MAEF) के माध्यम से किया जा रहा है।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रमों की निगरानी MAEF की सशक्त कार्यान्वयन एजेंसियों तथा MAEF में स्थापित एक कार्यक्रम निगरानी इकाई (Program Monitoring Unit- PMU) के माध्यम से की जाती है।

सीखो और कमाओ

(Seekho aur Kamao)

अल्पसंख्यकों के विकास हेतु यह केंद्रीय क्षेत्र की योजना (Central Sector Scheme) है अर्थात् इसका शत प्रतिशत वित्तपोषण केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है। योजना के तहत प्रशिक्षणार्थी की आयु 14-35 के बीच तथा न्यूनतम शिक्षा कम-से-कम पाँचवीं कक्षा तक होनी चाहिये।

योजना का उद्देश्य

  • अल्पसंख्यकों की बेरोज़गारी दार को कम करना।
  • अल्पसंख्यकों के पारंपरिक कौशल का संरक्षण एवं उन्नयन करना तथा उन्हें बाज़ार के साथ जोड़ना।
  • मौजूदा कार्मिकों की रोज़गारपरता को बेहतर बनाना तथा उनका स्थापन (प्लेसमेंट) सुनिश्चित करना और बीच में पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या में कमी लाना, आदि।
  • हाशिये पर रह रहे अल्पसंख्यकों के लिये आजीविका के बेहतर साधन उपलब्ध कराना तथा उन्हें मुख्य धारा में शामिल करना।
  • बढ़ते हुए बाज़ार में अवसरों का लाभ उठाने में अल्पसंख्यकों को सक्षम बनाना।
  • देश के लिये सशक्त मानव संसाधन तैयार करना।

नई मंज़िल

(Nai Manzil)

  • ‘नई मंजिल’ औपचारिक स्‍कूल शिक्षा और स्‍कूल छोड़ चुके बच्‍चों के कौशल विकास की एक योजना है। इस योजना की शुरुआत अगस्त, 2015 में तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री डॉ. नजमा हेपतुल्ला द्वारा की गई थी। योजना की शुरुआत पटना, बिहार से हुई थी।
  • ‘नई मंज़िल’ स्कूल से बाहर आए या बीच में ही पढ़ाई छोड़ चुके सभी छात्रों और मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों के लिये एक नई दिशा तथा एक नया लक्ष्य प्रदान करती है।
  • इस योजना का उद्देश्य प्रशिक्षुकों को ब्रिज पाठ्यक्रमों द्वारा शैक्षिक भागीदारी उपलब्ध कराना है, ताकि उन्हें दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से 12वीं और 10वीं कक्षा के प्रमाण पत्र उपलब्ध हो सकें।
  • सभी अल्पसंख्यक समुदायों के 17 से 35 वर्ष के आयु समूहों के लोगों के साथ-साथ मदरसे में पढ़ने वाले छात्र इस योजना के दायरे में आते हैं।
  • इसके साथ ही उन्हें निम्नलिखित 4 पाठ्यक्रमों में ट्रेड आधार पर कौशल प्रशिक्षण भी उपलब्ध कराया जाता है-
    1. विनिर्माण
    2. इंजीनियरिंग
    3. सेवाएँ
    4. सरल कौशल

उस्ताद 

(USTTAD)

‘उस्ताद’ यानी विकास के लिये पारंपरिक कलाओं/शिल्पों में कौशल और प्रशिक्षण का उन्नयन (Upgrading the Skills and Training in Traditional Arts/Crafts for Development- USTTAD) इस योजना की शुरुआत वर्ष 2015 में की गई। यह केंद्रीय क्षेत्र की योजना है तथा इसके प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  • अल्पसंख्यकों की पारंपरिक कला/शिल्प की समृद्ध विरासत को संरक्षित करना।
  • सिद्धहस्त शिल्पकारों/कारीगरों का क्षमता निर्माण करना तथा मास्टर शिल्पकारों/कारीगरों के माध्यम से युवाओं को प्रशिक्षित करना।
  • चिह्नित कलाओं/शिल्पों के मानक स्थापित करना तथा उनका प्रलेखन (Documentation) करना।
  • पारंपरिक कौशल का वैश्विक बाज़ार के साथ संबंध स्थापित करना।
  • पारंपरिक कलाओं/शिल्पों में डिज़ाइन विकास एवं अनुसंधान।

योजना के लिये पात्रता

  • इस योजना के तहत लाभ प्राप्त करने के लिये अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदाय के अभ्यर्थी को वस्त्र डिज़ाइन, चमड़ा डिज़ाइन, कालीन अथवा वह क्षेत्र जिसमें वह अध्येतावृति का लाभ प्राप्त करना चाहता है, में मान्यता प्राप्त संस्थान से 50 प्रतिशत अंकों के साथ स्नातकोत्तर (Post Graduate) होना चाहिये।
  • उसने नियमित Ph.d या M.Phil के लिये किसी विश्वविद्यालय अथवा संस्थान में प्रवेश लिया हो।
  • उसकी उम्र 35 वर्ष से अधिक न हो।

नई रोशनी

(Nai Roshni)

अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा वर्ष 2011-12 में इस योजना को तैयार किया गया था तथा इसे “नई रोशनी अल्पसंख्यक महिलाओं में नेतृत्त्व क्षमता विकास की योजना” नाम दिया गया। 

  • इस योजना का उद्देश्य सभी स्तर पर सरकारी प्रणालियों, बैंकों और अन्य संसाधनों के साथ कार्य व्यवहार कार्य हेतु जानकारी, साधन तथा तकनीकें मुहैया कराकर उसी गाँव/मोहल्ले में रहने वाली उनकी पड़ोसियों सहित अल्पसंख्यक महिलाओं को सशक्त बनाना है। 
  • अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं को अपने घरों तथा समुदायों की सीमाओं से बाहर निकलने तथा अपने जीवन और रहन-सहन में सुधार लाने के लिये सरकार के विकास लाभों में अपने समुचित हिस्से का दावा करने सहित सेवाओं, सुविधाओं, कौशलों तथा अवसरों तक पहुँच बनाने में सामूहिक अथवा व्यक्तिगत रूप में नेतृत्व भूमिकाओं का उत्तरदायित्त्व प्राप्त करने के लिये सहज तथा साहसी बनाना। इसके अंतर्गत प्रशिक्षित महिलाओं का सशक्तीकरण शामिल है ताके वे अंततः समाज के स्वतंत एवं आत्मविश्वासी सदस्य बनें। 
  • इस योजना के अंतर्गत वित्तीय सहायता हेतु पात्र संगठन इस प्रकार है:
    1. सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत सोसायटी।
    2. विद्यमान किसी भी कानून के तहत पंजीकृत न्यास।
    3. भारतीय कंपनी अधिनियम की धारा-25 के तहत पंजीकृत गैर-लाभ वाली प्राइवेट लिमिटेड कंपनी।
    4. विश्व विद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय/उच्च शिक्षण संस्थान।
    5. केंद्र और राज्य सरकार/संघ राज्य क्षेत्र के प्रशिक्षण संस्थान तथा पंचायती राज प्रशिक्षण संस्थान।
    6. महल/स्व-सहायता समूहों की विधिवत पंजीकृत सहकारी सोसाइटियाँ।
    7. राज्य सरकार की राज्य चैनलाइजिंग एजेंसियाँ।
  • कार्यान्वयन
    1. इस योजना का कार्यान्वयन अल्पसंख्यक मंत्रालय द्वारा चुनिंदा संगठनों के माध्यम से कराया जाता है।
    2. चुनिंदा संगठन इस परियोजना को अपने संगठनात्मक ढाँचे के माध्यम से इलाके/ग्राम/क्षेत्र में सीधे कार्यान्वित कर सकते हैं।
    3. परियोजना को समुचित और सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने की ज़िम्मेदारी उस संगठन की होगी जिसे मंत्रालय द्वारा यह कार्य सौंपा गया है।

हुनर हाट

(Hunar Haat)

  • इस योजना की शुरुआत मास्टर कारीगरों, शिल्पकारों और पारंपरिक पाक विशेषज्ञों को बाज़ार एवं रोज़गार तथा रोज़गार के अवसर प्रदान करने के लिये की गई है।
  • हुनर हाट अल्पसंख्यक समुदायों के कारीगरों द्वारा बनाए गए हस्तशिल्प और पारंपरिक उत्पादों की एक प्रदर्शनी है।
  • पहले हुनर हाट का आयोजन नवंबर 2016 में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले के दौरान प्रगति मैदान, नई दिल्ली में किया गया था।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • भारत में 6 अल्पसंख्यक समुदाय: जैन, पारसी, बौद्ध, ईसाई, सिख और मुस्लिम।
  • भारतीय संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। तथापि संविधान केवल धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को मान्यता देता है।
  • अनुच्छेद 29: इसमें प्रावधान किया गया है कि भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, को उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
    • यह धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ-साथ भाषाई अल्पसंख्यकों दोनों को संरक्षण प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 30: इस अनुच्छेद के तहत सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रूचि के शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
    • अनुच्छेद 30 के तहत संरक्षण केवल अल्पसंख्यकों (धार्मिक या भाषाई) तक ही सीमित है, अनुच्छेद 29 की तरह यह नागरिकों के किसी भी वर्ग के लिये उपलब्ध नहीं है।
  • अनुच्छेद 350-B: मूल रूप से, भारतीय संविधान में भाषाई अल्पसंख्यकों के लिये विशेष अधिकारी के संबंध में कोई प्रावधान नहीं किया गया था। लेकिन, 1956 के सातवें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में अनुच्छेद 350-B को जोड़ा गया।
    • इसके अनुसार, भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिये एक विशेष अधिकारी होगा जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
    • विशेष अधिकारी का यह कर्त्तव्य होगा कि वह संविधान के अंतर्गत भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिये उपबंधित रक्षोपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण करे। 
  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992: यह अधिनियम अल्पसंख्यक को "केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित समुदाय के रूप में परिभाषित करता है।"
    • इस अधिनियम के तहत सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities) का गठन किया जिसमें अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और पाँच सदस्य होते हैं।
    • अध्यक्ष सहित पाँच सदस्य अल्पसंख्यक समुदायों में से होंगे।
    • आयोग संविधान और संसद एवं राज्य विधान-मंडलों द्वारा अधिनियमित विधियों में उपबंधित रक्षोपायों के कार्य की निगरानी करता है।
  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग प्रत्येक वर्ष 18 दिसंबर को अल्पसंख्यक अधिकार दिवस (Minorities Rights Day) के रूप में मनाता है।
    • यह दिवस वर्ष 1992 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा "राष्ट्रीय या जातीय, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्तियों के अधिकारों की घोषणा" को अपनाने का प्रतीक है।

हज के लिये डिजिटल 100 प्रतिशत डिजिटल प्रक्रिया

  • भारत हज 2020 की समग्र प्रक्रिया को सौ प्रतिशत डिजिटल बनाने वाला विश्व का पहला देश बन गया है।
  • ऑनलाइन आवेदन, ई-वीज़ा, हज पोर्टल, हज मोबाइल एप, ‘ई-मसीहा’ स्वास्थ्य सुविधा, ‘ई-लगेज टैगिंग’ व्यवस्था के ज़रिये भारत से मक्का-मदीना जाने वाले हज यात्रियों को जोड़ा गया है।
    • एयरलाइन्स द्वारा हज यात्रियों के सामान की डिजिटल प्री-टैगिंग की व्यवस्था की गई है जिससे भारत से जाने वाले हज यात्रियों को भारत में ही सभी प्रकार की जानकारियाँ मिल जाएंगी, जैसे- हज यात्रियों को मक्का-मदीना में किस भवन के किस कमरे में ठहरना है, हवाई अड्डे पर उतरने के बाद किस नंबर की बस में जाना है, इत्यादि।
    • हज यात्रियों के सिम कार्ड को हज मोबाइल एप से लिंक करने की व्यवस्था की गई है जिससे हज यात्रियों को मक्का-मदीना में हज से संबंधित नवीनतम जानकारियाँ तत्काल प्राप्त होती रहेंगी।
    • ‘ई-मसीहा’ (E Medical Assistance System for Indian Pilgrims Abroad- E-MASIHA) स्वास्थ्य सुविधा है जिसमें प्रत्येक हज यात्री की सेहत से जुड़ी सभी जानकारियाँ ऑनलाइन उपलब्ध रहेंगी। इससे किसी भी आपात स्थिति में हज यात्री को तत्काल मेडिकल सेवा उपलब्ध कराई जा सकेगी।

वक्फ

(Waqf)

  • देश भर की वक्फ संपत्तियों के सौ प्रतिशत डिजिटाइजेशन का लक्ष्य हासिल कर लिया गया है।
  • इसके अलावा वक्फ संपत्तियों की 100 प्रतिशत जियो टैगिंग/GPS मैपिंग के लिये अभियान शुरू किया गया है ताकि देश भर में स्थित वक्फ सम्पत्तियों का सदुपयोग समाज की भलाई के लिये किया जा सके। 
  • वक्फ बोर्ड के कामकाज से संबंधित मुद्दों तथा देश में वक्फ के समुचित प्रशासन से संबंधित मुद्दों के बारे में परामर्श देने के लिये दिसंबर 1964 केंद्रीय वक्फ परिषद की स्थापना एक संवैधानिक निकाय के रूप में की गई थी।
    • हालाँकि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2013 [Waqf (Amendment) Act] के प्रावधानों के तहत परिषद की भूमिका में काफी विस्तार किया गया।
    • परिषद को केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और राज्य वक्फ बोर्डों (State Waqf Boards) को सलाह देने का अधिकार प्राप्त है।

नोट:

  • वक्फ धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये ईश्वर के नाम पर दी गई संपत्ति है।
  • कानूनी रूप में वक्फ मुस्लिम कानून द्वारा मान्यता प्राप्त धार्मिक, पवित्र तथा धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये चल अथवा अचल परिसंपत्तियों का स्थायी समर्पण है।
  • एक वक्फ का सृजन किसी दस्तावेज़ या लिखत/प्रपत्र के माध्यम से किया जा सकता है, अथवा एक संपत्ति को वक्फ माना जा सकता है यदि इसका उपयोग लंबे समय तक धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये किया गया हो।
    • वक्फ से प्राप्त आय का उपयोग आमतौर पर शैक्षणिक संस्थानों, कब्रिस्तानों, मस्ज़िदों और आश्रय गृहों को वित्तपोषित करने के लिये किया जाता है।
  • वक्फ बनाने वाला व्यक्ति अपनी संपत्ति वापस नहीं ले सकता है और वक्फ एक सतत् इकाई होगी।
  • एक गैर-मुस्लिम भी एक वक्फ का सृजन कर सकता है, लेकिन व्यक्ति की इस्लाम में आस्था होनी चाहिये और वक्फ बनाने का उद्देश्य इस्लामी होना चाहिये।
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