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जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु संकट और ऊर्जा

  • 13 May 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस, मानव विकास सूचकांक

मेन्स के लिये:

जलवायु संकट और ऊर्जा से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

नेहरू विज्ञान केंद्र, मुंबई (Nehru Science Centre, Mumbai) द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन व्याख्यान में ‘जलवायु संकट के संदर्भ में ऊर्जा की जरूरतों से निपटने के बारे में’ (Dealing With Energy Needs In The Context Of Climate Crisis) चर्चा की गई। 

प्रमुख बिंदु:

  • 22 वर्ष पहले हुए परमाणु परीक्षण की याद में ‘राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस’ मनाया जाता है। इसका उद्देश्य भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपलब्धियों का स्मरण करना है।
  • व्याख्यान में ‘मानव विकास सूचकांक’ (Human Development Index-HDI) और विश्व भर में प्रति व्‍यक्ति ऊर्जा खपत के बीच सह संबंधों के बारे में भी चर्चा की गई। 
  • HDI तथा ऊर्जा संबंधी आँकड़ों के अनुसार, उच्च गुणवत्ता वाला जीवन व्यतीत कर रहे देशों (उच्च HDI वाले देश) की प्रति व्‍यक्ति ऊर्जा खपत उच्चतम है।

  • दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के बारे में अध्ययनरत शोधकर्त्ता इस बारे में विचार कर रहे हैं कि पर्यावरण के लिये गंभीर खतरा बन चुकी कार्बन-डाई-ऑक्साइड के उत्सर्जन को कैसे रोका जाए।
  • ‘जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल’ (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2100 में तापमान में वृद्धि को 1.5℃ से नीचे रखने हेतु वर्ष 2030 तक ग्रीन हाउस गैस (Green House Gas- GHG) के उत्सर्जन में 45% की कटौती करनी होगी, साथ ही GHG को वर्ष 2010 के स्तर से नीचे और वर्ष 2050 तक स्पष्ट  रूप से शून्य तक करने की ज़रूरत है।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल

(Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC):

  • IPCC की स्थापना संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और विश्व मौसम संगठन द्वारा वर्ष 1988 में की गई थी।
  • यह जलवायु परिवर्तन पर नियमित वैज्ञानिक आकलन, इसके निहितार्थ और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ, अनुकूलन और शमन के विकल्प भी उपलब्ध कराता है।
  • IPCC का मुख्यालय ज़िनेवा में स्थित है तथा वर्तमान में इसके 195 सदस्य हैं।
  • दूसरे शब्दों में कहें तो हमारे पास दुनिया भर के अनेक देशों की विकास आकांक्षाओं को सुनिश्चित करते हुए कार्बन डाईऑक्‍साइड के उत्सर्जन में गहन कटौती करने हेतु केवल 10 वर्ष का समय ही शेष है।
  • उक्त लक्ष्य को हासिल करने के लिये विश्व को त्वरित गति से लागू की जाने योग्य प्रौद्योगिकियों का लाभ का उठाते हुए कदम उठाने होंगे। इन्हीं परिस्थितियों में परमाणु ऊर्जा की आवश्यकता उत्पन्न होती है, जो ‘शून्य उत्सर्जन’ का लक्ष्य सुगमता से हासिल कर सकती है। 
  • परमाणु ऊर्जा के योगदान से डिकार्बनाइज़िग या कार्बन की गहनता में अपार कमी लाने संबंधी लागत में कमी लाई जा सकती है। 
  • डिकार्बनाइज़िग का आशय कार्बन की गहनता में कमी लाना है अर्थात प्रति इकाई उत्पादित बिजली के उत्सर्जन में कमी लाना है। 
  • कम कार्बन वाले ऊर्जा स्रोत- विशेषकर सौर, हाइड्रो और परमाणु के साथ बायोमास जैसी नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी को बढ़ाकर शून्य उत्सर्जन के लक्ष्‍य को काफी हद तक प्राप्त किया जा सकता हैं। 

भारत की स्थिति:

  • जलवायु संबंधी समस्याओं के बढ़ने के साथ ही भारत जैसे विकासशील देश को एक ऐसी चुनौती का सामना करना पड़ता है, जहाँ ‘ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु सुरक्षा’ जैसे मामलों के बीच अंतर्विरोध उत्पन्न हो जाते हैं। 
  • भारत को कार्बन की गहनता में कमी लाने हेतु नवीकरणीय ऊर्जा में 30 गुना वृद्धि, परमाणु ऊर्जा में 30 गुना वृद्धि और तापीय ऊर्जा को दोगुना करने की आवश्यकता है जिससे 70% ऊर्जा कार्बन मुक्त होगी।

भारतीय परमाणु ऊर्जा 

  • वर्तमान में देश की ऊर्जा संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु 49180 मेगावाट की क्षमता के साथ 66 इकाइयाँ (परिचालित, योजनाधीन, निर्माणाधीन और स्वीकृत परियोजनाओं सहित) हैं।
  • ऊर्जा उत्पादन के दौरान उत्पन्न होने वाले परमाणु अपशिष्‍ट का प्रबंधन एक बड़ी समस्या है।
  • भारत ‘परमाणु पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकी’ की नीति को अपनाता है। ‘परमाणु पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकी’ के तहत ऊर्जा उत्पादन हेतु एक बार उपयोग किये जा चुके- यूरेनियम, प्लूटोनियम इत्यादि जैसे परमाणु ईंधन को वाणिज्यिक उद्योगों द्वारा संसाधन सामग्री के रूप में पुन: उपयोग करने हेतु पुनर्चक्रित किया जाता है।
  • भारत में 99% से अधिक परमाणु अपशिष्‍ट का पुन: उपयोग किया जाता है।

अन्य देशों की स्थिति:

  • वर्ष 2030 तक जापान ने कार्बन-डाई-ऑक्साइड में कमी लाने हेतु अपनी कुल ऊर्जा खपत का 20- 22% परमाणु ऊर्जा से सृजित करने हेतु योजना तैयार किया है।
  • जर्मनी और जापान जैसे देश पहले से ही क्रमशः वर्ष 2020 एवं वर्ष 2030 तक GHG उत्सर्जन में कटौती करने की योजना बना रहे हैं साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन पर अत्यधिक धनराशि का भी आवंटन किया है।

आगे की राह:

  • अनेक देशों द्वारा ऊर्जा दक्षता के क्षेत्र में सक्रिय प्रयास किये जाने के बावजूद कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का उत्सर्जन पिछले वर्षों की तुलना में अभी भी अधिक है।
  • विभिन्न देशों द्वारा अपने HDI के आधार पर कार्बनडाई ऑक्साइड के उत्सर्जन को नियंत्रित करने हेतु विचार-विमर्श किया जाना चाहिये।
  • बिजली उत्पादन में कार्बन की गहनता में कमी करना साथ ही मध्यम HDI वाले देशों को गैर-जीवाश्म बिजली की खपत पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा।
  • कम HDI वाले देशों को अपने नागरिकों को स्वच्छ ऊर्जा के सस्ते स्रोत प्रदान करने में सक्षम होना चाहिये।
  • आज जरूरत इस बात की है कि मानव जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के साथ-ही-साथ जलवायु संकट पर नियंत्रण रखने के बीच संतुलन कायम किया जाए। 

स्रोत: पीआईबी

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