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डेली न्यूज़

  • 13 Jul, 2021
  • 69 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

पर्यावरणीय उल्लंघन से निपटने के लिये SOP

प्रिलिम्स के लिये:

पर्यावरणीय उल्लंघन से निपटने के लिये मानक संचालन प्रक्रिया, राष्ट्रीय हरित अधिकरण, तटीय विनियमन क्षेत्र

मेन्स के लिये:

पर्यावरणीय उल्लंघन के लिये मानक संचालन प्रक्रिया का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने पर्यावरण उल्लंघन संबंधी मामलों से निपटने के लिये मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी की।

  • यह SOP राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेशों का परिणाम है, जिसके अंतर्गत वर्ष 2021 की शुरुआत में मंत्रालय को हरित उल्लंघन के लिये दंड और एक SOP जारी करने का निर्देश दिया गया था।

प्रमुख बिंदु:

SOP के अनुसार हरित उल्लंघन की श्रेणियाँ:

  • मंज़ूरी रहित परियोजनाएँ:
    • इनमें निर्माण कार्य, मौजूदा परियोजना का विस्तार शामिल है, जो परियोजना प्रस्तावक के पास पर्यावरणीय मंज़ूरी प्राप्त किये बिना शुरू हो गई है।
    • ऐसी परियोजनाएँ जो पर्यावरण मंज़ूरी के लिये अनुमत नहीं हैं।
    • परियोजना की अनुमेयता की जाँच इस परिप्रेक्ष्य में की जाएगी कि क्या ऐसी गतिविधि/परियोजना पूर्व पर्यावरण मंज़ूरी प्राप्त करने के लिये योग्य थी।
      • उदाहरण के लिये: यदि एक लाल उद्योग (प्रदूषण सूचकांक (PI) स्कोर 60 और उससे अधिक वाले औद्योगिक क्षेत्र), तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ)-I में काम कर रहा है, तो इसका अर्थ है कि परियोजना के शुरू होने के समय इसकी अनुमति नहीं थी, अतः इस गतिविधि को बंद किया जाए।
      • किसी भी औद्योगिक क्षेत्र का PI 0 से 100 तक की संख्या होती है और PI का बढ़ता मान औद्योगिक क्षेत्र से प्रदूषण भार की बढ़ती डिग्री को दर्शाता है। यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा विकसित किया गया है तथा लाल, नारंगी, हरे और सफेद श्रेणियों में औद्योगिक क्षेत्रों के वर्गीकरण के लिये उपयोग किया जाता है।
  • गैर-अनुपालन परियोजनाएँ:
    • जिन परियोजनाओं में पूर्व पर्यावरण मंज़ूरी दी गई है, लेकिन यह अनुमोदन निर्धारित मानदंडों का उल्लंघन है।
    • ऐसी परियोजनाएँ जो पर्यावरण कानून के अनुसार अनुमत हैं लेकिन जिन्हें अपेक्षित मंज़ूरी नहीं मिली है।
    • उत्पादन की मात्रा में वृद्धि सहित किसी परियोजना के विस्तार के मामले में यदि पर्यावरणीय मंज़ूरी प्राप्त नहीं हुई है तो सरकारी एजेंसी परियोजना प्रस्तावक को विस्तार से पहले निर्माण/विनिर्माण स्तर पर वापस लाने के लिये मज़बूर कर सकती है।

जुर्माना:

  • उन मामलों में जहाँ आवश्यक पर्यावरणीय मंज़ूरी के बिना संचालन शुरू हो गया है, कुल परियोजना लागत का 1% और इसके अलावा उल्लंघन की अवधि के दौरान कुल कारोबार का 0.25% जुर्माना लगाया जाएगा।
  • उल्लंघन के मामलों में जहाँ संचालन शुरू नहीं हुआ है, आवेदन दाखिल करने की तारीख तक कुल परियोजना लागत का 1% (उदाहरण- 1 करोड़ रुपए की परियोजना के लिये 1 लाख रुपए) का जुर्माना लगाया जाएगा।

पर्यावरणविदों की चिंताएँ:

  • SOPउल्लंघनों को सामान्य करता है जिसके द्वारा उन्हें जुर्माना देकर छोड़ दिया जाता है।
  • यह प्रदूषक भुगतान मानदंड के आधार पर उल्लंघनों का संस्थागतकरण है।

MoEFCC की अन्य संबंधित पहलें:

  • इससे पहले एमओईएफसीसी ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत मौजूदा ईआईए अधिसूचना, 2006 को बदलने के इरादे से पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2020 का मसौदा प्रकाशित किया है।
  • वर्ष 2017 में मंत्रालय ने पर्यावरणीय उल्लंघनों के मामलों में दंडित करने को लेकर छह महीने की माफी योजना शुरू की थी, जिसे बाद में बढ़ा दिया गया था।

पर्यावरण प्रभाव आकलन

पर्यावरण प्रभाव आकलन के विषय में:

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) द्वारा पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को निर्णय लेने से पूर्व किसी परियोजना के पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों की पहचान करने हेतु उपयोग किये जाने वाले उपकरण के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • इसका लक्ष्य परियोजना नियोजन और डिज़ाइन के प्रारंभिक चरण में पर्यावरणीय प्रभावों की भविष्यवाणी करना, प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के तरीके और साधन खोजना, परियोजनाओं को स्थानीय पर्यावरण के अनुरूप आकार देना और निर्णय निर्माताओं के लिये विकल्प प्रस्तुत करना है।
  • भारत में पर्यावरण प्रभाव आकलन संबंधी प्रक्रिया को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 द्वारा वैधानिक समर्थन प्राप्त है।

महत्त्व:

  • यह विकास संबंधी परियोजनाओं के प्रतिकूल प्रभाव को समाप्त करने या कम करने के लिये एक लागत प्रभावी साधन प्रदान करता है।
  • यह नीति निर्माताओं को विकासात्मक परियोजना के लागू होने से पूर्व पर्यावरण पर विकासात्मक गतिविधियों के प्रभाव का विश्लेषण करने में सक्षम बनाता है।
  • विकास योजना में शमन रणनीतियों के अनुकूलन को प्रोत्साहित करता है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि संबंधित विकास योजना पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ है और पारिस्थितिकी तंत्र के आत्मसात एवं पुनर्जनन की क्षमता की सीमा के भीतर है।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT)

  • यह पर्यावरण संरक्षण और वनों एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी तथा शीघ्र निपटान हेतु राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम (2010) के तहत स्थापित एक विशेष निकाय है।
  • NGT की स्थापना के साथ भारत एक विशेष पर्यावरण न्यायाधिकरण स्थापित करने वाला दुनिया का तीसरा (और पहला विकासशील) देश बन गया। इससे पहले केवल ऑस्ट्रेलिया व न्यूज़ीलैंड में ही ऐसे किसी निकाय की स्थापना की गई थी।
  • NGT अपने पास आने वाले पर्यावरण संबंधी मुद्दों का निपटारा 6 महीनों के भीतर करने हेतु अधिदेशित/आज्ञापित है।
  • NGT का मुख्यालय दिल्ली में है, जबकि अन्य चार क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई में स्थित हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत का पहला क्रिप्टोगेमिक गार्डन

प्रिलिम्स के लिये 

 क्रिप्टोगेमिक गार्डन (Cryptogamic Garden), जिम्नोस्पर्म, एंजियोस्पर्म, थैलोफाइटा,  ब्रायोफाइटा, टेरिडोफाइटा

मेन्स के लिये

 क्रिप्टोगेमिक गार्डन के स्थानीयकरण के कारक,  क्रिप्टोगेम का संक्षिप्त परिचय एवं वर्गीकरण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तराखंड के देहरादून के चकराता शहर में भारत के पहले क्रिप्टोगेमिक गार्डन (Cryptogamic Garden) का उद्घाटन किया गया।

  • गार्डन में लाइकेन, फर्न और कवक ( इनके सामूहिक रूप को  क्रिप्टोगेमिक के रूप में जाना जाता है) की लगभग 50 प्रजातियाँ दिखाई देगी। 

नोट: 

  • पादप समुदाय को दो उप-समुदायों में विभाजित किया जा सकता है- क्रिप्टोगेम (Cryptogams) और फेनरोगेम (Phanerogams)।
  • क्रिप्टोगेम में बीज रहित पौधे और पौधे जैसे जीव होते हैं, जबकि फेनरोगेम में बीज वाले पौधे होते हैं।

प्रमुख बिंदु 

इस उद्यान/गार्डन के स्थानीय कारक: 

  • यह उद्यान चकराता के देवबन में 9,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है।
  • इस क्षेत्र को इसके निम्न प्रदूषण स्तर और आर्द्र जलवायु परिस्थितियों के कारण चुना गया है जो इन प्रजातियों के विकास के लिये अनुकूल है।
  • इसके अतिरिक्त देवबन में देवदार और ओक के प्राचीन घने वन हैं जो क्रिप्टोगेमिक प्रजातियों के लिये एक प्राकृतिक आवास निर्मित करते हैं।

क्रिप्टोगेम (Cryptogams):

  • क्रिप्टोगेम एक पौधा है जो बीजाणुओं द्वारा प्रजनन करता है।
  • "क्रिप्टोगेम" शब्द का अर्थ है 'अदृश्य प्रजनन', इसका अभिप्राय यह है कि वे किसी भी प्रजनन संरचना, बीज या फूल का उत्पादन नहीं करते हैं।
  • इसी कारण इन्हें "फूल रहित" या "बीज रहित पौधे" या 'लोअर प्लांट'' कहा जाता है।
  • इन प्रजातियों के अनुकूलन हेतु आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है।
  • ये जलीय और स्थलीय दोनों  क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  • क्रिप्टोगेम के सबसे प्रसिद्ध समूह शैवाल, लाइकेन, काई और फर्न हैं।

क्रिप्टोगेम का वर्गीकरण: क्रिप्टोगेम को पौधे के विभिन्न संरचनात्मक और कार्यात्मक मानदंडों के आधार पर 3 समूहों में वर्गीकृत किया जाता है।

  • थैलोफाइटा (Thallophyta): थैलोफाइटा पादप समुदाय का एक विभाजन है जिसमें पौधे के जीवन के प्राचीनतम रूप शामिल हैं जो एक सामान्य पौधे की संरचना को प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार के पौधों में जड़ों, तनों या पत्तियों की कमी होती है।
    • इसमें शैवाल जैसे स्पाइरोगाइरा(Spirogyra), सरगासम (Sargassum) आदि शामिल हैं।
    • ये मुख्य रूप से जलीय पौधे हैं तथा खारे और मीठे दोनों जल क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  • ब्रायोफाइटा (Bryophyta): ब्रायोफाइट्स में सीमित प्रजाति के गैर-संवहनी भूमि के पौधे शामिल होते हैं। इन पौधों हेतु आर्द्र जलवायु अनुकूल होती  है लेकिन वे शुष्क जलवायु में भी जीवित रह सकते हैं। उदाहरण- हॉर्नवॉर्ट्स (Hornworts), हपैटिक्स (Liverworts), हरिता (Mosses) इत्यादि।
    • वे शैवाल और टेरिडोफाइट्स के बीच एक मध्यवर्ती स्थिति पर उगते है।
    • चूँकि ब्रायोफाइटा को पादप जगत का उभयचर भी कहा जाता है क्योंकि ये भूमि और जल पर जीवित रह सकते हैं । 
  • टेरिडोफाइटा (Pteridophyta): टेरिडोफाइटा एक संवहनी पौधा है जो बीजाणुओं को फैलाता है। यह जाइलम और फ्लोएम वाला पहला पौधा है।
    • फर्न प्राचीनतम संवहनी पौधों का सबसे बड़ा जीवित समूह है।

क्रिप्टोगेम के अन्य प्रकार:

  • लाइकेन: लाइकेन एक मिश्रित जीव है जिसमें दो अलग-अलग जीवों, एक कवक और एक शैवाल के बीच पारस्परिक कल्याणकारी सहजीविता होती है। 
  • कवक: यह सामान्यत: बहुकोशिकीय यूकेरियोटिक जीवों का एक समुदाय है जो परपोषी होते  हैं।

Cryptogams

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत की तिब्बत नीति

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-तिब्बत-चीन सीमा

मेन्स के लिये:

भारत-तिब्बत नीति, तिब्बत नीति के प्रति भारतीय दृष्टिकोण से जुड़ी चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कुछ चीनी नागरिकों ने भारत में दलाई लामा के जन्मदिन के जश्न का विरोध किया।

  • भारत और चीन संबंधों के बीच दलाई लामा एवं तिब्बत प्रमुख अड़चन हैं।
  • चीन दलाई लामा को अलगाववादी मानता है, जिसका तिब्बतियों पर अधिक प्रभाव है। भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की निरंतर आक्रामकता का मुकाबला करने के लिये तिब्बती कार्ड का उपयोग करना चाहता है।

Tibet

प्रमुख बिंदु:

भारत की तिब्बत नीति की पृष्ठभूमि:

  • वर्षो से तिब्बत भारत का एक अच्छा पड़ोसी रहा है, क्योंकि भारत की अधिकांश सीमाओं सहित 3500 किमी. LAC तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के साथ जुड़ा है, न कि शेष चीन के साथ।
  • वर्ष 1914 में चीनियों व तिब्बती प्रतिनिधियों ने ब्रिटिश भारत के साथ शिमला सम्मेलन पर हस्ताक्षर किये जिसने सीमाओं का अंकन किया।
  • हालाँकि वर्ष 1950 में चीन द्वारा तिब्बत पर पूर्ण रूप से अधिकार करने के बाद चीन ने उस सम्मेलन और मैकमोहन रेखा को अस्वीकार कर दिया जिसने दोनों देशों को विभाजित किया था।
  • इसके अलावा 1954 में भारत ने चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें तिब्बत को "चीन के तिब्बत क्षेत्र" के रूप में मान्यता देने पर सहमति हुई।
  • वर्ष 1959 में तिब्बती विद्रोह के बाद दलाई लामा (तिब्बती लोगों के आध्यात्मिक नेता) और उनके कई अनुयायी भारत आ गए।
  • पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें और तिब्बती शरणार्थियों को आश्रय दिया तथा निर्वासन की स्थिति में तिब्बती सरकार की स्थापना में मदद की।
  • आधिकारिक भारतीय नीति यह है कि दलाई लामा एक आध्यात्मिक नेता हैं और भारत में एक लाख से अधिक निर्वासितों के साथ तिब्बती समुदाय को किसी भी राजनीतिक गतिविधि का अधिकार नहीं है।

भारत की तिब्बत नीति में बदलाव:

  • भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव की स्थिति में भारत की तिब्बत नीति में बदलाव आया है। नीति में यह बदलाव, सार्वजनिक मंचों पर दलाई लामा के साथ सक्रिय रूप से प्रबंधन करने वाली भारत सरकार को चिह्नित करता है। उदाहरण के लिये
    • वर्ष 2014 में भारत के प्रधानमंत्री ने भारत में निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रमुख लोबसंग सांगे को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया था।
      • हालाँकि प्रधानमंत्री ने वर्ष 2019 में दूसरे पाँच साल के कार्यकाल के लिये फिर से चुने जाने के बाद उन्हें आमंत्रित नहीं किया, ताकि उनके और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक द्वितीय अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के लिये एक सुगम मार्ग सुनिश्चित किया जा सके।
    • हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने दलाई लामा को वर्ष 2013 के बाद पहली बार सार्वजनिक स्वीकृति मिलने की शुभकामनाएँ दीं।
  • भारत की तिब्बत नीति में बदलाव मुख्य रूप से प्रतीकात्मक पहलुओं पर केंद्रित है, लेकिन तिब्बत नीति के प्रति भारत के दृष्टिकोण से संबंधित कई चुनौतियाँ हैं।

तिब्बत नीति के प्रति भारतीय दृष्टिकोण से जुड़ी चुनौतियाँ:

  • तिब्बती जनसांख्यिकी में परिवर्तन: पिछले कुछ दशकों में चीन अपनी मुख्य भूमि से लोगों को तिब्बत में प्रवास करने हेतु  प्रोत्साहित कर रहा है।
    • चीन उस तिब्बती आबादी का दमन कर रहा है जो दलाई लामा से संबंधित है या उसका समर्थन करती है तथा इस क्षेत्र में अपने निवेश, बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं को बढ़ा रहा है।
  • तिब्बती लोगो का एक-दूसरे के खिलाफ प्रयोग: जैसे-जैसे भारत-चीन के बीच तनाव बढ़ रहा है तथा गालवान घाटी संघर्ष के बाद यह और हिंसक हो गया है, चीन ने तिब्बती मिलिशिया समूहों को समर्थन देना शुरू कर दिया है।
    • इसके विपरीत भारतीय सेना तिब्बती स्पेशल फ्रंटियर फोर्स को प्रशिक्षित करती है, जिससे भविष्य में तिब्बती एक-दूसरे के खिलाफ लड़ सकते हैं।
  • तिब्बती नागरिकता का मुद्दा: भारत सरकार 1987 के कट-ऑफ वर्ष के बाद से भारत में पैदा हुए तिब्बतियों को नागरिकता प्रदान नहीं करती है।
    • इससे तिब्बती समुदाय के युवाओं में असंतोष की भावना उत्पन्न हुई है।
    • इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका द्वारा तिब्बती शरणार्थियों को स्वीकार किये जाने से अमेरिका की भूमिका महत्त्वपूर्ण हुई है। यह भविष्य में तिब्बती शरणार्थी संबंधी बहस के मुद्दे को प्रभावित करने वाली एकमात्र इकाई के रूप में भारत की भूमिका को प्रभावित करेगा।
  • दलाई लामा के उत्तराधिकार का प्रश्न: 86 वर्षीय दलाई लामा न केवल एक आध्यात्मिक नेता हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर तिब्बती  समुदाय के राजनीतिक नेता भी हैं।
    • दलाई लामा का दावा है कि उनका उत्तराधिकारी भारत के एक विशिष्ट क्षेत्र में या यहांँ तक कि ताइवान जैसे किसी अन्य देश में एक जीवित अवतार हो सकता है।

आगे की राह: 

  •  वर्तमान में भारत में बसने वाले तिब्बतियों को लेकर  एक कार्यकारी नीति (कानून नहीं) है।
  • भारत की वर्तमान तिब्बती नीति भारत में बसने वाले तिब्बतियों के कल्याण एवं विकास हेतु महत्त्वपूर्ण है, परंतु यह तिब्बत के मुख्य मुद्दों का कानूनी समर्थन नहीं करती है। उदाहरण के लिये तिब्बत के विध्वंसकारकों द्वारा तिब्बत में स्वतंत्रता की मांग।
  • अत: अब समय आ गया है कि भारत को भी चीन से निपटने में तिब्बत के मुद्दे पर अधिक मुखर रुख अपनाना चाहिये।
  • इसके अलावा भारत में  तिब्बत की एक युवा और अशांत आबादी निवास करती  है, जो  दलाई लामा के गुज़रने के बाद अपने नेतृत्व और कमान संरचना हेतु भारत से बाहर दिखती है। अत: भारत को ऐसी स्थिति से बचने की भी ज़रुरत है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

दिल्ली विधानसभा की ‘शांति एवं सद्भाव समिति’ की न्यायसंगतता

प्रीलिम्स के लिये

संविधान की 7वीं अनुसूची

मेन्स के लिये

केंद्र-राज्य के बीच शक्ति विभाजन संबंधी प्रावधान और इससे उत्पन्न मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अपने निर्णय में फरवरी 2020 की सांप्रदायिक हिंसा के सिलसिले में फेसबुक इंडिया के वरिष्ठ अधिकारी को तलब करने के दिल्ली विधानसभा की ‘शांति एवं सद्भाव समिति’ के अधिकार को बरकरार रखा है।

प्रमुख बिंदु

केंद्र सरकार और फेसबुक का दावा:

  • केंद्र सरकार और फेसबुक के मुताबिक, चूँकि कानून-व्यवस्था तथा दिल्ली पुलिस केंद्रीय विषय हैं, ऐसे में ‘शांति एवं सद्भाव समिति’ का गठन दिल्ली विधानसभा के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।

दिल्ली सरकार का पक्ष

  • दिल्ली विधानसभा ने राज्य सूची और समवर्ती सूची में शामिल विभिन्न प्रविष्टियों का उपयोग किया था, जिनके तहत दिल्ली विधानसभा को इस मुद्दे पर चर्चा करने तथा बहस करने की शक्ति प्राप्त हुई है।
    • दिल्ली विधानसभा ने राज्य सूची में प्रविष्टि-1 का हवाला दिया, जो कि ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ से संबंधित है और कानून-व्यवस्था से अलग है, साथ ही इस मामले में समवर्ती सूची की प्रविष्टि-1 को भी आधार बनाया गया है, जो राज्य विधानसभाओं को 'आपराधिक कानून' विषय पर कानून बनाने की व्यापक शक्ति देती है।
    • इसके अलावा दिल्ली विधानसभा ने राज्य सूची की प्रविष्टि-39 का भी उपयोग किया है, जो कि विधानसभाओं को बयान दर्ज करने के उद्देश्य से गवाहों की उपस्थिति को अनिवार्य बनाने की शक्ति प्रदान करती है।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

  • फेसबुक के तर्क को अस्वीकृति:
    • न्यायालय ने फेसबुक द्वारा अपनाए गए इस दृष्टिकोण को पूर्णतः खारिज कर दिया कि वह केवल तीसरे पक्ष की जानकारी पोस्ट करने वाला एक मंच है और उस जानकारी को उत्पन्न करने, नियंत्रित करने या संशोधित करने में इसकी कोई भूमिका नहीं है।
    • न्यायालय के अनुसार, फेसबुक दिल्ली विधानसभा द्वारा गठित ‘शांति एवं सद्भाव समिति’ के समक्ष उपस्थित होने से बचने के लिये किसी भी ‘असाधारण विशेषाधिकार’ का दावा नहीं कर सकता है।
  • समिति की शक्तियाँ:
    • अपने निर्वाचन क्षेत्र में ऑनलाइन सामूहिक घृणा और हिंसा से निपटने के सर्वोत्तम उपायों पर विधानसभा के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा की गई ‘सुविज्ञ मंत्रणा’ (Informed Deliberation) काफी हद तक समिति की कार्यनिर्वाह क्षमता के अनुरूप थी।
      • हालाँकि समिति के समक्ष उपस्थित होने वाले फेसबुक प्रतिनिधियों को कानून-व्यवस्था और पुलिस के विषय में सीधे समिति के किसी भी प्रश्न का उत्तर देने की आवश्यकता नहीं है, ये ऐसे विषय हैं जिन पर दिल्ली विधानसभा कानून नहीं बना सकती है।
  • विधानसभा की शक्ति:
    • न्यायालय ने फेसबुक के इस तर्क को खारिज कर दिया कि विधानसभा को दंगों की परिस्थितियों की जाँच करने के बजाय स्वयं को कानून बनाने तक सीमित रखना चाहिये।
    • विधानसभा न केवल कानून बनाने का कार्य करती है बल्कि शासन के कई अन्य पहलू भी हैं जो विधानसभा और समिति के आवश्यक कार्यों का हिस्सा बन सकते हैं।
      • विधायी विशेषाधिकार अपने विधायी कार्यों के प्रभावी निर्वहन के लिये विधायिका से संबंधित अधिकार हैं।
      • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 105 और अनुच्छेद 194 क्रमशः संसद सदस्यों (सांसदों) और राज्य विधानसभाओं की शक्तियों, विशेषाधिकारों तथा उन्मुक्तियों को निर्धारित करते हैं।
    • शांति और सद्भाव की अवधारणा कानून-व्यवस्था तथा पुलिस की तुलना में अधिक व्यापक है।
  • दोहरा शासन:
    • केंद्र और दिल्ली सरकार को राजधानी क्षेत्र में शासन के मुद्दों पर मिलकर काम करना चाहिये तथा अपने स्तर पर परिपक्वता दिखाने की ज़रूरत है।
      • सोशल मीडिया कंपनी  (फेसबुक) ने "दृष्टिकोण के विचलन" और केंद्र तथा राज्य सरकार दोनों की "दिल्ली में शासन के मुद्दों पर नज़र रखने" की अक्षमता का लाभ उठाने की मांग की।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि दिल्ली के दोहरे प्रशासन, जिसमें केंद्र सरकार को कई प्रमुख क्षेत्रों में विशेषाधिकार प्राप्त है, ने केंद्र और राज्य दोनों में सत्ता में विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं के साथ कई वर्षों तक अच्छा काम किया है।

विधायी शक्तियों में अंतर करने के लिये सूचियाँ:

  • तीन ऐसी सूचियाँ हैं जो विधायी शक्तियों के वितरण का प्रावधान करती हैं (संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत):
    • संघ सूची (सूची I)- इसमें 98 विषय (मूल रूप से 97) शामिल हैं और इसमें वे विषय शामिल होते हैं जो राष्ट्रीय महत्त्व के हैं तथा जिनके लिये पूरे देश में समान कानून है।
      • इन मामलों के संबंध में केवल केंद्रीय संसद ही कानून बना सकती है, उदाहरण के लिये- रक्षा, विदेश मामले, बैंकिंग, मुद्रा, संघ कर आदि।
    • राज्य सूची (सूची II)- इसमें 59 विषय (मूल रूप से 66) हैं और इसमें स्थानीय या राज्य हित के विषय शामिल हैं।
      • ये विषय राज्य विधानमंडलों की विधायी क्षमता के अंतर्गत आते हैं। जैसे- लोक व्यवस्था, पुलिस, स्वास्थ्य, कृषि और वन आदि।
    • समवर्ती सूची (सूची-III)- इसमें 52 (मूल रूप से 47) विषय हैं जिनके संबंध में केंद्रीय संसद और राज्य विधानमंडल दोनों के पास कानून बनाने की शक्ति है। समवर्ती सूची का उद्देश्य अत्यधिक कठोरता से बचने के लिये विषयों को केंद्र एवं राज्य दोनों को एक उपकरण के रूप में प्रदान करना था।
      • यह एक 'ट्विलाइट ज़ोन' है, क्योंकि महत्त्वपूर्ण मामलों के लिये राज्य पहल नहीं कर सकते हैं, जबकि संसद ऐसा कर सकती है।

आगे की राह:

  • सोशल मीडिया पर किसी भी विषय के संबंध में गलत सूचनाओं का सीधा प्रभाव उस विशाल क्षेत्र पर पड़ता है जो अंततः राज्यों के शासन को प्रभावित करता है।
  • जैसा कि न्यायालय ने पाया शांति और सद्भाव समिति अभी भी केंद्र के अधिकारों पर अतिक्रमण किये बिना फेसबुक अधिकारी को बुला सकती है, यह अब अन्य राज्यों के लिये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की जाँच के द्वार खोलती है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत में वियतनाम का पहला मानद महावाणिज्य दूत

प्रिलिम्स के लिये

लुक ईस्ट पॉलिसी, एक्ट ईस्ट पॉलिसी, गलवान घाटी, आसियान, ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल 

मेन्स के लिये

भारत-वियतनाम संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वियतनाम ने वियतनाम और कर्नाटक राज्य के बीच व्यापार, निवेश, पर्यटन, शैक्षिक और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये बंगलूरू में मानद महावाणिज्य दूत (Honorary Consul General in India) नियुक्त किया है।

  • बंगलूरू स्थित उद्योगपति एन. एस. श्रीनिवास मूर्थि को कर्नाटक के लिये वियतनाम का मानद महावाणिज्य दूत नियुक्त किया गया है।
  • यह भारत से वियतनाम के पहले मानद महावाणिज्य दूत हैं जिनकी नियुक्ति तीन वर्ष की अवधि के लिये की गई है।

प्रमुख बिंदु

भारत-वियतनाम संबंध:

  • सांस्कृतिक संबंधों का इतिहास: भारत और वियतनाम के बीच सांस्कृतिक तथा आर्थिक संबंध दूसरी शताब्दी से हैं।
    • दोनों देशों ने अपने राजनयिक संबंधों की स्थापना की 50वीं वर्षगाँठ को चिह्नित करने के लिये वर्ष 2022 में विभिन्न स्मारक गतिविधियों हेतु सहमति व्यक्त की है।
  • साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष:
    • भारत ने वर्ष 1972 में आधिकारिक राजनयिक संबंध स्थापित होने से पहले ही अपने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वियतनाम के उपनिवेश-विरोधी संघर्ष का समर्थन किया था।
    • भारत ने शीत युद्ध (Cold War) की अवधि के दौरान वियतनाम संघर्ष (वियतनाम में अमेरिकी युद्ध) को खत्म करने के लिये हनोई के "चार बिंदुओं" (Four Point) का समर्थन किया।
    • भारत ने वर्ष 1970 के दशक के अंत में कम्पूचिया (Kampuchea) संकट (कंबोडियन-वियतनामी युद्ध) के दौरान भी वियतनाम का समर्थन किया था।
  • पूर्व की ओर देखो नीति: दोनों देशों के बीच संबंध तब और मज़बूत हुए जब भारत ने वर्ष 1990 के दशक की शुरुआत में दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया के साथ आर्थिक एकीकरण तथा राजनीतिक सहयोग के विशिष्ट उद्देश्य के साथ अपनी "लुक ईस्ट पॉलिसी" (Look East Policy) शुरू की।
    • वर्ष 2014 में 'लुक ईस्ट पॉलिसी' को 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' (Act East Policy) में बदल दिया गया था।
  • व्यापक रणनीतिक साझेदारी: 21वीं सदी की नई सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए वर्ष 2016 में रणनीतिक साझेदारी को व्यापक रणनीतिक साझेदारी (Comprehensive Strategic Partnership) तक बढ़ा दिया गया था।
  • रक्षा सहयोग:
    • वियतनाम को सैन्य उपकरणों की बिक्री: चार बड़े गश्ती जहाज़ों और कम दूरी की क्रूज़ मिसाइल ब्रह्मोस (BrahMos) के लिये बातचीत चल रही है।
    •  वियतनाम के सशस्त्र बलों को सैन्य उपकरणों में प्रशिक्षण देना:  इसमें किलो-श्रेणी की पनडुब्बी (Kilo-class submarines) और सुखोई विमान (Sukhoi Aircraft) शामिल हैं।
    • सैन्य अभ्यास: विनबैक्स (VINBAX), (इन-वीपीएन) IN-VPN,  (बिलाती) BILAT।
  • भू-रणनीतिक अभिसरण: भारत और वियतनाम दोनों ही चीन के आक्रामक रुख को लेकर सशंकित हैं।
    • वस्तुतः चीन संपूर्ण दक्षिण चीन सागर (South China Sea) को अपना क्षेत्र घोषित करने के साथ ही हिंद महासागर में भी अपनी  दृढ़ता का दावा कर रहा है।
    • चीन ने विशेष रूप से स्प्रैटली द्वीप समूह की विवादित राजनीतिक स्थिति के आलोक में वियतनामी जल क्षेत्र में तेल की खोज को लेकर भारतीय सहयोग के बारे में अपनी आपत्ति जाहिर की गई।
    • भारत और वियतनाम इस क्षेत्र में सभी के लिये साझा सुरक्षा, समृद्धि और विकास हासिल करने हेतु  भारत की इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव (Indo-Pacific Oceans Initiative- IPOI) और इंडो-पैसिफिक पर आसियान (ASEAN’s) के आउटलुक के अनुरूप अपनी रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने पर सहमत हुए हैं।

क्षेत्रीय सहयोग:

  • भारत और वियतनाम संयुक्त राष्ट्र तथा विश्व व्यापार संगठन के अलावा आसियान, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, मेकांग गंगा सहयोग (Mekong Ganga Cooperation) जैसे विभिन्न क्षेत्रीय मंचों में एक-दूसरे को घनिष्ट रूप से सहयोग करते हैं।
  • वियतनाम द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने और एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग ( Asia-Pacific Economic Cooperation- APEC) में शामिल होने के भारत के प्रयास का समर्थन किया गया है।

आर्थिक सहयोग:

  • पारस्परिक लाभ हेतु व्यापार और आर्थिक संबंध, जिनमें विशेष रूप से आसियान-भारत मुक्त व्यापार समझौते (ASEAN- India Free Trade Agreement) पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद के वर्षों में काफी सुधार देखा गया है।
  • भारत अब वियतनाम के शीर्ष दस व्यापारिक भागीदारों में शामिल है।
  • भारत वियतनाम में त्वरित प्रभाव परियोजनाओं ( Quick Impact Projects- QIP), वियतनाम के मेकांग डेल्टा क्षेत्र में जल संसाधन प्रबंधन, सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) तथा डिजिटल कनेक्टिविटी के माध्यम से विकास और क्षमता निर्माण में निवेश कर रहा है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग:

  • भारत और वियतनाम ने सहयोग को लेकर फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं:
    • शांतिपूर्ण उद्देश्यों, आईटी सहयोग, साइबर सुरक्षा के लिये बाहरी अंतरिक्ष की खोज और उपयोग।
    • शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये परमाणु ऊर्जा का उपयोग।
  • वियतनाम भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रमों के तहत प्रशिक्षण कार्यक्रमों का एक बड़ा प्राप्तकर्त्ता रहा है।
  • आसियान-भारत सहयोग तंत्र के तहत वियतनाम में ‘सेंटर फॉर सैटेलाइट ट्रैकिंग और डेटा रिसेप्शन’ तथा एक इमेजिंग सुविधा स्थापित करने का प्रस्ताव विचाराधीन है।

आगे की राह:

  • सहयोग:
    • वैश्विक स्तर: भारत-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए मुख्य रूप से चीन, भारत और वियतनाम द्वारा पेश की गई चुनौतियों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे बहुपक्षीय संस्थानों को  घनिष्ठ समन्वय के साथ काम करना चाहिये, जहाँ 2021 में भारत और वियतनाम दोनों अस्थायी सदस्य के रूप में चुने गए।
    • क्षेत्रीय स्तर: आसियान में वियतनाम की भूमिका भारत और आसियान के लिये क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों पर अधिक सहयोग को आसान बना सकती है।
      • आसियान के भीतर इंडोनेशिया जैसी कुछ बड़ी शक्तियों के भी दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक रुख को देखते हुए उसके खिलाफ मज़बूत रुख अपनाने की संभावना है।
    • आर्थिक मोर्चा: दोनों देशों को चीन विरोधी भावनाओं के कारण उपलब्ध आर्थिक अवसरों का लाभ उठाने की ज़रूरत है और कई निर्माण फर्मों ने चीन से हटने का फैसला किया है।
      • भारत को एक रणनीति बनानी चाहिये ताकि RCEP में शामिल न होने का भारत का रुख दोनों देशों के बीच व्यापार के विकास में बाधा न बने।
  • रक्षा सौदों में तेज़ी लाना: दोनों देशों को रक्षा सौदों को अंतिम रूप देने हेतु बातचीत की प्रक्रिया में तेज़ी लानी चाहिये।
    • गलवान घाटी संघर्ष और चीन का वर्ष 1982 के समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के प्रति अनादरपूर्ण व्यवहार भारत के लिये अधिक महत्त्व रखता है।

स्रोत- द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

‘आरबीआई रिटेल डायरेक्ट’ योजना

प्रिलिम्स के लिये

‘आरबीआई रिटेल डायरेक्ट’ योजना, खुदरा निवेशक, खुदरा प्रत्यक्ष गिल्ट खाता, सरकारी प्रतिभूतियाँ

मेन्स के लिये

भारतीय सरकारी प्रतिभूति बाज़ार, सरकारी प्रतिभूति में खुदरा निवेश बढ़ाने के उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने ‘आरबीआई रिटेल डायरेक्ट’ योजना की घोषणा की है।

  • फरवरी 2021 में रिज़र्व बैंक ने खुदरा निवेशकों को सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक) में प्रत्यक्ष निवेश करने की सुविधा प्रदान करने हेतु केंद्रीय बैंक के साथ गिल्ट प्रतिभूति खाता खोलने की अनुमति देने का प्रस्ताव रखा था।

प्रमुख बिंदु

‘आरबीआई रिटेल डायरेक्ट’ योजना

  • इस योजना के तहत व्यक्तिगत खुदरा निवेशकों को भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ 'खुदरा प्रत्यक्ष गिल्ट खाता' (RDG Account) खोलने और उसे नियंत्रित करने की सुविधा प्रदान की जाएगी।
    • खुदरा निवेशक एक गैर-पेशेवर निवेशक होता है, जो प्रतिभूतियों या फंडों, जिसमें म्यूचुअल फंड और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) आदि शामिल हैं, को खरीदता एवं बेचता है।
    • एक गिल्ट खाते की तुलना बैंक खाते से की जा सकती है, किंतु इस खाते में पैसे के बजाय ट्रेज़री बिल या सरकारी प्रतिभूतियों को डेबिट या क्रेडिट किया जाता है।
  • गिल्ट खाते इस योजना के प्रयोजन के उद्देश्य से उपलब्ध कराए गए ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से खोले जा सकते हैं।
  • यह ऑनलाइन पोर्टल पंजीकृत उपयोगकर्त्ताओं को सरकारी प्रतिभूतियों के प्राथमिक जारीकर्त्ता और ‘नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम-ऑर्डर मैचिंग सिस्टम’ (NDS-OM) तक पहुँच प्रदान करेगा।
    • रिज़र्व बैंक ने अगस्त 2005 में ‘नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम-ऑर्डर मैचिंग सिस्टम’ की शुरुआत की थी। यह सरकारी प्रतिभूतियों में लेनदेन के लिये एक इलेक्ट्रॉनिक, स्क्रीन आधारित, ऑर्डर संचालन व्यापार प्रणाली है।
  • यह व्यक्तिगत निवेशकों के लिये सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश की सुविधा को आसान बनाने हेतु वन-स्टॉप समाधान है। 
    • रिज़र्व बैंक, वाणिज्यिक बैंकों एवं म्यूचुअल फंड से परे सरकारी ऋण प्रतिभूतियों के स्वामित्व का प्रजातंत्रीकरण (Democratize ) करना चाहता है।

वर्तमान सरकारी प्रतिभूति (G-sec) बाज़ार:

  • सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में संस्थागत निवेशकों का दबदबा है जो बैंक, म्युचुअल फंड और बीमा कंपनियों जैसे बड़े बाज़ारों को नियंत्रित करते हैं।
    • ये संस्थाएँ 5 करोड़ रुपए या उससे अधिक आकार में व्यापार करती हैं।
  • इसलिये ऐसे छोटे निवेशक जो छोटे आकार में व्यापार करना चाहते हैं, उनके लिये द्वितीयक बाज़ार में तरलता की कमी है।
    • प्राथमिक बाज़ार वे होते है जहाँ प्रतिभूतियाँ बनाई जाती हैं, जबकि द्वितीयक बाज़ार वह होता है जहाँ निवेशकों द्वारा उन प्रतिभूतियों का कारोबार किया जाता है।
  • उनके लिये अपने निवेश से बाहर निकलने का कोई आसान तरीका नहीं होता है। इस प्रकार वर्तमान में प्रत्यक्ष सरकारी प्रतिभूतियों का व्यापार खुदरा निवेशकों के बीच लोकप्रिय नहीं है।

लाभ:

  • ईज़ ऑफ एक्सेस में सुधार (Improved Ease of Access):
    • यह छोटे निवेशकों के लिये G-sec ट्रेडिंग की प्रक्रिया को आसान बना देगा, इसलिये यह G-sec में खुदरा भागीदारी बढ़ाएगा और ईज़ ऑफ एक्सेस में सुधार करेगा।
  • सरकारी उधार की सुविधा:
    • यह उपाय अनिवार्य होल्ड टू मेच्योरिटी ( ऐसी प्रतिभूतियाँ जो परिपक्वता तक स्वामित्व के लिये खरीदी जाती हैं) प्रावधानों में छूट के साथ वर्ष 2021-22 में सरकारी उधार कार्यक्रम को सुचारु रूप से पूरा करने की सुविधा प्रदान करेगा।
  • घरेलू बचत का वित्तीयकरण:
    • G-Sec बाज़ार में प्रत्यक्ष खुदरा भागीदारी की अनुमति देने से घरेलू बचत के विशाल पूल के वित्तीयकरण को बढ़ावा मिलेगा और यह भारत के निवेश बाज़ार में गेम-चेंजर हो सकता है।

सरकारी प्रतिभूतियों में खुदरा निवेश बढ़ाने को किये गए अन्य उपाय :

  • प्राथमिक नीलामी में गैर-प्रतिस्पर्द्धी (Non-Competitive) नीलामी।
    • गैर-प्रतिस्पर्द्धी बोली का अर्थ है कि एक व्यक्ति दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियों (Dated Government Security) की गैर-प्रतिस्पर्द्धी नीलामी में मूल्य उद्धृत किये बिना भाग ले सकता है।
  • शेयर बाज़ार खुदरा बोलियों के लिये सेवा समूह (Aggregator) और सहायक केंद्र के रूप में कार्य करते हैं।
  • द्वितीयक बाज़ार में एक विशिष्ट खुदरा क्षेत्र की अनुमति।

सरकारी प्रतिभूति (Government Security)

  • सरकारी प्रतिभूतियाँ केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा जारी की जाने वाली एक व्यापार योग्य साधन होती हैं। 
  • ये सरकार के ऋण दायित्व को स्वीकार करती हैं। ऐसी प्रतिभूतियाँ अल्पकालिक (आमतौर पर एक वर्ष से भी कम समय की मेच्योरिटी वाली इन प्रतिभूतियों को ट्रेज़री बिल कहा जाता है जिसे वर्तमान में तीन रूपों में जारी किया जाता है, अर्थात् 91 दिन, 182 दिन और 364 दिन) या दीर्घकालिक (आमतौर पर एक वर्ष या उससे अधिक की मेच्योरिटी वाली इन प्रतिभूतियों को सरकारी बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ कहा जाता है) होती हैं।
  • भारत में केंद्र सरकार ट्रेज़री बिल और बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ दोनों को जारी करती है, जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियों को जारी करती हैं, जिन्हें राज्य विकास ऋण (SDL) कहा जाता है। 
  • सरकारी प्रतिभूतियों में व्यावहारिक रूप से डिफॉल्ट का कोई जोखिम नहीं होता है, इसलिये इन्हें जोखिम रहित गिल्ट-एज्ड उपकरण भी कहा जाता है।
    • गिल्ट-एज्ड प्रतिभूतियाँ सरकार और बड़े निगमों द्वारा उधार ली गई निधि के साधन के रूप में जारी किये जाने वाले उच्च-श्रेणी के निवेश बॉण्ड हैं।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

‘राइट-टू-रिपेयर’ आंदोलन

प्रिलिम्स के लिये 

राइट-टू-रिपेयर’ आंदोलन, ई-कचरा, चक्रीय अर्थव्यवस्था 

मेन्स के लिये 

राइट-टू-रिपेयर’ आंदोलन का संक्षिप्त परिचय एवं इसके लाभ,  राइट-टू-रिपेयर’ आंदोलन के उदभव एवं विरोध का कारण, ई-कचरा प्रबंधन 

चर्चा में क्यों?

हालिया वर्षों में विश्व के कई देशों में एक प्रभावी ‘राइट-टू-रिपेयर’ कानून को पारित करने का प्रयास किया जा रहा है।

  • इस आंदोलन की जड़ें 1950 के दशक में कंप्यूटर युग की शुरुआत से जुड़ी हुई हैं।
  • इस आंदोलन का लक्ष्य, कंपनियों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक्स तथा अन्य उत्पादों के स्पेयर पार्ट्स, उपकरण तथा इनको ठीक करने हेतु उपभोक्ताओं और मरम्मत करने वाली दुकानों को आवश्यक जानकारी उपलब्ध करवाना है, जिससे इन उत्पादों का जीवन-काल बढ़ सके और इन्हें कचरे में जाने से बचाया जा सके। 

प्रमुख बिंदु 

‘राइट-टू-रिपेयर’ (Right to Repair) :

  • ‘राइट-टू-रिपेयर’ एक ऐसे अधिकार अथवा कानून को संदर्भित करता है, जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को अपने स्वयं के उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत करना और उन्हें संशोधित करने की अनुमति देना है, जहाँ अन्यथा ऐसे उपकरणों के निर्माता उपभोक्ताओं को केवल उनके द्वारा प्रस्तुत सेवाओं के उपयोग करने की अनुमति देते हैं।
  • ‘राइट-टू-रिपेयर’ का विचार मूल रूप से अमेरिका से उत्पन्न हुआ था, जहाँ ‘मोटर व्हीकल ओनर्स राइट टू रिपेयर एक्ट, 2012’ किसी भी व्यक्ति को वाहनों की मरम्मत करने में सक्षम बनाने के लिये वाहन निर्माताओं को सभी आवश्यक दस्तावेज़ और जानकारी प्रदान करना अनिवार्य बनाता है।

लाभ :

  • रिपेयर/मरम्मत करने वाली छोटी दुकानें स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं का एक महत्त्वपूर्ण भाग होती हैं, इस अधिकार को दिये जाने से इन दुकानों के कारोबार में वृद्धि होगी ।
  • यह ई-कचरे की विशाल मात्रा को कम करने में मदद करेगा, जो कि महाद्वीप पर प्रत्येक वर्ष बढ़ता जा रहा है।
  • यह उपभोक्ताओं को पैसा बचाने में मदद करेगा।
  • यह उपकरणों के जीवनकाल, रखरखाव, पुन: उपयोग, उन्नयन, पुनर्चक्रण और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार कर चक्रीय अर्थव्यवस्था के उद्देश्यों में योगदान देगा।

आंदोलन को बढ़ावा देने वाले कारण :

  • इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के निर्माताओं द्वारा ‘एक नियोजित अप्रचलन’ (Planned Obsolescence) की संस्कृति को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
    •  'नियोजित अप्रचलन' का अर्थ है कि उपकरणों को विशेष रूप से सीमित समय तक काम करने और इसके बाद इन्हें बदले जाने के लिये डिज़ाइन किया जाता है।
  • इससे पर्यावरण पर अत्यधिक दबाव पड़ता है और प्राकृतिक संसाधनों का अपव्यय होता है।
    • इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का निर्माण एक अत्यधिक प्रदूषणकारी प्रक्रिया है। यह ऊर्जा के प्रदूषणकारी स्रोतों, जैसे कि जीवाश्म ईंधन का उपयोग करता है, जिसका पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 

विरोध का कारण:

  • एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न और टेस्ला (Tesla) समेत बड़ी तकनीकी कंपनियों ने तर्क दिया है कि अपनी बौद्धिक संपदा को तीसरे पक्ष की मरम्मत सेवाओं या शौकिया मरम्मत करने वालों के लिये खोलने से शोषण हो सकता है और उनके उपकरणों की सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।

विश्व भर में ‘राइट-टू-रिपेयर’ आंदोलन:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति ने निर्माताओं द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को रोकने के लिये संघीय व्यापार आयोग के एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किये हैं जो उपभोक्ताओं की अपनी शर्तों पर अपने गैजेट की मरम्मत करने की क्षमता को सीमित करते हैं।
  • UK ने भी मरम्मत के अधिकार के नियम पेश किये जिससे TV और वाशिंग मशीन जैसे दैनिक उपयोग के गैजेट्स को खरीदना तथा उनकी मरम्मत करना बहुत आसान हो गया है।

भारत में ई-कचरा

आधिकारिक डेटा:

भारतीय पहल:

  • ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016:
    • इसका उद्देश्य ई-कचरे से उपयोगी सामग्री को अलग करना और/या उसे पुन: उपयोग के लिये सक्षम बनाना है, ताकि निपटान के लिये खतरनाक किस्म के कचरे को कम किया जा सके और बिजली तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उचित प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके।
  • ई-कचरा क्लिनिक:
    • यह ई-कचरे के पृथक्करण, प्रसंस्करण और निपटान से संबंधित है।

आगे की राह

  • ‘राइट-टू-रिपेयर’ कानून भारत जैसे देश में विशेष रूप से मूल्यवान हो सकता है, जहाँ सेवा नेटवर्क अक्सर असमान (Spotty) होते हैं और अधिकृत कार्यशालाएँ कम होने के साथ ही दूर के इलाकों में होती हैं।
  • भारत का अनौपचारिक मरम्मत क्षेत्र जुगाड़ के साथ अच्छा काम करता है लेकिन अगर इस तरह के कानून को अपनाया जाता है तो मरम्मत और रखरखाव सेवाओं की गुणवत्ता में काफी सुधार हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

आईटी एक्ट की धारा 66ए

प्रिलिम्स के लिये:

ई-कॉमर्स, सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये: 

धारा 66A से संबंधित मुद्दे, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000

चर्चा में क्यों? 

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, (Information Technology Act), 2000 की धारा 66A के इस्तेमाल पर केंद्र को नोटिस जारी किया है, जिसे कई वर्ष पहले खत्म कर दिया गया था।

  • वर्ष 2015 में न्यायालय ने श्रेया सिंघल मामले में दिये गए अपने निर्णय में आईटी एक्ट के प्रावधानों को असंवैधानिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करार दिया।
  • आईटी अधिनियम, 2000 इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से लेन-देन को कानूनी मान्यता प्रदान करता है, जिसे ई-कॉमर्स (e-commerce) भी कहा जाता है। यह अधिनियम साइबर अपराध के विभिन्न रूपों पर जुर्माना/दंड भी आरोपित करता है।

प्रमुख बिंदु: 

धारा 66A के बारे में:

  • इसने पुलिस को इस संदर्भ में गिरफ्तारी करने का अधिकार दिया कि पुलिसकर्मी अपने  विवेक से ‘आक्रामक’ या ‘खतरनाक’ या बाधा, असुविधा आदि को परिभाषित कर सकते हैं।
  • इसमे कंप्यूटर या किसी अन्य संचार उपकरण जैसे- मोबाइल फोन या टैबलेट के माध्यम से संदेश भेजने पर सज़ा को निर्धारित किया है जिसमें दोषी को अधिकतम तीन वर्ष की जेल हो सकती है।

धारा 66A से संबंधित मुद्दे:

  • अपरिभाषित कार्यों  के आधार पर:
    • न्यायालय ने देखा कि धारा 66A की कमज़ोरी इस तथ्य में निहित है कि इसमें  अपरिभाषित कार्यों को अपराध का आधार बनाया गया था: जैसे कि "असुविधा, खतरा, बाधा और अपमान" (Inconvenience, Danger, Obstruction and Insult)। ये सभी संविधान के अनुच्छेद 19 जो कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी प्रदान करता है, के अपवादों की श्रेणी में नहीं आते हैं। 
  • विषयपरक प्रकृति:
    • न्यायालय ने यह भी देखा कि चुनौती यह पहचान करने में थी कि रेखा कहाँ खीची जाए। परंपरागत रूप से इसे उकसाने पर खींचा गया है, जबकि बाधा और अपमान जैसे शब्द व्यक्तिपरक हैं।
  • कोई प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय नहीं:
    • इसके अतरिक्त अदालत ने पाया था कि धारा 66A में समान उद्देश्य वाले कानून के अन्य वर्गों की तरह प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय नहीं थे जैसे- कार्रवाई करने से पहले केंद्र की सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता।
      • स्थानीय अधिकारी स्वायत्त रूप से अपने राजनीतिक गुरुओं की मर्जी से आगे बढ़ सकते थे।
    • न्यायालय ने दो अन्य प्रावधानों यथा-आईटी अधिनियम की धारा 69ए और 79 को रद्द नहीं किया तथा कहा कि ये कुछ प्रतिबंधों के साथ लागू रह सकते हैं।
      • धारा 69ए किसी भी कंप्यूटर संसाधन के माध्यम से किसी भी जानकारी की सार्वजनिक पहुँच को अवरुद्ध करने के लिये निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करती है और धारा 79 कुछ मामलों में मध्यस्थ के दायित्व से छूट प्रदान करती है।
  • मौलिक अधिकारों के विरुद्ध:
    • धारा 66A संविधान के अनुच्छेद 19 (भाषण की स्वतंत्रता) और 21 (जीवन का अधिकार) दोनों के विपरीत थी।
      • सूचना का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) द्वारा प्रदान किये गए भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार के अंतर्गत आता है।

आगे की राह

  • एक ऐसी प्रणाली से आगे बढ़ने की सख्त आवश्यकता है जहाँ न्यायिक निर्णयों के विषय में संचार ईमानदार अधिकारियों की पहल की दया पर हो, एक ऐसे तरीके से जो मानवीय त्रुटि पर निर्भर न हो। तात्कालिकता (Urgency) को बढ़ा-चढ़ाकर (Overstate) नहीं पेश किया जा सकता है।
  • असंवैधानिक कानूनों को लागू करना जनता के पैसे की बर्बादी है।
  • इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जब तक इस बुनियादी दोष को दूर नहीं किया जाता है, तब तक कुछ व्यक्ति अपने जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित रहेंगे।
  • ये गरीबी और अज्ञानता तथा अपने अधिकारों की मांग करने में असमर्थता के अलावा किसी अन्य कारण से कानून विहीन गिरफ्तारी एवं नज़रबंदी का अपमान सहेंगे।

स्रोत: द हिंदू


भूगोल

आकाशीय बिजली (तड़ित) संबंधी घटनाएँ

प्रिलिम्स के लिये 

आकाशीय बिजली, जलवायु परिवर्तन 

मेन्स के लिये

आकाशीय बिजली (तड़ित) की प्रक्रिया एवं प्रकार, जलवायु परिवर्तन का आकाशीय बिजली की घटनाओं पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में देश के विभिन्न हिस्सों में आकाशीय बिजली गिरने की अलग-अलग घटनाओं में तीस लोगों की मौत हो गई।

  • प्राकृतिक कारणों से होने वाली आकस्मिक मौतों में आकाशीय बिजली का सबसे बड़ा योगदान है।

प्रमुख बिंदु 

परिचय :

  • आकाशीय बिजली/तड़ित का तात्पर्य वातावरण में विद्युत के तीव्र प्रवाह और बड़े पैमाने पर निर्वहन से है। इसका कुछ भाग पृथ्वी की ओर निर्देशित होता है। यह बादल के ऊपरी हिस्से और निचले हिस्से के बीच प्राकृतिक रूप से न्यूनतम अवधि के विद्युत निर्वहन और उच्च आवेश के प्रक्रिया का परिणाम है। 
    • इंटर क्लाउड या इंट्रा-क्लाउड (Intra-Cloud) बिजली दृश्यमान और हानिरहित होती है।
    • क्लाउड टू ग्राउंड (Cloud to Ground)  बिजली हानिकारक होती है क्योंकि 'उच्च विद्युत आवेश तथा विद्युत प्रवाह' इलेक्ट्रोक्यूशन उत्पन्न करता है।

प्रक्रिया :

  • यह बादल के ऊपरी हिस्से और निचले हिस्से के बीच विद्युत आवेश के अंतर का परिणाम है।
    • बिजली उत्पन्न करने वाले बादल आमतौर पर लगभग 10-12 किमी. की ऊँचाई पर होते हैं, जिनका आधार पृथ्वी की सतह से लगभग 1-2 किमी. ऊपर होता है। शीर्ष पर तापमान -35 डिग्री सेल्सियस से -45 डिग्री सेल्सियस तक होता है।
  • चूँकि जलवाष्प ऊपर की ओर उठने की प्रवृत्ति रखता है, यह तापमान में कमी के कारण जल में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिससे जल के अणु और ऊपर की ओर गति करते हैं। 
  • जैसे-जैसे वे शून्य से कम तापमान की ओर बढ़ते हैं, जल की बूंँदें छोटे बर्फ के क्रिस्टल में बदल जाती हैं। चूँकि वे ऊपर की ओर बढ़ती रहती हैं, वे तब तक एक बड़े पैमाने पर इकट्ठा होती जाती हैं, जब तक कि वे इतने भारी न हो जाए कि नीचे गिरना शुरू कर दें।
  • यह एक ऐसी प्रणाली की ओर गति करती है जहाँ बर्फ के छोटे क्रिस्टल ऊपर की ओर, जबकि बड़े क्रिस्टल नीचे की ओर गति करते हैं। इसके चलते इनके मध्य टकराव होता है तथा इलेक्ट्रॉन मुक्त होते हैं, यह विद्युत स्पार्क के समान कार्य करता है। गतिमान मुक्त इलेक्ट्रॉनों में और अधिक टकराव होता जाता है एवं इलेक्ट्रॉन बनते जाते हैं; यह एक चेन रिएक्शन का निर्माण करता है।
  • इस प्रक्रिया के कारण एक ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जिसमें बादल की ऊपरी परत धनात्मक रूप से आवेशित हो जाती है, जबकि मध्य परत नकारात्मक रूप से आवेशित होती है।

cloud-to-cloud

  • थोड़े समय में ही दोनों परतों के बीच एक विशाल विद्युतधारा (लाखों एम्पीयर) बहने लगती है।
    • इससे ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिससे बादल की दोनों परतों के बीच मौजूद वायु गर्म होने लगती है।
    • इस ऊष्मा के कारण दोनों परतों के बीच वायु का खाका बिजली के कड़कने के दौरान लाल रंग का नज़र आता है।
    •  गर्म हवा विस्तारित होती है और आघात उत्पन्न करती है जिसके परिणामस्वरूप गड़गड़ाहट की आवाज़ आती है।

पृथ्वी की सतह पर बिजली का गिरना:

  • पृथ्वी विद्युत की सुचालक है। वैद्युत रूप से तटस्थ होने पर यह बादल की मध्य परत की तुलना में अपेक्षाकृत धनात्मक रूप से आवेशित होती है। इसके परिणामस्वरूप वर्तमान प्रवाह का अनुमानित 20-25% पृथ्वी की ओर निर्देशित होता है।
    • इस वर्तमान प्रवाह के परिणामस्वरूप जीवन और संपत्ति को नुकसान होता है।
  • इस बिजली के ज़मीन पर उठी हुई वस्तुओं जैसे-पेड़ या इमारत से टकराने की अधिक संभावना होती है।
    • ‘लाइटनिंग कंडक्टर’ एक उपकरण है जिसका उपयोग इमारतों को बिजली के प्रभाव से बचाने के लिये किया जाता है। भवन के निर्माण के दौरान इसकी दीवारों में भवन से ऊँची धातु की छड़ लगाई जाती हैं ।
  • पृथ्वी पर सबसे अधिक बिजली गिरने की गतिविधि वेनेज़ुएला में माराकाइबो झील के तट पर देखी जाती है।
    • जिस स्थान पर कैटाटुम्बो नदी माराकाइबो झील में गिरती है, वहाँ हर वर्ष औसतन 260 तूफान आते हैं और अक्तूबर में हर मिनट में 28 बार बिजली चमकती है - इस घटना को ‘बीकन ऑफ माराकाइबो’ या चिरस्थायी तूफान कहा जाता है।

जलवायु परिवर्तन और आकाशीय बिजली:

  • वर्ष 2015 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में इस बात को लेकर चेतावनी दी गई कि तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने से  आकाशीय बिजली के गिरने की आवृत्ति में 12% की वृद्धि होगी।
  • मार्च 2021 में जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित एक अध्ययन में भी  आर्कटिक क्षेत्र में हो रहे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और बिजली गिरने की बढ़ती आवर्तियों के मध्य संबंध बताया गया है।
    • वर्ष 2010 से  2020 के मध्य गर्मियों के महीनों के दौरान आकाशीय बिजली गिरने की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई जो वर्ष 2010 में 18,000 से बढ़कर वर्ष 2020 तक  1,50,000 से अधिक हो गई।
  • अत: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मैनेजमेंट ( Indian Institute of Tropical Management- IITM) ने भी बिजली गिरने की घटनाओं में वृद्धि को सीधे तौर पर जलवायु संकट और ग्लोबल वार्मिंग के कारण ज़मीन पर अधिक नमी की उपलब्धता से संबंधित माना है।
    • पुणे स्थित IITM भारत का एकमात्र संस्थान है जो पूर्ण रुप से गरज और आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं पर कार्य करता है।

भारत में आकाशीय बिजली की घटनाओं में वृद्धि:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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