अंतर्राष्ट्रीय संबंध
1959 के तिब्बती विद्रोह के 60 साल
- 21 Feb 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन ने 1 अप्रैल, 2019 तक के लिये विदेशी पर्यटकों के तिब्बत आगमन पर प्रतिबंध लगा दिया है। गौरतलब है कि चीन ने यह प्रतिबंध 1959 के तिब्बती विद्रोह की 60वीं वर्षगाँठ से पहले सुरक्षा कारणों से लगाया है।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि 10 मार्च को चीन के खिलाफ 1959 में हुए आंदोलन के 60 साल पूरे हो रहे हैं। इसी आंदोलन के पश्चात् तिब्बत के बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा को निर्वासित होकर भारत आना पड़ा था।
- लंबे समय से तिब्बत पर अपना अधिकार मानने वाली चीन सरकार ने दलाई लामा को खतरनाक अलगाववादी का दर्जा दिया है।
- इसके अलावा, 2008 में ल्हासा में हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों की भी 14 मार्च को वर्षगाँठ है। इन तारीखों को ध्यान में रखते हुए चीन ने विदेशी पत्रकारों, राजनयिकों और पर्यटकों का प्रवेश पूरी तरह बंद कर दिया है।
- जानकारों का कहना है कि पर्यटकों के आगमन को प्रतिबंधित करने का यह सिलसिला हर साल चलता है।
क्या है 1959 का तिब्बती विद्रोह?
- 1912 से लेकर 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना तक किसी भी चीनी सरकार ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet Autonomous Region-TAR) पर नियंत्रण नहीं किया।
- दलाई लामा की सरकार ने 1951 तक तिब्बत की भूमि पर शासन किया था। माओ-त्से-तुंग की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के तिब्बत पर कब्ज़ा करने से पहले तक यह चीन का हिस्सा नहीं था।
- तिब्बती लोग तथा अन्य टिप्पणीकार चीन द्वारा किये गए इस कृत्य को ‘सांस्कृतिक नरसंहार’ के रूप में वर्णित करते हैं।
- तिब्बत वासियों ने मार्च 1959 में चीन सरकार को उखाड़ फेंकने का असफल प्रयास किया था, जिस वज़ह से 14वें दलाई लामा को भारत आना पड़ा था।
1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद
- 1959 के विद्रोह के पश्चात् चीन सरकार लगातार तिब्बत पर अपनी पकड़ मज़बूत करती रही है।
- तिब्बत में आज भी भाषण, धर्म या प्रेस की स्वतंत्रता नहीं है और चीन की मनमानी जारी है।
- ज़बरन गर्भपात, तिब्बती महिलाओं की नसबंदी और कम आय वाले चीनी नागरिकों के स्थानांतरण से तिब्बती संस्कृति के अस्तित्व को खतरा है।
- हालाँकि चीन ने विशेष रूप से ल्हासा क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे में सुधार के लिये निवेश किया है जिसकी वज़ह से हज़ारों हान चीनी समुदाय तिब्बत में स्थानांतरित हुए हैं और परिणामस्वरूप तिब्बत में जनसांख्यिकीय बदलाव आया है।
- 14वें दलाई लामा भारत के धर्मशाला के उपनगर मैक्लॉयडगंज से तिब्बत की निर्वासित सरकार का नेतृत्व करते हैं।
- दलाई लामा पूर्ण स्वतंत्रता की बजाय तिब्बत के लिये और अधिक स्वायत्तता की वकालत करते रहे हैं किंतु चीनी सरकार उनसे वार्ता करने से भी इनकार करती है।
- तिब्बत को समय-समय पर अशांति का सामना करना पड़ता है।
तिब्बत
- तिब्बत एशिया में तिब्बती पठार पर स्थित एक क्षेत्र है, जो लगभग 24 लाख वर्ग किमी. में फैला हुआ है और यह चीन के क्षेत्रफल का लगभग एक-चौथाई है।
- यह तिब्बती लोगों के साथ-साथ कुछ अन्य समुदायों की भी पारंपरिक मातृभूमि है।
- तिब्बत पृथ्वी पर सबसे ऊँचा क्षेत्र है जिसकी औसत ऊँचाई 4,900 मीटर है।
भारत-चीन संघर्ष की अन्य वज़ह
- सीमा विवादों के अलावा भारत-चीन संघर्ष की एक वज़ह दलाई लामा भी हैं, जिन्हें भारत में आध्यात्मिक गुरु का दर्ज़ा प्राप्त है।
- चीन दलाई लामा (जिनका तिब्बतियों पर बहुत प्रभाव है) को एक अलगाववादी मानता है।
- यह उल्लेख किया जाना आवश्यक है कि दलाई लामा ने 1974 में ही तिब्बत की स्वतंत्रता की वकालत छोड़ दी थी और अब वह केवल तिब्बती समुदाय पर चीन द्वारा किये जा रहे दमन को रोकना चाहते हैं।
- पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तिब्बती शरणार्थियों को उनकी वापसी तक भारत में बसने के लिये सहायता प्रदान करने पर सहमति व्यक्त की थी।
- भारत सरकार ने तिब्बतियों के लिये विशेष स्कूल बनाए हैं जो मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और छात्रवृत्ति प्रदान करते हैं।
- तिब्बती शरणार्थियों के पुनर्वास में भारत की भूमिका को लेकर चीन का रवैया हमेशा से आलोचनात्मक रहा है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय निकायों और मानवाधिकार समूहों ने भारत के इस कदम की प्रशंसा की है।
स्रोत- द हिंदू