जैव विविधता और पर्यावरण
पर्यावरण प्रभाव आकलन मसौदा: महत्त्व और निहित समस्याएँ
- 04 Sep 2020
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प्रिलिम्स के लियेपर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना, 2020 मेन्स के लियेपर्यावरणीय प्रभाव आकलन व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा नियुक्त स्वतंत्र विशेषज्ञों ने पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment-EIA) अधिसूचना, 2020 के प्रस्तावित मसौदे पर चिंता ज़ाहिर करते हुए केंद्र सरकार से प्रश्न किया है कि किस प्रकार इस मसौदे के प्रावधान अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत भारत के दायित्त्व के अनुरूप हैं।
प्रमुख बिंदु
- संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है कि अधिसूचना के कुछ प्रावधान भारत में पर्यावरण नियामक ढाँचे की प्रभावशीलता और पारदर्शिता को प्रभावित कर सकते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों द्वारा मुख्यतः तीन मुद्दे उठाए गए हैं:
- सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के मसौदे में कई बड़ी उद्योग परियोजनाओं और गतिविधियों को पर्यावरण प्रभाव आकलन प्रक्रिया के हिस्से के तौर पर सार्वजनिक परामर्श से छूट प्रदान की गई है, विशेषज्ञों के मुताबिक पर्यावरण और मानवाधिकार पर इन परियोजनाओं के नकारात्मक प्रभाव को देखते हुए इस प्रकार की छूट अनुचित प्रतीत होती है।
- राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा से जुड़ीं परियोजनाओं को रणनीतिक माना जाता है, हालाँकि सरकार अब इस अधिसूचना के ज़रिये अन्य परियोजनाओं के लिये भी ‘रणनीतिक’ शब्द का प्रयोग कर रही है। अधिसूचना के मसौदे में ‘रणनीतिक’ शब्द को सही ढंग से परिभाषित नहीं किया गया है, जिससे इसकी किसी भी प्रकार से व्याख्या की जा सकती है।
- विशेषज्ञों ने ‘पोस्ट-फैक्टो प्रोजेक्ट क्लीयरेंस’ के प्रावधान की भी आलोचना की है।
पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA)
- पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) का अभिप्राय किसी एक प्रस्तावित परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभाव के मूल्यांकन हेतु निर्धारित की गई प्रक्रिया से होता है।
- इस प्रक्रिया के ज़रिये किसी परियोजना जैसे- खनन, सिंचाई बांध, औद्योगिक इकाई या अपशिष्ट उपचार संयंत्र आदि के संभावित प्रभावों का वैज्ञानिक तरीके से अनुमान लगाया जाता है।
- इस प्रक्रिया के तहत किसी भी विकास परियोजना या गतिविधि को अंतिम मंज़ूरी देने के लिये उस परियोजना से प्रभावित हो रहे आम लोगों के मत को भी ध्यान में रखा जाता है।
- संक्षेप में हम कह सकते हैं कि यह निर्णय लेने का एक ऐसा उपकरण होता है जिसके माध्यम से यह तय किया जा सकता है कि किसी परियोजना को मंज़ूरी दी जानी चाहिये अथवा नहीं।
भारत में पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA)
- वर्ष 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी में हज़ारों लोगों की मौत हो गई। इस घटना के मद्देनज़र देश ने वर्ष 1986 में पर्यावरण संरक्षण के लिये एक अम्ब्रेला अधिनियम बनाया गया।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत सर्वप्रथम वर्ष 1994 में पहले पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) मानदंडों को अधिसूचित किया गया।
- इस अधिसूचना के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच, उनके उपयोग और उन पर पड़ने वाले प्रभाव से संबंधित गतिविधियों को विनियमित करने के लिये एक कानूनी ढाँचा स्थापित किया गया।
- वर्ष 1994 के पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को वर्ष 2006 में संशोधित मसौदे के साथ परिवर्तित कर दिया गया और वर्ष 2006 की पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना अब तक कार्य कर रही है।
पर्यावरण प्रभाव आकलन- 2020 के मसौदे संबंधी मुख्य बिंदु
- सरकार के अनुसार, पर्यावरण प्रभाव आकलन- 2020 के मसौदे को मुख्यतः प्रक्रियाओं को और अधिक पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से प्रस्तावित किया गया है, किंतु वास्तव में यह मसौदा कई गतिविधियों को सार्वजनिक परामर्श के दायरे से बाहर करने का प्रस्ताव करता है।
- इस मसौदे के तहत सामाजिक और आर्थिक प्रभाव और उन प्रभावों के भौगोलिक विस्तार के आधार पर सभी परियोजनाओं और गतिविधियों को तीन श्रेणियों- ‘A’, ‘B1’ और ‘B2’ में विभाजित किया गया है।
- कई परियोजनाओं जैसे- सभी B2 परियोजनाओं, सिंचाई, रासायनिक उर्वरक, एसिड निर्माण, जैव चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधाएँ, भवन निर्माण और क्षेत्र विकास, एलिवेटेड रोड और फ्लाईओवर, राजमार्ग या एक्सप्रेसवे आदि को सार्वजनिक परामर्श से छूट दी गई है।
संबंधित समस्याएँ
- नए मसौदे के तहत उन कंपनियों या उद्योगों को भी क्लीयरेंस प्राप्त करने का मौका दिया जाएगा जो इससे पहले पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करती आ रही हैं। इसे ‘पोस्ट-फैक्टो प्रोजेक्ट क्लीयरेंस’ कहते हैं।
- ध्यातव्य है कि मार्च 2017 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी करते हुए कहा था कि अब तक पर्यावरणीय मंज़ूरी के बिना कार्य कर रही परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंज़ूरी (EC) के लिये आवेदन करने का अवसर दिया जाएगा।
- अब सरकार ने नए मसौदे के माध्यम से इसे एक स्थायी रूप दे दिया है।
- इस प्रकार अब तक बिना पर्यावरणीय मंज़ूरी के अवैध रूप से संचालित होने वाली सभी औद्योगिक इकाइयों और परियोजनाओं को एक नई योजना प्रस्तुत करके तथा निर्धारित दंड का भुगतान करके नए प्रावधान के तहत वैध इकाइयों में बदलने का अवसर दिया जा रहा है।
- परंतु यहाँ प्रश्न यह है कि क्या एक नई योजना और निर्धारित दंड का भुगतान करके पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई की जा सकती है?
- B2 श्रेणी तथा कई अन्य क्षेत्रों की परियोजनाओं और गतिविधियों को सार्वजनिक परामर्श से छूट दी गई है, जिससे पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका है, क्योंकि ऐसी परियोजनाओं को बिना किसी निरीक्षण के पूरा किया जाएगा।
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन मसौदा, 2020 EIA प्रक्रिया पर लालफीताशाही और नौकरशाही के लिये कोई ठोस उपाय नहीं करता है। इसके अतिरिक्त, यह पर्यावरण सुरक्षा में सार्वजनिक सहभागिता को सीमित करते हुए सरकार की विवेकाधीन शक्ति को बढ़ाने का प्रस्ताव करता है।
- अधिसूचना के मसौदे में ये कहा गया है कि सरकार किसी भी तरह के पर्यावरणीय उल्लंघनों का संज्ञान लेगी, हालाँकि ऐसे पर्यावरणीय उल्लंघन की रिपोर्ट या तो सरकार या फिर स्वयं कंपनी द्वारा ही की जा सकती है, इसमें आम जनता को किसी भी उल्लंघन की शिकायत करने का कोई विकल्प नहीं दिया गया है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन, पर्यावरण के अनुकूल होना चाहिये, किंतु सरकार द्वारा जारी किया गया मसौदा उद्योग-समर्थक और जन-विरोधी प्रतीत होता है।
- मौजूदा नियमों के अनुसार, उद्योगों को वर्ष में दो बार अनुपालन रिपोर्ट (Compliance Reports) प्रस्तुत करनी होती है, किंतु नए मसौदे के तहत अब उद्योगों को केवल वर्ष में केवल एक ही बार अपनी अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। इसे एक उद्योग-समर्थित प्रावधान के तौर पर देखा जा सकता है जो उन पर निरीक्षण के दायरे को सीमित करता है।
- कई जानकारों ने इस ओर भी ध्यान आकर्षित किया है कि इस प्रस्तावित मसौदे को केवल हिंदी और अंग्रेज़ी में ही प्रकाशित किया गया है, जिससे अन्य स्थानीय भाषी समुदायों को सार्वजनिक भागीदारी से बाहर कर दिया गया है।