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डेली न्यूज़

  • 12 Jul, 2023
  • 61 min read
शासन व्यवस्था

भारत में प्रशामक देखभाल

प्रिलिम्स के लिये:

गैर-संचारी रोग, कैंसर, मधुमेह, स्वास्थ्य का अधिकार, गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिये वैश्विक कार्य योजना, विश्व स्वास्थ्य सभा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

भारत में प्रशामक देखभाल की स्थिति

चर्चा में क्यों? 

विश्व की लगभग 20% आबादी वाले भारत को गैर-संचारी रोगों (कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और श्वसन संबंधी बीमारियाँ) से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन बीमारियों के उपशामक देखभाल की आवश्यकता है।

  • यह चिंता का विषय है कि भारत में प्रशामक देखभाल की उपलब्धता और पहुँच सीमित है।

प्रशामक देखभाल:  

  • प्रशामक देखभाल एक प्रकार की चिकित्सा देखभाल है जो गंभीर बीमारियों वाले लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने पर केंद्रित है। इसे मानव के स्वास्थ्य के अधिकार के तहत स्पष्ट रूप से मान्यता प्राप्त है।
    • ऐसे व्यक्तियों, जिनके अत्यधिक चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने के बावजूद जीवन की गुणवत्ता में सुधार नहीं हो रहा है तथा उनके परिवार पर वित्तीय बोझ भी पड़ रहा है, प्रशामक देखभाल इस प्रकार के व्यक्तियों की पहचान कर उनकी पीड़ा की रोकथाम करने में मदद करता है।
  • इसका उद्देश्य हृदय विफलता, गुर्दे की विफलता, तंत्रिका संबंधी रोग, कैंसर आदि जैसी स्थितियों वाले लोगों की शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक और सामाजिक आवश्यकताओं का हल निकालना है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, प्रत्येक वर्ष लगभग 40 मिलियन लोगों को उपशामक देखभाल की आवश्यकता होती है, जिनमें से 78% निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं।
  • वैश्विक स्तर पर लगभग 14 फीसदी लोगों को उपशामक देखभाल की आवश्यकता है।
  • WHO ने स्पष्ट किया है कि उपशामक देखभाल गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिये वैश्विक कार्य योजना 2013-2020 हेतु आवश्यक व्यापक सेवाओं के घटकों में से एक है।
    • वर्ष 2019 में विश्व स्वास्थ्य सभा ने NCD की रोकथाम और नियंत्रण के लिये WHO वैश्विक कार्य योजना को 2013-2020 से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक कर दिया।

नोट:  

  • गैर-संचारी रोग (NCD) पुरानी बीमारियाँ हैं जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचारित नहीं होती हैं। NCD में कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग आदि जैसे तीव्र और दीर्घकालिक दोनों प्रकार के चिकित्सीय विकार शामिल हैं।

भारत में प्रशामक देखभाल की स्थिति:  

  • स्थिति:  
    • भारत में प्रशामक देखभाल मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों और तृतीयक स्वास्थ्य सुविधाओं में उपलब्ध है। भारत में प्रशामक देखभाल की आवश्यकता वाले अनुमानित 7-10 मिलियन लोगों में से केवल 1-2% लोगों तक इसकी पहुँच है।
  • भारत में प्रशामक देखभाल कार्यक्रम:
    • हालाँकि राष्ट्रीय प्रशामक देखभाल कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिये कोई अलग बजट आवंटित नहीं किया गया है, लेकिन प्रशामक देखभाल राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत 'मिशन फ्लेक्सीपूल' का हिस्सा है।
    • कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPCDCS) जिसे वर्ष 2010 में शुरू किया गया था और बाद में इसे गैर-संचारी रोगों की रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम (NP-NCD) के रूप में संशोधित किया गया, का उद्देश्य भारत में गैर-संचारी रोगों के बढ़ते बोझ को संबोधित करना है तथा स्वास्थ्य देखभाल के सभी स्तरों पर प्रोत्साहन, निवारक एवं उपचारात्मक देखभाल प्रदान करना है।
  • चुनौतियाँ:  
    • सीमित जागरूकता: आम जनता और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के बीच उपशामक देखभाल के बारे में जागरूकता और समझ की कमी है।
      • भारत में बहुत से लोग उपशामक देखभाल के लाभों के बारे में नहीं जानते हैं या इसे जीवन के अंत की देखभाल समझ लेते हैं।
    • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और प्रशिक्षण: भारत में समर्पित प्रशामक देखभाल केंद्रों, धर्मशालाओं और प्रशिक्षित स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी है।
      • इसके अलावा डॉक्टरों, नर्सों और अन्य देखभाल करने वालों सहित स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के पास अक्सर उपशामक देखभाल में पर्याप्त प्रशिक्षण का अभाव होता है।
      • यह रोगी को दर्द और लक्षण समुचित प्रबंधन तथा मनोसामाजिक सहायता प्रदान करने की उनकी क्षमता को सीमित करता है।
    • बाल चिकित्सा देखभाल का अभाव: बाल चिकित्सा प्रशामक देखभाल की भी लंबे समय से उपेक्षा की गई है। अपने जीवन के अंत में मध्यम से गंभीर पीड़ा का सामना करने वाले लगभग 98% बच्चे भारत जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं।
      • यह कैंसर, जन्म दोष, तंत्रिका संबंधी स्थितियों आदि जैसी बीमारियों के कारण हो सकता है।
      • NP-NCD के संशोधित परिचालन दिशा-निर्देशों में भी इस मुद्दे का समाधान नहीं किया गया है।
    • NPCC का सीमित कार्यान्वयन: इस कार्यक्रम का कार्यान्वयन धीमा और असमान रहा है, जिसके परिणामस्वरूप प्रशामक देखभाल सेवाओं के विस्तार में सीमित प्रगति हुई।

आगे की राह 

  • पर्याप्त वित्तपोषण, मानव संसाधन, बुनियादी ढाँचे आदि के साथ राज्य स्तर पर NPPC के कार्यान्वयन और निगरानी को मज़बूत करना।
  • प्रशामक देखभाल सेवाओं और गुणवत्ता आश्वासन के लिये राष्ट्रीय मानकों एवं दिशा-निर्देशों का विकास और कार्यान्वयन करना।
  • विभिन्न स्तरों तथा व्यवस्था में प्रशामक देखभाल पेशेवरों के साथ स्वयंसेवकों की शिक्षा और प्रशिक्षण को बढ़ाना।
  • वर्ष 2014 में 67वीं विश्व स्वास्थ्य असेंबली में सभी स्तरों पर स्वास्थ्य प्रणालियों में प्रशामक देखभाल के एकीकरण का आग्रह किया गया था।
    • प्रशामक देखभाल के विभिन्न स्तरों के साथ स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं के बीच परामर्श और संपर्क तंत्र में सुधार करने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू  


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत में बैटरी चालित इलेक्ट्रिक वाहन

प्रिलिम्स के लिये:

बैटरी चालित इलेक्ट्रिक वाहन, एथेनॉल, फ्लेक्स इंधन, FAME-II, NEMMP 

मेन्स के लिये:

इलेक्ट्रिक वाहन विनिर्माण और स्वीकृति - चुनौतियाँ और अवसर, इलेक्ट्रिक वाहन और वैश्विक शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य 

चर्चा में क्यों? 

शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में बैटरी चालित इलेक्ट्रिक वाहन (BEVs) की गतिशीलता को संधारणीय बनाना भारत सरकार के प्रयास का केंद्र बिंदु बनता जा रहा है। 

  • हालाँकि नॉर्वे और चीन जैसे देशों ने बैटरी चालित इलेक्ट्रिक वाहन के क्षेत्र में सफलता हासिल की है, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि भारत को भी समान सफलता प्राप्त हो, विशिष्ट स्थितियों के कारण भारत को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 

बैटरी चालित इलेक्ट्रिक वाहन: 

  • परिचय:
    • बैटरी चालित इलेक्ट्रिक वाहन (BEV) एक प्रकार के इलेक्ट्रिक वाहन हैं जो पूरी तरह से उच्च क्षमता वाली बैटरी में संग्रहीत विद्युत शक्ति पर चलते हैं।
    • आंतरिक दहन इंजन नहीं होने के कारण ये शून्य टेलपाइप उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं।
    • BEV के पहियों को चलाने के लिये इलेक्ट्रिक मोटर का उपयोग किया जाता है, जो तत्काल आघूर्ण बल (Torque) और गति प्रदान करते हैं।
  • बैटरी प्रौद्योगिकी:
    • BEV उन्नत बैटरी तकनीक, मुख्य रूप से लिथियम-आयन (Li- Ion) बैटरी पर निर्भर करती है।
    • ली-आयन बैटरियों में ऊर्जा घनत्त्व उच्च होता है, इससे लंबी दूरी तय की जा सकती है और इसका प्रदर्शन बेहतर होता है।
  • चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर:
    • BEV को अपनी बैटरी चार्ज करने के लिये चार्जिंग स्टेशनों के नेटवर्क की आवश्यकता होती है। चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में विभिन्न प्रकार के चार्जर शामिल हैं:
      • स्तर 1 (घरेलू आउटलेट)
      • स्तर 2 (समर्पित चार्जिंग स्टेशन)
      • स्तर 3 (DC फास्ट चार्जर)।
  • सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन, कार्यस्थल और आवासीय भवन चार्जिंग सुविधाएँ बुनियादी ढाँचे के विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

बैटरी चालित इलेक्ट्रिक वाहन से संबंधित समस्याएँ: 

  • चार्जिंग नेटवर्क:
    • वर्तमान में भारत में सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों की संख्या सीमित है, इसकी संख्या में वृद्धि करने के लिये एक अनुरूप रणनीति की आवश्यकता है जो दोपहिया और तिपहिया वाहनों की आवश्यकताओं को पूरा कर सके।
      • वर्तमान में देश भर में लगभग 2,000 सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन ही चालू हैं।
    • चार्जर और ऑटोमोबाइल के बीच मानकीकरण और अनुकूलता का अभाव है। 
  • विद्युत के स्रोत:  
    • भारत में अभी भी कोयले से चलने वाले ताप संयंत्र अधिकांश विद्युत उत्पादन का स्रोत हैं, इससे इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग से पर्याप्त लाभ नहीं मिलता क्योंकि विद्युत उत्पादन के लिये उपयोग में लाए जाने वाले कोयले का पर्यावरण पर काफी बुरा असर पड़ता है।
    • जब तक विद्युत उत्पादन के लिये इसके स्रोतों का विकल्प नहीं ढूँढा जाता, तब तक भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग पर्यावरण की दृष्टि से धारणीय नहीं माना जा सकता है।
  • मूल्य शृंखला पर निर्भरता:  
    • मात्रा के हिसाब से देखें तो भारत में लिथियम-आयन बैटरियों की मांग वर्ष 2030 तक लगभग 30% के CAGR से बढ़ने का अनुमान है; केवल इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये ही बैटरी बनाने हेतु भारत को 50,000 टन से अधिक लिथियम की आवश्यकता है।
      • हालाँकि वैश्विक लिथियम उत्पादन का 90% से अधिक चिली, अर्जेंटीना तथा बोलीविया (ऑस्ट्रेलिया और चीन) में केंद्रित है तथा कोबाल्ट एवं निकल जैसे अन्य प्रमुख इनपुट कांगो और इंडोनेशिया में खनन किये जाते हैं। परिणामस्वरूप भारत अपनी मांग को पूरा करने के लिये लगभग पूरी तरह से देशों के एक छोटे समूह से आयात पर निर्भर होगा।
  • इलेक्ट्रिक वाहन रखने की उच्च प्रारंभिक लागत:
    • आंतरिक दहन इंजन (ICE) वाहनों की तुलना में EV महँगे हैं। महँगी बैटरियाँ कुल मिलाकर ऊँची कीमत में योगदान करती हैं।
    • बड़े पैमाने पर बाज़ार खंड में EV मॉडलों की सीमित उपलब्धता तथा सामर्थ्य EV में परिवर्तन को और भी कठिन बना देती है।
  • जागरूकता और उपभोक्ता प्राथमिकता का अभाव:
    • ब्रांड निष्ठा, पुनर्विक्रय मूल्य तथा सुगमता के आधार पर ICE वाहनों के लिये उपभोक्ताओं की प्राथमिकता तथा EV लाभों एवं सुविधाओं के बारे में संभावित क्रेताओं की सीमित जानकारी समस्या को और बढ़ा देती है।
    • सांस्कृतिक कारक EV की सामाजिक स्वीकृति और धारणा को भी प्रभावित करते हैं।
  • अन्य चुनौतियाँ:
    • EV सर्विसिंग और मरम्मत के लिये कुशल श्रमिकों और तकनीशियनों की कमी।
    • विद्युत की बढ़ती मांग और ग्रिड स्थिरता संबंधी चिंताएँ।
    • 2 और 3-पहिया EV में वृद्धि लेकिन 4-पहिया EV के मामले में ऐसा नहीं कहा जा सकता।

BEV के लिये संभावित वैकल्पिक प्रौद्योगिकियाँ:

  • हाइब्रिड: 
    • हाइब्रिड व्यापक चार्जिंग अवसंरचना की आवश्यकता के बिना बेहतर ईंधन दक्षता प्रदान करते हैं।
    • वे 'ऑल-इलेक्ट्रिक' वाहनों की दिशा में एक मध्यवर्ती कदम के रूप में काम कर सकते हैं और बैटरी पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने में सहायता कर सकते हैं।
  • इथेनॉल और फ्लेक्स फ्यूल:
  • ईंधन सेल इलेक्ट्रिक वाहन (FCEV) और हाइड्रोजन ICE:
    • FCEV का संचालन हाइड्रोजन ईंधन कोशिकाओं द्वारा किया जाता है जो BEV के लिये एक स्वच्छ और कुशल विकल्प प्रदान करने वाले एकमात्र उप-उत्पाद के रूप में विद्युत एवं जल का उत्पादन करते हैं।
    • हाइड्रोजन ICE वाहन ICE में ईंधन के रूप में हाइड्रोजन का उपयोग करते हैं जो BEV के लिये एक सरल और सस्ता विकल्प प्रदान करता है।
      • हालाँकि अवसंरचना और शून्य-उत्सर्जन के मामले में FCEV तथा हाइड्रोजन ICE दोनों की अपनी-अपनी कमियाँ हैं।
  • सिंथेटिक फ्यूल: 
    • पॉर्श (Porsche) सिंथेटिक फ्यूल विकसित कर रहा है जो ICE को CO2-तटस्थ बनाता है तथा संभावित रूप से ICE वाहनों के जीवन को बढ़ाता है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके कार्बन डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन से उत्पादित इन ईंधनों का व्यापक अनुप्रयोग हो सकता है।

EV को बढ़ावा देने के लिये कुछ सरकारी पहल:

आगे की राह 

  • शहरी, अर्द्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त कवरेज सुनिश्चित करते हुए चार्जिंग नेटवर्क का तीव्रता से विस्तार करने के लिये सार्वजनिक एवं निजी हितधारकों के साथ सहयोग करना।
  • सुविधा बढ़ाने और सीमा की चिंता को दूर करने के लिये मानकीकृत एवं इंटरऑपरेबल चार्जिंग बुनियादी ढाँचे की स्थापना को प्राथमिकता देना।
  • उपभोक्ताओं को कम परिचालन लागत, कम पर्यावरणीय प्रभाव और सरकारी प्रोत्साहन सहित BEV के लाभों के बारे में शिक्षित करने के लिये व्यापक जागरूकता अभियान शुरू करना।
  • घरेलू बैटरी विनिर्माण क्षमताओं में निवेश करते हुए वैकल्पिक बैटरी की खोज कर लीथियम-आयन बैटरी पर निर्भरता में विविधता लाने के लिये अनुसंधान एवं विकास प्रयासों को प्रोत्साहित करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारत में तीव्र आर्थिक विकास के लिये कुशल और किफायती शहरी जन परिवहन किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है? (2019) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

वैश्विक उष्णकटिबंधीय प्राथमिक वनों में गिरावट: वैश्विक वन निगरानी

प्रिलिम्स के लिये:

वनों की कटाई, खाद्य एवं कृषि संगठन, कार्बन पृथक्करण, COP26 ग्लासगो 2021, द बॉन चैलेंज, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत राज्य वन रिपोर्ट 2021, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006

मेन्स के लिये:

वनों का महत्त्व, भारत में वनों की स्थिति

चर्चा में क्यों?  

विश्व संसाधन संस्थान (World Resources Institute- WRI) ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच (Global Forest Watch) की नवीनतम रिपोर्ट में वर्ष 2022 में उष्णकटिबंधीय प्राथमिक वनों की 4.1 मिलियन हेक्टेयर की आश्चर्यजनक हानि का पता चला है। यह हानि प्रति मिनट 11 फुटबॉल मैदानों के क्षेत्र को खोने के बराबर है।

  • यह रिपोर्ट उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में प्राथमिक वनों के महत्त्व पर ज़ोर देती है जहाँ 96% से अधिक वनों की कटाई होती है, इस मुद्दे पर वैश्विक ध्यान देने का आग्रह किया गया है।
  • WRI एक वैश्विक गैर-लाभकारी संगठन है जो सरकार, व्यवसाय तथा नागरिक समाज के नेताओं के साथ अनुसंधान, डिज़ाइन एवं व्यावहारिक समाधानों को आगे बढ़ाने के लिये काम करता है, जो सामूहिक रूप से लोगों के जीवन को बेहतर बनाते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि प्रकृति का विकास हो सके।

प्राथमिक वन:

  • प्राथमिक वनों की विशेषता देशी वृक्ष प्रजातियों का सघन क्षेत्र, न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप और अबाधित पारिस्थितिक प्रक्रियाएँ हैं।
  • वे अन्य वन प्रकारों की तुलना में अधिक कार्बन संग्रहीत करते हैं और अधिक जैवविविधता का समर्थन करते हैं। इसलिये उनका नुकसान लगभग अपरिवर्तनीय है, क्योंकि द्वितीयक वन उनकी जैवविविधता तथा कार्बन पृथक्करण क्षमताओं के समान नहीं हो सकते हैं।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

  • वन-संबंधित प्रतिबद्धताएँ और प्रगति:
    • वन क्षति की वर्तमान दर वनों को पर्याप्त रूप से बहाल करने में विफलता का संकेत देती है। दुनिया वन-संबंधी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की राह पर नहीं है, जिसमें वर्ष 2030 (COP 26 ग्लासगो 2021) तक वनों की कटाई को पूर्णतः रोकना और उलटने का लक्ष्य भी शामिल है।
      • बॉन चुनौती (Bonn Challenge) एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत वर्ष 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर वनस्पतियाँ उगाई जाएंगी।
      • इस लक्ष्य को पूरा करने हेतु वैश्विक वनों की कटाई को पूरी तरह से रोकने के लिये इसमें 10% वार्षिक कटौती किये जाने की आवश्यकता है। साथ ही वर्ष 2021 और 2030 के बीच वृक्ष आवरण में प्रतिवर्ष 22 मिलियन हेक्टेयर की वृद्धि होनी चाहिये।

  • वृक्ष आवरण हानि: वर्ष 2022 में कुल वैश्विक वृक्ष आवरण हानि में 10% की गिरावट आई। इसमें प्राथमिक, द्वितीयक और रोपित वन शामिल हैं। ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच के अनुसार, यह कमी आग से संबंधित वन हानि में कमी का प्रत्यक्ष परिणाम है, जो 2021 से 28% कम हो गई है
    • हालाँकि वर्ष 2022 में बिना आग से होने वाले नुकसान में 1% से थोड़ा कम की वृद्धि हुई थी।
  • भारत में वन हानि:
    • भारत में वर्ष 2021 और 2022 के बीच 43.9 हज़ार हेक्टेयर आर्द्र प्राथमिक वन का नुकसान हुआ।
    • यह इस अवधि के दौरान देश के कुल वृक्ष आवरण हानि का 17% था, जो 255 हज़ार हेक्टेयर था।

नोट:   

  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत में 'वन आवरण' को "सभी भूमि के एक हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में 10% से अधिक वृक्ष आवरण घनत्व" के रूप में परिभाषित करता है, साथ ही वे वन जो एक हेक्टेयर के न्यूनतम मानचित्रण योग्य क्षेत्र से कम हैं। वन क्षेत्र आवरण में शामिल नहीं हैं और 'वृक्ष आवरण' के "बाहर दर्ज किये गए वृक्ष पैच" के रूप में परिभाषित करता है। 

भारत में वनों की स्थिति:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा मंत्रालय केंद्रक अभिकरण है? (2021) 

(a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
(b) पंचायती राज मंत्रालय
(c) ग्रामीण विकास मंत्रालय
(d) जनजातीय कार्य मंत्रालय

उत्तर: (d)


प्रश्न. भारत का एक विशेष राज्य निम्नलिखित विशेषताओं से युक्त है: (2012)

  1. यह उसी अक्षांश पर स्थित है जो उत्तरी राजस्थान से होकर जाता है।
  2. इसका 80% से अधिक क्षेत्र वनाच्छादित है।
  3. 12% से अधिक वन क्षेत्र इस राज्य के संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क के रूप में है। 

निम्नलिखित राज्यों में से कौन-सा एक उपर्युक्त दी गईं विशेषताओं से युक्त है?

(a) अरुणाचल प्रदेश
(b) असम
(c) हिमाचल प्रदेश
(d) उत्तराखंड

उत्तर: (a)

मेन्स: 

प्रश्न. "भारत में आधुनिक कानून की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संवैधानिकीकरण है।" सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (2022) 

स्रोत: द हिंदू


कृषि

आलू की प्रजाति को पेटेंट कराने संबंधी पेप्सिको की अपील रद्द

प्रिलिम्स के लिये:

पौधों की किस्मों और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण, FL 2027 आलू का प्रकार

मेन्स के लिये:

PPVFRA की भूमिका और कार्य, बौद्धिक संपदा संरक्षण को नियंत्रित करने वाले विनियम

चर्चा में क्यों?  

  • पौधों की किस्मों और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (Protection of Plant Varieties and Farmers’ Rights Authority- PPVFRA) ने पेप्सिको इंडिया द्वारा FL 2027 आलू की एक किस्म को बौद्धिक संपदा संरक्षण की अपील को रद्द कर दिया, हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने PPVFRA के इस फैसले को बरकरार रखने का फैसला लिया है। 

आलू की FL 2027 किस्म का मामला: 

  • परिचय:  
    • FL 2027 फ्रिटो-ले कृषि अनुसंधान में रॉबर्ट डब्ल्यू हूप्स द्वारा विकसित आलू की एक किस्म है। इसे विशेष रूप से पेप्सिको के लेज़ ब्रांड द्वारा चिप्स के उत्पादन के लिये तैयार किया गया है।
    • FL 2027 उच्च शुष्कता, कम सुगर और कम नमी सामग्री के कारण चिप्स बनाने के लिये आलू की एक आदर्श किस्म है।
      • इन विशेषताओं के कारण इसके प्रसंस्करण के दौरान निर्जलीकरण और ऊर्जा लागत कम होती है, साथ ही तले जाने पर इनके काला पड़ने का जोखिम कम रहता है।
  • मामला: 
    • PPVFRA ने पेप्सिको इंडिया होल्डिंग्स को 1 फरवरी, 2016 को "मौजूदा किस्म" के रूप में FL 2027 के लिये पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदान किया था।
      • इसमें स्पष्ट है कि वैधता अवधि के दौरान कंपनी की अनुमति के बिना कोई भी इसका व्यावसायिक उत्पादन, बिक्री, विपणन, वितरण, आयात या निर्यात नहीं कर सकता है।
        • यह अवधि पंजीकरण की तिथि से 6 वर्ष थी तथा 15 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती थी।
    • हालाँकि पेप्सिको (PepsiCo) ने वर्ष 2012 के अपने आवेदन में FL 2027 को "नई किस्म" के रूप में पंजीकृत करने की मांग की थी जिसे कुछ मानदंडों को पूरा करने में विफल रहने के कारण अस्वीकार कर दिया गया था।
  • नोट: 
    • पौधे की "नई किस्म" के लिये मानदंड:
      • एक "नई किस्म" को नवीनता के मानदंड के अनुरूप होना चाहिये- इससे प्रचारित या उत्पादित सामग्री पंजीकरण के लिये आवेदन करने की तिथि से एक वर्ष पहले भारत में नहीं बेची जानी चाहिये।
      • FL 2027 किस्म केवल विशिष्टता, एकरूपता तथा स्थिरता के मानदंडों को पूरा कर सकती है लेकिन नवीनता को नहीं। 
  • पंजीकरण निरस्तीकरण का कारण:
    • पेप्सिको ने इस किस्म के व्यावसायीकरण की पहली तिथि (17 दिसंबर, 2009) भी गलत बताई थी, जबकि चिली में वर्ष 2002 में ही इसका व्यावसायीकरण हो चुका था।
    • इसलिये PPVFRA ने दिसंबर 2021 में सुरक्षा रद्द कर दी तथा फरवरी 2022 में नवीनीकरण के लिये पेप्सिको के आवेदन को खारिज कर दिया। इसने यह भी स्पष्ट कर दिया कि भारत के नियम बीज किस्मों पर पेटेंट की अनुमति नहीं देते हैं।
      • पेप्सिको ने PPVFRA के निर्णय को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय: 
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने पेप्सिको के आवेदन को गलत ठहराते हुए बौद्धिक संपदा संरक्षण को रद्द करने की पुष्टि की जिसमें कहा गया कि कंपनी ने "नई किस्म" के रूप में FL 2027 के पंजीकरण के लिये गलत तरीके से आवेदन किया था तथा इसकी पहली व्यावसायीकरण तिथि के बारे में गलत जानकारी प्रदान की थी।

पौधों की किस्मों और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (PPVFRA): 

  • PPVFRA भारत में पौधा प्रजनकों और किसानों के अधिकारों की सुरक्षा के लिये ज़िम्मेदार संगठन है।
  • यह पौधों की किस्मों और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (PPVFRA) अधिनियम, 2001 के तहत स्थापित एक प्राधिकरण है।
  • PPVFRA पौधों की किस्मों को बौद्धिक संपदा संरक्षण प्रदान करने और प्रजनकों तथा किसानों के अधिकारों को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • यह पौधों की विविधता के पंजीकरण के लिये आवेदनों की समीक्षा करता है, परीक्षण करता है और पात्र आवेदकों को पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदान करता है।
  • यदि आवश्यक समझा जाए तो प्राधिकरण के पास पौधों की किस्मों के पंजीकरण को रद्द करने की भी शक्ति है।

भारत में पेटेंट उल्लंघन के मामले में शामिल विदेशी कंपनियाँ: 

  • मोनसेंटो बनाम नुज़िवीडु सीड्स: इस मामले में रॉयल्टी का भुगतान किये बिना अपनी पेटेंट Bt कपास तकनीक का उपयोग करने के लिये एक भारतीय बीज कंपनी नुज़िवीडु सीड्स के खिलाफ मोनसेंटो द्वारा पेटेंट उल्लंघन का मुकदमा शामिल था।
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2016 में मोनसेंटो के पक्ष में एक अंतरिम निषेधाज्ञा के तहत नुज़िवीडु सीड्स को उसके सीड्स के शुद्ध बिक्री मूल्य के प्रतिशत के आधार पर रॉयल्टी का भुगतान करने का निर्देश दिया गया। 
    • बाद में पार्टियों ने वर्ष 2017 में मध्यस्थता के माध्यम से विवाद को सुलझा लिया।
  • नोवार्टिस बनाम भारत संघ:  इस मामले में नोवार्टिस द्वारा अपनी कैंसर-रोधी दवा ग्लिवेक के लिये एक पेटेंट आवेदन शामिल था, जिसे भारतीय पेटेंट कार्यालय और बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि यह कोई नया आविष्कार नहीं था, बल्कि मौजूदा यौगिक का एक संशोधित रूप था। 
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2013 में अस्वीकृति को बरकरार रखते हुए निर्णय दिया कि दवा नवीनता के मानदंडों को पूरा नहीं करती है।
  • एरिक्सन बनाम माइक्रोमैक्स: इस मामले में लाइसेंस प्राप्त किये बिना 2G, 3G और 4G प्रौद्योगिकियों से संबंधित अपने मानक आवश्यक पेटेंट (SEP) का उपयोग करने के लिये भारतीय मोबाइल फोन निर्माता माइक्रोमैक्स के खिलाफ एरिक्सन द्वारा पेटेंट उल्लंघन का मुकदमा शामिल था।
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2013 में एरिक्सन के पक्ष में एक अंतरिम निषेधाज्ञा जारी की जिसमें माइक्रोमैक्स को अपने उपकरणों के शुद्ध बिक्री मूल्य के प्रतिशत के आधार पर रॉयल्टी का भुगतान करने का निर्देश दिया गया।
    • बाद में दोनों पक्षों ने वर्ष 2014 में मध्यस्थता के माध्यम से विवाद को सुलझा लिया।

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मेजराना ज़ीरो मोड्स

प्रीलिम्स के लिये:

मेजराना ज़ीरो मोड्स, क्वांटम कंप्यूटिंग, क्यूबिट्स, सुपरकंप्यूटर, एंटीपार्टिकल, फर्मियन्स, पॉज़िट्रॉन, न्यूट्रिनो

मेन्स के लिये:

मेजराना ज़ीरो मोड और क्वांटम कंप्यूटिंग में इसके संभावित लाभ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में माइक्रोसॉफ्ट के शोधकर्त्ताओं ने मेजराना ज़ीरो मोड्स, जो एक प्रकार का कण है, के निर्माण में महत्त्वपूर्ण सफलता की घोषणा की, जिसका क्वांटम कंप्यूटिंग में क्रांति लाने के संभावित प्रभाव हैं।

  • माइक्रोसॉफ्ट के शोधकर्त्ताओं ने एक एल्युमीनियम सुपरकंडक्टर और इंडियम आर्सेनाइड सेमीकंडक्टर से एक टोपोलॉजिकल सुपरकंडक्टर का निर्माण किया।
  • उनके डिवाइस ने माप और अनुकरण सहित एक सख्त प्रोटोकॉल जारी किया जो मेजराना ज़ीरो मोड की मेज़बानी की उच्च संभावना का संकेत देता है।
  • टोपोलॉजिकल गैप प्रोटोकॉल और चालन शिखर के अवलोकन को मेजराना ज़ीरो मोड के लिये मज़बूत साक्ष्य माना जाता है।

मेजराना ज़ीरो मोड्स: 

  • मेजराना फर्मियन्स: 
    • पदार्थ को बनाने वाले सभी उप-परमाण्विक कणों को फर्मियन कहा जाता है।
    • वर्ष 1928 में भौतिक विज्ञानी पॉल डिरॉक ने यह समझने के लिये डिरॉक समीकरण विकसित किया कि क्वांटम यांत्रिकी और सापेक्षता का विशेष सिद्धांत कैसे सह-अस्तित्व में रह सकते हैं।
      • डिरॉक समीकरण ने उपपरमाण्विक कणों के व्यवहार का वर्णन किया जो लगभग प्रकाश की गति के समान चलते थे।
    • इस समीकरण ने प्रत्येक कण के लिये एंटीपार्टिकल्स के अस्तित्व की भविष्यवाणी की जिससे वर्ष 1932 में पहले एंटीपार्टिकल, पॉज़िट्रॉन (या एंटी-इलेक्ट्रॉन) की खोज हुई।
    • वर्ष 1937 में भौतिक विज्ञानी एटोर मेजराना ने पाया कि डिरॉक समीकरण उन कणों को अपने स्वयं के प्रतिकण बनने की अनुमति देता है जो कुछ शर्तों को पूरा करते हैं। 
    • उनके सम्मान में फर्मिऑन जो अपने स्वयं के एंटीपार्टिकल्स हैं, मेजराना फर्मिअन कहलाते हैं। 
      • न्यूट्रिनो एक प्रकार का कण है जिसके बारे में भौतिकविदों का मानना है कि यह मेजराना फर्मियन हो सकता है, हालाँकि प्रयोगात्मक प्रमाण का अभी भी अभाव है।
  • मेजराना जीरो मोड्स: 
    • फर्मिऑन में चार क्वांटम संख्याएँ होती हैं, जिनमें से एक क्वांटम स्पिन होती है, जिसमें केवल आधा-पूर्णांक मान होता है।
    • फर्मिऑन की बँधी हुई अवस्थाएँ जो उनके स्वयं के प्रतिकण हैं, मेजराना ज़ीरो मोड्स कहलाती हैं।
    • मेजराना ज़ीरो मोड दो दशकों से अधिक समय से अनुसंधान का विषय रहा है।
    • उनकी अद्वितीय विशेषताएँ उन्हें टोपोलॉजिकल क्वांटम कंप्यूटिंग के लिये आशाजनक बनाती हैं।

कंप्यूटिंग में मेजराना ज़ीरो मोड के संभावित लाभ:

  • मेजराना ज़ीरो मोड में अद्वितीय गुण होते हैं जो क्वांटम कंप्यूटर को अधिक मज़बूत और कम्प्यूटेशनल रूप से बेहतर बनाते हैं। वर्तमान में क्वांटम कंप्यूटर का उपयोग किया जाता है
  • अलग-अलग इलेक्ट्रॉन क्वबिट के रूप में होते हैं, लेकिन वे कमज़ोर और विघटन के प्रति संवेदनशील होते हैं।
  • मेजराना ज़ीरो मोड, एक इलेक्ट्रॉन और एक छिद्र (hole) से निर्मित अधिक स्थिर क्यूबिट के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
  • यहाँ तक ​​कि यदि इनकी इकाइयों में से एक भी अशांत है, तो एन्कोडेड जानकारी की सुरक्षा करते हुए समग्र क्यूबिट डिकोड नहीं होता है।
  • मेजराना ज़ीरो मोड स्थलाकृतिक अध:पतन को प्रस्तुत करते हैं, जो एन्कोडेड जानकारी को आसानी से खोए बिना विभिन्न स्थलाकृतिक गुणों से जानकारी के भंडारण और पुनर्प्राप्ति की अनुमति देता है।
    • टोपोलॉजी पदार्थ के उन गुणों का अध्ययन है जिनमें निरंतर होने वाले विरूपण से गुज़रने के बावजूद कोई बदलाव नहीं आता है, यानी जब ऐसे पदार्थ जिन्हें खींचा जाए, मोड़ा जाए फिर भी ये टूटते अथवा चिपकते नहीं हैं।

क्वांटम कंप्यूटिंग:

  • क्वांटम कंप्यूटिंग, कंप्यूटिंग के नए तरीके बनाने के लिये क्वांटम भौतिकी में घटनाओं का उपयोग करती है।
    • क्वांटम भौतिकी परमाणु और उपपरमाण्विक स्तरों पर ऊर्जा और सामग्री के व्यवहार की व्याख्या करती है।
  • क्वांटम कंप्यूटिंग क्यूबिट्स से संबंधित है। एक सामान्य कंप्यूटर बिट के विपरीत (जो 0 अथवा 1 हो सकता है), एक क्यूबिट बहुआयामी रूप में मौजूद हो सकता है।
    • अधिक क्यूबिट के साथ क्वांटम कंप्यूटर की क्षमता में तीव्र वृद्धि होती है।
  • पारंपरिक कंप्यूटर में अधिक बिट्स की संख्या बढ़ाने से केवल उनकी रैखिक शक्ति बढ़ सकती है।
  • क्वांटम कंप्यूटिंग में बड़ी संख्या में संभावनाओं का आकलन कर जटिल समस्याओं और चुनौतियों का संभावित समाधान निकालने की क्षमता है।
    • सुपरपोज़िशन, जटिलता और हस्तक्षेप क्वांटम कंप्यूटिंग की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
  • सुपरपोज़िशन: 
    • यह एक क्वांटम प्रणाली की एक साथ कई अवस्थाओं में रहने की क्षमता है।
    • सुपरपोज़िशन के उदाहरण: यदि एक सिक्के को उछाला जाए, इसमें हेड अथवा टेल ही आता है, यह एक द्विआयामी अवधारणा है। वही सिक्का जब हवा में होता है, तो उसमें हेड और टेल दोनों होते हैं और जब तक वह ज़मीन पर नहीं गिरता, हेड और टेल दोनों एक साथ होते हैं। इस स्थिति में इलेक्ट्रॉन क्वांटम सुपरपोज़िशन में होते है। 

  • एंटैंगलमेंट: 
    • इसका अर्थ है एक जोड़ी (क्यूबिट्स) के दो सदस्य एकल क्वांटम अवस्था में मौजूद होते हैं। किसी एक क्यूबिट की स्थिति को बदलने से तुरंत दूसरे की स्थिति में भी परिवर्तन (एक पूर्वानुमानित तरीके से) होगा। ऐसा तब भी होता है जब वे बहुत अधिक दूरी पर अलग-अलग रखे हों।
    • आइंस्टीन द्वारा इस तरह की घटना को ‘एक्शन एट ए डिस्टेंस’ नाम दिया गया।
  • इंटरफेरेंस : 
    • क्वांटम इंटरफेरेंस बताता है कि प्राथमिक कण (क्यूबिट्स) किसी भी समय (सुपरपोज़िशन के माध्यम से) एक से अधिक स्थानों पर उपस्थित नहीं हो सकते, लेकिन यह एक एकल कण, जैसे कि फोटॉन (प्रकाश कण) अपने स्वयं के प्रक्षेपवक्र को पार कर अपने मार्ग की दिशा से हस्तक्षेप कर सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न:  निम्नलिखित में से कौन-सा वह संदर्भ है जिसमें "क्यूबिट" शब्द का उल्लेख किया गया है?

(a) क्लाउड सेवाएँ
(b) क्वांटम कंप्यूटिंग
(c) दृश्य प्रकाश संचार तकनीक
(d) बेतार (वायरलेस) संचार तकनीक 

उत्तर: (b) 

व्याख्या: 

क्वांटम वर्चस्व:

  • क्वांटम कंप्यूटर 'क्यूबिट्स' (या क्वांटम बिट्स) में गणना करते हैं। वे क्वांटम यांत्रिकी के गुणों का फायदा उठाते हैं, वह विज्ञान जो यह नियंत्रित करता है कि परमाणु पैमाने पर पदार्थ कैसे व्यवहार करता है।
  • अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

AI में उच्च आधुनिकतावाद से संबंधित चिंताएँ

प्रिलिम्स के लिये:

AI में उच्च आधुनिकतावाद से संबंधित चिंताएँ, ChatGPT, कृत्रिम बुद्धिमत्ता

मेन्स के लिये:

AI में उच्च आधुनिकतावाद से संबंधित चिंताएँ, AI प्रौद्योगिकी के नैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक निहितार्थ

चर्चा में क्यों? 

ChatGPT जैसे विशाल कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के आविर्भाव ने हाल के दिनों में महत्त्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया है। हालाँकि इन AI को डिज़ाइन करने में उच्च आधुनिकतावाद से संबंधित चिंताएँ हैं।

ChatGPT: 

  • ChatGPT जनरेटिव प्री-ट्रेंड ट्रांसफार्मर (GPT) का एक प्रकार है जो OpenAI द्वारा विकसित एक बड़े पैमाने पर तंत्रिका नेटवर्क-आधारित भाषा प्रारूप है।
  • GPT मॉडल को मानव जैसा टेक्स्ट उत्पन्न करने के लिये बड़ी मात्रा में टेक्स्ट डेटा पर प्रशिक्षित किया जाता है।
  • यह विभिन्न विषयों पर प्रतिक्रियाएँ दे सकता है, जैसे- प्रश्नों का उत्तर देना, स्पष्टीकरण प्रदान करना और संवाद में भाग लेना।
  • ChatGPT "अनुवर्ती प्रश्नों" का उत्तर देने के साथ"अपनी गलतियों को स्वीकार कर सकता है, गलत धारणाओं को चुनौती दे सकता है, साथ ही अनुचित अनुरोधों को अस्वीकार कर सकता है।"
  • चैटबॉट को रीइन्फोर्समेंट लर्निंग फ्रॉम ह्यूमन फीडबैक (RLHF) का उपयोग करके भी प्रशिक्षित किया गया था।

AI को डिज़ाइन करने में उच्च आधुनिकतावाद की चुनौतियाँ: 

  • उच्च आधुनिकतावाद का परिचय: 
    • उच्च आधुनिकतावाद ऊपर से नीचे तक की विचारधारा को संदर्भित करता है जो व्यवस्था तथा मापने योग्य प्रगति में विश्वास से प्रेरित है। सामाजिक तथा प्राकृतिक विश्व को फिर से व्यवस्थित करने के साधन के रूप में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में अटूट विश्वास इसकी विशेषता है।
      • यह प्राय: स्थानीय ज्ञान तथा जीवित अनुभवों की उपेक्षा करता है जिससे अनपेक्षित परिणाम होते हैं।
    • यह दृष्टिकोण, जब AI डिज़ाइन पर लागू किया जाता है तो यह मानव विचार की जटिलता एवं विविधता को नज़रअंदाज कर सकता है जिसके परिणामस्वरूप पक्षपाती और अपूर्ण प्रणालियाँ बनती हैं।
  • AI डिज़ाइन में उच्च आधुनिकतावाद की चुनौतियाँ: 
    • विविधता की हानि: GAI को मुख्य रूप से इंटरनेट टेक्स्ट पर प्रशिक्षित किया जाता है, जो कुछ भाषाओं, धर्मों, नस्लों एवं संस्कृतियों के प्रति पक्षपाती है जिससे इन पूर्वाग्रहों को कायम रखने का जोखिम होता है।
      • विविध प्रशिक्षण डेटा की कमी से भाषा की हानि हो सकती है तथा मानव विचार और अभिव्यक्ति की समृद्धि में बाधा आ सकती है।
    • स्थानीय सूचना में कमी: प्रत्यक्ष अनुभव के माध्यम से प्राप्त सूक्ष्म सूचना को अलग करके GAI इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के "एटलस व्यू (Atlas View)" को प्राथमिकता देते हैं।
      • यह दृष्टिकोण सटीक और बहुआयामी समझ के लिये आवश्यक स्थानीय संदर्भ और क्षेत्र-विशिष्ट अंतर्दृष्टि की उपेक्षा करता है। 

AI डिज़ाइन करने में विविधता की भूमिका:

  • मानकीकरण से बचना:  
    • विविध AI मॉडल की कमी के परिणामस्वरूप मानकीकृत, एक आकार के उपयुक्त सभी समाधान हो सकते हैं जो क्षेत्रीय, सांस्कृतिक या व्यक्तिगत विविधताओं को ध्यान में रखने में विफल होते हैं।
    • AI, विकास में विविधता को बढ़ावा देने से कई दृष्टिकोण प्राप्त हो सकते हैं, नवाचार और अनुरूप समाधानों को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • समझ में सुधार:  
    •  AI मॉडल में विविधता दृष्टिकोण और ज्ञान की एक विस्तृत शृंखला को अधिकृत करने, पूर्वाग्रहों को कम करने के साथ मॉडल की समझ और प्रतिक्रिया क्षमताओं को बढ़ाने में सहायता प्रदान करती है।
    • यह अधिक समावेशी और न्यायसंगत AI परिदृश्य को बढ़ावा देते हुए विविध भाषाओं, संस्कृतियों तथा अनुभवों को शामिल करने की अनुमति देता है।

GAIs द्वारा उत्पन्न जोखिमों को विफल करने के तरीके:

  • AI व्यावसायीकरण धीमा करना:  
    • AI व्यावसायीकरण की गति को धीमा करने से AI तकनीक के नैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक निहितार्थों के बारे में लोकतांत्रिक निविष्टियों के साथ व्यापक चर्चा की अनुमति प्राप्त होती है। 
    • यह सुनिश्चित करता है कि AI के विकास से संबंधित निर्णय केवल लाभ के उद्देश्यों से प्रेरित नहीं हों बल्कि व्यापक सामाजिक हितों पर भी केंद्रित हों।
  • विविध AI मॉडल को बढ़ावा देना:  
    • विभिन्न AI मॉडलों के निर्माण को प्रोत्साहित करके एक अधिक विकसित और समावेशी AI पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सकता है।
    • अलग-अलग उद्देश्यों और भाषाओं वाले मॉडल सामूहिक रूप से विश्व की अधिक व्यापक समझ प्रदान कर सकते हैं। 

निष्कर्ष: 

  • ChatGPT जैसे AI उल्लेखनीय क्षमताओं से पूर्ण हैं, लेकिन इन्हें अभिकप्लित/डिज़ाइन करते समय उच्च आधुनिकतावाद से जुड़े जोखिमों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • AI विकास में विविधता को प्राथमिकता, लोकतांत्रिक इनपुट को बढ़ावा और स्थानीय ज्ञान को महत्त्व देने के साथ ही AI से संबंधित जोखिमों को कम करने में मदद कर सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि AI प्रौद्योगिकियाँ मानवता की विविध आवश्यकताओं को पूरा करती हों
  • AI प्रणाली के नैतिक विकास और कार्यान्वयन के लिये मानवीय बुद्धिमता को बढ़ाने और इसे बनाए रखने के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। 

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2023

प्रिलिम्स के लिये:

बहुआयामी गरीबी सूचकांक, यूएनडीपी, गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन स्तर

मेन्स के लिये:

बहुआयामी गरीबी सूचकांक

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme- UNDP) और ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (Oxford Poverty and Human Development Initiative- OPHI) द्वारा वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index- MPI) 2023 जारी किया गया है।

  • यह "प्रत्यक्ष रूप से किसी व्यक्ति के जीवन और कल्याण को प्रभावित करने वाले स्वास्थ्य, शिक्षा एवं जीवन स्तर के परस्पर संबंधित अभावों को मापता है"।

प्रमुख बिंदु: 

  • वैश्विक परिदृश्य: 
    • विश्व स्तर पर 110 देशों के 6.1 अरब लोगों में से 1.1 अरब लोग (कुल जनसंख्या का 18%) बहुआयामी रूप से अत्यंत गरीब हैं।
      • उप-सहारा अफ्रीका में गरीबों की संख्या 534 मिलियन है और दक्षिण एशिया में यह संख्या 389 मिलियन है।
    • इन दोनों क्षेत्रों में प्रत्येक छह लोगों में से लगभग पाँच लोग गरीब हैं।
      • MPI आधारित गरीब लोगों में से आधे यानी 566 मिलियन 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे हैं।
    • बच्चों में गरीबी दर 27.7% है, जबकि वयस्कों में यह 13.4% है।
  • भारत के संदर्भ में: 
    • भारत में गरीबी: भारत में अभी भी 230 मिलियन से अधिक लोग गरीब हैं।
      • UNDP के अनुसार, "संवेदनशीलता" को उन लोगों के हिस्से के रूप में परिभाषित किया गया है जो गरीब नहीं हैं लेकिन सभी भारित संकेतकों के 20 - 33.3% में वंचित हैं। उनकी भेद्यता हिस्सेदारी बहुत अधिक हो सकती है।
      • भारत की लगभग 18.7% आबादी इस श्रेणी में है।
    • गरीबी उन्मूलन में भारत की प्रगति: भारत कंबोडिया, चीन, कांगो, होंडुरास, इंडोनेशिया, मोरक्को, सर्बिया और वियतनाम सहित 25 देशों में से एक है जिन्होंने 15 वर्षों के भीतर अपने वैश्विक MPI मूल्यों को सफलतापूर्वक आधा कर दिया है।
      • वर्ष 2005-06 और वर्ष 2019-21 के बीच लगभग 415 मिलियन भारतीय गरीबी से बच गए।
      • भारत में गरीबी की घटनाओं में उल्लेखनीय गिरावट आई है जो वर्ष 2005-2006 के 55.1% से घटकर वर्ष 2019-2021 में 16.4% हो गई है।
      • वर्ष 2005/2006 में भारत में लगभग 645 मिलियन लोगों ने बहुआयामी गरीबी का अनुभव किया, यह संख्या वर्ष 2015-2016 में घटकर लगभग 370 मिलियन और वर्ष 2019-2021 में 230 मिलियन हो गई।
    • अभाव संकेतकों में सुधार: भारत ने तीनों अभाव संकेतकों- स्वास्थ्य, शिक्षा, जीवन स्तर में उल्लेखनीय प्रगति की है।
      • सभी क्षेत्रों और सामाजिक-आर्थिक समूहों में गरीबी में गिरावट समान रही है।
        • सबसे गरीब राज्यों और समूहों, जिनमें बच्चे एवं वंचित जाति समूहों के लोग भी शामिल हैं, में सर्वाधिक तीव्रता से प्रगति हुई।
      • बहुआयामी रूप से गरीब और पोषण से वंचित लोगों का प्रतिशत वर्ष 2005-2006 के 44.3% से घटकर वर्ष 2019-2021 में 11.8% हो गया, साथ ही बाल मृत्यु दर 4.5% से घटकर 1.5% हो गई।

सिफारिशें:

  • संदर्भ-विशिष्ट बहुआयामी गरीबी सूचकांकों की आवश्यकता है जो गरीबी की राष्ट्रीय परिभाषाओं को दर्शाते हों।
  • जबकि वैश्विक MPI एक मानकीकृत कार्यप्रणाली प्रदान करता है, राष्ट्रीय परिभाषाएँ प्रत्येक देश के लिये विशिष्ट गरीबी की व्यापक समझ प्रदान करती हैं।
  • गरीबी का प्रभावी रूप से आकलन तथा समाधान करने के लिये इन संदर्भ-विशिष्ट सूचकांकों पर विचार करना महत्त्वपूर्ण होता है।

वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक:

  • परिचय: 
    • यह सूचकांक एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संसाधन है जो 100 से अधिक विकासशील देशों में तीव्र बहुआयामी गरीबी को मापता है।
    • इसे प्रथम बार वर्ष 2010 में OPHI तथा  UNDP के मानव विकास रिपोर्ट कार्यालय द्वारा प्रारंभ किया गया था।
    • MPI स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के विभिन्न 10 संकेतकों में अभावों की निगरानी करता है और इसमें गरीबी की घटना और तीव्रता दोनों शामिल हैं।

MPI संकेतक और आयाम: 

एक व्यक्ति बहुआयामी रूप से गरीब है यदि वह भारित संकेतकों (दस संकेतकों में से) के एक-तिहाई या अधिक (मतलब 33% या अधिक) से वंचित है। जो लोग भारित संकेतकों के आधे या अधिक से वंचित हैं, उन्हें अत्यधिक बहुआयामी गरीबी में रहने वाला माना जाता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रीलिम्स:

प्रश्न. UNDP के समर्थन से ‘ऑक्सफोर्ड निर्धनता एवं मानव विकास नेतृत्व’ द्वारा विकसित ‘बहुआयामी निर्धनता सूचकांक’ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से सम्मिलित है/हैं? (2012)

  1. पारिवारिक स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, संपत्ति और सेवाओं से वंचन
  2.  राष्ट्रीय स्तर पर क्रय शक्ति समता
  3.  राष्ट्रीय स्तर पर बजट घाटे की मात्रा और GDP की विकास दर 

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. उच्च संवृद्धि के लगातार अनुभव के बावजूद भारत के मानव विकास के निम्नतम संकेतक चल रहे हैं। उन मुद्दों का परीक्षण कीजिये, जो संतुलित और समावेशी विकास को पकड़ में नहीं आने दे रहे हैं। (2019) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


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