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सामाजिक न्याय

स्वास्थ्य का अधिकार

  • 22 Mar 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

स्वास्थ्य का अधिकार, WHO, मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (1948), संयुक्त राष्ट्र, मौलिक अधिकार, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत, सर्वोच्च न्यायालय।

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य का अधिकार, चुनौतियाँ एवं आगे की राह।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजस्थान सरकार ने स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक पारित किया है, जो राज्य के प्रत्येक निवासी को सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर मुफ्त सेवाओं का लाभ उठाने का अधिकार देता है।  

विधेयक की प्रमुख विशेषताएँ:

  • सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों तथा चुनिंदा निजी सुविधाओं में नियमों में निर्दिष्ट शर्तों के अधीन परामर्श, दवाएँ, निदान, आपातकालीन परिवहन, प्रक्रिया और आपातकालीन देखभाल सहित मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान की जाएंगी। 
  • विधेयक में अस्पतालों के लिये यह अनिवार्य किया गया है कि वे आपातकालीन मामलों में मेडिको-लीगल औपचारिकताओं की प्रतीक्षा किये बिना उपचार प्रदान करें और बिना धनराशि लिये दवाएँ और परिवहन सुविधाएँ दें।  
  • इस कानून के कार्यान्वयन से अनावश्यक खर्च को समाप्त करने एवं स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के भीतर पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होने की उम्मीद है। 

स्वास्थ्य का अधिकार:

  • परिचय: 
    • स्वास्थ्य का अधिकार स्वास्थ्य के सबसे प्राप्य स्तरों को संदर्भित करता है और इसका तात्पर्य यह है कि हर इंसान इसका हकदार है।
      • स्वास्थ्य के अधिकार की शुरुआत वर्ष 1946 में हुई थी, जब पहला अंतर्राष्ट्रीय संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) अस्तित्त्व में आया था, जिसने स्वास्थ्य शर्तों को मानव अधिकारों के रूप में तैयार किया था।
    • स्वास्थ्य का अधिकार मानव गरिमा का एक अनिवार्य घटक है और यह सुनिश्चित करना सरकारों का उत्तरदायित्त्व है कि सभी व्यक्तियों के सुरक्षित जीवन के लिये यह अधिकार  सभी के लिये सुलभ हो, चाहे उनका लिंग, जाति, जातीयता, धर्म या सामाजिक आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।
    • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (Directive Principles of State Policy- DPSP) के तहत संविधान का भाग IV अपने नागरिकों हेतु सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करता है। इसलिये संविधान का भाग IV प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य के संदर्भ में सार्वजनिक नीति से संबंधित है।
  • भारत में संबंधित प्रावधान: 
    • अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय: भारत संयुक्त राष्ट्र द्वारा सार्वभौमिक अधिकारों की घोषणा (1948) के अनुच्छेद-25 का हस्ताक्षरकर्त्ता है जो भोजन, कपड़े, आवास, चिकित्सा देखभाल और अन्य आवश्यक सामाजिक सेवाओं के माध्यम से मनुष्यों को स्वास्थ्य देखभाल के लिये पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार देता है। 
    • मूल अधिकार: भारत के संविधान का अनुच्छेद-21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। स्वास्थ्य का अधिकार गरिमायुक्त जीवन के अधिकार में निहित है।
    • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP): अनुच्छेद 38, 39, 42, 43 और 47 ने स्वास्थ्य के अधिकार की प्रभावी प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये राज्यों का मार्गदर्शन किया है। 
    • न्यायिक उद्घोषणा: पश्चिम बंगाल खेत मज़दूर समिति मामले (1996) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक कल्याणकारी राज्य में सरकार का प्राथमिक कर्त्तव्य लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना और उन्हें पर्याप्त चिकित्सा सुविधा प्रदान करना है। 
      • परमानंद कटारा बनाम भारत संघ मामले (1989) में अपने ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि प्रत्येक डॉक्टर चाहे वह सरकारी अस्पताल में हो या फिर अन्य कहीं, जीवन की रक्षा के लिये उचित विशेषज्ञता के साथ अपनी सेवाएँ देना उसका पेशेवर दायित्त्व है।
  • महत्त्व: 
    • स्वास्थ्य सेवा आधारित अधिकार: लोग स्वास्थ्य के अधिकार के हकदार हैं और सरकार द्वारा इस दिशा में कदम उठाना उसका उत्तरदायित्त्व है।
    • स्वास्थ्य सेवाओं तक व्यापक पहुँच: यह सभी को सेवाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाता है और सुनिश्चित करता है कि सेवाओं की गुणवत्ता उन लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिये पर्याप्त है।
    • अतरिक्त व्यय को कम करना: यह लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के लिये भुगतान करने के वित्तीय जोखिमों से बचाता है और लोगों के गरीबी की ओर धकेले जाने के खतरे को कम करता है। 

भारत में स्वास्थ्य के अधिकार से जुड़ी चुनौतियाँ: 

  • स्वास्थ्य देखभाल के अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे:  
    • हाल में हुए सुधारों के बावजूद भारत का स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढाँचा अपर्याप्त है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
    • भारत में प्रति 1,000 लोगों पर बेड की संख्या 1.4 है, 1,445 लोगों पर 1 डॉक्टर है और 1,000 लोगों पर नर्सों की संख्या 1.7 है। 75% से अधिक हेल्थकेयर अवसंरचना मेट्रो शहरों में केंद्रित है, जहाँ कुल आबादी का केवल 27% हिस्सा रहता है, बाकी 73% भारतीय आबादी में बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं का भी अभाव है।
  • रोगों का बढ़ता बोझ:  
    • भारत में तपेदिक, HIV/एड्स, मलेरिया और मधुमेह सहित संचारी एवं गैर-संचारी रोगों की भरमार है।
    • इन रोगों को दूर करने के लिये स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे एवं संसाधनों में और अधिक निवेश करने की आवश्यकता है।
      • फ्रंटियर्स इन पब्लिक हेल्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल बीमार आबादी में से 33% से अधिक लोग अभी भी संक्रामक रोगों से पीड़ित हैं
      • संक्रामक रोगों पर प्रति व्यक्ति अंतःरोगी और बाह्य रोगी देखभाल में क्षमता से अधिक खर्च क्रमशः 7.28 और 29.38 रुपए है।
  • लैंगिक असमानताएँ:  
    • भारत में महिलाओं को स्वास्थ्य असमानताओं का सामना करना पड़ता है, जिनमें स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच, मातृ मृत्यु की उच्च दर और लिंग आधारित हिंसा शामिल है।
  • सीमित स्वास्थ्य निधियन:  
    • भारत की स्वास्थ्य निधियन प्रणाली सीमित है, स्वास्थ्य सेवा पर सार्वजनिक खर्च का स्तर कम है। यह स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे और संसाधनों में निवेश करने की सरकार की क्षमता को सीमित करता है तथा व्यक्तियों के लिये अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं का प्रमुख कारण बन सकता है।
    • भारत सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023 में सकल घरेलू उत्पाद का 2.1% स्वास्थ्य सेवा पर खर्च किया। यह निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) के सकल घरेलू उत्पाद के औसत स्वास्थ्य व्यय अंश- लगभग 5.2% से बहुत कम है। 

आगे की राह  

  • भारत को चिकित्सा सुविधाओं, उपकरणों और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों सहित स्वास्थ्य देखभाल के महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे एवं संसाधनों में अपने निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता है। इस लक्ष्य को स्वास्थ्य सेवा पर सार्वजनिक व्यय में वृद्धि और निजी क्षेत्र के निवेश में वृद्धि के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। 
  • स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में सुधार के लिये भारत को उन बाधाओं को दूर करने की ज़रूरत है जो व्यक्तियों को स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँचने से रोकती हैं, जिसमें वित्तीय बाधाएँ, परिवहन और भेदभाव शामिल हैं।
  • यह लक्षित नीतियों और कार्यक्रमों, जैसे- स्वास्थ्य बीमा योजनाओं तथा मोबाइल स्वास्थ्य देखभाल इकाइयों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। 
  • बीमारी की निगरानी, प्रमुख गैर-स्वास्थ्य विभागों की नीतियों के स्वास्थ्य प्रभाव पर सूचना एकत्र करने, राष्ट्रीय स्वास्थ्य आँकड़ों के रखरखाव, सार्वजनिक स्वास्थ्य नियमों को लागू करने और सूचना का प्रसार जैसे कार्यों को करने के लिये एक नामित तथा स्वायत्त एजेंसी बनाने की आवश्यकता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. “एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है।” विश्लेषण कीजिये। (2021) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  

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