शासन व्यवस्था
एनएफएसए रैंकिंग 2022
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय खाद्य और सुरक्षा अधिनियम, राज्य रैंकिंग सूचकांक, एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड (ONORC)। मेन्स के लिये:एनएफएसए इंडेक्स रैंकिंग का महत्त्व, राष्ट्रीय खाद्य और सुरक्षा अधिनियम, 2013, बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा, सरकारी नीतियांँ एवं हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के लिये राज्य रैंकिंग सूचकांक का पहला संस्करण जारी किया गया।
सूचकांक के बारे में:
- परिचय:
- यह सूचकांक राज्यों के साथ परामर्श के बाद देश भर में NFSA के कार्यान्वयन और विभिन्न सुधार पहलों की स्थिति एवं प्रगति के दस्तावेज़ीकरण का प्रयास करता है।
- यह राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा किये गए सुधारों पर प्रकाश डालता है तथा सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा एक क्रॉस-लर्निंग एन्वायरनमेंट व स्केल-अप सुधार उपायों का निर्माण करता है।
- वर्तमान सूचकांक काफी हद तक NFSA वितरण पर केंद्रित है और इसमें भविष्य में खरीद, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) वितरण शामिल होंगे।
- मूल्यांकन का आधार:
- राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की रैंकिंग के लिये सूचकांक का निर्माण तीन प्रमुख स्तंभों पर किया गया है, जो लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के माध्यम से NFSA के एंड-टू-एंड कार्यान्वयन को कवर करता है। ये स्तंभ हैं:
i) NFSA - कवरेज, लक्ष्यीकरण और अधिनियम के प्रावधान
ii) डिलीवरी प्लेटफॉर्म
iii) पोषण संबंधी पहल
- राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की रैंकिंग के लिये सूचकांक का निर्माण तीन प्रमुख स्तंभों पर किया गया है, जो लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के माध्यम से NFSA के एंड-टू-एंड कार्यान्वयन को कवर करता है। ये स्तंभ हैं:
राज्यों का प्रदर्शन:
- सामान्य श्रेणी के राज्य:
- ओडिशा पहले स्थान पर है, उसके बाद उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।
- विशेष श्रेणी के राज्य:
- त्रिपुरा विशेष श्रेणी के राज्यों (उत्तर-पूर्वी राज्यों, हिमालयी राज्यों और द्वीपीय राज्यों) में शीर्ष स्थान पर है।
- हिमाचल प्रदेश और सिक्किम क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।
- सबसे खराब प्रदर्शन वाले राज्य:
- पंजाब, हरियाणा और दिल्ली सबसे निचले पांँच राज्यों में शामिल हैं।
सूचकांक का महत्त्व:
- अभ्यास के निष्कर्षों से पता चलता है कि अधिकांश राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने डिजिटलीकरण, आधार सीडिंग तथा ePoS इंस्टॉलेशन में अच्छा प्रदर्शन किया है, जो सुधारों की मज़बूती और मानकों को दोहराता है।
- हालांँकि राज्य और केंद्रशासित प्रदेश कुछ क्षेत्रों में अपने प्रदर्शन में सुधार कर सकते हैं। राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में राज्य खाद्य आयोगों के कार्यों को अच्छी तरह से संचालित करने एवं उनका संचालन करने जैसे अभ्यास, अधिनियम की वास्तविक भावना को और मज़बूत करेंगे।
- इससे राज्यों के बीच उनके प्रदर्शन को बेहतर करने के लिये स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलेगा।
सूचकांक से संबंधित चुनौतियाँ:
- इसमें NFSA के अंतर्गत अन्य मंत्रालयों और विभागों द्वारा शुरू की गई परियोजनाओं एवं कार्यक्रमों को शामिल नहीं किया गया है।
- सूचकांक केवल TPDS संचालन की दक्षता को दर्शाता है, यह किसी निश्चित राज्य या संघ क्षेत्र में भूख, कुपोषण या दोनों के स्तर को नहीं दर्शाता है।
ओडिशा रैंकिंग का महत्त्व:
- ओडिशा ने वर्ष 2015 में राज्य में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के संचालन हेतु मज़बूत एंड-टू-एंड कंप्यूटरीकरण के साथ NFSA को अपनाने का निर्णय लिया।
- 25 करोड़ डिजिटल लाभार्थियों के डेटाबेस को सार्वजनिक किया गया है साथ ही और 378 राशन कार्ड प्रबंधन प्रणाली (RCMS) केंद्र , 314 ब्लॉकों तथा 64 शहरी स्थानीय निकायों (ULB) के डेटा को अद्यतन किया गया है।
- इसके अलावा खाद्य आपूर्ति और उपभोक्ता कल्याण विभाग की 152 खाद्य भंडारण सुविधाओं को पूरी तरह से स्वचालित कर दिया गया है, जिसमें 1.87 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न की रीयल-टाइम इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डिंग राज्य भर में 12,133 उचित मूल्य स्टोरों को भेजी गई है।
- जुलाई 2021 से राज्य भर में वन नेशन, वन राशन कार्ड (ONORC) कार्यक्रम शुरू किया गया।
- इसके लागू होने के बाद PDS लाभार्थी अब खाद्यान्न प्राप्त करने के लिये अपनी पसंद और सुविधा के किसी भी उचित मूल्य के राशन की दुकान या खुदरा विक्रेता को चुन सकते हैं।
- लगभग 1.10 लाख परिवार अंतर-राज्यीय सुविधा के माध्यम से राशन प्राप्त कर रहे हैं और 533 परिवारों को हर महीने अंतर-राज्यीय कार्यक्रम के माध्यम से राशन प्राप्त होता है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA):
- अधिसूचित: 10 सितंबर, 2013।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिये लोगों को वहनीय मूल्यों पर अच्छी गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्न की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध कराते हुए उन्हें खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रदान करना है।
- कवरेज: लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के तहत ग्रामीण आबादी की 75 प्रतिशत और शहरी आबादी की 50 प्रतिशत आबादी को रियायती दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) समग्र तौर पर देश की कुल आबादी के 67 प्रतिशत हिस्से को कवर करता है।
- पात्रता:
- राज्य सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के तहत आने वाले प्राथमिकता वाले परिवार।
- अंत्योदय अन्न योजना के तहत कवर किये गए परिवार।
- प्रावधान:
- प्रतिमाह प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम खाद्यान्न, जिसमें चावल 3 रुपए किलो, गेंहूँ 2 रुपए किलो और मोटा अनाज 1 रुपए किलो प्रदान करना।
- हालाँकि अंत्योदय अन्न योजना के तहत मौजूदा प्रतिमाह प्रति परिवार 35 किलोग्राम खाद्यान्न प्रदान करना जारी रहेगा।
- गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को गर्भावस्था के दौरान तथा बच्चे के जन्म से 6 माह बाद तक भोजन के अलावा कम-से-कम 6000 रुपए का मातृत्व लाभ प्रदान किये जाने का प्रावधान है।
- 14 वर्ष तक के बच्चों के लिये भोजन।
- खाद्यान्न या भोजन की आपूर्ति न होने की स्थिति में लाभार्थियों को खाद्य सुरक्षा भत्ता देना।
- ज़िला और राज्य स्तर पर शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) 1 और 2 उत्तर: (b) व्याख्या:
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 की मुख्य विशेषताएंँ:
अतः विकल्प (b) सही है। |
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
कृषि
22वांँ राष्ट्रीय मत्स्य किसान दिवस
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय मत्स्य किसान दिवस, NFDB, मत्स्य पालन को बढ़ावा देने की पहल। मेन्स के लिये:मत्स्य पालन का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (NFDB) और मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय ने पूरे देश में सभी मछुआरों, मत्स्य किसानों और संबंधित हितधारकों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिये 22वांँ राष्ट्रीय मत्स्य किसान दिवस (10 जुलाई 2022) मनाया।
राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड:
- यह वर्ष 2006 में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत एक स्वायत्त संगठन के रूप में स्थापित किया गया था।
- अब यह मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत काम करता है।
- इसका उद्देश्य देश में मत्स्य उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाना तथा एक एकीकृत एवं समग्र तरीके से मत्स्य विकास का समन्वय करना है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- राष्ट्रीय मत्स्य किसान दिवस वैज्ञानिक डॉ. के एच अलीकुन्ही और डॉ. एच एल चौधरी की याद में मनाया जाता है।
- इन दोनों ने 10 जुलाई, 1957 को भारतीय मेजर कार्प्स (मत्स्य की कई प्रजातियों के लिये सामान्य नाम) में हाइपोफिजेशन (प्रेरित प्रजनन तकनीक) का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया।
- उद्देश्य:
- देश में मत्स्य पालन क्षेत्र के विकास में मत्स्य किसानों, एक्वाप्रेन्योर (जल क्षेत्र में उद्यमी) और मछुआरों की उपलब्धियों व योगदान को मान्यता देना।
- स्थायी स्टॉक और स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र को सुनिश्चित करने के लिये देश के मत्स्य संसाधनों के प्रबंधन के तरीके को बदलने हेतु ध्यान आकर्षित करना।
मत्स्य क्षेत्र का महत्त्व:
- सूर्योदय क्षेत्र:
- मत्स्य पालन क्षेत्र देश के आर्थिक और समग्र विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। "सूर्योदय क्षेत्र" के रूप में संदर्भित मत्स्य पालन क्षेत्र समान एवं समावेशी विकास के माध्यम से अपार संभावनाएंँ लाने हेतु तैयार है।
- मत्स्य पालन प्राथमिक उत्पादक क्षेत्रों में सबसे तेज़ी से बढ़ते क्षेत्रों में से एक है।
- दूसरा प्रमुख निर्माता:
- भारत दुनिया में जलीय कृषि के माध्यम से मत्स्य का दूसरा प्रमुख उत्पादक है।
- भारत दुनिया में मत्स्य का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है क्योंकि यह वैश्विक मत्स्य उत्पादन में 7.7% का योगदान देता है।
- रोज़गार सृजन:
- वर्तमान में यह क्षेत्र देश के भीतर 2.8 करोड़ से अधिक लोगों को आजीविका प्रदान करता है। फिर भी यह अप्रयुक्त क्षमता वाला क्षेत्र है।
- भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण वर्ष 2019-20 का अनुमान है कि अब तक देश की अंतर्देशीय क्षमता का केवल 58% का ही दोहन किया गया है।
- वर्तमान में यह क्षेत्र देश के भीतर 2.8 करोड़ से अधिक लोगों को आजीविका प्रदान करता है। फिर भी यह अप्रयुक्त क्षमता वाला क्षेत्र है।
- मछुआरों और मत्स्य किसानों हेतु अवसर:
- मात्स्यिकी क्षेत्र की अपार क्षमता, मापनीय (Scalable) व्यापार समाधान और मछुआरों एवं मत्स्य किसानों हेतु लाभ को अधिकतम करने के लिये विभिन्न अवसर प्रदान करती है।
- मात्स्यिकी क्षेत्र की वास्तविक क्षमता प्राप्त करने हेतु मात्स्यिकी मूल्य शृंखला के निर्माण, उत्पादकता और दक्षता को बढ़ाने के लिये उचित तकनीक विकसित करने की आवश्यकता है।
- मात्स्यिकी क्षेत्र की अपार क्षमता, मापनीय (Scalable) व्यापार समाधान और मछुआरों एवं मत्स्य किसानों हेतु लाभ को अधिकतम करने के लिये विभिन्न अवसर प्रदान करती है।
संबंधित पहल:
- नीली क्रांति:
- केंद्र प्रायोजित योजना "नीली क्रांति" मत्स्य पालन के एकीकृत विकास और प्रबंधन हेतु वर्ष 2016 में शुरू कि गई थी।
- मत्स्य संपदा योजना:
- यह 15 लाख मछुआरों, मत्स्य पालकों आदि को प्रत्यक्ष रोज़गार देने का प्रयास करती है जो अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसरों के रूप में इस संख्या का लगभग तीन गुना है।
- इसका उद्देश्य वर्ष 2024 तक मछुआरों, मत्स्य पालकों और मत्स्य श्रमिकों की आय को दोगुना करना है।
- मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष (FIDF):
- FIDF से मत्स्य पालन से जुड़ी बुनियादी ढाँचागत सुविधाओं की स्थापना एवं प्रबंधन से निजी निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा।
- समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (MPEDA):
- MPEDA राज्य के स्वामित्व वाली एक नोडल एजेंसी है जो मत्स्य उत्पादन और संबद्ध गतिविधियों से जुड़ी है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1972 में समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम (MPEDA), 1972 के तहत की गई थी ।
- समुद्री शैवाल पार्क:
- तमिलनाडु में बहुउद्देशीय समुद्री शैवाल पार्क एक हब और स्पोक मॉडल पर विकसित गुणवत्ता वाले समुद्री शैवाल आधारित उत्पादों के उत्पादन का केंद्र होगा।
- फिशरीज़ स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज:
- यह चुनौती देश के भीतर स्टार्टअप्स को मत्स्य पालन और जलीय कृषि क्षेत्र के भीतर अपने अभिनव समाधानों को प्रदर्शित करने के लिये एक मंच प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई है।
स्रोत: पी.आई.बी.
कृषि
नेचुरल फार्मिंग
प्रिलिम्स के लिये:नेचुरल फार्मिंग, शून्य-बजट नेचुरल फार्मिंग (ZBNF), भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति कार्यक्रम (BPKP), परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY), कार्बन ज़ब्ती, सतत् कृषि पर राष्ट्रीय मिशन। मेन्स के लिये:नेचुरल फार्मिंग- महत्त्व और संबद्ध मुद्दे, नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा देने के तरीके। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने एक नेचुरल फार्मिंग सम्मेलन को संबोधित किया जहाँ उन्होंने किसानों से प्राकृतिक खेती को अपनाने का आग्रह किया।
नेचुरल फार्मिंग:
- इसे "रसायन मुक्त कृषि (Chemical-Free Farming) और पशुधन आधारित (livestock based)" के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
- कृषि-पारिस्थितिकी के मानकों पर आधारित यह एक विविध कृषि प्रणाली है जो फसलों, पेड़ों और पशुधन को एकीकृत करती है, जिससे कार्यात्मक जैवविविधता के इष्टतम उपयोग की अनुमति मिलती है।
- यह मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को बढ़ाने तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने या न्यून करने जैसे कई अन्य लाभ प्रदान करते हुए किसानों की आय बढ़ाने में सहायक है।
- कृषि के इस दृष्टिकोण को एक जापानी किसान और दार्शनिक मासानोबू फुकुओका (Masanobu Fukuoka) ने 1975 में अपनी पुस्तक द वन-स्ट्रॉ रेवोल्यूशन में पेश किया था।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्राकृतिक खेती को पुनर्योजी कृषि का एक रूप माना जाता है, जो ग्रह को बचाने के लिये एक प्रमुख रणनीति है।
- भारत में परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत प्राकृतिक खेती को भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति कार्यक्रम (BPKP) के रूप में बढ़ावा दिया जाता है।
- BPKP योजना का उद्देश्य बाहर से खरीदे जाने वाले आदानों के आयात को कम कर पारंपरिक स्वदेशी प्रथाओं को बढ़ावा देना है।
नेचुरल फार्मिंग का महत्त्व:
- उत्पादन की न्यूनतम लागत:
- इसे रोज़गार बढ़ाने और ग्रामीण विकास के साथ एक लागत-प्रभावी कृषि पद्धति/प्रथा माना जाता है।
- बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करना:
- चूँकि प्राकृतिक खेती में किसी भी सिंथेटिक रसायन का उपयोग नहीं किया जाता है, इसलिये स्वास्थ्य जोखिम और खतरे का भय नहीं रहता। साथ ही भोजन में उच्च पोषक तत्त्व होने से यह बेहतर स्वास्थ्य लाभ प्रदान करती है।
- रोज़गार सृजन:
- प्राकृतिक खेती आगत उद्यमों, मूल्यवर्द्धन, स्थानीय क्षेत्रों में विपणन आदि के कारण रोज़गार सृजन करती है। प्राकृतिक खेती में अधिशेष का गांँव में ही निवेश किया जाता है।
- चूंँकि इसमें रोज़गार सृजन की क्षमता है, जिससे ग्रामीण युवाओं का पलायन रुकेगा।
- पर्यावरण संरक्षण:
- यह बेहतर मृदा जीव विज्ञान, बेहतर कृषि जैव विविधता और बहुत छोटे कार्बन एवं नाइट्रोजन पदचिह्नों के साथ जल का अधिक न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित करती है।
- पशुधन संधारणीयता:
- कृषि प्रणाली में पशुधन का एकीकरण प्राकृतिक खेती में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने में मदद करता है। जीवामृत और बीजामृत जैसे पर्यावरण के अनुकूल जैव आदान गाय के गोबर एवं मूत्र तथा अन्य प्राकृतिक उत्पादों से तैयार किये जाते हैं।
- लचीलापन (Resilience):
- यह बेहतर मृदा जीव विज्ञान, बेहतर कृषि जैव विविधता और बहुत छोटे कार्बन एवं नाइट्रोजन पदचिह्नों के साथ जल का अधिक न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित करती है।
- NF मौसम की चरम सीमाओं के खिलाफ फसलों को लचीलापन प्रदान करके किसानों पर इसका सकारात्मक प्रभाव प्रदर्शित करता है।
प्राकृतिक खेती से संबंधित चुनौतियाँ:
- पैदावार में गिरावट:
- सिक्किम (भारत का पहला जैविक राज्य) में जैविक खेती में परिवर्तन के बाद पैदावार में कुछ गिरावट देखी गई है।
- कुछ वर्षों के बाद भी शून्य-बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) के उत्पादन में गिरावट के चलते कई किसान पारंपरिक खेती में लौट आए हैं।
- उत्पादकता और आय बढ़ाने में असमर्थ:
- ZBNF ने निश्चित रूप से मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में मदद की है, जबकि उत्पादकता और किसानों की आय बढ़ाने में इसकी भूमिका अभी तक निर्णायक नहीं है।
- प्राकृतिक आदानों की उपलब्धता का अभाव:
- किसान अक्सर आसानी से उपलब्ध प्राकृतिक आदानों की कमी का हवाला देते हैं जो रसायन मुक्त कृषि में संक्रमण के लिये एक बाधा के रूप में हैं। प्रत्येक किसान के पास अपना आदान बढ़ाने हेतु समय, धैर्य या श्रम नहीं होता है।
- पोषक तत्त्वों की कमी:
- नेचर सस्टेनेबिलिटी के एक अध्ययन में कहा गया है कि प्राकृतिक आदानों का पोषक मूल्य कम आदान वाले खेतों (कम मात्रा में उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग करने वाले खेतों) में उपयोग किये जाने वाले रसायनिक उर्वरकों के मूल्य के समान है, लेकिन उच्च आदान वाले खेतों में यह कम है।
- जब इस तरह से पोषक तत्त्वों की कमी बड़े पैमाने पर होती है, तो यह वर्षों में उपज में बाधा उत्पन्न कर सकता है, संभावित रूप से खाद्य सुरक्षा चिंताओं का कारण बन सकता है।
संबंधित पहल:
- बारानी क्षेत्र विकास (RAD)
- कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF)
- सतत् कृषि पर राष्ट्रीय मिशन (NMSA)
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)
- ग्रीन इंडिया मिशन
आगे की राह
- गंगा बेसिन से परे वर्षा सिंचित क्षेत्रों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।.
- वर्षा सिंचित क्षेत्र, सिंचाई के प्रचलित क्षेत्रों की तुलना में प्रति हेक्टेयर उर्वरकों का केवल एक-तिहाई उपयोग करते हैं।
- रसायन मुक्त कृषि के लिये आदानों का उत्पादन करने वाले सूक्ष्म उद्यमों को आसानी से उपलब्ध प्राकृतिक आदानों की अनुपलब्धता की चुनौती को दूर करने के हेतु सरकार की ओर से सहायता प्रदान की जाएगी, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये इन्हें ग्राम-स्तरीय इनपुट और बिक्री की दुकानों की स्थापना के साथ जोड़ा जाना चाहिये।
- सरकार को एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र की सुविधा प्रदान करनी चाहिये जिसमें किसान संक्रमण काल के समय एक-दूसरे से सीखें और एक-दूसरे का समर्थन करें।
- कृषि विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम विकसित करने के अलावा कृषि विस्तार कार्यकर्त्ताओं को स्थायी कृषि प्रथाओं पर कौशल बढ़ाने की आवश्यकता है।
स्रोत: द हिंदू
भूगोल
अमरनाथ फ्लैश फ्लड
प्रिलिम्स के लिये:फ्लैश फ्लड, क्लाउड बर्स्टिंग, फंडामेंटल्स ऑफ फिज़िकल जियोग्राफी, इंडियन फिजिकल जियोग्राफी, डिजास्टर मैनेजमेंट बॉडीज़, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ मेन्स के लिये:फ्लैश फ्लड और क्लाउड बर्स्टिंग के लिये भौगोलिक कारक, आपदा प्रबंधन निकाय और उनकी भूमिका, भौतिक भूगोल के मूल तत्त्व, भारतीय भौतिक भूगोल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मध्य कश्मीर के गांदरबल इलाके में बालटाल आधार शिविर के पास फ्लैश फ्लड के कारण भूस्खलन हुआ।
- इस घटना में 13 तीर्थयात्री मारे गए हैं और दर्जनों लापता हैं।
अमरनाथ के बारे में:
- अमरनाथ भारत के जम्मू और कश्मीर में स्थित एक हिंदू मंदिर है।
- यह गुफा 3,888 मीटर की ऊंँचाई पर स्थित है, श्रीनगर से लगभग 100 किमी दूर जो जम्मू और कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी है, यहाँ पहलगाम शहर के माध्यम से पहुंँचा जा सकता है।
- मंदिर हिंदू धर्म के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।
- अमरनाथ यात्रा इस बार तीन वर्ष बाद फिर से शुरू हुई।
- वार्षिक यात्रा में गुफा मंदिर तक पहुंँचने के लिये दक्षिण में पहलगाम और मध्य कश्मीर में सोनमर्ग के दो मार्ग हैं।
अमरनाथ फ्लैश फ्लड:
- फ्लैश फ्लड:
- इसमें आमतौर पर बारिश के दौरान या उसके बाद जल स्तर में अचानक वृद्धि होती है।
- ये बहुत ऊँची चोटी के साथ छोटी अवधि की अत्यधिक स्थानीयकृत घटनाएँ हैं और आमतौर पर वर्षा और चरम बाढ़ की घटना के बीच छह घंटे से भी कम समय होता है।
- पानी के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा डालने वाली जल निकासी लाइनों या अतिक्रमणों की उपस्थिति में बाढ़ की स्थिति और खराब हो जाती है।
- कारण:
- यह घटना भारी बारिश की वजह से तेज़ आँधी, तूफान, उष्णकटिबंधीय तूफान, बर्फ का पिघलना आदि के कारण हो सकती है।
- फ्लैश फ्लड की घटना बाँध टूटने और/या मलबा प्रवाह के कारण भी हो सकती है।
- ज्वालामुखियों पर या उसके आस-पास के क्षेत्रों में विस्फोट के बाद अचानक बाढ़ भी आई है, जब भीषण गर्मी से ग्लेशियर पिघल जाते हैं।
- वर्षा की तीव्रता, वर्षा का स्थान और वितरण, भूमि उपयोग तथा स्थलाकृति, वनस्पति के प्रकार एवं विकास/घनत्व, मृदा का प्रकार, मृदा, जल- सामग्री सभी यह निर्धारित करते हैं कि फ्लैश फ्लडिंग कितनी जल्दी हो सकती है और यह कहांँ प्रभावित करती है।
बादल फटना:
- परिचय:
- बादल फटना एक छोटे से क्षेत्र में छोटी अवधि की तीव्र वर्षा की घटना है।
- यह लगभग 20-30 वर्ग किमी. के भौगोलिक क्षेत्र में 100 मिमी./घंटा से अधिक अप्रत्याशित वर्षा के साथ एक मौसमी घटना है।
- भारतीय उपमहाद्वीप में आमतौर पर यह घटना तब घटित होती है जब मानसून उत्तर की ओर, बंगाल की खाड़ी या अरब सागर से मैदानी इलाकों में और फिर हिमालय की ओर बढ़ता है जो कभी-कभी प्रति घंटे 75 मिलीमीटर वर्षा करता है।
- घटना:
- सापेक्षिक आर्द्रता और मेघ आवरण, निम्न तापमान एवं धीमी हवाओं के साथ अधिकतम स्तर पर होता है, जिसके कारण बादल बहुत अधिक मात्रा में तीव्र गति से संघनित होते हैं और इसके परिणामस्वरूप बादल फट सकते हैं।
- जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, वातावरण अधिक-से-अधिक नमी धारण कर सकता है और यह नमी कम अवधि में बहुत तीव्र वर्षा (शायद आधे घंटे या एक घंटे के लिये) का कारण बनती है, जिसके परिणामस्वरूप पहाड़ी क्षेत्रों में अचानक बाढ़ आती है और शहरों में शहरी बाढ़ कि स्थिति देखी जाती हैं।
- बादल फटना और वर्षण:
- वर्षण बादल से गिरने वाला संघनित जल है, जबकि बादल फटना (Cloudburst) अचानक भारी वर्षण है।
- प्रति घंटे 100 मिमी से अधिक वर्षण को बादल फटने के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- बादल फटना प्राकृतिक घटना है, लेकिन यह काफी अप्रत्याशित रूप से अचानक और बाद के रूप में उत्पन्न होती है।
- बादल फटने का परिणाम:
अमरनाथ जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने की घटना:
- पहाड़ी क्षेत्रों में कभी-कभी संतृप्त बादल संघनित हो जाते हैं लेकिन ऊपर की ओर वायु के बहुत गर्म प्रवाह के कारण बारिश नहीं कर पाते हैं।
- वर्षा की बूंँदों को नीचे की ओर गिरने की बजाय वायु प्रवाह द्वारा ऊपर की ओर ले जाया जाता है। जिससे नई बूँदें बनती हैं और मौजूदा वर्षा की बूंदों का आकार बढ़ जाता है।
- एक बिंदु के बाद बारिश की बूँदें इतनी भारी हो जाती हैं कि बादल ऊपर टिके नहीं रह पाते और वे एक साथ त्वरित रूप से नीचे गिर जाते हैं।
- वर्ष 2020 में प्रकाशित एक अध्ययन ने केदारनाथ क्षेत्र में बादल फटने के पीछे के मौसम संबंधी कारकों की जांँच की, जहांँ बादल फटने से वर्ष 2013 की विनाशकारी बाढ़ में आई।
- इसमें पाया गया कि बादल फटने के दौरान कम तापमान और धीमी हवाओं के साथ सापेक्षिक आर्द्रता एवं बादलों का आवरण अधिकतम स्तर पर था।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय विरासत और संस्कृति
प्राचीन बौद्ध स्थल का संरक्षण
प्रिलिम्स के लिये:ASI, बौद्ध, अशोक के शिलालेख। मेन्स के लिये:मौर्य और सातवाहन, ब्राह्मी लिपि। |
चर्चा में क्यों?
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) कर्नाटक के कलबुर्गी ज़िले में कानागनहल्ली (सन्नति स्थल का हिस्सा) के पास भीमा नदी के तट पर प्राचीन बौद्ध स्थल का संरक्षण करेगा।
- संरक्षण परियोजना के तहत खुदाई में प्राप्त महा स्तूप के अवशेषों को बिना किसी अलंकरण के उनकी मूल स्थिति में पुनर्स्थापित किया जाएगा और साथ ही समान आकार और बनावट की नव-निर्मित ईंटों का उपयोग करके अयाका प्लेटफाॅर्मों (Ayaka Platforms) के गिरे हुए हिस्सों का पुनर्निर्माण करेगी।
उत्खनन के निष्कर्ष:
- अशोक के शिलालेख:
- अशोक के शिलालेखों के साथ-साथ पत्थरों और गुफाओं की दीवारों पर तीस से अधिक शिलालेखों का संग्रह है, मौर्य साम्राज्य के सम्राट अशोक ने इनका निर्माण करवाया था, जिन्होंने 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक शासन किया था।
- महा स्तूप:
- एक महा स्तूप की खोज की गई थी जिसे शिलालेखों में अधोलोक महा चैत्य (नीदरलोक का महान स्तूप) के रूप में संदर्भित किया गया था और अधिक महत्त्वपूर्ण रूप से सम्राट अशोक का भित्तिचित्र उनकी रानियों और महिला परिचारकों से घिरा हुआ था।
- माना जाता है कि महा स्तूप को तीन निर्माण चरणों में विकसित किया गया था - मौर्य, प्रारंभिक सातवाहन और बाद में सातवाहन काल जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी ईस्वी तक फैला हुआ था।
- माना जाता है कि भूकंप में स्तूप नष्ट हो गया था।
- यह अपने समय के सबसे बड़े स्तूपों में से एक है, भित्तिचित्र को मौर्य सम्राट की एकमात्र जीवित छवि माना जाता है, जिस पर ब्राह्मी में 'राय अशोक' शिलालेख था।
- एक महा स्तूप की खोज की गई थी जिसे शिलालेखों में अधोलोक महा चैत्य (नीदरलोक का महान स्तूप) के रूप में संदर्भित किया गया था और अधिक महत्त्वपूर्ण रूप से सम्राट अशोक का भित्तिचित्र उनकी रानियों और महिला परिचारकों से घिरा हुआ था।
अन्य प्रमुख बिंदु:
- जातक कथाओं का मूर्तिकलात्मक प्रतिपादन।
- जातक बौद्ध कला और साहित्य का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं।
- वे बुद्ध (प्रबुद्ध व्यक्ति) के पिछले अस्तित्व या जन्म का वर्णन करते हैं, जब वे मानव और गैर-मानव दोनों रूपों में बोधिसत्व (ऐसे प्राणी जो अभी तक ज्ञान या मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाए हैं) के रूप में प्रकट हुए थे।
- सातवाहन राजशाही और अशोक द्वारा विभिन्न भागों में भेजे गए बौद्ध मिशनरियों के कुछ अद्वितीय चित्रण।
- विभिन्न धर्म चक्रों से सजाए गए 72 मृदंग पट्टी (Drum-Slabs)।
- यक्ष और सिंह की मूर्तियांँ।
- यक्ष (पुरुष प्रकृति की आत्माएंँ) प्राकृतिक दुनिया की पहचान हैं।
- समय के साथ उन्हें बौद्ध और हिंदू देवताओं दोनों में सामान्य देवताओं के रूप में पूजा की जाती थी, जो अक्सर पृथ्वी के धन के संरक्षक के रूप में कार्य करते थे और वे धन से जुड़े हुए थे।
- विभिन्न पुरालेखीय विशेषताओं वाले ब्राह्मी शिलालेख:
- ब्राह्मी लिपि सबसे पुरानी लेखन प्रणालियों में से एक है, जिसका उपयोग भारतीय उपमहाद्वीप और मध्य एशिया में अंतिम शताब्दी ईसा पूर्व एवं प्रारंभिक शताब्दी के दौरान किया गया था।
सातवाहन:
- मौर्यों के पतन के बाद दक्कन में सातवाहनों ने अपना स्वतंत्र शासन स्थापित किया। उनका शासन लगभग 450 वर्षों तक चला।
- उन्हें आंध्र के नाम से भी जाना जाता था।
- पुराण और नासिक एवं नानागढ़ शिलालेख सातवाहनों के इतिहास के लिये महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
- सातवाहन वंश का संस्थापक सिमुक था। सातवाहन वंश का सबसे महान शासक गौतमीपुत्र सातकर्णी था।
- सातवाहनों ने बौद्ध धर्म और ब्राह्मणवाद को संरक्षण दिया। सातवाहनों द्वारा अश्वमेध और राजसूय यज्ञों के प्रदर्शन के साथ ब्राह्मणवाद को पुनर्जीवित किया था।
- उन्होंने प्राकृत भाषा और साहित्य को भी संरक्षण दिया।
स्रोत : द हिंदू
भारतीय राजनीति
मेघालय जनजातीय परिषद का विलय के साधन (IoA) पर पुर्नविचार
प्रिलिम्स के लिये:छठी अनुसूची, जनजातीय परिषद, हिल काउंसिल, इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन। मेन्स के लिये:बदलते समय के साथ उत्तर-पूर्वी जनजातियों का सामाजिक-धार्मिक और प्रथागत मुद्दा, संघवाद, उत्तर-पूर्व से संबंधित मुद्दा। |
चर्चा में क्यों?
मेघालय में आदिवासी परिषद ने सात दशक से भी अधिक समय पहले खासी डोमेन को भारतीय संघ का हिस्सा बनाने वाले विलय के साधन (Instrument of Accession-IoA) पर फिर से विचार करने के लिये पारंपरिक प्रमुखों की बैठक बुलाई है।
मेघालय जनजातीय परिषद का IoA पर पुर्नविचार:
- खासी पहाड़ी स्वायत्त ज़िला परिषद (Khasi Hills Autonomous District Council-KHADC) के नेताओं ने IoA और संलग्न समझौते पर फिर से विचार करने की आवश्यकता पर बल दिया। उनके अनुसार समझौते के अनुच्छेदों को समझना ज़रूरी है, क्योंकि संविधान की छठी अनुसूची से कई प्रावधान गायब हैं।
- खासी राज्यों के संघ ने विशेष दर्जे की मांग की थी, जैसे नगालैंड ने अनुच्छेद 371 ए के तहत यह नगा प्रथागत कानूनों के अनुसार नागरिक और आपराधिक न्याय के प्रशासन के अधिकार के साथ नगाओं के सामाजिक-धार्मिक एवं प्रथागत अभ्यास की रक्षा करता है।
- अनुच्छेद 371A के तहत नगाओं को भूमि और संसाधनों का स्वामित्व एवं हस्तांतरण भी प्राप्त है।
- हाल ही में 'खासी उत्तराधिकार संपत्ति विधेयक, 2021' पेश किये जाने से खासी लोगों की सामाजिक और प्रथागत प्रथाओं में हस्तक्षेप के कारण KHADC के कुछ नेताओं को इसने नाराज़ कर दिया है। बिल खासी समुदाय में भाई-बहनों के बीच पैतृक संपत्ति के "समान वितरण" का आह्वान करता है।
- KHADC ने कहा कि प्रावधानों को छठी अनुसूची में जोड़ा जा सकता है, जिसे "संसद द्वारा संशोधित किया जा सकता है"।
प्रमुख बिंदु
- KHADC संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक निकाय है।
- इसमें कानून बनाने की शक्ति नहीं है।
- छठी अनुसूची का अनुच्छेद 12ए राज्य विधानमंडल को कानून पारित करने का अंतिम अधिकार देता है।
- संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्यों में जनजातीय आबादी के अधिकारों की रक्षा के लिये आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन का प्रावधान करती है।
- यह विशेष प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 244 (2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत प्रदान किया गया है।
- यह स्वायत्त ज़िला परिषदों (ADCs) के माध्यम से उन क्षेत्रों के प्रशासन में स्वायत्तता प्रदान करता है, जिन्हें अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत क्षेत्रों के संबंध में कानून बनाने का अधिकार है।
‘विलय के साधन (Instrument of Accession)’:
- परिचय:
- विलय का साधन एक कानूनी दस्तावेज़ था जिसे पहली बार भारत सरकार अधिनियम 1935 द्वारा पेश किया गया था और 1947 में ब्रिटिश सर्वोच्चता के तहत रियासतों के प्रत्येक शासक को ब्रिटिश भारत के विभाजन द्वारा बनाए गए भारत या पाकिस्तान के नए उपनिवेशों में से एक में शामिल होने के लिये इस्तेमाल किया गया था। .
- शासकों द्वारा निष्पादित विलय के उपकरण, तीन विषयों, अर्थात् रक्षा, विदेश मामलों और संचार पर भारत के डोमिनियन (या पाकिस्तान) में राज्यों के परिग्रहण के लिये प्रदान किये गए थे।
- IoA और मेघालय:
- 15 दिसंबर, 1947 से 19 मार्च, 1948 के बीच भारत डोमिनियन तथा खासी पहाड़ी राज्य के मध्य IoA पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- मेघालय को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, जिसमें कई मातृवंशीय समुदायों का वर्चस्व है - खासी, गारो और जयंतिया।
- खासी पहाड़ियाँ 25 हिमाओं या राज्यों में फैली हुई हैं जिन्होंने खासी राज्यों के संघ का गठन किया।
- इन राज्यों के साथ सशर्त संधि पर भारत के गवर्नर जनरल, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी द्वारा 17 अगस्त, 1948 को हस्ताक्षर किये गए थे।
- 15 दिसंबर, 1947 से 19 मार्च, 1948 के बीच भारत डोमिनियन तथा खासी पहाड़ी राज्य के मध्य IoA पर हस्ताक्षर किये गए थे।
छठी अनुसूची:
- अनुच्छेद 244 के तहत संविधान की छठी अनुसूची स्वायत्त प्रशासनिक प्रभागों के गठन की शक्ति प्रदान करती है, स्वायत्त ज़िला परिषद (ADC) जिनके पास एक राज्य के भीतर कुछ विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वायत्तता है।
- छठी अनुसूची में चार उत्तर-पूर्वी राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिये विशेष प्रावधान हैं।
- इन चार राज्यों में आदिवासी क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया गया है। राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों को व्यवस्थित और पुनर्गठित करने का अधिकार है।
- संसद या राज्य विधानमंडल के अधिनियम स्वायत्त ज़िलों और स्वायत्त क्षेत्रों पर लागू नहीं होते हैं अथवा निर्दिष्ट संशोधनों व अपवादों के साथ ही लागू होते हैं।
- इस संबंध में निर्देशन की शक्ति या तो राष्ट्रपति या राज्यपाल के पास होती है।
- प्रत्येक स्वायत्त ज़िले में एक ज़िला परिषद होती है जिसमें 30 सदस्य होते हैं, जिनमें से चार राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते हैं और शेष 26 वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं।
- निर्वाचित सदस्य पाँच वर्ष की अवधि के लिये पद धारण करते हैं (जब तक कि परिषद पहले भंग नहीं हो जाती) और मनोनीत सदस्य राज्यपाल के प्रसाद पर्यंत पद धारण करते हैं।
- प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र की एक अलग क्षेत्रीय परिषद भी होती है।
- ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें अपने अधिकार क्षेत्र के तहत क्षेत्रों का प्रशासन करती हैं।
- वे भूमि, जंगल, नहर का पानी, झूम खेती, ग्राम प्रशासन, संपत्ति की विरासत, विवाह और तलाक, सामाजिक रीति-रिवाजों आदि जैसे कुछ विशिष्ट मामलों पर कानून बना सकते हैं लेकिन ऐसे सभी कानूनों के लिये राज्यपाल की सहमति की आवश्यकता होती है।
- वे जनजातियों के बीच मुकदमों और मामलों की सुनवाई के लिये ग्राम परिषदों या अदालतों का गठन कर सकते हैं। वे उनकी अपील सुनते हैं। इन मुकदमों और मामलों पर उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है।
- ज़िला परिषद, ज़िले में प्राथमिक विद्यालयों, औषधालयों, बाज़ारों, घाटों, मत्स्य पालन, सड़कों आदि की स्थापना, निर्माण या प्रबंधन कर सकती है।
- उन्हें भू-राजस्व का आकलन और संग्रह करने तथा कुछ निर्दिष्ट कर लगाने का अधिकार है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:भारत के संविधान में पाँचवीं अनुसूची और छठी अनुसूची में प्रावधान किये गए हैं: (2015) (a) अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा करना उत्तर: (a)
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