भूगोल
उत्तराखंड में फ्लैश फ्लड
- 10 Feb 2021
- 8 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड के चमोली ज़िले के तपोवन-रैनी क्षेत्र में एक ग्लेशियर के टूटने से धौली गंगा और अलकनंदा नदियों में बड़े पैमाने पर फ्लैश फ्लड (Flash Flood) की घटना देखी गई, जिससे ऋषिगंगा बिजली परियोजना को काफी नुकसान पहुँचा है।
- उत्तराखंड में जून 2013 में आई बाढ़ के कारण अत्यधिक जान-माल की हानि हुई थी।
प्रमुख बिंदु
उत्तराखंड में बाढ़ आने का कारण:
- यह घटना ऋषि गंगा (Rishi Ganga) नदी में नंदा देवी ग्लेशियर के एक हिस्से के गिरने से हुई, जिससे पानी की मात्रा में अचानक वृद्धि हो गई।
- ऋषि गंगा रैनी के पास धौली गंगा से मिलती है। इसी कारण से धौली गंगा में भी बाढ़ आ गई।
प्रमुख विद्युत परियोजनाएँ प्रभावित:
- ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट:
- यह 130MW की एक निजी स्वामित्व वाली परियोजना है।
- धौलीगंगा पर तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना:
- यह धौलीगंगा नदी पर निर्मित 520 मेगावॉट की पनबिजली परियोजना थी।
- उत्तर-पश्चिमी उत्तराखंड में अलकनंदा और भागीरथी नदी घाटियों की कई अन्य परियोजनाएँ भी बाढ़ के कारण प्रभावित हुई हैं।
फ्लैश फ्लड:
- फ्लैश फ्लड के विषय में:
- यह घटना बारिश के दौरान या उसके बाद जल स्तर में हुई अचानक वृद्धि को संदर्भित करती है।
- यह बहुत ही उच्च स्थानों पर छोटी अवधि में घटित होने वाली घटना है, आमतौर पर वर्षा और फ्लैश फ्लड के बीच छह घंटे से कम का अंतर होता है।
- फ्लैश फ्लड, खराब जल निकासी लाइनों या पानी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करने वाले अतिक्रमण के कारण भयानक हो जाती है।
- कारण:
- यह घटना भारी बारिश की वजह से तेज़ आँधी, तूफान, उष्णकटिबंधीय तूफान, बर्फ का पिघलना आदि के कारण हो सकती है।
- फ्लैश फ्लड की घटना बाँध टूटने और/या मलबा प्रवाह के कारण भी हो सकती।
- फ्लैश फ्लड के लिये ज्वालामुखी उद्गार भी उत्तरदायी है, क्योंकि ज्वालामुखी उद्गार के बाद आस-पास के क्षेत्रों के तापमान में तेज़ी से वृद्धि होती है जिससे इन क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर पिघलने लगते हैं।
- फ्लैश फ्लड के स्वरूप को वर्षा की तीव्रता, वर्षा का वितरण, भूमि उपयोग का प्रकार तथा स्थलाकृति, वनस्पति प्रकार एवं विकास/घनत्व, मिट्टी का प्रकार आदि सभी बिंदु निर्धारित करते हैं।
ग्लेशियर
- ग्लेशियर के विषय में:
- ये विशाल आकार की गतिशील बर्फराशि होती है जो अपने भार के कारण पर्वतीय ढालों का अनुसरण करते हुए नीचे की ओर प्रवाहित होते हैं।
- ये आमतौर पर बर्फ के मैदानों के रूप में देखे जाते हैं।
- ये मीठे पानी के सबसे बड़े बेसिन हैं जो पृथ्वी की लगभग 10% भूसतह को कवर करते हैं।
- ग्लेशियर की स्थलाकृति और अवस्थिति के अनुसार इन्हें माउंटेन ग्लेशियर (अल्पाइन ग्लेशियर) या महाद्वीपीय ग्लेशियर (आइस शीट्स) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- महाद्वीपीय ग्लेशियर सभी दिशाओं में बाहर की ओर, जबकि माउंटेन ग्लेशियर उच्च ऊँचाई से कम ऊँचाई की ओर गति करते हैं।
- ग्लेशियर और बाढ़:
- ग्लेशियर झील:
- हिमालय में ग्लेशियरों के पीछे हटने से झील का निर्माण होता है, जिन्हें अग्रहिमनदीय झील (Proglacial Lake) कहा जाता है जो तलछट और बड़े पत्थरों से बँधी होती है।
- बाढ़:
- जब इन झीलों पर बने बाँध टूटते हैं तो इनका पानी प्रवाहित होकर अचानक बड़ी मात्रा में पास की नदियों में मिल जाता है, जिससे निचले क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है।
- ग्लेशियर झील:
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
- जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम पैटर्न में अनियमितता देखी जाती है, जिससे बर्फबारी, बारिश और बर्फ पिघलने की घटना में वृद्धि हुई है।
- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर-सरकारी पैनल की नवीनतम मूल्यांकन रिपोर्टों के अनुसार, ग्लेशियरों के पीछे हटने और पर्माफ्रॉस्ट के गलने से पहाड़ी ढलानों की स्थिरता प्रभावित होने एवं ग्लेशियर क्षेत्र में झीलों की संख्या व क्षेत्र में वृद्धि होने का अनुमान है।
धौलीगंगा
उत्पत्ति:
- इसकी उत्पत्ति उत्तराखंड की सबसे बड़ी हिमनद झील वसुधारा ताल (Vasudhara Tal) से होती है।
धौलीगंगा:
- धौलीगंगा (Dhauliganga), अलकनंदा की महत्त्वपूर्ण सहायक नदियों में से एक है, अलकनंदा की अन्य सहायक नदियाँ नंदाकिनी, पिंडर, मंदाकिनी और भागीरथी हैं।
- धौलीगंगा, रैनी नदी में ऋषिगंगा के पास मिलती है।
- यह अलकनंदा के साथ विष्णुप्रयाग में विलीन हो जाती है।
- यह यहाँ अपनी पहचान खो देती है और अलकनंदा चमोली, मैथन, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग से होकर दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती हुई मंदाकिनी नदी से मिलती है।
- यह श्रीनगर होती हुई देवनाग के पास गंगा में मिल जाती है।
- अलकनंदा, गंगा में मिलने के बाद गायब हो जाती है। गंगा यहाँ से दक्षिण और फिर पश्चिम की ओर बहती हुई ऋषिकेश, हरिद्वार होकर उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है।
नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान
अवस्थिति:
- यह राष्ट्रीय उद्यान भारत के दूसरे सबसे ऊंचे पर्वत नंदा देवी के 7,817 मीटर ऊँचाई क्षेत्र पर विस्तृत है।
नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान:
- उद्यान में नंदादेवी अभयारण्य, एक हिमनद बेसिन स्थित है जो कई चोटियों से घिरा हुआ है तथा यह क्षेत्र ऋषि गंगा नदी द्वारा सिंचित है।
स्थापना:
- इस उद्यान को वर्ष 1982 में एक अधिसूचना द्वारा संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के रूप में स्थापित किया गया था, लेकिन बाद में इसका नाम नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान कर दिया गया।
- इसे वर्ष 1988 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल के रूप में दर्ज किया गया।
इस पार्क की वनस्पतियाँ:
- यहाँ लगभग 312 फूलों की प्रजातियाँ (जिनमें 17 दुर्लभ प्रजातियाँ शामिल हैं) और देवदार, सनौबर, रोडोडेंड्रोन, जुनिपर आदि वृक्ष पाए जाते हैं।
जीव-जंतु:
- इस उद्यान में हिमालयन काला भालू, हिम तेंदुआ, हिमालयन मस्क हिरण आदि प्रमुख जीव-जंतु पाए जाते हैं।