विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
तमिलनाडु में नया रॉकेट लॉन्चपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:तमिलनाडु में नया रॉकेट लॉन्चपोर्ट, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) SHAR (श्रीहरिकोटा रेंज), लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान मेन्स के लिये:तमिलनाडु में नया रॉकेट लॉन्चपोर्ट, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ। |
स्रोत: इंडियन एक्स्प्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने तमिलनाडु के कुलसेकरापट्टिनम में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के दूसरे रॉकेट लॉन्चपोर्ट की आधारशिला रखी।
नए लॉन्चपोर्ट की क्या आवश्यकता है?
- क्षमता एवं अतिभार:
- अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिये खोलने से वाणिज्यिक प्रक्षेपण में उल्लेखनीय वृद्धि होने की आशा है।
- मांग में यह वृद्धि संभावित रूप से श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) SHAR (श्रीहरिकोटा रेंज) जैसी मौजूदा प्रक्षेपण सुविधाओं को प्रभावित कर सकती है।
- इसलिये, एक नया लॉन्चपोर्ट स्थापित करने से यह सुनिश्चित होता है कि मौजूदा सुविधाओं पर अधिक बोझ डाले बिना प्रक्षेपणों की बढ़ी हुई संख्या को समायोजित करने की पर्याप्त क्षमता है।
- प्रक्षेपण सेवाओं का विविधीकरण:
- SDSC SHAR को मुख्य रूप से वृहद एवं भारी-लिफ्ट-ऑफ मिशनों के लिये समर्पित करके एवं छोटे पेलोड हेतु कुलसेकरपट्टिनम लॉन्चपोर्ट का निर्माण करके, इसरो अपनी प्रक्षेपण सेवाओं में विविधता ला सकता है।
- यह विशेषज्ञता विशिष्ट मिशन आवश्यकताओं के अनुरूप संसाधनों और बुनियादी ढाँचे का अधिक कुशल उपयोग करने की अनुमति प्रदान करता है।
- निजी अभिकर्त्ताओं का समर्थन:
- एक नए लॉन्चपोर्ट की स्थापना निजी अभिकर्त्ताओं को अंतरिक्ष-योग्य उप-प्रणाली विकसित करने, उपग्रह निर्मित करने तथा वाहनों को प्रक्षेपित करने के लिये समर्पित बुनियादी ढाँचा प्रदान करती है।
- यह अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी निवेश एवं भागीदारी को प्रोत्साहित करता है, साथ ही यह नवाचार एवं प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा भी देता है।
कुलसेकरपट्टिनम लॉन्चपोर्ट का महत्त्व क्या है?
- भौगोलिक लाभ:
- भौगोलिक, वैज्ञानिक और रणनीतिक रूप से, कुलसेकरपट्टिनम लॉन्चपोर्ट ISRO के लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान से संबंधित आगामी लॉन्च के लिये एक अनुकूल भौगोलिक स्थिति प्रदान करता है।
- कम ईंधन वहन करने वाले हल्के SSLV के लिये सीधे दक्षिण की ओर और लघु प्रक्षेपण के प्रक्षेप पथ की उपलब्धता के साथ कुलसेकरपट्टिनम-सुविधा पेलोड क्षमताओं को बढ़ाने के ISRO के प्रयासों में सहायक साबित होगा।
- अनुकूलित प्रक्षेपवक्र:
- कुलसेकरपट्टिनम से प्रक्षेपण सीधे दक्षिण की ओर प्रक्षेप पथ का अनुसरण कर सकते हैं, जो कि सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) SHAR से प्रक्षेपण के बाद लंबे प्रक्षेपवक्र, जिसके लिये श्रीलंका के चारों ओर पूर्व की ओर उड़ान भरने (डॉगलेग मैन्युवरिंग) की आवश्यकता होती है, के विपरीत है।
- यह अनुकूलित प्रक्षेप पथ ईंधन की खपत को कम करता है जो विशेष रूप से सीमित ऑनबोर्ड ईंधन क्षमता वाले SSLV के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- भूमध्यरेखीय स्थान:
- SDSC SHAR की तरह, कुलसेकरपट्टिनम भी भूमध्य रेखा के निकट स्थित है।
- भूमध्य रेखा के निकट प्रक्षेपण स्थल को पृथ्वी के घूर्णन से बहुत सहायता मिलती है, जो प्रक्षेपण के दौरान रॉकेटों के महत्त्वपूर्ण वेग को गति देती है।
- वेग में वृद्धि से पेलोड क्षमता में वृद्धि होती है, विशेष रूप से भू-स्थैतिक कक्षा के लक्ष्य वाले मिशनों के लिये फायदेमंद है।
लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान क्या है?
- परिचय:
- लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) एक तीन चरणों वाला प्रक्षेपण यान है जिसे तीन ठोस प्रणोदन चरणों और एक टर्मिनल चरण के रूप में तरल प्रणोदन-आधारित वेग ट्रिमिंग मॉड्यूल (VTM) के साथ कॉन्फिगर किया गया है।
- SSLV सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से 500 किमी. की कक्षीय तल में 500 किलोग्राम के उपग्रहों को लॉन्च करने में सक्षम है।
- कक्षीय तल, जिसे निम्न भू-कक्षा (Low Earth orbit- LEO) के रूप में भी जाना जाता है, पृथ्वी के चारों ओर एक कक्षा है जो पृथ्वी के भूमध्यरेखीय तल के निकट स्थित है। इस प्रकार की कक्षा में उपग्रह का पथ पृथ्वी के चारों ओर एक अपेक्षाकृत समतल पृष्ठ बनाता है।
- SSLV सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से 500 किमी. की कक्षीय तल में 500 किलोग्राम के उपग्रहों को लॉन्च करने में सक्षम है।
- लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) एक तीन चरणों वाला प्रक्षेपण यान है जिसे तीन ठोस प्रणोदन चरणों और एक टर्मिनल चरण के रूप में तरल प्रणोदन-आधारित वेग ट्रिमिंग मॉड्यूल (VTM) के साथ कॉन्फिगर किया गया है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- कम लागत,
- कम टर्न-अराउंड समय,
- एकाधिक उपग्रहों को समायोजित करने की सुविधा,
- लॉन्च मांग व्यवहार्यता,
- न्यूनतम प्रक्षेपण अवसंरचना आवश्यकताएँ आदि।
- महत्त्व:
- लघु उपग्रहों का युग:
- पहले, बड़े उपग्रह पेलोड को काफी महत्त्व दिया जाता था, किंतु इस क्षेत्र के विकास व विस्तार के साथ, व्यवसाय, सरकारी एजेंसियाँ, विश्वविद्यालय तथा प्रयोगशालाएँ जैसे कई अभिकर्त्ताओं का उदय हुआ, जिन्होंने उपग्रह भेजना शुरू कर दिया।
- इनमें से अधिकांश सभी लघु उपग्रहों की श्रेणी में आते हैं।
- पहले, बड़े उपग्रह पेलोड को काफी महत्त्व दिया जाता था, किंतु इस क्षेत्र के विकास व विस्तार के साथ, व्यवसाय, सरकारी एजेंसियाँ, विश्वविद्यालय तथा प्रयोगशालाएँ जैसे कई अभिकर्त्ताओं का उदय हुआ, जिन्होंने उपग्रह भेजना शुरू कर दिया।
- मांग में वृद्धि:
- अंतरिक्ष-आधारित डेटा, संचार, निगरानी और वाणिज्य की लगातार बढ़ती आवश्यकता के कारण, विगत आठ से दस वर्षों में छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण की मांग तेज़ी से बढ़ी है।
- लागत में कमी:
- सैटेलाइट विनिर्माताओं और ऑपरेटरों के पास उच्च यात्रा शुल्क का भुगतान करने का विकल्प नहीं है।
- इसलिये, विभिन्न संगठन तेज़ी से अंतरिक्ष में उपग्रहों का एक समूह विकसित करने में लगे हुए हैं।
- स्पेसएक्स के स्टारलिंक और वन वेब जैसी परियोजनाएँ सैकड़ों उपग्रहों का एक समूह तैयार कर रही हैं।
- सैटेलाइट विनिर्माताओं और ऑपरेटरों के पास उच्च यात्रा शुल्क का भुगतान करने का विकल्प नहीं है।
- व्यवसाय के अवसर:
- मांग में वृद्धि के साथ, इस प्रकार के रॉकेट का निर्माण कार्य काफी प्रगति पर है जिन्हें कम लागत के साथ बार-बार लॉन्च किया जा सकता है, इससे इसरो जैसी अंतरिक्ष एजेंसियों को इस क्षेत्र की क्षमता का दोहन करने का व्यावसायिक अवसर प्राप्त होता है क्योंकि अधिकांश मांग उन कंपनियों से आती है जो वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये उपग्रह लॉन्च कर रहे हैं।
- लघु उपग्रहों का युग:
- SSLV:
- अगस्त 2022 में, पहले SSLV मिशन (SSLV-D1) को विफलता का सामना करना पड़ा था जब इसने दो उपग्रहों, EOS-02 और आज़ादीसैट को ले जाने का प्रयास किया था।
- हालाँकि छह महीने बाद, SSLV-D2 के प्रक्षेपण के साथ फरवरी 2023 में इसरो अपने दूसरे प्रयास में सफल हुआ।
- इस रॉकेट ने 15 मिनट की यात्रा के बाद प्रभावी ढंग से तीन उपग्रहों को 450 किमी. की वृत्ताकार कक्षा में स्थापित कर दिया। दोनों लॉन्च SHAR से किये गए।
SHAR से संबंधित प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- SHAR चेन्नई से 80 किमी. दूर, आंध्र प्रदेश के पूर्वी तट पर स्थित है।
- यह वर्तमान में ISRO के सभी मिशनों के प्रमोचन (Launch) हेतु अवसंरचना प्रदान करता है।
- इसमें एक ठोस प्रणोदक प्रसंस्करण सेटअप, स्थैतिक परीक्षण और प्रमोचन रॉकेट एकीकरण सुविधाओं, टेलीमेट्री सेवाओं, प्रमोचन के अनुवीक्षण के लिये ट्रैकिंग तथा कमांड नेटवर्क के साथ एक मिशन नियंत्रण केंद्र शामिल है।
- SHAR के दो प्रमोचन परिसर हैं जिनका उपयोग नियमित रूप से पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, जियोसिंक्रोनस स्पेस लॉन्च व्हीकल और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल Mk-III (परिवर्तित नाम- LVM3) के प्रमोचन के लिये किया जाता है।
- 1990 के दशक की शुरुआत में निर्मित फर्स्ट लॉन्च पैड का पहला लॉन्च सितंबर 1993 में हुआ था।
- वर्ष 2005 से परिचालनरत, दूसरे लॉन्च पैड का पहला लॉन्च मई 2005 में हुआ।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रमोचित करने वाले वाहनों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की क्या योजना है और इससे भविष्य में हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को क्या लाभ होगा? (2019) |
शासन व्यवस्था
शानन जलविद्युत परियोजना पर विवाद
प्रिलिम्स के लिये:शानन जलविद्युत परियोजना, सर्वोच्च न्यायालय, जलविद्युत परियोजना, पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 मेन्स के लिये:भारत के विकास की वृद्धि में जलविद्युत परियोजनाओं का महत्त्व |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
शानन जलविद्युत परियोजना पर पंजाब और हिमाचल प्रदेश दोनों ही राज्य अपना दावा करते हैं जिसके संबंध में हाल ही में केंद्र सरकार ने यथापूर्व स्थिति (Status Quo) बनाए रखने का आदेश दिया।
- पंजाब ने उक्त मुद्दे के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।
शानन परियोजना क्या है और इससे संबंधित विभिन्न राज्यों के दावे क्या हैं?
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- वर्ष 1925 में ब्रिटिश काल के दौरान पंजाब को ब्यास नदी की सहायक नदी उहल पर हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले के जोगिंदरनगर में स्थित 110 मेगावाट जलविद्युत परियोजना के लिये पट्टा दिया गया था।
- पट्टा करार:
- औपचारिक रूप से पट्टा करार मंडी के तत्कालीन शासक राजा जोगिंदर बहादुर और ब्रिटिश सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले तथा पंजाब के मुख्य अभियंता के रूप में कार्यरत कर्नल बी.सी. बैटी के बीच संपन्न हुआ।
- परियोजना की उपयोगिता:
- इस जलविद्युत परियोजना से भारत के स्वतंत्रता पूर्व अविभाजित पंजाब और दिल्ली की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हुई।
- विभाजन के उपरांत, लाहौर को इस परियोजना के माध्यम से होने वाली आपूर्ति रोक दी गई और ट्रांसमिशन लाइन को अमृतसर के वेरका गाँव में समाप्त कर दिया गया।
- इस जलविद्युत परियोजना से भारत के स्वतंत्रता पूर्व अविभाजित पंजाब और दिल्ली की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हुई।
- पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत कानूनी नियंत्रण:
- वर्ष 1966 में राज्यों के पुनर्गठन के दौरान, जलविद्युत परियोजना को पंजाब में स्थानांतरित कर दिया गया था क्योंकि तब हिमाचल प्रदेश को केंद्रशासित प्रदेश के रूप में नामित किया गया था।
- केंद्रीय सिंचाई और विद्युत मंत्रालय द्वारा 1 मई 1967 को जारी एक केंद्रीय अधिसूचना के माध्यम से पंजाब को आधिकारिक रूप पर परियोजना आवंटित की गई थी।
- अधिसूचना में निर्दिष्ट किया गया है कि परियोजना पर पंजाब का कानूनी नियंत्रण पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 में उल्लिखित प्रावधानों द्वारा शासित होगा।
- वर्ष 1966 में राज्यों के पुनर्गठन के दौरान, जलविद्युत परियोजना को पंजाब में स्थानांतरित कर दिया गया था क्योंकि तब हिमाचल प्रदेश को केंद्रशासित प्रदेश के रूप में नामित किया गया था।
- हिमाचल प्रदेश का दावा:
- वर्ष 1925 के पट्टे के माध्यम से पंजाब को केवल एक विशिष्ट अवधि के लिये परिचालन अधिकार प्रदान किया, न कि स्वामित्व अधिकार।
- वर्ष 1925 के पट्टे से पहले, जिसमें परियोजना पंजाब को प्रदान की गई थी और साथ ही हिमाचल प्रदेश के पास परियोजना पर स्वामित्व तथा परिचालन अधिकार दोनों थे।
- पिछले कुछ वर्षों में हिमाचल प्रदेश द्वारा तर्क प्रस्तुत किया है कि पट्टा समाप्त होने के बाद परियोजना उसके पास रहनी चाहिये।
- हिमाचल प्रदेश सरकार ने चिंता व्यक्त करते हुए आरोप लगाया है कि पंजाब द्वारा मरम्मत एवं रखरखाव की कमी के कारण परियोजना की स्थिति खराब हो गई है।
- हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा था कि वे पट्टे की अवधि के बाद पंजाब को परियोजना पर दावा करने की अनुमति नहीं देंगे और उन्होंने पिछले वर्ष पंजाब के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था तथा साथ ही केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के साथ भी इस मुद्दे को उठाया था।
- वर्ष 1925 के पट्टे के माध्यम से पंजाब को केवल एक विशिष्ट अवधि के लिये परिचालन अधिकार प्रदान किया, न कि स्वामित्व अधिकार।
- पंजाब का दावा:
- स्वामित्व और अधिग्रहण का दावा:
- पंजाब ने सर्वोच्च न्यायालय में अपना मामला पेश करते हुए दावा किया है कि वह वर्ष 1967 की केंद्रीय अधिसूचना के तहत शानन पावर हाउस प्रोजेक्ट का असली मालिक है और इसपर वैध अधिग्रहण है।
- राज्य सरकार, पंजाब स्टेट पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (PSPCL) के माध्यम से, वर्तमान में परियोजना से जुड़ी सभी परिसंपत्तियों पर नियंत्रण रखती है।
- कानूनी कार्रवाई का अनुरोध:
- अनुच्छेद 131 के तहत पंजाब सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से "स्थायी निषेधाज्ञा" का अनुरोध किया है।
- यह निषेधाज्ञा हिमाचल प्रदेश सरकार को परियोजना के "वैध शांतिपूर्ण अधिग्रहण और सुचारु कामकाज़" में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिये मांगी गई है।
- स्वामित्व और अधिग्रहण का दावा:
- केंद्र द्वारा आदेशित अंतरिम उपाय:
- 99 वर्ष पुराने लीज़ समझौते के समापन से एक दिन पूर्व, केंद्र सरकार ने परियोजना पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी करके हस्तक्षेप किया। यह उपाय परियोजना के निरंतर संचालन को सुनिश्चित करने के लिये लागू किया गया था।
- यह निर्देश ऊर्जा मंत्रालय द्वारा जारी किया गया था। इसने सामान्य खंड अधिनियम, 1887 की धारा 21 के संयोजन में, पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 की धारा 67 और 96 के तहत निहित शक्तियों को लागू किया।
अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद:
- अंतर्राज्यीय जल विवाद (ISWD) अधिनियम, 1956: यदि कोई विशेष राज्य अथवा राज्यों का समूह अधिकरण के गठन के लिये केंद्र से संपर्क करते हैं तो केंद्र सरकार को संबद्ध राज्यों के बीच परामर्श करके मामले को हल करने का प्रयास करना चाहिये। यदि यह काम नहीं करता है तो केंद्र सरकार इस न्यायाधिकरण का गठन कर सकती है।
- सरकारिया आयोग की प्रमुख सिफारिशों को शामिल करने के लिये अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 को वर्ष 2002 में संशोधित किया गया था।
- इन संशोधनों के बाद से जल विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना के लिये एक वर्ष की समय-सीमा और निर्णय देने के लिये 3 वर्ष की समय-सीमा को अनिवार्य हो गया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित नदियों पर विचार कीजिये: (2014)
उपरोक्त में से कौन-सी धारा अरुणाचल प्रदेश से होकर बहती है? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न.अंतर-राज्य जल विवादों का समाधान करने में सांविधानिक प्रक्रियाएँ समस्याओं को संबोधित करने व हल करने में असफल रही हैं। क्या यह असफलता संरचनात्मक अथवा प्रक्रियात्मक अपर्याप्तता अथवा दोनों के कारण हुई है? विवेचना कीजिये। (2013) |
शासन व्यवस्था
भारत की विचाराधीन ज़मानत प्रणाली में सुधार
प्रिलिम्स के लिये:भारत का सर्वोच्च न्यायालय, ज़मानत, ज़मानत के प्रकार मेन्स के लिये:आपराधिक न्याय प्रक्रिया, न्यायपालिका, संवैधानिक संरक्षण, ज़मानत के प्रकार, विचाराधीन कैदी की कैद में मौलिक अधिकारों की सुरक्षा |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जाँच ब्यूरो, 2022 के मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्वीकृति, भारत की ज़मानत प्रणाली की अक्षमता और विचाराधीन कैदियों के संकट को बढ़ाने में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालती है।
- यह मान्यता आपराधिक न्याय प्रणाली के भीतर प्रणालीगत चुनौतियों का समाधान करने के लिये ज़मानत कानूनों में सुधार की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।
भारत की ज़मानत प्रणाली के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?
- उच्च विचाराधीन कैदी जनसंख्या:
- भारत की जेलों में बंद 75% से अधिक आबादी विचाराधीन कैदियों की है, जो ज़मानत प्रणाली के साथ एक महत्त्वपूर्ण समस्या का संकेत देती है।
- विचाराधीन कैदी वह होता है जिस पर किसी अपराध का आरोप है लेकिन उसे दोषी नहीं ठहराया गया है। उन्हें न्यायिक हिरासत में रखा गया है, जबकि उनके मामले की सुनवाई अदालत में चल रही है।
- भारतीय जेलों में भीड़भाड़ की दर 118% है, जो आपराधिक न्याय प्रणाली के भीतर प्रणालीगत मुद्दों को दर्शाती है।
- भारत की जेलों में बंद 75% से अधिक आबादी विचाराधीन कैदियों की है, जो ज़मानत प्रणाली के साथ एक महत्त्वपूर्ण समस्या का संकेत देती है।
- ज़मानत पर निर्णय:
- प्रत्येक मामले की विशिष्टताओं पर विचार करते हुए, ज़मानत का निर्णय काफी हद तक अदालत के विवेक पर निर्भर करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय इस विवेकाधिकार के लिये दिशा-निर्देश प्रदान करता है, जिसमें ज़मानत देने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है, लेकिन अपराध की गंभीरता और फरार होने की संभावना जैसे कारकों के आधार पर इनकार की भी अनुमति दी गई है।
- ज़मानत रिहाई का समर्थन करने वाले दिशा-निर्देशों के बावजूद, अदालतें अक्सर ज़मानत देने से इनकार करने या कड़ी शर्तें लगाने की ओर झुकती हैं।
- अदालतें अक्सर ज़मानत से इनकार करने का कारण नहीं बताती हैं, जिससे निर्णयों के पीछे का तर्क अस्पष्ट हो जाता है।
- हाशिए पर रहने वाले व्यक्ति इन व्यापक अपवादों से असमान रूप से प्रभावित होते हैं, उन्हें या तो ज़मानत से इनकार या कड़ी शर्तों का सामना करना पड़ता है।
- ज़मानत अनुपालन में चुनौतियाँ:
- ज़मानत शर्तों को पूरा करने में कठिनाइयों के कारण कई विचाराधीन कैदी ज़मानत मिलने के बाद भी जेल में रहते हैं।
- धन या संपत्ति की व्यवस्था करने और स्थानीय ज़मानतदारों को खोजने के लिये संसाधनों की कमी अनुपालन में बड़ी बाधाएँ हैं।
- अन्य कारक जैसे निवास और पहचान प्रमाण की कमी, परिवार द्वारा त्याग दिया जाना, तथा न्यायालय प्रणाली को नेविगेट करने में संघर्ष करना भी अनुपालन में बाधा डालता है।
- ज़मानत शर्तों को पूरा करने और न्यायालय में उपस्थिति सुनिश्चित करने में विचाराधीन कैदियों का समर्थन करना महत्त्वपूर्ण है, विशेषकर उन लोगों के लिये जो संरचनात्मक नुकसान का सामना कर रहे हैं।
- मौजूदा ज़मानत कानून इन चुनौतियों का पर्याप्त रूप से समाधान करने में विफल हैं।
- यरवदा और नागपुर में फेयर ट्रायल प्रोग्राम (FTP) के डेटा से पता चलता है कि मौजूदा ज़मानत कानून इन चुनौतियों का पर्याप्त रूप से समाधान करने में विफल हैं।
- 14% मामलों में, विचाराधीन कैदी ज़मानत की शर्तों का पालन नहीं कर सके, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें लगातार कारावास में रहना पड़ा।
- लगभग 35% मामलों में, विचाराधीन कैदियों को ज़मानत की शर्तों को पूरा करने और सुरक्षित रिहाई के लिये ज़मानत दिये जाने के बाद एक महीने से अधिक समय लग गया।
- ज़मानत शर्तों को पूरा करने में कठिनाइयों के कारण कई विचाराधीन कैदी ज़मानत मिलने के बाद भी जेल में रहते हैं।
- सुरक्षा उपायों का अभाव:
- सर्वोच्च न्यायालय ज़मानत मांगने की आवश्यकता को कम करने के लिये मनमानी गिरफ्तारी के खिलाफ सुरक्षा उपायों के महत्त्व पर ज़ोर देता है।
- मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और हिरासत किसी अपराध के सबूत या उचित उचित प्रक्रिया के बिना किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी या हिरासत है।
- हालाँकि ये सुरक्षा उपाय प्रायः वंचित पृष्ठभूमि के कई व्यक्तियों को बाहर कर देते हैं, जो अधिकांश विचाराधीन कैदी हैं।
- FTP का डेटा इस मुद्दे पर प्रकाश डालता है: FTP द्वारा प्रतिनिधित्व किये गए विचाराधीन कैदियों (2,313) में से 18.50% प्रवासी थे, 93.48% के पास कोई संपत्ति नहीं थी, 62-22% का परिवार के साथ कोई संपर्क नहीं था और 10% का पिछले कारावास का इतिहास था।
- यह डेटा इंगित करता है कि एक महत्त्वपूर्ण हिस्से को अनुचित रूप से गिरफ्तारी सुरक्षा से बाहर रखा गया है, जो जेलों में विचाराधीन कैदियों की उच्च संख्या में योगदान का कारण है।
- सर्वोच्च न्यायालय ज़मानत मांगने की आवश्यकता को कम करने के लिये मनमानी गिरफ्तारी के खिलाफ सुरक्षा उपायों के महत्त्व पर ज़ोर देता है।
- त्रुटिपूर्ण धारणाएँ:
- ज़मानत की वर्तमान प्रणाली का तात्पर्य यह है कि गिरफ्तार किये गए प्रत्येक व्यक्ति के पास इसका भुगतान करने का साधन है या उसके मज़बूत सामाजिक संबंध हैं।
- इसका मानना है कि अभियुक्त की न्यायालय में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये वित्तीय जोखिम आवश्यक है।
- यह "जेल नहीं ज़मानत" के सिद्धांत का खंडन करता है, जिसका उद्देश्य मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे व्यक्तियों को रिहा करना है।
- इस प्रकार ज़मानत प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है, हालाँकि सुधार अनुभवजन्य साक्ष्य के माध्यम से समस्या को समझने पर आधारित होना चाहिये।
- ज़मानत की वर्तमान प्रणाली का तात्पर्य यह है कि गिरफ्तार किये गए प्रत्येक व्यक्ति के पास इसका भुगतान करने का साधन है या उसके मज़बूत सामाजिक संबंध हैं।
नोट:
- फेयर ट्रायल प्रोग्राम (FTP) दिल्ली में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय पर आधारित एक आपराधिक न्याय पहल है। FTP का लक्ष्य विचाराधीन कैदियों के लिये निष्पक्ष परीक्षण सुनिश्चित करना है।
- FTP राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के साथ सहयोग करने हेतु वकीलों एवं सामाजिक कार्यकर्त्ताओं जैसे युवा पेशेवरों को प्रशिक्षिण एवं सलाह देता है।
पुलिस हिरासत एवं न्यायिक हिरासत
- पुलिस हिरासत का अर्थ है कि संज्ञेय अपराध के लिये FIR दर्ज होने के बाद साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ अथवा गवाहों को प्रभावित करने से रोकने के लिये पुलिस द्वारा आरोपी को लॉक-अप में रखा जाता है।
- न्यायिक हिरासत का अर्थ है कि एक आरोपी संबंधित मजिस्ट्रेट की हिरासत में है। यह गंभीर अपराधों के लिये है, जहाँ न्यायालय पुलिस हिरासत अवधि समाप्त होने के बाद साक्ष्यों अथवा गवाहों के साथ छेड़छाड़ को रोकने के लिये आरोपी को हिरासत में ले सकती है।
स्थितियाँ |
पुलिस हिरासत |
न्यायिक हिरासत |
हिरासत का स्थान |
किसी पुलिस थाने के लॉक-अप में अथवा जाँच एजेंसी के पास |
मजिस्ट्रेट की अभिरक्षा में जेल |
न्यायालय के समक्ष उपस्थिति |
24 घंटे के भीतर संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष |
जब तक न्यायालय से ज़मानत का आदेश नहीं प्राप्त हो जाता |
प्रारंभ या शुरुआत |
शिकायत प्राप्त होने अथवा FIR दर्ज करने के बाद किसी पुलिस अधिकारी द्वारा गिरफ्तारी के समय |
सरकारी वकील द्वारा न्यायालय को संतुष्ट करने के बाद कि जाँच के लिये आरोपी की हिरासत आवश्यक है |
अधिकतम अवधि |
24 घंटे (उपयुक्त मजिस्ट्रेट द्वारा 15 दिनों तक विस्तारित किया जा सकता है) |
आजीवन कारावास, मृत्यु दंड अथवा न्यूनतम दस वर्ष की कैद से दंडनीय अपराधों के लिये 90 दिन; अन्य अपराधों के लिये 60 दिन |
आगे की राह
- ज़मानत के संबंध में सामाजिक-आर्थिक स्थिति की परवाह किये बिना सभी व्यक्तियों के लिये निष्पक्ष और न्यायसंगत विधि सुनिश्चित करना। विचाराधीन कैदियों की आबादी में प्रमुख योगदान देने वाले प्रणालीगत मुद्दों के समाधान के लिये संशोधनों पर विचार करना।
- सर्वोच्च न्यायालय यूनाइटेड किंगडम के ज़मानत अधिनियम के समान विशेष ज़मानत कानून बनाने की सिफारिश करता है।
- यह कानून ज़मानत का सामान्य अधिकार स्थापित करेगा और ज़मानत निर्णयों के लिये स्पष्ट मानदंड परिभाषित करेगा। इसका उद्देश्य मौद्रिक बंधपत्र और ज़मानत पर निर्भरता कम करना है।
- विचाराधीन कैदियों को ज़मानत अनुपालन और न्यायालय में पेशी के लिये विधिक सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
- मनमाना रूप से हुई गिरफ्तारी के विरुद्ध कार्यान्वित सुरक्षा उपाय सभी व्यक्तियों, विशेषकर वंचित पृष्ठभूमि के लोगों के लिये समावेशी और सुलभ होने चाहिये।
- कानूनी सहायता, वित्तीय सहायता और सामाजिक सहायता सेवाओं तक पहुँच सहित ज़मानत शर्तों को पूरा करने में विचाराधीन कैदियों की सहायता के लिये सहायता कार्यक्रम का प्रावधान करना।
- ज़मानत संबंधी सुधार के लिये समग्र दृष्टिकोण विकसित करने के लिये सरकारी अभिकरणों, कानूनी संस्थाओं, नागरिक समाज संगठनों और सामुदायिक समूहों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
- ज़मानत सुधार पहलों की प्रभावशीलता का आकलन करने और सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने के लिये अनुवीक्षण तथा मूल्यांकन हेतु तंत्र स्थापित करना।
कानूनी अंतर्दृष्टि: सतेंद्र कुमार अंतिल मामला
भारतीय अर्थव्यवस्था
पेनिसिलिन G और PLI योजना
प्रिलिम्स के लिये:प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव योजना, एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट, आत्मनिर्भरता, कोविड-19, मेन्स के लिये:पेनिसिलिन G और PLI योजना, PLI योजना– महत्त्व तथा मुद्दे |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत का आखिरी संयंत्र बंद होने के तीन दशक बाद, भारत द्वारा वर्ष 2024 में सामान्य एंटीबायोटिक पेनिसिलिन G का निर्माण प्रारंभ किया जाएगा। यह घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये कोविड-19 के दौरान शुरू की गई सरकार की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव योजना की सफलताओं में से एक है।
- पेनिसिलिन G एक एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट है जिसका प्रयोग कई सामान्य एंटीबायोटिक दवाओं के निर्माण में किया जाता है।
- API जिसे बल्क ड्रग्स भी कहा जाता है, दवाओं के निर्माण में महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। चीन का हुबेई प्रांत API विनिर्माण उद्योग का केंद्र है।
भारत में पेनिसिलिन का निर्माण क्यों बंद हो गया?
- विनिर्माण का बंद होना:
- पेनिसिलिन G, भारत में निर्मित कई अन्य सक्रिय फार्मास्युटिकल अवयवों (API) के साथ, बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धी मूल्य वाले चीनी विकल्पों की बहुतायत के कारण बंद होने का सामना करना पड़ा।
- 1990 के दशक के दौरान, कम-से-कम पाँच कंपनियाँ देश के भीतर पेनिसिलिन G के उत्पादन में लगी हुई थीं। हालाँकि चीनी समकक्षों की काफी कम कीमतों ने भारतीय निर्माताओं को आर्थिक रूप से अव्यवहार्य बना दिया, जिससे उनका परिचालन बंद हो गया।
- इसके अतिरिक्त, औषधि मूल्य नियंत्रण आदेश, जिसने आवश्यक दवाओं पर मूल्य सीमा लागू की, ने सस्ते आयातित उत्पादों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया।
- उदाहरण के लिये, भारत ने शुरू में पेरासिटामोल लगभग 800 रुपए प्रति किलोग्राम पर बेचा, लेकिन चीनी प्रतिस्पर्धियों के प्रवेश से कीमतें लगभग 400 रुपए प्रति किलोग्राम तक कम हो गईं, जिससे घरेलू उत्पादन आर्थिक रूप से अलाभकारी हो गया।
- पुनरुद्धार में विलंब:
- पहले, घरेलू स्तर पर पेनिसिलिन विनिर्माण को पुनर्जीवित करने की बहुत कम आवश्यकता थी, क्योंकि वैश्विक बाज़ार में सस्ते विकल्प आसानी से उपलब्ध थे।
- महामारी के दौरान आपूर्ति शृंखला में व्यवधान ने एक चेतावनी के रूप में कार्य किया, जो आत्मनिर्भरता की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
- परिणामस्वरूप, सरकार ने घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये PLI योजना शुरू की।
- पर्याप्त प्रारंभिक लागत एक महत्त्वपूर्ण बाधा उत्पन्न करती है, विशेष रूप से पेनिसिलिन जी जैसे किण्वित, जिसके लिये अत्यधिक पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है, साथ ही इससे लाभ प्राप्त करने में प्राय: वर्षों लग जाते हैं।
- इसके अतिरिक्त, चीन पहले से ही एक प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता के रूप में उभरा है, जिसने पिछले तीन दशकों में अपनी विनिर्माण क्षमताओं में उल्लेखनीय विस्तार किया है।
- उनकी कीमतों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने हेतु सुविधाओं में बड़े निवेश की आवश्यकता होगी।
- PLI योजनाओं का प्रभाव:
- योजना के कार्यान्वयन के बाद API आयात में उल्लेखनीय कमी आई है।
- उदाहरण के लिये, पेरासिटामोल का आयात महामारी से पहले के स्तर की तुलना में आधा हो गया है।
- हालाँकि, इस गिरावट के बावजूद API का एक बड़ा हिस्सा, विशेष रूप से एंटीबायोटिक दवाओं के लिये अभी भी आयात किया जाता है, जो घरेलू API विनिर्माण में अधिक विकास की आवश्यकता को उजागर करता है।
- PLI योजना प्रोत्साहन प्रदान करती है, जिसमें किण्वन-आधारित थोक दवाओं जैसे एंटीबायोटिक्स, एंज़ाइम एवं हार्मोन जैसे इंसुलिन के लिये पहले चार वर्षों में 20%, पाँचवें वर्ष हेतु 15% तथा छठे वर्ष हेतु 5% सहायता शामिल है।
- इन दवाओं का उत्पादन करना अधिक कठिन माना जाता है क्योंकि किण्वन विनिर्माण प्रक्रिया का एक हिस्सा है।
- इसके अतिरिक्त रासायनिक रूप से संश्लेषित दवाएँ पात्र बिक्री पर छह वर्षों में 10% प्रोत्साहन के लिये पात्र हैं।
- योजना के कार्यान्वयन के बाद API आयात में उल्लेखनीय कमी आई है।
उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना (PLI) क्या है?
- परिचय:
- PLI योजना की परिकल्पना घरेलू विनिर्माण क्षमता बढ़ाकर आयात प्रतिस्थापन में वृद्धि करते हुए रोज़गार सृजन के लिये की गई थी।
- मार्च 2020 में शुरू की गई इस योजना में शुरुआत में निम्नलिखित तीन उद्योगों को लक्षित किया गया:
- मोबाइल और संबद्ध घटक विनिर्माण
- विद्युत घटक विनिर्माण और
- चिकित्सा उपकरण।
- बाद के चरण में इसे 14 अतिरिक्त क्षेत्रों में इसका विस्तार किया गया।
- PLI योजना के तहत घरेलू और विदेशी कंपनियों को भारत में विनिर्माण के लिये पाँच वर्षों तक उनके राजस्व के प्रतिशत के आधार पर वित्तीय लाभ प्रदान किया जाता है।
- लक्षित क्षेत्र:
- इसमें शामिल 14 क्षेत्र मोबाइल विनिर्माण, चिकित्सा उपकरणों का विनिर्माण, ऑटोमोबाइल और ऑटो घटक, फार्मास्यूटिकल्स, दवाएँ, विशेष इस्पात, दूरसंचार एवं नेटवर्किंग उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, घरेलू उपकरण (ACs व LEDs), खाद्य उत्पाद, कपड़ा उत्पाद, सौर पीवी मॉड्यूल, उन्नत रसायन सेल (ACC) बैटरी तथा ड्रोन एवं इसके घटक हैं।
- योजना के तहत प्रोत्साहन:
- दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि की गणना वृद्धिशील बिक्री के आधार पर की जाती है।
- उन्नत रसायन विज्ञान सेल बैटरी, कपड़ा उत्पाद और ड्रोन उद्योग जैसे कुछ क्षेत्रों में दिये जाने वाले प्रोत्साहन की गणना पाँच वर्षों की अवधि में की गई बिक्री, प्रदर्शन एवं स्थानीय मूल्यवर्द्धन के आधार पर की जाती है।
- अनुसंधान एवं विकास निवेश (R&D investment) पर ज़ोर देने से उद्योग को वैश्विक रुझानों के साथ बने रहने और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धी बने रहने में भी मदद मिलेगी।
- दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि की गणना वृद्धिशील बिक्री के आधार पर की जाती है।
- स्मार्टफोन विनिर्माण में प्रगति:
- वित्त वर्ष 2017-18 में मोबाइल फोन का आयात 3.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि निर्यात मात्र 334 मिलियन अमेरिकी डॉलर था, जिसके परिणामस्वरूप 3.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा हुआ।
- वित्त वर्ष 2022-23 तक आयात घटकर 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का, जबकि निर्यात बढ़कर लगभग 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जिससे 9.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का सकारात्मक निवल निर्यात हो पाया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023) कथन-I वस्तुओं के वैश्विक निर्यात में भारत का निर्यात 3.2% है। कथन-II भारत में कार्यरत अनेक स्थानीय कंपनियों एवं भारत में कार्यरत कुछ विदेशी कंपनियों ने भारत की ‘उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव)’ योजना का लाभ उठाया है। उपर्युक्त कथनों के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है? (a) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या है। उत्तर: (d) व्याख्या:
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एथिक्स
राजनीति हेतु न्यायाधीश के इस्तीफा देने के नैतिक निहितार्थ
प्रिलिम्स के लिये:मौजूदा न्यायाधीश, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के त्याग-पत्र के नैतिक निहितार्थ, संविधान का अनुच्छेद 217, कॉलेजियम प्रणाली। मेन्स के लिये:मौजूदा न्यायाधीश के त्याग-पत्र के नैतिक निहितार्थ, कॉलेजियम प्रणाली का विकास और इसकी आलोचना। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने त्याग-पत्र दे दिया है और एक राजनीतिक दल में शामिल हो गए हैं, जिससे एक न्यायाधीश के इस तरह के कदम के औचित्य पर चर्चा शुरू हो गई है।
- राजनीति में शामिल होने के लिये न्यायपालिका से न्यायाधीश के त्याग-पत्र से उत्पन्न चिंताओं के महत्त्वपूर्ण नैतिक निहितार्थ हैं जो न्यायिक औचित्य, निष्पक्षता और न्यायपालिका की अखंडता की धारणा को प्रभावित करते हैं।
नोट: वर्ष 1967 में, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) कोका सुब्बा राव ने विपक्षी उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिये सेवानिवृत्त होने से तीन महीने पहले त्याग-पत्र दे दिया था।
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बहारुल इस्लाम ने लोकसभा चुनाव लड़ने के लिये वर्ष 1983 में सेवानिवृत्ति से छह सप्ताह पहले त्याग-पत्र दे दिया।
राजनीति हेतु एक न्यायाधीश के इस्तीफे से संबंधित नैतिक चिंताएँ क्या हैं?
- न्यायिक निष्पक्षता:
- न्यायाधीशों से अपेक्षा की जाती है कि वे तटस्थ रहें और व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों या बाहरी दबावों से प्रभावित हुए बिना केवल तथ्यों तथा कानून के आधार पर निर्णय लें।
- विवादों में शामिल होने के बाद राजनीतिक दल में शामिल होने के मौजूदा न्यायाधीश के फैसले से राजनीतिक मामलों से जुड़े मामलों की सुनवाई करते समय उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठता है।
- इससे न्यायपालिका की निष्पक्षता से न्याय देने की क्षमता में जनता का विश्वास कम होता है।
- न्यायिक स्वतंत्रता:
- कानून का शासन और लोकतंत्र बनाए रखने के लिये न्यायिक स्वतंत्रता महत्त्वपूर्ण है।
- न्यायाधीशों को राजनीतिक संस्थाओं सहित किसी भी बाहरी पक्ष के हस्तक्षेप या प्रभाव से मुक्त होना चाहिये।
- अपने इस्तीफे/सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद एक न्यायाधीश द्वारा किसी राजनीतिक दल में शामिल होना उसके विगत न्यायिक निर्णयों की स्वतंत्रता पर सवाल उठाता है और न्यायपालिका के कार्य पद्धति पर राजनीतिक विचारों के प्रभाव के संबंध में चिंता उत्पन्न करता है।
- हित का टकराव:
- न्यायाधीशों से अपेक्षा की जाती है कि वे हितों के टकराव से बचें और न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखें।
- राजनीतिक गतिविधियों में उनकी भागीदारी, विशेष रूप से न्यायालय में कार्यरत रहते हुए विवादास्पद बयान और निर्णय, हितों के टकराव के संबंध में चिंताएँ उत्पन्न करती हैं।
- जन विश्वास और भरोसा:
- न्यायपालिका समाज में अपनी भूमिका को पूरा करने के लिये जनता के विश्वास और भरोसे पर निर्भर करती है। न्यायाधीश द्वारा उक्त कार्यों में शामिल होना न्यायिक अखंडता और निष्पक्षता की धारणा को कमज़ोर करता है जिससे संपूर्ण न्यायिक प्रणाली के संबंध में जनता का विश्वास अत्यंत प्रभावित होता है।
- न्यायपालिका से राजनीति में सक्रिय भागीदारी के लिये न्यायमूर्ति के इस्तीफे से न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अखंडता के बारे में जनता के बीच संदेह की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- सेवानिवृत्ति पश्चात नियुक्तियों का मुद्दा:
- विगत कुछ वर्षों में कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी पद स्वीकार कर लिये हैं। यह प्रथा न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच स्पष्ट सीमांकन को धूमिल कर देती है।
रीस्टेटमेंट ऑफ वैल्यूज़ ऑफ ज्यूडिशिअल लाइफ क्या है?
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1997 में न्यायाधीशों के लिये नैतिक मानकों और सिद्धांतों को रेखांकित करते हुए रीस्टेटमेंट ऑफ वैल्यूज़ ऑफ ज्यूडिशिअल लाइफ का अंगीकरण किया। पुनर्कथन से संबंधित प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:
- निष्पक्षता: न केवल न्याय किया जाना चाहिये अपितु यह यह प्रदर्शित भी होना चाहिये। न्यायाधीशों के व्यवहार से न्यायपालिका की निष्पक्षता में लोगों के विश्वास की पुष्टि होनी चाहिये।
- टकराव से बचना: न्यायाधीशों को बार के व्यक्तिगत सदस्यों के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करने से से बचना चाहिये, परिवार के सदस्य यदि वकील हैं, उनसे संबंधित मामलों की सुनवाई करने से बचना चाहिये और साथ ही राजनीतिक मामलों पर सार्वजनिक बहस में भाग नहीं लेना चाहिये।
- वित्तीय लाभ: न्यायाधीशों को वित्तीय लाभ के माध्यम नहीं खोजने चाहिये और उन्हें शेयरों में सट्टा नहीं लगाना चाहिये अथवा व्यापार अथवा व्यवसाय में संलग्न नहीं होना चाहिये।
- जनता की निगाहें:.न्यायाधीशों को हमेशा इस बात के प्रति सचेत रहना चाहिये कि वे सार्वजनिक जाँच के अधीन हैं, साथ ही उनके कार्यों से जिस उच्च पद पर वे हैं, उसे भी लाभ होना चाहिये।
न्यायाधीशों के लिये सेवानिवृत्ति उपरांत कार्य:
- हालाँकि भारतीय संविधान स्पष्ट रूप से न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद के कार्यभार लेने से प्रतिबंधित नहीं करता है, लेकिन हितों के संभावित टकराव को कम करने के लिये कूलिंग-ऑफ अवधि लागू करने के सुझाव दिये गए हैं।
- पूर्व सी.जे.आई, आर.एम.लोढ़ा ने कम-से-कम 2 वर्ष की कूलिंग-ऑफ अवधि की सिफारिश की।
- संवेदनशील पदों से सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारियों को कुछ समय के लिये सामान्यतः दो वर्ष के लिये कोई अन्य नियुक्ति स्वीकार करने से रोक दिया जाता है।
- पदों में ये कूलिंग-ऑफ अवधि पर्याप्त समय के अंतराल के माध्यम से पिछली नियुक्ति एवं नई नियुक्ति के बीच संबंध को समाप्त करने पर आधारित होती है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रथाएँ: तुलनात्मक रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश सेवानिवृत्त नहीं होते हैं बल्कि हितों के टकराव को रोकने के लिये जीवन भर अपने पद पर बने रहते हैं।
- यूनाइटेड किंगडम में, हालाँकि न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद की नौकरियाँ लेने से रोकने वाला कोई कानून नहीं है, लेकिन किसी भी न्यायाधीश ने ऐसा नहीं किया है, जो सेवानिवृत्ति के बाद की भूमिकाओं के मुद्दे पर एक अलग दृष्टिकोण को दर्शाता है।
सेवानिवृत्ति के बाद नौकरियाँ करने वाले न्यायाधीशों की समस्या से निपटने के लिये क्या किया जा सकता है?
- कूलिंग-ऑफ अवधि लागू करना:
- पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर.एम.लोढ़ा के सुझाव के अनुशंसाओं के आधार पर न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति एवं सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी कार्यभार हेतु उनकी पात्रता के बीच एक अनिवार्य कूलिंग-ऑफ अवधि होनी चाहिये।
- यह अवधि हितों के संभावित टकराव को कम करने के साथ निष्पक्षता सुनिश्चित करने में सहायता प्रदान करेगी।
- विधि आयोग की सिफारिशें:
- 14वें विधि आयोग की रिपोर्ट, 1958 की सिफारिशों ने इस चिंता पर प्रकाश डाला और साथ ही एक ऐसी प्रणाली की वकालत की जो स्वतंत्रता से समझौता किये बिना न्यायाधीशों को वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
- न्यायिक नैतिकता एवं मानकों को बढ़ाना:
- न्यायाधीशों के लिये उनके कार्यकाल के दौरान तथा सेवानिवृत्ति के बाद नैतिक दिशा-निर्देशों एवं मानकों को मज़बूत करने से न्यायपालिका की अखंडता और निष्पक्षता बनाए रखने में सहायता प्राप्त हो सकती है। न्यायाधीशों को व्यक्तिगत हितों पर न्यायपालिका में जनता के विश्वास को प्राथमिकता देने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- पारदर्शिता में वृद्धि:
- सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद के पदों पर नियुक्त करने की प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता होनी चाहिये।
- इसमें चयन के मानदंडों का खुलासा करना, इन भूमिकाओं के लिये खुली प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करना और प्रत्येक नियुक्ति के पीछे के कारणों को सार्वजनिक करना शामिल है।
निष्कर्ष
- कोलकाता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के न्यायपालिका से पदत्याग करने और राजनीति में प्रवेश करने का निर्णय न्यायिक निष्पक्षता, स्वतंत्रता, हितों के संघर्ष, सार्वजनिक विश्वास एवं पेशेवर ज़िम्मेदारी के संबंध में महत्त्वपूर्ण नैतिक चिंताओं को का कारण बनता है।
- इन चिंताओं का न्यायपालिका की अखंडता और विश्वसनीयता पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है, जो न्याय प्रशासन में नैतिक मानकों को बनाए रखने के महत्त्व को रेखांकित करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/कौन-से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्स:Q. भारत में उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017) |