विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
जीएसएलवी-एफ10
- 12 Apr 2022
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट GSLV-F10/EOS-03 मिशन, जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV), प्रक्षेपण यान के प्रकार। मेन्स के लिये:अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, प्रक्षेपण यान के प्रकार और संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2021 में विफल भू-समकालिक उपग्रह GSLV-F10/पृथ्वी अवलोकन उपग्रह (EOS)-03 मिशन की जाँच के लिये एक उच्च-स्तरीय पैनल की स्थापना की गई तथा क्रायोजेनिक अपर स्टेज (CUS) को और अधिक मज़बूत बनाने के लिये उपायों की सिफारिश की गई है।
- भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान/जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) के अपने CUS में सुधार के साथ इस वर्ष की दूसरी छमाही में तैयार होने की उम्मीद है।
जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV):
- भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV) एक अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान है जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा डिज़ाइन, विकसित और संचालित किया जाता है ताकि उपग्रहों व अन्य अंतरिक्ष वस्तुओं को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में लॉन्च किया जा सके।
- GSLV को संचार उपग्रहों को लॉन्च करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- भू-समकालिक उपग्रहों को उसी दिशा में कक्षा में प्रक्षेपित किया जाता है जिस दिशा में पृथ्वी घूम रही है तथा उनका झुकाव किसी भी ओर हो सकता है।
- भू-समकालिक कक्षाओं में उपग्रह आकाश में एक ही स्थिति में स्थायी रूप से स्थिर प्रतीत होते हैं।
- GSLV में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) की तुलना में कक्षा में भारी पेलोड ले जाने की क्षमता है।
- यह स्ट्रैप-ऑन मोटर्स के साथ तीन चरणों वाला लॉन्चर है।
क्रायोजेनिक अपर स्टेज (CUS):
- GSLV के पहले चरण में ठोस ईंधन तथा इसके बाद दूसरे चरण में तरल ईंधन चरण का प्रयोग होता है। दूसरे चरण के बाद तीसरा चरण होता है जिसे CUS कहा जाता है।
- यह रॉकेट का महत्त्वपूर्ण तीसरा चरण है, जो प्रज्वलित होने में विफल रहा और GSLV-F10 की विफलता का कारण बना।
- क्रायोजेनिक चरण तकनीकी रूप से बहुत कम तापमान पर प्रणोदक के उपयोग और संबंधित थर्मल तथा संरचनात्मक समस्याओं के कारण ठोस या पृथ्वी-भंडारण योग्य तरल प्रणोदक चरणों की तुलना में एक बहुत ही जटिल प्रणाली है।
पृथ्वी अवलोकन उपग्रह:
- पृथ्वी अवलोकन उपग्रह, रिमोट सेंसिंग तकनीक से लैस उपग्रह होते हैं, जो कि पृथ्वी की भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रणालियों के बारे में जानकारी संग्रह करते हैं।
- पृथ्वी अवलोकन उपग्रह पृथ्वी की भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रणालियों के बारे में जानकारी संग्रह करता है।
- कई पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों को ‘सन-सिंक्रोनस’ ऑर्बिट में तैनात किया जाता है।
- इसरो द्वारा लॉन्च किये गए अन्य पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों में रिसोर्ससैट-2, 2A, कार्टोसैट-1, 2, 2A, 2B, रिसैट-1 और 2, ओशनसैट-2, मेघा-ट्रॉपिक्स, सरल एवं स्कैटसैट-1, इन्सैट-3DR, 3D शामिल हैं।
इसरो द्वारा उपयोग किये जाने वाले प्रक्षेपण यान:
- सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV):
- इसरो द्वारा विकसित पहले रॉकेट को केवल SLV या सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल कहा जाता था।
- इसके बाद संवर्द्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (ASLV) आया।
- संवर्द्धित सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (ASLV):
- SLV और ASLV दोनों ही छोटे उपग्रहों, जिनका वज़न 150 किलोग्राम तक होता है, को पृथ्वी की निचली कक्षाओं में ले जाया जा सकता है।
- ASLV का परिचालन पीएसएलवी आने से पहले 1990 के दशक की शुरुआत तक किया जाता था।
- ध्रुवीय सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV):
- PSLV का उपयोग भारत के दो सबसे महत्त्वपूर्ण मिशनों (वर्ष 2008 के चंद्रयान-I और वर्ष 2013 के मार्स ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट) के लिये भी किया गया था।
- पीएसएलवी पहला लॉन्च वाहन है जो तरल चरण (Liquid Stages) से सुसज्जित है।
- PSLV इसरो द्वारा उपयोग किया जाने वाला अब तक का सबसे विश्वसनीय रॉकेट है, जिसकी 54 में से 52 उड़ानें सफल रही हैं।
- इसरो वर्तमान में दो लॉन्च वाहनों- PSLV और GSLV (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) का उपयोग करता है, इनमें भी कई प्रकार के संस्करण होते हैं।
- PSLV का पहला सफल प्रक्षेपण अक्तूबर 1994 में किया गया था।
- PSLV का उपयोग भारत के दो सबसे महत्त्वपूर्ण मिशनों (वर्ष 2008 के चंद्रयान-I और वर्ष 2013 के मार्स ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट) के लिये भी किया गया था।
जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV):
- जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) एक अधिक शक्तिशाली रॉकेट है, जो भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में अधिक ऊँचाई तक ले जाने में सक्षम है। जीएसएलवी रॉकेटों ने अब तक 18 मिशनों को अंजाम दिया है, जिनमें से चार विफल रहे हैं।
- यह 10,000 किलोग्राम के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा तक ले जा सकता है।
- स्वदेश में विकसित क्रायोजेनिक अपर स्टेज (CUS)- ‘GSLV Mk-II’ के तीसरे चरण का निर्माण करता है।
- Mk-III संस्करणों ने भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो को अपने उपग्रहों को लॉन्च करने हेतु पूरी तरह से आत्मनिर्भर बना दिया है।
- इससे पहले भारत अपने भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने के लिये ‘यूरोपीय एरियन प्रक्षेपण यान’ पर निर्भर था।
- जीएसएलवी-एमके III (GSLV-Mk III) एक चौथी पीढ़ी का तथा तीन चरण का प्रक्षेपण यान है जिसमें चार तरल स्ट्रैप-ऑन हैं। स्वदेशी रूप से विकसित सीयूएस, जो उड़ने में सक्षम है, जीएसएलवी एमके III के तीसरे चरण का निर्माण करता है।
- रॉकेट में दो ठोस मोटर स्ट्रैप-ऑन (S200) के साथ एक तरल प्रणोदक कोर चरण (L110) और एक क्रायोजेनिक चरण (C-25) के साथ तीन चरण शामिल हैं।
- स्माॅल सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV):
- SSLV का लक्ष्य छोटे एवं सूक्ष्म उपग्रहों को लॉन्च करना है, गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर इस प्रकार के उपग्रहों के प्रक्षेपण की मांग तेज़ी से बढ़ रही है।
- एसएसएलवी 500 किलोग्राम तक के उपग्रहों के लिये लागत प्रभावी प्रक्षेपण सेवाएँ प्रदान करने में सक्षम है।
- जल्द ही एक स्वदेशी पृथ्वी अवलोकन उपग्रह EOS-03 को इसके द्वारा अंतरिक्ष में ले जाए जाने की उम्मीद है।
- पुन: प्रयोज्य रॉकेट:
- भविष्य में निर्मित रॉकेट प्रायः पुन: प्रयोज्य होंगे। इस प्रकार के मिशन के दौरान रॉकेट का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही नष्ट होगा।
- वहीं इसका अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश करेगा और एक हवाई जहाज़ की तरह सतह पर लैंड करेगा तथा भविष्य के मिशनों में इसका उपयोग किया जा सकेगा।
- पुन: प्रयोज्य रॉकेट निर्माण की लागत एवं ऊर्जा में कटौती करेंगे और अंतरिक्ष मलबे को भी कम करने में मददगार होंगे, जो कि मौजूदा समय में एक गंभीर समस्या बनी हुई है।
- यद्यपि पूरी तरह से पुन: प्रयोज्य रॉकेट अभी भी विकसित नहीं किये गए हैं, लेकिन आंशिक रूप से पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहन पहले से ही उपयोग में हैं।
- इसरो ने भी एक आंशिक पुन: प्रयोज्य रॉकेट विकसित किया है, जिसे RLV-TD (पुन: प्रयोज्य लॉन्च व्हीकल टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर) कहा जाता है, इसने वर्ष 2016 में एक सफल परीक्षण उड़ान भरी थी।
विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रक्षेपण यान के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) |