शासन व्यवस्था
एनआरसी लागू करेगा मणिपुर
प्रिलिम्स के लिये:नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर, इनर लाइन परमिट, स्वदेशी लोगों की सुरक्षा। मेन्स के लिये:मणिपुर में एनआरसी लागू करने का कारण। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मणिपुर विधानसभा ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लागू करने और राज्य जनसंख्या आयोग (SPC) की स्थापना करने का संकल्प लिया है।
- यह निर्णय तब लिया गया है जब कम-से-कम 19 शीर्ष आदिवासी संगठनों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर NRC लागू करने और अन्य सुधारों की मांग की ताकि स्थानीय लोगों को "गैर-स्थानीय निवासियों की बढ़ती संख्या" से बचाया जा सके।
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर:
- ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ (NRC) प्रत्येक गाँव के संबंध में तैयार किया गया एक रजिस्टर होता है, जिसमें घरों या जोतों को क्रमानुसार दिखाया जाता है और इसमें प्रत्येक घर में रहने वाले व्यक्तियों की संख्या एवं नाम का विवरण भी शामिल होता है।
- यह रजिस्टर पहली बार भारत की वर्ष 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था और हाल ही में इसे अपडेट भी किया गया है।
- इसे अभी तक केवल असम में ही अपडेट किया गया है और सरकार इसे राष्ट्रीय स्तर पर भी अपडेट करने की योजना बना रही है।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य ‘अवैध’ अप्रवासियों को ‘वैध’ निवासियों से अलग करना है।
- नोडल एजेंसी: महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त, ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ के लिये नोडल एजेंसी है।
मणिपुर में एनआरसी के लिये प्रयत्न:
- मणिपुर विधानसभा में प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, मणिपुर की जनसंख्या में वर्ष 1971 से वर्ष 2011 तक उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो गैर-भारतीयों विशेष रूप से म्याँमार के नागरिकों जिनमें मुख्यतः कुकी-चिन समुदाय हैं, के आने की प्रबल संभावना की ओर इशारा करती है।
- कुकी-चिन समूहों के अलावा एनआरसी समर्थक समूहों ने "बांग्लादेशियों" और म्याँमार के मुसलमानों की पहचान की है, जिन्होंने "जिरीबाम के निर्वाचन क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया है तथा वे घाटी के इलाकों में फैले हुए हैं", साथ ही नेपाली (गोरखा) जिनकी "अत्यधिक संख्या में वृद्धि हुई है" को "बाहरी" के रूप में पहचाना गया है।"
- पूर्वोत्तर राज्य "बाहरी" "विदेशियों" या "विदेशी संस्कृतियों" के बारे में अपने संख्यात्मक रूप से कमज़ोर स्वदेशी समुदायों को बाहर निकाले जाने को लेकर बौखलाए हुए हैं।
- तीन प्रमुख जातीय समूहों की आबादी वाला मणिपुर भी अलग नहीं है।
- ये जातीय समूह गैर-आदिवासी मैतेई लोग, आदिवासी नगा तथा कुकी-ज़ोमी समूह हैं।
- इन तीन समूहों के बीच संघर्ष का इतिहास रहा है लेकिन NRC के मुद्दे ने मेती और नगाओं को एक साथ ला दिया है।
- उनका कहना है कि एनआरसी आवश्यक है क्योंकि फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट के कारण पड़ोसी म्याँमार में राजनीतिक संकट ने राज्य में अपनी 398 किलोमीटर की सीमा से सैकड़ों लोगों को जाने के लिये मजबूर कर दिया है।
- जो लोग वहाँ से पलायन कर या पलायन कर रहे हैं उनमें से अधिकांश कुकी-चिन समुदायों से संबंधित हैं, जो मणिपुर में कुकी-ज़ोमी लोगों के साथ-साथ मिज़ोरम के मिज़ो से जातीय रूप से संबंधित हैं।
मणिपुर में अन्य सुरक्षात्मक तंत्र:
- दिसंबर 2019 में अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नगालैंड के बाद मणिपुर इनर-लाइन परमिट (ILP) प्रणाली के तहत लाने वाला चौथा पूर्वोत्तर राज्य बन गया।
- ‘बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन एक्ट, 1873’ के तहत कार्यान्वित ‘इनर-लाइन परमिट’ एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज़ होता है, जो कि एक सीमित अवधि के लिये संरक्षित/प्रतिबंधित क्षेत्र में भारतीय नागरिकों को जाने अथवा रहने की अनुमति देता है।
- बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान), म्याँमार और नेपाल से "आप्रवासियों की घुसपैठ" को चिह्नित करते हुए, संगठनों द्वारा मणिपुर के लिये एक पास या परमिट प्रणाली शुरू की गई, जिसे नवंबर 1950 में समाप्त कर दिया गया
- जून 2021 में मणिपुर सरकार ने ILP के उद्देश्य के लिये "मूल निवासियों" की पहचान हेतु आधार वर्ष के रूप में 1961 को मंज़ूरी दी।
- अधिकांश समूह इस कट-ऑफ वर्ष से खुश नहीं हैं और 1951 को NRC अभ्यास के लिये कट-ऑफ वर्ष के रूप में मानते हैं।
- वर्ष 2021 से गृह मंत्रालय (MHA) ने म्याँमार से भारत में अवैध घुसपैठ को रोकने के लिये नगालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश में सीमा सुरक्षा बल (BGF) अर्थात् असम राइफल्स को तैनात किया।
- इसी तरह के निर्देश अगस्त 2017 और फरवरी 2018 में भी जारी किये गए थे।
पूर्वोत्तर में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की स्थिति:
- असम इस क्षेत्र का एकमात्र राज्य है जिसने किसी व्यक्ति की नागरिकता के लिये कट-ऑफ तिथि के रूप में 24 मार्च, 1971 के साथ वर्ष 1951 के NRC को अद्यतित करने की कवायद शुरू की।
- जून 2019 नगालैंड ने भी नगालैंड के स्थानीय नागरिकों का रजिस्टर (RIIN) नामक एक समान प्रयास किया, ताकि मुख्य रूप से गैर-स्वदेशी नगाओं में से स्वदेशी ागाओं को पहचाना जा सके।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs):मेन्स: नियंत्रण रेखा (LoC) सहित म्याँमार, बांग्लादेश और पाकिस्तान की सीमाओं पर आंतरिक सुरक्षा खतरों और सीमापार अपराधों का विश्लेषण कीजिये। इस संबंध में विभिन्न सुरक्षा बलों द्वारा निभाई गई भूमिका की भी चर्चा कीजिये।(2020) |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजव्यवस्था
संसद सदस्यों के विशेषाधिकार
प्रिलिम्स के लिये:भारत का उपराष्ट्रपति, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई), आयकर विभाग (आईटी), अनुच्छेद 105 मेन्स के लिये:संसद सदस्यों के विशेषाधिकार |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के उपराष्ट्रपति ने संसदीय विशेषाधिकारों के बारे में संसद सदस्यों की गलत धारणाओं पर प्रकाश डाला कि संसदीय सत्र के दौरान जाँच एजेंसियों द्वारा उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती है।
- राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को फँसाने के लिये सरकार द्वारा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) और आयकर विभाग (आईटी) जैसी केंद्रीय एजेंसियों के कथित दुरुपयोग के खिलाफ कुछ राजनीतिक दलों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया है।
संसदीय विशेषाधिकार:
- परिचय:
- संसदीय विशेषाधिकार का आशय संसद के दोनों सदनों, उनकी समितियों और उनके सदस्यों द्वारा प्राप्त विशेष अधिकार, उन्मुक्तियाँ और छूट प्रदान करने से है।
- इन विशेषाधिकारों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 में परिभाषित किया गया है।
- इन विशेषाधिकारों के तहत संसद सदस्यों को उनके कर्तव्यों के दौरान दिये गए किसी भी बयान या कार्य के लिये किसी भी नागरिक दायित्व (लेकिन आपराधिक दायित्व नहीं) से छूट दी गई है।
- विशेषाधिकारों का दावा तभी किया जाता है जब व्यक्ति सदन का सदस्य हो।
- जब वह सदस्य नहीं रहता है तो उसके विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया जाता है।
- संसदीय विशेषाधिकारों को व्यापक रूप से संहिताबद्ध करने के लिये कोई विशेष कानून नहीं बनाया गया है बल्कि वे पाँच स्रोतों पर आधारित हैं:
- संवैधानिक प्रावधान
- संसद द्वारा बनाए गए विभिन्न कानून
- दोनों सदनों के नियम
- संसदीय सम्मेलन
- न्यायिक व्याख्या
- संसदीय विशेषाधिकार का आशय संसद के दोनों सदनों, उनकी समितियों और उनके सदस्यों द्वारा प्राप्त विशेष अधिकार, उन्मुक्तियाँ और छूट प्रदान करने से है।
विशेषाधिकार:
- संसद में बोलने की स्वतंत्रता:
- अनुच्छेद 19 (2) के तहत एक नागरिक को दी गई वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संसद के प्रत्येक सदस्य को प्रदान की गई भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से अलग है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105(1) के तहत इसकी गारंटी दी गई है लेकिन स्वतंत्रता उन नियमों और आदेशों के अधीन है जो संसद की कार्यवाही को विनियमित करते हैं।
- सीमाएँ:
- संविधान के अनुच्छेद 118 के तहत कहा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार और संसद के नियमों एवं प्रक्रियाओं के अधीन होनी चाहिये।
- संविधान के अनुच्छेद 121 के तहत संसद के सदस्यों को सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के आचरण पर चर्चा करने से प्रतिबंधित किया गया है।
- गिरफ्तारी से मुक्ति:
- किसी भी सदस्य को दीवानी मामले में सदन के स्थगन के 40 दिन पहले और बाद में तथा सदन के सत्र के दौरान भी गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
- इसका अर्थ यह भी है कि किसी भी सदस्य को उस सदन की अनुमति के बिना संसद की सीमा के भीतर गिरफ्तार नहीं किया जा सकता जिससे वह संबंधित है।
- यदि संसद के किसी सदस्य को हिरासत में लिया जाता है, तो गिरफ्तारी के कारण के बारे में संबंधित प्राधिकारी द्वारा अध्यक्ष को सूचित किया जाना चाहिये।
- लेकिन किसी सदस्य को उसके खिलाफ आपराधिक आरोपों में निवारक निरोध अधिनियम, आवश्यक सेवा रखरखाव अधिनियम (ESMA), राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA), या ऐसे किसी भी अधिनियम के तहत आपराधिक आरोपों में सदन की सीमा के बाहर गिरफ्तार किया जा सकता है।
- कार्यवाही के प्रकाशन पर रोक लगाने का अधिकार:
- संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत सदन के सदस्य के अधिकार के तहत किसी भी व्यक्ति को सदन की कोई रिपोर्ट, चर्चा आदि प्रकाशित करने के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा।
- सर्वोपरि और राष्ट्रीय महत्त्व के लिये यह आवश्यक है कि संसद में क्या हो रहा है, इसके बारे में जनता को जागरूक करने के लिये कार्यवाही के बारे में सूचित किया जाना चाहिये।
- संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत सदन के सदस्य के अधिकार के तहत किसी भी व्यक्ति को सदन की कोई रिपोर्ट, चर्चा आदि प्रकाशित करने के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा।
- अजनबियों को बाहर करने का अधिकार:
- सदन के सदस्यों के पास अजनबियों यानी जो सदन के सदस्य नहीं हैं, को कार्यवाही से बाहर करने की शक्ति और अधिकार है। सदन में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चर्चा सुनिश्चित करने के लिये यह अधिकार बहुत आवश्यक है।
- उपराष्ट्रपति के अनुसार:
- उपराष्ट्रपति के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत संसद सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं ताकि वे बिना किसी बाधा के अपने संसदीय कर्तव्यों का पालन कर सकें।
- विशेषाधिकारों में से एक यह है कि संसद सदस्य को संसदीय सत्र या समिति की बैठक शुरू होने से 40 दिन पहले और उसके 40 दिन बाद तक सिविल मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
- यह विशेषाधिकार पहले से ही सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 135A के तहत शामिल है।
- हालाँकि आपराधिक मामलों में संसद सदस्य और आम नागरिक पर समान कानून लागू होते हैं।
- इसका अर्थ है कि संसद सदस्य को सत्र के दौरान या अन्यथा किसी आपराधिक मामले में गिरफ्तारी से कोई छूट नहीं है।
- विशेषाधिकारों में से एक यह है कि संसद सदस्य को संसदीय सत्र या समिति की बैठक शुरू होने से 40 दिन पहले और उसके 40 दिन बाद तक सिविल मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण:
- केराज्य बनाम के. अजीत और अन्य (2021) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, "विशेषाधिकार एवं उन्मुक्ति देश के सामान्य कानून से छूट का दावा करने के लिये प्रवेश द्वार नहीं हैं, खासकर इस मामले में आपराधिक कानून प्रत्येक नागरिक की कार्रवाई को नियंत्रित करता है।
- जुलाई 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने केरल सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें विधानसभा में आरोपित अपने विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले वापस लेने की मांग की गई थी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संसदीय विशेषाधिकार प्रतिरक्षा का माध्यम नहीं हैं और जो विधायक बर्बरता एवं अपराध में लिप्त हैं, वे संसदीय विशेषाधिका रतथा आपराधिक अभियोजन से उन्मुक्ति का दावा नहीं कर सकते हैं।
आगे की राह
- संसद के सुचारू संचालन के लिये सदस्यों को संसदीय विशेषाधिकार प्रदान किये जाते हैं लेकिन ये अधिकार हमेशा मौलिक अधिकारों के अनुरूप होने चाहिये क्योंकि ये हमारे प्रतिनिधि हैं और हमारे कल्याण हेतु काम करते हैं।
- यदि विशेषाधिकार मौलिक अधिकारों के अनुरूप नहीं हैं, तो नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिये लोकतंत्र का महत्त्व ही खो जाएगा।
- यह संसद का कर्तव्य है कि वह संविधान द्वारा गारंटीकृत किसी अन्य अधिकार का उल्लंघन न करे। सदस्यों को भी अपने विशेषाधिकारों का बुद्धिमानी से उपयोग करना चाहिये, उनका दुरुपयोग नहीं करना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना, जनजातीय उप-योजना के लिये विशेष केंद्रीय सहायता, ST के लिये सुरक्षा उपाय, सरकारी पहल मेन्स के लिये:ST के कल्याण के लिये योजनाएँ, ST के लिये सुरक्षा उपाय, सरकारी पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने 2021-22 से 2025-26 के दौरान कार्यान्वयन हेतू 'प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना (PMAAGY)' के नामकरण के साथ 'जनजातीय उप-योजना (SCA से TSS) के लिये विशेष केंद्रीय सहायता' की पिछली योजना को संशोधित किया है।
प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना (PMAAGY):
- परिचय:
- यह राज्य जनजातीय उप-योजना (TSP) में अतिरिक्त के रूप में विशेष केंद्रीय सहायता प्रदान करके जनजातीय लोगों के विकास एवं कल्याण के लिये राज्य सरकारों के प्रयासों का पूरक है।
- इस महत्त्वपूर्ण पहल का उद्देश्य केंद्रीय अनुसूचित जनजाति घटक में विभिन्न योजनाओं के तहत उपलब्ध धन के माध्यम से प्रमुखता के साथ जनजातीय आबादी वाले गाँवों में सुविधाओं तथा व्यवस्थाओं के अंतराल को कम करना और बुनियादी ढाँचा प्रदान करना है।
- योजना दिशा-निर्देशों का संशोधन:
- चयनित गाँवों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करना ताकि वे वास्तव में 'आदर्श ग्राम' बन सकें, विभिन्न क्षेत्रों के हिस्से के रूप में महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक 'निगरानी संकेतक' में अंतराल को भरने के लिये SCA से TSS योजना को भी संशोधित किया गया था।
- इन कार्यक्षेत्रों में पानी और स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पोषण, कृषि की सर्वोत्तम प्रथाएँ आदि शामिल हैं।
- चयनित गाँवों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करना ताकि वे वास्तव में 'आदर्श ग्राम' बन सकें, विभिन्न क्षेत्रों के हिस्से के रूप में महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक 'निगरानी संकेतक' में अंतराल को भरने के लिये SCA से TSS योजना को भी संशोधित किया गया था।
- कार्यान्वयन के लिये नया दृष्टिकोण:
- 'निगरानी योग्य संकेतक' के संबंध में ज़रूरतों या अंतराल की पहचान एक आवश्यक आकलन अभ्यास पर आधारित है।
- 'ग्राम विकास योजना' (VDP) आवश्यकता आकलन अभ्यास के हिस्से के रूप में एकत्र किये गए आँकड़ों पर आधारित है।
- PMAGY विभिन्न क्षेत्रों में संतृप्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से अन्य योजनाओं के अभिसरण कार्यान्वयन के लिये मंच प्रदान करता है।
- उद्देश्य:
- आवश्यकताओं, संभावनाओं और आकांक्षाओं के आधार पर ग्राम विकास योजना तैयार करना।
- केंद्र/राज्य सरकारों की व्यक्तिगत/पारिवारिक लाभ योजनाओं के दायरे को अधिकतम करना।
- स्वास्थ्य, शिक्षा, कनेक्टिविटी और आजीविका जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिये बुनियादी ढाँचे में सुधार।
- यह योजना विकास के प्रमुख 8 क्षेत्रों में अंतराल को कम करने के लिये तैयार की गई है।
- सड़क कनेक्टिविटी (आंतरिक और अंतर गाँव/ब्लॉक)
- दूरसंचार कनेक्टिविटी (मोबाइल/इंटरनेट)स्कूल
- आँगनबाडी केंद्र
- पेयजल सुविधा
- जलनिकास
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन
अनुसूचित जनजातियों को भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त बुनियादी सुरक्षा उपाय:
- भारतीय संविधान में 'जनजाति' शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है, हालाँकि अनुसूचित जनजाति शब्द को संविधान में अनुच्छेद 342 (i) के माध्यम से जोड़ा गया था।
- यह निर्धारित करता है कि 'राष्ट्रपति, सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा जनजातियों या जनजातीय समुदायों या जनजातीय भागों के कुछ हिस्सों या समूहों को निर्दिष्ट कर सकते हैं, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिये अनुसूचित जनजाति माना जाएगा।
- संविधान की पाँचवीं अनुसूची अनुसूचित क्षेत्रों वाले प्रत्येक राज्य में एक जनजाति सलाहकार परिषद की स्थापना का प्रावधान करती है।
- शैक्षिक और सांस्कृतिक सुरक्षा उपाय:
- अनुच्छेद 15(4): अन्य पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिये विशेष प्रावधान (इसमें अनुसूचित जनजाति शामिल है)।
- अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण (इसमें अनुसूचित जनजाति शामिल है)
- अनुच्छेद 46: राज्य लोगों के कमज़ोर वर्गों और विशेष रूप से अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को विशेष देखभाल के साथ बढ़ावा देगा तथा सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार शोषण से उनकी रक्षा करेगा।
- अनुच्छेद 350: विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति के संरक्षण का अधिकार।
- राजनीतिक सुरक्षा उपाय:
- अनुच्छेद 330: लोकसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिये सीटों का आरक्षण।
- अनुच्छेद 332: राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण
- अनुच्छेद 243: पंचायतों में सीटों का आरक्षण।
- प्रशासनिक सुरक्षा:
- अनुच्छेद 275: यह अनुसूचित जनजातियों के कल्याण को बढ़ावा देने और उन्हें एक बेहतर प्रशासन प्रदान करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को विशेष निधि प्रदान करने का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 275: यह अनुसूचित जनजातियों के कल्याण को बढ़ावा देने और उन्हें एक बेहतर प्रशासन प्रदान करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को विशेष निधि प्रदान करने का प्रावधान करता है।
जनजातीय आबादी के लिये कुछ अन्य पहलें:
- भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ (TRIFED) :
- भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ (TRIFED) वर्ष 1987 में अस्तित्व में आया। यह जनजातीय मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्यरत एक राष्ट्रीय स्तर का शीर्ष संगठन है।
- इस अभियान का मुख्य उद्देश्य गाँवों में वन धन विकास केंद्रों (VDVKs) को सक्रिय करना है।
- जनजातीय स्कूलों का डिजिटल परिवर्तन:
- जनजातीय मामलों के मंत्रालय (MTA) ने एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) और आश्रम स्कूलों जैसे स्कूलों के डिजिटल परिवर्तन का समर्थन करने के लिये माइक्रोसॉफ्ट के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये।
- विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों का विकास:
- जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने "PVTG के विकास" की योजना लागू की है जिसमें 75 विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTG) को उनके व्यापक सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये शामिल किया गया है।
- प्रधानमंत्री वन धन योजना:
- 'संकल्प से सिद्धि' पहल, जिसे 'मिशन वन धन' के रूप में भी जाना जाता है, को केंद्र सरकार द्वारा भारत की आदिवासी आबादी के लिये एक स्थायी आजीविका सुनिश्चित करने के प्रधानमंत्री के उद्देश्य के अनुरूप वर्ष 2021 में प्रस्तुत किया गया था।
- एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय:
- EMRS पूरे भारत में भारतीय जनजातियों (ST-अनुसूचित जनजाति) के लिये मॉडल आवासीय विद्यालय बनाने की एक योजना है। इसकी शुरुआत वर्ष 1997-98 में हुई थी।
- जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा शिंदे (नासिक) में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय की योजना आसपास के आदिवासी क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये बनाई गई है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रीलिम्स: प्रश्न. भारत के संदर्भ में 'हाइबी, हो और कुई' शब्द निम्नलिखित से संबंधित हैं: (2021) (a) उत्तर-पश्चिम भारत के नृत्य रूप उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। प्रश्न: भारत में विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूहों (PVTGs) के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (A) 1, 2 और 3 उत्तर: (C)
प्रश्न. आज़ादी के बाद से अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के खिलाफ भेदभाव को दूर करने के लिये राज्य द्वारा दो प्रमुख कानूनी पहल क्या हैं? (मुख्य परीक्षा- 2017) |
स्रोत: पी.आई.बी.
सामाजिक न्याय
पेसा अधिनियम
प्रिलिम्स के लिये:पेसा अधिनियम के प्रावधान, अनुच्छेद 244(1), भारत में जनजातीय नीति। मेन्स के लिये:पेसा अधिनियम से संबंधित मुद्दे, पेसा अधिनियम को लागू करने के लाभ। |
चर्चा में क्यों?
गुजरात में विभिन्न चुनावी दल पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (पेसा), 1996 को सख्ती से लागू करने का वादा करके आदिवासियों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं।
- गुजरात में जनवरी 2017 में राज्य पेसा नियमों को अधिसूचित किया गया और उन्हें राज्य के आठ ज़िलों के 50 आदिवासी तालुकों के 2,584 ग्राम पंचायतों के तहत 4,503 ग्राम सभाओं में लागू किया गया।
- हालाँकि अधिनियम को अभी भी अक्षरश: लागू नहीं किया गया है।
- छह राज्यों (हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र) ने पेसा कानून बनाए हैं और यदि ये नियम लागू होते हैं तो छत्तीसगढ़ इन्हें लागू करने वाला सातवाँ राज्य बन जाएगा।
पेसा अधिनियम:
- परिचय:
- पेसा अधिनियम 1996 में "पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX के प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तारित करने के लिये" अधिनियमित किया गया था।
- संविधान के अनुच्छेद 243-243ZT के भाग IX में नगर पालिकाओं और सहकारी समितियों से संबंधित प्रावधान हैं।
- पेसा अधिनियम 1996 में "पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX के प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तारित करने के लिये" अधिनियमित किया गया था।
- प्रावधान:
- इस अधिनियम के तहत अनुसूचित क्षेत्र वे हैं जिन्हें अनुच्छेद 244 (1) में संदर्भित किया गया है, जिसके अनुसार पाँचवीं अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अलावा अन्य राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों के अनुसूचित जनजातियों पर लागू होंगे।
- पाँचवीं अनुसूची इन क्षेत्रों के लिये विशेष प्रावधानों की श्रृंखला प्रदान करती है।
- दस राज्यों- आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना ने पाँचवीं अनुसूची के क्षेत्रों को अधिसूचित किया है जो इन राज्यों में से प्रत्येक में कई ज़िलों (आंशिक या पूरी तरह से) को कवर करते हैं।
- उद्देश्य:
- अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये ग्राम सभाओं के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करना।
- यह कानूनी रूप से आदिवासी समुदायों, अनुसूचित क्षेत्रों के निवासियों के अधिकार को स्वशासन की अपनी प्रणालियों के माध्यम से स्वयं को शासित करने के अधिकार को मान्यता देता है। यह प्राकृतिक संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को स्वीकार करता है।
- ग्राम सभाओं को विकास योजनाओं को मंज़ूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देता है।
पेसा अधिनियम में ग्राम सभा का महत्त्व:
- लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण: पेसा ग्राम सभाओं को विकास योजनाओं की मंज़ूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देता है। इस प्रबंधन में निम्नलिखित शामिल है:
- जल, जंगल, ज़मीन पर संसाधन।
- लघु वनोत्पाद।
- मानव संसाधन: प्रक्रियाएँ और कार्मिक जो नीतियों को लागू करते हैं।
- स्थानीय बाज़ारों का प्रबंधन।
- भूमि अलगाव को रोकना।
- नशीले पदार्थों को नियंत्रित करना।
- पहचान का संरक्षण: ग्राम सभाओं की शक्तियों में सांस्कृतिक पहचान और परंपरा का रखरखाव, आदिवासियों को प्रभावित करने वाली योजनाओं पर नियंत्रण एवं एक गाँव के क्षेत्र के भीतर प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण शामिल है।
- संघर्षों का समाधान: इस प्रकार पेसा अधिनियम ग्राम सभाओं को बाहरी या आंतरिक संघर्षों के खिलाफ अपने अधिकारों तथा परिवेश के सुरक्षा तंत्र को बनाए रखने में सक्षम बनाता है।
- पब्लिक वॉचडॉग: ग्राम सभा को अपने गाँव की सीमा के भीतर नशीले पदार्थों के निर्माण, परिवहन, बिक्री और खपत की निगरानी तथा निषेध करने की शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
पेसा से संबंधित मुद्दे:
- आंशिक कार्यान्वयन: राज्य सरकारों को इस राष्ट्रीय कानून के अनुरूप अपने अनुसूचित क्षेत्रों के लिये राज्य कानूनों को अधिनियमित करना चाहिये।
- इसके परिणामस्वरूप पेसा आंशिक रूप से कार्यान्वित हुआ है।
- आंशिक कार्यान्वयन ने आदिवासी क्षेत्रों, जैसे- झारखंड में स्वशासन को विकृत कर दिया है।
- प्रशासनिक बाधाएँ: कई विशेषज्ञों ने दावा किया है कि पेसा स्पष्टता की कमी, कानूनी दुर्बलता, नौकरशाही उदासीनता, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, सत्ता के पदानुक्रम में परिवर्तन के प्रतिरोध आदि के कारण सफल नहीं हुआ।
- वास्तविकता के स्थान पर कागज़ी अनुसरण: राज्य भर में किये गए सोशल ऑडिट में यह भी बताया गया है कि वास्तव में विभिन्न विकास योजनाओं को ग्राम सभा द्वारा केवल कागज़ पर अनुमोदित किया जा रहा था, वास्तव में चर्चा और निर्णय लेने के लिये कोई बैठक नहीं हुई थी।
भारत की जनजातीय नीति:
- भारत में अधिकांश जनजातियों को सामूहिक रूप से अनुच्छेद 342 के तहत ‘अनुसूचित जनजाति’ के रूप में मान्यता दी गई है।
- भारतीय संविधान का भाग X: अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्र में निहित अनुच्छेद 244 (अनुसूचित क्षेत्रों एवं जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन) द्वारा इन्हें आत्मनिर्णय के अधिकार (Right to Self-determination) की गारंटी दी गई है।
- संविधान की 5वीं अनुसूची में अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन एवं नियंत्रण तथा छठी अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन संबंधी उपबंध किये गए हैं।
- पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 या पेसा अधिनियम।
- जनजातीय पंचशील नीति।
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 वन में रहने वाले समुदायों के भूमि एवं अन्य संसाधनों के अधिकारों से संबंधित है।
आगे की राह
- यदि पेसा अधिनियम को अक्षरश: लागू किया जाता है, तो यह आदिवासी क्षेत्र में मरती हुई स्वशासन प्रणाली को फिर से जीवंत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
- यह पारंपरिक शासन प्रणाली में खामियों को दूर करने और इसे अधिक लिंग-समावेशी एवं लोकतांत्रिक बनाने का अवसर भी देगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय इतिहास
भारत छोड़ो आंदोलन
प्रिलिम्स के लिये:भारत छोड़ो आंदोलन, महात्मा गांधी, स्वतंत्रता संग्राम, भारतीय राष्ट्रीय सेना। मेन्स के लिये:भारत छोड़ो आंदोलन की सफलताएँ और विफलताएँ। |
चर्चा में क्यों?
8 अगस्त, 2022 को भारत ने भारत छोड़ो आंदोलन के 80 साल पूरे किये, जिसे अगस्त क्रांति भी कहा जाता है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- 8 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का आह्वान किया और मुंबई में अखिल भारतीय काॅन्ग्रेस कमेटी के सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया।
- गांधीजी ने ग्वालिया टैंक मैदान में अपने भाषण में "करो या मरो" का आह्वान किया, जिसे अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से जाना जाता है।
- स्वतंत्रता आंदोलन की 'ग्रैंड ओल्ड लेडी' के रूप में लोकप्रिय अरुणा आसफ अली को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में भारतीय ध्वज फहराने के लिये जाना जाता है।
- 'भारत छोड़ो' का नारा एक समाजवादी और ट्रेड यूनियनवादी यूसुफ मेहरली द्वारा गढ़ा गया था, जिन्होंने मुंबई के मेयर के रूप में भी काम किया था।
- मेहरअली ने "साइमन गो बैक" का नारा भी गढ़ा था।
- कारण:
- क्रिप्स मिशन की विफलता: आंदोलन का तात्कालिक कारण क्रिप्स मिशन की समाप्ति/ मिशन के किसी अंतिम निर्णय पर न पहुँचना था।
- संदर्भ: इस मिशन को स्टेफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में भारत में एक नए संविधान एवं स्वशासन के निर्माण से संबंधित प्रश्न को हल करने के लिये भेजा गया था।
- क्रिप्स मिशन के पीछे कारण: दक्षिण-पूर्व एशिया में जापान की बढ़ती आक्रामकता, युद्ध में भारत की पूर्ण भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिये ब्रिटिश सरकार की उत्सुकता, ब्रिटेन पर चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बढ़ते दबाव के कारण ब्रिटेन की सत्तारूढ़ लेबर पार्टी के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल द्वारा मार्च 1942 में भारत में क्रिप्स मिशन भेजा गया।
- पतन का कारण: यह मिशन विफल हो गया क्योंकि इसने भारत के लिये पूर्ण स्वतंत्रता नहीं बल्कि विभाजन के साथ डोमिनियन स्टेटस की पेशकश की।
- नेताओं के साथ पूर्व परामर्श के बिना द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की भागीदारी:
- द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार का बिना शर्त समर्थन करने की भारत की मंशा को भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस द्वारा सही से न समझा जाना।
- ब्रिटिश विरोधी भावना का प्रसार:
- ब्रिटिश-विरोधी भावना तथा पूर्ण स्वतंत्रता की मांग ने भारतीय जनता के बीच लोकप्रियता हासिल कर ली थी।
- कई छोटे आंदोलनों का केंद्रीकरण:
- अखिल भारतीय किसान सभा, फारवर्ड ब्लाक आदि जैसे काॅन्ग्रेस से संबद्ध विभिन्न निकायों के नेतृत्त्व में दो दशक से चल रहे जन आंदोलनों ने इस आंदोलन के लिये पृष्ठभूमि निर्मित कर दी थी।
- देश में कई स्थानों पर उग्रवादी विस्फोट हो रहे थे जो भारत छोड़ो आंदोलन के साथ जुड़ गए।
- आवश्यक वस्तुओं की कमी:
- द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था भी बिखर गई थी।
- क्रिप्स मिशन की विफलता: आंदोलन का तात्कालिक कारण क्रिप्स मिशन की समाप्ति/ मिशन के किसी अंतिम निर्णय पर न पहुँचना था।
मांगें :
- फासीवाद के खिलाफ द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों का सहयोग पाने के लिये भारत में ब्रिटिश शासन को तत्काल प्रभाव से समाप्त करने की मांग की गई।
- भारत से अंग्रेज़ों के जाने के बाद एक अंतरिम सरकार बनाने की मांग।
चरण: आंदोलन के तीन चरण थे:
- पहला चरण- शहरी विद्रोह, हड़ताल, बहिष्कार और धरने के रूप में चिह्नित, जिसे जल्दी दबा दिया गया था।
- पूरे देश में हड़तालें तथा प्रदर्शन हुए तथा श्रमिकों ने कारखानों में काम न करके समर्थन प्रदान किया।
- गांधीजी को पुणे के आगा खान पैलेस (Aga Khan Palace) में कैद कर दिया गया और लगभग सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
- आंदोलन के दूसरे चरण में ध्यान ग्रामीण इलाकों में स्थानांतरित किया गया जिसमें एक प्रमुख किसान विद्रोह देखा गया, इसमें संचार प्रणालियों को बाधित करना मुख्य उद्देश्य था, जैसे कि रेलवे ट्रैक और स्टेशन, टेलीग्राफ तार व पोल, सरकारी भवनों पर हमले या औपनिवेशिक सत्ता का कोई अन्य दृश्य प्रतीक।
- अंतिम चरण में अलग-अलग इलाकों (बलिया, तमलुक, सतारा आदि) में राष्ट्रीय सरकारों या समानांतर सरकारों का गठन किया गया।
आंदोलन की सफलता
भविष्य के नेताओं का उदय:
- राम मनोहर लोहिया, जेपी नारायण, अरुणा आसफ अली, बीजू पटनायक, सुचेता कृपलानी आदि नेताओं ने भूमिगत गतिविधियों को अंजाम दिया जो बाद में प्रमुख नेताओं के रूप में उभरे।
महिलाओं की भागीदारी:
- आंदोलन में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उषा मेहता जैसी महिला नेताओं ने एक भूमिगत रेडियो स्टेशन स्थापित करने में मदद की जिससे आंदोलन के बारे में जागरूकता पैदा हुई।
राष्ट्रवाद का उदय:
- भारत छोड़ो आंदोलन के कारण देश में एकता और भाईचारे की एक विशिष्ट भावना पैदा हुई। कई छात्रों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिये और लोगों ने अपनी नौकरी छोड़ दी।
स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त:
- यद्यपि वर्ष 1944 में भारत छोड़ो आंदोलन को कुचल दिया गया था और अंग्रेज़ों ने यह कहते हुए तत्काल स्वतंत्रता देने से इनकार कर दिया था कि स्वतंत्रता युद्ध समाप्ति के बाद ही दी जाएगी, किंतु इस आंदोलन और द्वितीय विश्व युद्ध के बोझ के कारण ब्रिटिश प्रशासन को यह अहसास हो गया कि भारत को लंबे समय तक नियंत्रित करना संभव नहीं था।
- इस आंदोलन के कारण अंग्रेज़ों के साथ भारत की राजनीतिक वार्ता की प्रकृति ही बदल गई और अंततः भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हुआ।
आंदोलन की असफलता:
क्रूर दमन:
- आंदोलन के दौरान कुछ स्थानों पर हिंसा देखी गई, जो कि पूर्व नियोजित नहीं थी।
- आंदोलन को अंग्रेज़ों द्वारा हिंसक रूप से दबा दिया गया, लोगों पर गोलियाँ चलाई गईं, लाठीचार्ज किया गया, गाँवों को जला दिया गया और भारी जुर्माना लगाया गया।
- इस तरह सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिये हिंसा का सहारा लिया और 1,00,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया।
समर्थन का अभाव:
- मुस्लिम लीग, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदू महासभा ने आंदोलन का समर्थन नहीं किया। भारतीय नौकरशाही ने भी इस आंदोलन का समर्थन नहीं किया।
- मुस्लिम लीग, बँटवारे से पूर्व अंग्रेज़ों के भारत छोड़ने के पक्ष में नहीं थी।
- कम्युनिस्ट पार्टी ने अंग्रेज़ों का समर्थन किया, क्योंकि वे सोवियत संघ के साथ संबद्ध थे।
- हिंदू महासभा ने खुले तौर पर भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया और इस आशंका के तहत आधिकारिक तौर पर इसका बहिष्कार किया कि यह आंदोलन आंतरिक अव्यवस्था पैदा करेगा और युद्ध के दौरान आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डाल देगा।
- इस बीच सुभाष चंद्र बोस ने देश के बाहर ‘भारतीय राष्ट्रीय सेना’ और ‘आज़ाद हिंद सरकार’ को गठन किया।
- सी. राजगोपालाचारी जैसे कई काॅन्ग्रेस सदस्यों ने प्रांतीय विधायिका से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि वे महात्मा गांधी के विचार का समर्थन नहीं करते थे।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):भारतीय इतिहास में 8 अगस्त, 1942 के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है? (a) भारत छोड़ो प्रस्ताव AICC द्वारा अपनाया गया था। उत्तर: (a) व्याख्या:
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में निम्नलिखित घटनाओं पर विचार कीजिये: (2017)
उपरोक्त घटनाओं का सही कालानुक्रमिक क्रम क्या है? (a) 1 – 2– 3 उत्तर : (c) व्याख्या:
|
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय अर्थव्यवस्था
मौद्रिक नीति समीक्षा: RBI
प्रिलिम्स के लिये:RBI, मौद्रिक नीति समिति (MPC), मौद्रिक नीति के साधन, RBI के विभिन्न नीतिगत रुख मेन्स के लिये:मौद्रिक नीति, वृद्धि और विकास, मौद्रिक नीति और इसके उपकरण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपनी मौद्रिक नीति समिति (MPC) की समीक्षा में रेपो दरों में 50-आधार अंक की वृद्धि की घोषणा की, जिससे पिछले तीन महीनों में संचयी दर में वृद्धि 140 आधार अंक तक हो गई थी।
प्रमुख बिंदु
- प्रमुख दरें:
- पॉलिसी रेपो दर: 5.40%
- रेपो दर वह दर है जिस पर किसी देश का केंद्रीय बैंक (भारत के मामले में भारतीय रिज़र्व बैंक) किसी भी तरह की धनराशि की कमी होने पर वाणिज्यिक बैंकों को धन देता है। इस प्रक्रिया में केंद्रीय बैंक प्रतिभूति खरीदता है।
- स्थायी जमा सुविधा (SDF): 5.15%
- वस्तुतः इसे अधिशेष तरलता (Surplus Liquidity) को समाप्त करने एवं बैंकिंग प्रणाली की समस्या को कम करने के एक उपकरण के तौर पर देखा जा रहा है|
- यह रिवर्स रेपो सुविधा से इस मायने में अलग है कि इसमें बैंकों को फंड जमा करते समय संपार्श्विक प्रदान करने की आवश्यकता नहीं होती है।
- सीमांत स्थायी सुविधा दर: 5.65%
- MSF ऐसी स्थिति में अनुसूचित बैंकों के लिये आपातकालीन स्थिति में RBI से ओवरनाइट (रातों-रात) ऋण लेने की सुविधा है जब अंतर-बैंक तरलता पूरी तरह से कम हो जाती है।
- इंटरबैंक लेंडिंग के तहत बैंक एक निश्चित अवधि के लिये एक-दूसरे को फंड उधार देते हैं।
- MSF ऐसी स्थिति में अनुसूचित बैंकों के लिये आपातकालीन स्थिति में RBI से ओवरनाइट (रातों-रात) ऋण लेने की सुविधा है जब अंतर-बैंक तरलता पूरी तरह से कम हो जाती है।
- बैंक दर: 5.65%
- यह वाणिज्यिक बैंकों को धन उधार देने के लिये आरबीआई द्वारा वसूल की जाने वाली दर है।
- नकद आरक्षित अनुपात (CRR): 4.50%
- CRR के तहत वाणिज्यिक बैंकों को केंद्रीय बैंक के पास एक निश्चित न्यूनतम जमा राशि (NDTL) आरक्षित रखनी होती है।
- वैधानिक तरलता अनुपात (SLR): 18.00%
- वैधानिक तरलता अनुपात या SLR जमा का न्यूनतम प्रतिशत है जिसे एक वाणिज्यिक बैंक को तरल नकदी, सोना या अन्य प्रतिभूतियों के रूप में बनाए रखना होता है।
- पॉलिसी रेपो दर: 5.40%
- अनुमान:
- वर्ष 2022-23 के लिये GDP बढ़त:2%
- यह सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) के अनुरूप है। GDP उपभोक्ताओं की आर्थिक गतिविधियों का परिणाम है। यह निजी खपत, अर्थव्यवस्था में सकल निवेश, सरकारी निवेश, सरकारी खर्च और शुद्ध विदेशी व्यापार (निर्यात व आयात के बीच का अंतर) का योग है।
- वर्ष 2022-23 के लिये मुद्रास्फीति अनुमान: 6.7%
- मुद्रास्फीति एक निश्चित अवधि में कीमतों में वृद्धि की दर है। मुद्रास्फीति आमतौर पर एक व्यापक उपाय है जैसे कि कीमतों में समग्र वृद्धि या किसी देश में रहने की लागत में वृद्धि।
- वर्ष 2022-23 के लिये GDP बढ़त:2%
रेपो दर में बढ़ोतरी
- भले ही उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति अप्रैल 2022 में अपने उछाल से कम हो गई हो, लेकिन यह असुविधाजनक रूप से उच्च और लक्ष्य के ऊपरी सीमा (6%) से ऊपर रहने की उम्मीद है।
- मुद्रास्फीति का ये उच्च स्तर MPC के लिये चिंता का विषय बना रहा क्योंकि RBI के अनुसार भारत सरकार का मुद्रास्फीति लक्ष्य (4% +/- 2%) है
- यह उम्मीद की जाती है कि मुद्रास्फीति Q2 और Q3 (वित्त वर्ष 2022-23) में ऊपरी सीमा (6%) से ऊपर रहेगी।
- यह निरंतर उच्च मुद्रास्फीति अपेक्षित मुद्रास्फीति को अस्थिर कर सकती है और मध्यम अवधि में विकास को नुकसान पहुँचा सकती है।
- मौद्रिक सुविधा का आहरण (मुद्रा आपूर्ति का विस्तार) या बढ़ती दरें मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रख सकती हैं और मुद्रास्फीति के दूसरे दौर के प्रभाव को शामिल कर सकती हैं।
- दूसरे दौर के प्रभाव तब प्रारंभ होते हैं जब मुद्रास्फीति मज़दूरी और मूल्य निर्धारण को प्रभावित करती है, जिससे मज़दूरी-मूल्य सर्पिल (Spiral) होता है।
रेपो रेट में वृद्धि से कर्ज़दारों और जमाकर्त्ताओं पर पड़ने वाले प्रभाव:
- यह होम लोन ग्राहकों और संभावित उधारकर्त्ताओं को प्रभावित करेगा, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप ऋण की दरों में वृद्धि होगी।
- यह उन निवेशकों को लाभान्वित करेगा, जो अपने धन को बैंक सावधि जमा में रखना पसंद करते हैं, क्योंकि रेपो दर में वृद्धि के बाद जमा दरों में वृद्धि होने की उम्मीद होती है।
- जमा दर में वृद्धि से अर्थव्यवस्था में ऋण की मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी और बैंकों को अतिरिक्त धन जुटाने में भी मदद मिलेगी।
तरलता:
- बैंकों के पास धन की उपलब्धता में सुधार करते हुए दरों में वृद्धि से प्रणालीगत तरलता में धीरे-धीरे गिरावट आएगी।
- प्रणाली में पर्याप्त तरलता बनाए रखने के लिये आरबीआई विभिन्न परिपक्वता के परिवर्तनीय रेपो दर (VRR) और परिवर्तनीय रिवर्स रेपो दर (VRRR) संचालन के रूप में दो-तरफा फाइन-ट्यूनिंग उपाय को अपनाएगा।
- परिवर्तनीय दर संचालन आमतौर पर प्रणाली में मौजूदा नकदी को निकालकर धन प्रवाह को कम करने के लिये किया जाता है।
- केंद्रीय बैंक, इस प्रणाली में अधिशेष चलनिधि को पुनर्संतुलित कर रहा है एवं निश्चित दर से इसे शीघ्र ही रिवर्स रेपो विंडो के माध्यम से लंबी परिपक्वता की VRRR नीलामियों में स्थानांतरित कर रहा है।
मौद्रिक नीति ढाँचा:
- उत्पत्ति:
- मई 2016 में आरबीआई अधिनियम में संशोधन किया गया था ताकि देश की मौद्रिक नीतिगत ढाँचे को संचालित करने के लिये केंद्रीय बैंक को विधायी अधिदेश प्रदान किया जा सके।
- उद्देश्य:
- ढाँचे का उद्देश्य वर्तमान और विकसित व्यापक आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर नीतिगत (रेपो) दर निर्धारित करना तथा रेपो दर पर या उसके आस-पास मुद्रा बाज़ार दरों को स्थिर करने के लिये तरलता में सुधार करना है।
- नीति दर के रूप में रेपो दर का कारण: रेपो दर में परिवर्तन मुद्रा बाज़ार के माध्यम से संपूर्ण वित्तीय प्रणाली में संचारित होता है, जो बदले में समग्र मांग को प्रभावित करता है।
- इस प्रकार यह मुद्रास्फीति और विकास का एक प्रमुख निर्धारक है।
मौद्रिक नीति समिति (MPC):
- उत्पत्ति: संशोधित (2016 में) आरबीआई अधिनियम, 1934 की धारा 45ZB के तहत केंद्र सरकार को छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) का गठन करने का अधिकार है।
- उद्देश्य: धारा 45ZB में कहा गया है कि "मौद्रिक नीति समिति मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये आवश्यक नीति दर निर्धारित करेगी"।
- मौद्रिक नीति समिति का निर्णय बैंको के लिये बाध्यकारी होगा।
- गठन: अधिनयम की धारा 45ZB के अनुसार MPC में 6 सदस्य होंगे:
- गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक के पदेन अध्यक्ष के रूप में,
- उप राज्यपाल, मौद्रिक नीति के प्रभारी के रूप में
- केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित किया जाने वाला बैंक का एक अधिकारी
- केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त तीन सदस्य।
- नियुक्तियों की यह श्रेणी "अर्थशास्त्र या बैंकिंग या वित्त या मौद्रिक नीति के क्षेत्र में ज्ञान और अनुभव रखने वाले सक्षम व्यक्तियों" से संबंधित होनी चाहिये।
मौद्रिक नीति के उपकरण:
- रेपो दर
- स्थायी जमा सुविधा (SDF) दर
- सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) दर
- चलनिधि समायोजन सुविधा (LAF)
- LAF कॉरिडोर
- मुख्य चलनिधि प्रबंधन उपकरण
- फाइन ट्यूनिंग संचालन
- रिवर्स रेपो रेट
- बैंक दर
- नकद आरक्षित अनुपात (CRR)
- वैधानिक तरलता अनुपात (SLR)
- ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO)
विस्तारवादी मौद्रिक नीति
- परिचय:
- विस्तारवादी मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति के विस्तार (बढ़ाने) पर केंद्रित है। इसे आसान मौद्रिक नीति के रूप में भी जाना जाता है।
- इसे प्रमुख ब्याज़ दरों को कम करके लागू किया जाता है जिससे बाज़ार की तरलता (मुद्रा आपूर्ति) बढ़ जाती है। उच्च बाज़ार तरलता आमतौर पर अधिक आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करती है।
- जब RBI विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाता है, तो यह रेपो, रिवर्स रेपो, MSF, बैंक दर आदि जैसी नीतिगत दरों (ब्याज़ दरों) को कम करता है।
- निहितार्थ
- बॉण्ड की कीमतों में वृद्धि और ब्याज़ दरों में कमी का कारण बनता है।
- कम ब्याज़ दरें पूंजी निवेश के उच्च स्तर की ओर ले जाती हैं।
- कम ब्याज़ दरें घरेलू बॉण्ड को कम आकर्षक बनाती हैं, इसलिये घरेलू बॉण्ड की मांग गिरती है और विदेशी बॉण्ड की मांग बढ़ जाती है।
- घरेलू मुद्रा की मांग गिरती है और विदेशी मुद्रा की मांग बढ़ती है, जिससे विनिमय दर में कमी आती है। (घरेलू मुद्रा का मूल्य अब विदेशी मुद्राओं की तुलना में कम है)
- कम विनिमय दर के कारण निर्यात बढ़ता है, आयात घटता है और व्यापार संतुलन बढ़ता है।
संकुचनकारी मौद्रिक नीति:
- परिचय:
- संकुचनकारी मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति को कम करने (घटाने) पर केंद्रित है। इसे कठोर मौद्रिक नीति के रूप में भी जाना जाता है।
- संकुचनकारी मौद्रिक नीति को प्रमुख ब्याज़ दरों में वृद्धि करके लागू किया जाता है जिससे बाज़ार की तरलता (मुद्रा आपूर्ति) कम हो जाती है। कम बाज़ार तरलता आमतौर पर उत्पादन और खपत को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। इसका आर्थिक विकास पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- जब RBI संकुचन मौद्रिक नीति अपनाता है, तो यह रेपो, रिवर्स रेपो, MSF, बैंक दर आदि जैसी नीतिगत दरों (ब्याज़ दरों) को बढ़ाता है।
- निहितार्थ:
- संकुचनशील मौद्रिक नीति बॉण्ड की कीमतों में कमी और ब्याज़ दरों में वृद्धि का कारण बनती है।
- उच्च ब्याज़ दरें पूंजी निवेश के निम्न स्तर की ओर ले जाती हैं।
- उच्च ब्याज़ दरें घरेलू बॉण्ड को अधिक आकर्षक बनाती हैं, इसलिये घरेलू बॉण्ड की मांग बढ़ती है और विदेशी बॉण्ड की मांग गिरती है।
- घरेलू मुद्रा की मांग बढ़ती है और विदेशी मुद्रा की मांग गिरती है, जिससे विनिमय दर में वृद्धि होती है। (घरेलू मुद्रा का मूल्य अब विदेशी मुद्राओं की तुलना में अधिक है)
- उच्च विनिमय दर के कारण निर्यात में कमी आती है, आयात में वृद्धि होती है और व्यापार संतुलन में कमी आती है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020) वैधानिक तरलता अनुपात में कटौती और अनुकूलन नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b)
प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2015) बैंक दर उपर्युक्त में से कौन सा/से मौद्रिक नीति का/के घटक है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c)
अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि स्थिर जीडीपी वृद्धि और कम मुद्रास्फीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अच्छी स्थिति में ला दिया है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (मुख्य परीक्षा- 2019) |
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
विश्व आदिवासी दिवस
प्रिलिम्स के लिये:अनुसूचित जनजाति, छठी अनुसूची, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, सरकारी पहल मेन्स के लिये :भारत के जनजातीय लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति पर राष्ट्रीय रिपोर्ट, सरकार की पहल |
चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस वैश्विक स्तर पर आदिवासी आबादी के अधिकारों की रक्षा एवं जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को मनाया जाता है।
- 9 अगस्त, 2018 को भारत के जनजातीय आबादी के स्वास्थ्य की स्थिति पर राष्ट्रीय रिपोर्ट जनजातीय स्वास्थ्य पर विशेषज्ञ समिति द्वारा भारत सरकार को प्रस्तुत की गई थी।
विश्व आदिवासी दिवस:
- परिचय:
- यह दिन वर्ष 1982 में जिनेवा में स्वदेशी आबादी पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक को मान्यता देता है।
- यह संयुक्त राष्ट्र की घोषणा के अनुसार वर्ष 1994 से हर वर्ष मनाया जाता है।
- आज भी कई स्वदेशी लोग अत्यधिक गरीबी, वंचन और अन्य मानवाधिकारों के उल्लंघन का अनुभव करते हैं।
- विषय:
- वर्ष 2022 के लिये इस दिवस की थीम "पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण और प्रसारण में स्वदेशी महिलाओं की भूमिका" (The Role of Indigenous Women in the Preservation and Transmission of Traditional Knowledge) है।
रिपोर्ट:
- परिचय:
- 13 सदस्यीय समिति का गठन संयुक्त रूप से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वार किया गया था।
- समिति को पर्याप्त आँकड़े एकत्र करने और देश के आदिवासी लोगों की स्थिति की सही तस्वीर पेश करने में पाँच वर्ष का समय लगा है।
- जाँच - परिणाम:
- भौगोलिक स्थिति:
- भारत में 809 खण्डों/ब्लाक में जनजातीय आबादी निवास करती है।
- ऐसे क्षेत्रों को अनुसूचित क्षेत्रों के रूप में नामित किया गया है।
- इस रिपोर्ट में अप्रत्याशित निष्कर्ष यह था कि भारत की 50% आदिवासी आबादी (लगभग 5.5 करोड़) अनुसूचित क्षेत्रों से बाहर, बिखरे हुए और हाशिये पर रहने वाले अल्पसंख्यक के रूप में है।
- स्वास्थ्य:
- पिछले 25 वर्षों के दौरान जनजातीय लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति में निश्चित रूप से सुधार हुआ है।
- मृत्यु दर:
- पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर वर्ष 1988 में 135 (प्रति 1000 मृत्यु) (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण NFHS-1) से घटकर वर्ष 2014 (NFHS-4) में 57 (प्रति 1000 मृत्यु) हो गई है।
- अन्य की तुलना में अनुसूचित जनजातियों में पाँच वर्ष से कम आयु के लोगों की मृत्यु दर का प्रतिशत बढ़ गया है।
- कुपोषण:
- आदिवासी बच्चों में बाल कुपोषण 50% अधिक है (अन्य में 28% की तुलना में 42%)।
- मलेरिया और क्षय रोग:
- सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल:
- जनजातीय लोग प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों जैसे सरकार द्वारा संचालित सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
- जनजातीय क्षेत्रों में ऐसी सुविधाओं की संख्या में 27% से 40% की कमी है और चिकित्सा क्षेत्र में डॉक्टरों में 33% से 84% की कमी है।
- जनजातीय लोगों के लिये सरकारी स्वास्थ्य देखभाल हेतु धन के साथ-साथ मानव संसाधनों का भी अभाव है।
- जनजातीय लोग प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों जैसे सरकार द्वारा संचालित सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
- जनजातीय उप-योजना (TSP) लेखांकन:
- यह राज्य में जनजातीय आबादी के प्रतिशत के बराबर अतिरिक्त वित्तीय परिव्यय आवंटित करने और खर्च करने की आधिकारिक नीति है।
- वर्ष 2015-16 के अनुमान के अनुसार आदिवासी स्वास्थ्य पर सालाना 15,000 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च किये जाने चाहिये।
- हालाँकि सभी राज्यों द्वारा इसका पूरी तरह से उल्लंघन किया गया है।
- नीति पर कोई लेखा-जोखा या जवाबदेही मौजूद नहीं है।
- कितना खर्च हुआ या नहीं हुआ यह कोई नहीं जानता।
- हालाँकि सभी राज्यों द्वारा इसका पूरी तरह से उल्लंघन किया गया है।
समिति की प्रमुख सिफारिशें:
- सबसे पहले समिति ने एक राष्ट्रीय जनजातीय स्वास्थ्य कार्ययोजना शुरू करने का सुझाव दिया, जिसका लक्ष्य अगले 10 वर्षों में स्वास्थ्य और स्वास्थ्य देखभाल को संबंधित राज्य के औसत के बराबर लाना है।
- दूसरा, समिति ने 10 प्राथमिकता वाली स्वास्थ्य समस्याओं, स्वास्थ्य देखभाल अंतराल, मानव संसाधन अंतराल और शासन समस्याओं के समाधान के लिये लगभग 80 उपायों का सुझाव दिया।
- तीसरा, समिति ने अतिरिक्त धन के आवंटन का सुझाव दिया ताकि आदिवासी लोगों पर प्रति व्यक्ति सरकारी स्वास्थ्य व्यय राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017) के घोषित लक्ष्य (यानी प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद का 2.5%) के बराबर हो जाए।
भारत सरकार द्वारा आदिवासी कल्याण हेतु उठाए कदम:
- अनामय
- 1000 स्प्रिंग्स पहल
- प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना (पीएमएएजीवाई)
- ट्राइफेड
- जनजातीय स्कूलों का डिजिटल परिवर्तन
- विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों का विकास
- प्रधानमंत्री वन धन योजना
- एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)भारत के संदर्भ में 'हाइबी, हो और कुई' शब्द निम्नलिखित से संबंधित हैं: (2021) (a) उत्तर-पश्चिम भारत के नृत्य रूप उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। भारत में विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूहों (PVTGs) के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। प्रश्न. आज़ादी के बाद से अनुसूचित जनजातियों (ST) के खिलाफ भेदभाव को दूर करने के लिये राज्य द्वारा दो प्रमुख कानूनी पहल क्या हैं? ( मुख्य परीक्षा, 2017) |