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भारतीय राजनीति

संविधान का अनुच्छेद 244(A)

  • 03 Apr 2021
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

असम में कुछ वर्गों द्वारा संविधान के अनुच्छेद 244A के प्रावधानों के तहत एक स्वायत्त राज्य की मांग उठाई जा रही है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि 

  • 1950 के दशक में अविभाजित असम की आदिवासी आबादी के कुछ वर्गों के बीच एक अलग पहाड़ी राज्य की मांग उठने लगी।
  • लंबे समय तक चले आंदोलन के बाद वर्ष 1972 में मेघालय को राज्य का दर्जा मिला।
  • कार्बी आंगलोंग और उत्तरी कछार पहाड़ियों के नेता भी इस आंदोलन का हिस्सा थे। उन्हें असम में रहने या मेघालय में शामिल होने का विकल्प दिया गया था।
  • हालाँकि वे असम में ही रहे क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा उन्हें अनुच्छेद 244(A) समेत कई अन्य शक्तियाँ देने का वादा किया गया था।
  • 1980 के दशक में अधिक शक्ति/स्वायत्तता की मांग ने कई कार्बी समूहों के बीच एक हिंसक आंदोलन का रूप ले लिया।
    • जल्द ही यह एक सशस्त्र अलगाववादी विद्रोह बन गया, जिसमें पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग की जाने लगी।

अनुच्छेद 244A

  • यह अनुच्छेद संसद को शक्ति प्रदान करता है कि वह विधि द्वारा असम के कुछ जनजातीय क्षेत्रों को मिलाकर एक स्वायत्त राज्य की स्थापना कर सकती है।
  • यह अनुच्छेद स्थानीय प्रशासन के लिये एक स्थानीय विधायिका या मंत्रिपरिषद अथवा दोनों की स्थापना की भी परिकल्पना करता है।
  • इस अनुच्छेद को 22वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1969 के माध्यम से संविधान में शामिल किया गया था।
  • अनुच्छेद 244A, भारतीय संविधान की छठी अनुसूची की तुलना में आदिवासी क्षेत्रों को अधिक स्वायत्त शक्तियाँ प्रदान करता है। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण शक्ति कानून व्यवस्था पर नियंत्रण से संबंधित है।
    • जबकि छठी अनुसूची के तहत स्वायत्त परिषद में आदिवासी क्षेत्रों के पास कानून व्यवस्था का अधिकार क्षेत्र नहीं है।

छठी अनुसूची

  • संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिये इन राज्यों में जनजातीय लोगों के अधिकारों की रक्षा का प्रावधान करती है। 
    • ये विशेष प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275(1) के तहत प्रदान किये गए हैं।
  • असम में डिमा हसाओ, कार्बी आंग्लोंग तथा पश्चिम कार्बी और बोडो प्रादेशिक क्षेत्र के पहाड़ी ज़िले इस प्रावधान के तहत शामिल हैं।
  • राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों के गठन और पुनर्गठन का अधिकार है। अतः राज्यपाल इनके क्षेत्रों को बढ़ा या घटा सकता है या इनका नाम परिवर्तित कर सकता है अथवा सीमाएँ निर्धारित कर सकता है। जहाँ एक ओर पाँचवीं अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्रों का प्रशासन संघ की कार्यकारी शक्तियों के अधीन आता है, वहीं छठी अनुसूची, राज्य सरकार की कार्यकारी शक्तियाँ के तहत आती हैं।
    • पाँचवीं अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अतिरिक्त किसी भी राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन एवं नियंत्रण से संबंधित है।
      • इस व्यवस्था के मुताबिक, एक राज्य में कार्यरत संपूर्ण सामान्य प्रशासनिक तंत्र, अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित नहीं होता है।
      • वर्तमान में 10 राज्य यथा- आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना को पाँचवीं अनुसूची के तहत शामिल किया गया है।
      • वहीं केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में जनजातीय क्षेत्रों को पाँचवीं या छठी अनुसूची के तहत नहीं लाया गया है।
  • स्वायत्त ज़िलों और स्वायत्त क्षेत्रों पर संसद या राज्य विधायिका के कानून लागू नहीं होते हैं अथवा कुछ निर्दिष्ट संशोधनों और अपवादों के साथ लागू होते हैं।
  • इन परिषदों को व्यापक नागरिक और आपराधिक न्यायिक शक्तियाँ भी प्रदान की गई हैं, उदाहरण के लिये ग्राम न्यायालय आदि की स्थापना। हालाँकि इन परिषदों का न्यायिक क्षेत्राधिकार संबंधित उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अधीन है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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