सामाजिक न्याय
भारत में सरकारी स्कूल
- 22 Apr 2022
- 12 min read
यह एडिटोरियल 21/04/2022 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित “We Must Revamp Schools As They Reopen After The Pandemic Break” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में सरकारी स्कूलों की स्थिति और इस संबंध में ASER 2021 के निष्कर्षों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
कोविड-19 महामारी के कारण लगभग दो वर्षों तक बंद रहने के बाद स्कूल अब धीरे-धीरे फिर से खुलने लगे हैं और बच्चों का स्कूल जाना शुरू हो गया है।
- हालाँकि स्कूल से लगभग दो वर्ष तक दूर रहने या बिना किसी शैक्षिक गतिविधियों के घर पर ही यह समय व्यतीत करने के बाद छात्रों के लिये पुनः विद्यालयों की ओर लौटना और विद्यालय के पठन-पाठन से सामंजस्य बिठाना कुछ चुनौतीपूर्ण होगा।
- इस परिदृश्य में शैक्षिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने के साथ-साथ अनुकूल कक्षा वातावरण—जो लंबे समय तक चिंता, तनाव और अलगाव झेलने वाले बच्चों के लिये पर्याप्त संवेदनशील हो, सुनिश्चित करने हेतु विद्यालय प्रबंधनों को तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
- भारत में सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने की हालिया प्रवृत्ति के आलोक में विद्यालयों के अनुकूल रूप से तैयार होने का प्रश्न और भी प्रासंगिक हो जाता है।
नामांकन परिदृश्य में हाल की प्रगति
- शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (Annual Status of Education Report- ASER), 2021 के अनुसार ग्रामीण भारत में वर्ष 2018 और वर्ष 2021 के बीच सभी ग्रेडों में और बालक-बालिकाओं, दोनों के मामले में, निजी स्कूलों के बजाय सरकारी स्कूलों में नामांकन की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है।
- यह वृद्धि निम्नतम ग्रेड में नामांकित बच्चों में सबसे अधिक उल्लेखनीय है।
- कक्षा I और II में बालिकाओं और बालकों दोनों के लिये सरकारी स्कूलों में नामांकन में वर्ष 2018 से वर्ष 2021 के बीच क्रमशः 9 प्रतिशत और 14.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
- समग्र रूप से 17 राज्यों में सरकारी स्कूलों में नामांकन में वृद्धि देखी गई।
- उत्तर प्रदेश और केरल चार्ट में सबसे ऊपर हैं जहाँ इस अवधि में सरकारी स्कूलों में नामांकन में क्रमशः 13.2 और 11.9 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।
- सरकारी स्कूलों की ओर वापस लौटने से एक दशक पुरानी प्रवृत्ति में बदलाव आया है, जिसमें सरकारी स्कूलों के बजाय निजी स्कूलों में नामांकन बढ़ता जा रहा था।
- उल्लेखनीय है कि समीक्षाधीन अवधि में नगालैंड और मणिपुर में सरकारी स्कूलों में नामांकन स्तर में 11.4 और 13.4 प्रतिशत की कमी देखी गई।
- हालाँकि ऐसा निजी स्कूलों में अधिक नामांकन के कारण नहीं हुआ है, बल्कि यह परिदृश्य उन बच्चों की बड़ी संख्या के कारण है जो वर्तमान में इन राज्यों में स्कूलों में नामांकित नहीं हैं। वर्ष 2018-21 में मणिपुर में इनकी संख्या 1.1% से बढ़कर 15.5% और नगालैंड में 1.8% से बढ़कर 19.6% हो गई।
- वर्ष 2021 में 6-14 आयु वर्ग के ऐसे बच्चों (जो वर्तमान में स्कूल में नामांकित नहीं हैं) के अनुपात में वर्ष 2018 के स्तर की तुलना में 2.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जहाँ आंध्र प्रदेश (7%), मणिपुर (15.5%), नगालैंड (19.6%) और तेलंगाना (11.8%) जैसे राज्यों में वर्ष 2018 की तुलना में वर्तमान गैर-नामांकित स्तरों में उच्च वृद्धि नज़र आई है।
सरकारी स्कूलों के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ
- ‘लर्निंग लेवल’ का संकट: ASER ने पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक के लिये ‘लर्निंग लेवल’ पर अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किये हैं जिससे पता चला है कि इन राज्यों में सीखने के स्तर में समस्या है। संभव है कि अन्य राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में भी यही स्थिति हो।
- पश्चिम बंगाल में सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा में नामांकित ऐसे बच्चों के अनुपात में गिरावट आई है जो-
- वर्णमाला के अक्षर पढ़ सकते हैं (वर्ष 2018 से 7 प्रतिशत की गिरावट और अब वर्ष 2014 के स्तर से भी नीचे)
- एकल अंकों को पढ़ सकते हैं (वर्ष 2018 के बाद से लगभग 10 प्रतिशत अंक की गिरावट)।
- छत्तीसगढ़ में कक्षा I के अक्षर पढ़ सकने वाले बच्चों के अनुपात में वर्ष 2018 के बाद से 8.3 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि कक्षा III के सरकारी-स्कूल के ऐसे छात्रों के अनुपात में 10 प्रतिशत अंक की गिरावट आई है जो गणित में घटाव की क्रिया कर सकने में सक्षम हों।
- पश्चिम बंगाल में सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा में नामांकित ऐसे बच्चों के अनुपात में गिरावट आई है जो-
- स्कूलों की बदतर अवसंरचना: शिक्षा के लिये एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (Unified District Information System for Education-UDISE), 2019-20 के आँकड़ों के अनुसार सभी सरकारी स्कूलों में से केवल 12% में इंटरनेट की सुविधा और केवल 30% में कंप्यूटर उपलब्ध थे।
- इनमें से लगभग 42% स्कूलों में फर्नीचर नहीं थे, 23% बिना बिजली के थे, 49% में हैंड-रेल नहीं थे, 22% में दिव्यांगों के लिये रैंप सुविधा नहीं थी और 15% में ‘WASH’ सुविधाओं (जिसमें पेयजल, शौचालय और हाथ धोने के बेसिन जैसी सुविधाएँ शामिल हैं) का अभाव था।
- स्कूल अवसंरचना की पहले से ही खराब स्थिति संभव है कि पिछले दो वर्षों में और खराब हो गई हो जब सरकारी स्कूल बंद रहे थे या उन्हें कोविड-पॉजिटिव रोगियों के अलगाव के लिये अस्थायी वार्ड के रूप में इस्तेमाल किया गया था।
- शिक्षकों की अपर्याप्त संख्या: महामारी से हुए व्यवधान ने शिक्षकों की चुनौतियों की ओर ध्यान दिलाया जो देश भर में स्कूली छात्रों को शैक्षिक और गैर-शैक्षिक सहायता प्रदान कर रहे थे।
- इस प्रकोप के पहले से भी भारत का शैक्षिक परिदृश्य शिक्षकों की भर्ती एवं प्रबंधन, शिक्षकों के प्रशिक्षण की अपर्याप्तता और शिक्षकों की कमी जैसी कई चुनौतियों से ग्रस्त रहा था।
- कोविड के कारण लर्निंग की हानि : कोविड-19 महामारी के कारण स्कूल सबसे अधिक समय तक बंद रहे संस्थानों में एक रहे और सरकारी स्कूलों के कई छात्र ऐसे परिवारों से थे जो ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने का सामर्थ्य नहीं रखते थे।
- परिणामस्वरूप जब स्कूल फिर से खुले तो ये बच्चे अपने पाठ्यक्रम को पूरा करने में पिछड़े हुए थे। इसने शिक्षकों के लिये सबसे बड़ी चुनौती उत्पन्न की।
- कक्षा I और II के एक तिहाई बच्चों ने अभी तक भौतिक रूप से क्लासरूम देखे भी नहीं हैं।
आगे की राह
- सरकारी स्कूलों में नामांकन का बढ़ता स्तर केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारों के लिये छात्रों का विद्यालय में बने रहना सुनिश्चित करने का अवसर प्रदान करता है।
- स्कूलों को उन बच्चों की पहचान करनी चाहिये जो शैक्षणिक रूप से पिछड़ रहे हैं और उनके पाठ पढ़ने, लिखने, अंकगणित और समझने के कौशल को अपनी गति से सुदृढ़ करने के लिये बुनियादी रिवीजन और ब्रिज कार्यक्रम चलाएँ।
- निपुण भारत (Nipun Bharat) पहल इस दिशा में एक आश्वस्तिकारक कदम है।
- स्कूलों को उन बच्चों की पहचान करनी चाहिये जो शैक्षणिक रूप से पिछड़ रहे हैं और उनके पाठ पढ़ने, लिखने, अंकगणित और समझने के कौशल को अपनी गति से सुदृढ़ करने के लिये बुनियादी रिवीजन और ब्रिज कार्यक्रम चलाएँ।
- समय की आवश्यकता है कि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी पर विशेष ध्यान देने के साथ स्कूल अवसंरचना में सुधार किया जाए। इसके साथ ही महामारी के जोखिमों को देखते हुए स्कूलों में ‘WASH’ सुविधाओं (कोविड रोकथाम उपायों सहित) का भी प्रबंध किया जाना चाहिये।
- भारत में सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी की स्थिति है। इन स्कूलों में निर्धारित छात्र-शिक्षक अनुपात को बनाए रखने के लिये इस अंतराल को भरा जाना आवश्यक है।
- बढ़े हुए नामांकनों के आलोक में शिक्षकों की उपलब्धता की वर्तमान स्थिति पर गंभीरता से विचार करना उचित होगा।
- छात्रों के एक वृहत वर्ग तक शिक्षा की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये स्कूलों, शिक्षकों और अभिभावकों के सहयोग से अकादमिक समय सारिणी का लचीला पुनर्निर्धारण होना चाहिये और अन्य विकल्पों की तलाश की जानी चाहिये।
- गरीब/वंचित समूह के छात्रों को प्राथमिकता देनी चाहिये जो ई-लर्निंग तक पहुँच नहीं रखते।
- एक संकट के समय सरकारी स्कूलों की ओर बढ़ता रुझान राज्य की भूमिका के बारे में लोगों की अपेक्षाओं का स्पष्ट संकेत देता है कि वह शिक्षा अधिकार की तरह प्रदान करे, न कि केवल किसी अन्य सेवा के रूप में।
- भारत में राज्य-संचालित स्कूली शिक्षा प्रणालियों के संबंध में विभिन्न हितधारकों (विशेषकर माता-पिता और बच्चों) की धारणाओं में सुधार के लिये राज्य और केंद्र स्तर पर सरकारों द्वारा अधिकाधिक प्रयास किये जाने चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: भारत में सरकारी स्कूलों के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियों की चर्चा कीजिये।