डेली न्यूज़ (10 Jul, 2023)



रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण


संसद सदस्य की सदस्यता समाप्ति

प्रिलिम्स के लिये:

संसद सदस्य, जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951, चुनाव आचरण नियम 4A, जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम के तहत भ्रष्ट आचरण

मेन्स के लिये:

संसद सदस्य की सदस्यता समाप्त करना

चर्चा में क्यों?  

मद्रास उच्च न्यायालय ने वर्ष 2019 के थेनी संसदीय क्षेत्र के विजेता संसद सदस्य (सांसद) की सदस्यता को शून्य घोषित कर दिया है।

  • हालाँकि, न्यायालय ने अपील के लिये समय प्रदान करने हेतु अपने आदेश को एक महीने के लिये स्थगित कर दिया है।

पृष्ठभूमि: 

  • आरोप: 
    • याचिकाकर्त्ता ने आरोप लगाया कि उक्त सांसद चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 4A के तहत दायर किये जाने वाले अपने चुनावी हलफनामे के फॉर्म 26 में अपनी वास्तविक संपत्ति और देनदारियों का खुलासा करने में विफल रहा है।
    • इसके अतिरिक्त, यह दावा किया गया कि उस प्रत्याशी ने जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 का उल्लंघन करते हुए वोटों के लिये नकदी के वितरण जैसे भ्रष्ट आचरण का सहारा लिया।
  • न्यायालय की टिप्पणी: 
    • उच्च न्यायालय ने पाया कि नामांकन की जाँच के लिये उत्तरदायी रिटर्निंग अधिकारी द्वारा जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम की धारा 36 और हैंडबुक में उल्लिखित निर्देशों का पालन नहीं किया गया।

चुनाव आचरण नियम, 1961: 

  • परिचय: 
    • चुनाव आचरण नियम, 1961 भारत में जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के तहत स्थापित नियमों का एक समूह है। इनमें देश में चुनावों के संचालन को नियंत्रित करते हैं और प्रत्याशीों, राजनीतिक दलों, चुनाव अधिकारियों तथा मतदाताओं द्वारा पालन किये जाने वाले दिशा-निर्देश तथा प्रक्रियाओं का वर्णन है।
    • इन नियमों में चुनावी प्रक्रिया के विभिन्न पहलु शामिल हैं, जिनमें नामांकन पत्र दाखिल करना, नामांकन की जाँच, चुनाव अभियान नियम, मतदान प्रक्रियाएँ, वोटों की गणना और चुनाव विवाद समाधान शामिल हैं।
  • नियम 4A: 
    • इसके तहत अपना नामांकन पत्र जमा करते समय प्रत्याशीों को उनकी संपत्ति और देनदारियों के बारे में कानूनी विवरण प्रदान करने के लिये एक हलफनामा (फॉर्म 26) रिटर्निंग ऑफिसर को देना अनिवार्य होता है।

जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के तहत भ्रष्ट आचरण: 

  • अधिनियम की धारा 123: 
    • RPA अधिनियम की धारा 123 के अनुसार, "भ्रष्ट आचरण" वह है जिसमें एक प्रत्याशी चुनाव जीतने की अपनी संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिये कुछ इस प्रकार की गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं, जिसके अंतर्गत रिश्वत, अनुचित प्रभाव, झूठी जानकारी, और धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर भारतीय नागरिकों के विभिन्न  वर्गों के बीच घृणा, "दुश्मनी की भावनाओं को बढ़ावा देना अथवा ऐसा प्रयास करना शामिल है।"
  • धारा 123(2): 
    • यह धारा 'अनुचित प्रभाव (undue influence)' से संबंधित है, जिसे "किसी भी चुनावी अधिकार के मुक्त अभ्यास के साथ प्रत्याशी (किसी परिस्थिति में प्रत्याशी द्वारा स्वयं अथवा कभी कभी उसके प्रतिनिधित्त्वकर्त्ताओं या संबद्ध व्यक्तियों) द्वारा किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप के रूप में परिभाषित किया गया है।"
    • इसमें चोटिल करने/हानि पहुँचाने, सामाजिक अस्थिरता और किसी भी जाति अथवा समुदाय से निष्कासन की धमकी भी शामिल हो सकती है।
  • धारा 123(4):
    • यह चुनाव परिणामों को प्रभावित करने वाली भ्रामक जानकारी के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाने हेतु "भ्रष्ट आचरण" की परिभाषा को और व्यापक बनाता है।
    • अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक निर्वाचित प्रतिनिधि को कुछ अपराधों हेतु जैसे- भ्रष्ट आचरण के आधार पर, चुनाव खर्च घोषित करने में विफल रहने पर और सरकारी अनुबंधों या कार्यों में संलग्न होने का दोषी ठहराए जाने पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है।

RPA, 1951 के अंतर्गत  सांसद की अयोग्यता के अन्य प्रावधान 

  • उसे किसी भी अपराध जिसमें  दो या अधिक वर्षों की कारावास की सज़ा हो, के लिये दोषी नहीं ठहराया गया होगा। लेकिन निवारक निरोध कानून के अंतर्गत किसी व्यक्ति की हिरासत अयोग्यता नहीं है।
  • उसकी  सरकारी ठेकों, कार्यों या सेवाओं में कोई रुचि नहीं होनी चाहिये।
  • वह निदेशक या प्रबंध एजेंट नहीं होना चाहिये और न ही उसे किसी ऐसे निगम में लाभ का पद धारण करना चाहिये जिसमें सरकार की कम से कम 25% हिस्सेदारी हो।
  • उसे भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति विश्वासघात के लिये सरकारी सेवा से बर्खास्त नहीं किया गया होगा।
  • उसे विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने या रिश्वतखोरी के अपराध के लिये दोषी नहीं ठहराया गया होगा।
  • ऐसा व्यक्ति जिसे अस्पृश्यता, दहेज और सती जैसे सामाजिक अपराधों का प्रचार करने तथा उसकी वकालत करने के लिये दंडित नहीं होना चाहिये।. 

अतीत में न्यायालय ने जिन प्रथाओं को भ्रष्ट आचरण के रूप में माना: 

  • अभिराम सिंह बनाम सी.डी. कॉमाचेन केस: 
    • वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने 'अभिराम सिंह बनाम सी.डी. कॉमाचेन मामले में माना कि धारा 123 (3) के अनुसार (जो इसे प्रतिबंधित करता है) अगर प्रत्याशी के धर्म, जाति, वंश, समुदाय या भाषा के नाम पर वोट मांगे जाते हैं तो चुनाव रद्द कर दिया जाएगा।
  • एस.आर बोम्मई बनाम भारत संघ (1994): 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने RPA, 1951 की धारा 123 की उपधारा (3) का हवाला देते हुए निर्णय सुनाया कि धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों में धर्म का अतिक्रमण कठोरता से प्रतिबंधित है।
  • एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य (2022): 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मुफ्त सुविधाओं के वादे को भ्रष्ट आचरण नहीं कहा जा सकता।
    • हालाँकि, इस मामले पर अभी भी निर्णय होना शेष है।

जन-प्रतिनिधित्त्व अधिनियम:1951 

  • प्रावधान: 
    • यह चुनाव के संचालन को विनियमित करता है।
    • यह सदनों की सदस्यता के लिये योग्यताओं और अयोग्यताओं को निर्दिष्ट करता है,
    • यह भ्रष्ट आचरण और अन्य अपराधों पर अंकुश लगाने के प्रावधान प्रदान करता है।
    • यह चुनावों से उत्पन्न होने वाले संदेहों और विवादों को निपटाने की प्रक्रिया निर्धारित करता है।
  • महत्त्व: 
    • यह अधिनियम भारतीय लोकतंत्र के सुचारू कार्यप्रणाली के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों के प्रतिनिधि निकायों में प्रवेश पर रोक लगाता है, इस प्रकार भारतीय राजनीति को अपराधमुक्त कर देता है।
    • अधिनियम के अनुसार प्रत्येक प्रत्याशी को अपनी संपत्ति और देनदारियों की घोषणा करने के साथ ही चुनावीं व्यय का लेखा-जोखा रखना होगा। यह प्रावधान सार्वजनिक धन के उपयोग या व्यक्तिगत लाभ के लिये शक्ति के दुरुपयोग में प्रत्याशी की जवाबदेही और पारदर्शिता को भी सुनिश्चित करता है।
    • यह बूथ कैप्चरिंग, रिश्वतखोरी या दुश्मनी को बढ़ावा देने आदि जैसी भ्रष्ट प्रथाओं पर रोक लगाता है, जो चुनावों की वैधता एवं स्वतंत्र और निष्पक्ष आचरण सुनिश्चित करता है जो किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की सफलता के लिये आवश्यक है।
    • अधिनियम में यह प्रावधान है कि केवल वे राजनीतिक दल जो  RPA अधिनियम, 1951 की धारा 29 A के अंर्तगत पंजीकृत हैं, चुनावी बाॅण्ड प्राप्त करने के पात्र हैं, इस प्रकार राजनीतिक फंडिंग के स्रोत का पता लगाने और चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये एक तंत्र प्रदान किया जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  d

प्रिलिम्स:

प्रश्न .1 निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021) 

  1. भारत में, ऐसा कोई कानून नहीं है जो प्रत्याशियों को किसी एक लोकसभा चुनाव में तीन निर्वाचन क्षेत्रों से लड़ने से रोकता है।
  2. 1991 के लोकसभा चुनाव में श्री देवीलाल ने तीन लोकसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था। 
  3. वर्तमान नियमों के अनुसार, यदि कोई प्रत्याशी किसी एक लोकसभा चुनाव में कई निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है, तो उसकी पार्टी को उन निर्वाचन क्षेत्रों के उप-चुनाव का खर्चा उठाना चाहिये जिन्हें उसने खाली किया है बशर्ते वह सभी निर्वाचन क्षेत्रों से विजयी हुआ हो ।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) 2 और 3 

उत्तर:(b) 

व्याख्या: 

  • वर्ष 1996 में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 में संशोधन करके लोकसभा और विधानसभा चुनावों में एक प्रत्याशी द्वारा लड़ी जा सकने वाली सीटों की संख्या को 'तीन' के स्थान पर 'दो' तक सीमित कर दिया गया।अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • वर्ष 1991 में श्री देवीलाल ने लोकसभा की तीन- सीकर, रोहतक और फ़िरोज़पुर सीटों से चुनाव लड़ा। अतः कथन 2 सही है।
  • जब भी कोई प्रत्याशी एक से अधिक सीटों से चुनाव लड़ता है तथा एक से अधिक जीतता है, तो प्रत्याशी को केवल एक ही सीट बनाये रखनी होती है, जिससे बाकी सीटों पर उपचुनाव कराना पड़ता है। इसका परिणाम यह होता है,कि
  • परिणामी रिक्ति के विरुद्ध उपचुनाव कराने के लिये सरकारी व्यय, सरकारी कर्मचारीयों और अन्य संसाधनों पर एक अपरिहार्य वित्तीय बोझ पड़ता। अतः कथन 3 सही नहीं है।

अत: विकल्प (B) सही उत्तर है।


मेन्स:

प्रश्न. लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद अथवा राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों के निर्णय की प्रक्रिया का विवेचन कीजिये। किन आधारों पर किसी निर्वाचित घोषित प्रत्याशी के निर्वाचन को शून्य घोषित किया जा सकता है? इस निर्णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष को कौन-सा उपचार उपलब्ध है? वाद विधियों का संदर्भ दीजिये। (2022) 

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया


मुंबई में TECC के साथ ताइवान ने भारत में उपस्थिति का विस्तार किया

प्रिलिम्स के लिये:

चीन-ताइवान संघर्ष, भारत-ताइवान संबंध, वन चाइना पॉलिसी

मेन्स के लिये:

भारत-ताइवान संबंध, भारत-ताइवान आर्थिक संबंधों में चुनौतियाँ और अवसर, भू-राजनीतिक निहितार्थ

चर्चा में क्यों ?  

हाल ही में, ताइवान ने भारत में, विशेष रूप से मुंबई में, अपना तीसरा प्रतिनिधि ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र (Taipei Economic and Cultural Center TECC) खोलने की योजना की घोषणा की है।

  • TECC की स्थापना संबंधी पहल का उद्देश्य ताइवान और भारत के बीच आर्थिक संबंधों को बढ़ाना और द्विपक्षीय सहयोग को मज़बूत करना है।
  •  पहली बार TECC की स्थापना वर्ष 1995 में दक्षिण एशिया में नई दिल्ली, भारत में की गई थी। ताइवान ने बाद में वर्ष 2012 में चेन्नई में एक और TECC खोला।

चीन की प्रतिक्रिया और भू-राजनीतिक निहितार्थ:

  • चीन अन्य देशों द्वारा ताइवान के किसी भी आधिकारिक संपर्क या मान्यता का विरोध करता है, यह कहते हुए कि यह ‘वन चाइना पॉलिसीका उल्लंघन करता है।
  • चीन नए कार्यालय के उद्घाटन पर आपत्ति व्यक्त करके और राजनयिक या आर्थिक उपाय अपनाकर प्रतिक्रिया दे सकता है।
  • ताइवान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने के उसके प्रयासों को देखते हुए, भारत और ताइवान के बीच विकसित होते संबंध चीन के लिये एक संवेदनशील मुद्दा बना रहा है।
  • हालाँकि, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन और भारत के बीच मौजूदा तनाव को देखते हुए, चीन आगे बढ़ने से बचने के लिये संयमित रह सकता है।

ताइवान के साथ भारत के संबंध:

  • कूटनीतिक संबंध: 
    • भारत और ताइवान के बीच औपचारिक कूटनीतिक संबंध नहीं हैं लेकिन वर्ष 1995 से दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की राजधानियों में प्रतिनिधि कार्यालय को स्थापित किया हैं जो वास्तविक दूतावासों के रूप में कार्य करते हैं। भारत ने “एक चीन नीति” का समर्थन किया है।
  • आर्थिक संबंध: 
    • वर्ष 2019 में व्यापार संबंध 7.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो वर्ष 2000 में 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आसपास था।
    • वर्ष 2018 में भारत और ताइवान ने द्विपक्षीय निवेश समझौते पर हस्ताक्षर किये।
    • भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स, निर्माण, पेट्रोकेमिकल्स, मशीन, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तथा ऑटो पार्ट्स के क्षेत्र में लगभग 200 ताइवानी कंपनियाँ कार्यरत हैं।
    • ताइवान भारत में सेमीकंडक्टर विनिर्माण केंद्र बनाने पर सहयोग प्रदान करेगा।
  • सांस्कृतिक संबंध: 
    • वर्ष 2010 में उच्च शिक्षा में पारस्परिक डिग्री मान्यता समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद दोनों पक्षों ने शैक्षिक आदान-प्रदान का भी विस्तार किया है।
  • अवसर: 
    • प्रौद्योगिकी और नवाचार सहयोग:  
      • अनुसंधान एवं विकास और उद्यमिता में ताइवान की विशेषज्ञता भारत की प्रतिभा संपन्न आबादी और डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिये सहायक हो सकती है, जिससे उभरती प्रौद्योगिकियों में सहयोग को बढ़ावा मिल सकता है।
      • ताइवान विश्व के 60% से अधिक अर्द्धचालक और 90% से अधिक सबसे उन्नत अर्द्धचालकों का उत्पादन करता है। 
    • क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा:  
      • ताइवान और भारत एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र का दृष्टिकोण साझा करते हैं, यह समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी पहलों एवं आपदा प्रबंधन पर सहयोग के अवसर प्रदान करता है।
  • चुनौतियाँ: 
    • वन चाइना पाॅलिसी:  
      • वन चाइना नीति का पालन करने के कारण भारत के लिये को ताइवान के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों से होने वाले लाभों का दोहन सरल नहीं है।
    • आर्थिक सहयोग में बाधाएँ:  
      • सांस्कृतिक और प्रशासनिक बाधाओं तथा घरेलू उत्पादकों के भारत पर दबाव के बावज़ूद ताइवान ने निवेश में वृद्धि की है।

स्रोत: द हिंदू


भारत-पकिस्तान जलविद्युत परियोजना को लेकर मतभेद

प्रिलिम्स के लिये:

मध्यस्थता न्यायालय, सिंधु जल संधि, स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA), विश्व बैंक

मेन्स के लिये:

सिंधु जल संधि और कार्यान्वयन संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?  

भारत जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं पर कार्य कर रहा है, हाल ही में हेग(Hague) स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (Permanent Court of Arbitration- PCA) ने फैसला किया है कि उसके पास इस परियोजना से संबंधित पाकिस्तान की आपत्तियों/शिकायतें सुनने का अधिकार है।

  • हालाँकि, "मध्यस्थता न्यायालय" के संविधान को सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty- IWT) के प्रावधानों के खिलाफ मानते हुए भारत इसे अस्वीकार करता है। 

सिंधु जल संधि:  

  • परिचय: 
    • भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षों की बातचीत के बाद सितंबर 1960 में IWT (जल साझाकरण संधि) पर हस्ताक्षर किये, जिसमें विश्व बैंक भी इस संधि का हस्ताक्षरकर्त्ता था।
    • यह संधि सिंधु नदी और उसकी पाँच सहायक नदियों सतलज, ब्यास, रावी, झेलम और चिनाब के जल के उपयोग पर दोनों पक्षों के बीच सहयोग तथा सूचना के आदान-प्रदान के लिये एक तंत्र निर्धारित करती है।
    • इस संधि का उद्देश्य भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पार जल संसाधनों के सहयोग तथा शांतिपूर्ण प्रबंधन को बढ़ावा देना है।          
  • नदियों का आवंटन: 
    • इस संधि के तहत, तीन पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास और सतलज) को अप्रतिबंधित उपयोग के लिये भारत को आवंटित किया गया है।
    • पाकिस्तान के अप्रतिबंधित उपयोग के लिये तीन पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम और चिनाब) आवंटित की गई हैं।
    • भारत के पास घरेलू, गैर-उपभोग्य और कृषि उद्देश्यों के लिये पश्चिमी नदियों के सीमित उपयोग की अनुमति है।

मुख्य प्रावधान: 

  • परियोजना निर्माण:  
    • इस संधि के तहत कुछ शर्तों के साथ भारत को पश्चिमी नदियों पर रन-ऑफ-द-रिवर जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण की अनुमति है।
  • विवाद निपटान:  
    • स्थायी सिंधु आयोग के माध्यम से संवाद (Permanent Indus Commission- PIC): 
      • इस आयोग में प्रत्येक देश का एक आयुक्त होता है।
      • इसके सदस्य देश एक-दूसरे को सिंधु नदी पर नियोजित परियोजनाओं के बारे में सूचित करते हैं।
      • PIC आवश्यक सूचनाओं के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करता है।
      • इसका उद्देश्य मतभेदों को दूर करना और तनाव को बढ़ने से रोकना है। 
    • तटस्थता कार्य विशेषज्ञ: 
      • यदि PIC किसी समस्या को हल करने में विफल रहता है, तो इस समस्या को अगले स्तर पर भेज दिया जाता है।
      • विश्व बैंक एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति करता है।
      • यह विशेषज्ञ मतभेदों को सुलझाने का प्रयास करता है। 
    • मध्यस्थता न्यायालय (CoA): 
      • यदि उस मामले का निपटान तटस्थ विशेषज्ञ द्वारा भी नहीं हो पाता है फिर मामले को मध्यस्थता न्यायालय में भेज दिया जाता है।
      • CoA मध्यस्थता के माध्यम से विवाद का समाधान करती है।
      • सिंधु जल संधि में स्पष्ट है कि किसी दिये गए विवाद के लिये तटस्थ विशेषज्ञ और CoA में से एक समय में केवल एक का ही उपयोग किया जा सकता है। 

भारत और पाकिस्तान के बीच जल-विद्युत परियोजना विवाद:

  • जल-विद्युत परियोजनाएँ:   
    •  इस मामले में भारत और पाकिस्तान के बीच किशनगंगा जल-विद्युत परियोजना (झेलम नदी की सहायक नदी किशनगंगा नदी पर) और जम्मू-कश्मीर में रतले जल-विद्युत परियोजना (चिनाब नदी पर) को लेकर विवाद शामिल है।
      • दोनों देश इस बात पर असहमत हैं कि क्या इन दोनों जल-विद्युत संयंत्रों की तकनीकी डिजाइन विशेषताएँ IWT का उल्लंघन करती हैं।
  • पाकिस्तान की आपत्तियाँ:  
    • पाकिस्तान IWT के उल्लंघन में कम जल प्रवाह, पर्यावरणीय प्रभाव तथा विभिन्न संधि व्याख्याओं के बारे में चिंताओं का हवाला देते हुए जल-विद्युत परियोजनाओं पर आपत्ति जताता है।
    • वर्ष 2016 में पाकिस्तान ने एक तटस्थ विशेषज्ञ का अपना अनुरोध वापस ले लिया साथ ही इसके स्थान पर एक CoA का प्रस्ताव रखा।
    • भारत ने इस प्रक्रिया में इसके महत्त्व पर ज़ोर देते हुए वर्ष 2016 में एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति का अनुरोध किया, जिसे पाकिस्तान ने नजरअंदाज करने की कोशिश की।
  • विश्व बैंक का हस्तक्षेप:  
    • विश्व बैंक ने भारत और पाकिस्तान के अलग-अलग अनुरोधों के कारण प्रक्रिया पर रोक लगा दी, जिसमें PIC के माध्यम से समाधान का आग्रह किया गया था।
    • पाकिस्तान ने PIC बैठकों के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा करने से अस्वीकृत कर दिया, जिसके कारण विश्व बैंक को तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता न्यायालय पर कार्रवाई प्रारंभ करनी पड़ी।
      • यह संधि विश्व बैंक को यह निर्णय लेने का अधिकार नहीं देती है कि एक प्रक्रिया को दूसरी प्रक्रिया से अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिये या नहीं।
      • विश्व बैंक ने CoA और तटस्थ विशेषज्ञ दोनों के संबंध में अपने प्रक्रियात्मक दायित्वों को पूरा करने की मांग की।
  • भारत का विरोध:  
    • भारत, सिंधु-जल संधि प्रावधानों के उल्लंघन का हवाला देते हुए CoA के संविधान का विरोध करता है।
    • भारत ने CoA के अधिकार क्षेत्र और क्षमता पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि इसका गठन संधि के अनुसार नहीं किया गया था।
    • भारत ने एकल विवाद समाधान प्रक्रिया की आवश्यकता पर बल देते हुए मध्यस्थों की नियुक्ति नहीं की है या न्यायालय की कार्यवाही में भाग नहीं लिया है।

स्थायी मध्यस्थता न्यायालय का निर्णय

  • निर्णय: 
    • PCA ने निर्णय दिया कि मध्यस्थता न्यायालय (CoA) के पास जम्मू-कश्मीर में भारत की जल-विद्युत परियोजनाओं के संबंध में पाकिस्तान की आपत्तियों पर विचार करने की क्षमता है।
    • यह सर्वसम्मत निर्णय पर आधारित था, जो दोनों पक्षों के लिये बाध्यकारी था साथ ही  इसमें अपील की कोई संभावना भी नहीं थी।
    • PCA ने CoA की क्षमता पर भारत की आपत्तियों को अस्वीकृत कर दिया, जैसा कि विश्व बैंक के साथ उसके संचार माध्यम से उठाया गया था।
  • भारत की प्रतिक्रिया: 
    • भारत ने स्पष्ट किया कि वह PCA में पाकिस्तान द्वारा प्रारंभ की गई कार्यवाही में शामिल नहीं होगा क्योंकि IWT के ढाँचे के अंर्तगत विवाद की जाँच पहले से ही एक तटस्थ विशेषज्ञ द्वारा की जा रही है।
  • निहितार्थ: 
    • PCA का निर्णय जल-विद्युत परियोजनाओं को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे विवाद में जटिलता तथा अनिश्चितता में वृद्धि करता है।
    • यह फैसला भारत की स्थिति को चुनौती देता है और IWT की प्रभावशीलता और विवेचना  पर सवाल उठाता है।
    • निर्णय के निहितार्थ विशिष्ट विवाद से परे हैं, जो संभावित रूप से भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों विशेष रूप से जल-बँटवारे और सहयोग से संबंधितको प्रभावित कर रहे हैं

स्थायी मध्यस्थता न्यायालय 

  • इसकी स्थापना वर्ष 1899 में हुई थी और इसका मुख्यालय द हेग, नीदरलैंड में है।
  • उद्देश्य: यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जो विवाद समाधान के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सेवा करने और राज्यों के बीच मध्यस्थता तथा विवाद समाधान के अन्य रूपों को सुविधाजनक बनाने के लिये समर्पित है।
  • इसकी तीन-भागीय संगठनात्मक संरचना है जिसमें शामिल हैं:
    • प्रशासनिक परिषद - अपनी नीतियों और बजट की देखरेख के लिये,
    • न्यायालय के सदस्य - स्वतंत्र संभावित मध्यस्थों का एक पैनल, और
    • अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो - इसका सचिवालय, जिसका नेतृत्त्व महासचिव करता है
  • निधि: इसका एक वित्तीय सहायता कोष है जिसका उद्देश्य विकासशील देशों को अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता या PCA द्वारा प्रस्तावित विवाद निपटान के अन्य तरीकों में शामिल लागतों का हिस्सा पूर्ण करने में सहायता करना है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. सिंधु नदी प्रणाली के संदर्भ में, निम्नलिखित चार नदियों में से तीन नदियाँ इनमें से किसी एक नदी में मिलती है जो सीधे सिंधु नदी में मिलती है। निम्नलिखित में से वह नदी कौन सी है जो सिंधु नदी से  मिलती है? (2021) 

(a) चेनाब 
(b) झेलम 
(c) रावी
(d) सतलज  

उत्तर : (d) 

व्याख्या : 

  • झेलम पाकिस्तान में झांग के पास चिनाब में मिलती है। रावी सराय सिधू के निकट चिनाब में मिल जाती है।
  • सतलुज पाकिस्तान में चिनाब से मिलती है। इस प्रकार, सतलज को रावी, चिनाब और झेलम नदियों का सामूहिक जल निकास प्राप्त होता है। यह मिथनकोट के पास सिंधु में मिलती है।

अतः विकल्प (D) सही उत्तर है।


मेन्स: 

प्रश्न . सिंधु जल संधि का विवरण प्रस्तुत कीजिये तथा बदलते द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में उसके पारिस्थितिक, आर्थिक एवं राजनीतिक निहितार्थों का परीक्षण कीजिये।(2016) 

 स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


राष्ट्रगान के सम्मान की रक्षा

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 51(A), राष्ट्रगान का इतिहास और विकास, राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय प्रतीकों की रोकथाम, राष्ट्रगान का सम्मान और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

चर्चा में क्यों ?  

हाल ही में श्रीनगर में कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने एक कार्यक्रम जहाँ जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मौजूद थे ,में राष्ट्रगान के लिये खड़े नहीं होने के आरोप में 11 लोगों को हिरासत में लेने के बाद कारावास भेज दिया।

  • उन्होंने आदेश में कहा गया है कि "इस बात की पूरी संभावना है कि रिहा होने पर वे शांति भंग करने उल्लंघन करेंगे और सार्वजनिक शांति भी भंग कर सकते हैं"।
  • उन्हें CRPC की धारा 107/151 के अंतर्गत अच्छे व्यवहार के लिये बाध्य ("बाउंड डाउन") किया गया था।

नोट:  

  • कानूनी शब्दों में, "बाउंड डाउन" का अर्थ है किसी निश्चित तारीख पर जाँच अधिकारी या न्यायालय के सामने उपस्थित होना आवश्यक है।
  • अभियुक्त न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिये ज़मानत या व्यक्तिगत गारंटी से बाध्य है।

कार्यकारी मजिस्ट्रेट 

  • CRPC, मजिस्ट्रेट को 2 प्रकारों में वर्गीकृत करता है- कार्यकारी मजिस्ट्रेट और न्यायिक मजिस्ट्रेट। CRPC की धारा 3(4) दोनों के बीच बेहतर संबंधों को लागू करती है।
  • एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट (EM), कार्यकारी शाखा का एक अधिकारी होता है जिसके पास भारतीय दंड संहिता (IPC) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CRPC) दोनों केअंतर्गत शक्तियाँ होती हैं।
  • EM की नियुक्ति राज्य सरकारों द्वारा की जाती है, और वे मुख्य रूप से कानून तथा व्यवस्था बनाए रखने एवं पुलिस और प्रशासनिक कार्य करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
    • दूसरी ओर, न्यायिक मजिस्ट्रेट सज़ा/जुर्माना/हिरासत का फैसला सुनाते हैं और जाँच की प्रक्रिया में साक्ष्यों की जाँच करते हैं।
    • साथ ही, न्यायिक मजिस्ट्रेट उच्च न्यायालयों के सीधे नियंत्रण में होते हैं।
  • EM कभी-कभी न्यायालयों  के रूप में कार्य करते हैं जब वे शांति और व्यवस्था बनाए रखने (CRPC धारा.107) के संबंध में जाँच (CRPC धारा.116) करते समय न्यायिक प्रकृति के अनुरूप  कार्य करते हैं।

CRPC की धारा 107 और धारा 151 

  • धारा 107: धारा 107 के अनुसार, एक EM यह अनुरोध कर सकता है कि कोई व्यक्ति यह कारण प्रदर्शित करे कि उन्हें अधिकतम एक वर्ष के लिये शांति बनाए रखने के लिये बांड पर हस्ताक्षर करने की आवश्यकता क्यों नहीं होनी चाहिये, यदि EM को जानकारी है कि व्यक्ति ने अशांति फैलाई है (या इसकी संभावना है) या सार्वजनिक शांति को भंग किया है ।
    •  कोई भी EM ऐसी कार्रवाई कर सकता है, बशर्ते कोई एक (यदि दोनों नहीं) उसके अधिकार क्षेत्र से संबद्द हो:
      • वह स्थान जहाँ इस प्रकार की शांति भंग होने की संभावना हो
      • वह व्यक्ति जिससे शांति भंग होने की संभावना हो
  • धारा 151:  यह संज्ञेय अपराधों को घटित होने से रोकने के लिये गिरफ्तारी का प्रावधान करता है।
    • यह एक पुलिस अधिकारी को अधिकृत करता है जिसे ऐसे किसी अपराध को करने की योजना बना रहे कुछ व्यक्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है, तब उन्हें वारंट या मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना ही गिरफ्तार करने का अधिकार प्राप्त है।
    • हालाँकि, उन्हें 24 घंटे से अधिक समय तक के लिये हिरासत में नहीं रखा जा सकता जब तक कि अगले आदेश (या किसी अन्य कानून) में ऐसा प्रावधान न किया गया हो।

भारत का राष्ट्रगान:

  • परिचय: 
  •  मूल स्रोत:  
    • टैगोर ने 27 दिसंबर, 1911 को कलकत्ता में कांग्रेस के सत्र में पहली बार राष्ट्रगान प्रस्तुत किया।
    • वर्ष 1941 में इसे फिर से सुभाष चंद्र बोस द्वारा प्रस्तुत किया गया लेकिन उन्होंने मूल गीत से थोड़ा अलग संस्करण अपनाया, जिसे 'शुभ सुख चैन' कहा गया।
  • विकास और अंगीकरण:  
    • टैगोर ने पहला गान बंगाली में 'भरोतो भाग्यो बिधाता' लिखा था जिसे बाद में संपादित किया गया तथा 'जन गण मन' के रूप में अनुवादित किया गया।
    • 24 जनवरी, 1950 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा इसे राष्ट्रगान के रूप में अपनाने की घोषणा की गई।

राष्ट्रगान के सम्मान की रक्षा के लिये सुरक्षा उपाय: 

  • अनुच्छेद 51 (A):  
    •  यह भारत के नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का भाग है।
    • संविधान के मूल्यों और संस्थानों के साथ-साथ राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी प्रत्येक भारतीय नागरिक की है
  • राष्ट्रीय गौरव के अपमान की रोकथाम (PINH) अधिनियम,1971:  
    • अधिनियम में प्रावधान किया गया कि राष्ट्रगान का अपमान करने और उसके प्रतिबंधों को तोड़ने पर कठोर सजा दी जाएगी।
    • आरोपी को 3 वर्ष तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।
  • राष्ट्रगान आचार संहिता:  
    • इसमें यह प्रावधान है कि जब भी राष्ट्रगान गाया या बजाया जाएगा, तो दर्शक सावधान मुद्रा खड़े रहेंगे
      • हालाँकि, जब किसी न्यूज़रील या वृत्तचित्र के दौरान फिल्म के एक भाग के रूप में राष्ट्रगान बजाया जाता है, तो दर्शकों से खड़े होने की उम्मीद नहीं की जाती है।
    • इसमें उन अवसरों को भी सूचीबद्ध किया गया है जहाँ राष्ट्रगान का संक्षिप्त या पूर्ण संस्करण ही बजाया जाएगा।

राष्ट्रगान के सम्मान के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: 

  • बिजो इमैनुएल और अन्य बनाम केरल राज्य (1986): 
    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में राष्ट्रगान के कथित अनादर से संबंधित कानून निर्धारित किया गया था।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने ईसाई संप्रदाय के 3 बच्चों को सुरक्षा प्रदान की, न्यायालय का यह मानना था कि राष्ट्रगान गाने के लिये बच्चों को मज़बूर करना उनके धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 25) का उल्लंघन है।
      • उन बच्चों के माता-पिता ने केरल उच्च न्यायालय में अपील की कि ईसाई धर्म के यहोवा के साक्षी संप्रदाय में केवल यहोवा (ईश्वर का हिब्रू नाम) की आराधना की अनुमति है। उनका कहना था कि चूँकि राष्ट्रगान एक प्रार्थना है, वे सम्मान में खड़े तो हो सकते थे, लेकिन गा नहीं सकते थे।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सम्मानपूर्वक खड़ा होना और खुद न गाना न तो किसी को राष्ट्रगान गाने से रोकता है और न ही गाने के लिये एकत्रित हुए लोगों को किसी भी प्रकार की परेशान करता है। अतः यह राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम (Prevention of Insults to National Honour- PINH) अधिनियम 1971 के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आता है।
  • श्याम नारायण चौकसी बनाम भारत संघ (2018):  
    • वर्ष 2016 में इसी मामले की सुनवाई करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश पारित किया था जिसमें सभी भारतीय सिनेमाघरों को फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य था और हॉल में मौजूद सभी लोगों के लिये खड़े हो कर इसका सम्मान करना अनिवार्य था।
    • हालाँकि, जनवरी 2018 में मामले पर अपने अंतिम फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में संशोधन करते हुए कहा कि सिनेमा हॉल में फीचर फिल्मों की स्क्रीनिंग से पहले राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नहीं है, बल्कि वैकल्पिक है"। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. आंध्र प्रदेश में मदनपल्ली के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है? (2021) 

(a) पिंगलि वेंकैया ने यहाँ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का डिजाइन किया।
(b) पट्टाभि सीतारमैया ने यहाँ से आंध्र क्षेत्र में भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्त्व किया।
(c) रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यहाँ राष्ट्रगान का बांगला से अंग्रेजी में अनुवाद किया।
(d) मैडम ब्लावात्स्की और कर्नल ओलकोट ने सबसे पहले यहाँ थियोसोफिकल सोसायटी का मुख्यालय स्थापित किया। 

उत्तर: (c)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


ज़िलों का प्रदर्शन क्रम निर्धारण सूचकांक और PGI 2.0

प्रिलिम्स के लिये:

जिलों का प्रदर्शन क्रम सूचकांक, एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली प्लस (UDISE+), NAS, दक्ष और उत्कर्ष, NEP 2020

मेन्स के लिये:

ज़िलों का प्रदर्शन क्रम सूचकांक

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने वर्ष 2020-21 और वर्ष 2021-22 के लिये ज़िलों के प्रदर्शन क्रम निर्धारण सूचकांक (PGI-D) पर संयुक्त रिपोर्ट जारी की

  • शिक्षा मंत्रालय ने वर्ष 2021-22 के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों हेतु प्रदर्शन क्रम निर्धारण सूचकांक (PGI) 2.0 पर एक रिपोर्ट भी जारी की है।

ज़िलों का प्रदर्शन क्रम निर्धारण सूचकांक (Performance Grading Index for Districts (PGI-D);

  • परिचय: 
    • PGI-D एक व्यापक विश्लेषण के उद्देश्य से एक सूचकांक तैयार कर ज़िला स्तर पर स्कूली शिक्षा प्रणाली के प्रदर्शन का आकलन करता है
    • PGI-D द्वरा एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली प्लस (UDISE+), नेशनल अचीवमेंट सर्वे (NAS), 2017 और संबंधित ज़िलों द्वारा उपलब्ध कराए गए डेटा सहित विभिन्न स्रोतों से एकत्र किये गए आँकड़ों के आधार पर स्कूली शिक्षा में ज़िला-स्तरीय प्रदर्शन का आकलन किया गया।
      • वर्ष 2017-18 से, शिक्षा मंत्रालय ने अब तक पाँच वार्षिक रिपोर्ट जारी की हैं जो राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में स्कूली शिक्षा की स्थिति पर जानकारी प्रदान करती हैं। 
  • क्रम: 
    • इस रिपोर्ट में 10 क्रम हैं जिनके अंतर्गत ज़िलों को वर्गीकृत किया गया है:
      • दक्ष: उच्चतम (90% से उपर) 
      • उत्कर्ष: 81% से 90% 
      • अति-उत्तम: 71%से 80% 
      • उत्तम: 61% से 70% 
      • प्रचेष्टा-1: 51% से 60% 
      • प्रचेष्टा-2: 41% से 50% 
      • प्रचेष्टा-3: 31% से 40% 
      • आकांक्षी-1: 21% से 30% 
      • आकांक्षी-2: 11% से 20% 
      • आकांक्षी-3: न्यूनतम (10% से कम) 
  • संकेतक: 
    • PGI-D संरचना में 600 अंकों के कुल भारांक वाले 83 संकेतक शामिल होते हैं, जिन्हें 6 श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है, जैसे परिणाम, प्रभावी कक्षा, बुनियादी ढाँचा सुविधाएँ और छात्र के अधिकार, स्कूल सुरक्षा तथा बाल संरक्षण, डिजिटल लर्निंग एवं शासन प्रक्रिया। 
  • महत्त्व: 
    • PGI-D रिपोर्ट की सहायता से राज्य शिक्षा विभागों द्वारा ज़िला स्तर पर कमियों की पहचान करने और विकेंद्रीकृत तरीके से प्रदर्शन में सुधार करने में सहायता मिलने की अपेक्षा है।
    • हस्तक्षेप क्षेत्रों को प्राथमिकता देकर विभिन्न ज़िले उच्चतम क्रम तक पहुँचने और समग्र शिक्षा गुणवत्ता को बढ़ाने की दिशा में काम कर सकते हैं।

रिपोर्ट की मुख्य बिंदु:

  • ज़िले के प्रदर्शन पर महामारी का प्रभाव: 
    • कोई भी ज़िला शीर्ष दो ग्रेड (दक्ष और उत्कर्ष) प्राप्त करने में सक्षम नहीं था।
    • अति-उत्तम के रूप में वर्गीकृत ज़िलों की संख्या वर्ष 2020-21 में 121 से घटकर वर्ष 2021-22 में 51 हो गई, जो शैक्षिक प्रदर्शन पर महामारी के प्रभाव को दर्शाता है।
      • वर्ष 2020-21 और वर्ष 2021-22 दोनों में विभिन्न राज्यों के कई ज़िलों को अति-उत्तम के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जिसमें आंध्र प्रदेश के कृष्णा और गुंटूर, चंडीगढ़, दादरा नगर हवेली, दिल्ली, कर्नाटक, केरल, ओडिशा आदि राज्यों के ज़िले समाहित थे।
  • ग्रेड में परिवर्तन: 
    • वर्ष 2021-22 में, प्रचेष्टा-2 (छठी-उच्चतम श्रेणी) के रूप में वर्गीकृत ज़िलों की संख्या वर्ष 2020-21 में 86 से बढ़कर 117 हो गई।
    • इससे जानकारी प्राप्त होती है कि कई ज़िलों को महामारी के कारण हुए व्यवधानों के कारण अपना प्रदर्शन बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

 PGI 2.O 

  • परिचय PGI: PGI राज्य/केंद्रशासित प्रदेश स्तर पर स्कूल शिक्षा प्रणाली के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिये MoE द्वारा तैयार किया गया एक व्यापक मूल्यांकन उपकरण है।
    • यह विभिन्न संकेतकों के आधार पर प्रदर्शन का मूल्यांकन करता है और साथ ही व्यापक विश्लेषण के लिये एक सूचकांक तैयार करता है
    • PGI को पहली बार वर्ष 2017-18 के लिये जारी किया गया था और इसे वर्ष 2020-21 में अद्यतन किया गया है।

  • संशोधित संरचना: PGI को वर्ष 2021-22 के लिये संशोधित किया गया और इसका नाम बदलकर PGI 2.0 कर दिया गया। नई संरचना में 73 संकेतक शामिल हैं जिन्हें दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है:  
    • परिणाम और शासन प्रबंधन (GM), गुणात्मक मूल्यांकन, डिजिटल पहल और शिक्षक शिक्षा पर अधिक बल दिया जाता है।
  • श्रेणियाँ और डोमेन: PGI 2.0 को छह डोमेन में बाँटा गया है:
    • अधिगम  परिणाम (LO), पहुँच (A), बुनियादी ढाँचे और सुविधाएँ (IF), इक्विटी (E), शासन प्रक्रिया (GP), और शिक्षक शिक्षा तथा प्रशिक्षण (TE & T)। ये डोमेन शिक्षा प्रणाली के विभिन्न पहलुओं को शामिल करते हैं।
  • ग्रेडिंग प्रणाली: राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को संकेतकों में उनके अंकों के आधार पर ग्रेड दिये जाते हैं।
    • ग्रेड उच्चतम दक्ष (941-1000) से लेकर निम्नतम आकांक्षी-3 (401-460) तक हैं। 
  • जाँच - परिणाम:
    • नवीनतम संस्करण में किसी भी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश ने शीर्ष ग्रेड हासिल नहीं किया।
    • केवल दो राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों, अर्थात् पंजाब और चंडीगढ़ ने ग्रेड प्रचेष्टा-2 (स्कोर 641-700) प्राप्त किया है।
    • आंध्र प्रदेश ने PGI 2.0 में ग्रेड 8 (श्रेणी: आकांक्षी-1) हासिल किया है।
    • आंध्र प्रदेश ने वर्ष 2017-18 में कोई ग्रेड नहीं होने से लेकर 901 के स्कोर के साथ स्तर  II हासिल करने तक पिछले कुछ वर्षों में अपने ग्रेड में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।

स्कूली शिक्षा से संबंधित सरकारी पहल 

 स्रोत : पी.आई.बी


जठरांत्र माइक्रोबायोम्स पर माइक्रोप्लास्टिक्स का प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

जठरांत्र माइक्रोबायोम्स, FAO, माइक्रोप्लास्टिक्स, डिस्बिओसिस पर माइक्रोप्लास्टिक्स का प्रभाव।

मेन्स के लिये

मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर माइक्रोप्लास्टिक का प्रभाव।

चर्चा में क्यों? 

वर्तमान में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने अपनी रिपोर्ट "मानव स्वास्थ्य पर माइक्रोप्लास्टिक्स और नैनोप्लास्टिक्स का प्रभाव" में बताया कि माइक्रोप्लास्टिक्स तथा नैनो प्लास्टिक मानव एवं पशु जठरांत्र माइक्रोबायोम के साथ-साथ पर्यावरण पर भी काफी प्रभाव डालते हैं।

जठरांत्र माइक्रोबायोम:

  • जठरांत्र माइक्रोबायोम गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट (GIT) में मौजूद सूक्ष्मजीवों, बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोजोआ और कवक तथा उनकी सामूहिक आनुवंशिक सामग्री की समग्रता है।
  • जठरांत्र माइक्रोबायोटा पोषक तत्वों और खनिज अवशोषण, एंजाइमों, विटामिन और अमीनो एसिड के संश्लेषण तथा शॉर्ट-चेन फैटी एसिड (SCFAs) के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • माइक्रोबायोम पर्यावरण में सभी सूक्ष्मजीवों से जीनोम के संग्रह को संदर्भित करता है जबकि माइक्रोबायोटा आमतौर पर सूक्ष्मजीवों को संदर्भित करता है जो एक विशिष्ट वातावरण में पाए जाते हैं।

रिपोर्ट की मुख्य बिंदु:

  • जठरांत्र सूजन और डिस्बिओसिस: 
    • प्लास्टिक के संपर्क में आने से जठरांत्रों में सूजन और जठरांत्र डिस्बिओसिस हो रहा है - इनके मुख्य कारक जठरांत्र माइक्रोबायोम और माइक्रोबायोटा में परिवर्तन है।
    • माइक्रोप्लास्टिक्स तनाव कारक के रूप में कार्य करते हैं तथा बीमार व्यक्ति में सूजन संबंधी प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करते हैं, जिससे कुछ सूक्ष्मजीव प्रभावित होते हैं और परिणामस्वरूप माइक्रोबियल डिस्बिओसिस से ग्रसित होता है।
      • डिस्बिओसिस को जीवाणु संरचना में असंतुलन, जीवाणु चयापचय गतिविधियों में परिवर्तन, या जठरांत्र के भीतर जीवाणु वितरण में परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • मानव शरीर में निक्षेपण: 
    • पानी की बोतलों,चीनी, शहद, समुद्री नमक, चाय और अन्य खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक्स अंततः मानव फेफड़ों के ऊतकों, प्लेसेंटा, मल, रक्त और मेकोनियम में एकत्रित हो जाते हैं।
  • पर्यावरण के साथ प्लास्टिक का अंतर्संबंध: 
    • हाइड्रोफोबिक प्रकृति के प्लास्टिक पर्यावरण से हाइड्रोफोबिक रसायनों या लगातार कार्बनिक प्रदूषकों (उदाहरण के लिये, पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल, पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन तथा  डाइक्लोरो डिफेनिल ट्राइक्लोरोइथेन) को सोख सकते हैं।
  • जीव एवं चयापचय पर प्रभाव: 
    • जठरांत्र में माइक्रोप्लास्टिक का संचय, बलगम की परत और जठरांत्र की पारगम्यता में परिवर्तन, म्यूकोसल संरचना में परिवर्तन, ऑक्सीडेटिव तनाव तथा प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया आदि प्रभाव समाहित हैं।
    • माइक्रोप्लास्टिक के भौतिक घर्षण के साथ जठरांत्र में इसके संचय से जीव में तृप्ति हो सकती है और यहाँ तक कि ये भोजनके पाचन को भी कम कर सकते है।
    • यह अंततः वजन घटाने और चयापचय परिवर्तन का कारण बन सकता है इसके अतिरिक्त ये यकृत और चयापचय प्रकिया को भी प्रभावित कर सकता है।
    • प्रभाव की गंभीरता माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता इसके कणों के आकार के समानुपाती होती है।

इस खोज का महत्त्व: 

  • यह रिपोर्ट जठरांत्र माइक्रोबायोम और मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले माइक्रोप्लास्टिक्स तथा नैनोप्लास्टिक्स के महत्त्वपूर्ण प्रभाव को रेखांकित करती है।
  • प्रभावी शमन रणनीतियों को विकसित करने के लिये जठरांत्र माइक्रोबायोम और पर्यावरण पर इस प्रकार के प्लास्टिक के संपर्क में आने से पड़ने वाले के प्रभावों को समझना महत्त्वपूर्ण है।

माइक्रोप्लास्टिक्स 

  • परिचय: 
    • ये पाँच मिलीमीटर से कम व्यास वाले प्लास्टिक हैं, इसे ऐसा समझ सकते हैं कि ये आभूषणों में उपयोग किये जाने वाले मानक मोती के व्यास से भी छोटे होते हैं। यह हमारे समुद्र और जलीय जीवन के लिये हानिकारक हो सकता है।
      • सौर पराबैंगनी विकिरण, वायु, धाराओं और अन्य प्राकृतिक कारकों के प्रभाव में ये प्लास्टिक के टुकड़े छोटे कणों में बदल जाते हैं, जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक्स (5 मि.मी. से छोटे कण) अथवा नैनोप्लास्टिक्स (100 नैनोमीटर से छोटे कण) कहा जाता है।
    • माइक्रोप्लास्टिक की दो श्रेणियाँ हैं: प्राथमिक और द्वितीयक। 
  • वर्गीकरण: 
    • प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक्स: ये व्यावसायिक उपयोग के लिये डिज़ाइन किये गए छोटे कण हैं, कपड़ों और अन्य वस्त्रों से निकलने वाले माइक्रोफाइबर इसके अंतर्गत आते हैं।
      • उदाहरण के लिये व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों, प्लास्टिक छर्रों और प्लास्टिक फाइबर में पाए जाने वाले माइक्रोबीड्स।
    • द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक्स: ये पानी की बोतलों जैसे बड़े प्लास्टिक के विखंडन से बनते हैं।
      • यह पर्यावरणीय कारकों, मुख्य रूप से सूर्य के विकिरण और समुद्री लहरों के संपर्क के कारण होता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. पर्यावरण में मुक्त हो जाने वाली सूक्ष्म कणिकाओं (माइक्रोबीड्स) के विषय में अत्यधिक चिंता क्यों है? (2019) 

(a) ये समुद्री पारितंत्रों के लिये हानिकारक मानी जाती हैं।
(b) ये बच्चों में त्वचा कैंसर का कारण मानी जाती हैं।
(c) ये इतनी छोटी होती हैं कि सिंचित क्षेत्रों में फसल पादपों द्वारा अवशोषित हो जाती हैं।
(d) अक्सर इनका इस्तेमाल खाद्य पदार्थों में मिलावट के लिये किया जाता है।

उत्तर: (a) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ