शासन व्यवस्था
‘पाक बे’ योजना और समुद्री मत्स्य पालन विधेयक
प्रिलिम्स के लिये:‘पाक बे’ योजना, ब्लू रेवोल्यूशन स्कीम, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना मेन्स के लिये:मत्स्य पालन से संबंधित चुनौतियाँ और सरकार द्वारा इस संबंध में किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ‘पाक बे’ योजना (Palk Bay Scheme) के तहत गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाले जहाज़ों की इकाई लागत को 80 लाख रुपए से बढ़ाकर 1.3 करोड़ रुपए करने पर विचार कर रही है, ताकि इसे मछुआरों के लिये और अधिक आकर्षक बनाया जा सके।
- इससे पहले समुद्री मत्स्य पालन विधेयक 2021 को मानसून सत्र के दौरान संसद में पेश किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- ‘पाक बे’ योजना के विषय में:
- ‘डायवर्सिफिकेशन ऑफ ट्राउल फिशिंग बोट्स फ्रॉम पाक स्ट्रेट्स इनटू डीप सी फिशिंग बोट्स’ नामक यह योजना वर्ष 2017 में ‘केंद्र प्रायोजित योजना’ के तौर पर लॉन्च की गई थी।
- इसे ‘ब्लू रेवोल्यूशन स्कीम’ के हिस्से के रूप में लॉन्च किया गया था।
- ‘ब्लू रेवोल्यूशन स्कीम’ किसानों की आय को दोगुना करने हेतु एक संबद्ध गतिविधि के रूप में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयासों का हिस्सा है।
- यह तमिलनाडु-विशिष्ट योजना है, जिसका उद्देश्य राज्य के मछुआरों को तीन वर्ष में 2,000 जहाज़ उपलब्ध कराना और उन्हें ‘बॉटम ट्रालिंग’ छोड़ने के लिये प्रेरित करना है।
- ‘बॉटम ट्रॉलिंग’ पारिस्थितिक रूप से एक विनाशकारी गतिविधि है, जिसमें ट्रॉलर समुद्र तल में जाल बिछाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप जलीय संसाधनों की भारी नुकसान होता है।
- इस योजना का एक अन्य उद्देश्य ‘अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा’ (IMBL) के आसपास ‘मत्स्य पालन के दबाव को कम करना’ है, ताकि तमिलनाडु के मछुआरे ‘अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा’ को पार करते हुए श्रीलंकाई जल में न चले जाएँ।
- योजना का फंडिंग पैटर्न: केंद्र सरकार- 50%, राज्य सरकार- 20%, संस्थागत वित्तपोषण- 10% और लाभार्थी- 20% है।
- अब तक यह योजना केवल 80 लाख रुपए की लागत वाले जहाज़ों तक सीमित थी, किंतु अब इसे बढ़ा दिया गया है।
- यह योजना ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’ का हिस्सा नहीं है।
- समुद्री मत्स्य पालन विधेयक:
- इस विधेयक में ‘मर्चेंट शिपिंग एक्ट, 1958’ के तहत पंजीकृत जहाज़ों को ‘अनन्य आर्थिक क्षेत्र’ (EEZ) में मछली पकड़ने के लिये लाइसेंस देने का प्रस्ताव शामिल है।
- यह विधेयक मछुआरों के लिये बिना लाइसेंस के ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र’ नियमों का उल्लंघन करने, भारतीय तटरक्षक बल (ICG) के आदेशों का पालन न करने और तटरक्षक बल की गतिविधियों को बाधित करने के लिये दंड का भी प्रावधान करता है।
- यह विधेयक भारतीय ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र’ में मछली पकड़ने वाले विदेशी जहाज़ों पर रोक लगाता है, इस प्रकार यह भारतीय ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र’ का राष्ट्रीयकरण करता है।
- यह मत्स्य पालन क्षेत्र में संलग्न श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान करता है और चरम मौसम की घटनाओं के दौरान समुद्र में जीवन की सुरक्षा का आह्वान करता है।
समुद्री क्षेत्र
- ‘यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी’ (UNCLOS) के तहत समुद्री जल और समुद्र तल में संसाधनों को तीन क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है- आंतरिक जल (IW), प्रादेशिक सागर (TS) और अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ)।
- आंतरिक जल (IW) का आशय बेसलाइन के भू-भाग वाले हिस्से में मौजूद जल निकायों से है, इसमें खाड़ी और छोटे खंड शामिल हैं।
- प्रादेशिक सागर (TS) बेसलाइन से 12 समुद्री मील तक फैला होता है, जहाँ हवाई क्षेत्र, समुद्र, समुद्र तल और भूमि तथा सभी जीवित एवं निर्जीव संसाधनों पर एक राष्ट्र की संप्रभुता होती है।
- ‘अनन्य आर्थिक क्षेत्र’ बेसलाइन से 200 नॉटिकल मील तक फैला होता है। वर्तमान में राष्ट्रों के पास इस क्षेत्र में सभी प्राकृतिक संसाधनों की खोज, दोहन, संरक्षण और प्रबंधन के लिये संप्रभु अधिकार हैं।
- चूँकि मत्स्य पालन राज्य का विषय है, इसलिये आंतरिक जल और प्रादेशिक सागर में मछली पकड़ना संबंधित राज्यों के दायरे में आता है।
- अन्य गतिविधियाँ जैसे- अनन्य आर्थिक क्षेत्र में मछली पकड़ना आदि संघ सूची में शामिल हैं।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग
प्रिलिम्स के लिये:सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग मेन्स के लिये:सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग का महत्त्व, मापदंड और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत के सॉवरेन रेटिंग आउटलुक को "नकारात्मक" से "स्थिर" में बदल दिया है और देश की रेटिंग "Baa3" की पुष्टि की है।
- "Baa3" रेटिंग सबसे कम निवेश ग्रेड है, जो जंक स्टेटस से एक पायदान ऊपर है।
प्रमुख बिंदु
- सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग (SCR):
- SCR किसी देश या सॉवरेन संस्था की साख का एक स्वतंत्र मूल्यांकन है।
- यह निवेशकों को राजनीतिक जोखिम सहित किसी विशेष देश के ऋण में निवेश से जुड़े जोखिम के स्तर के संबंध में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती है।
- सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग की भूमिका विदेशी ऋण बाज़ारों में बाॅण्ड जारी करने के अलावा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को आकर्षित करने में महत्त्वपूर्ण है।
- किसी देश के अनुरोध पर एक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इसके आर्थिक और राजनीतिक वातावरण का मूल्यांकन करके इसे रेटिंग प्रदान करती है।
- मूडीज एक Baa3 या उच्चतर रेटिंग को निवेश ग्रेड का मानता है और Ba1 तथा उससे नीचे की रेटिंग को "जंक" ग्रेड माना जाता है।
- S&P उन देशों को BBB या उच्च रेटिंग देता है जिन्हें वह निवेश ग्रेड मानता है, और BB+ या उससे कम के ग्रेड को "जंक" ग्रेड माना जाता है।
- SCR पर आर्थिक सर्वेक्षण का दृष्टिकोण:
- वर्ष 2000-20 की अवधि के दौरान विभिन्न मापदंडों पर भारत के प्रदर्शन की तुलना में भारत को लगातार उम्मीद से कम रेटिंग प्रदान की गई।
- जीडीपी विकास दर, मुद्रास्फीति, सामान्य सरकारी ऋण, राजनीतिक स्थिरता, कानून का शासन, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, निवेशक संरक्षण, व्यापार करने में आसानी, सॉवरेन डिफाॅल्ट इतिहास आदि जैसे कई मापदंडों पर भारत स्पष्ट रूप प्रदान की गई रेटिंग से साम्य नहीं रखता।
- भारत की भुगतान करने की क्षमता का आकलन न केवल सॉवरेन के बेहद कम विदेशी मुद्रा-मूल्यवर्ग के ऋण से किया जा सकता है, बल्कि इसके विदेशी मुद्रा भंडार के सुविधाजनक आकार से भी किया जा सकता है जो निजी क्षेत्र के अल्पकालिक ऋण के साथ ही सॉवरेन और गैर-सॉवरेन विदेशी ऋण के पूरे स्टॉक का भुगतान कर सकता है।
- भारत की राजकोषीय नीति को "पक्षपातपूर्ण और व्यक्तिपरक" सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग द्वारा नियंत्रित होने के बजाय विकास और विकास के विचारों द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिये।
- इसने सिफारिश की कि विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को भविष्य में संकटों को और बढ़ने से रोकने के लिये सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग पद्धति में निहित इस पूर्वाग्रह एवं व्यक्तिपरकता को दूर करने के लिये एक साथ आना चाहिये।
- वर्ष 2000-20 की अवधि के दौरान विभिन्न मापदंडों पर भारत के प्रदर्शन की तुलना में भारत को लगातार उम्मीद से कम रेटिंग प्रदान की गई।
क्रेडिट रेटिंग
- सामान्य शब्दों में एक क्रेडिट रेटिंग किसी विशेष ऋण या वित्तीय दायित्व के संबंध में एक उधारकर्त्ता की साख का मात्रात्मक मूल्यांकन है।
- एक क्रेडिट रेटिंग व्यक्ति, निगम, राज्य या प्रांतीय प्राधिकरण या सॉवरेन सरकार किसी भी इकाई को संदर्भित कर सकती है जो पैसे उधार लेना चाहती है।
- रेटिंग एजेंसी एक ऐसी कंपनी है जो कंपनियों और सरकारी संस्थाओं की वित्तीय क्षमता का आकलन करती है, विशेष रूप से उनके ऋणों पर मूलधन और ब्याज भुगतान को पूरा करने की क्षमता।
- फिच रेटिंग्स, मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस और स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (एसएंडपी) तीन बड़ी अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ हैं, जो वैश्विक रेटिंग कारोबार के लगभग 95% को नियंत्रित करती हैं।
- भारत में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के तहत पंजीकृत छह क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ- क्रिसिल, आईसीआरए, केयर, एसएमईआरए, फिच इंडिया और ब्रिकवर्क रेटिंग हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत के लिये विश्व बैंक का जीडीपी अनुमान
प्रिलिम्स के लिये:विश्व बैंक, मानव पूंजी सूचकांक, विश्व विकास रिपोर्ट मेन्स के लिये:कोविड-19 के प्रभावों से अर्थव्यवस्था रिकवरी और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
विश्व बैंक के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था दक्षिण एशिया में सबसे अधिक वृद्धि के साथ वित्तीय वर्ष 2021-22 में 8.3% से बढ़ने की उम्मीद है।
- दक्षिण एशिया आर्थिक फोकस रिपोर्ट 2021 और 2022 में इस क्षेत्र के 7.1% बढ़ने का अनुमान है। यह हाल के आर्थिक विकास एवं दक्षिण एशिया के लिये एक निकट अवधि आर्थिक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने वाला एक द्विवार्षिक आर्थिक अद्यतन है।
- विश्व बैंक की अन्य प्रमुख रिपोर्टों में मानव पूंजी सूचकांक, विश्व विकास रिपोर्ट शामिल हैं। हाल ही में इसने 'डूइंग बिज़नेस रिपोर्ट' का प्रकाशन बंद करने का फैसला लिया है।
प्रमुख बिंदु
- GDP वृद्धि:
- अनुमानित वृद्धि (8.3%) घरेलू मांग को बढ़ाने के लिये सार्वजनिक निवेश में वृद्धि और विनिर्माण को बढ़ावा देने हेतु उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीआईएल) जैसी योजनाओं द्वारा समर्थित है।
- भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वित्तीय वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून तिमाही) में “बेस इफेक्ट, घरेलू मांग में सीमित कमी और मज़बूत निर्यात वृद्धि" की पृष्ठभूमि में 20.1% की वृद्धि हुई।
- वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में देशव्यापी कोरोनावायरस लॉकडाउन के कारण भारत की जीडीपी में 24.4% की कमी आई।
- विश्व बैंक ने यह भी देखा कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था में व्यवधान पहली की तुलना में सीमित था।
- आर्थिक रिकवरी:
- भारत में विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक सुधार असमान रहा है।
- विनिर्माण और निर्माण क्षेत्रों में 2021 में तेज़ी से सुधार हुआ लेकिन कम कुशल व्यक्ति, स्वरोज़गार वाले लोग, महिलाएँ और छोटी फर्मों में सीमित वृद्धि देखी गई।
- वित्तीय वर्ष 2021-22 में रिकवरी की सीमा इस बात पर निर्भर करेगी कि घरेलू आय में कितनी तेज़ी से वृद्धि होती है और अनौपचारिक क्षेत्र एवं छोटी फर्मों में गतिविधियाँ कब तक सामान्य होती हैं।
- भारत के आर्थिक क्षेत्र में सुधार की संभावनाओं का निर्धारण कोविड-19 के खिलाफ टीकाकरण की गति और कृषि एवं श्रम सुधारों के सफल कार्यान्वयन से होगा।
- बेस इफेक्ट:
- आर्थिक डेटा जैसे 'जीडीपी विकास दर' की गणना साल-दर-साल की जाती है।
- इस प्रकार पिछले वर्ष की कम विकास दर चालू वर्ष में सीमित आधार प्रदान करती है।
- संबद्ध जोखिम:
- वसूली की सीमा से जुड़े जोखिमों में शामिल हैं- वित्तीय क्षेत्र में अत्यधिक तनाव, टीकाकरण की धीमी गति, उच्च मुद्रास्फीति, मौद्रिक-नीति समर्थन आदि।
- सुझाव:
- मध्यम अवधि की वृद्धि:
- कोविड-19 जैसे संकट से सबक लेकर मध्यम अवधि के विकास के बारे में नीतियों पर पुनर्विचार शुरू करने का समय आ गया है।
- यह सामाजिक सुरक्षा बनाए रखना और हरित नीतियों को अपनाने का समय है, क्योंकि अगला झटका पर्यावरण से हो सकता है।
- असमानता को कम करने के लिये अनौपचारिक क्षेत्र व महिलाओं को अर्थव्यवस्था में एकीकृत करना बहुत ज़रूरी है। यह भी मध्यम अवधि की विकास रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व होना चाहिये।
- नियामक प्रयोग की आवश्यकता:
- बैंक ने दक्षिण एशियाई देशों से सेवा क्षेत्र में प्रवेश बाधाओं को कम करने का आह्वान किया, ताकि ‘नई एकाधिकार शक्तियों के उद्भव’ पर अंकुश लगाते हुए अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा; श्रम बाज़ार की गतिशीलता एवं कौशल उन्नयन के साथ हाउसहोल्ड व फर्मों द्वारा इन नई सेवाओं को सक्षम किया जा सके।
- मध्यम अवधि की वृद्धि:
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजव्यवस्था
EWS कोटा
प्रिलिम्स के लिये:EWS कोटा एवं संबंधित संविधान संशोधन और अनुच्छेद मेन्स के लिये:EWS कोटा से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने (SC) ने सार्वजनिक नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10% कोटा प्रदान करने के लिये आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) की पहचान करने हेतु वार्षिक आय सीमा के रूप में 8 लाख रुपए तय करने में सरकार द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया है।
प्रमुख बिंदु
- EWS के बारे में:
- 10% EWS कोटा 103वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करके पेश किया गया था।
- इससे संविधान में अनुच्छेद 15 (6) और अनुच्छेद 16 (6) सम्मिलित किया गया।
- यह आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) हेतु शिक्षा संस्थानों में नौकरियों और प्रवेश में आर्थिक आरक्षण के लिये है।
- यह अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) तथा सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिये 50% आरक्षण नीति द्वारा कवर नहीं किये गए गरीबों के कल्याण को बढ़ावा देने हेतु अधिनियमित किया गया था।
- यह केंद्र और राज्यों दोनों को समाज के EWS को आरक्षण प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
- 10% EWS कोटा 103वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करके पेश किया गया था।
- महत्त्व:
- असमानता को संबोधित करता है:
- 10% कोटे का विचार प्रगतिशील है और भारत में शैक्षिक तथा आय असमानता के मुद्दों को संबोधित कर सकता है क्योंकि नागरिकों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को उनकी वित्तीय अक्षमता के कारण उच्च शिक्षण संस्थानों एवं सार्वजनिक रोज़गार में भाग लेने से बाहर रखा गया है।
- आर्थिक पिछड़ों को मान्यता:
- पिछड़े वर्ग के अलावा बहुत से लोग या वर्ग हैं जो भूख और गरीबी की परिस्थितियों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
- संवैधानिक संशोधन के माध्यम से प्रस्तावित आरक्षण उच्च जातियों के गरीबों को संवैधानिक मान्यता प्रदान करेगा।
- जाति आधारित भेदभाव में कमी:
- इसके अलावा यह धीरे-धीरे आरक्षण से जुड़े कलंक को हटा देगा क्योंकि आरक्षण का ऐतिहासिक रूप से जाति से संबंध रहा है और अक्सर उच्च जाति उन लोगों को देखती है जो आरक्षण के माध्यम से आते हैं।
- असमानता को संबोधित करता है:
- चिंताएँ:
- डेटा की अनुपलब्धता:
- EWS कोटे में उद्देश्य और कारण के बारे में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि नागरिकों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को आर्थिक रूप से अधिक विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्तियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये उनकी वित्तीय अक्षमता के कारण उच्च शिक्षण संस्थानों व सार्वजनिक रोज़गार में भाग लेने से बाहर रखा गया है।
- इस प्रकार के तथ्य संदिग्ध हैं क्योंकि सरकार ने इस बात का समर्थन करने के लिये कोई डेटा तैयार नहीं किया है।
- आरक्षण की सीमा का उल्लंघन:
- वर्ष 1992 के इंदिरा साहनी मामले में नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आरक्षण की 50% की सीमा तय की थी।
- EWS कोटा इस मुद्दे को ध्यान में रखे बिना इस सीमा का उल्लंघन करता है।
- मनमाना मानदंड:
- इस आरक्षण हेतु पात्रता तय करने के लिये सरकार द्वारा उपयोग किये जाने वाले मानदंड अस्पष्ट हैं और यह किसी डेटा या अध्ययन पर आधारित नहीं है।
- यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार से सवाल किया कि क्या राज्यों ने EWS आरक्षण देने के लिये मौद्रिक सीमा तय करते समय हर राज्य के लिये प्रति व्यक्ति जीडीपी की जाँच की है।
- आँकड़े बताते हैं कि भारत के राज्यों में प्रति व्यक्ति आय व्यापक रूप से भिन्न है - जैसे सबसे अधिक गोवा की प्रति व्यक्ति आय 4 लाख है तो वहीं बिहार की प्रति व्यक्ति आय 40,000 रुपए है।
- डेटा की अनुपलब्धता:
आगे की राह
- आरक्षण EWS को छोड़कर सभी श्रेणियों को उनके लिये उपलब्ध प्रतिस्पर्द्धी पूल को कम करके प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। आनुभविक रूप से यह उचित नहीं लगता क्योंकि EWS के उम्मीदवारों का पहले से ही उच्च शिक्षण संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व है।
- अब समय आ गया है कि भारतीय राजनीतिक वर्ग द्वारा चुनावी लाभ के लिये आरक्षण के दायरे का लगातार विस्तार किये जाने की प्रवृत्ति को रोका जाए और यह महसूस किया जाने लगा है कि आरक्षण सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का रामबाण इलाज नहीं है।
- विभिन्न मानदंडों के आधार पर आरक्षण देने के बजाय सरकार को शिक्षा की गुणवत्ता और अन्य प्रभावी सामाजिक उत्थान के उपायों पर ध्यान देना चाहिये। इससे उद्यमिता की भावना पैदा होगी जो उन्हें नौकरी तलाशने के बजाय नौकरी देने वाले की स्थिति प्रदान करेगा।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
एयर इंडिया विनिवेश
प्रिलिम्स के लिये:निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग मेन्स के लिये:रणनीतिक निवेश की आवश्यकता, महत्त्व और चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने ‘एयर इंडिया’ (AI) में भारत सरकार की शत-प्रतिशत इक्विटी हिस्सेदारी की बिक्री (विनिवेश) के लिये ‘टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड’ की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी ‘टैलेस प्राइवेट लिमिटेड’ की सबसे उच्चतम मूल्य बोली को मंज़ूरी दे दी है।
- ‘एयर इंडिया’ में टाटा की 100% हिस्सेदारी होगी, साथ ही इसकी अंतर्राष्ट्रीय शाखा- एयर इंडिया एक्सप्रेस में 100% और ग्राउंड हैंडलिंग संयुक्त उद्यम- ‘AI SATS’ में 50% की हिस्सेदारी होगी।
प्रमुख बिंदु
- विनिवेश का कारण
- यह आशा की जाती है कि ‘एयर इंडिया’ के निजीकरण से इसके संचालन एवं लागत को सुव्यवस्थित किया जा सकेगा, साथ ही इससे यात्रियों के लिये सेवाओं में सुधार होगा और वाई-फाई जैसी बुनियादी सेवाएँ भी उपलब्ध कराई जा सकेंगी।
- भारत में एक मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय वाहक के रूप में एयर इंडिया दिल्ली, हैदराबाद, मुंबई और बंगलूरू में निर्मित बड़े हवाई अड्डों को बढ़ावा देगी, साथ ही इसके माध्यम से एयर इंडिया विदेश यात्रा करने वाले भारतीयों को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकेगी।
- एयर इंडिया के सफल बदलाव से भारतीय अर्थव्यवस्था को भी मदद मिल सकती है क्योंकि यह एक अच्छी तरह से स्थापित तथ्य है कि विमानन का अर्थव्यवस्था पर कई गुना प्रभाव पड़ता है।
- सरकार पर आर्थिक सुधार का समर्थन करने और स्वास्थ्य देखभाल हेतु उच्च परिव्यय की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिये संसाधन जुटाने का दबाव है।
- महत्त्व
- यह एयर इंडिया के दैनिक नुकसान के भुगतान में खर्च होने वाले करदाताओं के पैसे को बचाएगा।
- यह उन अन्य कठोर निर्णयों को लेने मदद करेगा, जिनके लिये सरकार इच्छुक है।
- यह संभवत: घरेलू स्तर पर एक और कम लागत वाले वाहक का विकल्प प्रदान करेगा।
विनिवेश
- सरकार द्वारा संपत्ति की बिक्री या परिसमापन, आमतौर पर केंद्रीय और राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम, परियोजनाएँ या अन्य अचल संपत्ति को विनिवेश कहा जाता है।
- सरकार राजकोषीय बोझ को कम करने या अन्य नियमित स्रोतों से राजस्व की कमी को पूरा करने जैसे विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये धन जुटाने हेतु विनिवेश करती है।
- रणनीतिक विनिवेश एक सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई के स्वामित्व और नियंत्रण का किसी अन्य इकाई (ज़्यादातर निजी क्षेत्र की इकाई) को हस्तांतरण है।
- साधारण विनिवेश के विपरीत रणनीतिक बिक्री का तात्पर्य एक प्रकार का निजीकरण है।
- वित्त मंत्रालय के तहत निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM), सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) में रणनीतिक हिस्सेदारी बिक्री के लिये नोडल विभाग है।
- भारत में रणनीतिक विनिवेश को बुनियादी आर्थिक सिद्धांत द्वारा निर्देशित किया जाता है ताकि सरकार उन क्षेत्रों में वस्तुओं और सेवाओं के निर्माण/उत्पादन में खुद को संलग्न न करे जहाँ प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार की स्थिति हो।
- विभिन्न कारकों जैसे- पूंजी का संचार, प्रौद्योगिकी उन्नयन और कुशल प्रबंधन प्रथाओं आदि के चलते रणनीतिक निवेशकों के माध्यम से ऐसी संस्थाओं की आर्थिक क्षमता को बेहतर किया जा सकता है।
स्रोत: पीआईबी
भारतीय अर्थव्यवस्था
RBI की मौद्रिक नीति रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक, बैंक से संबंधित विभिन्न दरें, ऑपरेशन ट्विस्ट, सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (GSAP), मुद्रास्फीति इत्यादि मेन्स के लिये:RBI की मौद्रिक नीति रिपोर्ट तथा विभिन्न नीतिगत दरों का निर्धारण |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने हाल ही में अक्तूबर 2021 के लिये मौद्रिक नीति रिपोर्ट (Monetary Policy Report- MPR) जारी की है।
- इसने नीतिगत दर को लगातार आठवीं बार अपरिवर्तित रखा है जब तक कि स्थायी रिकवरी की स्थिति प्राप्त न हो जाए।
प्रमुख बिंदु
- अपरिवर्तित नीतिगत दरें:
- रेपो दर - 4%.
- रिवर्स रेपो दर - 3.35%.
- सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) - 4.25%.
- बैंक दर- 4.25%.
- GDP अनुमान:
- 2021-22 के लिये वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि 9.5% पर बरकरार रखी गई है।
- मुद्रास्फीति:
- RBI ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति के अनुमान को अगस्त 2021 के 5.7% से संशोधित कर 5.3% कर दिया है।
- सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (GSAP)
- इसने चलनिधि की अधिकता (अतिरिक्त तरलता), सरकारी खर्च के कारण तरलता में वृद्धि और वस्तु एवं सेवा कर मुआवज़े के लिये उच्च उधारी की अनुपस्थिति का हवाला देते हुए GSAP को बंद कर दिया है।
- यह RBI के खुला बाज़ार परिचालन (Open Market Operations- OMO) का हिस्सा है, जिसके तहत यह खुले बाज़ार में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद की एक विशिष्ट राशि के लिये प्रतिबद्ध है।
- 'GSAP 1.0' के तहत कुल 25,000 करोड़ रुपए की पहली खरीद अप्रैल, 2021 में की गई थी।
- GSAP को बंद करने के बाद भी RBI ने आश्वासन दिया है कि यह ऑपरेशन ट्विस्ट (OT) और नियमित ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) सहित तरलता प्रबंधन से संबंधित अन्य कार्यों को लचीले ढंग से संचालित करना जारी रखेगा।
- ‘ऑपरेशन ट्विस्ट’ का आशय ऐसे स्थिति से है, जब केंद्रीय बैंक दीर्घकालिक सरकारी ऋण प्रपत्रों को खरीदने के लिये अल्पकालिक प्रतिभूतियों की बिक्री से प्राप्त आय का उपयोग करता है, जिससे लंबी अवधि के प्रपत्रों पर ब्याज दर का बोझ कम हो जाता है।
- इसने चलनिधि की अधिकता (अतिरिक्त तरलता), सरकारी खर्च के कारण तरलता में वृद्धि और वस्तु एवं सेवा कर मुआवज़े के लिये उच्च उधारी की अनुपस्थिति का हवाला देते हुए GSAP को बंद कर दिया है।
- उदार रुख:
- इसने सतत् आधार पर विकास को बढ़ावा देने हेतु आवश्यक दीर्घकालिक समायोजन रुख को जारी रखने का निर्णय लिया है, जिससे अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव को कम करते हुए यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि मुद्रास्फीति निर्धारित लक्ष्य के भीतर ही बनी रहे।
- ‘उदार रुख’ का अर्थ है कि केंद्रीय बैंक आवश्यकता पड़ने पर वित्तीय प्रणाली में धन लगाने के लिये दरों में कटौती करेगा।
- इसने सतत् आधार पर विकास को बढ़ावा देने हेतु आवश्यक दीर्घकालिक समायोजन रुख को जारी रखने का निर्णय लिया है, जिससे अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव को कम करते हुए यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि मुद्रास्फीति निर्धारित लक्ष्य के भीतर ही बनी रहे।
- परिवर्तनीय रेट रिवर्स रेपो (VRRR):
- दिसंबर 2021 की शुरुआत तक ‘परिवर्तनीय रेट रिवर्स रेपो’ ऑक्शन का आकार बढ़ाकर 6 ट्रिलियन रुपए कर दिया गया है और आवश्यकता पड़ने पर इसकी अवधि को 28 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।
- सिस्टम में अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करने के लिये रिज़र्व बैंक ने अगस्त 2021 में एक ‘परिवर्तनीय रेट रिवर्स रेपो’ कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की क्योंकि इसमें रिवर्स रेपो की निर्धारित दर की तुलना में अधिक यील्ड की संभावनाएँ हैं।
- दिसंबर 2021 की शुरुआत तक ‘परिवर्तनीय रेट रिवर्स रेपो’ ऑक्शन का आकार बढ़ाकर 6 ट्रिलियन रुपए कर दिया गया है और आवश्यकता पड़ने पर इसकी अवधि को 28 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।
प्रमुख तथ्य
- रेपो और रिवर्स रेपो दर:
- रेपो दर वह दर है जिस पर किसी देश का केंद्रीय बैंक (भारत के मामले में भारतीय रिज़र्व बैंक) किसी भी तरह की धनराशि की कमी होने पर वाणिज्यिक बैंकों को धन देता है। इस प्रक्रिया में केंद्रीय बैंक प्रतिभूति खरीदता है।
- रिवर्स रेपो दर वह दर है जिस पर RBI देश के भीतर वाणिज्यिक बैंकों से धन उधार लेता है।
- बैंक दर:
- यह वाणिज्यिक बैंकों को निधियों को उधार देने के लिये RBI द्वारा प्रभारित दर है।
- सीमांत स्थायी दर (MSF):
- MSF ऐसी स्थिति में अनुसूचित बैंकों के लिये आपातकालीन स्थिति में RBI से ओवरनाइट (रातों-रात) ऋण लेने की सुविधा है जब अंतर-बैंक तरलता पूरी तरह से कम हो जाती है।
- खुला बाज़ार परिचालन:
- ये RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री/खरीद के माध्यम से बाज़ार से रुपए की तरलता की स्थिति को समायोजित करने के उद्देश्य से किये गए बाज़ार संचालन हैं।
- सरकारी प्रतिभूति:
- सरकारी प्रतिभूतियाँ केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा जारी की जाने वाली एक व्यापार योग्य साधन होती हैं। ये सरकार के ऋण दायित्व को स्वीकार करती हैं।
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक:
- यह खुदरा खरीदार के दृष्टिकोण से मूल्य परिवर्तन को मापता है। यह राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी किया जाता है।
- CPI खाद्य, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में अंतर की गणना करता है, जिसे भारतीय उपभोक्ता उपभोग के लिये खरीदते हैं।
मौद्रिक नीति रिपोर्ट
- मौद्रिक नीति रिपोर्ट को RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) द्वारा प्रकाशित किया जाता है। MPC विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिये RBI अधिनियम, 1934 के तहत एक वैधानिक और संस्थागत ढाँचा है।
- MPC, 4% के मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये आवश्यक नीति ब्याज़ दर (रेपो दर) निर्धारित करती है, जिसमें दोनों तरफ 2% अंक होते हैं। RBI का गवर्नर MPC का पदेन अध्यक्ष है।