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भारतीय अर्थव्यवस्था

बॉण्ड यील्ड में गिरावट

  • 08 May 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (G-SAP) के तहत सरकारी प्रतिभूतियों (G-Sec) की खरीद का निर्णय लिया है, जिसके परिणामस्वरूप बेंचमार्क पर यील्ड के 10-वर्षीय बॉण्ड में 6% से कम की गिरावट दर्ज की गई।

  • भारत में, 10-वर्षीय सरकारी प्रतिभूतियों की यील्ड को बेंचमार्क माना जाता है, जो समग्र ब्याज़ दर के परिदृश्य को दर्शाता है।

प्रमुख बिंदु 

बॉण्ड यील्ड :

  • बॉण्ड यील्ड का आशय बॉण्ड पर मिलने वाले रिटर्न से होता है। बॉण्ड यील्ड की गणना करने के लिये वार्षिक कूपन दर को बॉण्ड के वर्तमान बाज़ार मूल्य से विभाजित किया जाता है
    • बॉण्ड: यह धन उधार लेने का एक साधन है। एक देश की सरकार या एक कंपनी द्वारा धन का सृजन करने के लिये एक बॉण्ड जारी किया जा सकता है। 
    • निर्धारित ब्याज़ दर या कूपन दर : यह बॉण्ड के अंकित मूल्य पर बॉण्ड जारीकर्त्ता द्वारा निर्धारित ब्याज़ की दर है।

बॉण्ड यील्ड के गतिशील होने के सामान्य प्रभाव: 

  • बॉण्ड यील्ड की गतिशीलता सामान्यतः ब्याज़ दरों के रुझान पर निर्भर करती है, जिसके परिणामस्वरूप निवेशकों को पूंजीगत लाभ या हानि हो सकता है। 
    • बाज़ार में बॉण्ड यील्ड की बढ़ोतरी से बॉण्ड की कीमतों में कमी आएगी।
    • बॉण्ड में गिरावट से निवेशक को फायदा मिलेगा क्योंकि बॉण्ड की कीमत बढ़ने  पूंजीगत लाभ में वृद्धि होगी।

बॉन्ड यील्ड में कमी के कारण:

  • कोविड -19 के कारण उत्पन्न आर्थिक अनिश्चितता।
  • अप्रैल, 2021 में RBI द्वारा G-SAP को लॉन्च किया गया, जिसके कारण सरकारी प्रतिभूति यील्ड में कमी आई, जो तब से जारी है।

प्रभाव: 

  • बेहतर इक्विटी बाज़ार:
    •  यील्ड में गिरावट इक्विटी बाज़ार के लिये फायदेमंद साबित होती है, क्योंकि धन का प्रवाह ऋण निवेश से इक्विटी निवेश की तरफ होने लगता है।
      • इक्विटी बाज़ार: यह एक ऐसा बाज़ार है, जिसमें कंपनियों के शेयर जारी कर उनका व्यापार, या तो एक्सचेंजों या ओवर-द-काउंटर बाज़ारों के माध्यम से किया जाता है। इसे शेयर बाज़ार के रूप में भी जाना जाता है।
    • इसका मतलब है कि जैसे-जैसे बॉण्ड यील्ड में कमी आती  जाती है, इक्विटी बाज़ार बड़े लाभ के साथ आगे बढ़ते हैं और जैसे-जैसे बॉण्ड यील्ड में बढ़ोत्तरी होने लगती है , इक्विटी बाज़ार लड़खड़ाने लगते हैं।
  • पूंजी-लागत में कमी:
    • जब बॉण्ड यील्ड में बढ़ोतरी होती है, तो पूंजी की लागत भी बढ़ जाती है। इसका अभिप्राय यह है कि भविष्य के नकदी प्रवाह को उच्च दर पर छूट प्रदान की जाएगी।
    • डिस्काउंट या छूट भुगतान के वर्तमान मूल्य या भुगतान की एक प्रवाह निर्धारित करने की प्रक्रिया है, जो भविष्य में प्राप्त की जानी है।
    • यह इन शेयरों के मूल्यांकन को संकुचित करता है। यह एक कारण है कि जब भी RBI द्वारा ब्याज़ दरों में कटौती की जाती है, तो यह शेयरों के लिये सकारात्मक होता है।
  • दिवालियापन के जोखिम को कम करना:
    • जब बॉण्ड यील्ड में बढ़ोतरी होती है, तो यह संकेत देता है कि कॉरपोरेट्स को ऋण पर अधिक ब्याज़ देना होगा।
    • जैसे-जैसे ऋण शोधन की लागत बढ़ती है, दिवालियापन और डिफॉल्ट का जोखिम भी बढ़ता है और इस प्रकार के जोखिम मिड-कैप और अत्यधिक लीवरेज़्ड कंपनियों को कमज़ोर बनाते है।

RBI का रुख:

  • RBI का उद्देश्य यील्ड को कम रखना है, ताकि बाज़ार में उधार दरों में किसी भी तरह के उतार-चढ़ाव को प्रतिबंधित करने हेतु सरकार की उधार की लागत को कम किया जा सके
  • बॉण्ड यील्ड में बढ़ोतरी से बैंकिंग सिस्टम में ब्याज़ दरों पर दबाव बढ़े,गा जिससे उधार देने की दर में बढ़ोतरी होगी। RBI ब्याज़ दरों को प्रारंभिक (किक-स्टार्ट) निवेश के लिये  स्थिर रखना चाहता है।

सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (G-SAP) 

परिचय :

  • RBI ने वर्ष 2021-22 के लिये एक द्वितीयक बाज़ार सरकारी प्रतिभूति (G-sec) अधिग्रहण कार्यक्रम या G-SAP 1.0 लागू करने का निर्णय लिया है।
  • इस कार्यक्रम के तहत RBI सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) की खुली बाज़ार खरीद के विशिष्ट मूल्य का संचालन करेगा।

उद्देश्य:

  • विभिन्न वित्तीय बाज़ार साधनों के मूल्य निर्धारण में सरकारी प्रतिभूति बाज़ार की केंद्रीय भूमिका को देखते हुए सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में अस्थिरता से बचना।

महत्त्व:

  • यह बॉण्ड बाज़ार सहभागियों को वित्त वर्ष 2021-22 में RBI के समर्थन की प्रतिबद्धता के संबंध में निश्चितता प्रदान करेगा।
  • इस संरचित कार्यक्रम की घोषणा से रेपो दर और 10-वर्षीय सरकारी बॉण्ड यील्ड के बीच के अंतर को कम करने में मदद मिलेगी। 
    • परिणामस्वरूप यह वित्त वर्ष 2021-22 में केंद्र और राज्यों की उधार लेने की कुल लागत को कम करने में मदद करेगा।
    • रेपो दर वह दर है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को धन उधार देता है।
  • यह व्यवस्थित तरलता की स्थिति के बीच ‘यील्ड कर्व’ (Yield Curve) के स्थिर और व्यवस्थित विकास को सक्षमता प्रदान करेगा।
    • ‘यील्ड कर्व’ (Yield Curve): यह एक ऐसी रेखा है, जो समान क्रेडिट गुणवत्ता वाले, लेकिन अलग-अलग परिपक्वता तिथियों वाले बॉण्ड की ब्याज़ दर को दर्शाती है।
      • ‘यील्ड कर्व’ का ढलान भविष्य की ब्याज़ दर में बदलाव और आर्थिक गतिविधि को आधार प्रदान करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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