अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ADB क्षेत्रीय सम्मेलन और PM गति शक्ति
प्रिलिम्स के लिये:एशियाई विकास बैंक (ADB), PM गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान, लॉजिस्टिक्स क्षेत्र से संबंधित पहल मेन्स के लिये:PM गति शक्ति, एशियाई विकास बैंक की भूमिका |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 2023 क्षेत्रीय सहयोग और एकीकरण (RCI) सम्मेलन एशियाई विकास बैंक (ADB) द्वारा जॉर्जिया के त्बिलिसी में आयोजित किया गया था, जहाँ भारत ने अपने PM गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान का प्रदर्शन किया।
एशियाई विकास बैंक:
- परिचय:
- ADB एक क्षेत्रीय विकास बैंक है जिसकी स्थापना वर्ष 1966 में एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सामाजिक एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी।
- इसमें 68 सदस्य हैं; 49 सदस्य देश एशिया-प्रशांत क्षेत्र से हैं, जबकि 19 सदस्य अन्य क्षेत्रों से हैंI भारत ADB का संस्थापक सदस्य है।
- ADB सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये ऋण, तकनीकी सहायता, अनुदान एवं इक्विटी निवेश प्रदान करके अपने सदस्यों तथा भागीदारों की सहायता करता है।
- 31 दिसंबर, 2022 तक ADB के पाँच सबसे बड़े शेयरधारक जापान और अमेरिका (प्रत्येक के पास कुल शेयरों का 15.6%), चीन (6.4%), भारत (6.3%) तथा ऑस्ट्रेलिया (5.8%) हैं।
- इसका मुख्यालय मनीला, फिलीपींस में है।
- ADB एक क्षेत्रीय विकास बैंक है जिसकी स्थापना वर्ष 1966 में एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सामाजिक एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी।
- ADB सम्मेलन का परिचय:
- 2023 सम्मेलन का विषय:
- आर्थिक गलियारा विकास (ECD) के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग और एकीकरण को मज़बूत करना।
- उद्देश्य:
- ECD के साथ स्थानिक परिवर्तन/क्षेत्र-केंद्रित दृष्टिकोण को एकीकृत करने और व्यापक दृष्टिकोण के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग को मज़बूत करने के तरीकों का पता लगाना।
- निवेश योग्य परियोजनाओं के लिये ECD ढाँचे के अनुप्रयोग और परिचालन दिशा-निर्देशों पर ज्ञान साझा करना।
- भागीदारी:
- सम्मेलन में 30 से अधिक सदस्य देशों ने भाग लिया।
- भारत की भूमिका:
- RCI सम्मेलन में भारत ने सामाजिक-आर्थिक योजना और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाने के लिये ADB तथा दक्षिण एशिया उपक्षेत्रीय आर्थिक सहयोग (SASEC) के देशों को ज्ञान साझा करने के माध्यम से अपनी स्वदेशी रूप से विकसित GIS-आधारित तकनीक प्रस्तुत की।
- 2023 सम्मेलन का विषय:
मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी के लिये PM गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान:
- यह एक मेड इन इंडिया पहल है, जो आर्थिक नोड्स और सामाजिक बुनियादी ढाँचे के लिये मल्टीमॉडल इंफ्रास्ट्रक्चर कनेक्टिविटी की एकीकृत योजना हेतु एक परिवर्तनकारी 'संपूर्ण-सरकारी' दृष्टिकोण है, जिससे लॉजिस्टिक्स दक्षता में सुधार होता है।
- PM गति शक्ति सिद्धांत क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के हिस्से के रूप में सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र-आधारित विकास सुनिश्चित करते हैं।
- PM गतिशक्ति को अक्तूबर 2021 में लॉन्च किया गया था।
- गति शक्ति योजना में वर्ष 2019 में 110 लाख करोड़ रुपए की राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन लॉन्च की गई।
- PM गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान एक भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) डेटा-आधारित डिजिटल प्लेटफॉर्म है जिसमें 1400 से अधिक डेटा और 50+ उपकरण हैं।
- यह उपयोगिता बुनियादी ढाँचे, भूमि उपयोग, मौजूदा संरचनाओं, मिट्टी की गुणवत्ता, निवास स्थान, पर्यटन स्थलों, वन संवेदनशील क्षेत्रों आदि का दृश्य प्रतिनिधित्व प्रदान करता है।
- यह पहल क्षेत्रीय साझेदारों के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाने हेतु भी लागू की जा रही है। इसके कुछ उपयुक्त उदाहरण हैं:
- भारत-नेपाल हल्दिया एक्सेस कंट्रोल्ड कॉरिडोर परियोजना (पूर्वी भारतीय राज्य तथा नेपाल)।
- विकास केंद्रों तथा सीमा बिंदुओं तक मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी के लिये क्षेत्रीय जलमार्ग ग्रिड (RWG) परियोजना।
लॉजिस्टिक्स क्षेत्र के लिये भारत सरकार की अन्य पहल:
- राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP)
- माल का बहुविध परिवहन अधिनियम, 1993
- मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क
- लीड्स (LEADS) रिपोर्ट
- डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर
- सागरमाला प्रोजेक्ट्स
- भारतमाला परियोजना
- डिजिटल पहल:
- यूनिफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफॉर्म (ULIP)
- लॉजिस्टिक्स डेटा बैंक (LDB)
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. गति शक्ति योजना को संयोजकता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सरकार और निजी क्षेत्र के मध्य सतर्क समन्वय की आवश्यकता है। विवेचना कीजिये। (2022) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ब्लैक सी ग्रेन डील को पुनः शुरू करने पर वार्ता
प्रिलिम्स के लिये:ब्लैक सी ग्रेन डील पर चर्चा, संयुक्त राष्ट्र (यूएन), खाद्य संकट, नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) मेन्स के लिये:ब्लैक सी ग्रेन डील पर चर्चा |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में तुर्किये के राष्ट्रपति ने ब्लैक सी ग्रेन डील पर पुनः चर्चा करने के लिये रूस के राष्ट्रपति से मुलाकात की, यह जानना जरुरी है कि रूस ने जुलाई 2023 में खुद को इस समझौते से बाहर कर लिया था।
ब्लैक सी ग्रेन पहल:
- परिचय:
- ब्लैक सी ग्रेन पहल का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर 'ब्रेडबास्केट' में रूसी कार्रवाइयों के कारण आपूर्ति शृंखला में होने वाले व्यवधानों से उत्पन्न खाद्य कीमतों में वृद्धि से निपटने का प्रयास करना है।
- संयुक्त राष्ट्र और तुर्किये की मध्यस्थता में इस्तांबुल ने इस समझौते पर जुलाई 2022 में हस्ताक्षर किये थे।
- यह पहल विशेषतः काला सागर में तीन प्रमुख यूक्रेनी पत्तनों- ओडेसा, चोर्नोमोर्स्क, युज़नी/पिवडेनी से वाणिज्यिक खाद्य और उर्वरक (अमोनिया सहित) निर्यात की अनुमति देती है।
- उद्देश्य:
- यह समझौता, जिसे शुरू में 120 दिनों की अवधि के लिये स्थापित किया गया था, का उद्देश्य यूक्रेनी निर्यात (विशेष रूप से खाद्यान्न) को एक सुरक्षित समुद्री मानवीय गलियारा प्रदान करना था।
- इसका मुख्य लक्ष्य अनाज की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करते हुए खाद्य कीमतों में वृद्धि को रोककर बाज़ार की अस्थिरता को नियंत्रित करना था।
- संयुक्त समन्वय केंद्र (JCC) की भूमिका:
- JCC की स्थापना काला सागर अनाज पहल के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये की गई थी।
- JCC की मेज़बानी इस्तांबुल में की गई है और इसमें रूस, तुर्किये, यूक्रेन और संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र केंद्र के लिये सचिवालय के रूप में भी कार्य करता है।
- उचित निगरानी, निरीक्षण और सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करने के लिये सभी वाणिज्यिक जहाज़ों को सीधे JCC के साथ पंजीकृत होना आवश्यक है। आने वाले और बाहर जाने वाले जहाज़ (निर्दिष्ट गलियारे तक) निरीक्षण के बाद JCC द्वारा तय कार्यक्रम के अनुसार पारगमन करते हैं।
- ऐसा इसलिये किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जहाज़ पर कोई अनधिकृत कार्गो या कर्मी न रहे।
- इसके बाद उन्हें निर्दिष्ट गलियारे के माध्यम से लोडिंग के लिये यूक्रेनी बंदरगाहों तक जाने की अनुमति दी जाती है।
अनाज सौदे से रूस के बाहर होने के पीछे के कारण:
- रूस का दावा है कि समझौते के तहत उससे किये गए वादे पूरे नहीं किये गए हैं और पश्चिम द्वारा उस पर लगाए गए कई प्रतिबंधों के कारण उसे अभी भी अपने कृषि उत्पादों और उर्वरकों के निर्यात में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
- हालाँकि रूस के कृषि उत्पादों पर कोई सीधा प्रतिबंध नहीं है, देश का कहना है कि भुगतान प्लेटफाॅर्म, बीमा, शिपिंग और अन्य रसद पर बाधाएँ उसके निर्यात में बाधा डाल रही हैं।
- रूस ने यह भी कहा है कि वह वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद के लिये अनाज सौदे पर सहमत हुआ था, लेकिन यूक्रेन तब से मुख्य रूप से उच्च और मध्यम आय वाले देशों को निर्यात करता है।
- रूस ने अपनी वापसी का कारण एक समानांतर समझौते को बनाए रखने में विफलता का हवाला दिया, जिसमें उसके भोजन एवं उर्वरक के निर्यात में बाधाओं को दूर करने का वादा किया गया था।
- रूस ने दावा किया कि हाल के वर्षों में रिकॉर्ड गेहूँ निर्यात के बावजूद शिपिंग और बीमा प्रतिबंधों ने उसके कृषि व्यापार में बाधा उत्पन्न की है।
डील हेतु मध्यस्थता में तुर्की की हिस्सेदारी:
- अनाज समझौते को बहाल करने के प्रयास में तुर्की ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसने लगातार उन व्यवस्थाओं को नवीनीकृत करने का वचन दिया है जिससे अफ्रीका, मध्य पूर्व और एशिया के विभिन्न हिस्सों में खाद्य संकट को रोकने में मदद मिली।
- यूक्रेन और रूस दोनों विकासशील देशों के लिये गेहूँ, जौ, सूरजमुखी तेल तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं के महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता हैं।
- 18 महीने के यूक्रेन संघर्ष के दौरान पुतिन के साथ तुर्की के घनिष्ठ संबंधों ने इसे रूस के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार और लॉजिस्टिक केंद्र के रूप में स्थापित किया है।
- उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) की सदस्यता के बावजूद तुर्की ने यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस पर पश्चिमी प्रतिबंध का समर्थन नहीं किया, जो उसकी अद्वितीय राजनयिक स्थिति को उजागर करता है।
ब्लैक सी ग्रेन पहल का महत्त्व:
- यूक्रेन विश्व स्तर पर गेहूँ, मक्का, रेपसीड, सूरजमुखी के बीज़ और सूरजमुखी के तेल के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक है।
- काला सागर में गहरे समुद्र तक पहुँच इसे मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के अनाज आयातकों के साथ रूस एवं यूरोप से सीधे संपर्क रखने में सक्षम बनाती है।।
- इस पहल को वैश्विक स्तर पर संकट के आलोक में जीवन निर्वाह में सहायता करने का श्रेय भी दिया गया है।
- इस समझौते ने रूस में चल रहे युद्ध के बावजूद तीन यूक्रेनी बंदरगाहों से लगभग 33 मिलियन मीट्रिक टन (36 मिलियन टन) अनाज और अन्य वस्तुओं के सुरक्षित निर्यात की सुविधा प्रदान की।
- आपूर्ति की कमी के दौरान अनाज को अधिक लाभ में बेचने की उम्मीद में इसे जमा करने वाले लोग अनाज को बेचने के लिये बाध्य हुए।
- हालाँकि यह पहल अकेले वैश्विक भूख को संबोधित नहीं कर सकती है, लेकिन यह वैश्विक खाद्य संकट के और बढ़ने की संभावना को टाल सकती है, खासकर जब क्षेत्र विगत वर्ष के स्तर तक नहीं पहुँच पाया हो।
युद्ध के मध्य रूस, यूक्रेन अनाज निर्यात की स्थिति:
- रूस दुनिया के शीर्ष गेहूँ निर्यातक के रूप में अपनी स्थिति मज़बूत कर रहा है, हालाँकि यूक्रेन की प्रत्याशित शिपमेंट अपने उच्चतम स्तर से आधे से अधिक होने तथा इसका उत्पादन गत 11 वर्ष के निचले स्तर तक गिरने की आशंका है।
- रूस द्वारा उत्पादित गेहूँ के प्राथमिक गंतव्य मध्य-पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और मध्य एशिया हैं, जिनका नेतृत्व मिस्र, ईरान और अल्जीरिया करते हैं। जबकि ब्लैक सी ग्रेन इनिशिएटिव ने यूक्रेन को वर्ष 2022-23 में 16.8 मिलियन टन निर्यात करने में मदद की, इसका लगभग 39% गेहूँ वास्तव में भूमि मार्ग से पूर्वी यूरोप को निर्यात किया गया।
- शिपमेंट की सुगमता के कारण यूक्रेन के बाज़ार युद्ध से पहले ही एशिया और उत्तरी अफ्रीका से यूरोप की ओर में स्थानांतरित हो गए थे।
- वास्तव में यूक्रेनी अनाज की बहुतायत के कारण कुछ पूर्वी यूरोपीय देशों में किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया, जिन्होंने कहा कि उनकी उपज की कीमत घट गई है।
शासन व्यवस्था
ऑनलाइन समाचार उपभोग में बदलते रुझान
प्रिलिम्स के लिये:सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI), प्रेस और मीडिया के लिये नियामक प्राधिकरण मेन्स के लिये:फर्ज़ी समाचार फैलाने में डिजिटल मीडिया की भूमिका और सामाजिक सद्भाव एवं राष्ट्रीय सुरक्षा पर इसका प्रभाव, सटीक और निष्पक्ष रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने में मीडिया संगठनों की जिम्मेदारियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
रॉयटर्स इंस्टीट्यूट की हाल ही में प्रकाशित डिजिटल समाचार रिपोर्ट- 2023 ने दुनिया भर में ऑनलाइन समाचार उपभोग पैटर्न में महत्त्वपूर्ण बदलावों का खुलासा किया है।
- पत्रकारिता अध्ययन के लिये रॉयटर्स इंस्टीट्यूट वाद-विवाद, सहभागिता और अनुसंधान के माध्यम से दुनिया भर में पत्रकारिता के भविष्य की खोज के लिये समर्पित है।
रिपोर्ट के मुख्य तथ्य:
- भारत में ऑनलाइन समाचार उपभोग के बदलते पैटर्न:
- भारतीय पारंपरिक समाचार वेबसाइटों से दूर जाकर ऑनलाइन समाचार के अपने प्राथमिक स्रोत के रूप में तेज़ी से सर्च इंजन और मोबाइल समाचार एग्रीगेटर्स (43%) (ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या सॉफ्टवेयर उपकरण जो समाचार एकत्र करते हैं) की ओर रुख कर रहे हैं।
- केवल 12% लोग प्रत्यक्ष स्रोतों, अर्थात् समाचार पत्रों से समाचार पढ़ना पसंद करते हैं, जबकि 28% समाचार पढ़ने के लिये सोशल मीडिया पसंद करते हैं।
- समाचार सामग्री को पढ़ने के बजाय देखना या सुनना पसंद करते हैं।
- भारतीय पारंपरिक समाचार वेबसाइटों से दूर जाकर ऑनलाइन समाचार के अपने प्राथमिक स्रोत के रूप में तेज़ी से सर्च इंजन और मोबाइल समाचार एग्रीगेटर्स (43%) (ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या सॉफ्टवेयर उपकरण जो समाचार एकत्र करते हैं) की ओर रुख कर रहे हैं।
- ऑनलाइन समाचार सहभागिता में क्षेत्रीय विरोधाभास:
- स्कैंडिनेवियाई देश स्थापित समाचार ब्रांडों के साथ सीधा संपर्क बनाए रखते हैं।
- एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका समाचारों के लिये सोशल मीडिया पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
- देशों में विभिन्न प्राथमिकताएँ:
- फिनलैंड और यूके (80%) में लोगों में पढ़ना प्रमुख है।
- भारत और थाईलैंड (40%) में लोग ऑनलाइन समाचार देखना पसंद करते हैं।
- 52% वीडियो समाचारों के पक्ष में फिलीपींस सबसे आगे है।
- समाचार उपभोग पर कोविड-19 का प्रभाव:
- भारत में समाचार पढ़ने और साझा करने दोनों में चिंताजनक गिरावट आ रही है। आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2022 और 2023 के बीच ऑनलाइन समाचार तक पहुँच में 12% अंकों की भारी गिरावट आई है।
- टेलीविज़न दर्शकों की संख्या में विशेषकर युवा और शहरी व्यक्तियों के बीच भी 10% की कमी आई है।
- समाचार सहभागिता में गिरावट को आंशिक रूप से अप्रैल 2022 में लॉकडाउन उपायों में ढील के बाद से कोविड-19 महामारी के कम होते प्रभाव से जोड़ा जा सकता है।
- भारत में समाचार पढ़ने और साझा करने दोनों में चिंताजनक गिरावट आ रही है। आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2022 और 2023 के बीच ऑनलाइन समाचार तक पहुँच में 12% अंकों की भारी गिरावट आई है।
- समाचार पर विश्वास:
- भारत में समाचारों पर भरोसा वर्ष 2021 और 2023 के बीच 38% के स्तर पर निष्क्रिय रहा है, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे कम रैंकिंग में से एक है।
- फिनलैंड (69%) और पुर्तगाल (58%) जैसे देशों में विश्वास का स्तर अधिक है।
- दूसरी ओर, संयुक्त राज्य अमेरिका (32%), अर्जेंटीना (30%), हंगरी (25%), और ग्रीस (19%) जैसे उच्च स्तर के राजनीतिक ध्रुवीकरण वाले देशों में विश्वास का स्तर कम है।
समाचार उपभोग पैटर्न में बदलाव के कारण भारत के समक्ष चुनौतियाँ:
- गलत सूचना और फेक न्यूज़:
- पारंपरिक समाचार स्रोतों से हटना और सर्च इंजन व सोशल मीडिया पर बढ़ती निर्भरता गलत सूचना तथा फेक न्यूज़ के प्रसार में योगदान कर सकती है। इससे सार्वजनिक भ्रम, गलत धारणाएँ और यहाँ तक कि सामाजिक अशांति भी उत्पन्न हो सकती है।
- पत्रकारिता की गुणवत्ता:
- पारंपरिक समाचार वेबसाइटों और समाचार पत्रों के प्रति कम प्राथमिकता पत्रकारिता की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है।
- स्वतंत्र और विश्वसनीय पत्रकारिता को वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे संभावित रूप से जाँच रिपोर्टिंग और गहन विश्लेषण में गिरावट आ सकती है।
- पारंपरिक समाचार वेबसाइटों और समाचार पत्रों के प्रति कम प्राथमिकता पत्रकारिता की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है।
- लोकतंत्र और ध्रुवीकरण:
- समाचार स्रोत के रूप में सोशल मीडिया का प्रभाव राजनीतिक ध्रुवीकरण में योगदान कर सकता है। व्यक्ति पक्षपातपूर्ण सूचना के संपर्क में आ सकते हैं, जो अंततः लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।
- मीडिया ट्रस्ट:
- सूचित नागरिकता के लिये मीडिया में विश्वास का पुनर्निर्माण आवश्यक है।
- समाचारों पर भारत का लगातार कम भरोसा स्वस्थ लोकतंत्र के लिये चिंताजनक है।
- सूचित नागरिकता के लिये मीडिया में विश्वास का पुनर्निर्माण आवश्यक है।
- यूथ डिस्कनेक्ट:
- यूथ के बीच टेलीविज़न दर्शकों की संख्या में गिरावट पारंपरिक समाचार माध्यमों के बीच अलगाव का संकेत देती है। विश्वसनीय समाचार स्रोतों के माध्यम से युवा पीढ़ी को शामिल करना और सूचित करना उनकी नागरिक शिक्षा के लिये आवश्यक है।
- एल्गोरिदम फीड (Algorithmic Feeds) पर निर्भरता:
- समाचारों के लिये सर्च इंजन और सोशल मीडिया पर विश्वास करने का मतलब है कि व्यक्ति एल्गोरिदम द्वारा निर्धारित सामग्री के संपर्क में आते हैं। इससे विविध दृष्टिकोणों एवं महत्त्वपूर्ण समाचारों का प्रदर्शन सीमित हो सकता है।
भारत में फेक न्यूज़ पर अंकुश लगाने की पहल
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021:
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 प्रस्ताव करता है कि प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) की तथ्य-परीक्षण इकाई द्वारा तथ्य-परीक्षण किये गए तथा इसमें भ्रामक या झूठे पाए गए कंटेंट को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से हटाना आवश्यक है।
- इस नियम का उद्देश्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फेक न्यूज़ और भ्रामक सूचनाओं के प्रसार पर अंकुश लगाना है।
- IT अधिनियम 2008:
- IT अधिनियम 2008 की धारा 66 A इलेक्ट्रॉनिक संचार से संबंधित अपराधों को नियंत्रित करती है।
- इसमें संचार सेवाओं या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से आपत्तिजनक संदेश भेजने वाले व्यक्तियों को दंडित करना शामिल है। इस अधिनियम का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से फर्ज़ी खबरें फैलाने वालों को दंडित करने के लिये किया जा सकता है।
- 1860 की भारतीय दंड संहिता:
- संबंधित प्राधिकारी:
- भारतीय प्रेस परिषद (Press Council of India- PCI):
- यह प्रेस परिषद अधिनियम, 1978 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
- PCI प्रिंट मीडिया के लिये दिशा-निर्देश और आचार संहिता भी जारी करता है।
- PCI "सार्वजनिक रुचि के उच्च मानकों" को बनाए रखने एवं नागरिकों के बीच ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देने में मदद करता है।
- यह प्रेस परिषद अधिनियम, 1978 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (MIB):
- MIB निजी प्रसारकों को लाइसेंस और अनुमतियाँ देता है तथा उनकी सामग्री व प्रदर्शन की निगरानी करता है।
- समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण (NBSA):
- यह एक स्वतंत्र निकाय है जो निजी टेलीविज़न समाचार, समसामयिक मामलों तथा डिजिटल प्रसारकों के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है।
- NBSA का उद्देश्य समाचार प्रसारण के लिये उच्च मानक, नैतिकता तथा अभ्यास स्थापित करना है। NBSA प्रसारकों के विरुद्ध उनके प्रसारण की सामग्री से संबंधित शिकायतों पर भी विचार करता है और निर्णय लेता है।
- प्रसारण सामग्री शिकायत परिषद (BCCC):
- आपत्तिजनक टीवी सामग्री और फर्ज़ी खबरों के लिये टीवी प्रसारकों के खिलाफ शिकायतें स्वीकार की गईं।
- इंडियन ब्रॉडकास्ट फाउंडेशन (IBF):
- यह चैनलों द्वारा प्रसारित सामग्री के खिलाफ शिकायतों पर भी गौर करता है।
- भारतीय प्रेस परिषद (Press Council of India- PCI):
आगे की राह
- व्यक्तियों को समाचार स्रोतों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने तथा गलत सूचना की पहचान करने में मदद के लिये स्कूलों एवं समुदायों में मीडिया साक्षरता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना।
- गलत जानकारी की पहचान करने और उसे सही करने के लिये तथ्य-जाँच संगठनों, सरकारी एजेंसियों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित करना।
- भारत को ऑस्ट्रेलिया के समान कानून बनाने की संभावना तलाशनी चाहिये जो डिजिटल प्लेटफॉर्मों को उनकी सामग्री का उपयोग करने के लिये स्थानीय मीडिया आउटलेट्स को भुगतान करने के लिये बाध्य करता है।
- यह संघर्षरत समाचार उद्योग को समर्थन देने तथा सामग्री निर्माताओं के लिये उचित मुआवज़ा सुनिश्चित करने और उन्हें प्रामाणिक एवं मूल जानकारी प्रदान करने के लिये प्रोत्साहित करने में मदद कर सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्सप्रश्न. ‘सामाजिक संजाल स्थल’ (Social Networking Sites) क्या होतेहैं और इन स्थलों से क्या सुरक्षा उलझनें प्रस्तुत होती हैं? (2013) प्रश्न. डिजिटल मीडिया के माध्यम से धार्मिक मतारोपण का परिणाम भारतीय युवकों का आई.एस.आई.एस. में शामिल हो जाना रहा है। आई.एस.आई.एस. क्या है और उसका ध्येय (लक्ष्य) क्या है? आई.एस.आई.एस. हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये किस प्रकार खतरनाक हो सकता है? (2015) |
सामाजिक न्याय
इज़रायल से इरिट्रियावासियों के निर्वासन पर संयुक्त राष्ट्र की चिंता
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय कानून, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR), प्रिंसिपल ऑफ नॉन-रिफाउलमेंट: मेन्स के लिये:शरणार्थी अधिकारों में अंतर्राष्ट्रीय कानून का महत्त्व |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
तेल अवीव में इरिट्रिया समुदाय के प्रतिद्वंद्वी गुटों के बीच हिंसक झड़पों के बाद संयुक्त राष्ट्र ने इज़रायल से इरिट्रिया में शरण चाहने वालों के संभावित बड़े पैमाने पर निर्वासन पर अपनी चिंता व्यक्त की है।
- संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी ने कहा कि पुनर्वसन का ऐसा कार्य अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होगा।
संयुक्त राष्ट्र की चिंता को प्रेरित करना:
- संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (United Nations Refugee Agency- UNHCR) ने कहा कि वह उन झड़पों के बारे में "अत्यधिक चिंतित" है जो उस समय हुईं जब इरिट्रिया सरकार के एक कार्यक्रम के खिलाफ किया जा रहा प्रदर्शन हिंसक हो गया।
- UNHCR ने शांति का आह्वान किया और इसमें शामिल सभी पक्षों से ऐसे कार्यों से दूर रहने का आग्रह किया जो स्थिति को और गंभीर बना सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR):
- संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) का कार्यालय वर्ष 1950 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उन लाखों यूरोपीय लोगों की सहायता के लिये बनाया गया था जो भाग गए थे या अपने घर खो चुके थे।
- वर्ष 1954 में UNHCR ने यूरोप में अपने अभूतपूर्व कार्य के लिये नोबेल शांति पुरस्कार जीता। लेकिन हमें अपनी अगली बड़ी आपात स्थिति का सामना करने में ज्यादा समय नहीं लगा।
- वर्ष 1981 में शरणार्थियों के लिये विश्वव्यापी सहायता हेतु इसे दूसरा नोबेल शांति पुरस्कार मिला।
शरणस्थल और निर्वासन पर अंतर्राष्ट्रीय कानून एवं नीति:
- इरिट्रिया निर्वासन और अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन:
- गैर-वापसी का सिद्धांत:
- गैर-वापसी का सिद्धांत (1951 शरणार्थी सम्मेलन और इसका 1967 प्रोटोकॉल) अंतर्राष्ट्रीय कानून में एवं विशेष रूप से शरणार्थी कानून के संदर्भ में एक अच्छी तरह से स्थापित अवधारणा है।
- अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत, गैर-वापसी का सिद्धांत यह गारंटी देता है कि किसी को भी ऐसे देश में वापस नहीं भेजा जाना चाहिये जहाँ उन्हें यातना, क्रूर, अमानवीय, या अपमानजनक स्थिति या सज़ा तथा अन्य अपूरणीय क्षति का सामना करना पड़ेगा।
- इज़रायल इन संधियों का एक पक्षकार है और अपने क्षेत्र अथवा प्रभावी नियंत्रण के भीतर शरणार्थियों तथा शरण चाहने वालों के सम्मान, सुरक्षा और अधिकारों को पूरा करना उसका दायित्त्व है।
- यदि इज़रायल इरिट्रियावासियों को निष्कासित करता है, तो यह गैर-वापसी के सिद्धांत का उल्लंघन होगा, क्योंकि इरिट्रिया को विश्व के सबसे सत्तावादी राज्यों में से एक माना जाता है, जहाँ मानवाधिकारों का उल्लंघन का परिणाम व्यापक और गंभीर है।
- अपने मूल देश में वापस लौटे इरिट्रियावासियों को यातना, दुर्व्यवहार, राजनीतिक दमन और यहाँ तक कि मौत का सामना करना पड़ सकता है।
- गैर-वापसी का सिद्धांत (1951 शरणार्थी सम्मेलन और इसका 1967 प्रोटोकॉल) अंतर्राष्ट्रीय कानून में एवं विशेष रूप से शरणार्थी कानून के संदर्भ में एक अच्छी तरह से स्थापित अवधारणा है।
- शरण का अधिकार:
- शरण का अधिकार मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा द्वारा मान्यता प्राप्त एक मौलिक मानव अधिकार है।
- शरण के अधिकार का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को अन्य देशों में उत्पीड़न से सुरक्षा पाने का अधिकार है।
- इरिट्रियावासियों को सामूहिक रूप से निष्कासित करके, इज़रायल शरण के अधिकार का उल्लंघन करेगा, क्योंकि ऐसे में उनका इज़रायल या अन्य सुरक्षित देशों में उत्पीड़न से सुरक्षा पाना असंभव हो जाएगा।
- गैर-वापसी का सिद्धांत:
नोट:
- भारत, शरणार्थी कन्वेंशन- 1951 और उसके प्रोटोकॉल- 1967 जो अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत शरणार्थी संरक्षण से संबंधित प्रमुख कानूनी दस्तावेज हैं, का पक्षकार नहीं है।
- इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 21 में गैर-वापसी का अधिकार शामिल है।
- हालाँकि, शरणार्थी और शरण विधेयक, 2019 को राज्यसभा में पेश किया गया था, लेकिन अभी तक संसद द्वारा पारित नहीं किया गया है।
अंतर्राष्ट्रीय कानून:
- परिचय:
- वर्ष 1780 में जेरेमी बेंथम द्वारा बनाया गया।
- यह देशों (राष्ट्रों) के बीच संबंधों को नियंत्रित करता है।
- इसका उद्देश्य नागरिकों को लाभ पहुँचाना और मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना है।
- यह सहयोग और शांतिपूर्ण तरीकों से अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करता है।
- लक्ष्य:
- मौलिक मानवीय अधिकारों की रक्षा करना।
- इसका उद्देश्य नागरिकों को लाभ पहुँचाना और मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना।
- सहयोग और शांतिपूर्ण तरीकों से अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करना।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून के विषय:
- व्यक्ति: किसी भी राज्य के आम लोग।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठन: उदाहरण संयुक्त राष्ट्र।
- बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ: कई देशों में कार्य करती हैं।
इरिट्रिया के बारे में महत्त्वपूर्ण तथ्य:
- इरिट्रिया हॉर्न ऑफ अफ्रीका में एक देश है, जो लाल सागर के तट पर स्थित है।
- राजधानी: अस्मारा।
- यह इथियोपिया, सूडान और जिबूती के साथ स्थल-सीमा साझा करता है।
- सऊदी अरब और यमन के साथ यह समुद्री सीमाएँ साझा करता है।
- पूर्व में यह एक इतालवी उपनिवेश था जो वर्ष 1947 में इथियोपिया के साथ एक संघ का हिस्सा बन गया, वर्ष 1952 में इरिट्रिया को इथियोपिया ने अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद वर्ष 1993 में यह स्वतंत्र हुआ।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्र. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2011)
उपरोक्त में से कौन-सा/से "मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा" के तहत मानव अधिकार है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. "शरणार्थियों को उस देश में वापस नहीं भेजा जाना चाहिये जहाँ उन्हें उत्पीड़न या मानवाधिकार उल्लंघन का सामना करना पड़ेगा।" खुले समाज के साथ लोकतांत्रिक होने का दावा करने वाले राष्ट्र द्वारा उल्लंघन किये जा रहे नैतिक आयाम के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (2021) |