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डेली न्यूज़

  • 09 Sep, 2021
  • 35 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

विभेदीकृत जीएसटी व्यवस्था

प्रिलिम्स के लिये:

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद, क्षमता आधारित कर

मेन्स के लिये:

विभेदीकृत जीएसटी व्यवस्था से अधिक कर चोरी वाले क्षेत्रों में पड़ने वाले प्रभाव

चर्चा में क्यों?

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद द्वारा उन क्षेत्रों के लिये विभेदीकृत जीएसटी व्यवस्था शुरू करने को लेकर एक मंत्री समूह की रिपोर्ट पर विचार करने की संभावना है जहाँ कर की चोरी बहुत अधिक है।

  • कर चोरी, कर योग्य आय के जान-बूझकर कम विवरण या खर्चों को बढ़ाने जैसी कपटपूर्ण तकनीकों के माध्यम से कर देयता को कम करने का एक अवैध तरीका है। यह किसी के कर बोझ को कम करने का एक गैरकानूनी प्रयास है।

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद:

  • यह वस्तु एवं सेवा कर से संबंधित मुद्दों पर केंद्र और राज्य सरकार को सिफारिशें करने के लिये एक संवैधानिक निकाय (अनुच्छेद 279A) है।
  • जीएसटी परिषद की अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री करता है तथा अन्य सदस्य केंद्रीय राजस्व या वित्त मंत्री और सभी राज्यों के वित्त या कराधान के प्रभारी मंत्री होते हैं।
  • इसे एक संघीय निकाय के रूप में माना जाता है जहां केंद्र और राज्यों दोनों को उचित प्रतिनिधित्व मिलता है।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • जीएसटी परिषद ने पहले कुछ राज्यों की मांगों पर विचार करने के लिये मंत्रियों के समूह (जीओएम) का गठन किया था, जो उत्पादन के बजाय उत्पादन क्षमता (यानी विशेष संरचना योजनाओं) के आधार पर उच्च कर चोरी वाले क्षेत्रों पर कर लगाते थे।
      • क्षमता आधारित कर, उत्पादन के बजाय विनिर्माण क्षमता पर आधारित है।
    • उच्च कर चोरी वाले क्षेत्रों के कुछ उदाहरणों में ईंट भट्टे, रेत खनन और गुटखा एवं पान मसाला उत्पादन शामिल हैं।
      • उदाहरण के लिये इससे पहले वर्ष 2021 में एक पान मसाला इकाई में 830 करोड़ रुपए की चोरी का पता चला था।
  • चिंताएँ:
    • क्षमता आधारित कर (Capacity Based Tax) जीएसटी की संरचना के विरुद्ध है क्योंकि इसका एक उद्देश्य बिक्री की मात्रा में वृद्धि के साथ राजस्व वृद्धि को भी सुनिश्चित करना था।
      • यह कपड़ा जैसे अन्य क्षेत्रों की मांगों के लिये भी द्वार खोल सकता है।
    • क्रियान्वयन की दृष्टि से भी यह आसान नहीं होगा और हो सकता है कि यह अपवंचन को रोकने के वांछित परिणाम भी न दे, जिसका मुख्य कारण अत्यधिक उच्च कर दरें हैं।
    • इस तरह का बदलाव जीएसटी के मूल विचार के लिये हानिकारक होगा और ईमानदार करदाताओं को गलत संकेत देगा। यह जीएसटी संरचना में अतिरिक्त जटिलता को बढ़ाने का कार्य करेगा।

आगे की राह 

  • चूंँकि पूर्व की योजनाओं के घटक कर चोरी को रोकने में प्रभावी नहीं रहे हैं जिसके कारण राजस्व अधिकारियों और उत्पादकों के बीच बड़े पैमाने पर उत्पादन क्षमता (Production Capacity) विवादों पर मुकदमेबाज़ी हुई है, अत: सरकार को बेहतर डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करके जीएसटी चोरी की जांँच करनी चाहिये, साथ ही कर चोरी से बचने के लिये अभिनव, कड़े कानूनी प्रावधानों को पेश करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू 


शासन व्यवस्था

सी-295 एयरक्राफ्ट डील

प्रिलिम्स के लिये:

आत्मनिर्भर भारत अभियान, मेक-इन-इंडिया पहल, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम  

मेन्स के लिये:

56 सी-295 मेगावाट ( 56 C-295 MW) क्षमता वाले मध्यम परिवहन विमान की खरीद का रक्षा क्षेत्र में महत्त्व 

चर्चा में क्यों?   

सुरक्षा मामलों संबंधी समिति (CCS) ने एयरोस्पेस क्षेत्र में मेक-इन-इंडिया पहल के तहत भारतीय वायु सेना के लिये 56 सी-295 मेगावाट ( 56 C-295 MW) क्षमता वाले मध्यम परिवहन विमान की खरीद को मंज़ूरी दे दी है।

  • 56 सी-295 एमडब्ल्यू (C-295 MW) विमान को एयरबस डिफेंस एंड स्पेस एस.ए, स्पेन से खरीदा जाएगा।

C-295

प्रमुख बिंदु 

  • 56 सी-295 एमडब्ल्यू के बारे में:
    • क्षमता: 
      • 56 सी-295 एमडब्ल्यू समकालीन तकनीक के साथ 5-10 टन क्षमता का परिवहन विमान है।
    • विशेषताएँ
      • इसमें तेज़ी से प्रतिक्रिया और सैनिकों एवं कार्गो की पैरा ड्रॉपिंग के लिये एक रीयर रैंप (Rear Ramp Door) है।
      • इसे स्वदेशी इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट (Electronic Warfare Suite) के साथ स्थापित किया जाएगा।
    • प्रतिस्थापन: 
      • यह भारतीय वायु सेना के एवरो-748 ( Avro-748) विमानों के पुराने बेड़े की जगह लेगा।
        • एवरो-748 विमान एक ब्रिटिश मूल के ट्विन-इंजन टर्बोप्रॉप (British-origin twin-engine turboprop), सैन्य परिवहन और 6 टन माल ढुलाई क्षमता वाले मालवाहक विमान हैं।
    • परियोजना क्रियान्वयन:
      • एयरबस डिफेंस एंड स्पेस (Airbus Defence and Space) और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (Tata Advanced Systems Limited-TASL) एयरोस्पेस क्षेत्र में मेक-इन-इंडिया पहल के तहत वायु सेना को नए परिवहन विमान से लैस करने की परियोजना को संयुक्त रूप से क्रियान्वित करेंगे।
        • एयरबस पहले 16 विमानों को उड़ान भरने की स्थिति में आपूर्ति करेगी, जबकि शेष 40 को TASL द्वारा भारत में असेंबल किया जाएगा।
  • सौदे का महत्त्व:
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी: यह अपनी तरह की पहली परियोजना है जिसमें किसी निजी कंपनी द्वारा भारत में एक सैन्य विमान का निर्माण किया जाएगा।
      • उम्मीद है कि भारत में निर्माण की प्रक्रिया के दौरान टाटा कंसोर्टियम के सभी आपूर्तिकर्त्ता जो विशेष प्रक्रियाओं में शामिल होंगे, वे विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय एयरोस्पेस और ‘रक्षा संविदा प्रत्यायन कार्यक्रम’ (NADCAP) की मान्यता प्राप्त करेंगे और इसे बनाए रखेंगे।
    • आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा: यह भारतीय निजी क्षेत्र के लिये प्रौद्योगिकी गहन और अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी विमानन उद्योग में प्रवेश करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है।
      • यह कार्यक्रम स्वदेशी क्षमताओं को मज़बूत करने और 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा देने के लिये एक अनूठी पहल है।
    • एमएसएमई को बढ़ावा: यह परियोजना भारत में एयरोस्पेस पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देगी जिसमें देश भर में फैले कई सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) विमान के कुछ हिस्सों के निर्माण में शामिल होंगे।
    • आयात पर निर्भरता कम होगी: यह परियोजना घरेलू विमानन निर्माण को बढ़ावा देगी जिसके परिणामस्वरूप आयात पर निर्भरता कम होगी और निर्यात में अपेक्षित वृद्धि होगी।
      • भारत में बड़ी संख्या में पार्ट्स, उप संयोजक और एयरो स्ट्रक्चर के प्रमुख कंपोनेंट संयोजक इकाइयों का निर्माण किया जाना है।
    • रोज़गार सृजन: यह कार्यक्रम देश के एयरोस्पेस पारिस्थितिकी तंत्र में रोज़गार सृजन के लिये उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगा।
      • इससे भारत के एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष तौर पर 600 अत्यधिक कुशल नौकरियाँ, 3000 से अधिक अप्रत्यक्ष नौकरियाँ और 42.5 लाख से अधिक श्रम-घंटों के सृजन की उम्मीद है।
    • अवसंरचना विकास: इसमें हैंगर, भवन, एप्रन और टैक्सीवे के रूप में विशेष बुनियादी अवसंरचना का विकास शामिल होगा।
      • डिलीवरी के पूरा होने से पूर्व भारत में ‘C-295 MW’ विमानों के लिये 'D' लेवल सर्विसिंग सुविधा (MRO) स्थापित करने की योजना है।
      • यह उम्मीद की जाती है कि यह सुविधा ‘C-295’ विमान के विभिन्न रूपों के लिये एक क्षेत्रीय MRO (रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल) हब के रूप में कार्य करेगी।
    • ऑफसेट दायित्व: ‘एयरबस’ भारतीय ऑफसेट भागीदारों से योग्य उत्पादों और सेवाओं की सीधी खरीद के माध्यम से अपने ऑफसेट दायित्वों का निर्वहन करेगा, जिससे अर्थव्यवस्था को और बढ़ावा मिलेगा।
      • सरल शब्दों में ‘ऑफसेट दायित्व’ का आशय भारत के घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के दायित्व से है, यदि भारत इससे रक्षा उपकरण खरीद रहा है।

नोट

  • नेशनल एयरोस्पेस एंड डिफेंस कॉन्ट्रैक्टर प्रोग्राम (NADCAP) विशेष प्रक्रियाओं और उत्पादों के लिये लागत प्रभावी दृष्टिकोण का प्रबंधन करने तथा एयरोस्पेस एवं रक्षा उद्योगों के भीतर निरंतर सुधार करने के लिये डिज़ाइन किया गया एक विश्वव्यापी सहकारी कार्यक्रम है।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

रक्षा सेवाओं हेतु वित्तीय शक्तियों का प्रत्यायोजन नियम, 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने रक्षा सेवाओं हेतु वित्तीय शक्तियों का प्रत्यायोजन (DFPDS) नियम, 2021 जारी किया है।

  • इस नियम का प्राथमिक केंद्रबिंदु वित्तीय शक्तियों के बढ़े हुए प्रत्यायोजन में प्रक्रियात्मक अवरोधों को दूर कर इसमें अधिक विकेंद्रीकरण और परिचालन दक्षता लाना है।
  • सुरक्षात्मक बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने के लिये रक्षा सुधारों में DFPDS नियम, 2021 एक अन्य बड़ा कदम है।

प्रमुख बिंदु

  •  DFPDS, 2021 की मुख्य विशेषताएँ:
    • क्षेत्रीय टुकड़ियों (Field Formation) को सौंपी गई वित्तीय शक्तियाँ:
      • यह सेना, नौसेना और वायु सेना (सशस्त्र बलों) के लिये राजस्व अधिप्राप्ति शक्तियों के मामले में अधिकारों की वृद्धि का प्रावधान करता है।
      • सेवाओं के उप-प्रमुखों को प्रदत्त वित्तीय शक्तियों में 10 प्रतिशत की वृद्धि की गई है।
      • आवश्यकताओं के आधार पर सेवाओं के बीच नए अधिकारियों को  वित्तीय शक्तियों से संबंधित अधिकार भी सौंपे गए हैं।
    • परिचालन तैयारियों पर ध्यान केंद्रित करना:
      • नए नियमों के तहत महत्त्वपूर्ण उपकरणों (जो न केवल बहुत महँगे होते हैं बल्कि इनकी परिचालन तैयारियों में भी काफी समय लगता है ) को खरीदने या लंबी अवधि के लिये पट्टे पर लेने के बजाय उन्हें कम अवधि के लिये किराए पर लिया जा सकता है।
      • वित्तीय शक्तियों के प्रत्यायोजन का उद्देश्य फील्ड कमांडरों और उससे नीचे की रैंक वाले अधिकारियों को तत्काल परिचालन संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति एवं आवश्यक निर्वाह आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु उपकरण/वॉर-लाइक स्टोर की खरीद के लिये सशक्त बनाना है।
    • व्यापार सुगमता को बढ़ावा:
      • 'आत्मनिर्भर भारत' के लक्ष्य को हासिल करने के लिये स्वदेशीकरण/अनुसंधान एवं विकास से संबंधित वित्तीयन में तीन गुना तक की वृद्धि।
  • रक्षा क्षेत्र में हालिया सुधार:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

नवीकरणीय ऊर्जा और भूमि उपयोग

प्रिलिम्स के लिये

नवीकरणीय ऊर्जा

मेन्स के लिये

नवीकरणीय ऊर्जा के लिये भूमि उपयोग संबंधी विभिन्न पहलू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘रिन्यूएबल एनर्जी एंड लैंड यूज़ इन इंडिया बाय मिड-सेंचुरी’ (Renewable Energy and Land Use in India by Mid-Century) नामक एक रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि वर्तमान में सावधानीपूर्वक योजना बनाने से भविष्य के लाभ को अधिकतम किया जा सकता है और भारत के ऊर्जा ट्रांज़िशन की लागत को कम किया जा सकता है।

  • यह रिपोर्ट ‘इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस’ (IEEFA) द्वारा जारी की गई है, जो ऊर्जा बाज़ारों, प्रवृत्तियों और नीतियों से संबंधित मुद्दों की जाँच करता है।
  • इसका मिशन एक विविध, सतत् और लाभदायक ऊर्जा अर्थव्यवस्था में ऊर्जा ट्रांज़िशन को तीव्र करना है।

प्रमुख बिंदु

  • नवीकरणीय ऊर्जा के लिये भूमि उपयोग:
    • भारत नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित करने हेतु वर्ष 2050 तक भूमि के महत्त्वपूर्ण हिस्से का उपयोग करेगा।
      • अनुमान के मुताबिक, सौर ऊर्जा उत्पादन के लिये वर्ष 2050 तक लगभग 50,000-75,000 वर्ग किलोमीटर भूमि का उपयोग किया जाएगा और पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये अतिरिक्त 15,000-20,000 वर्ग किलोमीटर भूमि का उपयोग किया जाएगा।
    •  यूरोप या अमेरिका के विपरीत भारत में बिजली उत्पादन के लिये कृषि, शहरीकरण, मानव आवास और प्रकृति संरक्षण जैसे भूमि के वैकल्पिक उपयोगों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करनी पड़ती है।
  • सह-अस्तित्त्व:
    • उचित रूप से प्रबंधित नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन अन्य भूमि उपयोगों के साथ सह-अस्तित्व में भी हो सकता है और यह कोयला आधारित बिजली के विपरीत भूमि के स्वरूप में भी बदलाव नहीं करता है।
  • कार्बन उत्सर्जन:
    • अप्रत्यक्ष प्रभाव सहित परिणामी भूमि आवरण परिवर्तन से संभावित रूप से प्रति किलोवाट/घंटे (gCO2 / kwh) में 50 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड तक कार्बन का शुद्ध उत्सर्जन होगा।
    • कार्बन उत्सर्जन की मात्रा क्षेत्र, उसके विस्तार, सौर प्रौद्योगिकी दक्षता तथा सौर पार्कों में भूमि प्रबंधन के तरीके पर निर्भर करेगी। 
  • पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव:
    • नवीकरणीय ऊर्जा हेतु भूमि उपयोग विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों पर दबाव डाल सकता है। आमतौर पर शून्य प्रभाव क्षेत्र, बंजर भूमि, अप्रयुक्त भूमि या बंजर भूमि का अर्थ है कि ऐसे क्षेत्रों का कोई मूल्य नहीं है।
      • बंजर भूमि के रूप में वर्गीकृत ओपन नेचुरल इकोसिस्टम (ONE), भारत की भूमि की सतह के लगभग 10% को कवर करता है।
      • बंजर भूमि के सबसे बड़े खंड राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात में पाए जाते हैं।
    • हालाँकि इनमें से कुछ भू-खंडों में "बड़े स्तनधारी जीवों का  घनत्व और विविधता उच्चतम" है और ये स्थानीय आबादी की आजीविका की पूर्ति करने में सहायक हैं।
      • इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान और गुजरात में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के आवासों से गुज़रने वाली सौर ऊर्जा इकाइयों की सभी बिजली लाइनों को भूमिगत रखने का निर्देश दिया था, क्योंकि ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनें लुप्तप्राय प्रजातियों के लिये खतरा हो सकती हैं।
  • सुझाव:
    • पर्यावरणीय क्षति को कम करें:
      • पर्यावरणीय क्षति को कम करने के लिये उपयोग की गई भूमि के आकार, स्थान और मानव निवास, कृषि एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर उसके प्रभाव तथा उसके प्रति अनुकूलन।
    • भूमि उपयोग को कम करना:
      • जल निकायों पर अपतटीय पवन, रूफटॉप सोलर को बढ़ावा देकर अक्षय ऊर्जा के लिये कुल भूमि उपयोग आवश्यकता को कम करना।
    • भूमि आकलन:
      • संभावित स्थलों की रेटिंग हेतु अनुचित क्षेत्रीयता को सीमित करके और पर्यावरण एवं सामाजिक मानकों को विकसित कर नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के लिये भूमि की पहचान और मूल्यांकन।
      • अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के स्थान पर विचार करते समय नीति निर्माताओं और योजनाकारों को उच्च घनत्व वाले आवासीय वनों को इससे बाहर रखना चाहिये।
    • कृषि वैद्युत को प्रोत्साहन:
      • भारतीय कृषि वैद्युत क्षेत्र पर ध्यान देकर किसानों को लाभ प्रदान करना और कृषि वैद्युत को प्रोत्साहित करना, जहाँ फसल, मिट्टी एवं स्थितियाँ उपयुक्त हों और पैदावार को बनाए रखा जा सके या उसमें सुधार किया जा सके।
        • कृषि वैद्युत को फोटोवोल्टिक सेल द्वारा विद्युत ऊर्जा के उत्पादन के साथ भूमि के कृषि उपयोग को जोड़ती है।

स्रोत- डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

NSCN(K) निकी समूह के साथ युद्धविराम

प्रिलिम्स के लिये: 

नगा शांति प्रक्रिया, कार्बी एंगलोंग समझौता, ब्रू जनजाति

मेन्स के लिये: 

पूर्वोत्तर भारत में संघर्ष के कारण एवं उनके समाधान के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN-K) निकी ग्रुप के साथ एक वर्ष की अवधि के लिये युद्धविराम समझौता किया है।

  • यह पहल नगा शांति प्रक्रिया के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम है तथा भारत के प्रधानमंत्री के 'उग्रवाद मुक्त, समृद्ध उत्तर पूर्व' के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

प्रमुख बिंदु

  • नगा शांति प्रक्रिया :
    • 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात् आरंभिक चरण में नगा क्षेत्र असम का हिस्सा बना रहा।
    • 1957 में, नगा नेताओं और भारत सरकार के बीच एक समझौते के बाद, असम के नगा हिल्स क्षेत्र तथा  उत्तर-पूर्व में त्युएनसांग फ्रंटियर डिवीजन को  एक साथ भारत सरकार द्वारा प्रत्यक्ष रूप से प्रशासन की एक इकाई के अंतर्गत लाया गया था।
    • नगालैंड ने वर्ष1963 में राज्य का दर्जा हासिल किया, हालाँकि इसके बाद भी विद्रोही गतिविधियाँ जारी रही।

Naga-Struggle

  • उग्रवाद मुक्त समृद्ध पूर्वोत्तर  का दृष्टिकोण (विज़न) 
    • यह माना जाता हैं कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से पूर्वोत्तर राज्य देश के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 
    • इसलिये इसका उद्देश्य 2022 तक पूर्वोत्तर में सभी प्रकार के विवादों को समाप्त करना तथा वर्ष 2023 में पूर्वोत्तर में शांति और विकास के एक नए युग की शुरुआत करना है।
    • इसके तहत सरकार पूर्वोत्तर की गरिमा, संस्कृति, भाषा, साहित्य और संगीत को समृद्ध कर रही है।
    • हालिया वर्षों में सरकार ने पूर्वोत्तर भारत में सैन्य संगठनों के साथ कई शांति समझौतों पर भी हस्ताक्षर किये हैं। उदाहरण -
      • कार्बी एंगलोंग समझौता, 2021: इसमें असम के पाँच विद्रोही समूहों, केंद्र और असम की राज्य सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
      • ब्रू समझौता, 2020 : ब्रू समझौते के तहत त्रिपुरा में 6959 ब्रू परिवारों के लिये वित्तीय पैकेज सहित स्थायी बंदोबस्त पर भारत सरकार, त्रिपुरा और मिज़ोरम के बीच ब्रू प्रवासियों के प्रतिनिधियों के साथ सहमति व्यक्त की गई है।
      • बोडो शांति समझौता, 2020 : 2020 में भारत सरकार, असम सरकार और बोडो समूहों के प्रतिनिधियों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें असम में बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (Bodoland Territorial Region-BTR) को अधिक स्वायत्तता प्रदान की गई।  
      • NSCN(NK), NSCN (R), और NSCN (K)-खांगो, NSCN (IM) जैसे नगा विद्रोह में शामिल विभिन्न सैन्य संगठनों के साथ शांति समझौता।

पूर्वोत्तर भारत में संघर्ष:

Assam

  • संघर्षों की प्रकृति:
    • राष्ट्रीय स्तर के संघर्ष: इसमें एक अलग राष्ट्र के रूप में एक विशिष्ट 'मातृभूमि' की अवधारणा को शामिल है।
      • नगालैंड: नगा विद्रोह, स्वतंत्रता की मांग के साथ शुरू हुआ। 
        • यद्यपि स्वतंत्रता की मांग काफी हद तक कम हो गई है, लेकिन 'ग्रेटर नगालैंड' या 'नगालिम' की मांग सहित अंतिम राजनीतिक समझौते का मुद्दा अभी भी जीवंत बना हुआ है।
    • जातीय संघर्ष: इसमें प्रभावशाली जनजातीय समूह की राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाविता के खिलाफ संख्यात्मक रूप से छोटे और कम प्रभावशाली जनजातीय समूहों के दावे को शामिल करना शामिल है।
      • त्रिपुरा: वर्ष 1947 के बाद से राज्य की जनसांख्यिकीय रूपरेखा में काफी परिवर्तन हुआ है यह परिवर्तन मुख्य रूप से तब हुआ जब नवगठित पूर्वी पाकिस्तान से बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन हुआ और इसने त्रिपुरा को आदिवासी बहुमत वाले क्षेत्र से बंगाली भाषी लोगों के बहुमत वाले क्षेत्र में बदल दिया।
        • आदिवासियों को मामूली कीमतों पर उनकी कृषि भूमि से वंचित कर दिया गया तथा उन्हें वन भूमियों की ओर भेज दिया गया।
        • इसके परिणामस्वरुप तनाव व्यापक हिंसा और उग्रवाद की स्थिति पैदा हुई।
    • उप-क्षेत्रीय संघर्ष:  उप-क्षेत्रीय संघर्ष में ऐसे आंदोलनों को शामिल किया जाता है जो उप-क्षेत्रीय आकांक्षाओं को मान्यता देने को प्रेरित करते हैं और प्रायः राज्य सरकारों या यहाँ तक ​​कि स्वायत्त परिषदों के साथ सीधे संघर्ष में व्याप्त हो जाते हैं।
      • मिज़ोरम: हिंसक विद्रोह के अपने इतिहास और उसके बाद शांति की ओर लौटने वाला यह राज्य अन्य सभी हिंसा प्रभावित राज्यों के लिये एक उदाहरण है।
        • वर्ष 1986 में केंद्र सरकार और मिज़ो नेशनल फ्रंट के बीच 'मिज़ो शांति समझौते' और अगले वर्ष राज्य का दर्जा दिये जाने के बाद मिज़ोरम में पूर्ण शांति और सद्भाव कायम है।
      • इसके अलावा मिज़ोरम के गठन के समय से ही असम और मिज़ोरम के बीच सीमा विवाद व्याप्त है।
    • अन्य कारण: प्रायोजित आतंकवाद, सीमापार से प्रवासियों की निरंतर आवाजाही के परिणामस्वरूप उत्पन्न संघर्ष, महत्त्वपूर्ण आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण को और मज़बूत करने के उद्देश्य के परिणामतः  आपराधिक स्थितियाँ बन गई हैं।
      • असम: राज्य में प्रमुख जातीय संघर्ष 'विदेशियों' की आवाजाही के कारण है यहाँ विदेशियों से तात्पर्य सीमा पार ( बांग्लादेश) से असमिया से काफी अलग भाषा और संस्कृति वाले लोगों से है।
  • संघर्ष समाधान के तरीके:
    • सुरक्षा बलों/पुलिस कार्रवाई' को मज़बूत करना।
    • राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची, संविधान के भाग XXI के तहत विशेष प्रावधान जैसे तंत्र के माध्यम से अधिक स्थानीय स्वायत्तता।
    • उग्रवादी संगठनों से बातचीत।
    • विशेष आर्थिक पैकेज सहित विकास गतिविधियाँ।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

वस्त्र उद्योग के लिये उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना

प्रिलिम्स के लिये:

उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना

मेन्स के लिये:

वस्त्र उद्योग के लिये PLI योजना का महत्त्व और वस्त्र उद्योग की चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय कैबिनेट ने वस्त्र उद्योग हेतु ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ (PLI) योजना को मंज़ूरी दी है।

  • वस्त्र क्षेत्र हेतु ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ योजना, केंद्रीय बजट 2021-22 के दौरान 13 क्षेत्रों के लिये घोषित PLI योजना का हिस्सा है, जिसमें 1.97 लाख करोड़ रुपए का परिव्यय शामिल है।
  • RoSCTL, RoDTEP और इस क्षेत्र में सरकार के अन्य उपायों जैसे- प्रतिस्पर्द्धी कीमतों पर कच्चे माल की उपलब्धता एवं कौशल विकास आदि के साथ ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ योजना के माध्यम से वस्त्र निर्माण क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत की जा सकेगी।

प्रमुख बिंदु

  • ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ योजना
    • घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और आयात बिलों में कटौती करने के लिये केंद्र सरकार ने मार्च 2020 में एक PLI योजना शुरू की थी, जिसका उद्देश्य घरेलू इकाइयों में निर्मित उत्पादों से बढ़ती बिक्री पर कंपनियों को प्रोत्साहन देना है।
    • विदेशी कंपनियों को भारत में इकाई स्थापित करने के लिये आमंत्रित करने के अलावा, इस योजना का उद्देश्य स्थानीय कंपनियों को मौजूदा विनिर्माण इकाइयों की स्थापना या विस्तार के लिये प्रोत्साहित करना भी है।
    • इस योजना को ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स, आईटी हार्डवेयर जैसे लैपटॉप, मोबाइल फोन और दूरसंचार उपकरण, व्हाइट गुड्स, रासायनिक सेल, खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों के लिये भी अनुमोदित किया गया है।

Incentive-work

  • वस्त्र उद्योग के संदर्भ में PLI योजना की विशेषताएंँ:
    • इसके तहत उच्च मूल्य वाले मानव निर्मित फाइबर (MMF) कपड़े, वस्त्र और तकनीकी वस्त्रों के उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
    • 5 वर्ष की अवधि में इस क्षेत्र को उत्पादन पर 10,683 करोड़ रुपए की  प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी।
    • पात्र उत्पादकों को दो चरणों में प्रोत्साहन:
      • पहला: कोई भी व्यक्ति या कंपनी जो एमएमएफ फैब्रिक, गारमेंट्स और तकनीकी टेक्सटाइल के उत्पादों के उत्पादन के लिए संयंत्र, मशीनरी, उपकरण और सिविल कार्यों (भूमि और प्रशासनिक भवन लागत को छोड़कर) में न्यूनतम 300 करोड़ रुपए का निवेश करने का इच्छुक है, भाग लेने के लिए पात्र होगा।
      • दूसरा: उन्हीं शर्तों के तहत (जैसे पहले चरण के मामले में) न्यूनतम 100 करोड़ रुपए खर्च करने के इच्छुक निवेशक आवेदन करने के पात्र होंगे।
  • अपेक्षित लाभ:
    • निवेश और रोज़गार में वृद्धि:
      • इससे 19,000 करोड़ रुपए से अधिक का नया निवेश होगा, जिससे कुल कारोबार 3 लाख करोड़ और इस क्षेत्र में 7.5 लाख से अधिक नौकरियों के अतिरिक्त सहायक गतिविधियों के लिये कई लाख से अधिक रोज़गार के अवसर सृजित होंगे।
        • वस्त्र उद्योग मुख्य रूप से महिलाओं को रोज़गार देता है, इसलिये यह योजना महिलाओं को सशक्त बनाएगी और औपचारिक अर्थव्यवस्था में उनकी भागीदारी को बढ़ाएगी।
    • पिछड़े क्षेत्रों को प्राथमिकता:
      • साथ ही आकांक्षी ज़िलों, टियर-3, टियर-4 कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश को प्राथमिकता दी जाएगी और इसके माध्यम से उद्योग को पिछड़े क्षेत्रों में ले जाने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा.
        • यह योजना विशेष रूप से गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा आदि जैसे राज्यों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी।

वस्त्र उद्योग

  • वस्त्र और वस्त्र उद्योग श्रम प्रधान क्षेत्र है जो भारत में 45 मिलियन लोगों को रोज़गार देता है, रोज़गार के मामले में इस क्षेत्र का कृषि क्षेत्र के बाद दूसरा स्थान है।
  • भारत का वस्त्र क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है और पारंपरिक कौशल, विरासत तथा संस्कृति का भंडार एवं वाहक है।
  • इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है-
    • असंगठित क्षेत्र छोटे पैमाने का है जो पारंपरिक उपकरणों और विधियों का उपयोग करता है। इसमें हथकरघा, हस्तशिल्प एवं रेशम उत्पादन शामिल हैं।
    • संगठित क्षेत्र आधुनिक मशीनरी और तकनीकों का उपयोग करता है तथा इसमें कताई, परिधान एवं वस्त्र शामिल हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


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