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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में वस्त्र उद्योग

  • 16 Jul 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये

राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन, जूट आईकेयर, रेशम उत्पादन, भारतीय सकल घरेलू उत्पाद, तकनीकी वस्त्र, रेशम समग्र योजना, एकीकृत वस्त्र पार्क योजना, संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना 

मेन्स के लिये

वस्त्र उद्योग एवं इसकी चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय कपड़ा मंत्री ने कपड़ा क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये कपड़ा मंत्रालय (Ministry of Textile) द्वारा की गई पहलों की गहन समीक्षा की।

प्रमुख बिंदु 

कपड़ा और वस्त्र उद्योग के विषय में:

  • कपड़ा और वस्त्र उद्योग श्रम प्रधान क्षेत्र है जो भारत में 45 मिलियन लोगों को रोज़गार देता है, रोज़गार के मामले में इस क्षेत्र का कृषि क्षेत्र के बाद दूसरा स्थान है।
  • भारत का कपड़ा क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है और पारंपरिक कौशल, विरासत तथा संस्कृति का भंडार एवं वाहक है।
  • इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है-
    • असंगठित क्षेत्र छोटे पैमाने का है जो पारंपरिक उपकरणों और विधियों का उपयोग करता है। इसमें हथकरघा, हस्तशिल्प एवं रेशम उत्पादन शामिल हैं।
    • संगठित क्षेत्र आधुनिक मशीनरी और तकनीकों का उपयोग करता है तथा इसमें कताई, परिधान एवं वस्त्र शामिल हैं।

वस्त्र उद्योग का महत्त्व:

  • यह भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 2.3%, औद्योगिक उत्पादन का 7%, भारत की निर्यात आय में 12% और कुल रोज़गार में 21% से अधिक का योगदान देता है।
  • भारत 6% वैश्विक हिस्सेदारी के साथ तकनीकी वस्त्रों (Technical Textile) का छठा (विश्व में कपास और जूट का सबसे बड़ा उत्पादक) बड़ा उत्पादक देश है।
    • तकनीकी वस्त्र कार्यात्मक कपड़े होते हैं जो ऑटोमोबाइल, सिविल इंजीनियरिंग और निर्माण, कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, औद्योगिक सुरक्षा, व्यक्तिगत सुरक्षा आदि सहित विभिन्न उद्योगों में अनुप्रयोग होते हैं।
  • भारत विश्व में रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश भी है जिसकी विश्व में हाथ से बुने हुए कपड़े के मामले में 95% हिस्सेदारी है।

भारतीय वस्त्र उद्योग की चुनौतियाँ

  • अत्यधिक खंडित: भारतीय वस्त्र उद्योग अत्यधिक खंडित है और इसमें मुख्य तौर पर असंगठित क्षेत्र तथा छोटे एवं मध्यम उद्योगों का प्रभुत्व देखने को मिलता है।
  • पुरानी तकनीक: भारतीय वस्त्र उद्योग के समक्ष नवीनतम तकनीक तक पहुँच एक बड़ी चुनौती है (विशेषकर लघु उद्योगों में) और ऐसी स्थिति में यह अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार में वैश्विक मानकों को पूरा करने में विफल रहा है।
  • कर संरचना संबंधी मुद्दे: कर संरचना जैसे- वस्तु एवं सेवा कर (GST) घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में वस्त्र उद्योग को महँगा एवं अप्रतिस्पर्द्धी बनाती है। 
  • स्थिर निर्यात: इस क्षेत्र का निर्यात स्थिर है और पिछले छह वर्षों से 40 अरब डॉलर के स्तर पर बना हुआ है।
  • व्यापकता का अभाव: भारत में परिधान इकाइयों का औसत आकार 100 मशीनों का है जो बांग्लादेश की तुलना में बहुत कम है, जहाँ प्रति कारखाना औसतन कम-से-कम 500 मशीनें हैं।
  • विदेशी निवेश की कमी: ऊपर दी गई चुनौतियों के कारण विदेशी निवेशक वस्त्र उद्योग में निवेश करने के बारे में बहुत उत्साहित नहीं हैं जो कि एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय है।
    • यद्यपि इस क्षेत्र में पिछले पाँच वर्षों के दौरान निवेश में तेज़ी देखी गई है, किंतु उद्योग ने अप्रैल 2000 से दिसंबर 2019 तक केवल 3.41 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित किया है।

प्रमुख पहल:

  • संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (Amended Technology Upgradation Fund Scheme- ATUFS): वर्ष 2015 में सरकार ने कपड़ा उद्योग के प्रौद्योगिकी उन्नयन हेतु  "संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (ATUFS) को मंज़ूरी दी।
  • एकीकृत वस्त्र पार्क योजना (Scheme for Integrated Textile Parks- SITP): यह योजना कपड़ा इकाइयों की स्थापना के लिये विश्व स्तरीय बुनियादी सुविधाओं के निर्माण हेतु सहायता प्रदान करती है।।
  • समर्थ (कपड़ा क्षेत्र में क्षमता निर्माण हेतु योजना): कुशल श्रमिकों की कमी को दूर करने के लिये वस्त्र क्षेत्र में क्षमता निर्माण हेतु  समर्थ योजना (SAMARTH Scheme) की शुरुआत की गई।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र वस्त्र संवर्द्धन योजना (North East Region Textile Promotion Scheme- NERTPS): यह कपड़ा उद्योग के सभी क्षेत्रों को बुनियादी ढांँचा, क्षमता निर्माण और विपणन सहायता प्रदान करके NER में कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने से संबंधित योजना है।
  • पावर-टेक्स इंडिया: इसमें पावरलूम टेक्सटाइल में नए अनुसंधान और विकास, नए बाज़ार, ब्रांडिंग, सब्सिडी और श्रमिकों हेतु कल्याणकारी योजनाएंँ शामिल हैं।
  • रेशम समग्र योजना: यह योजना घरेलू रेशम की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करती है ताकि आयातित रेशम पर देश की निर्भरता कम हो सके।
  • जूट आईकेयर: वर्ष 2015 में शुरू की गई इस पायलट परियोजना का उद्देश्य जूट की खेती करने वालों को रियायती दरों पर प्रमाणित बीज प्रदान करना और पानी सीमित परिस्थितियों में कई नई विकसित रेटिंग प्रौद्योगिकियों को लोकप्रिय बनाने के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को दूर करना है।
  • राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन: इसका उद्देश्य देश को तकनीकी वस्त्रों में वैश्विक नेता के रूप में स्थान देना और घरेलू बाज़ार में तकनीकी वस्त्रों के उपयोग को बढ़ाना है। इसका लक्ष्य वर्ष 2024 तक घरेलू बाज़ार का आकार 40 बिलियन अमेरिकी  डॉलर से 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक ले जाना है।

आगे की राह:

  • वस्त्र क्षेत्र में काफी संभावनाएँ हैं और इसे नवाचारों, नवीनतम प्रौद्योगिकी और सुविधाओं का उपयोग करके महसूस किया जाना चाहिये।
  • भारत वस्त्र उद्योग के लिये मेगा अपैरल पार्क और साझा बुनियादी ढाँचे की स्थापना करके इस क्षेत्र को संगठित कर सकता है। अप्रचलित मशीनरी और प्रौद्योगिकी के आधुनिकीकरण पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • भारत को वस्त्र क्षेत्र के विकास हेतु एक व्यापक खाका तैयार करने की ज़रूरत है। इसके एक बार तैयार हो जाने के बाद देश को इसे हासिल करने के लिये मिशन मोड में कार्य करने की ज़रूरत होगी।

स्रोत: पी.आई.बी.

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