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डेली न्यूज़

  • 09 May, 2024
  • 40 min read
भूगोल

हीट वेव, प्रतिचक्रवात एवं ग्लोबल वार्मिंग की परस्पर क्रिया

प्रिलिम्स के लिये:

अल-नीनो, भारत मौसम विज्ञान विभाग, हीट वेव, जलवायु परिवर्तन, ग्रीनहाउस गैस

मेन्स के लिये:

ग्लोबल वार्मिंग और हीट वेव, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ, भारतीय मौसम प्रतिरूपों पर प्रतिचक्रवात का प्रभाव

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2023 में अल-नीनो का प्रभाव कम होने से विश्व ग्रसित स्थित में है हाल ही में भारत मौसम विज्ञान विभाग ने पूर्वी भारत और गंगा के मैदान के व्यापक क्षेत्रों को प्रभावित करने वाली हीट वेव की स्थिति की चेतावनी जारी की है।

  • यह इस चुनौती को समझने पर प्रकाश डालता है कि ग्लोबल वार्मिंग स्थानीय मौसम को कैसे प्रभावित करती है। इसके अतिरिक्त, प्रतिचक्रवात की उपस्थिति स्थिति को और अधिक जटिल बना देती है, जिससे प्रभावित क्षेत्रों में हीट वेव की गंभीरता बढ़ जाती है।

ग्लोबल वार्मिंग में हीट वेव की क्या भूमिका है?

  • हीट वेव जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है, जो  जीवाश्म ईंधन जलने से और बढ़ती है, यह हीट वेव वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों (GHG) के स्तर में वृद्धि करती है।
    • ये गैसें अत्यधिक उष्ण ऊर्जा को रोकती हैं, जिससे औसत तापमान में वृद्धि होती है।
  • मानव गतिविधियों से होने वाले GHG उत्सर्जन ने पूर्व-औद्योगिक काल से पृथ्वी को लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस तक गर्म कर दिया है।
    • इस गर्म आधार रेखा का मतलब है कि अत्यधिक गर्मी की घटनाओं के दौरान उच्च तापमान तक पहुँचा जा सकता है।
  • ग्लोबल वार्मिंग के कारण विभिन्न क्षेत्रों में तापमान में असमान परिवर्तन होता है, जिससे हीट वेव में स्थानीय भिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • कुछ क्षेत्रों में शीत तापमान का अनुभव होने के बाद भी, ग्लोबल वार्मिंग ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न कर सकती है जो भूमि उपयोग और भूगोल से प्रभावित होकर स्थानीय स्तर पर हीट वेव को तीव्र कर सकती हैं।
  • हीट वेव के सटीक पूर्वानुमान और कुशल शमन के लिये इन क्षेत्रीय प्रभावों को समझना महत्त्वपूर्ण है।

प्रतिचक्रवात क्या है?

  • उच्च दाब प्रणाली: प्रतिचक्रवात उच्च वायुमंडलीय दाब के क्षेत्र हैं, जो चक्रवातों (निम्न दाब) के विपरीत हैं।
  • पवन परिसंचरण: पृथ्वी के घूर्णन (कोरिओलिस प्रभाव) के कारण उत्तरी गोलार्द्ध  में एक प्रतिचक्रवात के चारों ओर पवनें दक्षिणावर्त और दक्षिणी गोलार्द्ध में वामावर्त चलती हैं।
  • साफ आसमान और शांत मौसम: प्रतिचक्रवात निम्न पवन और साफ आसमान के साथ स्थिर, शांत स्थिति लाते हैं।
  • शुष्क पवन: प्रतिचक्रवातों में अवशोषित होने वाली पवनें उष्ण हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप वह शुष्क हो जाती है, जिससे न्यून वर्षा और आर्द्रता देखने को मिलती है।
  • ग्रीष्मकालीन बनाम शीतकालीन प्रभाव: ग्रीष्मकालीन प्रतिचक्रवात उष्ण और धूपयुक्त हो सकते हैं, जबकि शीतकालीन प्रतिचक्रवात सुबह के समय साथ ठंडे व साफ हो सकते हैं।

प्रतिचक्रवात ताप से क्यों संबंधित हैं?

  • प्रतिचक्रवात और ताप:
    • प्रतिचक्रवात अपनी दृढ़ता और शक्ति के माध्यम से ताप से जुड़े होते हैं। 
    • भारतीय पूर्वी-जेट (IEJ) और एक शक्तिशाली पश्चिमी जेट पूर्व मानसून मौसम में हिंद महासागर तथा भारतीय उपमहाद्वीप पर एक प्रतिचक्रवाती दशाएँ उत्पन्न कर सकते हैं।
      • एक शक्तिशाली प्रतिचक्रवात भारत के कई भागों में शुष्क और गर्म मौसम ला सकता है, जबकि एक क्षीण/कमज़ोर प्रतिचक्रवात आने पर मौसम आर्द्र हो जाता है।
      • IEJ मध्य क्षोभमंडल में तीव्र पूर्वी पवनों की एक संकीर्ण बेल्ट है जो पूर्व मानसून मौसम (मार्च-मई) के दौरान प्रायद्वीपीय भारत और निकटवर्ती दक्षिण हिंद महासागर में चलती है।
        • यह अफ्रीकी पूर्वी-जेट (AEJ) से क्षीण और आकार में सूक्ष्म होता है।
        • AEJ पश्चिम अफ्रीका के निचले क्षोभमंडल में होता है। यह पूर्वी हवाओं की विशेषता है और ग्रीष्मकाल के समय सबसे प्रमुख है।
        • इसका निर्माण शुष्क सहारा रेगिस्तान और शीत गिनी की खाड़ी के बीच तापमान के अंतर के कारण हुआ है।
  • मौसम के प्रकृति पर प्रतिचक्रवातों का प्रभाव:
    • भारत में प्रबल IEJ वर्षों के दौरान निकट-सतह तापमान उच्च और मौसम शुष्क होता है, जबकि क्षीण IEJ वर्षों के दौरान तापमान ठंडा तथा मौसम आद्रतापूर्ण होता है।
    • किसी विशेष वर्ष में प्रतिचक्रवात की तीव्रता यह निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण कारक है कि क्या यह उष्ण लहरों और ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित है।
      • भारतीय उपमहाद्वीप पर अल-नीनो के प्रभाव से तीव्र तथा निरंतर प्रतिचक्रवात उत्पन्न होते हैं, जो लंबे समय तक चलने वाली और अधिक तीव्र हीट वेव्स उत्पन्न करते हैं।
    • मौसम की सटीक भविष्यवाणी तथा पूर्व चेतावनियों के लिये ठंडे मौसमी तापमान तथा तीव्र एवं निरंतर प्रतिचक्रवात की पृष्ठभूमि को समझना आवश्यक है।
  • प्रतिचक्रवातों का हालिया प्रभाव:
    • मार्च 2024 में ओडिशा में असामान्य वर्षा के लिये उत्तर हिंद महासागर पर हालिया प्रतिचक्रवाती परिसंचरण उत्तरदायी थे। दक्षिणावर्त एवं अवतालित वायु (sinking air) वाले प्रतिचक्रवात, उच्च दबाव वाले ताप गुंबद बना सकते हैं।
      • अप्रैल 2024 में दुबई में आई बाढ़ में भी  इस घटना का योगदान हो सकता है।

पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ: 

  • ग्लोबल वार्मिंग के लिये सटीक पूर्व-चेतावनी प्रणालियाँ तीन-चरणीय पद्धति का उपयोग करती हैं जिसे 'रेडी-सेट-गो' प्रणाली कहा जाता है।
  • यह पद्धति विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अंतर्गत विश्व जलवायु अनुसंधान कार्यक्रम के 'सबसीज़नल-टू-सीज़नल पूर्वानुमान (S 2 S)' परियोजना का भाग है।
    • भारत इस परियोजना में भाग ले रहा है तथा भारत ने S2S परियोजना में भारी निवेश किया है।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी (NDMA) के कुशल और प्रभावी कार्यन्वयन के मार्गदर्शन हेतु  तीन-चरणीय पद्धति बहुत महत्त्वपूर्ण है।
    • 'रेडी' चरण ग्लोबल वार्मिंग तथा अल नीनो जैसे बाहरी कारकों के आधार पर एक मौसमी संभावना प्रदान करता है।
    • 'सेट' चरण में दो से चार सप्ताह पूर्व बताई जा सकने वाली उप-मौसमी भविष्यवाणियाँ, संसाधन आवंटन में योगदान तथा संभावित हॉटस्पॉट की पहचान शामिल है।
    • 'गो' चरण लघु और मध्यम-श्रेणी के मौसम पूर्वानुमानों पर आधारित है और इसमें आपदा प्रतिक्रिया प्रयासों का प्रबंधन शामिल है।
  • हालाँकि,चुनौती स्थानीय स्तर पर मौसम की भविष्यवाणी करने में है। यद्यपि 10 साल की अवधि में होने वाले मौसम परिवर्तनों का पूर्वानुमान लगाने के प्रयास चल रहे हैं।
    • विभिन्न स्तरों पर समन्वय और पूर्व चेतावनी तंत्र विकसित किये जा रहे हैं, जिसके लिये सरकारों, विभागों तथा जनता के प्रशिक्षण एवं सहयोग की आवश्यकता है।
  • इन प्रणालियों की सफलता भारत के सतत् आर्थिक विकास के लिये  महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. वर्णन कीजिये कि कैसे, विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के संदर्भ मे प्रतिचक्रवात, हीटवेव को तीव्रता प्रदान करते हैं और मौसम प्रणालियों की जटिलता को बढ़ाते हैं?

और पढ़ें: हीट वेव

  UPSC सिविल सेवा, परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये (2020)

  1. जेट प्रवाह केवल उत्तरी गोलार्द्ध में होते हैं।   
  2. केवल कुछ चक्रवात ही केंद्र में वाताक्षि उत्पन्न करते हैं।   
  3. चक्रवाती की वाताक्षि के अंदर का तापमान आस-पास के तापमान से लगभग 10º C कम होता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2 
(d) केवल 1 और 3

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • जेट स्ट्रीम, एक भू-आकृतिक वायु है जो क्षोभमंडल की ऊपरी परतों के माध्यम से क्षैतिज रूप से पश्चिम से पूर्व की ओर, 20,000-50,000 फीट की ऊँचाई पर बहती है।
  • जेट स्ट्रीम वहाँ विकसित होती हैं जहाँ विभिन्न तापमान की वायुराशियाँ मिलती हैं। इसलिये, आमतौर पर सतह का तापमान निर्धारित करता है कि जेट स्ट्रीम कहाँ बनेगी।
  • तापमान में अंतर जितना अधिक होगा, जेट स्ट्रीम के अंदर वायु का वेग उतना ही अधिक होगा। जेट स्ट्रीम दोनों गोलार्द्धों में 20° अक्षांश से ध्रुवों तक विस्तृत होती हैं। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • चक्रवात दो प्रकार के होते हैं, उष्णकटिबंधीय चक्रवात और शीतोष्ण चक्रवात। उष्णकटिबंधीय चक्रवात के केंद्र को 'चक्रवात की आँख' के रूप में जाना जाता है, जहाँ केंद्र में वायु शांत होती है और वर्षा नहीं होती है।
  • हालाँकि, शीतोष्ण चक्रवात में एक भी स्थान ऐसा नहीं होता जहाँ वायु और वर्षा निष्क्रिय हों, इसलिये चक्रवात की आँख का निर्माण नहीं होता है। अतः कथन 2 सही है।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात की आँख का तापमान गर्म होता है, साथ ही यह गर्म तापमान ही तूफान को तीव्रता प्रदान करता है। अतः कथन 3 सही नहीं है।

मेन्स:

प्रश्न. उष्णकटिबंधीय चक्रवात अधिकांशतः दक्षिणी चीन सागर, बंगाल की खाड़ी और मैक्सिको की खाड़ी तक ही परिसीमित रहते हैं। ऐसा क्यों हैं? (2014)


जैव विविधता और पर्यावरण

कृत्रिम आर्द्रभूमि

प्रिलिम्स के लिये:

कृत्रिम आर्द्रभूमियों के लाभ, कृत्रिम आर्द्रभूमियों के प्रकार, आर्द्रभूमियाँ, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB)

मेन्स के लिये:

कृत्रिम आर्द्रभूमियाँ भारत के जल संकट में कैसे मदद कर सकती हैं, भारत के सतत् विकास के लिये कृत्रिम आर्द्रभूमियों का उपयोग

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

कृत्रिम आर्द्रभूमि, औद्योगिक अपशिष्ट जल उपचार के लिये एक अधिक सर्वव्यापी और प्राकृतिक दृष्टिकोण ने हाल ही में अधिक पारंपरिक तकनीकों के स्थान पर लोकप्रियता प्राप्त की है, जो मौजूद विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों पर नियंत्रण रखने में सक्षम नहीं हैं।

कृत्रिम आर्द्रभूमि क्या हैं?

  • परिचय:
    • कृत्रिम आर्द्रभूमि, अपशिष्ट जल उपचार के लिये आर्द्रभूमि की प्राकृतिक प्रक्रियाओं को दोहराने के लिये डिज़ाइन की गई अभियांत्रिकीय प्रणालियाँ हैं। 
    • वे जल, मिट्टी और चयनित वनस्पति द्वारा निर्मित होते हैं जो मिलकर अपशिष्ट जल को शुद्ध करते हैं।
    • इन आर्द्रभूमियों को विशेष रूप से लाभकारी सूक्ष्मजीवों और पौधों के विकास को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन किया गया है जो प्रदूषकों को विघटित कर सकती हैं तथा जल की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं।
  • कृत्रिम आर्द्रभूमि के प्रकार: 
    • उपसतह प्रवाह (SSF): SSF आर्द्रभूमि में, जब अपशिष्ट जल को छिद्रयुक्त माध्यम या बजरी के तल से गुज़ारा जाता है तो कार्बनिक पदार्थ सूक्ष्मजीवों द्वारा विखंडित हो जाते हैं।
    • सतह प्रवाह (SF): SF आर्द्रभूमि में सतह के ऊपर से जल प्रवाहित होता है, जो अक्सर विविध वनस्पतियों के साथ सौंदर्य की दृष्टि से सुंदर परिदृश्य निर्मित करता है।
  • कृत्रिम आर्द्रभूमियों के लाभ:
    • आवश्यकता: औद्योगिक अपशिष्ट जल में शामिल प्रदूषकों के जटिल मिश्रण को आमतौर पर पारंपरिक उपचार तकनीकों, जैसे भौतिक और रासायनिक उपचार हेतु पर्याप्त रूप से संभालना मुश्किल होता है।
      • ये विधियाँ अत्यधिक महँगी, ऊर्जा-गहन हो सकती हैं तथा सभी दूषित पदार्थों का पूर्ण रूप से निष्कर्षण नहीं कर सकती हैं। यहाँ पर कृत्रिम आर्द्रभूमि जैसे अधिक व्यापक और टिकाऊ समाधानों की भूमिका सामने आती है।
    • पर्यावरणीय लाभ: वे जैवविविधता संरक्षण में योगदान करते हुए विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों की प्रजातियों के लिये आवास के रूप में कार्य कर सकते हैं। 
      • इसके अतिरिक्त, वे बाढ़ नियंत्रण और कार्बन पृथक्करण जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं, जिससे उनका पारिस्थितिक महत्त्व एवं मूल्य बढ़ सकता है।
      • कृत्रिम आर्द्रभूमियाँ जल उपचार के लिये एक स्थायी समाधान हैं। इन्हें न्यूनतम ऊर्जा की आवश्यकता होती है तथा ये जल शुद्धिकरण के लिये प्राकृतिक प्रक्रियाओं का उपयोग करते हैं।
    • लागत-प्रभावी: पारंपरिक अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों की तुलना में कृत्रिम आर्द्रभूमि का निर्माण, संचालन एवं रखरखाव कम खर्चीला होता है।
    • पोषक तत्वों का निवारण: ये नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं कार्बनिक पदार्थ जैसे प्रदूषकों का निवारण करने में सक्षम हैं।
    • भूमि पुनर्ग्रहण: इन प्रणालियों का उपयोग प्राकृतिक आर्द्रभूमि संबंधी कार्यों को बहाल करके खनन गतिविधियों से नष्ट हुई भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिये किया जा सकता है।
  • कृत्रिम आर्द्रभूमियों के अनुप्रयोग:
    • नगरीय अपशिष्ट जल उपचार: कृत्रिम आर्द्रभूमियाँ नगरीय अपशिष्ट जल के लिये द्वितीयक या तृतीयक उपचार स्तर हो सकती हैं, जिससे रिसाव या पुन: उपयोग से पूर्व जल की गुणवत्ता में सुधार होता है।
    • चक्रवाती जल प्रबंधन: ये प्रणालियाँ चक्रवाती जल को शोधित कर सकती हैं तथा इस जल के प्राकृतिक जलमार्गों में प्रवेश करने से पूर्व प्रदूषकों और अवसादों को निष्कासित कर सकती हैं।
    • औद्योगिक अपशिष्ट जल उपचार: कृत्रिम आर्द्रभूमि को जल में उपस्थित प्रदूषकों के आधार पर विशिष्ट प्रकार के औद्योगिक अपशिष्ट जल के उपचार के लिये अनुकूलित किया जा सकता है।
    • कृषि: इनका उपयोग कृषि अपवाह के उपचार, प्रदूषण को कम करने तथा सिंचाई के लिये जल की गुणवत्ता में सुधार के लिये किया जा सकता है।

भारत में कृत्रिम आर्द्रभूमियों का उदाहरण:

  • दिल्ली में असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य आस-पास की बस्तियों से सीवेज को शुद्ध करने के लिये कृत्रिम आर्द्रभूमि का उपयोग करता है, साथ ही वनस्पतियों और जीवों के लिये एक अभयारण्य के रूप में संरक्षण भी प्रदान करता है। 
  • इसी तरह, पश्चिम बंगाल का कोलकाता ईस्ट वेटलैंड्स स्थानीय मछली पकड़ने वालों और कृषि सिंचाई में सहयोग करते हुए कोलकाता के अपशिष्ट जल का उपचार करते हैं।
  • राजस्थान में, सरिस्का टाइगर रिज़र्व ने आसपास के गाँवों के अपशिष्ट जल के उपचार के लिये कृत्रिम आर्द्रभूमि का उपयोग करते हुए एक अभिनव पहल शुरू की है।

आर्द्रभूमि और कृत्रिम आर्द्रभूमि के बीच क्या अंतर है?

विशेषता

आर्द्रभूमि

कृत्रिम आर्द्रभूमि

उत्पत्ति

प्राकृतिक रूप से घटित होने वाला पारिस्थितिक तंत्र

मानव-निर्मित 

गठन

भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं, बाढ़ या जल प्रवाह में परिवर्तन के माध्यम से समय के साथ विकसित होना।

जानबूझकर एक विशिष्ट स्थान पर निर्माण किया गया।

जल स्रोत

विविध- वर्षा, भूजल, सतही जल अपवाह।

नियंत्रित स्रोत- अपशिष्ट जल, चक्रवाती जल अपवाह, या विशिष्ट जल निकाय।

उद्देश्य

बाढ़ नियंत्रण, जल शुद्धिकरण, विविध प्रजातियों के लिये आवास जैसे विभिन्न पारिस्थितिक कार्य।

मुख्य रूप से जल उपचार (अपशिष्ट जल, चक्रवाती जल) या जीव आवास जैसे विशिष्ट उद्देश्यों के लिये  बनाया गया है।

जैवविविधता

विशिष्ट आर्द्रभूमि प्रकार के लिये  अनुकूलित पौधों, जीवों और सूक्ष्म जीवों के स्थापित।

चुने हुए पौधों की प्रजातियों का विकास, जबकि सूक्ष्मजीव समुदाय समय के साथ विकसित होते हैं।

भू-क्षेत्र

इनका आकर छोटे तालाबों से लेकर विशाल दलदलों तक हो सकता है, जो सामान्यतः बड़े क्षेत्रों को समाहित करता है।

इसे जल उपचार आवश्यकताओं के उद्देश्य से बनाया गया है, यह प्राकृतिक आर्द्रभूमि से छोटा हो सकता है।

विनियमन

अक्सर इन्हें पारिस्थितिक महत्त्व के कारण पर्यावरणीय नियमों के तहत संरक्षित किया जाता है।

स्थानीय नियमों के आधार पर निर्माण एवं संचालन के लिये अनुमति की आवश्यकता हो सकती है।

रखरखाव

स्थापना पश्चात न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

उचित कार्यप्रणाली (जल प्रवाह, पौधों का स्वास्थ्य, तलछट हटाना) सुनिश्चित करने के लिये नियमित रखरखाव की आवश्यकता है।

Ramsar_Convention

कृत्रिम आर्द्रभूमियों से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?

  • पौधों का चयन: पोषक तत्वों के अवशोषकों एवं प्रदूषकों को हटाने के लिये कृत्रिम आर्द्रभूमि में प्रभावी पौधों का चयन महत्त्वपूर्ण है, कैटेल, बुलरश और सेज जैसी प्रजातियाँ नाइट्रोजन तथा फास्फोरस को अवशोषित करने में विशेष रूप से कुशल साबित होती हैं, जबकि प्रदूषकों को नष्ट करने के लिये पौधों के लाभकारी जीवाणुओं को अवशोषित करती हैं।
  • भूमि की आवश्यकता: आर्द्रभूमि के निर्माण के लिये अत्यधिक मात्रा में भूमि की आवश्यकता होती है, जो शहरी क्षेत्रों में एक सीमा हो सकती है।
  • उपचार दक्षता: प्रभावी होते हुए भी, निर्मित आर्द्रभूमियाँ भारी प्रदूषित जल के लिये पारंपरिक उपचार संयंत्रों के समान शुद्धिकरण स्तर प्राप्त नहीं कर सकती हैं।
  • रखरखाव की आवश्यकताएँ: उचित कामकाज़ सुनिश्चित करने और रुकावट या मच्छरों के प्रजनन को रोकने के लिये नियमित रखरखाव की आवश्यकता होती है।
  • अन्य चुनौतियाँ: इन्हें अपनाने को बढ़ावा देने, हितधारकों के बीच जागरूकता और तकनीकी विशेषज्ञता बढ़ाने तथा उनके प्रदर्शन को अनुकूलित करने के लिये निरंतर निगरानी एवं अनुसंधान के हेतु स्पष्ट नीतियों व विनियमों की आवश्यकता है।

 आगे की राह 

  • वैश्विक सर्वोत्तम पद्धतियों का लाभ उठाना:
    • डिज़ाइन अनुकूलन: भारत निर्मित आर्द्रभूमि डिज़ाइन में अग्रणी जर्मनी और नीदरलैंड जैसे देशों से सीख सकता है।
      • ये राष्ट्र प्रभावशाली विशेषताओं के आधार पर ईष्टतम उपचार के लिये मुक्त जल सतहों (सतह प्रवाह) और उपसतह प्रवाह के साथ बहु-चरण प्रणालियों का उपयोग करते हैं।
    • प्रदर्शन निगरानी: अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (US Environmental Protection Agency- US EPA) स्पष्ट प्रदर्शन निगरानी प्रोटोकॉल स्थापित करने की अनुसंशा करती है।
      • उपचार दक्षता को अनुकूलित करने और संभावित मुद्दों की पहचान करने के लिये जल गुणवत्ता मापदंडों तथा आर्द्रभूमि स्वास्थ्य की नियमित निगरानी महत्त्वपूर्ण है।
  • भारत में निर्मित आर्द्रभूमियों का कार्यान्वयन:
    • नीति और विनियमन: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) ने पूर्व निर्मित आर्द्रभूमि को एक व्यवहार्य अपशिष्ट जल उपचार विकल्प के रूप में मान्यता प्रदान की है।
      • डिज़ाइन, संचालन और रखरखाव हेतु स्पष्ट दिशानिर्देशों के साथ-साथ भविष्य की नीतिगत रूपरेखाएँ नगर पालिकाओं एवं उद्योगों द्वारा उन्हें अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर सकती हैं।
    • वित्तीय साधन: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnerships- PPPs) जैसे नवीन वित्तपोषण तंत्र की खोज और इन प्रणालियों के निर्माण एवं रखरखाव के लिये सब्सिडी निवेश को आकर्षित कर सकती है तथा उन्हें विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमज़ोर समुदायों के लिये अधिक सुलभ बना सकती है।
    • प्रदर्शन परियोजनाएँ: भारत में विविध भौगोलिक एवं जलवायु क्षेत्रों में सफल प्रदर्शन परियोजनाएँ स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है। 
      • यह वास्तविक वैश्विक परिदृश्यों में कृत्रिम आर्द्रभूमि की प्रभावशीलता को प्रदर्शित करेगा और साथ ही भविष्य के अनुप्रयोगों हेतु मूल्यवान डेटा भी प्रदान करेगा।
    • सामुदायिक सहभागिता: स्थानीय समुदायों को कृत्रिम आर्द्रभूमि की योजना, निर्माण एवं संचालन में शामिल किया जाना चाहिये।
      • इन प्रणालियों के लाभों के बारे में जागरूकता के साथ ही स्वामित्व की भावना को बढ़ावा देना और साथ ही उनकी दीर्घकालिक सफलता भी सुनिश्चित करेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में औद्योगिक अपशिष्ट जल उपचार के लिये एक स्थायी समाधान के रूप में कृत्रिम आर्द्रभूमि की अवधारणा पर चर्चा कीजिये। देश में कृत्रिम आर्द्रभूमियों को बड़े पैमाने पर अपनाने से जुड़ी चुनौतियों एवं अवसरों का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा, परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. यदि अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के एक आर्द्रभूमि को 'मोंट्रेक्स रिकॉर्ड' के अंतर्गत लाया जाता है, तो इसका क्या अर्थ है? (2014)

(A) मानवीय हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप आर्द्रभूमि के पारिस्थितिक स्वरूप में परिवर्तन हुआ है, हो रहा है या होने की संभावना है।
(B) जिस देश में आर्द्रभूमि स्थित है उसे आर्द्रभूमि के किनारे से पाँच किलोमीटर के भीतर किसी भी मानवीय गतिविधि को प्रतिबंधित करने के लिये एक कानून बनाना चाहिये।
(C) आर्द्रभूमि का अस्तित्व इसके आसपास रहने वाले कुछ समुदायों की सांस्कृतिक प्रथाओं एवं परंपराओं पर निर्भर करता है और इसलिये वहाँ की सांस्कृतिक विविधता को नष्ट नहीं किया जाना चाहिये।
(D) इसे 'विश्व विरासत स्थल' का दर्ज़ा दिया गया है।

उत्तर: (a)


मेन्स

प्रश्न. आर्द्रभूमि क्या है? आर्द्रभूमि संरक्षण के संदर्भ में 'बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग' की रामसर संकल्पना को स्पष्ट कीजिये। भारत से रामसर स्थलों के दो उदाहरणों का उद्धरण दीजिये। (2018)


शासन व्यवस्था

चिकित्सा उपभोग्य सामग्रियों के शुद्ध निर्यातक के रूप में भारत

प्रिलिम्स के लिये:

गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP), फार्मास्यूटिकल गुणवत्ता प्रणाली, फार्मास्यूटिकल कंपनियाँ,फार्मास्यूटिकल प्रौद्योगिकी उन्नयन सहायता योजना (PTUAS), PMPDS, फार्मास्यूटिकल्स के लिये उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI), अनुसूची M और WHO-GMP मानक,केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन, औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940,

मेन्स के लिये:

संशोधित गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस, भारत के फार्मास्यूटिकल उद्योग, स्वास्थ्य, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप,अप्रभावी औषधि विनियमों के परिणाम।

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

भारत ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में प्रथम बार चिकित्सा उपभोग्य सामग्रियों और डिस्पोज़ेबल्स सामग्री का शुद्ध निर्यातक बनकर चिकित्सा संबंधी सामग्री (medical goods) व्यवसाय में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है।

  • यह उस पुरानी प्रवृत्ति के परिवर्तित होने का संकेत है जहाँ ऐसे उत्पादों का आयात निर्यात से अधिक था।

भारत के फार्मास्यूटिकल उद्योग की क्या स्थिति है?

  • परिचय:
    • भारत ऐतिहासिक रूप से चिकित्सा उपभोग्य सामग्रियों एवं डिस्पोज़ेबल्स के लिये आयात पर निर्भर रहा है। भारत ने अब इस प्रवृत्ति को परिवर्तित कर दिया है, जो इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर हो रहे बदलाव का संकेत देता है।
    • भारत वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा निर्माता है। इसका फार्मास्युटिकल उद्योग वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल में सस्ती जेनेरिक दवाएँ उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • वर्तमान में एक प्रमुख फार्मास्युटिकल निर्यातक के रूप में इसका मूल्य 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जिसमें 200 से अधिक देशों में भारतीय फार्मा निर्यात होता है।
    • वर्ष 2024 तक इसके 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2030 तक 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • निर्यात और आयात आँकड़े:
      • निर्यात: भारत ने 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की चिकित्सा उपभोग्य सामग्रियों और डिस्पोज़ेबल्स का निर्यात किया, जो पिछले वित्तीय वर्ष (2021-22) की तुलना में 16% की वृद्धि दर्शाता है।
      • आयात: लगभग 1.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आयात हुआ, जो 33% की गिरावट दर्शाता है।
  • भारत के फार्मा सेक्टर की प्रमुख चुनौतियाँ:
    • अनुसंधान एवं विकास (Lagging Research and Development- R&D) में पिछड़ना: फार्मा क्षेत्र में भारत का अनुसंधान एवं विकास खर्च विकसित देशों की तुलना में कम है। इससे नई दवाओं के निर्माण में बाधा आती है।
    • सीमित नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र: शिक्षा जगत, अनुसंधान संस्थानों और दवा कंपनियों के मध्य सहयोग का अभाव है, जिससे उच्च गुणवत्ता वाली दवाओं तथा चिकित्सा उपकरणों का विकास धीमा हुआ है।
    • मूल्य नियंत्रण और लाभ मार्जिन: कुछ दवाओं पर सरकारी मूल्य नियंत्रण मुनाफे को सीमित कर सकता है, जिससे कंपनियों के लिये नई दवाओं के अनुसंधान एवं विकास में भारी निवेश करना कम आकर्षक हो जाता है।
    • जटिल नियामक ढाँचा: नई दवाओं के लिये अनुमोदन प्रक्रिया को नेविगेट करने की प्रक्रिया लंबी और जटिल हो सकता है, जो लाल फीताशाही को जन्म देता है।
    • कुशल कार्यबल की कमी: फार्मा क्षेत्र में उच्च योग्य वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की कमी है, जिसके कारण कर्मचारियों की कार्यकुशलता प्रभावित हो रही है।
    • बौद्धिक संपदा (Intellectual Property- IP) चिंताएँ: अनिवार्य लाइसेंसिंग (भारतीय पेटेंट अधिनियम 1970) जैसे प्रावधानों के कारण IP सुरक्षा के आसपास अनिश्चितताएँ, भारत में बड़े फार्मा निवेश को हतोत्साहित कर सकती हैं।
    • आयात निर्भरता: प्रगति के बावजूद, भारत चिकित्सा उपकरणों के लिये काफी हद तक आयात पर निर्भर है, जिसमें लगभग 70% उपकरण अन्य देशों से आते हैं।
      • सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (API) के आयात के लिये भारत की चीन जैसे देशों पर अत्यधिक निर्भर है।
    • नकली दवाइयाँ: भारतीय फार्मास्युटिकल क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा घटिया या नकली दवाओं के सेवन से होने वाली मौतों की घटना है।

भारत के फार्मा सेक्टर में सुधार के लिये और क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

  • विधायी परिवर्तन और केंद्रीकृत डेटाबेस:
    • औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम (1940) में संशोधन की आवश्यकता है तथा एक केंद्रीकृत औषधि डेटाबेस की स्थापना से निगरानी बढ़ाई जा सकती है तथा सभी दवा निर्माताओं के बीच प्रभावी विनियमन सुनिश्चित किया जा सकता है।
    • साथ ही, उत्पाद गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये सभी राज्यों में समान गुणवत्ता मानकों को लागू करना आवश्यक है।
  • प्रमाणीकरण को प्रोत्साहित करना:
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस प्रमाणन प्राप्त करने के लिये फार्मास्युटिकल विनिर्माण इकाइयों को प्रोत्साहित करने से गुणवत्ता मानकों को बढ़ाया जा सकता है।
  • पारदर्शिता, विश्वसनीयता एवं उत्तरदायित्व:
    • नियामक संस्थाओं तथा फार्मास्युटिकल उद्योग को भारतीय दवा नियामक व्यवस्था की वृद्धि करने तथा इसे पारदर्शी, विश्वसनीय और वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने के लिये सहयोग करना चाहिये।
  • सतत् विनिर्माण प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करें:
    • हरित रसायन, अपशिष्ट कटौती और ऊर्जा दक्षता सहित टिकाऊ विनिर्माण प्रथाओं पर ज़ोर देने से लागत कम करते हुए क्षेत्र की पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ाया जा सकता है।
  • जेनेरिक्स से आगे बढ़ना: भारत सस्ती जेनेरिक दवाओं के उत्पादन में अग्रणी है लेकिन इसे नई दवाओं के विकास में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 
    • PLI जैसी पहलों के माध्यम से सरकारी सहायता एवं नैदानिक परीक्षण वित्तपोषण को सुविधाजनक बनाने से अनुसंधान और विकास प्रयासों में तेज़ी आ सकती है।
  • अनुसंधान एवं विकास और नवाचार को बढ़ावा देना: वैश्विक अभिकर्त्ताओं की तुलना में अनुसंधान और विकास पर होने वाले भारत के कम खर्च में सुधार किया जा सकता है। 
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देने और नवाचार के लिये कर प्रोत्साहन प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. चिकित्सा उपभोग्य सामग्रियों और डिस्पोज़ेबल के शुद्ध निर्यातक बनना भारत की हालिया महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। इस उपलब्धि का लाभ वैश्विक चिकित्सा वस्तुओं के बाज़ार में भारत की स्थिति को मज़बूत करने के लिये कैसे उठाया जा सकता है? 

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से भारत में सूक्ष्मजैविक रोगजनकों में बहु-औषध प्रतिरोध होने के कारण हैं? (2019)

  1. कुछ लोगों की आनुवंशिक प्रवृत्ति  
  2. बीमारियों को ठीक करने के लिये एंटीबायोटिक दवाओं की गलत खुराक लेना  
  3. पशुपालन में एंटीबायोटिक का प्रयोग  
  4. कुछ लोगों में कई पुरानी बीमारियाँ

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारत सरकार दवा के पारंपरिक ज्ञान को दवा कंपनियों द्वारा पेटेंट कराने से कैसे बचा रही है? (2019)


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