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डेली न्यूज़

  • 09 Mar, 2021
  • 43 min read
शासन व्यवस्था

भारतीय विज्ञान अनुसंधान फेलोशिप 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 6 देशों के 40 छात्रों को भारतीय विज्ञान अनुसंधान फेलोशिप (Indian Science Research Fellowship), 2021 पुरस्कार प्रदान किया गया।

  • यह फेलोशिप भारत के पड़ोसी देशों के साथ शोध क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच है जो कि विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology) के अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग (International Science and Technology Cooperation) का एक महत्त्वपूर्ण अंग है।

प्रमुख बिंदु

भारतीय विज्ञान अनुसंधान फेलोशिप के विषय में:

  •  भारत के पड़ोसी देशों के साथ सहयोग और साझेदारी बढ़ाने की पहल के अंतर्गत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने S&T साझेदारी विकसित करने के उद्देश्य से ISRF कार्यक्रम को आरंभ किया है।
  • इस कार्यक्रम को अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, म्याँमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड के शोधार्थियों के लिये शुरू किया गया है।
  • ISRF कार्यक्रम में भारत के पड़ोसी देशों के युवा शोधकर्त्ताओं को भारतीय विश्वविद्यालयों और भारतीय शोध संस्थानों में उपलब्ध विश्व स्तरीय शोध सुविधाओं तक पहुँच सुलभ होती है।
  • इस कार्यक्रम का क्रियान्वयन वर्ष 2015 से किया जा रहा है।

फेलोशिप का महत्त्व:

    • विज्ञान कूटनीति: इस फेलोशिप कार्यक्रम के माध्यम से वैश्विक क्षेत्र में भारत के प्रभाव को बढ़ाने और विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवाचार (Science, Technology and Innovation) को अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति तथा विदेशी संबंधों के मामले में मुख्यधारा में शामिल करने में मदद मिलेगी।
    • इससे दक्षिण एशिया क्षेत्र में तकनीकी उन्नति को बढ़ावा मिलेगा।

अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग

  • ISTC के विषय में: यह प्रभाग विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत आता है जो अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक तथा तकनीकी मामलों के सौदों, वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग, करार के कार्यान्वयन आदि के लिये ज़िम्मेदार है।
    • भारत तथा अन्य देशों के बीच हुए S&T समझौतों पर विचार-विमर्श करना, निष्कर्ष निकालना और लागू करना।
    • अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर S&T आयामों के संदर्भ में अपनी बात रखना।
  • महत्त्व:
    • भारत की वैज्ञानिक उत्कृष्टता को वैश्विक अनुसंधान परिदृश्य में प्रदर्शित करना और पेश करना।
    • भारत के राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान की सामर्थ्य, क्षमता तथा पहुँच को मज़बूत करने के लिये विदेशी गठबंधनों एवं साझेदारियों का उपयोग राष्ट्र के प्रमुख कार्यक्रमों के साथ तालमेल बनाने में करना।
  • ISTC प्रभाग निम्नलिखित अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भागीदारी कर रहा है-

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

MSME क्रेडिट हेल्थ इंडेक्स

चर्चा में क्यों?

नवीनतम MSME क्रेडिट हेल्थ इंडेक्स इंगित करता है कि जून 2020 में समाप्त तिमाही की तुलना में सितंबर 2020 में समाप्त तिमाही में MSME क्रेडिट वृद्धि में तेज़ी देखी  गई।

प्रमुख बिंदु:

MSME क्रेडिट हेल्थ इंडेक्स:

  • जारीकर्त्ता: ट्रांसयूनियन सिबिल (TransUnion CIBIL) ने सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के साथ साझेदारी में ‘MSME क्रेडिट हेल्थ इंडेक्स’ लॉन्च किया है।
    • यह सूचकांक तिमाही आधार पर प्रकाशित किया जाता है।
  • लक्ष्य: भारत में MSME क्षेत्र की वृद्धि और क्षमता का मूल्यांकन करना।
    • यह सूचकांक सरकार, नीति निर्माताओं, ऋणदाताओं और MSME क्षेत्र के  सहभागियों को MSME क्षेत्र की स्थिति के आकलन के लिये एक संख्यात्मक संकेतक प्रदान करता है।
    • मापन: यह सूचकांक भारत के MSME उद्योग की क्रेडिट स्थिति को दो मापदंडों पर मापता है- वृद्धि और क्षमता। वृद्धि और क्षमता दोनों सूचकांक के उच्चतर सिद्धांत का पालन करते हैं।
    • समय के साथ एक्सपोज़र वैल्यू (बकाया शेष) में बढ़ोतरी के अनुसार वृद्धि को मापा जाता है।
      • बढ़ता ग्रोथ इंडेक्स क्रेडिट ग्रोथ में सुधार का संकेत देता है।
    • गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) के संदर्भ में क्रेडिट जोखिम में कमी/वृद्धि से क्षमता को मापा जाता है।
      • इस सूचकांक के अंतर्गत क्षमता में वृद्धि बेहतर परिसंपत्ति गुणवत्ता तथा इस क्षेत्र की संरचनात्मक क्षमता में सुधार को दर्शाता है।
    • महत्त्व: यह मापन मॉडल बेहतर MSME क्रेडिट जोखिम प्रबंधन, बेहतर रणनीतियों और नीतियों के निर्माण से MSME क्षेत्र और अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार व पुनरुत्थान में सहयोग प्रदान करता है।

नवीनतम आँकड़े:

  • समग्र वृद्धि सूचकांक जून 2020 के 111 अंक से तीन अंक बढ़कर 114 अंक हो गया।
  • समग्र क्षमता सूचकांक भी इसी अवधि में 83 से बढ़कर 89 हो गया।

आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECGLS):

  • यह योजना मई 2020 में कोरोनोवायरस के कारण लागू लॉकडाउन की वजह से  उत्पन्न संकट को कम करने के लिये विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को ऋण प्रदान करने हेतु आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेज के एक भाग के रूप में शुरू की गई।
  • ECLGS गारंटीकृत आपातकालीन क्रेडिट लाइन (GECL) सुविधा प्रदान करता है।
    • GECL एक ऐसा ऋण है जिसके लिये 100% गारंटी ‘नेशनल क्रेडिट गारंटी ट्रस्टी कंपनी’ (NCGTC) द्वारा मेंबर लेंडिंग इंस्टीट्यूशंस (MLI)- बैंकों, वित्तीय संस्थानों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) को प्रदान की जाती है।
    • बैंकों के मामले में अतिरिक्त कार्यशील पूंजी अवधि ऋण सुविधा तथा NBFCs के मामले में अतिरिक्त ऋण सुविधा प्रदान करने के लिये पात्र सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs)/व्यवसायों और प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) के तहत इच्छुक ऋणधारकों के लिये उपलब्ध है। 

राष्ट्रीय क्रेडिट गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड:

  • ‘NCGTC’ कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत वर्ष 2014 में निगमित एक निजी लिमिटेड कंपनी है, इसे वित्तीय सेवा विभाग, वित्त मंत्रालय द्वारा भारत सरकार के पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी के रूप में स्थापित किया गया है, जो क्रेडिट गारंटी के लिये एक सामान्य ट्रस्टी कंपनी के रूप में कार्य करती है।
    • ऋण गारंटी कार्यक्रम उधारदाताओं के उधार जोखिम को साझा करने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं और यह संभावित ऋण प्राप्तकर्त्ताओं के लिये वित्त तक पहुँच की सुविधा प्रदान करते हैं।

स्रोत- द हिंदू


शासन व्यवस्था

ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया के अधिकार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया (OCI) से संबंधित अधिकारों की एक समेकित सूची जारी की है।

  • ये अधिकार और प्रतिबंध नए नहीं हैं, बल्कि इन्हें पूर्व में वर्ष 2005, वर्ष 2007 और 2009 में भी अधिसूचित किया गया था। नवंबर 2019 में गृह मंत्रालय द्वारा प्रकाशित एक OCI विवरणिका में भी इनका उल्लेख किया गया था।

प्रमुख बिंदु

एकाधिक प्रवेश आजीवन वीज़ा

  • OCI कार्डधारक किसी भी उद्देश्य के लिये भारत आने हेतु एकाधिक प्रवेश पाने और आजीवन वीज़ा प्राप्त करने के हकदार होंगे।

पूर्व अनुमति

  • OCI कार्डधारकों को अनुसंधान, पत्रकारिता, पर्वतारोहण, मिशनरी या तब्लीगी कार्य और प्रतिबंधित क्षेत्रों के दौरे आदि के लिये पूर्व अनुमति की आवश्यकता होगी।

अनिवासी भारतीयों (NRIs) के साथ समानता

  • OCI कार्डधारक को बच्चा गोद लेने, प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने, कृषि भूमि और फार्महाउस जैसी अचल संपत्ति की खरीद या बिक्री तथा डॉक्टर, वकील, आर्किटेक्ट एवं चार्टर्ड एकाउंटेंट जैसे व्यवसायों के संबंध में अनिवासी भारतीयों (NRIs) के समान अधिकार प्राप्त होंगे।

भारतीय नागरिकों के साथ समानता

  • OCI कार्डधारकों को घरेलू हवाई किराया, स्मारकों और सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश शुल्क के मामले में आम भारतीय नागरिकों के समान अधिकार प्राप्त होंगे।

प्रवेश परीक्षा और प्रवेश

  • OCI कार्डधारक अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षाओं जैसे- राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET), संयुक्त प्रवेश परीक्षा (मेन्स), संयुक्त प्रवेश परीक्षा (एडवांस) या ऐसी किसी अन्य परीक्षा में हिस्सा ले सकेंगे, जिनके लिये अनिवासी भारतीय (NRI) पात्र हैं।
  • हालाँकि OCI कार्डधारक भारतीय नागरिकों के लिये विशेष रूप से आरक्षित किसी भी सीट  हेतु  पात्र नहीं होंगे।

अन्य आर्थिक, वित्तीय और शैक्षणिक क्षेत्र

  • अन्य सभी आर्थिक, वित्तीय और शैक्षिक क्षेत्रों के संबंध में जिन्हें नवीनतम अधिसूचना में निर्दिष्ट नहीं किया गया है अथवा विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक की अधिसूचनाओं में कवर नहीं किये गए अधिकारों और विशेषाधिकारों के संबंध में OCI कार्डधारक के एक विदेशी व्यक्ति के समान ही अधिकार होंगे।

अपवाद

  • भारत में रहने के लिये OCI कार्डधारकों को क्षेत्रीय विदेशी पंजीकरण कार्यालय (FRRO) के साथ पंजीकरण से छूट दी गई है।
    • ज्ञात हो कि भारत आने वाले विदेशियों, जिनके पास लंबी अवधि का वीज़ा (180 दिनों से अधिक) है, के लिये क्षेत्रीय विदेशी पंजीकरण कार्यालय (FRRO के साथ पंजीकरण कराना आवश्यक है।

प्रतिबंध

  • OCI कार्डधारकों पर धार्मिक स्थानों पर जाने और धार्मिक प्रवचनों में शामिल होने जैसी सामान्य धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा।
  • हालाँकि धार्मिक विचारधाराओं का प्रचार करना, धार्मिक स्थानों पर भाषण देना, धार्मिक ऑडियो या वीडियो प्रदर्शित करने, धार्मिक विचारों से संबंधित पुस्तिका के वितरण आदि की अनुमति नहीं होगी।

ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया (OCI)

  • गृह मंत्रालय ने ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया (OCI) को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया है:
    • वह व्यक्ति जो 26 जनवरी, 1950 को अथवा उसके बाद भारत का नागरिक था; 
    • वह व्यक्ति जो 26 जनवरी, 1950 को भारत का नागरिक बनने के योग्य था; 
    • वह ऐसे व्यक्ति की संतान एवं नाती है और अन्य सभी मानदंडों को पूरा करता है।
  • OCI कार्ड नियमों की धारा 7A के अनुसार, एक आवेदक OCI कार्ड हेतु पात्र नहीं होगा यदि वह, उसके माता-पिता या दादा-दादी कभी पाकिस्तान या बांग्लादेश के नागरिक रहे हों। यह श्रेणी वर्ष 2005 में प्रस्तुत की गई थी।
  • नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2015 के माध्यम से भारत सरकार ने वर्ष 2015 में OCI श्रेणी का विलय भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO) की श्रेणी के साथ कर दिया गया था।

अनिवासी भारतीय (NRI)

  • अनिवासी भारतीय (NRI) का आशय भारत के बाहर रहने वाले ऐसे व्यक्ति से है, जो या तो भारतीय नागरिक है अथवा भारतीय मूल का है।
    • एक वित्तीय वर्ष में कम-से-कम 183 दिनों के लिये भारत से बाहर रहने वाले भारतीय नागरिक को अनिवासी भारतीय माना जाता है।
  • अनिवासी भारतीयों को मतदान का अधिकार प्राप्त है और उन्हें निवासी भारतीयों की तरह अपनी आय पर आयकर रिटर्न का भुगतान और फाइल करना आवश्यक होता है।
  • हालाँकि यदि कोई अनिवासी भारतीय, विदेशी नागरिकता लेना चाहता है, तो उसे भारतीय नागरिकता छोड़नी होगी, क्योंकि भारतीय संविधान दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं देता है।
  • एक व्यक्ति एक साथ भारतीय तथा विदेशी नागरिकता नहीं प्राप्त कर सकता है।

विदेशी

  • विदेशी अधिनियम, 1946 के अनुसार, विदेशी का आशय एक ऐसे व्यक्ति से है जो भारत का नागरिक नहीं है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 14, 20, 21, 21A, 22, 23, 24, 25, 26, 27 और 28 द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकार सभी व्यक्तियों को उपलब्ध हैं चाहे वे नागरिक हों या विदेशी। अनुच्छेद 15, 16, 19, 29 और 30 द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकार केवल भारत के नागरिकों को उपलब्ध हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय इतिहास

हरदित सिंह मलिक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंग्लैंड द्वारा 20वीं शताब्दी के शुरुआती दौर के सिख फाइटर पायलट “हरदित सिंह मलिक” (Hardit Singh Malik) की प्रतिमा/मूर्ति के डिज़ाइन को मंज़ूरी दी गई है, जिसे साउथेम्प्टन के बंदरगाह शहर (Port City of Southampton) में एक नए शहीद स्मारक में स्थापित किया जाएगा।

  • इस शहीद स्मारक को विश्व युद्ध में लड़ने वाले सभी भारतीयों की याद में बनाया गया है। 
  • शहीद स्मारक को अंग्रेज़ी मूर्तिकार ल्यूक पेरी (Luke Perry) द्वारा बनाया जाएगा।

Hardit-Singh-Malik

प्रमुख बिंदु:

हरदित सिंह मलिक के बारे में:

  • जन्म:
    • इनका जन्म 23 नवंबर, 1894 में अविभाजित भारत के रावलपिंडी के एक सिख परिवार में हुआ था।
  • कॅरियर :
    • हरदित सिंह मलिक पहली बार वर्ष 1908 में 14 वर्ष की उम्र में ब्रिटेन पहुंँचे जहाँ उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के बैलिओल कॉलेज में प्रवेश लिया।
    • वे प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान रॉयल फ्लाइंग कॉर्प्स (Royal Flying Corps)  के सदस्य बने
      • ये पहले भारतीय थे जो विशिष्ट हेलमेट के साथ पगड़ी वाले पायलट के रूप में जाने गए तथा "फ्लाइंग सिख" के रूप में प्रसिद्ध हुए।
    • मलिक ने ससेक्स ( दक्षिणी इंग्लैंड का एक शहर) के लिये क्रिकेट भी खेला तथा भारतीय सिविल सेवा में एक लंबे और विशिष्ट कॅरियर के बाद फ्रांँस में भारतीय राजदूत के पद पर कार्य किया। 
  • मृत्यु:
    • इनका निधन 31 अक्तूबर, 1985 को नई दिल्ली में हुआ।

प्रथम विश्व युद्ध में भारत का योगदान:

  • प्रथम विश्व युद्ध:
    • प्रथम विश्व युद्ध (WW I) जिसे महान युद्ध (Great War) के रूप में भी जाना जाता है, जुलाई 1914 से नवंबर 1918 तक चला।
    • प्रथम विश्व युद्ध मित्र देशों और केंद्रीय शक्तियों के मध्य हुआ था।
      • मित्र शक्ति देश:  इनमें  फ्रांँस, रूस और ब्रिटेन शामिल थे। अमेरिका भी वर्ष 1917 के बाद से मित्र राष्ट्रों की तरफ से लड़ाई में शामिल हो गया।  
      • केंद्रीय शक्ति देश: इनमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, ओटोमन साम्राज्य और बुल्गारिया शामिल थे 
    • भारत ने युद्ध में ब्रिटेन का भरपूर सहयोग किया। 
    • भारत द्वारा ब्रिटेन को युद्ध में 100 मिलियन ब्रिटिश पाउंड की मदद इस उम्मीद से की गई कि बदले में भारतीयों को युद्ध समाप्ति के बाद स्वशासन प्राप्त होगा। 
    • ब्रिटिशों ने भारतीय पुरुषों और धन का उपयोग किया, साथ ही युद्ध में ब्रिटिश कराधान नीतियों द्वारा एकत्र भोजन, नकदी और गोला-बारूद की बड़ी मात्रा में आपूर्ति की गई। 
      • बदले में ब्रिटिशों द्वारा युद्ध समाप्ति के बाद भारतीयों को स्वशासन देने का वादा किया गया जो कि अंततः नहीं दिया  गया था
  • सैनिक:
    • मित्र देशों की तरफ से बड़ी संख्या में युद्ध में लड़ने के लिये स्वयंसेवकों को भेजा गया। 
    • लगभग 1.5 मिलियन मुस्लिम, सिख और हिंदू पुरुष पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु एवं बिहार से  भारतीय अभियान बल में स्वेच्छा से शामिल हुए जो पूर्वी सीमा, मेसोपोटामिया, मिस्र और गैलीपोली में पश्चिमी मोर्चे पर लड़ने गए।
    • इनमें से लगभग 50,000 स्वयंसेवक मारे गए, 65,000 घायल हुए तथा 10,000 के लापता होने की सूचना दी गई, जबकि भारतीय सेना की 98 नर्सों की मौत हो गई थी
  • अन्य आपूर्ति:
    • देश द्वारा 1,70,000 जानवरों तथा ब्रिटिश सरकार को सैंडबैग (Sandbags) हेतु 3.7 मिलियन टन जूट की आपूर्ति की गई। 

द्वितीय विश्व युद्ध में भारत का योगदान:

  • द्वितीय विश्व युद्ध के बारे में:
    • द्वितीय विश्व युद्ध वर्ष 1939-45 के बीच हुआ तथा इसका प्रभाव  विश्व  के हर हिस्से पर पड़ा।
    • द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल देश:
      • केंद्रीय शक्ति: इसमें जर्मनी, इटली और जापान शामिल थे। 
      • मित्र शक्ति देश: इसमें फ्रांँस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और कुछ हद तक चीन शामिल था। 
    • भारतीयों ने बड़ी संख्या में युद्ध में बलिदान दिया। भारतीयों से किया गया स्वतंत्रता का वादा भी पूरा नहीं किया गया इसलिये संबद्ध शक्तियों द्वारा भारत की काफी हद तक उउपेक्षा की गई थी।
  • सैनिक:
    • लगभग 2.5 मिलियन भारतीय सैनिकों ने द्वितीय विश्व युद्ध में हिस्सा लिया 
    • 36,000 से अधिक भारतीय सैनिकों ने अपनी जान गंँवाई, 34,000 घायल हुए और 67,000 को युद्धबंदी बना लिया गया।
    • उनके ज़ज्बे की पूर्वी और उत्तरी अफ्रीका, इटली, बर्मा तथा सिंगापुर, मलय प्रायद्वीप, गुआम व इंडो-चीन में दूर-दूर तक सराहना की गई। 
    • युद्ध में भारतीय वायु सेना के पायलटों की साहसिक भूमिका को दस्तावेज़ों में अच्छी तरह से प्रलेखित किया गया है।
    • पूर्व में ब्रिटिश भारतीय सेना के हिस्से के रूप में भारतीय सैनिकों ने जापान के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अंततः दक्षिण-पूर्व एशिया जिसमें सिंगापुर, मलय प्रायद्वीप और बर्मा शामिल हैं पर विजय प्राप्त की।  
  • अन्य आपूर्ति:
    • इस दौरान ब्रिटिश भूमि और अन्य देशों में सेवाएँ देने वालों में भारतीय डॉक्टर और नर्सें भी शामिल थीं।
    • भारत द्वारा युद्ध में भाग लेने वाले सैनिकों और युद्ध में बंदी बनाए गए एशियाई कैदियों हेतु गर्म कपड़े और अन्य वस्तुओं के साथ 1.7 मिलियन से अधिक खाद्य पैकेटों की आपूर्ति की गई। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

एम.टी. स्वर्ण कृष्ण: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

चर्चा में क्यों?

बंदरगाह, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्री द्वारा भारत के शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (Shipping Corporation of India- SCI) के जहाज़ एम.टी. स्वर्ण कृष्ण (MT Swarna Krishna) जिसका संचालन समग्र रूप से महिला चालक दल द्वारा किया जा रहा है, को हरी झंडी दिखाई गई।

  • यह  SCI के  चल रहे  डायमंड जुबली समारोह और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8वांँ दिन) के अवसर पर एक पहल  है ।
  • विश्व समुद्री इतिहास (World Maritime History) में यह पहली बार है कि जब पूर्णत: महिला अधिकारियों द्वारा संचालित एक मालवाहक जहाज़ को रवाना किया जा रहा है।

शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया:

  • SCI की स्थापना 2 अक्तूबर, 1961 को पूर्वी नौवहन निगम और पश्चिमी नौवहन निगम के विलय द्वारा की गई थी
    • दो और शिपिंग कंपनियों- जयंती शिपिंग कंपनी (Jayanti Shipping Company) और मोगल लाइन्स लिमिटेड (Mogul Lines Limited) को क्रमशः वर्ष 1973 और वर्ष 1986 में SCI में मिला दिया गया।
    • यह भारत सरकार का सार्वजनिक उपक्रम है। यह उन जहाज़ों का संचालन और प्रबंधन करता है जो राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों  पर  सेवा प्रदान करते हैं।
  • मुख्यालय: मुंबई
  • नवरत्न का दर्जा: SCI को वर्ष 2008 में भारत सरकार द्वारा प्रतिष्ठित "नवरत्न" कंपनी का दर्जा दिया गया था।
  • विनिवेश: नवंबर 2019 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रणनीतिक खरीदार को प्रबंधन नियंत्रण के हस्तांतरण के साथ SCI में भारत सरकार के 63.75% की हिस्सेदारी के रणनीतिक विनिवेश हेतु '' सैद्धांतिक रूप से '' मंज़ूरी प्रदान की थी।

प्रमुख बिंदु:

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: 

  • यह प्रतिवर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है जिसमें शामिल हैं:
    • महिलाओं की उपलब्धियों को प्रोत्साहित करना। 
    • महिलाओं की समानता के बारे में जागरुकता को बढ़ाना। 
    • त्वरित लिंग समानता के लिये पैरवी।
    • महिला को केंद्र में रखते हुए अनुदान एकत्र करना। 
  • संक्षिप्त परिचय
    • पहली बार महिला दिवस वर्ष 1911 में ज़र्मनी के क्लारा ज़ेटकिन द्वारा मनाया गया था। प्रथम महिला दिवस की जड़ें मज़दूर आंदोलन से जुड़ी थीं। 
    • वर्ष 1913 में इसे 8 मार्च को स्थानांतरित कर दिया गया था, जो वर्तमान तक जारी है।
    • संयुक्त राष्ट्र द्वारा पहली बार वर्ष 1975 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया था। 
      • दिसंबर 1977 में महासभा के सदस्य राष्ट्रों द्वारा अपनी ऐतिहासिक और राष्ट्रीय परंपराओं के अनुसार, वर्ष के किसी भी दिन मनाए जाने वाला महिला अधिकार और अंतर्राष्ट्रीय शांति हेतु संयुक्त राष्ट्र दिवस घोषित करने का प्रस्ताव अपनाया गया।

2021 की थीम

  • UN द्वारा वर्ष 2021 हेतु  ‘वुमेन इन लीडरशिप: अचिविंग एन इक्वल फ्यूचर इन कोविड-19 वर्ल्ड’ (Women in leadership: Achieving an equal future in a Covid-19 world) थीम को चुना गया है। 
    • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2021 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर कुछ महिला समूहों द्वारा “चूज़ टू चैलेंज” नामक अभियान भी शुरू किया गया है।

संबंधित डेटा:

  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, कानूनी प्रतिबंधों ने 2.7 बिलियन महिलाओं को पुरुषों के  समान नौकरियों तक पहुंँचने से रोका  है।
    • वर्ष 2019 तक 25% से कम महिलाएंँ सांसद  थीं।
    • तीन में से एक महिला लिंग आधारित हिंसा से पीड़ित है।
  • ILO के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2019 में कोविड-19 महामारी से पहले भारत में महिला श्रम बल की भागीदारी पुरुषों (76%)की तुलना में 20.5% थी।
  • वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स (जो लिंग समानता की दिशा में प्रगति को मापता है) में भारत वर्ष 2019-20 में 112वें स्थान पर आ गया  है जिसका मुख्य कारण 70 लाख से अधिक भारतीय महिलाओं को रोज़गार से मुक्त किया जाना है।

भारत में महिलाओं हेतु सुरक्षात्मक उपाय:

  • संवैधानिक उपाय:
    • मौलिक अधिकार: अनुच्छेद 14 सभी भारतीयों को समानता के अधिकार की गारंटी प्रदान करता है।अनुच्छेद 15 (1) के अनुसार, लिंग के आधार पर राज्य द्वारा कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा और अनुच्छेद 15 (3) महिलाओं के पक्ष में राज्य द्वारा किये जाने वाले विशेष प्रावधान करता है।  
    • मौलिक कर्तव्य: संविधान प्रत्येक नागरिक को अनुच्छेद 51 (ए) (ई) के माध्यम से महिलाओं की गरिमा के खिलाफ अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करने हेतु मौलिक कर्तव्य को लागू करता है। 
  • विधायी ढांँचा:
    • घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005: यह अभियोजन के माध्यम से घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करता है। 
    • दहेज निषेध अधिनियम, 1961: यह दहेज की मांग, भुगतान या स्वीकृति पर प्रतिबंध लगाता है।
    • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013: यह महिलाओं को उनके कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करता है।
  • संबंधित योजनाएँ: महिला प्रौद्योगिकी पार्क, जेंडर एडवांसमेंट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग  इंस्टीट्यूट (GATI) आदि।

महिलाओं से संबंधित विषयों पर वैश्विक सम्मेलन:

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर 4 बार वैश्विक सम्मेलनों का आयोजन किया गया है: 
    • मैक्सिको सिटी, 1975
    • कोपेनहेगन, 1980
    • नैरोबी, 1985
    • बीजिंग, 1995
  • बीजिंग में आयोजित चौथा महिला विश्व सम्मेलन (WCW), संयुक्त राष्ट्र के सबसे बड़े इवेंट्स में से एक था और लैंगिक समानता एवं महिलाओं के सशक्तीकरण के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम था।
    • बीजिंग सम्मलेन में प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन (Platform for Action–PFA) को अपनाया गया था।
    • यह महिलाओं के प्रति सभी प्रकार के भेदभावों को समाप्त करने हेतु अभिसमय (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women–CEDAW) और संयुक्त राष्ट्र महासभा तथा आर्थिक एवं सामाजिक विकास संगठन (ECOSCO) द्वारा अपनाए गए प्रासंगिक प्रस्तावों को अनुमोदित करता है।

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ( United Nations Development Programme-UNDP) द्वारा  विकासशील देशों में गरीब महिलाओं हेतु अस्थायी मूल आय (TBI) का प्रस्ताव दिया गया है, ताकि इस उपाय के तहत कोरोनोवायरस महामारी के प्रभावों से निपटने में मदद की जा सके और हर दिन महिलाओं के समक्ष उत्पन्न आर्थिक दबाव को कम किया जा सके।

स्रोत: द हिंदू 


कृषि

‘कृषि-वानिकी पर उप-मिशन’ योजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने कृषि-वानिकी पर उप-मिशन (SMAF) योजना के अंतर्गत रेशम क्षेत्र में कृषि वानिकी को प्रोत्साहित करने के लिये एक कन्वर्जेंस मॉडल (Convergence Model) पर केंद्रीय रेशम बोर्ड (Central Silk Board) के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं।

  • भारत सरकार ने देश में सेरीकल्चर के विकास के लिये अपनी केंद्र प्रायोजित योजना ’सिल्क समग्र’ (Silk Samagra) हेतु तीन वर्ष यानी वर्ष 2017-2020 के लिये 2161.68 करोड़ रुपए आवंटित किये थे।

प्रमुख बिंदु

कन्वर्जेंस मॉडल:

  • उद्देश्य:
    • इस मॉडल का उद्देश्य किसानों को रेशम पालन आधारित कृषि वानिकी मॉडल अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना है, जिससे प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया (Make in India) एवं मेक फॉर द वर्ल्ड (Make for the World) दृष्टिकोण में योगदान मिल सकेगा।
  • कन्वर्जेंस मॉडल के विषय में:
    • यह लिंकेज उत्पादकों को बेहतर रिटर्न देने के लिये कृषि वानिकी में एक नया आयाम जोड़ेगा तथा साथ ही अनेक प्रकार के रेशम, जिसके लिये भारत प्रसिद्ध है, के उत्पादन में सहायक सिद्ध होगा।
    • भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला केंद्रीय रेशम बोर्ड (Central Silk Board) रेशम क्षेत्र में कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिये उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।
      • केंद्रीय रेशम बोर्ड एक वैधानिक निकाय है जिसे वर्ष 1948 में संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया था।
    • रेशम पालन क्षेत्र में सहयोग को औपचारिक रूप देने की पहल विशेष रूप से रेशम कीट पालन वाले पौधों (मलबरी, असन, अर्जुन, सोम, सलू, केसरू, बड़ा केसरू, इत्यादि) को प्रोत्साहित करने के लिये लक्षित है ताकि खेतों पर ब्लॉक पौधारोपण या परिधीय वृक्षारोपण दोनों के रूप में खेती की जा सके। 
  • महत्त्व:
    • खेत की मेड़ों पर रेशम आधारित वृक्ष प्रजातियों के रोपण और रेशम कीटों के पालन में किसानों के लिये कृषि गतिविधियों से आय के नियमित स्रोत के अलावा अतिरिक्त आय के अवसर पैदा करने की क्षमता है।
    • यह वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण में योगदान देगा।

कृषि-वानिकी पर उप-मिशन (SMAF) योजना:

  • परिचय
    • कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग (DAC & FW) वर्ष 2016-17 से ‘नेशनल एग्रोफोरेस्ट्री पॉलिसी’ (वर्ष 2014) की सिफारिश के हिस्से के रूप में कृषि-वानिकी पर उप-मिशन (SMAF) योजना को लागू कर रहा है।
      • इस नीति को फरवरी, 2014 में दिल्ली में आयोजित ‘वर्ल्ड एग्रोफोरेस्ट्री काॅन्ग्रेस में लॉन्च किया गया था और भारत इस प्रकार की व्यापक नीति वाला पहला देश है।
    • यह योजना केवल उन राज्यों में लागू की गई है, जिन्होंने लकड़ी के परिवहन के लिये ट्रांज़िट नियमों को उदार बनाया है और इसे अन्य राज्यों में तब विस्तारित किया जाएगा, जब इस प्रकार के नियम उन राज्यों द्वारा अधिसूचित किये जाएंगे।
      • वर्तमान में यह योजना 20 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों में लागू की जा रही है।
    • यह योजना औषधीय महत्त्व वाली स्थानिक प्रजातियों या वृक्ष प्रजातियों को बढ़ावा देती है।
      • योजना द्वारा विदेशी प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित नहीं किया जाता है।
  • उद्देश्य
    • किसानों को आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान करने तथा खाद्य भंडारों में वृद्धि के लिये जलवायु अनुकूल कृषि फसलों के साथ बहु-उद्देश्यीय वृक्ष लगाने हेतु उन्हें प्रोत्साहित करना।
  • वित्तपोषण:
    • यह योजना सभी राज्यों में 60:40 (केंद्र:राज्य) के वित्तपोषण पैटर्न पर आधारित है, परंतु उत्तर-पूर्व क्षेत्र के 8 राज्य, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों के लिये यह वित्तपोषण पैटर्न 90:10 पर आधारित है। केंद्रशासित प्रदेशों के मामले में शत-प्रतिशत वित्तीय सहायता केंद्र सरकार द्वारा प्रदान की जाती है।
  • लाभार्थी:
    • योजना के तहत संबंधित हस्तक्षेपों के लिये कृषकों को हस्तक्षेप की वास्तविक लागत का 50 प्रतिशत (मूल्य मानदंडों के अनुसार अनुमानित लागत की 50 % सीमा तक) तक समर्थन दिया जाएगा।
    • किसान समूह/सहकारी समितियाँ और किसान उत्पादक संगठन (FPO) भी इस कार्यक्रम का लाभ उठा सकते हैं, लेकिन किसानों को यह सहायता निर्धारित मापदंडों और प्रावधानों के अनुरूप ही दी जाएगी।
    • आवंटन का कम-से-कम 50 प्रतिशत हिस्सा लघु और सीमांत किसानों के लिये उपयोग किया जाना आवश्यक है, जिनमें से कम-से-कम 30 प्रतिशत महिला लाभार्थी/किसान होनी अनिवार्य हैं। इसके अलावा विशेष घटक योजना (SCP) और जनजाति उप-योजना (TSP) के लिये कुल आवंटन का क्रमशः 16 प्रतिशत और 8 प्रतिशत अथवा ज़िले में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की कुल आबादी के अनुपात में आवंटन का एक विशेष हिस्सा उपयोग में लाया जाएगा।
    • इस कार्यक्रम के तहत लाभ पाने के लिये किसानों के पास मृदा स्वास्थ्य कार्ड होना अनिवार्य है।

किसानों से संबंधित अन्य पहलें:

कृषि वानिकी

  • कृषि वानिकी, सामाजिक वानिकी का महत्त्वपूर्ण भाग है। इसके अंतर्गत किसान खेतों में फसल उगाने के साथ-साथ पेड़, चारा उत्पादक पौधे, घास व फलीदार फसलें भी उगाते हैं। 
  • कृषि वानिकी में पेड़ों को फसल की श्रेणी में ही रखा जाता है। इसके अंतर्गत पेड़ों को खेतों की मेड़, बाँधों पर, जलाक्रांत क्षेत्रों में और सड़कों के किनारे चरागाहों में उगाया जाता है। 

रेशम उत्पादन

  • रेशम उत्पादन के विषय में:
    • यह कृषि आधारित उद्योग है।
    • इस उद्योग में कच्चे रेशम के उत्पादन के लिये रेशम के कीड़ों का पालन किया जाता है।
    • रेशम उत्पादन के मुख्य क्रिया-कलापों में रेशम कीटों के आहार के लिये खाद्य पौधों की कृषि तथा कीटों द्वारा बुने हुए कोकूनों से रेशम तंतु निकालना, इसका प्रसंस्करण तथा बुनाई आदि की प्रक्रिया सन्निहित है।
      • कच्चा रेशम बनाने के लिये रेशम के कीटों का पालन सेरीकल्चर या रेशमकीट पालन कहलाता है।
    • घरेलू रेशम के कीड़ों (बॉम्बेक्स मोरी) को सेरीकल्चर के उद्देश्य से पाला जाता है।
  • भारत में रेशम उत्पादन:
    • रेशम के कीड़ों की विभिन्न प्रजातियों से प्राप्त वाणिज्यिक महत्त्व के रेशम के कुल पाँच प्रमुख प्रकार होते हैं।
      • ये हैं- मलबरी (Mulberry), ओक टसर (Oak Tasar), ट्रॉपिकल टसर (Tropical Tasar), मूंगा (Muga) और एरी (Eri)।
    • मलबरी के अलावा रेशम की अन्य किस्में जंगली प्रकार की किस्में होती हैं, जिन्हें सामान्य रूप में ‘वन्या’ (Vanya) कहा जाता है। 
    • भारत में रेशम की इन सभी वाणिज्यिक किस्मों का उत्पादन होता है।
    • दक्षिण भारत देश का प्रमुख रेशम उत्पादक क्षेत्र है और यह क्षेत्र कांचीपुरम, धर्मावरम, आर्नी आदि बुनाई के लिये भी काफी प्रसिद्ध है।

स्रोत: पी.आई.बी.


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