डेली न्यूज़ (09 Jan, 2023)



राष्ट्रीय उद्यान (भाग-1)

National-Parks-I


मेक इन इंडिया

प्रिलिम्स के लिये:

मेक इन इंडिया, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस, उत्पादन संबंद्ध प्रोत्साहन (PLI), राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली (NSWS), एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP)

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था को बदलने में मेक इन इंडिया का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक दर्जन से अधिक "प्रतिबंधात्मक और भेदभावपूर्ण" शर्तें, जो स्थानीय आपूर्तिकर्त्ताओं को बोली प्रक्रिया में भाग लेने से रोकती थीं, का निराकरण एवं 'मेक इन इंडिया' पहल को बढ़ावा देने के लिये केंद्र सरकार द्वारा मंज़ूरी प्रदान की गई।

  • ये शर्तें सार्वजनिक खरीद (मेक इन इंडिया को वरीयता) आदेश, 2017 का उल्लंघन थीं, जो स्थानीय आपूर्तिकर्त्ताओं के हितों की रक्षा करने और आय एवं रोज़गार बढ़ाने की दृष्टि से भारत में वस्तुओं तथा सेवाओं के विनिर्माण एवं उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु जारी की गई थीं। 

मेक इन इंडिया पहल: 

  • परिचय: 
    • वर्ष 2014 में लॉन्च किये गए मेक इन इंडिया का मुख्य उद्देश्य देश को एक अग्रणी वैश्विक विनिर्माण और निवेश गंतव्य में बदलना है।
    • इसका नेतृत्त्व उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT), वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किया जा रहा है।
    • यह पहल दुनिया भर के संभावित निवेशकों और भागीदारों को 'न्यू इंडिया' की विकास गाथा में भाग लेने हेतु एक खुला निमंत्रण है।
    • मेक इन इंडिया ने 27 क्षेत्रों में पर्याप्त उपलब्धियांँ हासिल की हैं। इनमें विनिर्माण और सेवाओं के रणनीतिक क्षेत्र भी शामिल हैं।
  • उद्देश्य:
    • नए औद्योगीकरण के लिये विदेशी निवेश को आकर्षित करना और चीन से आगे निकलने के लिये भारत में पहले से मौजूद उद्योग आधार का विकास करना।
    • मध्यावधि में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि को 12-14% वार्षिक करने का लक्ष्य।
    • देश के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी को वर्ष 2022 तक 16% से बढ़ाकर 25% करना।
    • वर्ष 2022 तक 100 मिलियन अतिरिक्त रोज़गार सृजित करना।
    • निर्यात आधारित विकास को बढ़ावा देना।
  • प्रमुख चार स्तंभ: 
    • नई प्रक्रियाएँ:  
      • 'मेक इन इंडिया' उद्यमिता को बढ़ावा देने हेतु 'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस' को एकमात्र सबसे महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में मान्यता देती है, जिसके लिये पहले ही कई पहलें की जा चुकी हैं। 
      • इसका उद्देश्य व्यवसाय की संपूर्ण अवधि में इस क्षेत्र को लाइसेंस और विनियमन से मुक्त करना है। 
    • नई अवसंरचना:  
      • इस क्षेत्र का विस्तार करने के लिये सरकार ने औद्योगिक गलियारों का निर्माण, मौजूदा बुनियादी ढाँचे का उन्नयन और त्वरित पंजीकरण प्रक्रिया प्रदान करने की योजना बनाई है।
    • नए क्षेत्र:  
      • "मेक इन इंडिया" द्वारा विनिर्माण, बुनियादी ढाँचे और सेवा गतिविधियों के लिये 27 उद्योगों की पहचान की गई है तथा एक इंटरैक्टिव वेब पेज एवं पैम्फलेट के माध्यम से इस संबंध में व्यापक जानकारी दी जा रही है।
    • नई सोच:  
      • "मेक इन इंडिया" पहल मूल रूप से व्यवसाय के साथ सरकार के काम करने के तरीके को बदलना चाहती है।
      • सरकार देश की अर्थव्यवस्था को विकसित करने के लिये विभिन्न उद्योगों के साथ साझेदारी करेगी और नियामक रुख की बजाय एक सुविधाजनक तरीका अपनाएगी। 
  • परिणाम: 
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) अंतर्वाह: विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये भारत सरकार ने एक उदार और खुली नीति लागू की है जो स्वचालित मार्ग के माध्यम से अधिकांश क्षेत्रों को FDI के लिये सुलभ बनाती है।   
      • वर्ष 2014-2015 में भारत में FDI अंतर्वाह 45.15 अरब अमेरिकी डॉलर था और तब से लगातार आठ वर्षों के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया है। 
        • वर्ष 2021-22 में अब तक का सबसे अधिक 83.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का FDI दर्ज किया गया।
      • आर्थिक सुधारों और पिछले वर्षों (2022-23) में व्यापार करने में सुगमता के परिणामस्वरूप वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर अग्रसर है।
    • उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (Production Linked Incentive- PLI): 14 प्रमुख विनिर्माण क्षेत्रों में प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव योजनाओं को मेक इन इंडिया पहल को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2020-21 में लॉन्च किया गया था। 
  • संबद्ध पहलें: 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. विनिर्माण क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार की हाल की नीतिगत पहल क्या है/हैं? (2012)

  1. राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र की स्थापना
  2. 'सिंगल विंडो क्लीयरेंस' का लाभ प्रदान करना
  3. प्रौद्योगिकी अधिग्रहण और विकास कोष की स्थापना

नीचे दिये गये कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र एक नई अवधारणा है जो राष्ट्रीय विनिर्माण नीति, 2011 का एक अभिन्न अंग है। राष्ट्रीय विनिर्माण नीति एक ऐसा नीतिगत उपकरण है जिसे विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये चुनिंदा क्षेत्रों पर लागू किया जाता है। अत: 1 सही है।
  • लालफीताशाही को कम करने और देश में निवेश एवं व्यवसाय को सुगम बनाने हेतु 'सिंगल विंडो क्लीयरेंस' की स्थापना की गई है। अत: 2 सही है।
  • प्रौद्योगिकी अधिग्रहण और विकास निधि (TADF) को राष्ट्रीय विनिर्माण नीति के तहत लॉन्च किया गया था। TADF एक नई योजना है जो सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) द्वारा भारत में या विश्व स्तर पर उपलब्ध प्रौद्योगिकी/अनुकूलित उत्पादों/विशिष्ट सेवाओं/पेटेंट/औद्योगिक डिज़ाइन के रूप में स्वच्छ, हरित तथा ऊर्जा कुशल प्रौद्योगिकियों के अधिग्रहण की सुविधा प्रदान करती है। अत: 3 सही है।
  • इस योजना की परिकल्पना "मेक इन इंडिया" के राष्ट्रीय फोकस में योगदान करने हेतु MSME क्षेत्र में विनिर्माण विकास को उत्प्रेरित करने के लिये की गई है। अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।

मेन्स:

प्रश्न. “'मेक इन इंडिया कार्यक्रम की सफलता कौशल भारत कार्यक्रम और क्रांतिकारी श्रम सुधारों की सफलता पर निर्भर करती है।" तार्किक तर्कों के साथ चर्चा कीजिये। (2019)

स्रोत: द हिंदू


जोशीमठ में भूस्खलन

प्रिलिम्स के लिये:

प्राकृतिक आपदा, बाढ़, सूखा, भूस्खलन, जोशीमठ।

मेन्स के लिये:

जोशीमठ में भूस्खलन के कारण और संबंधित चिंताएँ।

चर्चा में क्यों? 

बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब की ओर जाने वाले यात्रियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण केंद्र जोशीमठ में भूस्खलन एवं ज़मीन धँसने के कारण चिंतित स्थानीय लोगों द्वारा प्रदर्शन किया गया। 

  • इस शहर को भूस्खलन-धँसाव क्षेत्र घोषित किये जाने के साथ ही जोशीमठ में भूस्खलन से प्रभावित घरों में रहने वाले 60 से अधिक निवासियों को अस्थायी राहत केंद्रों में स्थानांतरित कर दिया गया था। 

जोशीमठ: 

  • जोशीमठ उत्तराखंड के चमोली ज़िले में ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-7) पर स्थित एक पहाड़ी शहर है।  
  • राज्य के अन्य महत्त्वपूर्ण धार्मिक और पर्यटन स्थलों के अलावा यह शहर बद्रीनाथ, औली, फूलों की घाटी (Valley of Flowers) एवं हेमकुंड साहिब की यात्रा करने वाले पर्यटकों के लिये रात्रि विश्राम स्थल के रूप में भी जाना जाता है।  
  • जोशीमठ, जो सेना की सबसे महत्त्वपूर्ण छावनियों में से एक है, भारतीय सशस्त्र बलों के लिये अत्यधिक सामरिक महत्त्व रखता है। 
  • शहर (उच्च जोखिम वाला भूकंपीय क्षेत्र-V) के माध्यम से धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों के संगम, विष्णुप्रयाग से एक उच्च ढाल के साथ बहती हुई धारा आती है।
  • यह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मुख्य मठों में से एक है, अन्य मठ उत्तराखंड के बद्रीनाथ में जोशीमठ, ओडिशा के पुरी और कर्नाटक के श्रींगेरी में हैं।

Joshimath

जोशीमठ की समस्याओं का कारण: 

  • पृष्ठभूमि: 
    • दीवारों और इमारतों में दरार पड़ने की घटना पहली बार वर्ष 2021 में दर्ज की गई, जबकि उत्तराखंड के चमोली ज़िले में भूस्खलन एवं बाढ़ की घटनाएँ निरंतर रूप से देखी जा रही थीं।
    • रिपोर्टों के अनुसार, उत्तराखंड सरकार के विशेषज्ञ पैनल ने वर्ष 2022 में पाया कि जोशीमठ के कई हिस्सों में मानव निर्मित और प्राकृतिक कारकों के कारण इस प्रकार की समस्या उत्पन्न हो रही है।
    • यह पाया गया कि व्यावहारिक रूप से शहर के सभी ज़िलों में संरचनात्मक खामियाँ हैं और अंतर्निहित सामग्री के नुकसान या गतिविधियों के परिणामस्वरूप पृथ्वी की सतह के धीरे-धीरे या अचानक धँसने अथवा विलय हो जाने जैसे परिणाम देखने को मिलते रहने की संभावना है।
  • कारण: 
    • एक प्राचीन भूस्खलन स्थल: वर्ष 1976 की मिश्रा समिति की रिपोर्ट के अनुसार, जोशीमठ मुख्य चट्टान पर नहीं बल्कि रेत और पत्थर के जमाव पर स्थित है। यह एक प्राचीन भूस्खलन क्षेत्र पर स्थित है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अलकनंदा एवं धौलीगंगा की नदी धाराओं द्वारा कटाव भी भूस्खलन के कारकों के अंतर्गत आते हैं।
      • समिति ने भारी निर्माण कार्य, ब्लास्टिंग या सड़क की मरम्मत के लिये बोल्डर हटाने और अन्य निर्माण, पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी।
    • भौगोलिक स्थिति: क्षेत्र में बिखरी हुई चट्टानें पुराने भूस्खलन के मलबे जिसमें बाउलडर, नीस चट्टानें और ढीली मृदा शामिल है, से ढकी हुई हैं, जिनकी धारण क्षमता न्यून है।
      • ये नीस चट्टानें अत्यधिक अपक्षयित प्रकृति की होती हैं और विशेष रूप से मानसून के दौरान पानी से संतृप्त होने पर इनके रंध्रों पर उच्च दबाव बन जाता है फलस्वरूप इनका संयोजी मूल्य कम हो जाता है।
    • निर्माण गतिविधियाँ: निर्माण कार्य में वृद्धि, पनबिजली परियोजनाओं और राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण ने पिछले कुछ दशकों में ढलानों को अत्यधिक अस्थिर बना दिया है।
    • भू-क्षरण: विष्णुप्रयाग से बहने वाली धाराओं और प्राकृतिक धाराओं के साथ हो रहा चट्टानी  फिसलन, शहर में भूस्खलन के अन्य कारण हैं।
  • प्रभाव: 
    • कम-से-कम 66 परिवारों ने शहर छोड़ दिया है, जबकि 561 घरों में दरारें आने की सूचना है। एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि अब तक 3000 से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं।

जोशीमठ को बचाने हेतु संभावित उपाय:

  • विशेषज्ञ क्षेत्र में विकास और पनबिजली परियोजनाओं को पूरी तरह से बंद करने की सलाह देते हैं लेकिन निवासियों को तत्काल सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित किये जाने की आवश्यकता है और बदलते भौगोलिक कारकों को समायोजित करने के लिये शहर की योजना फिर से बनाई जानी चाहिये।
  • ड्रेनेज योजना सबसे बड़े कारकों में से एक है जिसका अध्ययन और पुनर्विकास करने की आवश्यकता है। शहर खराब जल निकासी एवं सीवर प्रबंधन से ग्रस्त है चूँकि अधिकांशतः शहरी अपशिष्ट, मृदा को दूषित कर रहा है, जिससे मृदा की संरचना कमज़ोर हो जाती है। राज्य सरकार ने सिंचाई विभाग को इस मुद्दे पर गौर करने और जल निकासी व्यवस्था के लिये एक नई योजना बनाने को कहा है।
  • विशेषज्ञों ने मृदा की क्षमता को बनाए रखने के लिये विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में पुनर्रोपण का भी सुझाव दिया है। जोशीमठ को बचाने के लिये सीमा सड़क संगठन (BRO) जैसे सैन्य संगठनों की सहायता से सरकार और नागरिक निकायों द्वारा एक समन्वित प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
  • हालाँकि लोगों को स्थानीय घटनाओं के बारे में चेतावनी देने के लिये राज्य में पहले से ही मौसम पूर्वानुमान तकनीक मौजूद है, किंतु इसके कवरेज में सुधार की आवश्यकता है। 
    • उत्तराखंड में मौसम की भविष्यवाणी, उपग्रहों और डॉप्लर वेदर रडार (ऐसे उपकरण जो वर्षा का पता लगाने एवं उसके स्थान और तीव्रता को निर्धारित करने के लिये विद्युत चुंबकीय ऊर्जा का उपयोग करते हैं) के माध्यम से की जाती है। 
  • राज्य सरकार को वैज्ञानिक अध्ययनों को भी अधिक गंभीरता से लेने की आवश्यकता है, जो वर्तमान संकट के कारणों की स्पष्ट रूप से व्याख्या करते हैं। तभी राज्य अपने विकास बाधाओं को खत्म कर पाएगा।

भूमि अवतलन (Land Subsidence):

  • भूमि अवतलन/अधोगमन पृथ्वी की सतह का धीरे-धीरे धँसना या अचानक धँसना है।
  • अवतलन- भूमिगत सामग्री के संचलन के कारण ज़मीन का धँसना पानी, तेल, प्राकृतिक गैस या खनिज संसाधनों को पंपिंग, फ्रैकिंग या खनन गतिविधियों द्वारा ज़मीन से बाहर निकालने के कारण होता है।
  • भूकंप, मृदा संघनन, हिमनदों के समस्थानिक समायोजन, अपरदन, सिंकहोल या विलियन रंध्र के गठन और वायु द्वारा निक्षेपित मृदा में जल का मिलना (एक प्राकृतिक प्रक्रिया जिसे लोयस के रूप में जाना जाता है) जैसी प्राकृतिक घटनाओं के कारण भी अवतलन हो सकता है।
  • अधोगमन बहुत बड़े क्षेत्रों जैसे पूरे राज्य या प्रांत या बहुत छोटे क्षेत्रों जैसे या आँगन के कोने में हो सकता है।

भूस्खलन: 

  • भूस्खलन को पृथ्वी के ढलान के नीचे की ओर व्यापक रूप से मृदा, चट्टान और मलबे के संचलन के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • भूस्खलन बृहत क्षरण का एक प्रकार है, जो गुरुत्त्वाकर्षण के प्रत्यक्ष प्रभाव के तहत मृदा और चट्टान की नीचे की ओर गति को दर्शाता है।
  • भूस्खलन शब्द में ढलान की गति के पाँच तरीके शामिल हैं: गिरना, लुढ़कना, खिसकना, प्रसार और प्रवाहित होना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. पश्चिमी घाट की तुलना में हिमालय में बार-बार होने वाले भूस्खलन के कारणों को प्रदर्शित कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2013)

प्रश्न. भूस्खलन के विभिन्न कारणों और प्रभावों का वर्णन कीजिये। राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्त्वपूर्ण घटकों का उल्लेख कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2021)

स्रोत: द हिंदू


गेहूँ निर्यात प्रतिबंध

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKAY)

मेन्स के लिये:

गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का कारण, पूरे भारत में गेहूँ वितरण का वर्तमान परिदृश्य।

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के तहत वितरण की आवश्यकताओं और गेहूँ के केंद्रीय स्रोत के आधार पर वर्तमान आपूर्ति को देखते हुए भारत सरकार गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध को हटाने पर विचार कर रही है।

भारत में गेहूँ वितरण का वर्तमान परिदृश्य: 

  • चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक देश है लेकिन यह वैश्विक गेहूँ व्यापार का 1% से भी कम है। यह कमी गरीबों को सब्सिडी युक्त भोजन उपलब्ध कराने के कारण है।
  • इसके शीर्ष निर्यातक बाज़ार बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका के साथ ही संयुक्त अरब अमीरात (UAE) हैं।
  • भारतीय खाद्य निगम (FCI) के अनुसार, गेहूँ का भंडार पिछले छह महीनों में 2 मिलियन टन प्रति माह की दर से घट रहा है और वर्तमान में छह वर्षों में सबसे कम है।  
    • सरकार गेहूँ का पर्याप्त भंडार होने के बाद ही इसके निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाने पर विचार कर रही है ताकि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
  • सरकार ने गेहूँ की कम खरीद तथा बढ़ती कीमतों के बारे में चिंताओं को दूर करने के लिये कई उपाय किये हैं। इन उपायों में शामिल हैं:
  • वर्ष 2023 में गेहूँ का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में बेहतर रहने की उम्मीद है, जिससे बाज़ार में गेहूँ की आपूर्ति बढ़ाने में मदद मिल सकती है।

गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का कारण:

  • वैश्विक स्तर पर गेहूँ की कीमत: भारत ने मई 2022 में गेहूँ के निर्यात को निलंबित कर दिया। सरकारी राजपत्र में प्रकाशित एक अधिसूचना में विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) ने प्रतिबंध को उचित ठहराते हुए कहा कि वैश्विक स्तर पर गेहूँ की बढ़ती कीमतों ने न केवल भारत में बल्कि पड़ोसी और कमज़ोर देशों में भी खाद्य सुरक्षा पर दबाव डाला है।
    • हालाँकि अन्य देशों को उनकी खाद्य सुरक्षा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये भारत सरकार द्वारा दिये गए आदेशों और उनकी सरकारों के अनुरोध के आधार पर निर्यात की अनुमति दी जाएगी
  • गेहूँ के उत्पादन पर प्रभाव: मार्च-अप्रैल 2022 में पूरे देश में हीट वेव और FCI द्वारा पर्याप्त बफर स्टॉक बनाने में असमर्थता तथा प्रतिबंध के कारण भी गेहूँ के उत्पादन में गिरावट आई।
  • मुद्रास्फीति में वृद्धि: भारत में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) वर्ष 2022 की शुरुआत में 2.26% से बढ़कर मई 2022 में 14.55% हो गया। खुदरा मुद्रास्फीति भी अप्रैल, 2022 में खाद्य और ईंधन की बढ़ती कीमतों के कारण आठ वर्षों में 7.79% पर पहुँच गई। 

  सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. केवल 'गरीबी रेखा से नीचे (BPL) की श्रेणी में आने वाले परिवार ही सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने के पात्र हैं।
  2. परिवार में 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र की सबसे अधिक उम्र वाली महिला ही राशन कार्ड निर्गत किये जाने के प्रयोजन से परिवार की मुखिया होगी। 
  3. गर्भवती महिलाएँ एवं दुग्ध पिलाने वाली माताएँ गर्भावस्था के दौरान और उसके छह महीने बाद तक प्रतिदिन 1600 कैलोरी वाला राशन घर ले जाने की हकदार हैं।

उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. आज भी भारत में सुशासन के लिये भूख और गरीबी सबसे बड़ी चुनौती है। मूल्यांकन कीजिये कि इन विशाल समस्याओं से निपटने में सरकारों ने कितनी प्रगति की है। सुधार के उपाय सुझाइये। (मुख्य परीक्षा, 2017)

प्रश्न. खाद्यान्न वितरण प्रणाली को और अधिक प्रभावी बनाने के लिये सरकार द्वारा कौन से सुधारात्मक कदम उठाए गए हैं? (मुख्य परीक्षा, 2019)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये:

आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम, आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम, सतत् विकास लक्ष्य, नीति आयोग

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों? 

5 से 7 जनवरी, 2022 तक आयोजित मुख्य सचिवों के दूसरे राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम (ABP) शुरू किया गया है।

आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम:

  • यह एक विकास पहल है जिसका उद्देश्य उन क्षेत्रों के प्रदर्शन में सुधार करना है जो विभिन्न विकास मानकों पर पिछड़ रहे हैं।
  • इसकी घोषणा केंद्रीय बजट 2022-23 में की गई थी।
  • यह आरंभ में 31 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 500 ज़िलों को कवर करेगा, जिनमें से आधे से अधिक ब्लॉक छह राज्यों- उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में स्थित हैं।
  • ABP आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (ADP) पर आधारित है।

आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम:

  • परिचय: 
    • यह वर्ष 2018 में शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य उन ज़िलों की स्थिति में सुधार करना है जिन्होंने प्रमुख सामाजिक क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम प्रगति प्रदर्शित की है।
    • आकांक्षी ज़िले भारत के वे ज़िले हैं जो खराब सामाजिक-आर्थिक संकेतकों से प्रभावित हैं।
      • इसमें देश भर के 112 ज़िले शामिल हैं।  
    • भारत सरकार के स्तर पर कार्यक्रम का संचालन नीति आयोग द्वारा किया जाता है। इसके अलावा अलग-अलग मंत्रालयों ने ज़िलों की प्रगति हेतु ज़िम्मेदारी संभाली है।
  • कार्यक्रम की व्यापक रूपरेखा: 
    • अभिसरण (केंद्र और राज्य की योजनाओं का) 
    • सहयोग (केंद्रीय, राज्य स्तरीय 'प्रभारी' अधिकारियों और ज़िला कलेक्टरों का), 
    • मासिक डेल्टा रैंकिंग के माध्यम से ज़िलों के बीच प्रतिस्पर्द्धा।
      • आकांक्षी ज़िलों की डेल्टा रैंकिंग, व्यावहारिक प्रशासन के साथ डेटा के अभिनव उपयोग को जोड़ती है, जिससे ज़िले को समावेशी विकास के केंद्र में रखा जाता है।
  • उद्देश्य: 
    • यह प्रत्येक ज़िले की क्षमता पर ध्यान केंद्रित करता है एवं तत्काल सुधार के लिये प्रभावी कारकों की पहचान करता है और मासिक आधार पर ज़िलों की रैंकिंग करके प्रगति को मापता है। 
    • ज़िलों को अपने राज्य में सबसे अच्छे ज़िले के समान स्थिति में पहुँचने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है तथा बाद में प्रतिसपर्द्धी तथा सहकारी संघवाद की भावना से दूसरों से प्रतिस्पर्द्धा करके और दूसरों से सीखकर देश के सर्वश्रेष्ठ में से एक बनने के लिये प्रेरित किया जाता है।
    • "सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास" दृष्टिकोण के साथ सरकार अपने नागरिकों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने तथा सभी के लिये समावेशी विकास सुनिश्चित करने हेतु प्रतिबद्ध है।
    • राष्ट्र की प्रगति के लिये ADP का उदेश्य सतत् विकास लक्ष्यों का स्थानीकरण करना है। 
  • रैंकिंग के लिये मानदंड: 
    • 5 प्रमुख सामाजिक-आर्थिक विषयों पर आधारित, 49 प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों में किये गए वृद्धिशील सुधारों के आधार पर रैंकिंग निर्धारित की जाती है- 
      • स्वास्थ्य और पोषण (30%) 
      • शिक्षा (30%) 
      • कृषि एवं जल संसाधन (20%) 
      • वित्तीय समावेशन एवं कौशल विकास (10%) 
      • अवसंरचना (10%) 
  • विविध कार्यक्रम: 

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रश्न. अटल नवाचार मिशन किसके तहत स्थापित किया गया है? (2019)  

(a) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग 
(b) श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय 
(c) नीति आयोग
(d) कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय 

उत्तर: (c)

व्याख्या: 

  • नीति आयोग द्वारा स्थापित अटल इनोवेशन मिशन (AIM) देश की नवाचार और उद्यमशीलता की ज़रूरतों पर विस्तृत अध्ययन एवं विचार-विमर्श के आधार पर नवाचार तथा  उद्यमिता को बढ़ावा देने हेतु एक प्रमुख पहल है।
  • AIM की परिकल्पना अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देने हेतु नए कार्यक्रम और नीतियांँ विकसित करना, विभिन्न हितधारकों के लिये मंच एवं सहयोग के अवसर प्रदान करना, जागरूकता पैदा करना तथा देश के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र की निगरानी हेतु एक अम्ब्रेला संरचना (Umbrella Structure) निर्मित करने हेतु की गई है।

अतः विकल्प (C) सही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जनगणना

प्रिलिम्स के लिये:

जनगणना 2011, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, कल्याणकारी योजनाएँ, सरकारी योजना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली।

मेन्स के लिये:

जनगणना।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये प्रशासनिक सीमाओं को अंतिम रूप देने की अवधि जून 2023 तक बढ़ा दी है, जिसके कारण जनगणना 2021 की कवायद में देरी हो सकती है।

  • जनगणना के संचालन के दौरान मकान सूचीकरण के चरण और आबादी की गणना के दौरान राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों से ज़िलों, कस्बों, गाँवों तथा तहसीलों की सीमाओं को बदलने की अपेक्षा नहीं की जाती है।

विलंब के निहितार्थ:

  • राजनीतिक प्रतिनिधित्त्व पर प्रभाव:
    • जनगणना का उपयोग संसद, राज्य विधानसभाओं, स्थानीय निकायों और सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित सीटों की संख्या निर्धारित करने के लिये किया जाता है।
    • इसलिये जनगणना में देरी का अर्थ है कि वर्ष 2011 की जनगणना के डेटा का उपयोग जारी रहेगा। 
    • कई कस्बों और यहाँ तक कि पंचायतों में जहाँ पिछले दशक में उनकी आबादी की संरचना में तेज़ी से बदलाव हुआ है, का अर्थ यह होगा कि या तो बहुत अधिक या बहुत कम सीटें आरक्षित की जाएंगी।
  • निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन:
    • वर्ष 2026 के बाद की जनगणना के आँकड़े प्रकाशित होने तक संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर जारी रहेगा।
  • कल्याणकारी उपायों पर अविश्वसनीय अनुमान:
    • विलंब से सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों पर प्रभाव पड़ेगा तथा इसके परिणामस्वरूप उपभोग, स्वास्थ्य एवं रोज़गार पर अन्य सर्वेक्षणों से अविश्वसनीय अनुमान प्राप्त होंगे जो नीति और कल्याण उपायों को निर्धारित करने के लिये जनगणना के आँकड़ों पर निर्भर करते हैं।
      • सरकार के खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) से 10 करोड़ लोगों के बाहर हो जाने की संभावना है क्योंकि लाभार्थियों की संख्या की गणना के लिये उपयोग किये जाने वाले जनसंख्या के आँकड़े वर्ष 2011 की जनगणना पर आधारित हैं।
  • मकान-सूचीकरण का प्रभाव:
    • पूरे देश के लिये एक संक्षिप्त मकान सूची तैयार करने में लगभग एक वर्ष का समय लगता है जिसका उपयोग प्रगणक पते को जानने के लिये करता है।
    • मकान-सूचीकरण का मुख्य उद्देश्य उन सभी परिवारों की एक सूची तैयार करना है, जिनका सर्वेक्षण जनगणना से पहले किया जाना है, इसके अलावा आवास स्टॉक सुविधाओं और प्रत्येक परिवार के पास उपलब्ध परिसंपत्तियों पर डेटा प्रदान करना है।
    • जनसंख्या गणना एक वर्ष के बाद हाउसलिस्टिंग/घरों के सूचीकरण के बाद होती है
      • इसलिये जनगणना 2011 हेतु सरकार ने अप्रैल और सितंबर 2010 के बीच हाउसलिस्टिंग एवं फरवरी 2011 में जनसंख्या गणना की।
    • हाउसलिस्टिंग महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका के विपरीत भारत के पास एक मज़बूत एड्रेस सिस्टम नहीं है।
  • प्रवास:
    • पहले कोविड लॉकडाउन के दौरान शहरों से राजमार्गों के माध्यम से प्रवासी श्रमिकों के अपने गाँवों की ओर जाने की तस्वीरों ने उनकी दुर्दशा को सुर्खियों में ला दिया और प्रवास की संख्या, कारणों तथा प्रतिरूप पर सवाल उठाए गए, जिसका निराकरण वर्ष 2011 की जनगणना के पुराने आँकड़ों का उपयोग करके नहीं किया जा सकता था।
      • उदाहरण के लिये केंद्र के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि प्रत्येक शहर या राज्य में कितने प्रवासियों के फँसे होने की संभावना है और उन्हें भोजन राहत या परिवहन सहायता की आवश्यकता है।
    • नई जनगणना में बड़े महानगरीय केंद्रों के अलावा छोटे द्वि-स्तरीय शहरों की ओर प्रवासन प्रवृत्तियों में देखे गए संचलन के दायरे को शामिल करने की संभावना है।
      • यह इस सवाल का जवाब देने में मदद कर सकता है कि प्रवासियों में किन्हें किस तरह की स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सेवाओं की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।

जनगणना: 

  • परिभाषा: 
    • जनसंख्या जनगणना एक देश या किसी देश के एक सुपरिभाषित हिस्से में सभी व्यक्तियों के विशिष्ट समय पर जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक डेटा से संबंधित संग्रह, संकलन, विश्लेषण एवं प्रसार की समग्र प्रक्रिया है।
    • जनगणना पिछले एक दशक में देश की प्रगति की समीक्षा, सरकार की चल रही योजनाओं की निगरानी और भविष्य की योजनाओं का आधार है।
    • यह किसी समुदाय का तात्कालिक फोटोग्राफिक चित्र या स्थिति प्रदान करती है, जो किसी विशेष समय पर मान्य है।
    • जनगणना जनसंख्या विशेषताओं में प्रवृत्ति भी प्रदान करती है।
  • आवृत्ति: 
    • भारत में प्रत्येक 10 वर्ष में जनगणना की जाती है। 
      • भारतीय शहर की पहली पूर्ण जनगणना वर्ष 1830 में ढाका में हेनरी वाल्टर (भारतीय जनगणना के जनक के रूप में जाना जाता है) द्वारा आयोजित की गई थी।
      • गवर्नर-जनरल लॉर्ड मेयो के शासनकाल के दौरान वर्ष 1872 में भारत में पहली गैर-समकालिक जनगणना आयोजित की गई थी। 
      • पहली जनगणना 1881 में भारत के जनगणना आयुक्त डब्ल्यू.सी. प्लोडेन द्वारा संपन्न कराई गई थी। तब से निर्बाध रूप से हर दस साल में एक बार जनगणना की जाती रही है। 
    • अन्य देश:
      • कई देशों में हर 10 साल (उदाहरण के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन) और हर पाँच साल (जैसे कनाडा, जापान) या कुछ देशों में अनियमित अंतराल पर जनगणना कराई जाती है।
  • नोडल मंत्रालय:
  • कानूनी/संवैधानिक स्थिति:
    • जनगणना अधिनियम, 1948 के प्रावधानों के तहत जनगणना की जाती है।
      • इस अधिनियम के लिये बिल को भारत के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा निर्देशित किया गया था।
    • जनसंख्या जनगणना भारत के संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत संघ सूची का विषय है।
  • सूचना की गोपनीयता:
    • जनसंख्या की जनगणना के दौरान एकत्र की गई जानकारी इतनी गोपनीय होती है कि यह न्यायिक विषयों हेतु न्यायालय में भी प्रस्तुत नहीं की जा सकती है।
      • जनगणना अधिनियम, 1948 द्वारा गोपनीयता की गारंटी दी गई है। अधिनियम के किसी भी प्रावधान के गैर-अनुपालन या उल्लंघन के लिये कानून सार्वजनिक और जनगणना अधिकारियों दोनों हेतु दंड निर्दिष्ट करता है।

2021 की जनगणना की विगत जनगणना से तुलना:

  • पहली बार डेटा को मोबाइल एप्लीकेशन (गणना करने वाले व्यक्ति के फोन पर स्थापित) के माध्यम से ऑफलाइन मोड में काम करने के प्रावधान के साथ डिजिटल रूप से एकत्र किया जाएगा।
  • जनगणना निगरानी और प्रबंधन पोर्टल जनगणना गतिविधियों में शामिल सभी अधिकारियों/कर्मचारियों के लिये बहु-भाषा समर्थन प्रदान करने हेतु एकल स्रोत के रूप में कार्य करेगा।
  • पहली बार ट्रांसजेंडर समुदाय के किसी व्यक्ति और परिवार में रहने वाले सदस्यों की जानकारी जुटाई जाएगी।
    • पुरुष और महिला के लिये पहले केवल एक पंक्ति (कॉलम) था।

जनगणना का महत्त्व:

  • सूचना का स्रोत:
    • भारतीय जनसंख्या के कई पहलुओं पर सांख्यिकीय आँकड़ों का सबसे व्यापक एकल स्रोत भारतीय जनगणना है।
    • जनगणना डेटा का उपयोग शोधकर्त्ताओं और जनसांख्यिकीविदों द्वारा जनसंख्या वृद्धि एवं प्रवृति का पूर्वानुमान लगाने के लिये किया जाता है। 
  • सुशासन:  
    • जनगणना के दौरान एकत्र की गई जानकारी का उपयोग सरकार द्वारा प्रबंधन, योजना और नीति-निर्माण के साथ-साथ कई कार्यक्रमों के प्रबंधन एवं मूल्यांकन के लिये किया जाता है।
  • सीमांकन:  
    • जनगणना के आँकड़ों का उपयोग निर्वाचन क्षेत्रों के सीमांकन और संसद, राज्य विधानसभाओं तथा स्थानीय निकायों को प्रतिनिधित्त्व के आवंटन के लिये भी किया जाता है। 
    • संसद, राज्य विधानसभाओं, स्थानीय प्राधिकरणों और सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित होने वाली सीटों की संख्या भी जनगणना के परिणामों का उपयोग करके निर्धारित की जाती है।  
      • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये सीटें पंचायतों एवं नगरपालिका प्राधिकरणों में जनसंख्या में उनके अनुपात के आधार पर आरक्षित होती हैं।
  • व्यवसायों के लिये बेहतर पहुँच:  
    • जनगणना डेटा व्यवसायों और उद्योगों के लिये योजना बनाने और उनके संचालन को बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण है ताकि वे बाज़ारों को विस्तारित कर सकें। 
  • अनुदान की सुविधा:  
    • वित्त आयोग जनगणना के आँकड़ों से उपलब्ध डेटा के आधार पर राज्यों को अनुदान प्रदान करता है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009) 

  1. वर्ष 1951 की जनगणना और 2001 की जनगणना के बीच भारत के जनसंख्या घनत्त्व में तीन गुना से अधिक की वृद्धि हुई है।
  2. वर्ष 1951 की जनगणना और 2001 की जनगणना के बीच भारत की जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर तीन गुना हो गई है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (d)  

स्रोत: द हिंदू