डेली न्यूज़ (08 Aug, 2023)



संशोधित गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस मानक

प्रिलिम्स के लिये:

गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस, फार्मास्यूटिकल गुणवत्ता प्रणाली, फार्मास्यूटिकल कंपनियाँ, औषधि निर्माण मानक, गाम्बिया में बच्चों की मृत्यु

मेन्स के लिये:

गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस मानक में संशोधन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने सभी फार्मास्यूटिकल कंपनियों को अपनी प्रक्रियाओं को वैश्विक मानकों के अनुरूप लाते हुए गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) मानक लागू करने का निर्देश दिया है।

  • 250 करोड़ रुपए से अधिक कारोबार वाली बड़ी कंपनियों को छह महीने के भीतर संसोधनों को लागू करने के लिये कहा गया है, जबकि 250 करोड़ रुपए से कम कारोबार वाले मध्यम तथा छोटे उद्यमों को एक वर्ष के भीतर ऐसा करने के लिये कहा गया है।

गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP):

  • परिचय:
    • GMP यह सुनिश्चित करने की एक प्रणाली है कि उत्पादों का उत्पादन और नियंत्रण गुणवत्ता मानकों के अनुसार किया जाए।
    • इसे किसी भी फार्मास्यूटिकल उत्पादन में शामिल उन जोखिमों को कम करने के लिये डिज़ाइन किया गया है जिन्हें अंतिम उत्पाद के परीक्षण के माध्यम से समाप्त नहीं किया जा सकता है।
  • प्रमुख खतरे:
    • उत्पादों का अप्रत्याशित संदूषण
    • स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने अथवा मृत्यु का कारण 
    • कंटेनरों पर गलत लेबल, जिसका अर्थ है कि रोगियों को गलत दवा प्राप्त हुई है।
    • अपर्याप्त या बहुत अधिक सक्रिय घटक, जिनके परिणामस्वरूप अप्रभावी उपचार या प्रतिकूल प्रभाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने GMP के लिये विस्तृत दिशा-निर्देश सुनिश्चित किये हैं। कई देशों ने WHO-GMP के आधार पर अपने GMP नियम तैयार किये हैं।
  • फार्मास्यूटिकल निरीक्षण अभिसमय (Pharmaceutical Inspection Convention) के माध्यम से दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) और यूरोपीय संघ के देशों ने अपने मानदंडों को मानकीकृत किया है।
  • भारत में GMP प्रणाली को पहली बार वर्ष 1988 में औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 की अनुसूची M में शामिल किया गया था तथा इसमें आखिरी बार संशोधन जून 2005 में किया गया था। WHO-GMP मानक अब संशोधित अनुसूची M का हिस्सा हैं।

संशोधित GMP दिशा-निर्देशों में प्रमुख बदलाव:

  • फार्मास्यूटिकल गुणवत्ता प्रणाली और जोखिम प्रबंधन: 
    • नए दिशा-निर्देश एक फार्मास्यूटिकल गुणवत्ता प्रणाली प्रस्तुत करते हैं जो संपूर्ण उत्पादन प्रक्रिया के दौरान व्यापक गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली की स्थापना पर ज़ोर देती है।
    • कंपनियों को अब अपने उत्पादों की गुणवत्ता के लिये संभावित जोखिमों की पहचान और उचित निवारक उपाय करने हेतु गुणवत्ता जोखिम प्रबंधन प्रथाओं को लागू करना अनिवार्य है। साथ ही गुणवत्ता एवं विभिन्न प्रक्रियाओं में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये सभी उत्पादों की नियमित गुणवत्ता समीक्षा करना भी अनिवार्य है।
  • स्थिरता संबंधी अध्ययन: 
    • कंपनियों के लिये अब जलवायु परिस्थितियों के आधार पर स्थिरता संबंधी शोध-अध्ययन करना अनिवार्य है। इसमें दवाओं को निर्धारित तापमान और आर्द्रता के स्तर पर उनकी दीर्घकालिक स्थिरता के मूल्यांकन के लिये स्टेबिलिटी चैम्बर्स में रखा जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न परिस्थितियों में उत्पाद की स्थिरता का आकलन करने के लिये त्वरित स्थिरता परीक्षण किया जा सकता है।
  • GMP के प्रबंधन हेतु कंप्यूटरीकृत सिस्टम: 
    • नए दिशा-निर्देश GMP-संबंधित प्रक्रियाओं को प्रबंधित करने के लिये कंप्यूटरीकृत सिस्टम के उपयोग पर ज़ोर देते हैं।
    • ये सिस्टम डेटा में हेर-फेर, अनधिकृत पहुँच और डेटा की चूक (Omission of Data) को रोकने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं, जो बिना छेड़छाड़ किये प्रक्रियाओं का पालन सुनिश्चित करने के लिये सभी चरणों तथा परीक्षणों को स्वचालित रूप से रिकॉर्ड करते हैं।
  • नैदानिक परीक्षण हेतु उत्पादों की जाँच :
    • नवीन M अनुसूची, अतिरिक्त आवश्यक उत्पादों को भी सूचीबद्ध करती है, इसमें जैविक उत्पाद, रेडियोधर्मी सामग्री वाले अभिकर्त्ता या पादप-व्युत्पन्न उत्पाद शामिल हैं
    • नए दिशा-निर्देश नैदानिक ​​परीक्षणों के लिये निर्मित किये जाने वाले आवश्यक परीक्षण उत्पादों को निर्धारित करते हैं। साथ ही नैदानिक ​​परीक्षणों में उपयोग होने वाले आवश्यक उत्पादों की गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करते हैं।

संशोधित GMP के लिये आवश्यक दिशा-निर्देश:

  • वैश्विक मानकों के साथ संलग्नता:
    • नए मानदंडों के कार्यान्वयन से भारतीय उद्योग वैश्विक मानकों की बराबरी पर आ जाएगा।
  • संदूषण की घटनाएँ:
    • ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं जहाँ अन्य देशों ने भारत निर्मित सिरप, आई-ड्रॉप और आँखों के मलहम में कथित संदूषण की सूचना दी है।
    • गाम्बिया में 70 बच्चों, उज़्बेकिस्तान में 18 बच्चों, संयुक्त राज्य अमेरिका में तीन लोगों और कैमरून में छह लोगों की मौत को इन उत्पादों से जोड़ा गया है।
  • वर्तमान प्रथाओं में कमियाँ:
    • जोखिम-आधारित निरीक्षण में भारत की 162 विनिर्माण इकाइयों में कई कमियाँ पाई गईं हैं।
      • इन कमियों में कच्चे माल का अपर्याप्त परीक्षण, उत्पाद गुणवत्ता की समीक्षा में कमी, बुनियादी ढाँचे और योग्य पेशेवरों की कमी शामिल है।
    • वर्तमान में भारत में 10,500 में से केवल 2,000 ऐसी दवा निर्माण इकाइयाँ हैं जो वैश्विक मानकों को पूरा करती हैं और WHO-GMP प्रमाणित हैं।
    • बेहतर मानक यह सुनिश्चित करेंगे कि दवा कंपनियाँ मानक प्रक्रियाओं, गुणवत्ता नियंत्रण उपायों का पालन करें और कोई कोताही न बरतें, जिससे भारत में उपलब्ध दवाओं के साथ-साथ वैश्विक बाज़ार में बेची जाने वाली दवाओं की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।
  • अन्य देशों के नियामकों पर भरोसा:
    • समग्र उद्योग में समान गुणवत्ता स्थापित करने से अन्य देशों के नियामकों पर विश्वास की अवधारणा स्थापित होगी।
    • इसके अलावा इससे घरेलू बाज़ारों में दवाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा। 8,500 विनिर्माण इकाइयों में से अधिकांश, जो कि WHO-GMP प्रमाणित नहीं हैं, भारत में दवा की आपूर्ति करती हैं।

आगे की राह 

  • संशोधित GMP दिशा-निर्देशों को लागू करने का भारत का कदम फार्मास्यूटिकल उद्योग में वैश्विक गुणवत्ता मानकों को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • संशोधित मानकों का उद्देश्य गुणवत्ता नियंत्रण उपायों, उचित दस्तावेज़ीकरण और IT समर्थन को बढ़ाना है, जिससे भारत एवं वैश्विक बाज़ार के लिये उच्च गुणवत्ता वाली दवाओं का उत्पादन सुनिश्चित हो सकेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय आबादी में आनुवंशिक विविधता

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय आबादी में आनुवंशिक विविधता, DNA (डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड), अंतर्विवाही प्रथाएँ, संपूर्ण-जीनोम अनुक्रमण।

मेन्स के लिये:

भारतीय आबादी में आनुवंशिक विविधता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन जेनेटिक्स के एक अध्ययन में भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों में बड़ा आनुवंशिक अंतर पाया गया है।

अध्ययन की पद्धति:

  • शोधकर्त्ताओं ने आनुवंशिक अध्ययन के लिये लगभग 5,000 व्यक्तियों का DNA एकत्र किया, जिनमें मुख्यतः भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लोग शामिल थे। इस समूह में कुछ मलय, तिब्बती और अन्य दक्षिण-एशियाई समुदायों के लोगों के DNA भी शामिल थे।
  • इसके बाद उन्होंने DNA में परिवर्तन, DNA के उपलब्ध न होने, दो अलग-अलग DNA होने की स्थिति दर्शाने वाले क्षेत्रों की पहचान करने के लिये संपूर्ण-जीनोम अनुक्रमण का प्रयोग किया।

शोध के प्रमुख बिंदु:

  • अंतर्विवाही प्रथाएँ:
    • भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न समुदायों के व्यक्तियों के बीच मेलजोल बहुत कम है।
    • जाति-आधारित, क्षेत्र-आधारित और सजातीय (करीबी रिश्तेदार) विवाह जैसी अंतर्विवाही प्रथाओं ने सामुदायिक स्तर पर आनुवंशिक पैटर्न को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाई है।
      • एक आदर्श स्थिति में जनसंख्या  में यादृच्छिक संभोग (random mating) का गुण होता है, जिससे आनुवंशिक विविधता और वेरिएंट/भिन्नता की आवृत्ति कम होती है, जो विकारों से जुड़ी होती है।
  • क्षेत्रीय रुझान:
    • ताइवान जैसी अपेक्षाकृत बहिष्कृत आबादी की तुलना में दक्षिण एशियाई समूह और इसमें स्थित दक्षिण-भारतीय एवं पाकिस्तानी उपसमूह ने संभावित सांस्कृतिक कारकों के कारण आनुवंशिक समयुग्मज की उच्च आवृत्ति का प्रदर्शन किया है।
      • सामान्यतः मनुष्य के पास प्रत्येक जीन की दो प्रतियाँ होती हैं। जब किसी व्यक्ति के पास एक ही प्रकार की दो प्रतियाँ होती हैं, तो इसे ‘सम्युग्मज जीनोटाइप’ कहा जाता है।
      • प्रमुख विकारों से जुड़े अधिकांश आनुवंशिक वेरिएंट प्रकृति में अप्रभावी होते हैं जो केवल दो प्रतियों में मौज़ूद होने पर ही अपना प्रभाव डालते हैं। (विभिन्न प्रकार का होना - अर्थात् विषमयुग्मजी होना-सुरक्षात्मक होता है।)
    • एक अनुमान के अनुसार दक्षिण-भारतीय और पाकिस्तानी उपसमूहों में उच्च स्तर की अंतःप्रजनन दर थी, जबकि बंगाली उपसमूह में काफी कम अंतःप्रजनन देखा गया।
      • ऐसे वेरिएंट, जो जीन के कामकाज को बाधित कर सकते थे, न केवल दक्षिण एशियाई समूह में अधिक संख्या में पाए गए, बल्कि कुछ अनोखे वैरिएंट भी मोज़ूद थे जो यूरोपीय व्यक्तियों में नहीं पाए गए।
  • समयुग्मक वेरिएंट की उच्च आवृत्ति का जोखिम:
    • दुर्लभ समयुग्मक वेरिएंट की उपस्थिति से हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर और मानसिक विकार जैसे रोगों का खतरा बढ़ गया है।

आनुवंशिक वैविध्य पर अन्य अध्ययन:

  • वर्ष 2009 में, सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद में कुमारसामी थंगराज के समूह द्वारा नेचर जेनेटिक्स में एक अध्ययन से पता चला कि भारतीयों के एक छोटे समूह को अपेक्षाकृत कम उम्र में हृदय विफलता का खतरा होता है।
  • ऐसे व्यक्तियों के DNA में हृदय की लयबद्ध धड़कन के लिये महत्त्वपूर्ण जीन में 25 आधारभूत-युग्मक (base-pair) की कमी थी (वैज्ञानिक इसे 25-आधारभूत-युग्मक का विलोपन कहते हैं)।
  • यह विलोपन भारतीय आबादी के लिये असामान्य था तथा दक्षिण पूर्व एशिया में कुछ समूहों को छोड़कर, यह अन्यत्र नहीं पाया गया था।
  • यह विलोपन लगभग 30,000 वर्ष पूर्व हुआ था, जब कुछ ही समय बाद लोगों ने उपमहाद्वीप में बसना शुरू किया था और आज लगभग 4% भारतीय आबादी इससे प्रभावित है।
    • ऐसी आनुवांशिक नवीनताओं की पहचान करने से जनसंख्या-विशिष्ट स्वास्थ्य जोखिमों और कमज़ोरियों को समझने में मदद मिलती है।

आनुवंशिक वैविध्य पर ऐसे अध्ययनों का क्या महत्त्व है?

  • अध्ययनों से पता चला है कि विशिष्ट आनुवंशिक विविधताएँ भारतीय आबादी के स्वास्थ्य से संबद्ध हैं, ये प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं के लिये अधिक प्रभावी हस्तक्षेप का कारण बन सकती हैं।
  • देश में किये गए आनुवंशिक अनुसंधान, वंचित समुदायों को बहुराष्ट्रीय निगमों और अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों द्वारा संभावित दुरुपयोग से बचा सकते हैं।

भारतीय जीनोम के विस्तृत मानचित्र का महत्त्व:

  • भारत की अविश्वसनीय विविधता के कारण आर्थिक, वैवाहिक तथा भौगोलिक कारकों सहित विभिन्न कारणों से भारतीय जीनोम के विस्तृत मानचित्र की जानकारी आवश्यक है।
  • ऐसा मानचित्र स्वास्थ्य असमानताओं के आनुवंशिक आधार को समझने एवं जनसंख्या स्वास्थ्य हस्तक्षेपों का मार्गदर्शन करने में सहायता प्रदान कर सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

 प्रश्न. भारत में कृषि के संदर्भ में प्रायः समाचारों में आने वाले "जीनोम अनुक्रमण(जीनोम सिक्वेंसिंग)" की तकनीक का आसन्न भविष्य में किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है? (2017) 

  1. विभिन्न फसली पौधों में रोग प्रतिरोध और सूखा सहिष्णुता के लिये आनुवंशिक सूचकों का अभिज्ञान करने के लिये जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया जा सकता है। 
  2. यह तकनीक, फसली पौधों की नई किस्मों को विकसित करने में लगने वाले आवश्यक समय को घटाने में मदद करती है। 
  3. इसका प्रयोग फसलों में पोषी रोगाणु-संबंधों को समझने के लिये किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये :   

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d)

 स्रोत: द.हिंदू


भारत ने लैपटॉप, कंप्यूटर व संबंधित उपकरणों के आयात पर लगाया प्रतिबंध

प्रिलिम्स के लिये:

हार्मोनाइज़्ड सिस्टम ऑफ नॉमेनक्लेचर (HSN), विदेश व्यापार महानिदेशालय, IT हार्डवेयर हेतु उन्नत उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना 

मेन्स के लिये:

प्रौद्योगिकी क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिये भारत की पहल, उन्नत उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत के विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) ने घोषणा की है कि वह 1 नवंबर, 2023 से हार्मोनाइज़्ड सिस्टम ऑफ नॉमेनक्लेचर (HSN) कोड 8471 के तहत वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए लैपटॉप, कंप्यूटर और संबंधित उपकरणों (Components) के आयात को प्रतिबंधित कर देगा। यह प्रतिबंध बैगेज नियमों के तहत आयात पर लागू नहीं होगा।

नोट: डेटा प्रोसेसिंग मशीनों को HSN code 8471 के तहत वर्गीकृत किया गया है।

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर आयात प्रतिबंध लगाने का कारण:

  • इन प्रतिबंधों का उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना, विदेशी आयात, विशेष रूप से चीन से आयात पर निर्भरता को कम करना एवं भारत के प्रौद्योगिकी क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ाना है।
  • यह IT हार्डवेयर के लिये उन्नत उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना के माध्यम से घरेलू उत्पादन को सुदृढ़ करने के सरकारी प्रयासों के अनुरूप है।
  • प्रतिबंधों का उद्देश्य संभावित सुरक्षा कमज़ोरियों वाले इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर के प्रवेश को रोकना है जो संवेदनशील व्यक्तिगत एवं उद्यम डेटा से समझौता कर सकते हैं।
  • आयात को प्रतिबंधित कर सरकार का लक्ष्य स्वदेशी निर्माताओं के लिये अपने वैश्विक पदचिह्न/ग्लोबल फुटप्रिंट का विस्तार करने की दिशा में अनुकूल वातावरण बनाना है।

प्रतिबंध का बाज़ार और उपभोक्ताओं पर प्रभाव:

  • लैपटॉप तथा संबंधित उपकरणों पर आयात प्रतिबंध से आपूर्ति शृंखला में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है, जिससे बाज़ार में कुछ लैपटॉप मॉडलों की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है।
    • इस नीति से अल्पावधि के लिये आपूर्ति संकट उत्पन्न होने की संभावना है, क्योंकि आयातकों को लाइसेंस के लिये आवेदन करना होगा और अनुमोदन की प्रतीक्षा करनी होगी। इससे बाज़ार में लैपटॉप, टैबलेट, पर्सनल कंप्यूटर और सर्वर संबंधी कीमतों में वृद्धि होने के साथ-साथ उपलब्धता भी कम हो सकती है।
  • घरेलू निर्माताओं को इन प्रतिबंधों से लाभ हो सकता है, क्योंकि आयात सीमित होने पर उपभोक्ता स्थानीय रूप से निर्मित लैपटॉप की ओर रुख कर सकते हैं।
    • यह प्रतिबंध घरेलू लैपटॉप विनिर्माण क्षमता के विकास को प्रोत्साहित कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक उन्नत और प्रतिस्पर्द्धी उत्पाद तैयार हो सकेंगे।
  • यह नीति लैपटॉप बाज़ार में मौजूदा अभिकर्त्ताओं जैसे- डेल, HP, लेनोवो (Lenovo), एसर (Acer), आसुस (Asus) और ऐप्पल (Apple) को भी प्रभावित करेगी, जो अपने अधिकांश उत्पाद चीन, वियतनाम, ताइवान एवं अन्य देशों से आयात करते रहे हैं। उन्हें या तो अपना उत्पादन भारत में करना होगा या उत्पादों को उन स्थानीय निर्माताओं से लेना होगा, जो उनकी गुणवत्ता मानकों को पूरा करते हों।
  • यह नीति नवागंतुकों और स्थानीय निर्माताओं के लिये भी अवसर प्रदान करेगी, जो PLI योजना का लाभ उठा सकते हैं और किफायती कीमतों पर प्रतिस्पर्द्धी उत्पाद पेश कर सकते हैं।

पहचान प्रणाली:

  • HSN एक ऐसी प्रणाली है जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कारोबार किये जाने वाले प्रत्येक उत्पाद के लिये एक अद्वितीय कोड निर्दिष्ट करती है।
  • HSN कोड का उपयोग विश्व के सीमा शुल्क अधिकारियों द्वारा आयातित वस्तुओं पर टैरिफ की पहचान एवं आकलन करने के लिये किया जाता है।
    • इसका उपयोग व्यापारियों तथा निर्यातकों द्वारा अपने उत्पाद की घोषणा एवं उत्पत्ति के नियमों का अनुपालन करने के लिये भी किया जाता है.
  • HSN कोड विश्व सीमा शुल्क संगठन (WCO) द्वारा वर्ष 1988 में विकसित किया गया था, साथ ही इसे प्रत्येक पाँच वर्ष में अद्यतन किया जाता है।

विदेश व्यापार महानिदेशालय (Directorate General of Foreign Trade- DGFT):

  • DGFT वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंर्तगत एक सरकारी निकाय है जो देश की विदेश व्यापार नीति को लागू करता है।
  • DGFT की स्थापना वर्ष 1991 में आयात और निर्यात के मुख्य नियंत्रक (CCI&E) के स्थान पर की गई थी।
  • विदेश व्यापार महानिदेशक DGFT का नेतृत्व करता है, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में एवं क्षेत्रीय कार्यालय पूरे देश में हैं।
  • DGFT विभिन्न योजनाओं एवं उपायों के माध्यम से विदेशी व्यापार को विनियमित करने के साथ बढ़ावा देता है, जैसे- लाइसेंस, प्राधिकरण, प्रमाण पत्र, प्रोत्साहन देना आदि।
  • DGFT निर्यातकों तथा आयातकों को मार्गदर्शन और सहायता भी प्रदान करता है, साथ ही व्यापार से संबंधित मुद्दों पर अन्य मंत्रालयों, विभागों, संस्थाओं एवं हितधारकों के साथ समन्वय करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


डिजिटल स्वास्थ्य प्रोत्साहन योजना

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण, आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन, डिजिटल स्वास्थ्य प्रोत्साहन योजना, एकीकृत स्वास्थ्य इंटरफेस, ब्लॉकचेन तकनीक, टेलीमेडिसिन

मेन्स के लिये:

आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन की विशेषताएँ, भारत में डिजिटल हेल्थकेयर से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों? 

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (National Health Authority- NHA) ने आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के तहत अपनी डिजिटल स्वास्थ्य प्रोत्साहन योजना (Digital Health Incentives Scheme- DHIS) के विस्तार की घोषणा की है।

  • 4 करोड़ रुपए तक के प्रोत्साहन की पेशकश के साथ DHIS को 31 दिसंबर, 2023 तक बढ़ा दिया गया है।

डिजिटल स्वास्थ्य प्रोत्साहन योजना: 

  • परिचय:
    • डिजिटल स्वास्थ्य प्रोत्साहन योजना के तहत अस्पतालों, नैदानिक ​​प्रयोगशालाओं और डिजिटल स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को परिवर्तनकारी डिजिटलीकरण नीतियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
    • यह योजना आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के बड़े दृष्टिकोण के अनुरूप है और इसका उद्देश्य डिजिटल रूप से समावेशी स्वास्थ्य देखभाल पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना है।
  • पात्रता:
    • ABDM की हेल्थ फसिलिटी रजिस्ट्री (HFR) के तहत स्वास्थ्य केंद्र (अस्पताल, डायग्नोस्टिक लैब) और पंजीकृत डिजिटल सॉल्यूशन कंपनियाँ (DSC) इस योजना में भाग लेने के लिये पात्र हैं।
  • प्रोत्साहन आकलन:
    • वित्तीय प्रोत्साहन इस आधार पर तय किये जाते हैं कि कितने डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड तैयार किये गए और कितनों को आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खातों (ABHA) से जोड़ा गया है।
  • उपलब्धियाँ:
    • प्रोत्साहन प्राप्तकर्त्ता: जून 2023 तक कुल 1205 स्वास्थ्य केंद्रों ने DHIS के तहत पंजीकरण किया है, जिसमें 567 सार्वजनिक और 638 निजी अस्पताल, क्लीनिक और डायग्नोस्टिक लैब शामिल हैं।
    • डिजिटल समाधान कंपनियाँ: 25 पंजीकृत डिजिटल समाधान कंपनियों में से 22 निजी क्षेत्र से हैं

आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन:  

  • परिचय: 
  • उद्देश्य: 
    • इसका उद्देश्य सभी भारतीय नागरिकों को अस्पतालों, बीमा कंपनियों और आवश्यकता पड़ने पर इलेक्ट्रॉनिक रूप से स्वास्थ्य रिकॉर्ड तक पहुँचने में मदद करने के लिये डिजिटल स्वास्थ्य ID प्रदान करना है।
      • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) इसकी कार्यान्वयन एजेंसी है।
  • एकीकृत स्वास्थ्य इंटरफेस (UHI): 
    • ABDM के तहत UHI की कल्पना विभिन्न डिजिटल स्वास्थ्य सेवाओं के लिये एक मुक्त प्रोटोकॉल के रूप में की गई है। UHI नेटवर्क एंड यूज़र एप्लीकेशन (EUA) और साझेदार स्वास्थ्य सेवा प्रदाता (HSP) अनुप्रयोगों का एक मुक्त नेटवर्क है।
      • UHI मरीज़ों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं (HSP) के बीच अपॉइंटमेंट बुकिंग, टेली परामर्श, सेवा खोज तथा अन्य सुविधाओं समेत विभिन्न प्रकार की डिजिटल स्वास्थ्य सेवाओं को सक्षम बनाता है।
  • आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन सैंडबॉक्स:
    • मिशन के तहत स्थापित सैंडबॉक्स, प्रौद्योगिकी और उत्पादों के परीक्षण के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।
      • यह निजी संस्थाओं सहित संगठनों को स्वास्थ्य सूचना प्रदाता या उपयोगकर्त्ता बनने में सहायता करता है। 

भारत में डिजिटल हेल्थकेयर से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ: 

  • बुनियादी ढाँचा और कनेक्टिविटी: विकास के बावजूद भारत के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से में अभी भी विश्वसनीय इंटरनेट कनेक्टिविटी और आवश्यक डिजिटल बुनियादी ढाँचे का अभाव है।
    • इससे दूरदराज़ और ग्रामीण क्षेत्रों तक डिजिटल स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच में बाधा उत्पन्न हुई है।
  • डिजिटल साक्षरता: अधिकांश लोग विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं या वृद्ध आबादी है, जो प्रौद्योगिकी से परिचित नहीं हैं, जिनके पास डिजिटल हेल्थकेयर प्लेटफॉर्मों तथा सेवाओं का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिये आवश्यक डिजिटल साक्षरता कौशल का अभाव है।
  • डेटा गोपनीयता और सुरक्षा: डिजिटल हेल्थकेयर में रोगी के डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा को बनाए रखना एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय है। हालाँकि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि संवेदनशील चिकित्सा जानकारी गोपनीय रहे और अनधिकृत पहुँच से सुरक्षित रहे।
  • टेलीमेडिसिन विनियम: हालाँकि टेलीमेडिसिन ने देश में लोकप्रियता हासिल की है लेकिन दवाओं के अभ्यास, नुस्खे के बारे में टेली परामर्श संबंधित विनियमों की स्पष्टता एक चुनौती रही है।

आगे की राह

  • स्वास्थ्य रिकॉर्ड के लिये ब्लॉकचेन: इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड को सुरक्षित रूप से संग्रहीत एवं प्रबंधित करने के लिये ब्लॉकचेन तकनीक को लागू करना। स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच डेटा अखंडता एवं अंतर-संचालनीयता सुनिश्चित करते हुए रोगी अपने डेटा तक पहुँच को नियंत्रित कर सकते हैं।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये डेटा एनालिटिक्स: बीमारी के प्रकोप की भविष्यवाणी करने, संसाधन आवंटन की योजना बनाने तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों को अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये लक्षित हस्तक्षेप सुनिश्चित करने के लिये बिग डेटा एनालिटिक्स का लाभ उठाना।
  • ऑनलाइन प्रशिक्षण तथा कौशल विकास: डिजिटल उपकरणों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने हेतु स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षित करना। टेलीमेडिसिन, डेटा एनालिटिक्स एवं स्वास्थ्य देखभाल में AI अनुप्रयोगों जैसे क्षेत्रों में कौशल बढ़ाने के लिये चिकित्सा पेशेवरों के लिये ऑनलाइन पाठ्यक्रम की व्यवस्था करना।
  • डिजिटल स्वास्थ्य नीतियाँ तथा विनियम: डिजिटल स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों के लिये व्यापक नियम एवं दिशा-निर्देश स्थापित करना, जिससे रोगी की गोपनीयता, डेटा सुरक्षा के साथ डिजिटल सेवाओं तथा अन्य प्रौद्योगिकियों का नैतिक उपयोग सुनिश्चित हो सके।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतनेट परियोजना

प्रिलिम्स के लिये:

भारतनेट परियोजना, ऑप्टिकल फाइबर, भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क, कंपनी अधिनियम, 1956, ग्राम स्तरीय उद्यमी (Udyami), डिजिटल डिवाइड

मेन्स के लिये:

भारतनेट परियोजना, महत्त्व और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतनेट परियोजना के आधुनिकीकरण के लिये 1.39 लाख करोड़ रुपए की स्वीकृति दी है। 

भारतनेट परियोजना:

  • परिचय:
    • नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (NOFN) अक्तूबर 2011 में लॉन्च किया गया था और वर्ष 2015 में इसका नाम बदलकर भारत नेट प्रोजेक्ट कर दिया गया।
    • यह ऑप्टिकल फाइबर का उपयोग करने वाला विश्व का सबसे बड़ा ग्रामीण ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी कार्यक्रम है जो भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड (BBNL) द्वारा कार्यान्वित एक प्रमुख मिशन भी है।
      • BBNL कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत भारत सरकार द्वारा स्थापित एक विशेष प्रयोजन वाहन (SPV) है। 
      • इसे संचार मंत्रालय के तहत दूरसंचार विभाग द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
    • इस परियोजना में निष्पादन रणनीति में बदलाव करना और अंतिम मील तक फाइबर कनेक्शन प्रदान करने के लिये ग्राम स्तरीय उद्यमियों (Udyamis) को नियोजित करना शामिल है, जिससे अगले 2.5 वर्षों में कनेक्टिविटी प्रक्रिया में तेज़ी आएगी।
    • इसे यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (USOF) द्वारा वित्तपोषित किया जाता है।
      • USOF यह सुनिश्चित करता है कि ग्रामीण एवं सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को आर्थिक रूप से उचित कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) सेवाओं तक सार्वभौमिक गैर-भेदभावपूर्ण पहुँच प्राप्त हो।
      • इसे वर्ष 2002 में संचार मंत्रालय के तहत तैयार किया गया था।
  • उद्देश्य:
    • इस परियोजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति का लाभ उठाकर जियो और एयरटेल जैसे निजी ऑपरेटरों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना है, जहाँ इन निजी ऑपरेटरों को कम प्रमुखता दी जाती है।
    • उम्मीद है कि भारतनेट द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा गुणवत्ता उपयोगकर्त्ताओं को आकर्षित करने में प्रमुख भूमिका निभाएगी
    • इसका लक्ष्य संपूर्ण भारत के सभी 640,000 गाँवों को हाई-स्पीड इंटरनेट एक्सेस से जोड़ना है।
    • इसका लक्ष्य देश भर की 2.5 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों में से प्रत्येक को ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करना है।
    • सरकार, भारतनेट के माध्यम से प्रत्येक ग्राम पंचायत में न्यूनतम 100 Mbps बैंडविड्थ प्रदान करना चाहती है ताकि प्रत्येक व्यक्ति, विशेष रूप से ग्रामीण भारत के लोग ऑनलाइन सेवाओं तक पहुँच प्राप्त कर सकें।
  • पुर्नोत्थान दृष्टिकोण:
    • संशोधित भारतनेट मॉडल, एयरटेल और जियो जैसी निजी दूरसंचार कंपनियों के समान फाइबर कनेक्शन के कार्यान्वयन के लिये ग्रामीण स्तर के उद्यमियों (VLE) को सहयोग प्रदान करेगा
    • इस दृष्टिकोण के अनुसार सरकार घर-घर तक बुनियादी ढाँचे के विस्तार की लागत वहन करेगी, जबकि उद्यमी घरेलू कनेक्शन के रखरखाव और संचालन में योगदान देंगे।
      • यह साझेदारी 50:50 राजस्व-साझाकरण के आधार पर कार्य करेगी।
  • परियोजना के चरण:
    • पहला चरण:
      • दिसंबर 2017 तक ऑप्टिक फाइबर केबल (OFC) की भूमिगत लाइनें बिछाकर एक लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान की गई।
    • दूसरा चरण:
      • मार्च 2019 तक भूमिगत फाइबर, विद्युत् फाइबर लाइनों, रेडियो और उपग्रह मीडिया के इष्टतम मिश्रण का उपयोग करके देश की सभी ग्राम पंचायतों को कनेक्टिविटी प्रदान की गई।
    • तीसरा चरण:
      • वर्ष 2019 से 2023 तक रिंग टोपोलॉजी के साथ ज़िलों और ब्लॉकों में फाइबर सहित एक अत्याधुनिक, भविष्योन्मुखी नेटवर्क का निर्माण किया जाएगा।

भारतनेट परियोजना की प्रगति:

  • भारतनेट परियोजना के शुरुआती समय में मुख्य चुनौती बुनियादी ढाँचा तैयार करने के बाद घरों तक फाइबर आधारित इंटरनेट कनेक्शन पहुँचाने को लेकर थी।
  • इसे हल करने के लिये 60,000 गाँवों में परिवारों को जोड़ने के लिये स्थानीय भागीदारों के साथ एक सफल पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया।
  • इस सफलता ने इस परियोजना में उद्यमियों की भागीदारी का मार्ग प्रशस्त किया, जिससे आने वाले समय में लगभग 250,000 लोगों के लिये रोज़गार के अवसर पैदा होने की उम्मीद है।
  • वर्तमान समय तक सरकार ने लगभग 194,000 गाँवों को जोड़ा है, जिससे लगभग 567,000 घरों को इंटरनेट की सुविधा तक पहुँच प्रदान की गई है।
  • विशेष रूप से नई भारतनेट उद्यमी परियोजना का उपयोग करके 351,000 फाइबर कनेक्शन स्थापित किये गए हैं।

भारतनेट परियोजना के समक्ष चुनौतियाँ:

  • धीमी प्रगति और कार्यान्वयन में देरी:
    • इस परियोजना के कार्यान्वयन में काफी देरी हुई है, इस कारण इसकी प्रगति की गति अनुमान से धीमी है।
    • गाँवों को जोड़ने के सरकार के प्रयासों के बावजूद लक्षित 640,000 गाँवों में से केवल 194,000 को ही जोड़ा जा सका  है। इस धीमी प्रगति के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल अंतराल को कम करने की परियोजना की क्षमता बाधित हुई है।
  • बुनियादी ढाँचा और कनेक्टिविटी से संबंधित मुद्दे:
    • चुनौतीपूर्ण भू-भाग में उचित सड़कों की कमी और परिवहन संबंधी कठिनाइयों के कारण गाँवों को जोड़ने में समस्या उत्पन्न होती है। कनेक्टिविटी समस्याओं के कारण सेवा की गुणवत्ता खराब हुई है तथा कुछ क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुँच बाधित हुई है।
  • तकनीकी एवं परिचालन संबंधी मुद्दे:
    • सिग्नल की गुणवत्ता, बैंडविड्थ सीमाएँ और नेटवर्क डाउनटाइम जैसी तकनीकी चुनौतियों ने समग्र उपयोगकर्त्ता अनुभव को प्रभावित किया है।
    • इसके अतिरिक्त स्थानीय उद्यमियों को शामिल करते हुए विकेंद्रीकृत तरीके से संचालन, रख-रखाव और शिकायत समाधान प्रक्रियाओं का प्रबंधन करना जटिल सिद्ध हुआ है, साथ ही इसके लिये प्रभावी समन्वय की आवश्यकता है।
  • निजी संचालकों से प्रतिस्पर्द्धा:
    • कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में Jio तथा Airtel जैसे निजी दूरसंचार ऑपरेटरों की मौजूदगी भारतनेट के लिये एक चुनौती है। इन निजी ऑपरेटरों ने अपने स्वयं के नेटवर्क बुनियादी ढाँचे के साथ सेवाओं की स्थापना की है, जिससे भारतनेट के लिये उपयोगकर्त्ताओं को आकर्षित करने हेतु प्रतिस्पर्द्धी मूल्य निर्धारण और विश्वसनीय सेवा गुणवत्ता प्रदान करना अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है।

आगे की राह

  • भारतनेट परियोजना तकनीकी, वित्तीय, परिचालन एवं जागरूकता संबंधी चुनौतियों के संयोजन का सामना करती है।
  • ग्रामीण भारत के प्रत्येक स्थान को डिजिटल कनेक्टिविटी प्रदान करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में परियोजना की सफलता के लिये इन चुनौतियों का समाधान आवश्यक है।
  • बाधाओं को दूर करके और बुनियादी ढाँचे को सुव्यवस्थित करके कार्यान्वयन प्रक्रिया में तेज़ी लाने का प्रयास किया जाना चाहिये। सरकारी एजेंसियों, स्थानीय निकायों एवं निजी भागीदारों के बीच सहयोगात्मक प्रयास इस प्रक्रिया को गति देने में मदद कर सकते हैं।
  • परियोजना की सफलता के लिये धन का निरंतर एवं सतत् प्रवाह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है। परियोजना के विस्तार एवं रख-रखाव गतिविधियों का समर्थन करने के लिये स्पष्ट वित्तीय नियोजन, आवंटन और प्रबंधन आवश्यक है।
  • उपयोगकर्त्ताओं को आकर्षित करने तथा बनाए रखने के लिये सेवा की गुणवत्ता में सुधार पर ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है। इसमें तकनीकी मुद्दों को संबोधित करना, लगातार बैंडविड्थ सुनिश्चित करने के साथ ही नेटवर्क डाउनटाइम को भी कम करना शामिल है।

 स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस