डेली न्यूज़ (08 Jun, 2022)



भारत-बांग्लादेश रेलवे लिंक बहाल

प्रिलिम्स के लिये:

मिताली एक्सप्रेस, मैत्री एक्सप्रेस, मैत्री सेतु ब्रिज, सम्प्रीति अभ्यास,  बोंगोसागर अभ्यास। 

मेन्स के लिये:

भारत-बांग्लादेश संबंधों में विभिन्न रुझान, दक्षिण एशिया में कनेक्टिविटी के मुद्दे। 

चर्चा में क्यों? 

कोविड-19 महामारी की शुरुआत के कारण ट्रेन सेवाओं को बंद करने के दो वर्ष बाद भारत-बांग्लादेश के बीच यात्री रेल सेवाएँ हाल ही में फिर से शुरू हो गई हैं। 

  • ट्रेन सेवाओं की बहाली के बाद निम्नलिखित ट्रेनों को झंडी दिखाकर रवाना किया गया है: 
    • ढाका से कोलकाता के लिये मैत्री एक्सप्रेस। 
    • न्यू जलपाईगुड़ी से ढाका के बीच मिताली एक्सप्रेस 
    • कोलकाता से खुलना के लिये बंधन एक्सप्रेस 

भारत-बांग्लादेश के बीच अन्य महत्त्वपूर्ण रेल लिंक: 

  • पेट्रापोल (भारत)-बेनापोल (बांग्लादेश) 
  • गेदे (भारत)-दर्शन (बांग्लादेश) 
  • सिंहाबाद (भारत)-रोहनपुर (बांग्लादेश) 
  • राधिकापुर (भारत)-बिरोल (बांग्लादेश) 
  • हल्दीबाड़ी (भारत)-चिलाहाटी (बांग्लादेश) 
  • अगरतला (भारत)-अखौरा (बांग्लादेश) 

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भारत-बांग्लादेश संबंध: 

  • ऐतिहासिक संबंध: 
    • 50 साल पूर्व वर्ष 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संघर्ष में भारत ने अभूतपूर्व  सहयोग किया था क्योंकि इसने बांग्लादेश के नए राष्ट्र के गठन की दिशा में  सहयोग किया था। 
  • रक्षा सहयोग: 
    • संयुक्त अभ्यास: 
    • सीमा प्रबंधन: भारत, बांग्लादेश के साथ किसी भी पड़ोसी देश की तुलना में सबसे लंबी भूमि सीमा (4096.7 किमी.)  साझा करता है। 
  • आर्थिक संबंध: 
    • बांग्लादेश,  उपमहाद्वीप में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, दोनों देशों के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार 9.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर  (2019-20) का है, जो पिछले वित्त वर्ष (2018-19) की तुलना में 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर के अंक को पार कर गया है। 
    • बांग्लादेश को भारत से होने वाला निर्यात कुल द्विपक्षीय व्यापार का 85% से अधिक है। 
    • दिसंबर 2020 में द्विपक्षीय व्यापार सहयोग को और बढ़ावा देने के लिये  भारत-बांग्लादेश सीईओ मंच की शुरुआत की गई थी। 
    • बांग्लादेश ने वर्ष 2011 से दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) के अंतर्गत भारत को बांग्लादेश द्वारा निर्यात की गई वस्तुओं को शुल्क-मुक्त और कोटा मुक्त करने की सराहना की है। 
  • कनेक्टिविटी में सहयोग: 
    • मार्च 2021 में भारत में सबरूम और बांग्लादेश में रामगढ़ को मिलाने वाली  फेनी नदी पर बने 1.9 किमी के  मैत्री सेतु का भी  उद्घाटन किया गया। 
    • अंतर्देशीय जल पारगमन और व्यापार पर प्रोटोकॉल (PIWTT)। 
    • बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) मोटर वाहन समझौते पर वार्ता जारी है 
  • बहुपक्षीय मंचों पर साझेदारी: 
  • अन्य विकास: 
    • लाइन ऑफ क्रेडिट: 
      • भारत ने पिछले 8 वर्षों में बांग्लादेश को सड़कों, रेलवे, शिपिंग तथा बंदरगाहों सहित कई क्षेत्रों में बुनियादी ढांँचे के विकास के लिये 8 बिलियन अमेरिकी डाॅलर की 3 लाइन ऑफ क्रेडिट (LoC) प्रदान की है। 
    • कोविड-19 समर्थन: 
      • बांग्लादेश, मेड इन इंडिया कोविड-19 वैक्सीन खुराक का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता है, जो कुल आपूर्ति का 16% है। 
      • भारत ने चिकित्सा विज्ञान में साझेदारी तथा टीका उत्पादन में सहयोग की भी पेशकश की। 
  • उभरते विवाद: 
    • बांग्लादेश ने पहले ही असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के रोल आउट पर चिंता जताई है, जिसमें असम में रहने वाले मूल भारतीय नागरिकों की पहचान करने और अवैध बांग्लादेशियों को बाहर निकालने के लिये एक विवरण तैयार किया गया है। 
    • वर्तमान में बांग्लादेश, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक सक्रिय भागीदार है, जिस पर दिल्ली ने हस्ताक्षर नहीं किये हैं। 
    • सुरक्षा क्षेत्र में बांग्लादेश भी पनडुब्बियों सहित चीनी सैन्य  का एक प्रमुख प्राप्तकर्त्ता है 

आगे की राह 

  • पानी के बँटवारे, बंगाल की खाड़ी में महाद्वीपीय शेल्फ मुद्दों को हल करने, सीमा की घटनाओं को शून्य पर लाने और मीडिया को प्रबंधित करने से संबंधित लंबित मुद्दों को हल करने के प्रयास होने चाहिये 
  • संस्कृति, संगीत, खेल, फिल्म जैसे क्षेत्रों के आधार पर युवा उद्यमियों और नागरिक समाज के बीच नियमित आदान-प्रदान, सतत् विकास, मानव पूंजी विकास, लिंग समानता विकास व अन्य में सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने की आवश्यकता है। 
  • दोनों ओर से चुनिंदा सीमावर्ती स्थानों पर पर्यटकों की भीड़ बढ़ाना और सीमा पर एक सामान्य मनोरंजन क्षेत्र के निर्माण के माध्यम से आदान-प्रदान की व्यवस्था को सुविधाजनक बनाने से सौहार्द को मज़बूत करने में मदद मिल सकती है। 
  • साझा सीमाओं पर सुरक्षा के नए प्रतिमान की दिशा में संयुक्त रूप से काम करने की आवश्यकता है। एक ऐसा प्रतिमान जो सीमाओं पर न मोटी दीवार बनाता है और न ही राष्ट्रीय सीमाओं का सीमांकन करता है बल्कि समावेशी विकास एवं समृद्धि के लिये "कनेक्टर ज़ोन" के रूप में कार्य करता है।  

विगत वर्ष का प्रश्न: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020) 

  1. पिछले दशक में भारत-श्रीलंका व्यापार मूल्य लगातार बढ़ा है।
  2. "वस्त्र और वस्त्र वस्तुएंँ" भारत एवं बांग्लादेश के बीच व्यापार की महत्त्वपूर्ण वस्तु है। 
  3. पिछले पांँच वर्षों में नेपाल दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?   

(a) केवल 1 और 
(b) केवल 
(c) केवल 3   
(d) 1, 2 और 

उत्तर: (b) 

व्याख्या: 

  • वाणिज्य विभाग के आंँकड़ों के अनुसार, एक दशक (2007 से 2016) के लिये भारत-श्रीलंका द्विपक्षीय व्यापार मूल्य 3.0, 3.4, 2.1, 3.8, 5.2, 4.5, 5.3, 7.0, 6.3 और 4.8 अरब अमेरिकी डाॅलर रहा। यह व्यापार मूल्य की प्रवृत्ति में निरंतर उतार-चढ़ाव को दर्शाता है। हालाँकि इसमें समग्र रूप से वृद्धि हुई है लेकिन इसे व्यापार मूल्य में लगातार वृद्धि नहीं कहा जा सकता है। अतः कथन 1 सही नहीं है। 
  • निर्यात में 5% से अधिक और आयात में 7% से अधिक की हिस्सेदारी के साथ, बांग्लादेश, भारत का एक प्रमुख वस्त्र व्यापार भागीदार रहा है, जबकि बांग्लादेश को सालाना (वर्ष: 2016-17) वस्त्र निर्यात औसतन 2,000 मिलियन डॉलर का और आयात 400 डॉलर का  है। 
  • निर्यात की प्रमुख वस्तुएंँ हैं- कपास के फाइबर और यार्न, मानव निर्मित स्टेपल फाइबर और मानव निर्मित फिलामेंट, जबकि प्रमुख आयातित वस्तुओं में परिधान और कपड़े, फैब्रिक और अन्य निर्मित वस्त्र वस्तुएंँ शामिल हैं। अत: कथन 2 सही है।
  • आंँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016-17 में बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा, इसके बाद नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, भूटान, अफगानिस्तान तथा मालदीव का स्थान है। भारतीय निर्यात का स्तर भी इसी क्रम का अनुसरण करता है। अतः कथन 3 सही नहीं है।  

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


महाराष्ट्र पुनः शीर्ष चीनी उत्पादक राज्य

प्रिलिम्स के लिये:

गन्ने की फसल, रेड रॉट कवक रोग, दक्षिण-पश्चिम मानसून, इथेनॉल सम्मिश्रण। 

मेन्स के लिये:

कृषि उत्पादकता को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय और मौसम संबंधी कारक, खाद्य सुरक्षा के लिये चुनौतियों के रूप में इथेनॉल सम्मिश्रण। 

चर्चा में क्यों? 

महाराष्ट्र पांँच साल बाद एक बार फिर भारत का शीर्ष चीनी उत्पादक राज्य बन गया है। चीनी उत्पादन में इसने उत्तर प्रदेश को पीछे छोड़ दिया है। 

  • वर्ष 2021-22 के लिये महाराष्ट्र द्वारा चीनी का कुल उत्पादन 138 लाख टन है। 
  • वर्ष 2021-22 में उत्तर प्रदेश द्वारा उत्पादित कुल चीनी 105 लाख टन है। 

महाराष्ट्र में चीनी के भारी उत्पादन का कारण: 

  • जल की प्रचुर मात्रा में आपूर्ति: 
    • गन्ना एक जल गहन फसल है जिसे एक बड़ी जल आपूर्ति की आवश्यकता होती है और  महाराष्ट्र के किसान इसे वर्षा, जलाशयों, नहरों के नेटवर्क तथा भूजल से उचित रूप से प्राप्त कर रहे हैं। 
    • दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम के दौरान वर्ष 2019 से महाराष्ट्र में पर्याप्त वर्षा जल प्राप्त हो रहा है। 
    • पर्याप्त वर्षा के कारण भूजल जलभृत और अन्य जलाशय जल से भर गए। जल के ये स्रोत कृषि उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
  • गन्ना उत्पादन की कम रिपोर्टिंग: 
    • महाराष्ट्र राज्य में गन्ने के वास्तविक उत्पादन से संबंधित आंँकड़े बिल्कुल सटीक नहीं थे। 
    • इसे ध्यान में रखते हुए संबंधित प्रशासन ने गन्ना उत्पादन के दर्ज आंँकड़ों में सुधार करने का प्रयास किया। 
      • इसके परिणामस्वरूप अंततः गन्ना उत्पादन का रकबा 11.42 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 12.4 लाख हेक्टेयर हो गया।  
      • इस प्रकार महाराष्ट्र ने वर्ष 2021-22 में गन्ने के रकबे में वृद्धि का लाभ उठाया। 

उत्तर प्रदेश में चीनी उत्पादन में गिरावट के कारण: 

  • उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा इथेनॉल उत्पादक बन गया है क्योंकि उत्तर प्रदेश में गन्ने के उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा इथेनॉल के उत्पादन में संलिप्त हो गया है। 
    • यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2021-22 में गन्ने से 12.60 लाख टन चीनी को इथेनॉल बनाने के लिये प्रेरित किया गया है, जबकि 2020-21 में 7.19 लाख टन और 2019-20 में 4.81 लाख टन तथा 2018-19 में 0.31 लाख टन चीनी का उपयोग किया गया था। 
  • अत्यधिक वर्षा के साथ जलभराव की समस्या  से उत्तर प्रदेश राज्य में गन्ने की फसल को भारी नुकसान हुआ है। 
  • उत्तर प्रदेश में गन्ना क्षेत्र में अधिकांश भूमि (87%) में गन्ने की एक ही किस्म (Co-0238) की फसल उगाई  जाती है। यह गन्ने की उच्च उपज वाली किस्म नहीं है। 
  • गन्ने की फसल पर रेड रॉट कवक रोग का प्रतिकूल प्रभाव उत्तर प्रदेश में गन्ना उत्पादन में गिरावट का एक गंभीर कारण है। 
    • गन्ने की Co-0238 किस्म रेड रॉट कवक रोगों के लिये अत्यधिक संवेदनशील है। 
    • इसे Co-0118 और Co-15023 जैसी नई किस्मों द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये क्योंकि ये दोनों ही रेड रॉट कवक रोग के प्रतिरोधी हैं।         

गन्ना (Sugarcane): 

  • तापमान: उष्ण और आर्द्र जलवायु के साथ 21-27 डिग्री सेल्सियस के बीच। 
  • वर्षा : लगभग 100-50 सेमी.। 
  • मिट्टी का प्रकार: गहरी समृद्ध दोमट मिट्टी। 
  • शीर्ष गन्ना उत्पादक राज्य: उत्तर प्रदेश> महाराष्ट्र> कर्नाटक> तमिलनाडु> बिहार। 
  • ब्राज़ील के बाद भारत गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। 
  • इसे बलुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी तक सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, क्योंकि इसके लिये अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। 
  • इसमें बुवाई से लेकर कटाई तक शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है। 
  • यह चीनी, गुड़, खांडसारी और राब का मुख्य स्रोत है। 
  • चीनी उद्योग को समर्थन देने हेतु सरकार की दो पहलें हैं- चीनी उपक्रमों को वित्तीय सहायता देने की योजना (SEFASU) और जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति गन्ना उत्पादन योजना। 

इथेनॉल सम्मिश्रण: 

  • इथेनॉल: यह प्रमुख जैव ईंधनों में से एक है, जो प्रकृतिक रूप से खमीर अथवा एथिलीन हाइड्रेशन जैसी पेट्रोकेमिकल प्रक्रियाओं के माध्यम से शर्करा के किण्वन द्वारा उत्पन्न होता है। 
  • इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (EBP): इसका उद्देश्य कच्चे तेल के आयात पर देश की निर्भरता को कम करना, कार्बन उत्सर्जन में कटौती करना और किसानों की आय को बढ़ाना है। 
  • सम्मिश्रण लक्ष्य: भारत सरकार ने पेट्रोल में 20% इथेनॉल सम्मिश्रण (जिसे E20 भी कहा जाता है) के लक्ष्य को परिवर्तित कर वर्ष 2030 से वर्ष 2025 तक कर दिया है।  

विगत वर्ष का प्रश्न: 

प्रश्न. भारत में गन्ने की खेती में वर्तमान प्रवत्तियों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: 

  1. जब ‘बड चिप सैटलिंग्स (Bud Chip Settlings)’ को नर्सरी में उगाकर मुख्य कृषि भूमि में प्रतिरोपित किया जाता है, तब बीज सामग्री में बड़ी बचत होती है। 
  2. जब सैट्स का सीधे रोपण किया जाता है, तब एक-कलिका (Single-Budded) सैट्स का अंकुरण प्रतिशत कई-कलिका (Many Budded) सैट्स की तुलना में बेहतर होता है। 
  3. खराब मौसम की दशा में यदि सैट्स का सीधे रोपण होता है, तब एक-कलिका सैट्स का जीवित बचना बड़े सैट्स की तुलना में बेहतर होता है। 
  4. गन्ने की खेती ऊतक संवर्द्धन से तैयार की गई सैटलिंग से की जा सकती है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 और 2 

(b) केवल 3 

(c) केवल 1 और 4 

(d) केवल 2, 3 और 4 

 उत्तर: C 

व्याख्या: 

  • टिश्यू कल्चर तकनीक: 
    • टिश्यू कल्चर एक ऐसी तकनीक है जिसमें पौधों के टुकड़ों को काटा और तैयार किया जाता है तथा एक प्रयोगशाला में उगाया जाता है। 
    • यह मौजूदा व्यावसायिक किस्मों के रोग मुक्त गन्ने का तेज़ी से उत्पादन और आपूर्ति करने का एक नया तरीका प्रदान करता है। 
    • यह मातृ पौधे को क्लोन करने के लिये मेरिस्टेम का उपयोग करता है। 
    • यह आनुवांशिक पहचान को भी संरक्षित करता है। 
    • टिश्यू कल्चर तकनीक, अत्यधिक खर्चीली और भौतिक सीमाओं के कारण, गैर-आर्थिक हो रही है। 
  • बड चिप तकनीक: 
    • ऊतक संस्कृति के एक व्यवहार्य विकल्प के रूप मे यह द्रव्यमान को कम करता है और बीजों के त्वरित गुणन को सक्षम बनाता है। 
    • यह विधि दो से तीन कली सेट लगाने की पारंपरिक विधि की तुलना में अधिक लाभकारी और सुविधाजनक साबित हुई है। 
    • रोपण के लिये उपयोग की जाने वाली बीज सामग्री पर पर्याप्त बचत के साथ अपेक्षाकृत बेहतर रिटर्न प्राप्त होता है। 

अत: कथन 1 सही है। 

  • शोधकर्त्ताओं ने पाया है कि दो कलिका वाले सेट्स बेहतर उपज के साथ लगभग 65 से 70% अंकुरित होते हैं। अतः कथन 2 सही नहीं है। 
  • खराब मौसम के तहत बड़े सेटों का बेहतर अस्तित्व होता है लेकिन रासायनिक उपचार से संरक्षित होने पर सिंगल बडेड सेट भी 70% अंकुरित होते हैं। अत: कथन 3 सही नहीं है। 
  • टिश्यू कल्चर का उपयोग गन्ने के जमाव को अंकुरित करने और विकसित करने के लिये किया जा सकता है जिसे बाद में खेत में प्रत्यारोपित किया जा सकता है। अत: कथन 4 सही है। अतः विकल्प C सही  है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  


एटालिन जलविद्युत परियोजना

प्रिलिम्स के लिये:

एटालिन जलविद्युत परियोजना, दिबांग घाटी, वन सलाहकार समिति

मेन्स के लिये:

वृद्धि और विकास को प्राथमिकता, वृद्धि और विकास को पर्यावरण पर प्राथमिकता

चर्चा में क्यों?

अरुणाचल प्रदेश में वन्यजीव वैज्ञानिकों और संरक्षणवादियों ने दिबांग घाटी में प्रस्तावित एटालिन जलविद्युत परियोजना (3,097 मेगावाट) से स्थानीय जैवविविधता के लिये खतरों को चिह्नित किया। इस मुद्दे को उठाने के लिये उन्होंने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF & CC) के तहत वन सलाहकार समिति (FAC) से संपर्क किया। .

दिबांग नदी का महत्त्व:

  • यह परियोजना दिबांग नदी पर आधारित है और इसे 7 वर्षों में पूरा करने का प्रस्ताव है।
    • दिबांग ब्रह्मपुत्र नदी की एक सहायक नदी है जो अरुणाचल प्रदेश और असम राज्यों से होकर प्रवाहित होती है।
  • इसमें दिबांग की सहायक नदियों: दीर और टैंगोन पर दो बाँंधों के निर्माण की परिकल्पना की गई है।
  • यह परियोजना हिमालयी क्षेत्र के सबसे समृद्ध जैव-भौगोलिक क्षेत्र के अंतर्गत आती है और प्रमुख जैव-भौगोलिक क्षेत्रों जैसे- पैलेरक्टिक ज़ोन और इंडो-मलय क्षेत्र के जंक्शन पर स्थित होगी।
  • स्थापित क्षमता के मामले में इसके भारत की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं में से एक होने की उम्मीद है।

पर्यावरणविदों द्वारा उठाई गई प्रमुख चुनौतियाँ:

  • संरक्षणवादियों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि FAC उप-समिति ने प्रस्ताव की सिफारिश करते हुए वन संरक्षण और संबंधित कानूनी मुद्दों के स्थापित सिद्धांतों की अनदेखी की।
  • FAC ने वन विभाजन के खतरे को नज़रअंदाज किया।
    • वन विभाजन का परिणाम विकास परियोजनाओं के प्राकृतिक वनों के साथ सन्निहित परिदृश्यों में गैर-नियोजित गतिविधियों के रूप में होता है और जैवविविधता हॉटस्पॉट में दुर्लभ पुष्प एवं जीव प्रजातियों के लिये खतरा उत्पन्न होता है।
  • FAC की स्थल निरीक्षण रिपोर्ट पर भी मुख्य विवरणों को उपेक्षित करने का सवाल उठाया गया था, जैसे कि निरीक्षण की गई अल्टीट्यूडिनल रेंज में ग्रिड की संख्या और वहांँ वनस्पति की स्थिति, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की विभिन्न अनुसूचियों में सूचीबद्ध जंगली जानवरों के प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष संकेत एवं क्षेत्र के पारिस्थितिक मूल्य की समग्र सराहना।
  • एटालिन पर पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट की अपर्याप्तता पर भी प्रकाश डाला गया।
    • वन्यजीव अधिकारियों ने टिप्पणियों को नज़रअंदाज कर दिया, जिसमें क्षेत्र में 25 विश्व स्तर पर लुप्तप्राय स्तनपायी और पक्षी प्रजातियों के प्रभावित होने का खतरा है।
  • बटरफ्लाई और रेप्टाइल पार्कों की स्थापना जैसे प्रस्तावित शमन उपाय अपर्याप्त हैं।

वन सलाहकार समिति (Forest Advisory Committee- FAC):

  • FAC ‘वन (संरक्षण) अधिनयम, 1980 के तहत स्थापित एक संविधिक निकाय है।
  • FAC ‘केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ (Ministry of Environment, Forest and Climate Change-MOEF&CC) के अंतर्गत कार्य करती है।
  • यह समिति गैर-वन उपयोगों जैसे-खनन, औद्योगिक परियोजनाओं आदि के लिये वन भूमि के प्रयोग की अनुमति देने और सरकार को वन मंज़ूरी के मुद्दे पर सलाह देने का कार्य करती है

आगे की राह

  • समुदाय के नेतृत्व वाला दृष्टिकोण: क्षेत्र की स्थानीय आबादी से परामर्श किया जाना चाहियेऔर निर्णय लेने में उनकी भागीदारी होनी चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अंतिम निर्णय लेने से उनकी चिंताओं को प्रतिबिंबित किया जका सके।
  • पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्रों का सीमांकन: जिन क्षेत्रों में जैवविविधता के नुकसान का खतरा है, उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिये उचित रूप से चित्रित किया जाना चाहिये कि वे अबाधित रहें।
  • पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए): स्थानीय पर्यावरण पर परियोजना के प्रभाव का व्यापक रूप से एक उचित और पूर्ण मूल्यांकन अध्ययन किया जाना चाहिये।
  • संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार: लुप्तप्राय जानवरों और पौधों की रक्षा के लिये अधिक-से-अधिक राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभयारण्यों की स्थापना की जानी चाहिये।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारत-इज़रायल संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

इज़रायल की अवस्थिति

मेन्स के लिये:

भारत और इज़रायल संबंध, संबंधित मुद्दे और आगे की राह

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इज़रायल के उप-प्रधानमंत्री एवं रक्षा मंत्री ने भारत का दौरा किया और इस दौरान आयोजित द्विपक्षीय बैठक में रक्षा संबंधों को प्रगाढ़ करने पर सहमति व्यक्त की।

यात्रा के प्रमुख बिंदु:

  • संयुक्त घोषणा:
    • दोनों मंत्रियों ने इज़रायल-भारत संबंधों के 30 साल पूरे होने पर एक संयुक्त घोषणापत्र पेश किया।
    • यह घोषणापत्र रक्षा संबंधों को मज़बूत करने के लिये दोनों देशों की प्रतिबद्धता को दोहराता है।
  • रक्षा सहयोग पर भारत-इज़रायल विज़न:
    • दोनों पक्षों ने भारत-इज़रायल रक्षा सहयोग, वास्तुकला के मौजूदा ढाँचे को और मज़बूत करने के लिये रक्षा सहयोग पर भारत-इज़रायल विज़न को अपनाया।
  • आशय पत्र का आदान-प्रदान:
    • भविष्य की रक्षा प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर एक आशय पत्र का आदान-प्रदान किया गया।
    • द्विपक्षीय सहयोग भारत के मेक इन इंडिया विज़न के अनुरूप होगा।
  • सैन्य गतिविधियाँ:
    • दोनों देशों ने मौजूदा सैन्य गतिविधियों की समीक्षा की, जिनमें कोविड-19 महामारी के चुनौतियों के बावजूद वृद्धि हुई।
    • उन्होंने रक्षा सह-उत्पादन में भविष्य की प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए सभी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के उपायों पर भी चर्चा की।
  • पारस्परिक सुरक्षा चुनौतियों की स्वीकृति:
    • दोनों मंत्रियों ने कई सामरिक और रक्षा मुद्दों पर आपसी सुरक्षा चुनौतियों एवं उनके अभिसरण को स्वीकार किया।
    • उन्होंने सभी मंचों पर सहयोग बढ़ाने के लिये मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।

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भारत-इज़रायल संबंध:

  • राजनयिक गठबंधन:
    • हालाँकि भारत ने वर्ष 1950 में इज़रायल को आधिकारिक रूप से मान्यता दी थी, लेकिन दोनों देशों के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध 29 जनवरी, 1992 को स्थापित हुए। दिसंबर 2020 तक भारत संयुक्त राष्ट्र के 164 सदस्य देशों में से एक था, जिसके इज़रायल के साथ राजनयिक संबंध थे।
  • आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध:
    • वर्ष 1992 में द्विपक्षीय व्यापार 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर अप्रैल 2020- फरवरी 2021 की अवधि के दौरान 4.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर (रक्षा को छोड़कर) हो गया, जिसमें व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में था।
      • हीरे का व्यापार द्विपक्षीय व्यापार का लगभग 50% है।
    • भारत एशिया में इज़रायल का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है और विश्व स्तर पर सातवाँ सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है।
      • इजरायल की कंपनियों ने भारत में ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा, दूरसंचार, रियल एस्टेट, जल प्रौद्योगिकियों में निवेश किया है और भारत में अनुसंधान एवं विकास केंद्र या उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
    • भारत एक मुक्त व्यापार समझौता के समापन के लिये इज़रायल के साथ भी बातचीत कर रहा है।
  • रक्षा:
    • भारत, इज़रायल से सैन्य उपकरणों का सबसे बड़ा खरीदार है, जो बदले में रूस के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्त्ता है।
    • भारतीय सशस्त्र बलों ने पिछले कुछ वर्षों में इज़रायली हथियार प्रणालियों की एक विस्तृत शृंखला को अपने बेड़े में शामिल किया है, जिसमें फाल्कन ‘AWACS’ (एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम्स) और हेरॉन, सर्चर-II व हारोप ड्रोन, बराक एंटी-मिसाइल डिफेंस सिस्टम एवं स्पाइडर क्विक-रिएक्शन एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल प्रणाली शामिल हैं।
    • इस अधिग्रहण में कई इज़रायली मिसाइलें और सटीक-निर्देशित युद्ध सामग्री भी शामिल है, जिसमें पायथन तथा डर्बी हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलों से लेकर क्रिस्टल मेज़ (Crystal Maze) एवं स्पाइस-2000 बम (Spice-2000 Bombs) शामिल हैं।
    • भारत और इज़रायल के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पर संयुक्त कार्य समूह (JWG) की 15वीं बैठक में सहयोग के नए क्षेत्रों की पहचान करने के लिये एक व्यापक 10 वर्षीय रोडमैप तैयार करने हेतु टास्क फोर्स बनाने पर सहमति व्यक्त की गई।
  • कृषि में सहयोग:
    • मई 2021 में कृषि विकास में सहयोग के लिये "तीन वर्ष के कार्य समझौते" पर हस्ताक्षर किये गए थे।
    • कार्यक्रम का उद्देश्य मौजूदा उत्कृष्टता केंद्रों को विकसित करना, नए केंद्र स्थापित करना, सीओई की मूल्य शृंखला को बढ़ाना, उत्कृष्टता केंद्रों को आत्मनिर्भर मोड में लाना और निजी क्षेत्र की कंपनियों व सहयोग को प्रोत्साहित करना है।
  • विज्ञान प्रौद्योगिकी:
    • हाल ही में भारत और इज़रायल के विशेषज्ञों ने अपनी 8वीं शासी निकाय की बैठक में भारत-इज़रायल औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास और तकनीकी नवाचार कोष (I4F) के दायरे को व्यापक बनाने पर विचार-विमर्श किया।
    • उन्होंने 5.5 मिलियन अमेरिकी डाॅलर की 3 संयुक्त रिसर्च एंड डेवलपमेंट परियोजनाओं को मंज़ूरी दी और एक व्यापक भारत-इज़रायल सहयोगी पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के उपायों का सुझाव दिया गया।
    • I4F 'प्रमुख क्षे त्रो' में चुनौतियों का समाधान करने के लिये भारत और इज़रायल की कंपनियों के बीच संयुक्त औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं को बढ़ावा देने, सुविधा प्रदान करने एवं समर्थन करने हेतु दोनों देशों के बीच एक सहयोग है
  • अन्य:
    • इज़रायल, भारत के नेतृत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में भी शामिल हो रहा है, जो दोनों देशों के ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने और स्वच्छ ऊर्जा में भागीदारी के उद्देश्यों के साथ बहुत अच्छी तरह से संरेखित है।

आगे की राह

  • मुख्य रूप से साझा रणनीतिक हितों और सुरक्षा खतरों के चलते दोनों देशों के बीच संबंधों में वर्ष 1992 से मज़बूती देखी गई।
  • भारतीय लोग इज़रायल के प्रति सहानुभूति रखते हैं और सरकार अपने राष्ट्रीय हित के आधार पर अपनी पश्चिम एशिया नीति को संतुलित एवं पुनर्गठित कर रही है।
  • भारत और इज़रायल को अपने धार्मिक चरमपंथी पड़ोसियों की भेद्यता को दूर करने तथा जलवायु परिवर्तन, जल की कमी, जनसंख्या विस्फोट एवं भोजन की कमी जैसे वैश्विक मुद्दों पर गंभीरता से काम करने की आवश्यकता है।
  • अधिक आक्रामक और सक्रिय मध्य-पूर्वी नीति समय की मांग है ताकि भारत अब्राहम एकॉर्ड द्वारा धीरे-धीरे लाए जा रहे भू-राजनीतिक पुनर्गठन का अधिकतम लाभ उठा सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021

प्रिलिम्स के लिये:

ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म, सोशल मीडिया मध्यस्थ, आईटी अधिनियम की धारा 69ए

मेन्स के लिये:

सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2021, विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 में प्रस्तावित संशोधनों के एक समूह पर सार्वजनिक टिप्पणी के लिये एक मसौदा प्रस्ताव जारी किया।

नियम:

  • यह सोशल मीडिया का सक्रिय होना अनिवार्य करता है:
    • प्रमुख तौर पर IT नियम (2021) सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अपने प्लेटफॉर्म पर सामग्री के संबंध में अधिक सक्रिय रहने के लिये बाध्य करता है।
  • शिकायत अधिकारी की व्यवस्था:
    • उन्हें एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने और निर्धारित समय-सीमा के भीतर गैर-कानूनी और अनुपयुक्त सामग्री को हटाने की आवश्यकता होती है।
      • प्लेटफॉर्म के निवारण तंत्र का शिकायत अधिकारी उपयोगकर्त्ताओं की शिकायतों को प्राप्त करने और समाधान करने के लिये ज़िम्मेदार है।
    • उससे अपेक्षा की जाती है कि वह 24 घंटे के भीतर शिकायत की प्राप्ति को स्वीकार करे और 15 दिनों के भीतर उचित तरीके से उसका निपटान करे।
      • प्लेटफॉर्म पर किसी अन्य माध्यम से पहुंँच स्थापित करने और प्रसार को अक्षम किया जाना चाहिये।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की गोपनीयता नीतियों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उसके कंप्यूटर संसाधन सेवाओं का उपयोग करने वाला व्यक्ति किसी भी ऐसी सामग्री को न होस्ट करे, न वितरित करे, न प्रदर्शित करे और न अपलोड करे, न प्रकाशित करें एवं न शेयर करे, जो पेटेंट नियमों या कॉपीराइट अधिकारों का उल्लंघन करने वाली हो; किसी लागू कानून का उल्लंघन करती हो; भारत की एकता, अखंडता, रक्षा, सुरक्षा, संप्रभुता को नुकसान पहुंँचाने वाली हो. साथ ही भारत के मित्रतापूर्ण विदेश संबंधों को खराब करने वाली, किसी दूसरे देश का अपमान करने वाली, लोक व्यवस्था बिगाड़ने वाली व किसी अपराध की जांँच को बाधित करने वाली हो।

वापस लिये गए मसौदे में प्रस्तावित परिवर्तन:

  • शिकायत अपीलीय समिति:
    • इसने एक अतिरिक्त स्तर की निगरानी का प्रस्ताव रखा, जिसका नाम 'शिकायत अपीलीय समिति' है, यह समिति शिकायत निवारण अधिकारी के फैसलों के विरुद्ध उपयोगकर्त्ताओं की शिकायतों का निपटारा करेगी।
    • मोटे तौर पर यदि कोई उपयोगकर्त्ता शिकायत निवारण अधिकारी द्वारा प्रदान किये गए संकल्प से संतुष्ट नहीं है, तो वह सीधे न्यायालय जाने के बज़ाय शिकायत अपीलीय समिति में निर्णय के खिलाफ अपील कर सकता है।
      • हालांँकि इसने किसी अन्य न्यायालय में अपील करने के उपयोगकर्त्ता के अधिकार को नहीं छीना।
  • सभी अपीलीय आदेशों को संकलित किया जाना चाहिये:
    • मसौदे में यह निर्धारित किया गया था कि इस सभी अपीलीय आदेशों का पालन किया जाना चाहिये।
    • 'निगरानी' पर सुझाया गया प्रश्न इस तथ्य से उपजा है कि 'शिकायत अपीलीय समिति' का गठन केंद्र सरकार द्वारा किया जाना था, जिसे अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को नियुक्त करने का अधिकार प्राप्त था।

सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021:

  • अभिव्यक्ति को दबाने के लिये सरकार मध्यस्थ के रूप में:
    • इसने सरकार को इंटरनेट पर स्वीकार्य भाषण का मध्यस्थ बना दिया और किसी भी अभिव्यक्ति को दबाने के लिये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को प्रोत्साहित किया जो सरकार के लिये उपयुक्त नहीं हो सकता है।
  • शिकायत का समाधान करने दायित्व सोशल मीडिया पर:
    • मसौदे में यह दायित्व सौंपा गया है कि सभी सोशल मीडिया मध्यस्थ रिपोर्टिंग के 72 घंटों के भीतर सभी शिकायतों का समाधान करें।
    • अतः छोटी समय-सीमा ने शीघ्रता संबंधी दृष्टिकोण की आशंकाओं को जन्म दिया।

कानूनी चुनौतियाँ:

  • विधायी दिशा-निर्देशों के नियम 9 के उप-खंड 1 और 3 को लागू करने पर वर्ष 2021 में रोक लगा दी गई थी।
  • ये उप-खंड समाचार और समसामयिक सामग्री और/या क्यूरेट की गई सामग्री से निपटने वाले ऑनलाइन प्रकाशकों के लिये 'आचार संहिता' से संबंधित हैं।
    • उप-खंडों में कहा गया था कि संस्थाएँ शिकायतों (उनके मंच से संबंधित) से निपटने के लिये एक त्रि-स्तरीय तंत्र की सदस्यता लेती हैं ताकि उनकी संहिता का पालन किया जा सके।
  • इसमें प्रकाशकों (स्तर I) द्वारा स्व-विनियमन, प्रकाशकों के स्व-विनियमन निकाय (स्तर II) और अंत में केंद्र सरकार (स्तर III) द्वारा निरीक्षण तंत्र शामिल है।
  • मुंबई उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि यदि लोगों को इंटरनेट पर सामग्री विनियमन के वर्तमान दायरे में लाया जाता है तो यह "लोगों को विचार की स्वतंत्रता से वंचित करेगी और भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने के उनके अधिकार सीमित करेगी। नैतिक संहिता उनके सिर पर डैमोकल्स की तलवार (Sword of Damocles) के रूप में लटकी हुई है।”

आगे की राह

  • प्लेटफ़ॉर्म को अधिक जानकारी साझा करना उस देश में प्रतिकूल साबित हो सकता है जहाँ नागरिकों के पास अभी भी किसी भी पक्ष द्वारा की गई ज़्यादतियों से खुद को बचाने के लिये डेटा गोपनीयता कानून नहीं है।
  • उसके बाद यदि विनियमन अभी भी आवश्यक समझा जाता है, तो इसे कानून के माध्यम से लागू किया जाना चाहिये, जिस पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69 A के अंतर्गत कार्यकारी नियम बनाने की शक्तियों पर भरोसा करने के बजाय संसद में बहस की जाती है।

स्रोत: द हिंदू


PFMS का एकल नोडल एजेंसी (SNA) डैशबोर्ड

प्रिलिम्स के लिये:

सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली, आाज़ादी का अमृत महोत्सव, केंद्र प्रायोजित योजनाएँ

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, पारदर्शिता एवं जवाबदेही

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री ने PFMS (सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली) के एकल नोडल एजेंसी (NSA) डैशबोर्ड का शुभारंभ किया।

  • इसे वित्त मंत्रालय द्वारा आज़ादी का अमृत महोत्सव (AKAM) समारोह के एक भाग के रूप में लॉन्च किया गया था।
  • वित्त मंत्रालय आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने के लिये 6 से 12 जून 2022 तक 'आइकॉनिक वीक' समारोह मना रहा है।
  • इसके अतिरिक्त, मिशन कर्मयोगी के हिस्से के रूप में व्यय विभाग के लिये प्रशिक्षण मॉड्यूल शुरू किये गए थे।

मिशन कर्मयोगी:

  • भारतीय सिविल सेवकों को और भी अधिक रचनात्मक, सृजनात्मक, विचारशील, नवाचारी, अधिक क्रियाशील, प्रगतिशील, ऊर्जावान, सक्षम, पारदर्शी एवं प्रौद्योगिकी समर्थ बनाते हुए भविष्य के लिये तैयार करना।
  • कुशल सार्वजनिक सेवा वितरण के लिये व्यक्तिगत, संस्थागत और प्रक्रिया स्तरों पर क्षमता निर्माण तंत्र में व्यापक सुधार।

SNA डैशबोर्ड:

  • परिचय:
    • यह केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) के लिये धन जारी करने, वितरित करने और निगरानी करने के तरीके के संबंध में 2021 में शुरू किया गया एक बड़ा सुधार है।
    • इस संशोधित प्रक्रिया जिसे अब SNA मॉडल के रूप में संदर्भित किया जाता है, के लिये प्रत्येक राज्य को प्रत्येक योजना हेतु एक SNA की पहचान करने और उसे नामित करने की आवश्यकता होती है।
    • किसी विशेष योजना में उस राज्य के लिये सभी निधियांँ अब इस बैंक खाते में जमा की जाती हैं, इसमें शामिल अन्य सभी कार्यान्वयन एजेंसियों द्वारा किये गए सभी व्यय इस खाते से प्रभावित होते हैं।
  • महत्त्व:
    • निधियों का आवंटन:
      • SNA मॉडल यह सुनिश्चित करता है कि CSS के लिये राज्यों को निधियों का आवंटन समय पर और विभिन्न शर्तों को पूरा करने के बाद किया जाए।
    • अधिक दक्षता लाना:
      • इस मॉडल के प्रभावी कार्यान्वयन से CSS निधि के उपयोग, निधियों की ट्रैकिंग, व्यावहारिक और राज्यों को निधियों को समय पर जारी करने में अधिक दक्षता प्राप्त हुई है; अंततः सभी सरकार के उचित नकद प्रबंधन में योगदान दे रहे हैं।
  • आवश्यकता:
    • SNA मॉडल के हितधारकों को योजनाओं के संचालन में आवश्यक प्रतिक्रिया और निगरानी उपकरण देने के लिये।
    • डैशबोर्ड में मंत्रालयों द्वारा विभिन्न राज्यों को जारी की गई विज्ञप्ति, राज्य के कोषागारों द्वारा SNA खातों में जारी की गई आगे की रिलीज, एजेंसियों द्वारा रिपोर्ट किये गए व्यय, बैंकों द्वारा SNA खातों में भुगतान किये गए ब्याज आदि को सुगम, सूचनात्मक व आकर्षक ग्राफिक्स में दर्शाया गया है।

सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली:

  • परिचय:
    • PFMS, जिसे पहले ‘सेंट्रल प्लान स्कीम मॉनिटरिंग सिस्टम’ (CPSMS) के नाम से जाना जाता था, एक वेब-आधारित ऑनलाइन सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है, जिसे वित्त मंत्रालय के लेखा महानियंत्रक (CGA) के कार्यालय द्वारा विकसित और कार्यान्वित किया जाता है।
    • PFMS को शुूरुआत में 2009 के दौरान योजना आयोग की केंद्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य भारत सरकार की सभी योजनाओं के तहत जारी राशि को ट्रैक करना और कार्यक्रम कार्यान्वयन के सभी स्तरों पर व्यय की वास्तविक समय रिपोर्टिंग करना था।
    • इसके बाद वर्ष 2013 में योजना और गैर-योजनागत दोनों योजनाओं के तहत लाभार्थियों को सीधे भुगतान को कवर करने के लिये इसका दायरा बढ़ाया गया था।
      • वर्ष 2017 में सरकार ने योजना और गैर-योजना व्यय के बीच के अंतर को समाप्त कर दिया।
  • उद्देश्य:
    • एक कुशल निधि प्रवाह प्रणाली के साथ-साथ भुगतान सह लेखा नेटवर्क की स्थापना करके भारत सरकार के लिये एक ठोस सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली की सुविधा प्रदान करना।
  • कवरेज: