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कृषि

भू-जल रिक्तीकरण और फसल गहनता

  • 27 Apr 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि भारत में आने वाले वर्षों में भू-जल की कमी से सर्दियों में होने वाली फसलों की उत्पादकता में काफी कमी आ सकती है।

  • शोधकर्त्ताओं ने शीतकालीन फसली क्षेत्रों पर भारत के तीन मुख्य सिंचाई प्रकारों (कुआँ, नलकूप और नहर) का अध्ययन किया है।
  • इसके अलावा शोधकर्त्ताओं ने केंद्रीय भू-जल बोर्ड (Central Ground Water Board) से प्राप्त भू-जल आँकड़ों का भी विश्लेषण किया है।
  • सर्दियों में उगाए जाने वाली प्रमुख फसलों में- गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों आदि शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु

वर्तमान परिदृश्य:

  • भारत में वर्ष 1960 के दशक के बाद से भू-जल पर सिंचाई की निर्भरता के कारण किसानों के खाद्य उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि दर्ज की गई है और इससे किसानों को शुष्क सर्दियों और गर्मियों के मौसम में कृषि का विस्तार करने में भी सहायता मिली है।
  • भारत में लगभग 600 मिलियन किसान हैं और यह विश्व में गेहूँ तथा चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • भारत विश्व की 10% फसलों का उत्पादन करता है और यह विश्व का सबसे बड़ा भू-जल उपभोक्ता भी है, जिससे भारत के अधिकांश हिस्सों में ‘जलभृत’ (Aquifer) तेज़ी से नष्ट हो रहे हैं।
    • हरित क्रांति के दौरान नीति-समर्थित वातावरण के कारण उत्तर-पश्चिमी भारत, मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा में चावल की खेती में अत्यधिक वृद्धि हुई, जबकि यहाँ की मिट्टी चावल की खेती के लिये पारिस्थितिक रूप से कम उपयुक्त है।
    • इस क्षेत्र में फसलों की सिंचाई के लिये भू-जल का उपयोग किया गया, जिसके परिणामस्वरूप भू-जल में कमी हुई।

अध्ययन के निष्कर्ष:

  • भू-जल से संबंधित:
    • भू-जल खाद्य सुरक्षा के लिये एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। भारत में सिंचाई की आपूर्ति का लगभग 60% हिस्सा इससे ही पूरा किया जाता है, भू-जल की सिंचाई और घरेलू उपयोग के लिये निरंतर खपत इसकी कमी का कारण बन रहे हैं।
    • भारत में भू-जल की कमी से देश भर में खाद्य फसल में 20% तक की कमी हो सकती है और वर्ष 2025 तक लगभग 68% क्षेत्रों में भू-जल की कमी देखी जा सकती है।
      • इस अध्ययन में पाया गया कि देश भर के 13% गाँव जहाँ किसान सर्दियों की फसल बोते हैं गंभीर रूप से पानी की कमी से जूझ रहे हैं।
      • इस अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि ये नुकसान बड़े पैमाने पर उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में होंगे।
  • नहर सिंचाई में हस्तांतरण करने से संबंधित:
    • भारत सरकार ने सुझाव दिया है कि भू-जल के स्थान पर नहरों से सिंचाई करके अनुमानित चुनौतियों को दूर किया जा सकता है।
      • नहरों को झीलों या नदियों से जोड़कर सिंचाई के लिये उपयुक्त जल प्राप्त किया जा सकता है।
      • हालाँकि अभी राष्ट्रीय स्तर पर नहर सिंचाई पर निर्भरता बढ़ने की क्षमता काफी सीमित है।
    • इस अध्ययन के अनुसार सिंचाई के लिये नहरों पर पूरी तरह से निर्भरता के बावजूद भारतीय कृषि में भू-जल के अपेक्षित नुकसान की पूर्णतः भरपाई नहीं की जा सकेगी।
    • इसके अलावा नलकूप (ट्यूबवेल) सिंचाई की तुलना में नहर सिंचाई कम सर्दियों वाले और वर्षा परिवर्तनशीलता के प्रति अधिक संवेदनशील कृषि क्षेत्रों से जुड़ी हुई है।
  • फसल उत्पादन पर प्रभाव से संबंधित:
    • फसल की गहनता में कमी: वर्तमान में भू-जल सिंचाई का उपयोग कर रहे क्षेत्रों में नहर सिंचाई को बढ़ाने से फसल गहनता में राष्ट्रीय स्तर पर 7% और कुछ प्रमुख स्थानों में 24% तक की गिरावट हो सकती है।
      • नहर से उन क्षेत्रों को ज़्यादा लाभ होगा, जो इसके पास होंगे तथा इससे दूर स्थित क्षेत्रों को इससे कम लाभ मिलेगा।
    • गेहूँ के उत्पादन में कमी: फसल क्षेत्र में होने वाली कमी मुख्य रूप से गेहूँ उत्पादित करने वाले राज्यों में देखने को मिलेगी, जिससे भविष्य में गेहूँ के उत्पादन में काफी कमी आएगी।
    • खाद्य सुरक्षा: कम गेहूँ उत्पादन से खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि इससे भारत की लगभग 20% घरेलू कैलोरी माँग पूरी होती है।

फसल गहनता

  • यह एक कृषि वर्ष में एक ही खेत से कई फसलों के उत्पादन को संदर्भित करता है। इसे निम्न सूत्र के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है:
    • फसल गहनता = सकल फसली क्षेत्र/शुद्ध बोया गया क्षेत्र x 100।
    • सकल फसली क्षेत्र: यह एक विशेष वर्ष में एक बार और/या एक से अधिक बार बोए गए कुल क्षेत्र को संदर्भित करता है। इसे कुल फसली क्षेत्र या ‘कुल बोया जाने वाला क्षेत्र’ भी कहा जाता है।
    • शुद्ध बोया गया क्षेत्र: यह फसलों और फलोद्यान के साथ कुल बोए गए क्षेत्र को संदर्भित करता है। इसके तहत एक वर्ष में एक से अधिक बार बोया गया क्षेत्र केवल एक बार ही गिना जाता है।
  • भारत के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 51% हिस्सा पहले से ही खेती के लिये इस्तेमाल हो रहा है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह औसतन 11% है।
  • वर्तमान में भारत में फसल गहनता 136% है, जिसमें स्वतंत्रता के बाद से केवल 25% की वृद्धि दर्ज की है। इसके अतिरिक्त वर्षा आधारित शुष्क भूमि, कुल शुद्ध बोए गए क्षेत्र का 65% है।

केंद्रीय भू-जल बोर्ड

  • यह जल संसाधन मंत्रालय (जल शक्ति मंत्रालय), भारत सरकार का एक अधीनस्‍थ कार्यालय है।
  • इस अग्रणी राष्ट्रीय अभिकरण को देश के भू-जल संसाधनों के वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन, अन्‍वेषण, माॅनीटरिंग, आकलन, संवर्द्धन एवं विनियमन का दायित्व सौंपा गया है ।
  • वर्ष 1970 में कृषि मंत्रालय के तहत ‘समन्‍वेषी नलकूप संगठन’ (Exploratory Tubewells Organization) को पुन:नामित कर ‘केंद्रीय भू-जल बोर्ड’ की स्थापना की गई थी। वर्ष 1972 में इसका विलय भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग (Geological Survey of India) के भू-जल खंड के साथ कर दिया गया।

आगे की राह

  • पूर्वी भारत में सिंचाई अवसंरचना: बिहार जैसे पूर्वी भारतीय राज्यों में उच्च मानसून वर्षा के साथ पर्याप्त भू-जल संसाधन उपलब्ध हैं, किंतु आवश्यक बुनियादी अवसंरचना की कमी के कारण यहाँ के किसान प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने में सक्षम नहीं हैं।
    • पूर्वी भारत में सिंचाई का विस्तार करने और कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिये बेहतर नीतियों की आवश्यकता है।
    • इससे उत्तर-पश्चिमी भारतीय राज्यों के दबाव में भी कमी आएगी।
  • पानी की बचत करने वाली प्रौद्योगिकियाँ: स्प्रिंकलर, ड्रिप सिंचाई जैसी जल-बचत तकनीकों को अपनाया जा सकता है।
  • कम जल आवश्यकता वाली फसलें: कुछ क्षेत्रों में कम जल की माँग करने वाली फसलों को बढ़ावा देकर यहाँ के सीमित भू-जल के अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग करने में मदद मिल सकती है।

स्रोत: द हिंदू

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