भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत का खिलौना उद्योग
प्रिलिम्स के लिये:भारत का खिलौना उद्योग, भारत में निर्मित खिलौनों की सफलता की कहानी, उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade-DPIIT), खिलौनों के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan for Toys-NAPT), विदेश व्यापार महानिदेशालय (Directorate General of Foreign Trade-DGFT)। मेन्स के लिये:भारत का खिलौना उद्योग, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, उनके डिज़ाइन तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे। |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रबंधन संस्थान (Indian Institutes of Management- IIM) लखनऊ ने हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce & Industry- MoCI) के तहत उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) के आदेश पर “भारत में निर्मित खिलौनों की सफलता की कहानी (Success Story of Made in India Toys)” पर अध्ययन किया है, जिसमें एक पर प्रकाश डाला गया कि वित्त वर्ष 2014-15 की तुलना में वित्त वर्ष 2022-23 में खिलौना निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
अध्ययन के अनुसार भारतीय खिलौना उद्योग की स्थिति क्या है?
- विकास की प्रवृत्तियाँ:
- भारतीय खिलौना उद्योग ने वित्त वर्ष 2014-15 और वित्त वर्ष 2022-23 के बीच उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की, जिसमें आयात में 52% की भारी गिरावट तथा निर्यात में 239% की उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- यह वृद्धि आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता की दिशा में बदलाव का संकेत देती है।
- गुणवत्ता में सुधार:
- घरेलू बाज़ार में उपलब्ध खिलौनों की गुणवत्ता में समग्र वृद्धि हुई है। यह अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने और उपभोक्ता संतुष्टि तथा सुरक्षा सुनिश्चित करने के महत्त्व पर बल देती है।
- विकास वाहक:
- उन्नत विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र: सरकारी प्रयासों ने एक अधिक अनुकूल विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण की सुविधा प्रदान की है। छह वर्षों में विनिर्माण इकाइयों की संख्या दोगुनी करना, आयातित इनपुट पर निर्भरता को 33% से घटाकर 12% करना, सकल विक्रय मूल्य में 10% CAGR की वृद्धि करना और श्रम उत्पादकता में सुधार करना उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हैं।
- वैश्विक एकीकरण और निर्यात पर फोकस: खिलौना उद्योग में शीर्ष निर्यातक देश के रूप में भारत का उभरना वैश्विक खिलौना मूल्य शृंखला में सफल एकीकरण का संकेत देता है। संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया जैसे प्रमुख देशों में शून्य-शुल्क बाज़ार पहुँच ने इस विकास पथ में योगदान दिया है।
खिलौना उद्योग में विकास को बढ़ावा देने के लिये सरकारी पहल क्या हैं?
- खिलौनों के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan for Toys- NAPT):
- यह एक व्यापक योजना है जिसमें 21 विशिष्ट कार्य बिंदु शामिल हैं, जो DPIIT द्वारा समन्वित है और कई केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों द्वारा कार्यान्वित है। यह योजना डिज़ाइन, गुणवत्ता नियंत्रण, स्वदेशी खिलौना समूहों को बढ़ावा देने आदि जैसे विभिन्न पहलुओं को सुनिश्चित करती है।
- मूल सीमा शुल्क (Basic Customs Duty- BCD) में वृद्धि:
- खिलौनों पर BCD में पर्याप्त वृद्धि (फरवरी 2020 में 20% से 60% और उसके बाद मार्च 2023 में 70% तक) का उद्देश्य घरेलू खिलौना उद्योग को सस्ते आयात से बचाना तथा स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहित करना है।
- अनिवार्य नमूना परीक्षण (Mandated Sample Testing):
- वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत विदेश व्यापार महानिदेशालय (Directorate General of Foreign Trade- DGFT) ने निम्न स्तरीय खिलौनों के आयात को रोकने तथा बेहतर गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिये प्रत्येक आयात खेप/प्रेषण के लिये नमूना परीक्षण अनिवार्य किया है।
- खिलौनों के लिये गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (Quality Control Order- QCO):
- वर्ष 2020 में जारी यह आदेश देश में निर्मित और बेचे जाने वाले खिलौनों की समग्र गुणवत्ता को बढ़ाने के लिये जनवरी 2021 से प्रभावी खिलौनों के गुणवत्ता मानकों पर ज़ोर देता है।
- खिलौना विनिर्माताओं के लिये प्रावधान:
- भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) द्वारा विशेष प्रावधान किये गए हैं जिसमें एक निर्दिष्ट अवधि के लिये परीक्षण सुविधाओं के बिना लघु इकाइयों को लाइसेंस देना, गुणवत्ता मानकों के अनुपालन की सुविधा प्रदान करना शामिल है।
- BIS मानक चिह्न:
- BIS मानक चिह्नों के माध्यम से गुणवत्ता मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए घरेलू विनिर्माताओं को 1,200 से अधिक लाइसेंस तथा विदेशी विनिर्माताओं को 30 से अधिक लाइसेंस प्रदान किये गए हैं।
- क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण:
- MSME मंत्रालय द्वारा पारंपरिक उद्योगों के पुनर्जनन के लिये निधि की योजना (Scheme of Funds for the Regeneration of Traditional Industries- SFURTI) जैसी योजनाओं के माध्यम से घरेलू खिलौना उद्योग का समर्थन किया जा रहा है तथा वस्त्र मंत्रालय द्वारा विभिन्न खिलौना उत्पादन केंद्रों को खिलौनों का डिज़ाइन तैयार करने एवं ज़रूरी साधन मुहैया कराने में सहायता प्रदान की जा रही है।
- प्रचार पहल:
- द इंडियन टॉय फेयर 2021 और टॉयकैथॉन जैसे आयोजनों का उद्देश्य स्वदेशी खिलौनों को बढ़ावा देना, नवाचार को प्रोत्साहित करना तथा खिलौना उद्योग में प्रदर्शन एवं विचार के लिये एक मंच तैयार करना है।
आगे की राह
- भारत को चीन तथा वियतनाम जैसे प्रमुख खिलौना विनिर्माण केंद्रों के प्रतिस्पर्द्धी विकल्प के रूप में स्थापित करने के लिये खिलौना उद्योग तथा सरकार के बीच निरंतर सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक हैं।
- प्रौद्योगिकी को अपनाना, ई-कॉमर्स पर ध्यान केंद्रित करना, साझेदारी तथा निर्यात को प्रोत्साहन देना, ब्रांड निर्माण में निवेश करना एवं बच्चों के साथ प्रभावी संचार के लिये शिक्षकों व अभिभावकों के साथ जुड़ना प्रमुख पहचाने गए पहलू हैं।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु प्रतिष्ठापन सूचियों का वार्षिक आदान-प्रदान
प्रिलिम्स के लिये:भारत और पाकिस्तान, परमाणु प्रतिष्ठापन सूचियों का वार्षिक आदान-प्रदान: भारत और पाकिस्तान, नियंत्रण रेखा, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, सिंधु जल संधि, SAARC मेन्स के लिये:भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद के प्रमुख क्षेत्र, परमाणु संयंत्रों तथा सुविधाओं के विरुद्ध हमले के निषेध पर समझौता |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और पाकिस्तान ने नई दिल्ली (भारत) तथा इस्लामाबाद (पाकिस्तान) में राजनीतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से अपने संबंधित परमाणु प्रतिष्ठानों तथा केंद्रों (Nuclear Installations and facilities) की सूची का आदान-प्रदान किया है।
- यह आदान-प्रदान दोनों देशों के बीच परमाणु प्रतिष्ठानों तथा केंद्रों के विरुद्ध हमले के निषेध पर समझौते के अंतर्गत आता है।
परमाणु प्रतिष्ठानों तथा केंद्रों के विरुद्ध हमले के निषेध पर समझौता क्या है?
- परमाणु प्रतिष्ठानों और केंद्रों के विरुद्ध हमले के निषेध पर समझौते पर 31 दिसंबर, 1988 को तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो तथा भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे।
- यह संधि 27 जनवरी, 1991 को क्रियान्वित की गई।
- हालिया आदान-प्रदान दोनों देशों के बीच संबद्ध सूचियों का निरंतर 33वाँ आदान-प्रदान है, पहला आदान-प्रदान 01 जनवरी, 1992 को हुआ था।
- पृष्ठभूमि: उक्त समझौते पर बातचीत तथा हस्ताक्षर के लिये प्रत्यक्ष कारक भारतीय सेना द्वारा वर्ष 1986-87 के ब्रासस्टैक्स अभ्यास से उत्पन्न तनाव था।
- ऑपरेशन ब्रासस्टैक्स (Brasstacks) पाकिस्तान सीमा के समीप भारतीय राज्य राजस्थान में आयोजित एक सैन्य अभ्यास था।
- जनादेश: विश्वास को बढ़ावा देने वाले सुरक्षा का माहौल बनाने के लिये इस समझौते के तहत दोनों देशों को प्रत्येक कैलेंडर वर्ष के 1 जनवरी को समझौते से संबंद्ध किसी भी परमाणु प्रतिष्ठानों/संस्थापनों तथा केंद्रों के बारे में एक-दूसरे को सूचित करना होता है।
- समझौते के अनुसार, ‘परमाणु स्थापना या सुविधा’ शब्द में परमाणु ऊर्जा और अनुसंधान रिएक्टर, ईंधन निर्माण, यूरेनियम संवर्द्धन, आइसोटोप पृथक्करण तथा पुनर्प्रसंस्करण सुविधाओं के साथ-साथ किसी भी रूप में ताज़ा या विकिरणित परमाणु ईंधन एवं सामग्री वाले अन्य प्रतिष्ठान व महत्त्वपूर्ण मात्रा में रेडियोधर्मी सामग्रियों का भंडारण करने वाले प्रतिष्ठान शामिल हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद के प्रमुख क्षेत्र क्या हैं?
- कश्मीर विवाद:
- नियंत्रण रेखा का उल्लंघन: नियंत्रण रेखा पर बार-बार संघर्ष विराम का उल्लंघन हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप लोग हताहत हो रहे हैं और तनाव बढ़ रहा है।
- विसैन्यीकरण पर असहमति: नियंत्रण रेखा के दोनों ओर विसैन्यीकरण की मांगें अनसुलझी हैं, जिससे शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में प्रगति बाधित हो रही है।
- आतंकवाद:
- सीमा पार से घुसपैठ: भारत का आरोप है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी, आतंकवादी हमलों को अंजाम देने के लिये नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ कर रहे हैं।
- आतंकवादी समूहों का पदनाम: दोनों देशों द्वारा आतंकवादी समूहों को आतंकवादी संगठन के रूप में नामित करने में मतभेद आतंकवाद विरोधी सहयोग में बाधाएँ पैदा करते हैं।
- नागरिक आबादी पर प्रभाव: आतंकवादी हमलों में निर्दोष लोगों की जान चली जाती है तथा दोनों समुदायों के बीच शत्रुता और बढ़ जाती है।
- जल बँटवारा:
- बाँधों का निर्माण: सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों पर बाँधों तथा जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण पर विवाद, जल प्रवाह एवं उपयोग के अधिकारों को प्रभावित कर रहा है।
- सिंधु जल संधि का कार्यान्वयन: जल आवंटन और विवाद समाधान तंत्र के संबंध में संधि की धाराओं की व्याख्या तथा कार्यान्वयन में अंतर।
- व्यापार और आर्थिक संबंध:
- व्यापार बाधाएँ: दोनों देशों द्वारा लगाई गई प्रतिबंधात्मक व्यापार नीतियाँ और उच्च टैरिफ सीमा पार व्यापार तथा आर्थिक कनेक्टिविटी में बाधा डालते हैं।
- अगस्त 2019 में, पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में किये गए संवैधानिक संशोधनों के जवाब में भारत के साथ व्यापार रोक दिया।
- भारत ने वर्ष 2019 में पाकिस्तानी आयात पर 200% टैरिफ लगाया, जब पुलवामा आतंकवादी घटना के बाद पाकिस्तान का मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) पदनाम हटा दिया गया था।
- सीमित सीमा-पार निवेश: राजनीतिक तनाव और सुरक्षा चिंताएँ दोनों देशों में व्यावसायों के बीच निवेश तथा संयुक्त उद्यमों को हतोत्साहित करती हैं।
- तृतीय-पक्ष व्यापार मार्गों पर निर्भरता: क्षेत्र के बाहर व्यापार मार्गों पर निर्भरता से लागत बढ़ती है और दोनों अर्थव्यवस्थाओं की दक्षता कम हो जाती है।
- व्यापार बाधाएँ: दोनों देशों द्वारा लगाई गई प्रतिबंधात्मक व्यापार नीतियाँ और उच्च टैरिफ सीमा पार व्यापार तथा आर्थिक कनेक्टिविटी में बाधा डालते हैं।
- क्षेत्रीय भूराजनीति:
- पाकिस्तान में चीन की भूमिका: पाकिस्तान में बढ़ता चीनी निवेश और उपस्थिति, जिसमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा जैसी परियोजनाएँ भी शामिल हैं, भारत के लिये रणनीतिक गठबंधन तथा शक्ति संतुलन को लेकर चिंताएँ पैदा करती हैं।
भारत और पाकिस्तान विवाद समाधान की ओर कैसे आगे बढ़ सकते हैं?
- विश्वास निर्माण के उपाय:
- संचार को सुदृढ़ बनाना: खुले संवाद और संकट प्रबंधन के लिये विभिन्न स्तरों पर प्रत्यक्ष, सुरक्षित संचार चैनल स्थापित करना।
- LoC पर तनाव कम करना: युद्धविराम समझौतों को लागू करना और मज़बूत करना, सेना की तैनाती को कम करना तथा उल्लंघन की जाँच के लिये संयुक्त तंत्र स्थापित करना।
- जन-जन की पहल: सांस्कृतिक और शैक्षणिक आदान-प्रदान, खेल आयोजनों तथा जलवायु परिवर्तन व स्वास्थ्य देखभाल जैसी आम चुनौतियों का समाधान करने वाली संयुक्त पहल को बढ़ावा देना।
- मुख्य मुद्दों को हल करना:
- कश्मीर विवाद समाधान: कश्मीरी लोगों की आकांक्षाओं पर विचार करते हुए और अंतर्राष्ट्रीय कानूनी ढाँचे का सम्मान करते हुए, वार्ता के माध्यम से कश्मीर मुद्दे का उचित एवं स्थायी समाधान तलाशना।
- आतंकवाद का मुकाबला: आतंकवादी नेटवर्क को नष्ट करने, इनके वित्तपोषण एवं वैचारिक स्रोतों को निरस्त करने और पिछले कृत्यों के लिये जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु संयुक्त प्रयासों को तीव्रता प्रदान करना।
- जल सहयोग: सिंधु जल संधि को प्रभावी ढंग से लागू करना, डेटा और जानकारी को पारदर्शी रूप से साझा करना व पारस्परिक लाभ के लिये संयुक्त जल प्रबंधन परियोजनाओं की खोज करना।
- क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
- मध्यस्थता को प्रोत्साहित करना: सार्क (SAARC) जैसे क्षेत्रीय मंचों के माध्यम से वार्ता को सुविधाजनक बनाना, दोनों पक्षों को स्वीकार्य समाधान तलाशना।
- बाह्य प्रभावों को संतुलित करना: द्विपक्षीय प्रगति को खतरे में डालने से बचने के लिये दोनों देशों को चीन और अमेरिका जैसी बाह्य शक्तियों के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाने की आवश्यकता है।
- सार्वजनिक समझ और समर्थन को बढ़ावा देना:
- मीडिया की ज़िम्मेदारी: ज़िम्मेदार मीडिया कवरेज को बढ़ावा देना, नकारात्मक रूढ़िवादिता से बचना और सहयोग व साझा इतिहास की सकारात्मक पहलूओं पर ज़ोर देना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:Q1. “भारत में बढ़ते हुए सीमापारीय आतंकी हमले और अनेक सदस्य-राज्यों के आंतरिक मामलों में पाकिस्तान द्वारा बढ़ता हुआ हस्तक्षेप सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) के भविष्य के लिये सहायक नहीं है।” उपयुक्त उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिये। (2016) Q2. आतंकवादी गतिविधियों और परस्पर अविश्वास ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को धूमिल बना दिया है। खेलों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसी मृदु शक्ति किस सीमा तक दोनों देशों के बीच सद्भावना उत्पन्न करने में सहायक हो सकती है? उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। (2015) |
शासन व्यवस्था
आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132
प्रिलिम्स के लिये:मौलिक अधिकार, आयकर अधिनियम, 1961, सर्वोच्च न्यायालय, निजता का अधिकार, वेडनसबरी सिद्धांत, आनुपातिकता का सिद्धांत मेन्स के लिये:पुट्टस्वामी निर्णय तथा उसके बाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता की समझ में परिवर्तन, व्यक्तिगत अधिकारों के साथ विधि प्रवर्तन आवश्यकताओं को संतुलित करना |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति के.एस.पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ, 2017 मामले में ऐतिहासिक निर्णय ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया। हालाँकि भारत में आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132 द्वारा दी गई अतिरिक्त-सांविधानिक शक्तियों के संबंध में चिंताएँ सामने आई हैं क्योंकि वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करती प्रतीत होती हैं।
आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132 क्या है?
- यह धारा वर्ष 1961 में आयकर अधिनियम, 1961 के भाग के रूप में, आय पर कराधान (अन्वेषण आयोग) अधिनियम, 1947 को प्रतिस्थापित करने के लिये प्रस्तुत की गई थी जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने सूरज मल मोहता बनाम ए.वी. विश्वनाथ शास्त्री (1954) मामले में रद्द कर दिया था क्योंकि न्यायालय के अनुसार इसमें करदाताओं के एक निश्चित वर्ग के साथ अन्य की तुलना में विशेष व्यवहार का प्रावधान था जिससे संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित एकसमान व्यवहार की गारंटी का हनन हुआ।
- वर्ष 1922 में प्रस्तुत मूल आयकर कानून में खोज तथा ज़ब्ती शक्तियों का अभाव था।
- आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132, कर अधिकारियों को बिना किसी पूर्व न्यायिक वारंट के व्यक्तियों तथा संपत्तियों की खोज/तलाशी एवं ज़ब्ती करने का अधिकार देती है यदि उनके पास “संदेह करने का कारण” है कि व्यक्ति ने आय छुपाई है अथवा चोरी की है।
- यह अधिकारियों को वित्तीय संपत्ति छिपाने के संदेह के आधार पर भवन, स्थानों, वाहनों अथवा विमानों की तलाशी लेने की शक्ति प्रदान करता है।
- संबद्ध अधिकारी इस अधिनियम के तहत तलाशी अथवा सर्वेक्षण के दौरान किसी भी व्यक्ति के कब्ज़े में पाई गई ऐसी वस्तुओं को ज़ब्त कर सकते हैं। तलाशी के दौरान खोजी गई बहीखाते, धन, बुलियन, आभूषण अथवा अन्य मूल्यवान वस्तुओं को ज़ब्त करने की अनुमति देता है।
आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132 से संबंधित मामला
- पूरन मल बनाम निरीक्षण निदेशक (1973):
- अमुक प्रावधान की सांविधानिकता को पूरन मल बनाम निरीक्षण निदेशक (1973) मामले में चुनौती दी गई थी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने एम.पी. शर्मा बनाम सतीश चंद्रा (1954) में अपने निर्णय का हवाला देते हुए कानून को बरकरार रखा और तर्क दिया कि खोज व ज़ब्ती की शक्ति सामाजिक सुरक्षा के बचाव के लिये आवश्यक है एवं विधि द्वारा विनियमित है।
- अदालत ने यह भी कहा कि संविधान तलाशी और ज़ब्ती के बारे में अमेरिकी चौथे संशोधन के समान निजता के मौलिक अधिकार को मान्यता नहीं देता है।
- अमेरिकी चौथा संशोधन सरकार द्वारा अनुचित तलाशी और ज़ब्ती से बचाता है।
- यह निष्कर्ष निकाला गया कि तलाशी के लिये वैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 20(3) के तहत संवैधानिक सुरक्षा को पराजित नहीं करते हैं।
- एम.पी. शर्मा मामले में फैसला आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत तलाशी से संबंधित था, जबकि आयकर अधिनियम के तहत तलाशी के लिये न्यायिक लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती है।
- एम.पी. शर्मा के फैसले को औपचारिक रूप से खारिज कर दिये जाने के बाद से कानून के बारे में न्यायालय की समझ बदल गई है। निजता का अधिकार अब संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में अंतर्निहित माना जाता है।
- अमुक प्रावधान की सांविधानिकता को पूरन मल बनाम निरीक्षण निदेशक (1973) मामले में चुनौती दी गई थी।
आयकर अधिनियम,1961 की धारा 132 के संबंध में क्या चुनौतियाँ हैं?
- आनुपातिक सिद्धांत का उल्लंघन:
- आयकर अधिनियम की धारा 132, औपचारिक रूप से चुनौती नहीं दिये जाने के बावजूद, आनुपातिकता के सिद्धांत के संभावित उल्लंघन का सुझाव देती है।
- तलाशी और ज़ब्त करने की राज्य की शक्ति को अब सामाजिक सुरक्षा के एक सरल उपकरण के रूप में नहीं देखा जाता है, बल्कि यह आनुपातिकता के सिद्धांत के अधीन है। इसका मतलब यह है कि इसका उपयोग एक वैध उद्देश्य के लिये किया जाना चाहिये, तर्कसंगत रूप से अपने उद्देश्य से जुड़ा होना चाहिये, कोई वैकल्पिक कम दखल देने वाला साधन उपलब्ध नहीं होना चाहिये और चुने गए साधनों तथा उल्लंघन किये गए अधिकार के बीच संतुलन होना चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्य आयकर निदेशक बनाम लालजीभाई कांजीभाई मांडलिया, 2022 के मामले में “वेडनसबरी (Wednesbury)” अवधारणा पर निर्भरता प्रदर्शित की, जो ब्रिटेन की अदालत के फैसले से लिया गया प्रशासनिक समीक्षा का एक मानक है, जिसमें तलाशी को न्यायिक नहीं बल्कि प्रशासनिक माना गया है।
- वेडनसबरी सिद्धांत कहता है कि यदि कोई निर्णय इतना अनुचित है कि कोई भी समझदार प्राधिकारी इसे कभी नहीं ले सकता है, तो ऐसे निर्णय न्यायिक समीक्षा के माध्यम से रद्द किये जा सकते हैं।
- आलोचकों का तर्क है कि पुट्टस्वामी के बाद, वेडनसबरी मानदंड का कोई स्थान नहीं है, खासकर जहाँ बुनियादी अधिकार खतरे में हैं और किसी भी कार्यकारी कार्रवाई को वैधानिक कानून का सबसे सख्त अर्थ में पालन करना चाहिये।
- आयकर अधिनियम की धारा 132, औपचारिक रूप से चुनौती नहीं दिये जाने के बावजूद, आनुपातिकता के सिद्धांत के संभावित उल्लंघन का सुझाव देती है।
- निजता के अधिकार का हनन:
- निजता का अधिकार, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक बुनियादी अधिकार है, अनुचित तलाशी और ज़ब्ती के साथ-साथ गोपनीय रूप से व्यक्तिगत जानकारी से सुरक्षा प्रदान करता है।
- हालाँकि आयकर की जाँच व्यक्तियों की सहमति के बिना उनकी गोपनीयता में हस्तक्षेप करती हैं, जो प्रायः अस्पष्ट आधारों पर आधारित होती हैं, जिससे संभावित दुरुपयोग होता है।
- इसके अतिरिक्त, दुरुपयोग को रोकने और I-T जाँचों के अधीन व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपायों तथा निरीक्षण तंत्र की कमी है।
- कड़े सुरक्षा उपायों के अभाव के कारण व्यक्तियों को कर अधिकारियों द्वारा शक्ति के संभावित दुरुपयोग के लिये उजागर किया जाता है।
- जाँच की अवधि और शर्तें:
- गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा उस छापेमारी पर सवाल उठाना जहाँ व्यक्तियों को कथित तौर पर उचित सुरक्षा उपायों के बिना कई दिनों तक आभासी हिरासत में रखा गया था, ऐसी खोजों की अवधि और शर्तों से संबद्ध चिंताओं को उजागर करता है।
आगे की राह
- धारा 132 के आवेदन की समीक्षा करने, वेंज़बरी सिद्धांत से हटकर कार्यकारी कार्यों की आनुपातिकता का आकलन करने के लिये अधिक कठोर जाँच मानक अपनाने में न्यायपालिका की भूमिका बढ़ाने की आवश्यकता है।
- शिकायतों की जाँच करने, जवाबदेही सुनिश्चित करने और शक्तियों के संभावित दुरुपयोग के मामलों में सुधारात्मक उपायों की सिफारिश करने के अधिकार के साथ एक स्वतंत्र निरीक्षण तंत्र या लोकपाल स्थापित करने की आवश्यकता है।
- IT जाँच भी जाँचों की अवधि और सीमा के संदर्भ में सीमित होनी चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q1. भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत ‘निजता का अधिकार’ संरक्षित है? (2021) (a) अनुच्छेद 15 उत्तर: (c) Q2. निजता का अधिकार को जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्भूत भाग के रूप में संरक्षित किया जाता है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से किससे उपर्युक्त कथन को सही एवं समुचित ढंग से अर्थित होता है? (2018) (a) अनुच्छेद 14 एवं संविधान के 42वें संशोधन के अधीन उपबंध। उत्तर: (c) मेन्सQ.1 निजता के अधिकार पर उच्चतम न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में, मौलिक अधिकारों के विस्तार का परीक्षण कीजिये। (2017) |
शासन व्यवस्था
कोच्चि-लक्षद्वीप द्वीप समूह पनडुब्बी ऑप्टिकल फाइबर कनेक्शन परियोजना
प्रिलिम्स के लिये:KLI-SOFC परियोजना, डिजिटल इंडिया, फाइबर ऑप्टिक केबल्स, नेशनल ब्रॉडबैंड मिशन, लक्षद्वीप द्वीप समूह मेन्स के लिये:सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, डिजिटल कनेक्टिविटी बुनियादी ढाँचे का महत्त्व |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने लक्षद्वीप के कावारत्ती में प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, जल संसाधन, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा सहित कई क्षेत्रों को शामिल कर 1,150 करोड़ रुपए से अधिक की विभिन्न विकासात्मक परियोजनाओं के बीच कोच्चि-लक्षद्वीप द्वीप समूह पनडुब्बी ऑप्टिकल फाइबर कनेक्शन (KLI-SOFC) परियोजना का उद्घाटन किया।
KLI-SOFC परियोजना के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- पृष्ठभूमि:
- लक्षद्वीप को डिजिटल कनेक्टिविटी की आवश्यकता थी, जिससे बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये अपर्याप्त बैंडविड्थ के कारण उपग्रह संचार में सीमाओं के कारण उच्च क्षमता वाली पनडुब्बी केबल लिंक को बढ़ावा मिला।
- KLI-SOFC परियोजना:
- KLI-SOFC परियोजना से इंटरनेट की गति में वृद्धि होगी, नई संभावनाएँ और अवसर खुलेंगे।
- यह परियोजना आज़ादी के बाद लक्षद्वीप में पहली बार सबमरीन ऑप्टिक फाइबर केबल कनेक्टिविटी पेश करने जा रही है।
- फाइबर ऑप्टिक्स या ऑप्टिकल फाइबर, उस तकनीक को संदर्भित करता है जो ग्लास या प्लास्टिक फाइबर के साथ प्रकाश स्पंदनों के माध्यम से सूचनाओं का प्रसारण करता है।
- यूनिवर्सल सर्विसेज़ ऑब्लिगेशन फंड (Universal Services Obligation Fund- USOF) द्वारा वित्त पोषित दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunications- DOT) ने परियोजना को पूरा किया। भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) परियोजना इसकी निष्पादन एजेंसी थी।
- KLI परियोजना ने मुख्य भूमि (कोच्चि) से ग्यारह लक्षद्वीप द्वीपों, कावारत्ती, अगत्ती, अमिनी, कदमत, चेटलेट, कल्पेनी, मिनिकॉय, एंड्रोथ, किल्टान, बंगाराम और बित्रा तक पनडुब्बी केबल कनेक्टिविटी का विस्तार किया है।
- महत्त्व:
- यह परियोजना ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘नेशनल ब्रॉडबैंड मिशन’ के लक्ष्यों के अनुरूप है, जो लक्षद्वीप द्वीप समूह में विभिन्न ई-गवर्नेंस परियोजनाओं के कार्यान्वयन को बढ़ावा देती है।
- इससे ई-गवर्नेंस, पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य, वाणिज्य तथा उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा इससे द्वीप में लोगों के जीवन स्तर में और सुधार करने में भी मदद मिलेगी एवं इन क्षेत्रों में समग्र सामाजिक व आर्थिक विकास में तेज़ी आएगी।
- लक्षद्वीप द्वीप समूह की आबादी को फाइबर टू द होम (FTTH) तथा 5G/4G मोबाइल नेटवर्क प्रौद्योगिकियों के माध्यम से सुविधाजनक हाई-स्पीड वायरलाइन ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान की जाएगी।
- इस परियोजना द्वारा उत्पन्न बैंडविड्थ सभी दूरसंचार सेवा प्रदाताओं (Telecom Service Providers- TSP) के लिये सुलभ होगा, जो लक्षद्वीप द्वीप समूह में दूरसंचार सेवाओं को सुगम करेगा।
- यह परियोजना ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘नेशनल ब्रॉडबैंड मिशन’ के लक्ष्यों के अनुरूप है, जो लक्षद्वीप द्वीप समूह में विभिन्न ई-गवर्नेंस परियोजनाओं के कार्यान्वयन को बढ़ावा देती है।
लक्षद्वीप द्वीप समूह में अन्य परियोजनाएँ:
- कदमत में निम्न तापमान थर्मल डिसेलिनेशन (Low-Temperature Thermal Desalination- LTTD) संयंत्र:
- यह प्रतिदिन 1.5 लाख लीटर स्वच्छ पेयजल का उत्पादन करता है। अगत्ती तथा मिनिकॉय द्वीप समूह में कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (Functional Household Tap Connections- FHTC)।
- अगत्ती तथा मिनिकॉय द्वीपों के सभी घरों में अब कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन हैं।
- LTTD एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत गर्म सतह वाले समुद्री जल को निम्न दाब पर वाष्पित किया जाता है तथा वाष्प को ठंडे गहरे समुद्र के जल के साथ संघनित किया जाता है।
- यह प्रतिदिन 1.5 लाख लीटर स्वच्छ पेयजल का उत्पादन करता है। अगत्ती तथा मिनिकॉय द्वीप समूह में कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (Functional Household Tap Connections- FHTC)।
- कवरत्ती में सौर ऊर्जा संयंत्र:
- यह लक्षद्वीप में पहली बैटरी समर्थित सौर ऊर्जा परियोजना है।
- कल्पेनी में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधा:
- कल्पेनी में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधा के नवीनीकरण के लिये आधारशिला रखी गई।
- मॉडल आंगनवाड़ी केंद्र (नंद घर):
- एंड्रोथ, चेटलाट, कदमत, अगत्ती और मिनिकॉय द्वीपों में पाँच मॉडल आंगनवाड़ी केंद्र (नंद घर) बनाए जाएंगे।
लक्षद्वीप द्वीप समूह के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- 32 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला भारत का सबसे छोटा केंद्रशासित प्रदेश, लक्षद्वीप एक द्वीप समूह है, जिसमें कुल 36 द्वीप शामिल हैं।
- इसकी राजधानी कावारत्ती है और यह केंद्रशासित प्रदेश का प्रमुख शहर भी है।
- सभी द्वीप केरल के तटीय शहर कोच्चि से 220 से 440 किमी. दूर अरब सागर में स्थित हैं।
- मलयालम और संस्कृत में लक्षद्वीप नाम का अर्थ ‘एक लाख द्वीप’ होता है।
- लक्षद्वीप की जलवायु उष्णकटिबंधीय है और इसका औसत तापमान 27°C - 32°C रहता है।
- चूँकि मानसून के दौरान जलवायु संतुलित होती है, इसलिये जहाज़ आधारित पर्यटन बंद हो जाता है।
- यह एक प्रशासक के माध्यम से सीधे केंद्र के नियंत्रण में है।
- संपूर्ण स्वदेशी आबादी को उनके आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के कारण अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति सूची (संशोधन आदेश), 1956 के अनुसार, इस केंद्र शासित प्रदेश में कोई अनुसूचित जाति नहीं है।
- वर्ष 2020 में, लक्षद्वीप द्वीप समूह प्रशासन ने समुद्री खीरे के लिये दुनिया का पहला संरक्षण क्षेत्र डॉ. केके मोहम्मद कोया समुद्री खीरा संरक्षण रिज़र्व स्थापित किया, जो चेरियापानी रीफ में 239 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नप्रश्न. निम्न तापमान तापीय विलवणीकरण सिद्धांत के आधार पर प्रतिदिन एक लाख लीटर मीठे जल का उत्पादन करने वाला भारत का पहला विलवणीकरण संयंत्र कहाँ स्थापित किया गया था? (2008) (a) कवरत्ती उत्तर: (a) व्याख्या:
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भारतीय समाज
अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956
प्रिलिम्स के लिये:अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956, पेशे की स्वतंत्रता, उज्ज्वला, राष्ट्रीय महिला आयोग मेन्स के लिये:सेक्स वर्क को एक पेशे के रूप में मान्यता, सेक्स वर्कर के अधिकार, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने वेश्याओं की सेवाएँ चाहने वाले ग्राहकों को शामिल करने के लिये अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 की धारा 5 में ‘खरीद’ शब्द की परिभाषा को विस्तृत किया है।
अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 क्या है?
- परिचय:
- अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम,1956 {Immoral Traffic (Prevention) Act (ITP), 1956} का उद्देश्य बुराइयों के व्यावसायीकरण और महिलाओं की तस्करी को रोकना है।
- यह यौन कार्य के आसपास के कानूनी ढाँचे को चित्रित करता है। हालाँकि यह अधिनियम स्वयं यौन कार्य को अवैध घोषित नहीं करता है, लेकिन यह वेश्यालय चलाने पर रोक लगाता है। वेश्यावृत्ति में संलग्न होना कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त है, लेकिन लोगों को लुभाना और उन्हें यौन गतिविधियों में शामिल करना अवैध माना जाता है।
- वेश्यालय की परिभाषा:
- धारा 2 वेश्यालय को किसी अन्य व्यक्ति के लाभ के लिये या दो या दो से अधिक वेश्याओं के पारस्परिक लाभ के लिये यौन शोषण या दुर्व्यवहार के लिये उपयोग की जाने वाली जगह के रूप में परिभाषित करती है।
- वेश्यावृत्ति की परिभाषा:
- अधिनियम के अनुसार, वेश्यावृत्ति, व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये व्यक्तियों (पुरुष और महिलाएँ) का यौन शोषण या दुरुपयोग है।
- अधिनियम के तहत अपराध:
- अधिनियम की धारा 5 उन लोगों को दंडित करती है जो वेश्यावृत्ति के उद्देश्यों के लिये व्यक्तियों को खरीदते हैं, प्रेरित करते हैं या ले जाते हैं,उन पर सज़ा के रूप में 3-7 साल की कठोर कारावास और 2,000 रुपये का ज़ुर्माना शामिल है।
- किसी व्यक्ति या बच्चे (child) की इच्छा के विरुद्ध अपराध के लिये अधिकतम सज़ा चौदह वर्ष या आजीवन कारावास तक हो सकती है।
- बच्चे का अर्थ है वह व्यक्ति जिसने सोलह वर्ष की आयु पूरी न की हो।
- किसी व्यक्ति या बच्चे (child) की इच्छा के विरुद्ध अपराध के लिये अधिकतम सज़ा चौदह वर्ष या आजीवन कारावास तक हो सकती है।
- अधिनियम की धारा 5 उन लोगों को दंडित करती है जो वेश्यावृत्ति के उद्देश्यों के लिये व्यक्तियों को खरीदते हैं, प्रेरित करते हैं या ले जाते हैं,उन पर सज़ा के रूप में 3-7 साल की कठोर कारावास और 2,000 रुपये का ज़ुर्माना शामिल है।
केरल उच्च न्यायालय ने क्या सुनाया फैसला?
- वर्तमान मामला:
- याचिकाकर्त्ता को वेश्यालय में ग्राहक होने के कारण गिरफ्तार किया गया था।
- ITP अधिनियम की धारा 3 (वेश्यालय रखना या परिसर को एक के रूप में उपयोग करने की अनुमति देना), 4 (वेश्यावृत्ति की कमाई पर जीवन जीना), 5 (वेश्यावृत्ति के लिये व्यक्तियों को प्राप्त करना, उत्प्रेरित करना या ले जाना), 7 (सार्वजनिक स्थानों पर या उसके आसपास वेश्यावृत्ति को दंडित करना) के तहत अपराधों का आरोप लगाया गया।
- आरोपी ने रिहाई की मांग करते हुए एक याचिका दायर की, जिसमें तर्क दिया गया कि एक ग्राहक के रूप में, उसे ITP अधिनियम के तहत नहीं फँसाया जाना चाहिये।
- फैसला:
- केरल उच्च न्यायालय ने यह मानते हुए कि धारा 5 में “खरीद” शब्द को 1956 अधिनियम में स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, अनैतिक तस्करी को दबाने और वेश्यावृत्ति को रोकने के अधिनियम के उद्देश्य के संदर्भ में इसकी व्याख्या की।
- अदालत ने फैसला सुनाया कि इस शब्द में ग्राहक भी शामिल हैं और इसलिये ग्राहक पर धारा 5 के तहत आरोप लगाया जा सकता है।
- केरल उच्च न्यायालय ने यह मानते हुए कि धारा 5 में “खरीद” शब्द को 1956 अधिनियम में स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, अनैतिक तस्करी को दबाने और वेश्यावृत्ति को रोकने के अधिनियम के उद्देश्य के संदर्भ में इसकी व्याख्या की।
- फैसले के निहितार्थ:
- केरल उच्च न्यायालय का फैसला धारा 5 में “खरीद” के अर्थ का विस्तार करता है, जिसमें कहा गया है कि दलालों और वेश्यालय चलाने वालों के अलावा, ग्राहकों को वेश्यावृत्ति के लिये व्यक्तियों की खरीद हेतु उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
- यह फैसला याचिकाकर्त्ता को धारा 5 के तहत दोषी घोषित नहीं करता है, बल्कि यह मुकदमे की आवश्यकता के लिये आरोप दायर करने की अनुमति देता है।
- विशेष रूप से, याचिकाकर्त्ता को उच्च न्यायालय द्वारा धारा 3, 4 और 7 के तहत अपराध से मुक्त कर दिया गया था।
- उच्च न्यायालय की भिन्न राय:
- मैथ्यू बनाम केरल राज्य (2022):
- केरल उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि वेश्यालय में पकड़े गए ग्राहक पर ITP अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। अधिनियम की धारा 7(1) निर्दिष्ट क्षेत्रों के भीतर वेश्यावृत्ति में लिप्त होने के लिये दो प्रकार के व्यक्तियों को दंडित करती है।
- वे व्यक्ति हैं (i) वह व्यक्ति जो वेश्यावृत्ति करता है और (ii) वह व्यक्ति जिसके साथ ऐसी वेश्यावृत्ति की जाती है, उच्च न्यायालय ने कहा, अनैतिक व्यापार का कार्य ‘ग्राहक’ के बिना नहीं किया जा सकता है या नहीं किया जा सकता है।
- केरल उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि वेश्यालय में पकड़े गए ग्राहक पर ITP अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। अधिनियम की धारा 7(1) निर्दिष्ट क्षेत्रों के भीतर वेश्यावृत्ति में लिप्त होने के लिये दो प्रकार के व्यक्तियों को दंडित करती है।
- गोयनका साजन कुमार बनाम द स्टेट ऑफ ए. पी. (2014) और श्री सनाउल्ला बनाम स्टेट ऑफ कर्नाटक (2017):
- आंध्र प्रदेश और कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ITP अधिनियम की धारा 3-7 के तहत वेश्यालय के ग्राहकों पर मुकदमा चलाने के खिलाफ फैसला सुनाया।
- मैथ्यू बनाम केरल राज्य (2022):
सेक्स वर्क की वैधता क्या है?
- एक पेशे के रूप में सेक्स वर्क:
- सर्वोच्च न्यायालय ने सेक्स वर्क/वेश्यावृत्ति को एक “पेशे” के रूप में मान्यता दी है तथा कहा है कि इसके व्यावसायी विधि के समान संरक्षण के हकदार हैं एवं आपराधिक कानून को ‘आयु’ तथा ‘सहमति’ के आधार पर सभी मामलों में समान रूप से क्रियान्वित होना चाहिये।
- न्यायालय ने कहा कि स्वैच्छिक यौन संबंध कोई अपराध नहीं है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने सेक्स वर्क/वेश्यावृत्ति को एक “पेशे” के रूप में मान्यता दी है तथा कहा है कि इसके व्यावसायी विधि के समान संरक्षण के हकदार हैं एवं आपराधिक कानून को ‘आयु’ तथा ‘सहमति’ के आधार पर सभी मामलों में समान रूप से क्रियान्वित होना चाहिये।
- किसी भी पेशे को अपनाने का मौलिक अधिकार:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(g) नागरिकों को कोई भी पेशा अपनाने तथा कोई भी व्यावसाय, व्यापार अथवा कारोबार करने का अधिकार देता है। इसमें वेश्यावृत्ति का कार्य भी शामिल है।
- व्यावसाय में समानता:
- न्यायालयों ने माना है कि व्यक्तियों को उनका चुने हुए पेशे (चाहे वह कुछ भी हो) को करने का समान अधिकार है।
- बुद्धदेव कर्मस्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2011) मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सेक्स वर्कर्स के अधिकारों को सुरक्षित किया तथा अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा पर ज़ोर दिया।
- मौलिक तथा मानवाधिकार:
- गौरव जैन बनाम भारत संघ और अन्य (1989) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सेक्स वर्कर्स के मौलिक तथा मानवाधिकारों को मान्यता दी तथा कानून के तहत उनके सम्मान एवं सुरक्षा के अधिकार पर ज़ोर दिया।
- न्यायालय ने पाया कि सेक्स वर्कर्स के बच्चों को अवसर, सम्मान, देखभाल, सुरक्षा तथा पुनर्वास की समानता का अधिकार है एवं बिना किसी “पूर्व-कलंक” के “सामाजिक जीवन की मुख्यधारा” का हिस्सा बनने का अधिकार है।
- गौरव जैन बनाम भारत संघ और अन्य (1989) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सेक्स वर्कर्स के मौलिक तथा मानवाधिकारों को मान्यता दी तथा कानून के तहत उनके सम्मान एवं सुरक्षा के अधिकार पर ज़ोर दिया।
सेक्स वर्कर्स से संबंधित क्या पहल हैं?
- उज्ज्वला:
- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा “उज्ज्वला” का क्रियान्वन किया गया जो तस्करी की रोकथाम तथा वाणिज्यिक यौन शोषण पीड़ितों के बचाव, पुनर्वास, पुन: एकीकरण एवं प्रत्यावर्तन के लिये एक व्यापक योजना है।
- राष्ट्रीय महिला आयोग:
- राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women) की स्थापना वेश्यावृत्ति में शामिल महिलाओं तथा लड़कियों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग:
- NHRC ने यौनकर्मियों को अनौपचारिक श्रमिक के रूप में मान्यता दी।
- जागरूकता अभियान:
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में सरकार से आग्रह किया कि वह सेक्स उद्योग में महिलाओं के शोषण के खिलाफ कार्रवाई करे और कठोर विनियमन के साथ विशिष्ट स्थानों में वैधीकरण पर विचार करे।
- न्यायालय के निर्देश के प्रत्युत्तर में सरकार ने जनता को व्यावसायिक यौन व्यापार से जुड़े जोखिमों के बारे में शिक्षित करने के लिये व्यापक जागरूकता अभियान शुरू किया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में सरकार से आग्रह किया कि वह सेक्स उद्योग में महिलाओं के शोषण के खिलाफ कार्रवाई करे और कठोर विनियमन के साथ विशिष्ट स्थानों में वैधीकरण पर विचार करे।
सेक्स वर्क के संबंध में सामाजिक धारणाएँ क्या हैं?
- सांस्कृतिक कलंक:
- कुछ संदर्भों में कानूनी होने के बावजूद, वेश्यावृत्ति को प्रायः अनैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का उल्लंघन माना जाता है। कुछ संस्कृतियाँ इसे वैवाहिक और पारिवारिक पवित्रता के लिये खतरा मानती हैं।
- सेक्स वर्क में महिलाओं (WSW) की पहचान भारत में सबसे अधिक भेदभाव वाली और हाशिये पर रहने वाली आबादी में से एक के रूप में की गई है।
- यौनकर्मियों को प्रायः अपने पेशे से जुड़े कलंक के कारण सामाजिक अलगाव का सामना करना पड़ता है।
- कुछ संदर्भों में कानूनी होने के बावजूद, वेश्यावृत्ति को प्रायः अनैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का उल्लंघन माना जाता है। कुछ संस्कृतियाँ इसे वैवाहिक और पारिवारिक पवित्रता के लिये खतरा मानती हैं।
- लैंगिक गतिकी:
- कई लोग वेश्यावृत्ति को एक निंदापूर्ण और अपमानजनक पेशे के रूप में देखते हैं, विशेषकर महिलाओं को निशाना बनाकर।
- यह पेशा प्रायः शोषण और नुकसान से जुड़ा होता है।
- यौनकर्मियों को अपमानजनक शब्दों, शारीरिक हिंसा और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी भेद्यता और बढ़ जाती है।
- कई लोग वेश्यावृत्ति को एक निंदापूर्ण और अपमानजनक पेशे के रूप में देखते हैं, विशेषकर महिलाओं को निशाना बनाकर।
- स्वायत्तता की वकालत:
- दूसरी ओर, समर्थकों का तर्क है कि महिलाओं के पास यह तय करने की अभिव्यक्ति होनी चाहिये कि वे अपने शरीर का उपयोग किस प्रकार करती हैं।
- कुछ लोग वेश्यावृत्ति को एक ऐसे पेशे के रूप में देखते हैं जहाँ महिलाएँ अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग कर सकती हैं।
- दूसरी ओर, समर्थकों का तर्क है कि महिलाओं के पास यह तय करने की अभिव्यक्ति होनी चाहिये कि वे अपने शरीर का उपयोग किस प्रकार करती हैं।
आगे की राह
- भारत में वेश्यावृत्ति के नैतिक निहितार्थ लगातार बहस का विषय बने हुए हैं। किसी के रुख के बावजूद, महिलाओं और लड़कियों को गुलामी का शिकार बनने से रोकने के लिये तस्करी कानूनों को कायम रखना महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- सांस्कृतिक संवेदनशीलता पर विचार करते हुए समुदायों को यौन कार्य पर विविध दृष्टिकोण के प्रति संवेदनशील बनाने के लिये खुले संवाद और शैक्षिक कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- सभी नागरिकों की समानता की कानूनी मान्यता पर ज़ोर दिया जाए, चाहे उनके द्वारा चयनित पेशा कुछ भी हो।