शासन व्यवस्था
गन्ने हेतु अतिरिक्त भुगतान
प्रिलिम्स के लिये:गन्ना, उचित और लाभकारी मूल्य (Fair and Remunerative Price- FRP) मेन्स के लिये:कृषि मूल्य निर्धारण, भारतीय अर्थव्यवस्था में चीनी उत्पादन, गन्ना उद्योग के समक्ष चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ने सहकारी चीनी मिलों द्वारा किसानों को गन्ना हेतु किये गए अतिरिक्त मूल्य भुगतान को "व्यावसायिक व्यय" के रूप में दावा करने की अनुमति प्रदान करके एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है।
गन्ने हेतु अतिरिक्त भुगतान का मुद्दा:
- गन्ना भारत में एक प्रमुख फसल है, खासकर महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में।
- केंद्र प्रत्येक वर्ष गन्ने के लिये उचित और लाभकारी मूल्य निर्धारित करता है, यह चीनी मिलों द्वारा किसानों को उनके गन्ने की खरीद के लिये भुगतान की जाने वाली न्यूनतम राशि है।
- हालाँकि कुछ सहकारी चीनी मिलें, विशेष रूप से महाराष्ट्र में किसानों को प्रोत्साहन अथवा बोनस के रूप में FRP से अधिक का भुगतान करती हैं। इसे अतिरिक्त गन्ना भुगतान (Excess Cane Payment) कहा जाता है।
- इस अतिरिक्त गन्ना भुगतान के कारण सहकारी चीनी मिलों और आयकर विभाग के बीच कर विवाद खड़ा हो गया है।
- ये मिलें अतिरिक्त भुगतान का दावा व्यावसायिक व्यय के रूप में करती हैं, जबकि विभाग इसे मुनाफे का वितरण मानता है और इन पर किसी भी प्रकार की छूट की अनुमति नहीं देता है।
विवाद निपटान की प्रक्रिया:
- भारत सरकार ने वित्त अधिनियम में संशोधन करते हुए वर्ष 2015-16 के केंद्रीय बजट में सहकारी चीनी मिलों को अपनी व्यावसायिक आय की गणना के लिये कटौती के रूप में अतिरिक्त गन्ना भुगतान का दावा करने की अनुमति दी। हालाँकि यह 2016-17 मूल्यांकन वर्ष से लागू किया गया था।
- भारत सरकार ने सत्र 2023-24 के केंद्रीय बजट में सत्र 2015-16 से पहले के सभी वित्तीय वर्षों के लिये कटौती के लाभ में वृद्धि की है। यह आयकर अधिनियम की धारा 155 में संशोधन कर किया गया था।
- इस कदम से वित्तीय वर्ष 2015-16 से पहले किये गए भुगतान के संबंध में लंबित कर मांगों और मुकदमेबाज़ी के विरुद्ध सहकारी चीनी मिलों को लगभग 10,000 करोड़ रुपए की राहत मिलने की उम्मीद है।
उचित और लाभकारी मूल्य (FRP):
- परिचय:
- यह सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य है, चीनी मिलें किसानों से गन्ने की खरीद इस मूल्य पर करने को बाध्य हैं।
- भुगतान और समझौता:
- मिलों को कानूनी तौर पर किसानों से खरीदे गए गन्ने के लिये उन्हें FRP का भुगतान करना आवश्यक है।
- मिलें किसानों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने का विकल्प चुन सकती हैं, जिससे उन्हें किश्तों में FRP का भुगतान करने की अनुमति मिल सके।
- विलंबित भुगतान पर प्रतिवर्ष 15% तक का ब्याज शुल्क लग सकता है और चीनी आयुक्त, मिलों की संपत्तियों को संलग्न करके भुगतान न किये गये FRP की वसूली कर सकते हैं।
- शासी विनियम:
- गन्ने का मूल्य निर्धारण आवश्यक वस्तु अधिनियम (ECA), 1955 के तहत जारी गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 के वैधानिक प्रावधानों द्वारा नियंत्रित होता है।
- नियमों के मुताबिक, FRP का भुगतान गन्ना डिलीवरी के 14 दिनों के अंदर किया जाना चाहिये।
- निर्धारण एवं घोषणा:
- FRP का निर्धारण कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों के आधार पर किया जाता है।
- आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCEA) ने FRP की घोषणा की।
- FRP की घोषणा आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCEA) द्वारा की जाती है।
- विचारणीय कारक:
- FRP में विभिन्न कारकों को ध्यान में रखा जाता है जिसमें गन्ना उत्पादन की लागत, वैकल्पिक फसलों से प्राप्त निधि, कृषि वस्तुओं की कीमतों में रुझान, उपभोक्ताओं को चीनी की उपलब्धता, चीनी का बिक्री मूल्य, गन्ने से चीनी की रिकवरी और गन्ना उत्पादकों के लिये आय सीमा शामिल है।
गन्ना:
- तापमान: गर्म और आर्द्र जलवायु के साथ 21-27°C के बीच।
- वर्षा: लगभग 75-100 सेमी.।
- मिट्टी का प्रकार: गहरी समृद्ध दोमट मिट्टी।
- शीर्ष गन्ना उत्पादक राज्य: उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, बिहार।
- ब्राज़ील के बाद भारत गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- इसे बलुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी तक सभी प्रकार की मृदा में उगाया जा सकता है क्योंकि इसके लिये अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है।
- इसमें बुवाई से लेकर कटाई तक शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है।
- यह चीनी, खांडसारी, गुड़ और शीरे का मुख्य स्रोत है।
- चीनी उपक्रमों को वित्तीय सहायता बढ़ाने की योजना (SEFASU) और जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, गन्ना उत्पादन एवं चीनी उद्योग को समर्थन देने के लिये सरकार की दो योजनाएँ हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रारंभिक परीक्षा:प्रश्न. भारत में गन्ने की खेती के वर्तमान रुझान के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 और 2 उत्तर: (C) व्याख्या:
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
POCSO अधिनियम
प्रिलिम्स के लिये:POCSO अधिनियम, वर्ष 1992 का बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, भारतीय दंड संहिता, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, POCSO न्यायालय मेन्स के लिये:POCSO अधिनियम, कार्यान्वयन के मुद्दे और आगे की राह |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने लोकसभा को सूचित किया है कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिये सरकार द्वारा बनाए गए महत्त्वपूर्ण कानूनों में से एक है।
POCSO अधिनियम:
- परिचय:
- POCSO अधिनियम 14 नवंबर, 2012 को लागू हुआ, जो वर्ष 1992 में बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के भारत के अनुसमर्थन के परिणामस्वरूप अधिनियमित किया गया था।
- इस विशेष कानून का उद्देश्य बच्चों के यौन शोषण और यौन उत्पीड़न के अपराधों को संबोधित करना है, जिन्हें या तो विशेष रूप से परिभाषित नहीं किया गया या पर्याप्त रूप से दंड का प्रावधान नहीं किया गया है।
- यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है। अधिनियम अपराध की गंभीरता के अनुसार सज़ा का प्रावधान करता है।
- बच्चों के साथ होने वाले ऐसे अपराधों को रोकने के उद्देश्य से बच्चों के यौन शोषण के मामलों में मृत्युदंड सहित अधिक कठोर दंड का प्रावधान करने की दिशा में वर्ष 2019 में अधिनियम की समीक्षा तथा इसमें संशोधन किया गया।
- भारत सरकार ने POCSO नियम, 2020 को भी अधिसूचित कर दिया है।
- विशेषताएँ:
- लिंग-निष्पक्ष प्रकृति:
- अधिनियम के अनुसार, लड़के और लड़कियाँ दोनों यौन शोषण के शिकार हो सकते हैं और पीड़ित के लिंग की परवाह किये बिना ऐसा दुर्व्यवहार एक अपराध है।
- यह इस सिद्धांत के अनुरूप है कि सभी बच्चों को यौन दुर्व्यवहार और शोषण से सुरक्षा का अधिकार है तथा लिंग के आधार पर कानूनों को भेदभाव नहीं करना चाहिये।
- अधिनियम के अनुसार, लड़के और लड़कियाँ दोनों यौन शोषण के शिकार हो सकते हैं और पीड़ित के लिंग की परवाह किये बिना ऐसा दुर्व्यवहार एक अपराध है।
- मामलों की रिपोर्टिंग में आसानी:
- न केवल व्यक्तियों द्वारा बल्कि संस्थान भी अब नाबालिगों के साथ यौन दुर्व्यवहार के मामलों की रिपोर्ट करने के लिये पर्याप्त रूप से जागरूक हैं क्योंकि रिपोर्ट न करना POCSO अधिनियम के तहत एक विशिष्ट अपराध बना दिया गया है। इससे बच्चों से संबंधित यौन अपराधों को छिपाना तुलनात्मक रूप से कठिन है।
- शर्तों की स्पष्ट परिभाषा:
- बाल पोर्नोग्राफी से संबंधित सामग्री के संग्रहण को एक नया अपराध बना दिया गया है।
- इसके अलावा 'यौन उत्पीड़न' के अपराध को भारतीय दंड संहिता में 'महिला की लज्जा भंग करने' की अमूर्त परिभाषा के विपरीत स्पष्ट शब्दों में (बढ़ी हुई न्यूनतम सज़ा के साथ) परिभाषित किया गया है।
- लिंग-निष्पक्ष प्रकृति:
- POCSO नियम 2020:
- अंतरिम मुआवज़ा और विशेष राहत:
- POCSO नियमों का नियम-9 विशेष अदालत को FIR दर्ज होने के बाद बच्चे के लिये राहत या पुनर्वास से संबंधित ज़रूरतों हेतु अंतरिम मुआवज़े का आदेश देने की अनुमति देता है। यह मुआवज़ा अंतिम मुआवज़े (यदि कोई हो) के विरुद्ध समायोजित किया जाता है।
- विशेष राहत का तत्काल भुगतान:
- POCSO नियमों के अंर्तगत बाल कल्याण समिति (CWC) ज़िला कानूनी सेवा प्राधिकरण (DLSA), ज़िला बाल संरक्षण इकाई (DCPU) या फंड का उपयोग करके भोजन, कपड़े और परिवहन जैसी आवश्यक ज़रूरतों के लिये तत्काल भुगतान की सिफारिश कर सकती है। इसे किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के अंतर्गत बनाए रखा गया।
- भुगतान CWC की अनुशंसा प्राप्त होने के एक सप्ताह के अंदर किया जाना चाहिये।
- बच्चे के लिये सहायक व्यक्ति:
- POCSO नियम CWC को जाँच और परीक्षण प्रक्रिया के दौरान बच्चे की सहायता के लिये एक सहायक व्यक्ति प्रदान करने का अधिकार देता है।
- सहायता करने वाला व्यक्ति बच्चे के सर्वोत्तम हितों को सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार है, जिसमें शारीरिक, भावनात्मक एवं मानसिक कल्याण, चिकित्सा देखभाल, परामर्श तथा शिक्षा तक पहुँच शामिल है। वह बच्चे एवं उसके माता-पिता या अभिभावकों को मामले से संबंधित अदालती कार्यवाही और विकास के बारे में भी सूचित करेगा।
- अंतरिम मुआवज़ा और विशेष राहत:
- नोट: देश में आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 को आगे बढ़ाते हुए न्याय विभाग ने अक्तूबर 2019 में देश भर में कुल 1023 फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSCs) (389 विशिष्ट POCSO अदालतों सहित) की स्थापना के लिये एक केंद्र प्रायोजित योजना प्रारंभ की है।
- 31 मई, 2023 तक देश भर के 29 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 412 विशिष्ट POCSO (e-POCSO) न्यायालयों सहित कुल 758 FTSCs कार्यरत हैं।
POCSO अधिनियम से जुड़े मुद्दे एवं चुनौतियाँ:
- जाँच से जुड़ा मुद्दा:
- पुलिस बल में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व:
- POCSO अधिनियम में बच्चे के निवास या पसंद के स्थान पर एक महिला उप-निरीक्षक द्वारा प्रभावित बच्चे का बयान दर्ज करने का प्रावधान है।
- ऐसी स्थिति में जब पुलिस बल में महिलाओं की संख्या केवल 10% है, इस प्रावधान का अनुपालन करना व्यावहारिक रूप से असंभव है, साथ ही कई पुलिस स्टेशनों में तो मुश्किल से ही महिला कर्मचारी मौजूद हैं।
- जाँच में कमियाँ:
- हालाँकि ऑडियो-वीडियो माध्यमों का उपयोग करके बयान दर्ज करने का प्रावधान है, फिर भी कुछ मामलों में जाँच एवं अपराध के परिदृश्यों के संरक्षण को लेकर खामियाँ अभी भी मौजूद हैं।
- शफी मोहम्मद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2018) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जघन्य अपराधों के मामलों में जाँच अधिकारी का कर्तव्य है कि वह अपराध स्थल की तस्वीर और वीडियोग्राफी करे, साथ ही उसे साक्ष्य के रूप में संरक्षित करे।
- हालाँकि ऑडियो-वीडियो माध्यमों का उपयोग करके बयान दर्ज करने का प्रावधान है, फिर भी कुछ मामलों में जाँच एवं अपराध के परिदृश्यों के संरक्षण को लेकर खामियाँ अभी भी मौजूद हैं।
- न्यायिक मजिस्ट्रेटों द्वारा कोई परीक्षा नहीं:
- अधिनियम का एक अन्य प्रावधान न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा अभियोजक के बयान की रिकॉर्डिंग को अनिवार्य करता है।
- हालाँकि ऐसे बयान ज़्यादातर मामलों में दर्ज किये जाते हैं, लेकिन न तो न्यायिक मजिस्ट्रेट को मुकदमे के दौरान पूछताछ के लिये बुलाया जाता है और न ही बयान से मुकरने वालों को दंडित किया जाता है। ऐसे में इस तरह के बयान खारिज हो जाते हैं।
- पुलिस बल में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व:
- आयु निर्धारण का मुद्दा:
- यद्यपि किशोर अपराधी का आयु निर्धारण किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 द्वारा निर्देशित है, किशोर पीड़ितों के लिये POCSO अधिनियम के तहत ऐसा कोई प्रावधान मौजूद नहीं है।
- जरनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य (वर्ष 2013) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि प्रदत्त वैधानिक प्रावधान को अपराध के शिकार हुए किसी बच्चे के लिये उसकी आयु निर्धारित करने में भी सहयोगी आधार होना चाहिये।
- हालाँकि कानून में किसी भी बदलाव या विशिष्ट निर्देशों के अभाव में जाँच अधिकारी अभी भी स्कूल प्रवेश-त्याग रजिस्टर में दर्ज जन्मतिथि पर ही भरोसा बनाए हुए हैं।
- यद्यपि किशोर अपराधी का आयु निर्धारण किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 द्वारा निर्देशित है, किशोर पीड़ितों के लिये POCSO अधिनियम के तहत ऐसा कोई प्रावधान मौजूद नहीं है।
- आरोप-पत्र दाखिल करने में देरी:
- POCSO अधिनियम के अनुसार, अधिनियम के तहत दर्ज मामले की जाँच अपराध होने या अपराध की रिपोर्टिंग की तिथि से एक माह की अवधि के भीतर करना आवश्यक है।
- हालाँकि व्यावहारिक रूप से पर्याप्त संसाधनों की कमी, फोरेंसिक साक्ष्य प्राप्त करने में देरी या मामले की जटिलता जैसे विभिन्न कारणों से जाँच पूरी होने में प्रायः एक माह से अधिक का समय लगता है।
- हालिया यौन संबंध को साबित करने के लिये शर्त आरोपित नहीं:
- न्यायालयों को यह विचार करने की आवश्यकता होती है कि अभियुक्त ने POCSO अधिनियम के तहत अपराध किया है।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम (जहाँ अभियोजन पक्ष को साबित करना होता है कि हाल में यौन संबंध बना और इसमें पीड़ित की सहमति शामिल थी) के विपरीत POCSO अधिनियम अभियोजन पक्ष पर कोई शर्त आरोपित नहीं करता है।
- हालाँकि यह देखा गया है कि पीड़ित/पीड़िता के नाबालिग साबित होने के बाद भी न्यायालय द्वारा सुनवाई के दौरान ऐसे किसी अनुमान पर विचार नहीं किया जाता है।
- ऐसे परिदृश्यों में दोषसिद्धि दर में अपेक्षित वृद्धि होने की संभावना नहीं है।
प्रमुख संबंधित पहलें
- बाल दुर्व्यवहार रोकथाम और अन्वेषण इकाई
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
- किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015
- बाल विवाह निषेध अधिनियम (वर्ष 2006)
- बाल श्रम निषेध और विनियमन अधिनियम, 2016
- विशेष फास्ट ट्रैक अदालतों के तहत POCSO अदालतें
आगे की राह
- सरकार को POCSO संबंधी मामलों में जाँच एजेंसियों को धन और कर्मियों जैसे पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने चाहिये। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि मामले की जाँच समयबद्ध और कुशल तरीके से की जाए।
- POCSO मामलों का प्रबंधन करने वाले जाँच अधिकारियों को उचित प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये। इसमें साक्ष्य एकत्र करने एवं संरक्षित करने, बाल पीड़ितों तथा गवाहों के बयान लेने और POCSO अधिनियम की कानूनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु उचित तकनीकों पर प्रशिक्षण प्रदान करना शामिल हो सकता है।
- POCSO मामलों के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना से मामलों का निपटारा त्वरित गति और कुशलता से सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है। इससे सुनवाई की प्रक्रिया में तेज़ी लाने में भी मदद मिलेगी, जो पीड़ित एवं उसके परिवार के लिये महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके कार्यान्वयन की स्थिति पर प्रकाश डालिये। (2016) |
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
नवाचारों के विकास और उपयोग के लिये राष्ट्रीय पहल
प्रिलिम्स के लिये:NIDHI, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद, प्रौद्योगिकी ऊष्मायन एवं उद्यमियों का विकास (TIDE 2.0) मेन्स के लिये:NIDHI का महत्त्व, भारत में स्टार्टअप से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ, स्टार्टअप से संबंधित हालिया सरकारी पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राज्यसभा में एक लिखित जवाब में केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री ने NIDHI (नवाचारों के विकास एवं उपयोग के लिये राष्ट्रीय पहल) के माध्यम से भारत के नवाचार क्षेत्र में उपलब्धियों पर प्रकाश डाला।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology- DST) ने वर्ष 2016 में NIDHI कार्यक्रम शुरू किया था। इसमें स्टार्टअप को प्रोत्साहित करने के लिये अन्य प्रमुख संस्थाओं के साथ सहयोग भी शामिल है।
नवाचारों के विकास और उपयोग के लिये राष्ट्रीय पहल (NIDHI):
- परिचय:
- यह एक अभूतपूर्व पहल है जिसे नवाचार को बढ़ावा देने, स्टार्टअप का समर्थन करने और भारत में एक संपन्न उद्यमशीलता पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने के लिये अभिकल्पित किया गया है।
- इसमें विभिन्न घटक शामिल हैं जो देश भर में नवाचार-संचालित उद्यमों को बढ़ावा देने तथा उनमें तेज़ी लाने के लिये एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करते हैं।
- निधि कार्यक्रम के घटक:
- निधि-प्रयास (युवा और महत्त्वाकांक्षी इनोवेटर्स और स्टार्टअप को बढ़ावा देना और उनमें तेज़ी लाना):
- यह नवीन विचारों को मूर्त प्रोटोटाइप में परिवर्तित करने पर केंद्रित है।
- यह प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट स्तर पर सलाह और वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- निधि उद्यमी-इन-रेज़िडेंस (EIR) कार्यक्रम:
- यह उद्यमिता अपनाने वाले छात्रों को फेलोशिप/छात्रवृत्ति प्रदान करता है।
- इसका उद्देश्य युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित करना है।
- निधि सीड सपोर्ट प्रोग्राम:
- यह स्टार्टअप्स को प्रारंभिक चरण की सीड फंडिंग प्रदान करता है।
- स्टार्टअप्स को नवाचार क्षेत्र में आगे बढ़ने में सक्षम बनाता है।
- निधि त्वरक कार्यक्रम:
- यह स्टार्टअप्स की निवेश तत्परता (Investment Readiness) को गति प्रदान करता है।
- स्टार्टअप्स को विकास और स्केलिंग के लिये आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराता है।
- टेक्नोलॉजी बिज़नेस इन्क्यूबेटर्स (TBI) और उत्कृष्टता केंद्र (CoE):
- यह स्टार्टअप्स को इनक्यूबेट करने के लिये अत्याधुनिक बुनियादी ढाँचे की स्थापना करता है।
- प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देता है।
- NIDHI-समावेशी प्रौद्योगिकी बिज़नेस इन्क्यूबेटर्स (iTBI) कार्यक्रम:
- टियर II और टियर III शहरों में इनोवेशन और स्टार्टअप इनक्यूबेशन इकोसिस्टम को मज़बूत करता है।
- iTBI कार्यक्रम ने भौगोलिक, लैंगिक और विशेष योग्यता वाले व्यक्तियों के संदर्भ में उद्यमशीलता समावेशन को बढ़ाने में मदद की है।
- निधि-प्रयास (युवा और महत्त्वाकांक्षी इनोवेटर्स और स्टार्टअप को बढ़ावा देना और उनमें तेज़ी लाना):
- प्रमुख अभिकर्त्ता और सहयोगी:
- वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR):
- NIDHI अत्याधुनिक इनक्यूबेशन सुविधाओं को आकार देने और विकसित करने के लिये CSIR के साथ मिलकर सहयोग करती है।
- यह उन्नत इनक्यूबेशन सुविधाओं की संकल्पना और विकास में सक्रिय भूमिका निभाती है।
- प्रौद्योगिकी और उत्पादों का समर्थन करना जिससे समाज, उद्योग और देश को लाभ होता है।
- जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) के तहत जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT):
- जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में स्टार्टअप, उद्यमियों और नवप्रवर्तकों को प्रोत्साहित करने के लिये NIDHI ने DBT and BIRAC के साथ साझेदारी की है।
- रणनीतिक सहयोग के माध्यम से वे ट्रांसलेशनल (स्थानांतरण) अनुसंधान चलाते हैं और किफायती बायोटेक समाधानों के निर्माण की सुविधा प्रदान करते हैं।
- किफायती उत्पादों और प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में स्टार्टअप्स, उद्यमियों और नवप्रवर्तकों का समर्थन करता है।
- BIRAC इनक्यूबेशन कार्यक्रम के माध्यम से हुई प्रगति में देश भर में BIRAC के BioNEST और E-YUVA (मूल्य वर्द्धित नवोन्मेषी ट्रांसलेशनल (स्थानांतरण) अनुसंधान के लिये युवाओं को सशक्त बनाना) योजनाओं के माध्यम से समर्थित 75 इनक्यूबेशन केंद्रों की स्थापना, बायोटेक इग्निशन ग्रांट (BIG) के तहत समर्थित लगभग 900 नवीन परियोजनाएँ शामिल हैं।
- रक्षा मंत्रालय (MoD):
- MoD के रक्षा उत्कृष्टता के लिये इनोवेशन (iDEX) के साथ सहयोग करते हुए NIDHI नवाचार के लिये एक गतिशील पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान देती है।
- यह साझेदारी रक्षा और एयरोस्पेस प्रौद्योगिकियों में प्रगति के लिये उद्योगों, स्टार्टअप और अनुसंधान एवं विकास संस्थानों को शामिल करती है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY):
- टेक्नोलॉजी इनक्यूबेशन एंड डेवलपमेंट ऑफ एंटरप्रेन्योर्स (TIDE 2.0) योजना में MeitY के साथ NIDHI की साझेदारी तकनीक-संचालित स्टार्टअप को सशक्त बनाती है।
- साथ में वे प्रौद्योगिकी-आधारित उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करते हैं।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR):
- ICAR के राष्ट्रीय कृषि नवाचार कोष के साथ सहयोग करते हुए, निधि कृषि-तकनीक स्टार्टअप को सशक्त बनाती है।
- उनके संयुक्त प्रयास कृषि-व्यवसाय इनक्यूबेटर (ABI) केंद्र स्थापित करते हैं, जो कृषि में नवीन समाधान खोजते हैं।
- वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR):
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग:
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) की स्थापना 3 मई, 1971 को नेशनल साइंस फाउंडेशन (NSF), USA के मॉडल पर की गई थी।
- यह वित्त पोषण प्रदान करता है और नीतियाँ भी बनाता है तथा अन्य देशों के साथ वैज्ञानिक कार्यों का समन्वय करता है।
- यह वैज्ञानिकों और वैज्ञानिक संस्थानों को सशक्त बनाता है तथा स्कूल कॉलेज, पी.एच.डी., पोस्टडॉक छात्रों, युवा वैज्ञानिकों, स्टार्टअप एवं विज्ञान व प्रौद्योगिकी में काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों से जुड़े हितधारकों के साथ एक उच्च वितरित प्रणाली के तहत भी काम करता है।
भारत के इनोवेशन और स्टार्टअप इकोसिस्टम की स्थिति:
- वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII), 2022 के अनुसार भारत वैश्विक स्तर पर शीर्ष नवीन अर्थव्यवस्थाओं में से 132 देशों में से 40वें स्थान पर है।
- 31 मई, 2023 तक भारत वैश्विक स्तर पर स्टार्टअप्स के लिये तीसरे सबसे बड़े पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में उभरा है।
- जून 2023 तक भारत में कुल 108 यूनिकॉर्न थी जिनकी नेटवर्थ कुल मूल्यांकन 340.80 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
- यूनिकॉर्न की कुल संख्या में से 44 यूनिकॉर्न 2021 में बने और 21 यूनिकॉर्न 2022 में बने।
- अनुसंधान एवं विकास पर भारत का सकल घरेलू व्यय (GERD) वर्ष 2017-18 में सकल घरेलू उत्पाद का 0.65% प्रतिशत था जो वैश्विक औसत 2.2% से कम है और इज़राइल (4.9%), दक्षिण कोरिया (4.5%) और जापान (3.2%) जैसे अग्रणी नवप्रवर्तकों की तुलना में बहुत कम है।
- भारत को अपनी नवाचार और स्टार्टअप यात्रा में फंडिंग, राजस्व सृजन और सहायक बुनियादी ढाँचे जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ता है।
- भारत का सार्वजनिक क्षेत्र देश में कुल अनुसंधान एवं व्यय विकास का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा प्रदान करता है, जबकि निजी क्षेत्र केवल एक-चौथाई योगदान करता है। यह वैश्विक प्रवृत्ति के विपरीत है, जहाँ निजी क्षेत्र अनुसंधान एवं विकास व्यय में प्रमुख भूमिका में है।
भारत में स्टार्ट-अप तथा इनोवेशन को प्रोत्साहित करने से संबंधित अन्य पहल:
- स्टार्टअप्स के लिये फंड ऑफ फंड्स योजना।
- स्टार्टअप्स के लिए क्रेडिट गारंटी योजना।
- स्टार्टअप इंडिया हब।
- स्टार्टअप इंडिया सीड फंड योजना।
- उत्कृष्टता केंद्र
- स्टार्टअप इंडिया एक्शन प्लान।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. उद्यम पूंजी का क्या अर्थ है? (2014) (a) उद्योगों को अल्पकालीन पूंजी प्रदान की गई उत्तर: (b) व्याख्या:
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