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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में गन्ना और चीनी उद्योग हेतु एफआरपी

  • 04 Aug 2022
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

गन्ने की फसल, उचित और लाभकारी मूल्य, इथेनॉल सम्मिश्रण

मेन्स के लिये:

भारत में गन्ना क्षेत्र, इसका महत्त्व और चुनौतियाँ खाद्य सुरक्षा के लिये चुनौतियों के रूप में इथेनॉल सम्मिश्रण।

चर्चा में क्यों?

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने चीनी मौसम 2022-23 (अक्तूबर-सितंबर) के लिये गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) में 15 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की है।

  • चीनी की 10.25 प्रतिशत रिकवरी के लिय प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की वृद्धि के लिये 3.05 रुपये/ क्विंटल का प्रीमियम मिलेगा और रिकवरी में प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की कमी के लिये 3.05 रुपये प्रति/क्विंटल की दर से उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में कमी होगी।
  • रिकवरी दर गन्ने से प्राप्त होने वाली चीनी की मात्रा है और गन्ने से प्राप्त चीनी की मात्रा जितनी अधिक होती है, उतनी ही अधिक कीमत बाज़ार में मिलती है।

गन्ने की खेती:

  • तापमान : उष्ण और आर्द्र जलवायु के साथ 21-27 डिग्री सेल्सियस के बीच।
  • वर्षा: लगभग 75-100 सेमी.।
  • मिट्टी का प्रकार: गहरी समृद्ध दोमट मिट्टी।
  • शीर्ष गन्ना उत्पादक राज्य: महाराष्ट्र>उत्तर प्रदेश> कर्नाटक
  • इसे बलुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी तक सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, क्योंकि इसके लिये अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है।
  • इसमें बुवाई से लेकर कटाई तक शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है। यह चीनी, गुड़, खांडसारी और राब का मुख्य स्रोत है।
  • चीनी उद्योग को समर्थन देने हेतु सरकार की दो पहलें हैं- चीनी उपक्रमों को वित्तीय सहायता देने की योजना (SEFASU) और जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति गन्ना उत्पादन योजना।

गन्ने का मूल्य निर्धारण:

  • गन्ने का मूल्य केंद्र सरकार (संघीय सरकार) और राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित किया जाता है।
  • केंद्र सरकार : उचित और लाभकारी मूल्य (FRP)
    • केंद्र सरकार उचित और लाभकारी मूल्यों की घोषणा करती है जो कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिश पर निर्धारित होते हैं तथा आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) द्वारा घोषित किये जाते हैं।
      • CCEA की अध्यक्षता भारत का प्रधानमंत्री करता है।
    • FRP, गन्ना उद्योग के पुनर्गठन पर बनी रंगराजन समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।
  • राज्य सरकार: राज्य परामर्श मूल्य (SAP)
    • प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों की सरकारों द्वारा SAP की घोषणा की जाती है।
    • SAP आमतौर पर FRP से अधिक होता है।

भारत में गन्ना क्षेत्र की स्थिति:

  • सबसे बड़ा उत्पादक:
    • भारत विश्व में गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक है।
      • भारत ने चालू चीनी सीज़न 2021-22 में चीनी उत्पादन के मामले में ब्राज़ील को पीछे छोड़ दिया है।
    • न्यूनतम मूल्य, गन्ने की गारंटीकृत बिक्री और चीनी के सार्वजनिक वितरण सहित उत्पादन को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों ने भारत को सबसे बड़ा उत्पादक बनने में सहायता की है
    • हालाँकि वर्षा की कमी, भूजल स्तर में गिरावट, गन्ना किसानों को भुगतान में देरी, अन्य फसलों की तुलना में कम शुद्ध आय (किसान के लिये), श्रम की कमी और श्रम की बढ़ती लागत, इसके बाद कोविड -19 महामारी जैसे कारक समग्र रूप से चीनी क्षेत्र के लिये चुनौती उत्पन्न कर रहे हैं।
  • दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक:
    • ब्राज़ील के बाद भारत चीनी का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।
    • भारत ने घरेलू खपत के लिये अपनी आवश्यकता को पूरा करने के अलावा चीनी का निर्यात भी किया है जिससे राजकोषीय घाटे को कम करने में सहायता मिली है।
    • चालू चीनी सीज़न 2021-22 में अगस्त 2022 तक लगभग 100 LMT चीनी का निर्यात किया गया है, जिसके 112 LMT तक पहुँचने की संभावना है।
  • आत्मनिर्भर बनना:
    • इससे पहले चीनी मिलें राजस्व उत्पन्न करने के लिये मुख्य रूप से चीनी के विक्रय पर निर्भर थीं। किसी भी मौसम में अधिशेष उत्पादन उनकी तरलता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है जिससे किसानों का गन्ना मूल्य बकाया हो जाता है।
    • हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में चीनी उद्योग ने आत्मनिर्भरता की स्थिति प्राप्त कर ली है।
      • वर्ष 2013-14 में तेल विपणन कंपनियों (OMCs) को इथेनॉल की बिक्री से चीनी मिलों को लगभग 49,000 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ।
      • चालू चीनी सीन 2021-22 में चीनी मिलों द्वारा OMCs को इथेनॉल की बिक्री से अब तक लगभग 20,000 करोड़ रुपए के राजस्व की प्राप्ति हुई है;
    • केंद्र सरकार द्वारा किये गए उपायों और FRP में वृद्धि ने किसानों को गन्ने की खेती के लिये प्रोत्साहित किया है और चीनी के घरेलू निर्माण के लिये चीनी कारखानों के निरंतर संचालन की सुविधा प्रदान की है।

सरकार द्वारा चीनी उत्पादन को प्रोत्साहित करने के कारण:

  • भारत सरकार कच्चे तेल के आयात पर देश की निर्भरता को कम करने, कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (EBP) को बढ़ावा दे रही है।
    • वर्तमान में भारत अपनी ज़रूरत का 85 फीसदी तेल आयात करता है।
  • इसके अलावा कच्चे तेल पर आयात बिल को कम करने, प्रदूषण को कम करने और देश को पेट्रोलियम क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये, सरकार पेट्रोल के साथ इथेनॉल मिश्रित कार्यक्रम के तहत इथेनॉल के उत्पादन तथा पेट्रोल के साथ इथेनॉल के मिश्रण को बढ़ाने के मार्ग पर सक्रिय रूप से आगे बढ़ रही है।
    • वर्तमान चीनी सीज़न वर्ष 2021-22 में लगभग 35 LMT चीनी को इथेनॉल में बदले जाने का अनुमान है, और वर्ष 2025-26 तक 60 LMT से अधिक चीनी को इथेनॉल में बदलने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जो अतिरिक्त गन्ने की समस्या के साथ-साथ विलंब से होने वाले भुगतान का भी समाधान करेगा, क्योंकि गन्ना किसानों को समय पर भुगतान प्राप्त होगा।
  • सरकार ने वर्ष 2022 तक पेट्रोल के साथ ईंधन ग्रेड इथेनॉल के 10 प्रतिशत मिश्रण का और वर्ष 2025 तक 20 प्रतिशत मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया है ।

चीनी उद्योग से जुड़ी चुनौतियाँ

  • मूल्य निर्धारण नियंत्रण: मांग-आपूर्ति असंतुलन को रोकने के लिये केंद्र और राज्य सरकारें विभिन्न नीतिगत हस्तक्षेपों जैसे- निर्यात शुल्क, चीनी मिलों पर स्टॉक सीमा लगाना, मौसम विज्ञान नियम में बदलाव आदि के माध्यम से चीनी की कीमतों को नियंत्रित कर रही हैं।
    • हालाँकि मूल्य निर्धारण के लिये सरकारी नियंत्रण प्रकृति में लोक-लुभावन है और इससे अक्सर मूल्य विकृति उत्पन्न होती है।
    • इससे चीनी चक्र का बड़े पैमाने पर अधिशेष और गंभीर कमी के बीच दोलन शुरू हो गया है।
  • उच्च आगत और कम उत्पादन लागत: गन्ने की कीमतों में निरंतर वृद्धि की पृष्ठभूमि में हाल के वर्षों में चीनी की गिरती/स्थिर कीमत पिछले कुछ वर्षों में चीनी उद्योग के सामने आने वाली समस्याओं का मुख्य कारण है।
    • इसकी वजह से सरकार को बड़े स्तर पर गन्ना अधिशेष की स्थिति से जूझना पड़ा, जबकि यह उद्योग समय-समय पर सरकार द्वारा वित्तपोषित बेल-आउट पैकेज और सब्सिडी पर जीवित रहा है।
    • व्यवसाय की अव्यवहार्यता के कारण चीनी उद्योग में कोई नया निजी निवेश नहीं किया जा रहा है।
  • चीनी निर्यात अव्यवहार्यता: भारतीय निर्यात अव्यावहारिक है क्योंकि चीनी उत्पादन की लागत अंतर्राष्ट्रीय चीनी मूल्य से काफी अधिक है।
    • सरकार ने निर्यात सब्सिडी प्रदान करके मूल्य अंतर को समाप्त करने की मांग की, लेकिन विश्व व्यापार संगठन में अन्य देशों द्वारा इसका तुरंत विरोध किया गया।
    • इसके अलावा कृषि पर विश्व व्यापार संगठन के समझौते के तहत भारत को दिसंबर, 2023 तक सब्सिडी जारी रखने की अनुमति दी गई है। लेकिन यह समस्या है कि वर्ष 2023 के बाद क्या होगा।
  • भारत के इथेनॉल कार्यक्रम का निराशाजनक प्रदर्शन: ऑटो ईंधन के रूप में उपयोग के लिये पेट्रोल के साथ इथेनॉल का मिश्रण, पहली बार वर्ष 2003 में घोषित किया गया था, लेकिन समस्या कभी समाप्त नहीं हुई।
    • जैसे,सम्मिश्रण के लिये आपूर्ति किये गए इथेनॉल की खराब मूल्य निर्धारण, चीनी की आवधिक कमी और पीने योग्य शराब क्षेत्र से प्रतिस्पर्द्धि मांग।

आगे की राह

  • गन्ना क्षेत्रों के मानचित्रण के लिये सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकियों को तैनात करने की आवश्यकता है।
    • भारत में जल, खाद्य और ऊर्जा क्षेत्रों में गन्ने के महत्त्व के बावजूद हाल के वर्षों और समय शृंखला में गन्ने का कोई विश्वसनीय रोडमैप नहीं है।
  • गन्ने में अनुसंधान और विकास कम उपज तथा कम चीनी प्रतिलाभ दर जैसे मुद्दों को हल करने में मदद कर सकता है।
  • रंगराजन समिति ने चीनी और अन्य उप-उत्पादों की कीमत में गन्ना मूल्य कारक तय करने के लिये एक राजस्व बँटवारा फॉर्मूला सुझाया है।
    • इसके अलावा यदि गन्ने का मूल्य फॉर्मूला द्वारा निकाला जाता है, जिसे सरकार उचित या निर्धारित भुगतान के रूप में मानती है, से नीचे चला जाता है, तो यह इस उद्देश्य के लिये बनाए गए समर्पित फंड के अंतर को समाप्त कर सकता है वही फंड बनाने के लिये उपकर लगाया जा सकता है।
  • सरकार को एथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देना चाहिये। यह देश के तेल आयात लागत को कम करेगा और सुक्रोज़ को इथेनॉल में बदलने एवं चीनी के अतिरिक्त उत्पादन को संतुलित करने में मदद करेगा।

स्रोत: द हिंदू

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