अमूल: भारत के डेयरी क्षेत्र का प्रमुख स्तंभ
प्रिलिम्स के लिये:आनंद पैटर्न, श्वेत क्रांति, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB), विश्व खाद्य कार्यक्रम, राष्ट्रीय गोकुल मिशन, राष्ट्रीय पशुधन मिशन मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था में डेयरी और पशुधन क्षेत्र की भूमिका, इस क्षेत्र से संबंधित मुद्दे और इसके संवर्द्धन के लिये की गई पहल |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री ने गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (Gujarat Cooperative Milk Marketing Federation- GCMMF) के स्वर्ण जयंती समारोह में भाग लिया और आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड (अमूल) की सफलता पर प्रकाश डाला जो GCMMF का हिस्सा है।
अमूल का इतिहास क्या है?
- अमूल की स्थापना वर्ष 1946 में गुजरात के आनंद में कैरा डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन लिमिटेड के रूप में की गई थी।
- इसकी स्थापना त्रिभुवनदास पटेल द्वारा मोरारजी देसाई और सरदार वल्लभभाई पटेल के सहयोग से की गई थी।
- वर्ष 1950 में उक्त सहकारी द्वारा उत्पादित डेयरी उत्पादों के लिये अमूल (आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड) को एक ब्रांड के रूप में गठित किया गया।
- अमूल का प्रबंधन GCMMF द्वारा किया जाता है, जिसमें गुजरात के 3.6 मिलियन से अधिक दुग्ध उत्पादकों का संयुक्त स्वामित्व है।
- अमूल ने सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से लघु उत्पादकों को सशक्त बनाने के लिये डिज़ाइन किये गए एक आर्थिक संगठनात्मक मॉडल, आनंद पैटर्न को अपनाने का बीड़ा उठाया है।
- आनंद पैटर्न एक आर्थिक संगठनात्मक मॉडल है जिसे अमूल ने अपनाने का नेतृत्व किया। इस मॉडल का उद्देश्य सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से लघु दुग्ध उत्पादकों को सशक्त बनाना था।
- यह दृष्टिकोण उत्पादकों के एकीकरण को बढ़ावा देता है और निर्णय करने में वैयक्तिक स्वायत्तता को संरक्षित करते हुए बड़े पैमाने के लाभ अर्जित करने में सहायता प्रदान करता है।
- अमूल की सफलता अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है जो सहकारिता अर्थशास्त्र और ग्रामीण विकास के संबंध में एक केस स्टडी के रूप में भूमिका निभा रहा है।
- अमूल ने भारत की श्वेत क्रांति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका उद्देश्य दुग्ध उत्पादन बढ़ाना तथा भारत को दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना था।
- अमूल ने वर्ष 1955 में दुग्ध पाउडर निर्माण की शुरुआत के साथ भारत में श्वेत क्रांति में अहम भूमिका निभाई।
- 18,000 से अधिक दुग्ध सहकारी समितियों और 36,000 से अधिक किसानों के नेटवर्क के साथ, वर्तमान में अमूल उत्पादों का 50 से अधिक देशों में निर्यात किया जाता है। प्रतिदिन 3.5 करोड़ लीटर से अधिक दुग्ध का प्रसंस्करण करते हुए, अमूल ने पशुपालकों को 200 करोड़ रुपए से अधिक का ऑनलाइन भुगतान किया।
भारत की श्वेत क्रांति या ऑपरेशन फ्लड क्या है?
- पृष्ठभूमि:
- वर्गीस कुरियन ('भारत में श्वेत क्रांति के जनक') की अध्यक्षता में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की स्थापना वर्ष 1965 में भारत के डेयरी उद्योग में क्रांति लाने के लिये की गई थी। सफल "आनंद पैटर्न" से प्रेरित होकर, NDDB द्वारा वर्ष 1970 में श्वेत क्रांति शुरू की गई जिसे ऑपरेशन फ्लड के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें डेयरी सहकारी समितियों के माध्यम से ग्रामीण दुग्ध उत्पादकों को शहरी उपभोक्ताओं से जोड़ा गया।
- इस पहल ने भारत को दुनिया के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक देश में बदल दिया, जिससे दुग्ध उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और इसकी प्रबंधन दक्षता में भी सुधार हुआ।
- ऑपरेशन फ्लड ने डेयरी की कमी वाले राष्ट्र को दुग्ध उत्पादन में वैश्विक नेता में बदल दिया।
- तीन दशकों से अधिक समय में देशव्यापी ऑपरेशन फ्लड तीन चरणों में चलाया गया।
- वर्गीस कुरियन ('भारत में श्वेत क्रांति के जनक') की अध्यक्षता में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की स्थापना वर्ष 1965 में भारत के डेयरी उद्योग में क्रांति लाने के लिये की गई थी। सफल "आनंद पैटर्न" से प्रेरित होकर, NDDB द्वारा वर्ष 1970 में श्वेत क्रांति शुरू की गई जिसे ऑपरेशन फ्लड के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें डेयरी सहकारी समितियों के माध्यम से ग्रामीण दुग्ध उत्पादकों को शहरी उपभोक्ताओं से जोड़ा गया।
- ऑपरेशन फ्लड के चरण:
- चरण-1(1970-1980):
- विश्व खाद्य कार्यक्रम के माध्यम से यूरोपीय संघ (तत्कालीन यूरोपीय आर्थिक समुदाय) द्वारा उपहार में दिये गए स्किम्ड मिल्क पाउडर एवं बटर ऑयल की बिक्री से वित्त पोषण किया जाता है।
- ऑपरेशन फ्लड द्वारा उपभोक्ताओं को 18 मिल्कशेडों के माध्यम से प्रमुख महानगरीय शहरों से जोड़ा गया।
- ग्राम सहकारी समितियों की एक आत्मनिर्भर प्रणाली की नींव की शुरुआत की गई।
- चरण-II (1981-1985):
- मिल्कशेडों को 18 से बढ़ाकर 136 किया गया और साथ ही 290 शहरी बाज़ारों में आउटलेट्स का विस्तार किया गया।
- 43,000 ग्राम सहकारी समितियों की एक आत्मनिर्भर प्रणाली स्थापित की, जिसमें 4.25 मिलियन दुग्ध उत्पादक शामिल थे।
- आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देते हुए, घरेलू दुग्ध पाउडर उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- चरण-III (1985-1996):
- डेयरी सहकारी समितियों को दुग्ध की खरीद और विपणन के लिये बुनियादी ढाँचे का विस्तार एवं सुदृढ़ीकरण करने में सक्षम बनाया गया।
- पशु चिकित्सा स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं, चारा और कृत्रिम गर्भाधान पर ज़ोर दिया गया।
- वर्ष 1988-89 में 30,000 नई डेयरी सहकारी समितियाँ जोड़ी गईं और साथ ही मिल्कशेडों की संख्या 173 तक पहुँच गई।
- चरण-1(1970-1980):
- ऑपरेशन के बाद बाढ़:
- वर्ष 1991 में भारत में उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण सुधार हुए, जिससे डेयरी सहित विभिन्न क्षेत्रों में निजी भागीदारी की अनुमति प्राप्त हुई।
- माल्टेड उत्पादों को छोड़कर, दुग्ध उत्पादों में 51% तक की विदेशी हिस्सेदारी की अनुमति दी गई थी।
- प्रारंभिक चरण में अनियमित डेयरियों का प्रसार देखा गया, जिसके परिणामस्वरूप मिलावटी एवं दूषित दुग्ध वितरण को लेकर समस्या बढ़ी थी।
- इस क्षेत्र को विनियमित करने के साथ-साथ निगरानी करने के लिये वर्ष 1992 में दुग्ध एवं दुग्ध उत्पाद ऑर्डर (MMPO) की स्थापना की गई थी।
- MMPO, भारत सरकार का एक नियामक आदेश है जो दुग्ध और दुग्ध उत्पादों के उत्पादन, आपूर्ति एवं वितरण को नियंत्रित करता है। MMPO को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के तहत प्रख्यापित किया गया था।
- इसका उद्देश्य दुग्ध और दुग्ध उत्पादों की आपूर्ति को बनाए रखने के साथ-साथ उसमें वृद्धि करना है।
- MMPO, भारत सरकार का एक नियामक आदेश है जो दुग्ध और दुग्ध उत्पादों के उत्पादन, आपूर्ति एवं वितरण को नियंत्रित करता है। MMPO को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के तहत प्रख्यापित किया गया था।
- मुख्य रूप से बड़े निजी अभिक र्त्ताओं द्वारा संचालित इस उद्योग की प्रसंस्करण क्षमता में बीते कुछ वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
- वर्ष 1991 में भारत में उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण सुधार हुए, जिससे डेयरी सहित विभिन्न क्षेत्रों में निजी भागीदारी की अनुमति प्राप्त हुई।
- दुग्ध उत्पादन की वर्तमान स्थिति:
- वैश्विक दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से भारत सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है, वर्ष 2021-22 में चौबीस प्रतिशत योगदान के साथ विश्व में पहले स्थान पर है।
- विगत 10 वर्षों में दुग्ध उत्पादन में लगभग 60% की वृद्धि हुई है और प्रति व्यक्ति दुग्ध की उपलब्धता लगभग 40% बढ़ी है।
- शीर्ष 5 दुग्ध उत्पादक राज्य राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और आंध्र प्रदेश हैं।
- वैश्विक औसत 2% की तुलना में भारतीय डेयरी क्षेत्र में प्रति वर्ष 6% की दर से वृद्धि हो रही है।
- वर्ष 2022-23 के दौरान भारत का डेयरी उत्पादों का निर्यात विश्व भर में 67,572.99 मीट्रिक टन था, जिसका मूल्य 284.65 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
डेयरी क्षेत्र से संबंधित पहल क्या हैं?
- पशुपालन अवसंरचना विकास निधि
- डेयरी विकास के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम
- प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना
- पशुपालकों को किसान क्रेडिट कार्ड
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन
भारतीय डेयरी क्षेत्र के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?
- दुग्ध उत्पादन में कमी:
- भारत में प्रति पशु दुग्ध उत्पादन वैश्विक औसत से काफी कम है। इसके लिये खराब गुणवत्ता वाले चारे, पारंपरिक मवेशी नस्लों और उचित पशु चिकित्सा देखभाल की कमी जैसे कारकों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
- दुग्ध संग्रहण और प्रसंस्करण में मुद्दे:
- दुग्ध के संग्रहण, पास्चुरीकरण और परिवहन में चुनौतियाँ महत्त्वपूर्ण बाधाएँ पैदा करती हैं, विशेष रूप से अनौपचारिक डेयरी सेटअप में सुरक्षित दुग्ध प्रबंधन सुनिश्चित करने में।
- दुग्ध के संग्रहण, पास्चुरीकरण और परिवहन में चुनौतिया, विशेष रूप से अनौपचारिक डेयरी सेटअपों में सुरक्षित दुग्ध प्रबंधन सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण बाधाएँ उत्पन्न करती हैं।
- मिलावट संबंधी चिंताएँ:
- गुणवत्ता नियंत्रण में कठिनाइयों के कारण दुग्ध में मिलावट एक लगातार समस्या बनी हुई है।
- लाभ असमानताएँ:
- दुग्ध उत्पादकों को अक्सर बाज़ार दरों की तुलना में कम खरीद मूल्य मिलता है, जिससे मूल्य शृंखला के भीतर लाभ वितरण में असमानताएँ पैदा होती हैं।
- मवेशी स्वास्थ्य चुनौतियाँ:
- खुरपका और मुँहपका रोग, ब्लैक क्वार्टर संक्रमण तथा इन्फ्लुएंजा जैसी बीमारियों का बार-बार फैलने से पशुधन के स्वास्थ्य एवं कम उत्पादकता पर काफी प्रभाव पड़ता है।
- सीमित क्रॉसब्रीडिंग सफलता:
- आनुवंशिक क्षमता में सुधार के लिये विदेशी प्रजातियों के साथ स्वदेशी प्रजातियों को क्रॉसब्रीडिंग करने से सीमित सफलता मिली है।
आगे की राह
- उत्पादकता और स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिये पशु चिकित्सा देखभाल को सुदृढ़ करना, गुणवत्तापूर्ण आहार तथा चारे को सुनिश्चित करना एवं मज़बूत गुणवत्ता नियंत्रण उपायों को लागू करना आवश्यक है।
- दुग्ध संग्रहण, प्रसंस्करण और परिवहन के लिये बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने से परिचालन को सुव्यवस्थित करने एवं सुरक्षित दुग्ध प्रबंधन सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
- पशु स्वास्थ्य और दुग्ध-उत्पादन को बढ़ाने के लिये आनुवंशिकी, पोषण व रोग प्रबंधन में अनुसंधान एवं विकास पर ज़ोर देना महत्त्वपूर्ण होगा।
- किसान सहकारी समितियों को बढ़ावा देना और संधारणीय प्रथाओं को प्रोत्साहित करना छोटे पैमाने के उत्पादकों को सशक्त बना सकता है तथा डेयरी मूल्य शृंखला में समान विकास सुनिश्चित कर सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q.1 भारत की निम्नलिखित फसलों पर विचार कीजिये: (2012)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से दलहन उपयोग दलहन, चारा और हरी खाद के रूप में प्रयोग होता है/होते हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:Q.1 पशुधन पालन में ग्रामीण क्षेत्रों में कृषीतर रोज़गार और आय का प्रबंध करने में पशुधन पालन की बड़ी संभाव्यता है। भारत में इस क्षेत्रक की प्रोन्नति करने के उपयुक्त उपाय सुझाते हुए चर्चा कीजिये। (2015) Q.2 हाल के वर्षों में सहकारी परिसंघवाद की संकल्पना पर अधिकाधिक बल दिया जाता रहा है। विद्यमान संरचनाओं में असुविधाओं और सहकारी परिसंघवाद किस सीमा तक इन सुविधाओं का हल निकाल लेगा, इस पर प्रकाश डालिये। (2015) |
द अनजस्ट क्लाइमेट: FAO
प्रिलिम्स के लिये:द अनजस्ट क्लाइमेट: FAO, खाद्य और कृषि संगठन, जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक वर्षा, हीट स्ट्रेस मेन्स के लिये:द अनजस्ट क्लाइमेट: FAO, कृषि और खाद्य सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसका शीर्षक है- द अनजस्ट क्लाइमेट, यह दर्शाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आय और अनुकूलन पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव लिंग, धन तथा उम्र के साथ कैसे भिन्न होता है।
- FAO ने 24 निम्न मध्यम आय वाले देशों (Lower Middle Income Countries- LMIC) में 950 मिलियन से अधिक लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले 100,000 से अधिक ग्रामीण परिवारों के सामाजिक आर्थिक डेटा का विश्लेषण किया।
- अध्ययन ने आय, श्रम और अनुकूलन रणनीतियों पर जलवायु तनावों के प्रभावों की जाँच करने के लिये धन, लिंग तथा उम्र के आधार पर अंतर करने हेतु इस जानकारी को 70 वर्षों के भू-संदर्भित दैनिक वर्षा एवं तापमान डेटा के साथ एकीकृत किया।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- गरीब ग्रामीण परिवारों पर चरम मौसम का प्रभाव:
- भारत भर में गैर-गरीब परिवारों (Non-Poor Households) और 23 अन्य LMIC की तुलना में अत्यधिक गर्मी के कारण हर दिन गरीब ग्रामीण परिवारों की कृषि आय में 2.4%, फसल मूल्य में 1.1% तथा गैर-कृषि आय में 1.5% की कमी होती है।
- दीर्घकालिक तापमान में 1°C की वृद्धि ग्रामीण गरीब परिवारों को जलवायु-निर्भर कृषि पर अधिक निर्भर होने के लिये प्रेरित करेगी, जिससे कृषि से इतर आय में 33% की कमी आएगी।
- इसी तरह अत्यधिक वर्षा के कारण हर दिन गरीब परिवारों को गैर-गरीब परिवारों की तुलना में अपनी आय का 0.8% का नुकसान होता है, जो मुख्य रूप से गैर-कृषि आय में घाटे के कारण होता है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती आय असमानता:
- संपन्न परिवारों की तुलना में गरीब परिवारों को हीट वेव के कारण अपनी वार्षिक आय का 5.0% तथा बाढ़ के कारण 4.4% की हानि होती है।
- बाढ़ तथा हीट वेव से ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब एवं गैर-गरीब परिवारों के बीच आय का अंतर क्रमशः लगभग 21 बिलियन अमेरिकी डॉलर और साथ ही यह 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष बढ़ जाता है।
- समाधान संबंधी असुरक्षित रणनीतियाँ:
- चरम मौसम की घटनाएँ गरीब ग्रामीण परिवारों को समाधान संबंधी असुरक्षित रणनीतियों (Maladaptive Coping Strategies) को अपनाने के लिये प्रेरित करती हैं, जिसमें पशुधन की संकटपूर्ण बिक्री एवं अपने खेतों से व्यय को पुनर्निर्देशित करना शामिल है।
- बाढ़ एवं सूखे का सामना करने पर गरीब परिवार, गैर-गरीब परिवारों की तुलना में कृषि में अपना निवेश कम कर देते हैं, क्योंकि वे अपने दुर्लभ संसाधनों को कृषि उत्पादन से दूर तत्काल उपभोग की ज़रूरतों की ओर पुनर्निर्देशित करते हैं।
- इन समाधान संबंधी असुरक्षित रणनीतियाँ से उन्हें गैर-गरीब ग्रामीण परिवारों की तुलना में भविष्य के जलवायु तनावों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने की संभावना है।
- राष्ट्रीय जलवायु नीतियों में अपर्याप्त समावेशन:
- राष्ट्रीय जलवायु नीतियाँ मुख्य रूप से ग्रामीण आबादी एवं उनकी जलवायु भेद्यता को नज़रअंदाज़ करती हैं।
- 24 विश्लेषण किये गए देशों के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान तथा राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं (NAP) में 1% से भी कम गरीबों का उल्लेख हैं और साथ ही केवल 6% ग्रामीण समुदायों के किसानों का उल्लेख हैं।
- वर्ष 2017-18 में ट्रैक किये गए जलवायु वित्त का केवल 7.5% जलवायु परिवर्तन अनुकूलन की दिशा में लगाया गया, जिसमें कृषि, वानिकी और साथ ही अन्य भूमि उपयोगों के लिये 3% से कम आवंटित किया गया।
- कृषि नीतियाँ, लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तीकरण के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन में व्याप्त कमज़ोरियों को दूर करने में असफल हो सकती हैं।
- FAO द्वारा वर्ष 2023 में 68 निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों की कृषि नीतियों के विश्लेषण से पता चला कि लगभग 80% नीतियों में महिलाओं के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन पर विचार नहीं किया गया।
जलवायु तनावों को मापना:
- बाढ़
- अत्यधिक वर्षा वाले दिनों की संख्या: अत्यधिक वर्षा तब होती है जब वर्षा दैनिक वर्षा के 95 प्रतिशत से अधिक हो जाती है।
- हीट वेव
- अत्यधिक तापमान वाले दिनों की संख्या:चरम तापमान तब होता है जब अधिकतम तापमान दैनिक अधिकतम तापमान के 99 प्रतिशत से अधिक हो जाता है।
- सूखा
- अत्यधिक शुष्क अवधि से अधिक दिनों की संख्या: अत्यधिक शुष्क अवधि एक ऐसी घटना है जिसकी अवधि लगातार शुष्क दिनों के 95वें प्रतिशत से अधिक होती है।
- जलवायु परिवर्तन
- दो समयावधियों के बीच औसत तापमान में दीर्घकालिक परिवर्तन: वर्ष 1951-1980 और सर्वेक्षण से 30 वर्ष पहले।
रिपोर्ट की अनुशंसाएँ क्या हैं?
- यह प्रस्तावित है कि इन मुद्दों से निपटने के लिये केंद्रित पहल की आवश्यकता है जो विभिन्न ग्रामीण समुदायों को जलवायु-अनुकूली व्यवहार अपनाने में सक्षम बनाती है।
- रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की बहुआयामी जलवायु सुभेद्यता और उत्पादक संसाधनों तक उनकी सीमित पहुँच सहित उनकी विशेष बाधाओं का समाधान करने वाली नीतियों तथा कार्यक्रमों में निवेश करना अत्यावश्यक है।
- रिपोर्ट में सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों, जैसे नकदी-आधारित सामाजिक सहायता कार्यक्रम, को सलाहकार सेवाओं से जोड़ने की अनुशंसा की गई जो अनुकूलन को बढ़ावा दे सकती है और किसानों के नुकसान की भरपाई कर सकती है।
- भेदभावपूर्ण लैंगिक मानदंडों को प्रत्यक्ष रूप से लक्षित करने वाली परिवर्तनकारी पद्धतियाँ उस व्याप्त भेदभाव का भी समाधान करा सकती है जो अमूमन महिलाओं को उनके जीवन को प्रभावित करने वाले आर्थिक निर्णयों पर पूर्ण अधिकार होने से बाधित करती है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने हेतु FAO की क्या पहल हैं?
- जलवायु परिवर्तन पर FAO की रणनीति और कार्य योजना तथा FAO रणनीतिक ढाँचा 2022-2031 में समावेशी जलवायु कार्रवाइयाँ अंतर्निहित हैं, जहाँ जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के लिये चार बेहतरी के लक्ष्य (Four Betters) निर्धारित किये गए हैं जिनमें बेहतर उत्पादन, बेहतर पोषण, बेहतर पर्यावरण और सभी के लिये बेहतर जीवन शामिल है।
- FAO 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा का उल्लंघन किये बिना सतत् विकास लक्ष्य 2 को प्राप्त करने के लिये वैश्विक रोडमैप प्रस्तुत करता है जिसके अनुसार लैंगिक असमानता, जलवायु कार्रवाई और पोषण परस्पर संबंधित मुद्दे हैं तथा कार्रवाई में इन आयामों को शामिल किया जाना चाहिये एवं महिलाओं, युवाओं व मूल निवासियों की समावेशिता को बढ़ावा देना चाहिये।
खाद्य एवं कृषि संगठन क्या है?
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परिचय:
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खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भुखमरी की समस्या का समाधान करने हेतु कार्य करती है।
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प्रत्येक वर्ष विश्व में 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है। यह दिवस वर्ष 1945 में FAO की स्थापना की वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
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यह रोम (इटली) में स्थित संयुक्त राष्ट्र खाद्य सहायता संगठनों में से एक है। इसकी सहयोगी संस्थाएँ विश्व खाद्य कार्यक्रम और अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष (IFAD) हैं।
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FAO की पहलें:
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FAO विश्व स्तर पर मरुस्थलीय टिड्डी की स्थिति पर नज़र रखता है।
- FAO और WHO के खाद्य मानक कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के मामलों के संबंध में कोडेक्स एलेमेंट्रिस आयोग उत्तरदायी निकाय है।
- खाद्य और कृषि के लिये पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि को वर्ष 2001 में FAO के सम्मेलन के 31वें सत्र द्वारा अपनाया गया था।
- प्रमुख प्रकाशन:
- विश्व मत्स्य पालन और जलकृषि की स्थिति
- विश्व के वनों की स्थिति
- विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति
- खाद्य एवं कृषि की स्थिति
- कृषि वस्तु बाज़ार की स्थिति
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q.1 FAO पारंपरिक कृषि प्रणालियों को 'सार्वभौम रूप से महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली [Globally Important Agricultural Heritage System (GIAHS)]' की हैसियत प्रदान करता है। इस पहल का संपूर्ण लक्ष्य क्या है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) मेन्स:Q.1 भूमि एवं जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन मानव विपत्तियों को प्रबल रूप से कम कर देगा। स्पष्ट कीजिये। (2016) |
बाज़ार एकाधिकार एवं प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाएँ
प्रिलिम्स के लिये:बाज़ार एकाधिकार और प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाएँ, गूगल प्ले स्टोर, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग, प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 मेन्स के लिये:बाज़ार एकाधिकार एवं प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाएँ, भारत में बाज़ार एकाधिकार एवं कानून, समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न होने वाले मुद्दे |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गूगल एवं ऐप डेवलपर्स के बीच एक विवाद सामने आया है, जहाँ गूगल द्वारा लगभग एक दर्जन कंपनियों को एंड्रॉयड ऐप्स के लिये अपने बाज़ार से हटा दिया है।
- इस विवाद में बाज़ार एकाधिकार एवं प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं पर चिंताएँ शामिल हैं, जिसमें एंड्रॉइड ऐप बाज़ार पर गूगल का कड़ा नियंत्रण कार्य कर रहा है।
गूगल एवं ऐप डेवलपर्स के बीच मामला क्या है?
- पृष्ठभूमि एवं प्रसंग:
- गूगल का एंड्रॉइड प्लेटफाॅर्म और इसका ऐप मार्केटप्लेस, गूगल प्ले, भारतीय स्मार्टफोन के पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभावी हैं।
- ऐप वितरण एवं राजस्व के लिये गूगल प्ले पर उनकी निर्भरता के कारण, भारतीय डेवलपर्स गूगल के नियमों तथा शुल्कों के अधीन हैं।
- यह विवाद डिजिटल सेवाओं की in-ऐप खरीदारी पर गूगल द्वारा 11% से 30% तक की शुल्क लगाने से उपजा है, जिसे डेवलपर्स नवाचार एवं प्रतिस्पर्द्धा के लिये अत्यधिक होने के साथ ही हानिकारक भी मानते हैं।
- मुद्दे एवं चिंताएँ:
- भारत मैट्रिमोनी तथा डिज़नी + हॉटस्टार जैसे प्रमुख अभिकर्त्ताओं सहित भारतीय ऐप डेवलपर्सों द्वाराआर्थिक बोझ एवं विकल्प की कमी का हवाला देते हुए गूगल द्वारा लागू शुल्क को न्यायालय में चुनौती दी है।
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग द्वारा प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं के लिये गूगल पर ज़ुर्माना लगाया है, जो इसके बाज़ार प्रभुत्व एवं मूल्य निर्धारण नीतियों पर नियामक जाँच का संकेत देता है।
- यह संघर्ष प्लेटफाॅर्म एकाधिकार के साथ छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों (SME), नवाचार एवं उपभोक्ता कल्याण पर उनके प्रभाव के बारे में व्यापक चिंताओं को रेखांकित करता है।
- भारत मैट्रिमोनी तथा डिज़नी + हॉटस्टार जैसे प्रमुख अभिकर्त्ताओं सहित भारतीय ऐप डेवलपर्सों द्वाराआर्थिक बोझ एवं विकल्प की कमी का हवाला देते हुए गूगल द्वारा लागू शुल्क को न्यायालय में चुनौती दी है।
- अंतर्राष्ट्रीय तुलनाएँ:
- टेक अभिकर्त्ताओं तथा ऐप डेवलपर्स के बीच इसी तरह के विवाद विश्व स्तर पर हुए हैं, ऐप्पल को अपने ऐप स्टोर शुल्क एवं प्रथाओं पर जाँच का सामना करना पड़ रहा है।
- यूरोपीय संघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे न्यायक्षेत्रों में कानूनी एवं नियामक कार्रवाइयाँ अविश्वास संबंधी चिंताओं को दूर करने के साथ डिजिटल बाज़ारों में निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को लागू करने के लिये मिसाल के रूप में कार्य करती हैं।
प्ले स्टोर कार्य कैसे करता है?
- गूगल का ऑपरेटिंग सिस्टम एंड्रॉइड सैमसंग, वनप्लस, मोटोरोला एवं ओप्पो समेत अन्य स्मार्टफोन पर चलता है।
- उपयोगकर्त्ता द्वारा खरीदे जाने वाले फोन में कुछ गूगल ऐप्स और प्ले स्टोर पहले से इंस्टॉल आते हैं।
- लेकिन नया ऐप जोड़ने के लिये यूज़र को प्ले स्टोर पर जाकर उसे डाउनलोड करना होगा।
- गूगल पर ऐप्स के पास डिजिटल सेवाओं के लिये भुगतान स्वीकार करने के तीन विकल्प हैं, गूगल की बिलिंग प्रणाली, वैकल्पिक भुगतान जहाँ कंपनी कमीशन प्राप्त करती है और उपभोग मोड जहाँ डेवलपर भुगतान स्वीकार करने के लिये उपयोगकर्त्ता को बाह्य वेबसाइट पर पुनर्निर्देशित करता है।
बाज़ार एकाधिकार क्या है?
- परिचय:
- बाज़ार एकाधिकार उस स्थिति को संदर्भित करता है जिसमें एक एकल कंपनी या कंपनियों का समूह किसी विशेष बाज़ार या उद्योग के महत्त्वपूर्ण हिस्से पर हावी होता है और नियंत्रित करता है।
- एकाधिकार में, केवल एक विक्रेता या निर्माता होता है जो एक विशिष्ट उत्पाद या सेवा प्रदान करता है और उपभोक्ताओं के लिये कोई करीबी विकल्प उपलब्ध नहीं होता है।
- यह एकाधिकारवादी इकाई को पर्याप्त बाज़ार शक्ति प्रदान करता है, जिससे उसे बाज़ार की स्थितियों को प्रभावित करने, कीमतें निर्धारित करने और वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति को नियंत्रित करने की अनुमति मिलती है।
- बाज़ार एकाधिकार की विशेषताएँ:
- एकल विक्रेता या निर्माता:
- एकाधिकार में, केवल एक इकाई होती है जो पूरे बाज़ार पर हावी होती है। यह कंपनी किसी विशेष उत्पाद या सेवा की अनन्य प्रदाता है।
- प्रवेश में उच्च बाधाएँ:
- एकाधिकार अक्सर तब उत्पन्न होता है जब नए प्रतिस्पर्धियों को बाज़ार में प्रवेश करने से रोकने वाली महत्त्वपूर्ण बाधाएँ होती हैं। बाधाओं में उच्च स्टार्टअप लागत, संसाधनों तक विशेष पहुँच, सरकारी नियम या मज़बूत ब्रांड वफादारी शामिल हो सकती है।
- कोई विकल्प न होना:
- एकाधिकारवादी कंपनी द्वारा पेश किये गए उत्पाद या सेवा के लिये उपभोक्ताओं के पास सीमित या कोई वैकल्पिक विकल्प नहीं है। बाज़ार में इसका कोई करीबी विकल्प उपलब्ध नहीं है।
- बाज़ार की शक्ति एवं मूल्य नियंत्रण:
- एकाधिकार बाज़ार में अत्यधिक शक्ति होती है, जो उसे प्रतिस्पर्द्धा के महत्त्वपूर्ण डर के बिना कीमतों को नियंत्रित करने की अनुमति प्रदान करता है। इससे उपभोक्ताओं के लिये कीमतें अधिक हो सकती हैं और संभावित रूप से उत्पादन में कमी आ सकती है।
- आपूर्ति पर प्रभाव:
- एकाधिकार का उत्पाद या सेवा की आपूर्ति पर नियंत्रण होता है। यह उत्पादित मात्रा निर्धारित कर सकता है और साथ ही बाज़ार को प्रभावित करने के लिये आपूर्ति को समायोजित कर सकता है।
- प्रतिस्पर्द्धा का अभाव:
- प्रतिस्पर्द्धियों की अनुपस्थिति के कारण, एकाधिकार ऐसे वातावरण में संचालित होते हैं जहाँ उनके विशिष्ट उत्पाद या सेवा के लिये कोई सीधी प्रतिस्पर्द्धा नहीं होती है। प्रतिस्पर्द्धा की इस कमी के परिणामस्वरूप नवाचार एवं दक्षता के लिये प्रोत्साहन में कमी आ सकती है।
- एकल विक्रेता या निर्माता:
प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं से संबंधित प्रमुख शर्तें क्या हैं?
- बेहद सस्ती कीमत:
- बेहद सस्ती मूल्य निर्धारण तब होता है जब कोई कंपनी प्रतिस्पर्द्धियों को बाज़ार से बाहर करने के लिये जानबूझकर अपनी कीमतें लागत से कम निर्धारित करती है। एक बार जब प्रतिस्पर्द्धा समाप्त हो जाते हैं, तो कंपनी घाटे की भरपाई करने एवं एकाधिकार स्थिति का लाभ प्राप्त करने के लिये कीमतें बढ़ा सकती है।
- कार्टेल:
- कार्टेल स्वतंत्र कंपनियों या राष्ट्रों के समूह हैं जो वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्माण, बिक्री तथा वितरण को नियंत्रित करने के लिये एक साथ आते हैं।
- कार्टेल आमतौर पर अवैध होते हैं और प्रतिस्पर्द्धा विरोधी व्यवहार को बढ़ावा देने के लिये जाने जाते हैं।
- विलय:
- विलय में दो या दो से अधिक कंपनियों का एक इकाई में संयोजन शामिल होता है। हालाँकि सभी विलय प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी नहीं हैं, कुछ विलय किसी विशेष बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा को कम कर देते हैं, जिससे नियामक जाँच हो सकती है।
- मूल्य निर्णय:
- मूल्य भेदभाव तब होता है जब एक विक्रेता एक ही उत्पाद या सेवा के लिये अलग-अलग ग्राहकों से अलग-अलग कीमतें वसूलता है। हालाँकि यह हमेशा अवैध नहीं होता है, लेकिन अगर यह प्रतिस्पर्द्धा को नुकसान पहुँचाता है तो इसे प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी माना जा सकता है।
- मूल्य निर्धारण समझौते:
- मूल्य निर्धारण में प्रतिस्पर्धियों के बीच उनके उत्पादों या सेवाओं के लिये एक विशिष्ट मूल्य निर्धारित करने हेतु एक समझौता शामिल होता है। यह प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त करता है और बनावटी रूप से कीमतें बढ़ाता है, जिससे अविश्वास कानूनों का उल्लंघन होता है।
बाज़ार के एकाधिकार से निपटने के लिये भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय पहल क्या हैं?
- भारतीय:
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002: प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 भारत में अविश्वास मुद्दों को हल करने वाला प्राथमिक कानून है। इसे बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने और बनाए रखने, प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं को रोकने एवं उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- प्रतिस्पर्द्धा संशोधन विधेयक, 2022: प्रस्तावित संशोधन का उद्देश्य नियामक फ्रेमवर्क को और सुदृढ़ करना, उभरती चुनौतियों का समाधान करना तथा प्रतिस्पर्द्धा कानून प्रवर्तन की प्रभावशीलता को बढ़ाना है।
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI): CCI भारतीय बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के तहत प्रतिस्पर्द्धा का नियामक है। यह प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम 2002 के प्रावधानों को लागू करने के लिये ज़िम्मेदार है। इसमें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष व अन्य सदस्य होते हैं।
- CCI प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं, प्रमुख स्थिति के दुरुपयोग और प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी समझौतों की जाँच करती है एवं कार्रवाई करती है।
- प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण और NCLAT: प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण शुरू में CCI के निर्णयों के खिलाफ अपील सुनने के लिये ज़िम्मेदार है।
- हालाँकि वर्ष 2017 में, सरकार ने COMPAT को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण से प्रतिस्थापित कर दिया, जो अब प्रतिस्पर्द्धा मामलों से संबंधित अपीलों को संभालता है।
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002: प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 भारत में अविश्वास मुद्दों को हल करने वाला प्राथमिक कानून है। इसे बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने और बनाए रखने, प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं को रोकने एवं उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- अंतर्राष्ट्रीय पहल:
- OECD प्रतिस्पर्द्धा समिति: आर्थिक सहयोग और विकास संगठन OECD प्रतिस्पर्द्धा समिति सहित विभिन्न पहलों के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं से निपटता है, जो प्रतिस्पर्द्धा से संबंधित मुद्दों पर सदस्य देशों के बीच चर्चा और सहयोग की सुविधा प्रदान करता है।
- व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन: यह प्रतिस्पर्द्धा कानून और नीति पर अपने अंतर सरकारी विशेषज्ञों के समूह के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धा नीति व कानून पर मार्गदर्शन प्रदान करता है तथा प्रभावी प्रतिस्पर्द्धा फ्रेमवर्क को लागू करने में राष्ट्रों का समर्थन करता है।
- यह उपभोक्ताओं का दुरुपयोग से संरक्षण और प्रतिस्पर्द्धा को बाधित करने वाले नियमों पर अंकुश लगाने की नीतियों के विषय में भीं कार्य करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा नेटवर्क (ICN): ICN समग्र विश्व के प्रतिस्पर्द्धा प्राधिकरणों का एक नेटवर्क है। यह वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा चुनौतियों से निपटने के लिये सदस्य न्यायालयों के बीच संचार और सहयोग की सुविधा प्रदान करता है।
- ICN, प्रतिस्पर्द्धा कानून के विभिन्न पहलुओं पर सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने और दिशा-निर्देश तैयार करने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO): मुख्य रूप से व्यापार के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, WTO व्यापार और प्रतिस्पर्द्धा नीति के बीच वार्ता पर कार्य समूह के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धा नीति को संबोधित करता है।
- इसका उद्देश्य प्रतिस्पर्द्धा नीतियों के कारण व्यापार में अनावश्यक बाधाएँ उत्पन्न होने से बचाना है।
आगे की राह
- सार्वजनिक नीति विशेषज्ञ और उद्योग प्रतिनिधि जैसे समर्थक प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने तथा ऐप स्टोर गेटकीपरों के प्रभुत्व को कम करने के लिये नियामक सुधारों का प्रस्ताव कर सकते हैं।
- ऐप स्टोर नीतियों में पारदर्शिता और निष्पक्षता को अनिवार्य बनाना, अधिक भुगतान विकल्पों के साथ डेवलपर्स को सशक्त बनाना तथा वैकल्पिक वितरण चैनलों के उद्भव को सुविधाजनक बनाना महत्त्वपूर्ण है।
- प्लेटफॉर्म प्रदाताओं, डेवलपर्स और उपभोक्ताओं के हितों को संतुलित करने के लिये नवाचार, प्रतिस्पर्द्धा तथा उपभोक्ता कल्याण को प्राथमिकता देने वाले एक समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय विधान के प्रावधानों के अंतर्गत उपभोक्ताओं के अधिकारों/विशेषाधिकारों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2012)
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. क्या वर्ष 1991 में शुरू हुए उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की मांगों के लिये भारत सरकार की व्यवस्था ने पर्याप्त रूप से प्रतिक्रिया दी है? इस महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के प्रति उत्तरदायी होने के लिये सरकार क्या कर सकती है? (2016) |
महिलाएँ, व्यवसाय और कानून 2024
प्रिलिम्स के लिये:आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, लिंगभेद, महिला, व्यवसाय और कानून 2024, विश्व बैंक मेन्स के लिये:महिला, व्यवसाय और कानून 2024, भारत और विश्व में महिलाओं से संबंधित मुद्दे एवं मानव संसाधन के विकास पर इसका प्रभाव। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक समूह ने “महिला, व्यवसाय और कानून 2024” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें वैश्विक कार्यबल में महिलाओं के प्रवेश में बाधा डालने वाली चुनौतियों जो उनकी, परिवार की और उनके समुदाय की समृद्धि में योगदान करने की उनकी क्षमता में बाधा बन रही हैं, का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
महिला व्यवसाय और कानून- 2024 रिपोर्ट क्या है?
- इसके सूचकांक कानून और सार्वजनिक नीति के क्षेत्रों व उन आर्थिक निर्णयों से संबंधित हैं जो महिलाएँ अपने जीवन तथा करियर के दौरान लेती हैं। यह अभिनिर्धारित करती हैं कि कहाँ और किन क्षेत्रों में महिलाओं को बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
- संकेतक: इसमें 10 संकेतक हैं- सुरक्षा, गतिशीलता, कार्यस्थल, वेतन, बाल देखभाल, विवाह, पितृत्व, उद्यमिता, संपत्ति और पेंशन।
- हिंसा से सुरक्षा और बाल देखभाल सेवाओं तक पहुँच अत्यंत महत्त्वपूर्ण संकेतक हैं।
रिपोर्ट के मुख्य तथ्य क्या हैं?
- कानूनी फ्रेमवर्क सूचकांक:
- आर्थिक सहयोग और विकास संगठन की उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में से 11 ने 90 या उससे अधिक अंक प्राप्त किये जिसमें इटली 95 अंकों के साथ अग्रणी है, इसके बाद न्यूज़ीलैंड तथा पुर्तगाल ने 92.5 अंक प्राप्त किये।
- इसके विपरीत, 37 से अधिक अर्थव्यवस्थाएँ महिलाओं को पुरुषों द्वारा प्राप्त आधे से भी कम कानूनी अधिकार प्रदान करती हैं, जिससे लगभग आधा अरब महिलाएँ प्रभावित होती हैं। विशेष रूप से, उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाओं का औसत स्कोर 75.4 है।
- उच्च-मध्यम-आय अर्थव्यवस्थाएँ लगभग 66.8 के औसत स्कोर के निकट हैं। उच्चतम और निम्नतम स्कोरिंग अर्थव्यवस्थाओं के बीच स्कोर का अंतर उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक स्पष्ट है, जिसमें 75 अंकों का पर्याप्त अंतर है।
- महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम कानूनी अधिकार प्राप्त हैं:
- जब हिंसा और बच्चों की देखभाल से जुड़े कानूनी मतभेदों को ध्यान में रखा जाता है, तो विश्व भर में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में केवल 64% कानूनी सुरक्षा मिलती है। यह 77% के पिछले अनुमान से भी कम है।
- महिलाओं के लिये कानूनी सुधारों और वर्तमान परिणामों के बीच अंतर:
- भले ही कई देशों ने लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाले कानून बनाए हैं, लेकिन इन कानूनों और महिलाओं के वर्तमान अनुभवों के बीच एक महत्त्वपूर्ण अंतर है।
- 98 अर्थव्यवस्थाओं ने समान मूल्य के काम के लिये महिलाओं हेतु समान वेतन अनिवार्य करने वाला कानून बनाया है।
- फिर भी केवल 35 अर्थव्यवस्थाएँ, प्रत्येक पाँच में से एक से भी कम, ने वेतन अंतर को दूर करने के लिये वेतन-पारदर्शिता उपायों को अपनाया है।
- देशों द्वारा खराब प्रदर्शन:
- टोगो (Togo) उप-सहारा अर्थव्यवस्थाओं में अग्रणी रहा है, जिसने ऐसे कानून बनाए हैं जो महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले लगभग 77% अधिकार प्रदान करते हैं, जो महाद्वीप के किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक है।
- फिर भी टोगो ने अब तक पूर्ण कार्यान्वयन के लिये आवश्यक केवल 27% प्रणालियाँ स्थापित की हैं।
- यह दर उप-सहारा अर्थव्यवस्थाओं के लिये औसत है।
- वर्ष 2023 में सरकारें कानूनी समान अवसर सुधारों, वेतन, माता-पिता के अधिकार और कार्यस्थल सुरक्षा की तीन श्रेणियों को आगे बढ़ाने में मुखर थीं।
- फिर भी, लगभग सभी देशों ने पहली बार ट्रैक की जा रही दो श्रेणियों- बच्चों की देखभाल तक पहुँच और महिला सुरक्षा, में खराब प्रदर्शन किया।
- टोगो (Togo) उप-सहारा अर्थव्यवस्थाओं में अग्रणी रहा है, जिसने ऐसे कानून बनाए हैं जो महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले लगभग 77% अधिकार प्रदान करते हैं, जो महाद्वीप के किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक है।
- महिला सुरक्षा:
- सबसे बड़ी कमज़ोरी महिला सुरक्षा है, जिसका वैश्विक औसत स्कोर सिर्फ 36 है। महिलाओं को घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, बाल विवाह और स्त्री हत्या के खिलाफ आवश्यक कानूनी सुरक्षा का बमुश्किल एक तिहाई हिस्सा प्राप्त है।
- हालाँकि 151 अर्थव्यवस्थाओं में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को प्रतिबंधित करने वाले कानून हैं, केवल 39 अर्थव्यवस्थाओं में सार्वजनिक स्थानों पर इसे प्रतिबंधित करने वाले कानून हैं। यह अक्सर महिलाओं को काम पर जाने के लिये सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने से रोकता है।
- बाल देखभाल:
- महिलाएँ पुरुषों की तुलना में प्रतिदिन औसतन 2.4 घंटे अधिक अवैतनिक देखभाल कार्य में बिताती हैं, जिसमें से अधिकांश बच्चों की देखभाल पर खर्च होता है।
- केवल 78 अर्थव्यवस्थाएँ, यानी आधे से भी कम, छोटे बच्चों वाले माता-पिता को कुछ वित्तीय या कर सहायता प्रदान करती हैं।
- केवल 62 अर्थव्यवस्थाओं, एक तिहाई से भी कम, में बाल देखभाल सेवाओं को नियंत्रित करने वाले गुणवत्ता मानक हैं, जिनके बिना महिलाएँ काम पर जाने के बारे में दो बार सोच सकती हैं, जबकि उनकी देखभाल में बच्चे हैं।
- महिलाओं के लिये कई बाधाएँ:
- महिलाओं को अन्य क्षेत्रों में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। उदाहरणतः उद्यमिता के क्षेत्र में, प्रत्येक पाँच अर्थव्यवस्थाओं में से केवल एक ही सार्वजनिक खरीद प्रक्रियाओं के लिये लिंग-संवेदनशील मानदंडों को अनिवार्य करती है, जिसका अर्थ है कि महिलाएँ बड़े पैमाने पर 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष के आर्थिक अवसर से वंचित हैं।
- वेतन के संबंध में महिलाओं को पुरुषों को दिये जाने वाले प्रत्येक 1 अमेरिकी डॉलर पर केवल 77 सेंट का पारिश्रमिक प्राप्त होता है। पुरुष तथा महिलाओं को प्रदत्त अधिकारों में व्यापक अंतराल है। विश्व के 62 देशों में पुरुषों और महिलाओं के सेवानिवृत्त होने की आयु एक समान नहीं है।
- महिलाओं का जीवनकाल पुरुषों की तुलना में अधिक होता है किंतु रोज़गार में उन्हें अल्प वेतन मिलता है, बच्चों के जन्म के उपरांत वे अवकाश लेती हैं और समय से पूर्व सेवानिवृत्त हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें पेंशन का अल्प लाभ तथा वृद्धावस्था में अधिक वित्तीय असुरक्षा का सामना करना पड़ता है।
संबद्ध रिपोर्ट में भारत का प्रदर्शन कैसा रहा?
- 74.4% स्कोर के साथ भारत की रैंक साधारण सुधार के साथ 113 हो गई। भारत का स्कोर वर्ष 2021 से स्थिर बना हुआ है किंतु इसकी रैंकिंग वर्ष 2021 में 122 थी जो वर्ष 2022 में घटकर 125 और वर्ष 2023 सूचकांक में 126 हो गई।
- भारतीय महिलाओं के पास पुरुषों की तुलना में केवल 60% कानूनी अधिकार हैं जो वैश्विक परिदृश्य में औसत 64.2% से थोड़ा कम है।
- हालाँकि भारत ने दक्षिण एशियाई देशों से बेहतर प्रदर्शन किया, जहाँ महिलाओं को पुरुषों द्वारा प्राप्त कानूनी सुरक्षा का केवल 45.9% प्राप्त है।
- महिलाओं के संबंध में अवगमन की स्वतंत्रता और विवाह से संबंधित बाधाओं के विषय में भारत को पूर्ण अंक प्रदान किये गए।
- महिलाओं के वेतन को प्रभावित करने वाले कानूनों का मूल्यांकन करने वाले संकेतक में भारत का स्कोर कम रहा।
- संबद्ध विषय में सुधार करने हेतु भारत समान कार्य के लिये समान वेतन अनिवार्य करने, महिलाओं को पुरुषों के समान रात्रि में कार्य करने की अनुमति प्रदान करने तथा महिलाओं को पुरुषों के साथ समान स्तर पर औद्योगिक नौकरियों में शामिल होने में सक्षम बनाने के संबंध में नीतियाँ क्रियान्वित कर सकता है।
- सहायक ढाँचे के विषय में भारत ने वैश्विक और दक्षिण एशियाई देशों से अधिक अंक प्राप्त किये।
रिपोर्ट की अनुशंसाएँ क्या हैं?
- महिलाओं को कार्य करने अथवा व्यवसाय शुरू करने से बाधित करने वाले भेदभावपूर्ण कानूनों और प्रथाओं का उन्मूलन करने से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 20% से अधिक की वृद्धि हो सकती है।
- इसके परिणामस्वरुप आगामी दशक में वैश्विक विकास दर में दोगुना वृद्धि हो सकती है।
- समान अवसर कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन एक पर्याप्त सहायक ढाँचे पर निर्भर करता है, जिसमें सुदृढ़ प्रवर्तन तंत्र, लिंग-संबंधी वेतन असमानताओं का अनुवीक्षण करने के लिये एक प्रणाली और हिंसा से संरक्षित महिलाओं के लिये स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता शामिल है।
- कानूनों में सुधार के प्रयासों में तेज़ी लाना और सार्वजनिक नीतियों को लागू करना पहले से कहीं अधिक आवश्यक है जो महिलाओं को कार्य करने तथा व्यवसाय प्रारंभ करने के साथ-साथ सशक्त बनाते हैं।
- महिलाओं की आर्थिक भागीदारी बढ़ाना तथा उनकी आवाज़ को बुलंद करने के साथ ही उन्हें सीधे प्रभावित करने वाले निर्णयों को आकार देने की कुंजी है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'व्यापार करने की सुविधा के सूचकांक' में भारत की रैंकिंग समाचारों में कभी-कभी दिखती है। निम्नलिखित में से किसने इस रैंकिंग की घोषणा की है? (2016) (a) आर्थिक सहयोग और विकास संगठन उत्तर: (c) प्रश्न. 'विश्व आर्थिक संभावना (ग्लोबल इकनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्रस)' रिपोर्ट आवधिक रूप से निम्नलिखित में से कौन जारी करता है? (2015) (a) एशिया विकास बैंक उत्तर: (d) प्रश्न .3 निम्नलिखित में से कौन-सा संगठन 'विश्व आर्थिक आउटलुक' नामक रिपोर्ट प्रकाशित करता है? (2014) (a) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष उत्तर: (a) प्रश्न. ‘सतत् वन परिदृश्यों के लिये बायोकार्बन फंड पहल का प्रबंधन किसके द्वारा किया जाता है। (2015) (a) एशियाई विकास बैंक उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. हम देश में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों में वृद्धि देख रहे हैं। इसके खिलाफ मौजूदा कानूनी प्रावधानों के बावजूद ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस खतरे से निपटने के लिये कुछ अभिनव उपाय सुझाइये। (2014) प्रश्न.भारत में समय और स्थान के विरुद्ध महिलाओं के लिये निरंतर चुनौतियाँ क्या हैं? (2019)? |