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‘हरित क्रांति’ के लिये व्हाईट मॉडल

  • 06 Dec 2021
  • 9 min read

यह एडिटोरियल 03/12/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “A white touch to a refreshed green revolution” लेख पर आधारित है। इसमें श्वेत क्रांति के सफल मॉडल को हरित क्रांति में उपयोग कर सकने की संभावनाओं के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

हाल ही में देश में 'श्वेत क्रांति' (White Revolution) के नेतृत्वकर्त्ता वर्गीज़ कुरियन की 100वीं जयंती मनाई। श्वेत क्रांति के साथ उन्होंने ‘ऑपरेशन फ्लड’ (Operation Flood) भी लॉन्च किया था, जो दुनिया का सबसे बड़ा डेयरी विकास कार्यक्रम बना।      

ऑपरेशन फ्लड ने 30 वर्षों के अंदर भारत में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता को दोगुना करने में मदद की, जिससे डेयरी फार्मिंग का उभार भारत के सबसे बड़े आत्मनिर्भर ग्रामीण रोज़गार सृजक के रूप में हुआ।   

श्वेत क्रांति की इस सफलता का श्रेय सहकारी या अमूल मॉडल (Amul model) को दिया जा सकता है। अमूल मॉडल ने किसानों को उनके द्वारा सृजित संसाधनों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण प्रदान किया, जिससे उन्हें अपने स्वयं के विकास और बाज़ार को निर्देशित करने में मदद मिली।   

लेकिन हरित क्रांति या अनाज उत्पादन से संबद्ध किसानों को ऐसी ही सफलता नहीं मिली। यदि हरित क्रांति में श्वेत क्रांति से सीखे गए सबक को कार्यान्वित किया जाए तो यह निश्चित रूप से किसान की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकता है।    

हरित क्रांति से संबद्ध चिंताएँ

  • मोनो-क्रॉपिंग: हरित क्रांति मुख्य रूप से गेहूँ, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का जैसे विभिन्न खाद्यान्न पर केंद्रित रही है। इनमें भी गेहूँ और चावल ही इससे सर्वाधिक लाभान्वित हुए हैं।  
    • इसने मोटे अनाज, दलहन और तिलहन उत्पादन के भूमि-क्षेत्रों को खाद्यान्न उत्पादन की ओर मोड़ दिया।
    • इसके परिणामस्वरूप गेहूँ और चावल का तो अत्यधिक उत्पादन होने लगा लेकिन अधिकांश अन्य उत्पादनों में आज भी कमी बनी हुई है।    
    • इसके अलावा, कपास, जूट, चाय और गन्ना जैसी प्रमुख व्यावसायिक फसलें भी हरित क्रांति के प्रभाव से लगभग अछूती बनी रही हैं।   
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: हरित क्रांति प्रौद्योगिकी ने अंतर और अंतरा क्षेत्रीय स्तरों पर आर्थिक विकास के मामले में असमानताओं में वृद्धि को जन्म दिया है।  
    • इससे सबसे अधिक लाभान्वित उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश हुए जबकि दक्षिण में आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु को अधिक लाभ मिला।
    • लेकिन इसने पूर्वी क्षेत्र और पश्चिमी एवं दक्षिणी भारत के शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों को शायद ही कोई लाभ दिया।
  • बड़े किसानों को लाभ: हरित क्रांति का उद्देश्य ‘इकॉनोमिज़ थ्रू स्केल’ (Economies Through Scale) की प्राप्ति के लिये प्रबंधन के तरीकों के साथ वैज्ञानिक सफलताओं को लागू करके उत्पादन में वृद्धि करना था।  
    • हरित क्रांति ने बड़े किसानों को लाभान्वित किया है, क्योंकि उनके पास कृषि उपकरण, उन्नत बीज, उर्वरक खरीदने के वित्तीय संसाधन होते हैं और वे फसलों की सिंचाई के लिये जल की नियमित आपूर्ति की व्यवस्था कर सकते हैं।
  • प्रच्छन्न बेरोज़गारी: हरित क्रांति के अंतर्गत कृषि यंत्रीकरण ने ग्रामीण क्षेत्रों में खेतिहर मज़दूरों के बीच व्यापक बेरोज़गारी उत्पन्न की है।   
    • सबसे अधिक प्रभावित गरीब और भूमिहीन लोग हुए हैं।
  • पर्यावरण का ह्रास: हरित क्रांति ने आर्थिक विकास की तलाश में आधुनिक तकनीकी समाधानों और प्रबंधन विधियों के अनुप्रयोग के साथ ग्रह के प्राकृतिक पर्यावरण का क्षरण किया है।

आगे की राह: श्वेत क्रांति से सीखे गये सबक

  • ‘लोकल सिस्टम्स’ दृष्टिकोण: 'ग्लोबल (या नेशनल) स्केल' समाधानों के बजाय श्वेत क्रांति में आजमाए गये 'लोकल सिस्टम्स’ (Local Systems) समाधानों को आजमाया जा सकता है। उदाहरण के लिये:   
    • स्थानीय पर्यावरण में मौजूद संसाधन कृषि उद्यम के प्रमुख संसाधन होने चाहिये।
  • सहकारी खेती: ‘प्राकृतिक खेती’ (Natural Farming) में सहकारी प्रबंधन के सिद्धांतों के परिणामस्वरूप समावेशन में वृद्धि और पर्यावरणीय संवहनीयता में सुधार के लिये बेहतर आर्थिक नीतियों एवं बेहतर प्रबंधन पद्धतियों का मार्ग प्रशस्त होगा।
  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा देना: दूध की न्यूनतम अस्थिरता का प्रमुख कारण उसकी उच्च प्रोसेसिंग-टू-प्रोडक्शन हिस्सेदारी रही है।  
    • अमूल मॉडल किसानों की सहकारी समितियों से दूध की बड़ी मात्रा में खरीद, प्रसंस्करण, अधिक उत्पादन मौसम के दौरान स्किम्ड मिल्क पाउडर के रूप में अतिरिक्त दूध का भंडारण एवं निम्न उत्पादन मौसम के दौरान इसका उपयोग और एक संगठित खुदरा नेटवर्क के माध्यम से दूध के वितरण पर आधारित है।
    • इस प्रकार, सरकार को कृषि क्षेत्र में भी खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • इस संदर्भ में, सरकार द्वारा कृषि अवसंरचना कोष (Agriculture Infrastructure Fund) के साथ अतिरिक्त 10,000 किसान प्रसंस्करण संगठनों (Farmer Processing Organisations) के निर्माण की घोषणा बेहद आशाजनक है, लेकिन इसे त्वरित गति से लागू करने की आवश्यकता है।    
  • बाज़ार सुधारों की आवश्यकता: ऑपरेशन फ्लड की सफलता से पता चलता है कि APMC में बाज़ार सुधारों की आवश्यकता है जहाँ मौजूदा APMC मंडी अनुबंध खेती अवसंरचना आदि में आमूलचूल बदलाव किया जाना चाहिये।  

निष्कर्ष

श्वेत क्रांति की सफलता का सार इसके लोकतांत्रिक आर्थिक शासन में निहित है, जो लोगों के उद्यम, लोगों के लिये उद्यम और लोगों द्वारा शासित उद्यम के सिद्धांत पर आधारित है।

इस संदर्भ में, यह महत्वपूर्ण है कि श्वेत क्रांति से सीखे गए सबक को हरित क्रांति में पुनः प्राण फूँकने के लिये कार्यान्वित किया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: श्वेत क्रांति की सफलता से सीखे गए सबक को हरित क्रांति को फिर से शुरू करने के लिये इस्तेमाल किया जाना चाहिये। चर्चा करना।

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