चीन में जनसंख्या सर्वेक्षण
प्रिलिम्स के लिये:चीन में जनसंख्या सर्वेक्षण, चीन की जनसंख्या नीतियाँ, संयुक्त राष्ट्र, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) मेन्स के लिये:चीन में जनसंख्या सर्वेक्षण, जनसंख्या और संबंधित मुद्दे, गरीबी तथा विकासात्मक मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन ने जनसंख्या परिवर्तन के कारण 1.4 मिलियन व्यक्तियों पर एक सर्वेक्षण शुरू किया क्योंकि घटती जन्म दर और छह दशकों से अधिक समय में पहली बार जनसंख्या में गिरावट के कारण अधिकारी, व्यक्तियों को अधिक संतान पैदा करने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु संघर्ष कर रहे हैं।
- चीन में 60 से अधिक वर्षों में पहली बार जन्म दर और जनसंख्या में गिरावट के साथ वर्ष 2022 में लगभग 850,000 लोगों की कमी का अनुभव किया गया है।
- वर्ष 1961 में चीन के भीषण अकाल के बाद पहली बार वर्ष 2022 में वहाँ की जनसंख्या में गिरावट का अनुभव किया गया।
जनसंख्या के लिये चीन की अब तक की नीतियाँ:
- वन चाइल्ड पाॅलिसी:
- चीन ने वर्ष 1980 में तब अपनी वन चाइल्ड पाॅलिसी शुरू की, जब वहाँ की सरकार इस बात से चिंतित थी कि देश की बढ़ती जनसंख्या (जो कि उस समय एक अरब के करीब पहुँच रही थी) आर्थिक प्रगति में बाधा बनेगी।
- चीनी अधिकारियों ने लंबे समय से चल रही इस नीति को सफल बताया है और दावा किया है कि इससे देश में 40 करोड़ लोगों के जन्म को रोककर भोजन एवं जल की गंभीर कमी को दूर करने में मदद मिली है।
- यह असंतोष का एक कारण हो सकता है क्योंकि राज्य ने ज़बरन गर्भपात और नसबंदी जैसी क्रूर रणनीति का प्रयोग किया था।
- इसकी नीति की आलोचना भी हुई तथा यह मानवाधिकारों के उल्लंघन और गरीबों के प्रति अन्याय के कारण विवादास्पद रही।
- चीन ने वर्ष 1980 में तब अपनी वन चाइल्ड पाॅलिसी शुरू की, जब वहाँ की सरकार इस बात से चिंतित थी कि देश की बढ़ती जनसंख्या (जो कि उस समय एक अरब के करीब पहुँच रही थी) आर्थिक प्रगति में बाधा बनेगी।
- टू चाइल्ड पाॅलिसी:
- वर्ष 2016 से चीनी सरकार ने अंततः प्रति जोड़े के लिये दो संतान की अनुमति दी, इस नीति परिवर्तन ने जनसंख्या वृद्धि में तेज़ी से गिरावट को रोकने में बहुत कम योगदान दिया।
- थ्री चाइल्ड पाॅलिसी:
- इसकी घोषणा तब की गई जब चीन की वर्ष 2020 की जनगणना के आँकड़ों से पता चला कि वर्ष 2016 की छूट के बावजूद देश की जनसंख्या वृद्धि दर तेज़ी से कम हो रही है।
- देश की प्रजनन दर कम होकर 1.3 हो गई है जो एक पीढ़ी के लिये पर्याप्त संतान पैदा करने हेतु आवश्यक 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से काफी नीचे है।
- संयुक्त राष्ट्र को उम्मीद है कि चीन की जनसंख्या वर्ष 2030 के बाद कम हो जाएगी लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा अगले एक या दो वर्षों में हो सकता है।
चीन में कम होती जनसंख्या को लेकर चिंताएँ:
- श्रम में कमी:
- जब किसी देश में युवा जनसंख्या कम हो जाती है, तो इससे श्रम की कमी की स्थिति उत्पन्न होती है जिसका अर्थव्यवस्था पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
- सामाजिक व्यय में वृद्धि:
- अधिक वृद्ध व्यक्तियों का अर्थ यह भी है कि स्वास्थ्य देखभाल एवं पेंशन की मांग बढ़ सकती है, जिससे देश की सामाजिक व्यय प्रणाली पर तब और अधिक बोझ पड़ेगा जब कम व्यक्ति कार्य कर रहे हैं तथा इसमें योगदान दे रहे हैं।
- विकासशील देशों के लिये महत्त्वपूर्ण:
- चीन को एक मध्यम आय वाले देश के रूप में जनसंख्या गिरावट की एक अनूठी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है जो कि श्रम केंद्रित क्षेत्रों पर निर्भर करता है, जबकि अमीर देश (जापान और जर्मनी) पूंजी और प्रौद्योगिकी में अधिक निवेश कर सकते हैं। इससे इसकी आर्थिक वृद्धि में कमी आ सकती है और भारत जैसे अन्य विकासशील देशों पर इसका असर पड़ सकता है।
- जनसंख्या में गिरावट के कारण विश्व पर विभिन्न प्रभाव पड़ सकते हैं जैसे- वैश्विक आर्थिक विकास में धीमी गति और चीन के विनिर्माण तथा निर्यात पर निर्भर आपूर्ति शृंखला का बाधित होना।
- यह वैश्विक श्रम बाज़ार और उपभोक्ता मांग में अंतर की समस्या से निपटने में अन्य देशों के लिये अवसर के साथ ही चुनौतियाँ भी पैदा कर सकता है।
विश्व की जनसंख्या प्रवृत्तियाँ:
- विश्व की जनसंख्या:
- विश्व की जनसंख्या वर्ष 1950 के अनुमानित 2.5 अरब से बढ़कर नवंबर 2022 के मध्य में 8 अरब तक पहुँच गई, जो मानव विकास में एक मील का पत्थर है। हालाँकि वैश्विक आबादी को 7 से 8 अरब होने में 12 वर्ष लग गए।
- भारत की जनसंख्या:
- संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार, भारत वर्ष 2023 में 142.86 करोड़ व्यक्तियों के साथ चीन को पीछे छोड़कर विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है।
- भारत की 25 प्रतिशत आबादी 0-14 वर्ष, 18 प्रतिशत आबादी 10-19 आयु वर्ग, 26 प्रतिशत आबादी 10-24 वर्ष आयु वर्ग, 68 प्रतिशत आबादी 15-64 वर्ष आयु वर्ग और 7 प्रतिशत आबादी 65 वर्ष से अधिक आयु वर्ग की है।
- संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार, भारत वर्ष 2023 में 142.86 करोड़ व्यक्तियों के साथ चीन को पीछे छोड़कर विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है।
- सर्वाधिक जनसंख्या वृद्धि वाले क्षेत्र:
- अनुमान है कि अब से वर्ष 2050 के बीच विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या वृद्धि अफ्रीका में होगी।
- प्रमुख क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि की दर अफ्रीका में सबसे अधिक है। उप-सहारा अफ्रीका की जनसंख्या वर्ष 2050 तक दोगुनी होने का अनुमान है।
- सीरिया की जनसंख्या में पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 6.39% की वृद्धि हुई, जिससे यह वर्ष 2023 में सबसे अधिक जनसंख्या वृद्धि दर वाला देश बन गया।
- घटती जनसंख्या वाले देश:
- बोस्निया और हर्ज़ेगोविना, बुल्गारिया, क्रोएशिया, हंगरी, जापान, लातविया, लिथुआनिया, मोल्दोवा गणराज्य, रोमानिया, सर्बिया तथा यूक्रेन सहित कई देशों में वर्ष 2050 तक जनसंख्या में 15% से अधिक की गिरावट आने की संभावना है।
- वर्ष 2023 में कुक आइलैंड्स की जनसंख्या गिरावट दर 2.31% के साथ सबसे अधिक है।
चीन में जनसांख्यिकीय बदलाव भारत के लिये सबक:
- कड़े उपायों से बचाव:
- कड़े जनसंख्या नियंत्रण उपायों ने चीन को एक ऐसे मानवीय संकट में डाल दिया है जो अपरिहार्य थे। यदि दो बच्चों की सीमा जैसे कठोर नियम लागू किये जाते हैं, तो भारत की स्थिति और खराब हो सकती है।
- महिला सशक्तीकरण:
- प्रजनन दर को कम करने के सिद्ध तरीकों में महिलाओं को उनकी प्रजनन क्षमता पर नियंत्रण प्रदान करना और शिक्षा, आर्थिक अवसरों एवं स्वास्थ्य देखभाल तक अभिगम बढ़ाकर उनका अधिक सशक्तीकरण सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- वास्तव में चीन की प्रजनन क्षमता में कमी के लिये ज़बरदस्ती नीतियों को लागू करना केवल आंशिक वजह है जबकि यह मुख्य रूप से महिलाओं के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य और नौकरी के अवसरों में देश द्वारा किये गए निरंतर निवेश के कारण है।
- जनसंख्या स्थिरीकरण की आवश्यकता:
- भारत ने अपने परिवार नियोजन उपायों के चलते बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और अब यह प्रजनन क्षमता 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर पर है जो कि अभीष्ट है।
- इसे जनसंख्या स्थिरता को बनाए रखने की आवश्यकता है क्योंकि सिक्किम, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, केरल और कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों में कुल प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से काफी नीचे है, जिसका अर्थ है कि भारत ऐसा 30-40 वर्षों में अनुभव कर सकता है जैसा कि चीन अब अनुभव कर रहा है।
जनसंख्या नियंत्रण हेतु भारत द्वारा उठाए गए कदम:
- भारत 1950 के दशक में राज्य प्रायोजित परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू करने वाले पहले विकासशील देशों में से एक बन गया।
- वर्ष 1952 में एक जनसंख्या नीति समिति की स्थापना की गई।
- वर्ष 1956 में एक केंद्रीय परिवार नियोजन बोर्ड की स्थापना की गई और इसका ध्यान नसबंदी पर था।
- वर्ष 1976 में भारत सरकार ने पहली राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की।
- राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000 में भारत के लिये एक स्थिर जनसंख्या प्राप्त करने की परिकल्पना की गई है।
- नीति का लक्ष्य वर्ष 2045 तक स्थिर जनसंख्या प्राप्त करना है।
- इसका एक तात्कालिक उद्देश्य गर्भनिरोधक, स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे एवं कर्मियों की ज़रूरतों को पूरा करना, प्रजनन और बाल स्वास्थ्य से जुड़ी बुनियादी देखभाल के लिये एकीकृत सेवा वितरण प्रदान करना है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)
- जनसंख्या की बढ़ती दर की समस्या से निपटने में शिक्षा के महत्त्व को महसूस करते हुए शिक्षा मंत्रालय ने वर्ष 1980 से जनसंख्या शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया।
- जनसंख्या शिक्षा कार्यक्रम एक केंद्रीय स्तर की योजना है जिसे औपचारिक शिक्षा प्रणाली में जनसंख्या संबंधी शिक्षा शुरू करने के लिये तैयार किया गया है।
- इसे जनसंख्या गतिविधियों के लिये संयुक्त राष्ट्र कोष (UNFPA) के सहयोग से तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की सक्रिय भागीदारी के साथ विकसित किया गया है।
निष्कर्ष:
- भारत के पास वर्ष 2040 तक अपनी युवा आबादी (जनसांख्यिकीय लाभांश) से लाभ उठाने का मौका है- जैसा कि चीन ने 2015 तक किया था।
- लेकिन यह युवाओं के लिये अच्छी नौकरी के अवसर उपलब्ध कराने पर निर्भर करता है। उन अवसरों के बिना भारत का जनसांख्यिकीय लाभ, लाभ के बजाय समस्या बन सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. किसी भी देश के संदर्भ में निम्नलिखित में से किसे उस देश की सामाजिक पूंजी (सोशल कैपिटल) के भाग के रूप समझा जाएगा? (2019) (a) जनसंख्या में साक्षरों का अनुपात। उत्तर: (d) प्रश्न. भारत को "जनसांख्यिकीय लाभांश" वाला देश माना जाता है। इसकी वजह है: (2011) (a) इसकी 15 वर्ष से कम आयु वर्ग में उच्च जनसंख्या। उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021) प्रश्न. ''महिला सशक्तीकरण जनसंख्या संवृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।'' चर्चा कीजिये। (2019) प्रश्न. समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये कि क्या बढ़ती हुई जनसंख्या निर्धनता का मुख्य कारण है या निर्धनता जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण है। (2015) |
अडैप्टेशन गैप रिपोर्ट, 2023
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र (UN), अडैप्टेशन गैप रिपोर्ट, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC), विश्व बैंक (WB), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलनशीलता को बढ़ावा देने के लिये जलवायु वित्तपोषण में सुधार की तत्काल आवश्यकता |
स्रोत: इडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा जारी अडैप्टेशन गैप रिपोर्ट, 2023 के नवीनतम संस्करण के अनुसार, विकासशील देशों को सार्थक अनुकूलन कार्यों हेतु इस दशक में प्रत्येक वर्ष कम से कम 215 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है। वर्ष 2021 में अनुकूलन परियोजनाओं के लिये विकासशील देशों को लगभग 21 बिलियन अमेरिकी डॉलर दिये गए, जो विगत वर्षों की तुलना में लगभग 15% कम था।
- इस वर्ष की रिपोर्ट अनुकूलन अथवा अनुकूलन परियोजनाओं को पूरा करने के लिये धन की उपलब्धता पर केंद्रित है।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:
- अनुकूलन वित्त अंतर:
- अनुकूलन वित्त अंतर का आशय अनुमानित अनुकूलन वित्तपोषण आवश्यकताओं तथा लागत व वित्त प्रवाह के बीच के अंतर से है जो समय के साथ और बढ़ गया है।
- अनुकूलन अंतर के वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय अनुकूलन वित्त प्रवाह से 10-18 गुना अधिक होने की संभावना है जो विगत अनुमानों की तुलना में लगभग 50% अधिक है।
- वर्तमान अनुकूलन वित्त अंतर अब प्रतिवर्ष 194-366 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है।
- वित्तपोषण के लिये लैंगिक समानता:
- अनुकूलन के लिये अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक वित्तपोषण का केवल 2%, जिसमें लैंगिक समानता को प्राथमिक लक्ष्य के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, का मूल्यांकन लैंगिक रूप से उत्तरदायी के रूप में किया गया है, शेष 24% या तो लिंग-विशिष्ट अथवा एकीकृत है।
- वित्तपोषण बढ़ाने हेतु सात उपाय:
- निजी वित्तपोषण:
- घरेलू व्यय एवं निजी वित्तपोषण संभावित रूप से अनुकूलन वित्त के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं, घरेलू बजट कई विकासशील देशों में अनुकूलन के लिये वित्तपोषण का एक बड़ा स्रोत हो सकता है, जो सरकारी बजट के 0.2% से लेकर 5% तक हो सकता है।
- समग्र विश्व में जल, भोजन व कृषि; परिवहन एवं बुनियादी ढाँचा; पर्यटन जैसे अधिकांश क्षेत्रों में निजी क्षेत्र के अनुकूलन हस्तक्षेप में वृद्धि हुई है।
- घरेलू व्यय एवं निजी वित्तपोषण संभावित रूप से अनुकूलन वित्त के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं, घरेलू बजट कई विकासशील देशों में अनुकूलन के लिये वित्तपोषण का एक बड़ा स्रोत हो सकता है, जो सरकारी बजट के 0.2% से लेकर 5% तक हो सकता है।
- आंतरिक निवेश:
- बड़ी कंपनियों द्वारा 'आंतरिक निवेश', वित्तीय संस्थानों द्वारा अनुकूलन में योगदान देने वाली गतिविधियों के लिये वित्त का प्रावधान और कंपनियों द्वारा अनुकूलन वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रावधान की बहुत आवश्यकता है।
- इसके अलावा भारत में जलवायु वित्तपोषण और अनुकूलन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के विकल्प भी तलाशे जा सकते हैं।
- बड़ी कंपनियों द्वारा 'आंतरिक निवेश', वित्तीय संस्थानों द्वारा अनुकूलन में योगदान देने वाली गतिविधियों के लिये वित्त का प्रावधान और कंपनियों द्वारा अनुकूलन वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रावधान की बहुत आवश्यकता है।
- वैश्विक वित्तीय ढाँचे का सुधार:
- रिपोर्ट में वैश्विक वित्तीय ढाँचे में सुधार का आह्वान किया गया है, ताकि बहुपक्षीय एजेंसियों विश्व बैंक या अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से जलवायु-संबंधी उद्देश्यों हेतु वित्त की अधिक और आसान पहुँच सुनिश्चित की जा सके, क्योंकि यह स्पष्ट हो गया है कि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रवाह का मौजूदा स्तर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये पर्याप्त नहीं है।
- निजी वित्तपोषण:
विकासशील देशों के लिये जलवायु वित्तपोषण संबंधी चिंताएँ:
- विकासशील देशों की सीमित क्षमता:
- जीवन, आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने के लिये अनुकूलन आवश्यक है, विशेष रूप से सीमित लचीलेपन वाले विकासशील तथा आर्थिक रूप से कमज़ोर देशों में, क्योंकि इनके पास जलवायु परिवर्तन के चल रहे प्रभावों को नियंत्रित करने के लिये कोई तत्काल समाधान नहीं है। इन अनुकूलन उपायों के लिये पर्याप्त जलवायु वित्तपोषण की आवश्यकता होती है।
- विकासशील देशों द्वारा अनुकूलन उपायों की व्यवहार्यता:
- देश अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं के आधार पर विभिन्न अनुकूलन उपाय करते हैं जिनमें समुद्र तटीय क्षेत्रों को सुदृढ़ करना, द्वीपीय राष्ट्रों में समुद्री अवरोधों का निर्माण करना, उष्म प्रतिरोधी फसलों के साथ प्रयोग करना, जलवायु-लचीला बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना, जल स्रोतों को सुरक्षित करना और स्थानीय आबादी को बढ़ते तापमान तथा उनके दुष्परिणाम से बेहतर ढंग से निपटने में मदद करने के लिये इसी तरह के प्रयास शामिल हैं।
- लेकिन ये अनुकूली उपाय सरकारों की बजटीय पहुँच से परे वित्तीय दायित्व थोपते हैं।
- देश अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं के आधार पर विभिन्न अनुकूलन उपाय करते हैं जिनमें समुद्र तटीय क्षेत्रों को सुदृढ़ करना, द्वीपीय राष्ट्रों में समुद्री अवरोधों का निर्माण करना, उष्म प्रतिरोधी फसलों के साथ प्रयोग करना, जलवायु-लचीला बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना, जल स्रोतों को सुरक्षित करना और स्थानीय आबादी को बढ़ते तापमान तथा उनके दुष्परिणाम से बेहतर ढंग से निपटने में मदद करने के लिये इसी तरह के प्रयास शामिल हैं।
- विकसित देशों की ओर से सक्रियता का अभाव:
- अंतर्राष्ट्रीय जलवायु समझौतों के अनुसार, विकसित देश जलवायु परिवर्तन के अनुकूल विकासशील देशों के समर्थन हेतु वित्तीय सहायता और प्रौद्योगिकी प्रदान करने के लिये बाध्य हैं।
- विकसित देश विभिन्न सम्मेलनों और संधियों के बावज़ूद अपेक्षित धन जुटाने में विफल रहे हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय जलवायु समझौतों के अनुसार, विकसित देश जलवायु परिवर्तन के अनुकूल विकासशील देशों के समर्थन हेतु वित्तीय सहायता और प्रौद्योगिकी प्रदान करने के लिये बाध्य हैं।
- आवश्यकता से कम निधि की उपलब्धता:
- अधिकांश विकासशील देशों ने अपनी अनुकूलन आवश्यकताओं को अपनी जलवायु कार्य योजनाओं में सूचीबद्ध किया है, जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) कहा जाता है, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में हर देश के योगदान का दस्तावेज़ीकरण करना चाहते हैं।
विकसित देशों द्वारा प्रयास:
- 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लक्ष्य:
- विकसित देशों ने वर्ष 2009 में ही वादा किया था कि वे वर्ष 2020 से प्रत्येक वर्ष जलवायु वित्त से कम से कम 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाएँगे, लेकिन समय सीमा के तीन वर्ष बाद भी, वह राशि प्राप्त नहीं हुई है।
- UNFCCC प्लेटफार्म:
- वर्तमान में अनुकूलन तथा अन्य सभी प्रकार की जलवायु आवश्यकताओं के लिये वित्त प्रवाह को बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं, जिसे जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC) के माध्यम से जलवायु वित्त कहा जाता है।
- लेकिन जलवायु वित्त की आवश्यकता आसमान छू रही है और अब प्रत्येक वर्ष ट्रिलियन डॉलर होने का अनुमान है।
- वर्तमान में अनुकूलन तथा अन्य सभी प्रकार की जलवायु आवश्यकताओं के लिये वित्त प्रवाह को बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं, जिसे जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC) के माध्यम से जलवायु वित्त कहा जाता है।
- ग्लासगो जलवायु सम्मेलन:
- वर्ष 2021 में ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में विकसित देशों ने अनुकूलन के लिये अनुमोदित राशि को दोगुना करने की प्रतिबद्धता जताई थी।
- इसके अतिरिक्त एक अन्य समझौता यह भी है कि वर्ष 2025 तक प्रत्येक वर्ष 100 बिलियन अमरीकी डाॅलर से अधिक का एक नया जलवायु वित्तपोषण लक्ष्य निर्धारित किया जाएगा।
- वर्ष 2021 में ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में विकसित देशों ने अनुकूलन के लिये अनुमोदित राशि को दोगुना करने की प्रतिबद्धता जताई थी।
- नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य:
- वर्ष 2025 तक अनुकूलन वित्त को दोगुना करना और वर्ष 2030 के लिये नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य जिस पर अभी विचार चल रहा है, विकासशील देशों की सहायता से जलवायु वित्त अंतर को कम करने में सहायक होगा।
जलवायु वित्तपोषण:
- परिचय:
- यह स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण को संदर्भित करता है जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन पहल को बढ़ावा देना है। यह सार्वजनिक, निजी या वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोतों से एकत्रित किया जा सकता है।
- यह शमन और अनुकूलन कार्यों का समर्थन करना चाहता है जो जलवायु परिवर्तन को संबोधित करेंगे।
- यह स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण को संदर्भित करता है जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन पहल को बढ़ावा देना है। यह सार्वजनिक, निजी या वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोतों से एकत्रित किया जा सकता है।
- साझा किंतु विभेदित उत्तरदायित्व (Common But Differentiated Responsibility- CBDR):
- UNFCCC, क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते में अधिक वित्तीय संसाधनों (विकसित देशों) वाले देशों से उन देशों को वित्तीय सहायता देने का आह्वान किया गया है जो कम संपन्न तथा अधिक असुरक्षित (विकासशील देश) हैं।
- यह CBDR के सिद्धांत के अनुरूप है।
- UNFCCC, क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते में अधिक वित्तीय संसाधनों (विकसित देशों) वाले देशों से उन देशों को वित्तीय सहायता देने का आह्वान किया गया है जो कम संपन्न तथा अधिक असुरक्षित (विकासशील देश) हैं।
- काॅन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़-26 (COP 26):
- UNFCC, COP26 में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को अपनाने के वैश्विक लक्ष्य को प्राप्त करने में विकासशील देशों का समर्थन करने के लिये नई वित्तीय प्रतिज्ञाएँ की गईं।
- COP26 में सहमत अंतर्राष्ट्रीय कार्बन व्यापार तंत्र के नए नियम अनुकूलन वित्तपोषण का समर्थन करेंगे।
- UNFCC, COP26 में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को अपनाने के वैश्विक लक्ष्य को प्राप्त करने में विकासशील देशों का समर्थन करने के लिये नई वित्तीय प्रतिज्ञाएँ की गईं।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC), 2018:
- जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न मुद्दों से निपटने और पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु जलवायु वित्त महत्त्वपूर्ण है, जैसा कि IPCC रिपोर्ट 2018 में कहा गया था।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न.वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)
निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: b प्रश्न. “मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” यह पहल किसके द्वारा शुरू की गई थी? (2018) (a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न.संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के पक्षकारों के सम्मेलन (COP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई प्रतिबद्धताएँ क्या हैं? (2021) |
S-400 मिसाइल और प्रोजेक्ट कुश
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय वायु सेना (IAF), S-400 ट्रायम्फ मिसाइल सिस्टम, प्रोजेक्ट कुश मेन्स के लिये:प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण, भारत द्वारा एस-400 मिसाइल प्रणाली की खरीद का महत्त्व |
स्रोत: लाइव मिंट
चर्चा में क्यों?
भारतीय वायु सेना (IAF) ने अपनी रक्षा क्षमताओं को मज़बूत करने के लिये चीन और पाकिस्तान के साथ सीमाओं पर तीन S-400 ट्रायम्फ वायु रक्षा मिसाइल स्क्वाड्रन तैनात किये हैं।
- भारत ने वर्ष 2018-19 में रूस के साथ पाँच S-400 मिसाइल स्क्वाड्रन के लिये एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये। इनमें से तीन भारत को प्राप्त हो चुके हैं जबकि बाकी दो की प्राप्ति में रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण देरी हो रही है।
- एक अन्य पहल के अंतर्गत भारतीय रक्षा अधिग्रहण परिषद् ने हाल ही में प्रोजेक्ट कुश के तहत लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली (LRSAM) प्रणाली की खरीद को मंज़ूरी दी है।
S-400 ट्रायम्फ मिसाइल सिस्टम:
- परिचय:
- S-400 ट्रायम्फ रूस द्वारा विकसित एक मोबाइल, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (SAM) प्रणाली है, जो विमान, ड्रोन, क्रूज़ मिसाइल और बैलिस्टिक मिसाइल जैसे विभिन्न हवाई लक्ष्यों को रोकने तथा नष्ट करने में सक्षम है।
- S-400 की मारक क्षमता 30 किमी. की ऊँचाई के साथ 400 किमी. तक है और यह चार अलग-अलग प्रकार की मिसाइलों के साथ एक साथ 36 लक्ष्यों पर हमला कर सकती है।
- यह परिचालन हेतु तैनात विश्व में आधुनिक सबसे खतरनाक लंबी दूरी की SAM (MLR SAM) है, जिसे अमेरिका द्वारा विकसित टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस सिस्टम (THAAD) से काफी उन्नत माना जाता है।
- भारत के लिये महत्त्व:
- भारत ने चीन और पाकिस्तान के खिलाफ अपनी वायु रक्षा क्षमताओं और निवारक मुद्रा को बढ़ावा देने के लिये S-400 मिसाइलों की खरीद का फैसला किया, जो अपनी वायु सेना एवं मिसाइल शस्त्रागार का आधुनिकीकरण तथा विस्तार कर रहे हैं।
- भारत को चीन और पाकिस्तान से दो मोर्चों पर खतरा है, जो वर्षों से भारत के साथ कई सीमा विवादों और संघर्षों में शामिल रहे हैं।
- चीन हिंद महासागर क्षेत्र में बंदरगाहों, हवाई अड्डों एवं बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का निर्माण कर रहा है, ताकि संबद्ध क्षेत्र में उपस्थिति और प्रभाव को बढ़ाया जा सके तथा उसका सामना करने के किये भारत के लिये यह अधिग्रहण महत्त्वपूर्ण है।
- वैश्विक व्यवस्था की अनिश्चितता एवं अस्थिरता के बीच भी भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना चाहता है तथा अपने रक्षा साझेदारों में विविधता लाना चाहता है।
- भारत ने चीन और पाकिस्तान के खिलाफ अपनी वायु रक्षा क्षमताओं और निवारक मुद्रा को बढ़ावा देने के लिये S-400 मिसाइलों की खरीद का फैसला किया, जो अपनी वायु सेना एवं मिसाइल शस्त्रागार का आधुनिकीकरण तथा विस्तार कर रहे हैं।
प्रोजेक्ट कुश:
- रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के नेतृत्व में प्रोजेक्ट कुश भारत की एक महत्त्वाकांक्षी रक्षा पहल है जिसका उद्देश्य वर्ष 2028-29 तक लंबी दूरी की अपनी वायु रक्षा प्रणाली विकसित करना है।
- लंबी दूरी की वायु रक्षा प्रणालियाँ, क्रूज़ मिसाइल, स्टील्थ फाइटर जेट तथा ड्रोन सहित दुश्मन के प्रोजेक्टाइल एवं कवच का पता लगाने व उन्हें नष्ट करने में सक्षम होंगी।
- इसमें तीन प्रकार की इंटरसेप्टर मिसाइलें, जिनमें 150 किलोमीटर, 250 किलोमीटर व 350 किलोमीटर की रेंज के साथ ही निगरानी हेतु उन्नत अग्नि नियंत्रण रडार शामिल होंगे।
- ऐसा अनुमान है कि प्रोजेक्ट कुश प्रभावकारिता के मामले में इज़रायल के आयरन डोम प्रणाली एवं रूस की प्रसिद्ध S-400 प्रणाली से बेहतर प्रदर्शन करेगा।
इज़रायल की आयरन डोम प्रणाली:
- यह ज़मीन से हवा में मार करने वाली रक्षा प्रणाली है जिसमें रडार एवं इंटरसेप्टर मिसाइलें शामिल हैं जो इज़रायल में लक्ष्य की ओर दागे गए किसी भी रॉकेट अथवा मिसाइल को ट्रैक करने और निष्क्रिय करने में सक्षम हैं।
- इसे राज्य द्वारा संचालित राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम (Rafael Advanced Defense System) एवं इज़रायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज़ (Israel Aerospace Industries) द्वारा विकसित किया गया है तथा वर्ष 2011 में तैनात किया गया था।
- यह प्रणाली रॉकेट, तोपखाने तथा मोर्टार के साथ-साथ विमान, हेलीकॉप्टर एवं मानव रहित हवाई वाहनों (Unmanned Aerial Vehicles- UAV) से बचाव में विशेष रूप से उपयोगी है।
- डोम की क्षमता लगभग 70 किलोमीटर है तथा इसमें डिटेक्शन व ट्रैकिंग रडार, बैटल मैनेजमेंट और हथियार नियंत्रण तथा मिसाइल लॉन्चर जैसे तीन महत्त्वपूर्ण घटक शामिल हैं ।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला "टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD)" क्या है? (2018) (a) एक इज़रायली रडार प्रणाली उत्तर: (c) प्रश्न: अग्नि-IV मिसाइल के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) व्याख्या:
अत: विकल्प (a) सही उत्तर है। मेन्स:प्रश्न. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2020) |
भारत का डीप ओशन मिशन
प्रिलिम्स के लिये:डीप ओशन मिशन, डीप-सी माइनिंग, समुद्रयान, मैटिसा 6000, वराह, डिकेड ऑफ ओशन साइंस, बायोमिमिक्री मेन्स के लिये:डीप ओशन मिशन के प्रमुख स्तंभ, डीप ओशन अन्वेषण में प्रमुख चुनौतियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत समुद्र की गहराई का पता लगाने और उसका दोहन करने के लिये एक ऐतिहासिक डीप ओशन मिशन की तैयारी कर रहा है, यह एक ऐसी सीमा है जिसके बारे में काफी कम जानकारी प्राप्त है तथा इसमें वैज्ञानिक व आर्थिक लाभ की अपार संभावनाएँ हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन, फ्राँस और जापान जैसे देश पहले ही गहरे समुद्री मिशन में सफलता हासिल कर चुके हैं।
डीप ओशन मिशन:
- परिचय:
- डीप ओशन मिशन (DOM) पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) की एक महत्त्वाकांक्षी पहल है, जिसका उद्देश्य गहरे समुद्र में खोज के लिये प्रौद्योगिकियों और क्षमताओं का विकास करना है।
- इसके अलावा DOM प्रधानमंत्री के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (PMSTIAC) के तहत नौ मिशनों में से एक है।
- डीप ओशन मिशन (DOM) पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) की एक महत्त्वाकांक्षी पहल है, जिसका उद्देश्य गहरे समुद्र में खोज के लिये प्रौद्योगिकियों और क्षमताओं का विकास करना है।
- मिशन के प्रमुख स्तंभ:
- गहरे समुद्र में खनन और क्रूड सबमर्सिबल के लिये तकनीकी प्रगति।
- महासागरीय जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाएँ।
- गहरे समुद्र में जैवविविधता अन्वेषण और संरक्षण के लिये नवाचार।
- गहरे महासागर के खनिजों का सर्वेक्षण और अन्वेषण।
- महासागर से ऊर्जा और मीठे जल का संचयन।
- महासागर जीव विज्ञान के लिये एक उन्नत समुद्री स्टेशन की स्थापना।
- DOM उद्देश्यों में प्रमुख प्रगति:
- समुद्रयान और Matsya6000: DOM के एक भाग के रूप में भारत के प्रमुख डीप ओशन मिशन, समुद्रयान को वर्ष 2021 में पृथ्वी विज्ञान मंत्री द्वारा शुरू किया गया था।
- समुद्रयान के साथ भारत मध्य हिंद महासागर में समुद्र तल में 6,000 मीटर की गहराई तक पहुँचने के लिये एक अभूतपूर्व चालक दल अभियान शुरू कर रहा है।
- यह ऐतिहासिक यात्रा Matsya6000 द्वारा पूरी की जाएगी, जो डीप ओशन में चलने वाली एक पनडुब्बी है जिसे तीन सदस्यों के दल को समायोजित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- इसका निर्माण टाइटेनियम मिश्र धातु से किया गया है, गोले को 6,000 बार तक के दबाव को झेलने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- समुद्रयान और Matsya6000: DOM के एक भाग के रूप में भारत के प्रमुख डीप ओशन मिशन, समुद्रयान को वर्ष 2021 में पृथ्वी विज्ञान मंत्री द्वारा शुरू किया गया था।
नोट: पॉलीमेटेलिक नोड्यूल और सल्फाइड जैसे मूल्यवान संसाधनों की उपस्थिति के कारण 6,000 मीटर की गहराई को लक्षित करने का निर्णय रणनीतिक महत्त्व रखता है। आवश्यक धातुओं से युक्त ये संसाधन 3,000 से 5,500 मीटर की गहराई के बीच पाए जाते हैं।
- वराह- भारत का डीप-ओशन माइनिंग सिस्टम: MoES के तहत एक स्वायत्त संस्थान, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी ने मध्य हिंद महासागर में 5,270 मीटर की गहराई पर जल के नीचे खनन प्रणाली 'वराह' का उपयोग करते हुए गहरे समुद्र की गति का परीक्षण किया है।
- इन परीक्षणों ने गहरे समुद्र में संसाधन अन्वेषण में एक महत्त्वपूर्ण स्थिति का संकेत दिया।
डीप ओशन अन्वेषण में प्रमुख चुनौतियाँ:
- समुद्री दबाव की चुनौतियाँ: डीप ओशन में उच्च दबाव की स्थितियाँ एक विकट चुनौती पेश करती है, जो लगभग 10,000 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर वज़न उठाने के बराबर वस्तुओं पर अत्यधिक दबाव डालती हैं।
- उपकरण डिज़ाइन एवं कार्यक्षमता: कठोर परिस्थितियों के लिये मज़बूत सामग्रियों से निर्मित सावधानीपूर्वक डिज़ाइन किये गए उपकरणों की आवश्यकता होती है। इलेक्ट्रॉनिक्स तथा उपकरण अंतरिक्ष अथवा निर्वात स्थितियों में अधिक कुशलता से कार्य करते हैं, जबकि खराब डिज़ाइन वाली वस्तुएँ जल के भीतर ढह जाती हैं अथवा नष्ट हो जाती हैं।
- लैंडिंग संबंधी चुनौतियाँ: समुद्र तल की नरम एवं दलदलीय सतह के परिणामस्वरूप भारी वाहनों के लिये लैंडिंग अथवा युद्धाभ्यास करना असाधारण रूप से चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- सामग्री निष्कर्षण एवं बिजली की मांग: समुद्र तल से सामग्री निकालने के लिये उन्हें सतह पर पंप करने के लिये भारी मात्रा में शक्ति एवं ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- विद्युत चुंबकीय तरंग प्रसार के अभाव के कारण दूर से संचालित किये जाने वाले वाहन गहरे महासागरों में अप्रभावी होते हैं।
- दूरबीनों द्वारा अंतरिक्ष अवलोकनों की सुविधा के विपरीत गहरे समुद्र के अन्वेषण में दृश्यता सीमित होती है, क्योंकि प्राकृतिक प्रकाश समुद्र जल के भीतर केवल कुछ मीटर तक ही प्रवेश कर पाता है।
- अन्य जटिल चुनौतियाँ: तापमान भिन्नता, संक्षारण, लवणता आदि विभिन्न कारक गहरे समुद्र में अन्वेषण को और जटिल बनाते हैं, जिसके लिये व्यापक स्तर पर समाधान की आवश्यकता होती है।
नोट: संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2021-2030 को 'समुद्र विज्ञान के दशक' के रूप में घोषित किया गया है। |
आगे की राह
- जैविक रूप से प्रेरित डिज़ाइन: नवीन इंजीनियरिंग समाधानों के लिये समुद्री जीवों जैसी प्रकृति से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।
- बायोमिमिक्री से उन संरचनाओं एवं सामग्रियों के विकास को बढ़ावा मिल सकता है जो प्राकृतिक रूप से गहरे समुद्र की स्थितियों के लिये अनुकूल हैं, जो लचीलापन बढ़ाते हैं एवं अनुकूलनशीलता प्रदान करते हैं।
- ऊर्जा नवाचार: लंबी अवधि के मिशनों का समर्थन करने के लिये स्थायी ऊर्जा स्रोतों का विकास किया जाना चाहिये।
- इसमें समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण, बिजली के लिये समुद्र में तापमान प्रवणता का उपयोग अथवा ज्वारीय व समुद्री लहरों की ऊर्जा क्षमता की खोज जैसी ऊर्जा संचयन प्रौद्योगिकियों में प्रगति शामिल हो सकती है।
- मल्टी-सेंसर एकीकरण: समुद्र जल की सीमित दृश्यता के समाधान के लिये विविध सेंसर प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने की आवश्यकता है।
- इसमें गहन समुद्र के वातावरण को व्यापक बनाने के लिये सोनार, लिडार और अन्य इमेजिंग तकनीकों का संयोजन शामिल हो सकता है, जिससे बेहतर नेविगेशन एवं अन्वेषण में सहायता मिल सके।
- पर्यावरणीय प्रभाव पर विचार: गहन समुद्र पारिस्थितिकी तंत्र पर न्यूनतम प्रभाव के साथ अन्वेषण पहल सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- पर्यावरण संरक्षण के साथ वैज्ञानिक प्रगति को संतुलित करते हुए ज़िम्मेदार और नैतिक प्रथाओं को सुनिश्चित करने हेतु गहन समुद्र में अन्वेषण को नियंत्रित करने वाले अंतर्राष्ट्रीय नियम तथा नीतियाँ बनाने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. समुद्र कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) Q. ब्लू कार्बन क्या है? (2021) (a) महासागरों और तटीय पारिस्थितिक तंत्रों द्वारा प्रगृहीत कार्बन उत्तर: (a) |
वर्ल्ड फूड इंडिया 2023
प्रिलिम्स के लिये:खाद्य सुरक्षा, कृषि विपणन, बीज पूंजी सहायता, फूड स्ट्रीट, फूड बास्केट ऑफ द वर्ल्ड, अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस, स्वयं सहायता समूह मेन्स के लिये:आर्थिक वृद्धि और विकास पर भारत के खाद्य प्रसंस्करण का महत्त्व और क्षमता |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
'वर्ल्ड फूड इंडिया 2023' के दूसरे संस्करण का उद्घाटन हाल ही में नई दिल्ली में किया गया, जहाँ भारत के प्रधानमंत्री ने एक लाख से अधिक स्वयं सहायता समूह (SHG) सदस्यों को बीज के लिये आर्थिक सहायता भी प्रदान की।
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने वर्ष 2017 में वर्ल्ड फूड इंडिया का पहला संस्करण लॉन्च किया।
वर्ल्ड फूड इंडिया 2023:
- परिचय:
- वर्ल्ड फूड इंडिया 2023 भारतीय खाद्य अर्थव्यवस्था का प्रवेश द्वार है, जो भारतीय और विदेशी निवेशकों के बीच साझेदारी की सुविधा प्रदान करता है।
- यह वैश्विक खाद्य पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माताओं, उत्पादकों, खाद्य प्रसंस्करणों, निवेशकों, नीति निर्माताओं और संगठनों का एक अद्वितीय सम्मेलन होगा।
- शुभंकर:
- मिलइंड (एक प्रोबोट) वर्ल्ड फूड इंडिया 2023 का शुभंकर है।
- प्रमुख आधार:
- श्री अन्न (बाजरा): विश्व के लिये भारत के सुपर फूड का लाभ उठाना।
- जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि और कुपोषण जैसी वैश्विक चुनौतियों के सामने बाजरा खाद्य सुरक्षा, पोषण सुरक्षा एवं स्थिरता को बढ़ा सकता है।
- संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष (IYM 2023) घोषित किया है।
- घातीय खाद्य प्रसंस्करण: भारत को वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना।
- इस दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिये भारत अपने उन समर्थकों को बढ़ावा देने का इरादा रखता है जो उसके खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को समर्थन और गति प्रदान कर सकें।
- प्रमुख समर्थकों में से एक है कृषि खाद्य मूल्य शृंखलाओं का वित्तपोषण करना और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) को पर्याप्त एवं किफायती ऋण प्रदान करना।
- श्री अन्न (बाजरा): विश्व के लिये भारत के सुपर फूड का लाभ उठाना।
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की वर्तमान स्थिति:
- सूर्योदय क्षेत्र:
- वर्ल्ड फूड इंडिया के परिणामों के कारण खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को मान्यता मिली, जिसे प्रायः 'सनराइज़ सेक्टर' कहा जाता है।
- पिछले नौ वर्षों में सरकार की उद्योग-अनुकूल और किसान-केंद्रित नीतियों की बदौलत इस क्षेत्र ने 50,000 करोड़ रुपए से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित किया है।
- उत्पादन आधारित प्रोत्साहन:
- खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना के तहत हुई प्रगति ने नए आयाम खोले हैं।
- एग्री-इंफ्रा फंड के तहत चल रही विभिन्न परियोजनाएँ, फसल कटाई के बाद के बुनियादी ढाँचे पर ध्यान केंद्रित करते हुए 50,000 करोड़ रुपए से अधिक के निवेश के साथ इस क्षेत्र के लिये व्यापक संभावनाएँ रखती हैं।
- मत्स्यपालन और पशुपालन क्षेत्र में प्रसंस्करण बुनियादी ढाँचे में हज़ारों करोड़ रुपए के निवेश को प्रोत्साहित किया जाता है।
- खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना के तहत हुई प्रगति ने नए आयाम खोले हैं।
- अन्य सरकारी पहल:
- कृषि-निर्यात नीति का निर्माण
- राष्ट्रव्यापी रसद और बुनियादी ढाँचे का विकास
- ज़िला-स्तरीय केंद्रों की स्थापना
- मेगा फूड पार्क का विस्तार
- प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना
- सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम योजना का PM औपचारिकरण
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न.1 राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन का एक उद्देश्य देश के चिन्हित ज़िलों में क्षेत्र विस्तार एवं उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से विशेष फसलों के उत्पादन को स्थायी तरीके से बढ़ाना है। वे कौन सी फसलें हैं? (2010) (a) केवल चावल और गेहूँ उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा देश पिछले पाँच वर्षों के दौरान विश्व में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक रहा है? (2019) (a) चीन उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) द्वारा कीमत सहायिकी का प्रतिस्थापन भारत में सहायिकियों के परिदृश्य का किस प्रकार परिवर्तन कर सकता है? चर्चा कीजिये। (2015) |