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डेली न्यूज़

  • 06 Oct, 2023
  • 65 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार- 2023

प्रिलिम्स के लिये:

रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार- 2023, क्वांटम डॉट्स, क्वांटम तकनीक, नैनोमटेरियल्स, LED

मेन्स के लिये:

क्वांटम डॉट्स के अनुप्रयोग।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज़ ने क्वांटम डॉट्स के अभूतपूर्व आविष्कार और संश्लेषण के लिये मौंगी जी बावेंडी, लुईस ई ब्रूस तथा एलेक्सी आई एकिमोव को रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार 2023 से सम्मानित किया।

क्वांटम डॉट्स का आविष्कार:

  • पृष्ठभूमि:
    • हालाँकि लगभग चालीस वर्ष पूर्व, वैज्ञानिकों ने पाया कि नैनोस्केल पर एक ही तत्त्व के  नैनोकण, आमतौर पर एक मीटर के 1 से 100 अरबवें आकार के, अपने बड़े समकक्षों से भिन्न व्यवहार प्रदर्शित करते हैं, जो इस पारंपरिक धारणा का खंडन करते हैं।
    • परंपरागत रूप से यह अवधारणा व्याप्त थी कि शुद्ध तत्त्व के सभी हिस्सों में, जो किसी भी आकार के क्यों ना हों, इलेक्ट्रॉनों के समान वितरण के कारण उनके गुण सदैव समान होते हैं।
  • नोबेल पुरस्कार विजेताओं का योगदान:
    • एलेक्सी एकिमोव: वर्ष 1980 के आसपास एलेक्सी एकिमोव कॉपर क्लोराइड नैनोकणों में असामान्य व्यवहार का निरीक्षण करने वाले पहले व्यक्ति थे।
      • उन्होंने इन कणों के विशिष्ट गुणों का प्रदर्शन करते हुए इन नैनोकणों का सफलतापूर्वक निर्माण किया।
    • लुई ब्रूस: अमेरिकी वैज्ञानिक लुई ब्रूस ने कैडमियम सल्फाइड नैनोकणों से जुड़ी एक ऐसी ही खोज की।
      • एकिमोव की तरह, वह इन परिवर्तित गुणों के साथ नैनोकणों को बनाने में सक्षम थे।
    • मौंगी बावेंडी: मौंगी बावेंडी, जिन्होंने शुरुआत में लुई ब्रूस के साथ सहयोग किया, ने बाद में अद्वितीय विशेषताओं वाले नैनोकणों के उत्पादन की तकनीकों को सरल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
      • उनके कार्यों ने वांछित विकृत व्यवहार प्रदर्शित करने वाले नैनोकणों के कुशल और नियंत्रित निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया।
  • नैनोकणों के विशिष्ट गुणों के कारक:
    • सूक्ष्म नैनोकणों का अपरंपरागत व्यवहार क्वांटम प्रभावों के उद्भव का परिणाम है।
    • नैनोकणों के एकल परमाणु की तुलना में काफी बड़ा होने के बावजूद, 1930 के दशक में एक महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि, जब कणों को नैनोस्केल में कम किया जाता है तो क्वांटम प्रभाव प्रदर्शित हो सकते हैं, सामने आई
      • इसका मुख्य कारण यह है कि ऐसी परिस्थितियों में परमाणुओं में निहित इलेक्ट्रॉन एक सीमित स्थान में मौज़ूद होते हैं।
        • आमतौर पर इलेक्ट्रॉन परमाणु के नाभिक के बाहर अपेक्षाकृत विशाल क्षेत्र में गति करते हैं।
        • हालाँकि जैसे-जैसे कण का आकार तेज़ी से घटता है, इलेक्ट्रॉनों के लिये अवरोध उत्पन्न होता है, जिससे इन विशिष्ट क्वांटम प्रभावों की अभिव्यक्ति होती है।
    • इस गहन समझ, जैसा कि नोबेल पुरस्कार विजेताओं, एकिमोव तथा ब्रूस ने अपनी प्रयोगशालाओं में देखा और प्रदर्शित किया, के परिणामस्वरूप एक ही तत्त्व के उनके बड़े समकक्ष कणों की तुलना में अलग व्यवहार वाले नैनो-आकार के कणों का निर्माण हुआ। 
      • अद्वितीय गुणों वाले इन उल्लेखनीय नैनोकणों को क्वांटम डॉट्स के रूप में जाना जाने लगा।
  • क्वांटम डॉट्स की विशेषता: क्वांटम डॉट्स नैनोस्केल कण हैं, जिनका आकार आमतौर पर 1 से 100 नैनोमीटर तक होता है। इन छोटी संरचनाओं में अद्वितीय गुण होते हैं जो उनके आकार से निर्धारित होते हैं।
    • विशेष रूप से क्वांटम डॉट्स का आकार उनके द्वारा उत्सर्जित प्रकाश का रंग का निर्धारण करता है, छोटे डॉट्स नीला प्रकाश उत्सर्जित करते हैं और बड़े डॉट्स पीले व लाल रंग का प्रकाश उत्सर्जित करते हैं।

नोट: 

  • क्वांटम प्रभाव: क्वांटम सबसे छोटे पैमाने पर पदार्थ और ऊर्जा के मौलिक व्यवहार को संदर्भित करता है, जहाँ सैद्धांतिक भौतिकी अब लागू नहीं होती है।
    • क्वांटम प्रभाव क्वांटम स्तर पर होने वाली घटनाएँ हैं, जहाँ इलेक्ट्रॉन जैसे कण सुपरपोज़िशन और एनटैंगलमेंट जैसे व्यवहार प्रदर्शित करते हैं, जो सैद्धांतिक भौतिकी से अलग हैं।
  • क्वांटम प्रौद्योगिकी: क्वांटम प्रौद्योगिकी विभिन्न क्षेत्रों में क्रांति लाने की क्षमता के साथ क्वांटम कंप्यूटिंग, क्वांटम क्रिप्टोग्राफी और क्वांटम सेंसर सहित नवीन उपकरण एवं अनुप्रयोग हेतु क्वांटम यांत्रिकी के अद्वितीय गुणों का उपयोग करती है।

क्वांटम डॉट्स के अनुप्रयोग:

  • डिस्प्ले टेक्नोलॉजी: क्वांटम डॉट्स स्पष्ट एवं चमकीले प्रकाश उत्सर्जित करके LED लैंप और टेलीविज़न स्क्रीन जैसे डिस्प्ले की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं।
  • मेडिकल इमेजिंग: ये सर्जरी के दौरान ट्यूमर के ऊतकों को प्रदीप्त कर सकते हैं, जिससे शल्य चिकित्सकों को ट्यूमर के सटीक निष्कासन में सहायता मिलती है।
    • इनका नैनोस्केल आकार इन्हें छोटे सेंसर में उपयोग के लिये आदर्श बनाता है।
  • फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स: क्वांटम डॉट्स तकनीक इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता रखता है जिससे भविष्य में नवीन और अनुकूलनीय उपकरणों के विनिर्माण की संभावनाएँ हैं।
  • स्लिमर सोलर सेल: क्वांटम डॉट्स से अधिक कुशल और कॉम्पैक्ट सौर सेल बन सकते हैं, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा संबंधी समाधान संभव हो सकेगा।
  • एन्क्रिप्टेड क्वांटम संचार: क्वांटम डॉट्स सुरक्षित क्वांटम संचार प्रौद्योगिकियों को विकसित करने, संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा करने में भूमिका निभा सकते हैं।

रसायन विज्ञान के क्षेत्र में अन्य हालिया नोबेल पुरस्कार विजेता:

  • 2022:
    • कैरोलिन आर. बर्टोज्ज़ी, मोर्टन मेल्डल तथा के. बैरी शार्पलेस "क्लिक केमिस्ट्री और बायोऑर्थोगोनल केमिस्ट्री के विकास हेतु"
  • 2021:
    • बेंजामिन लिस्ट और डेविड मैकमिलन को "असममित ऑर्गेनोकैटेलिसिस के विकास हेतु"
  • वर्ष 2020:
    • इमैनुएल चार्पेंटियर और जेनिफर ए. डौडना  को "जीनोम संपादन की एक विधि के विकास के लिये"
  • वर्ष 2019:
    • जॉन बी. गुडएनफ, एम. स्टेनली व्हिटिंगम और अकीरा योशिनो "लिथियम-आयन बैटरी के विकास के लिये"
  • वर्ष 2018:
    • फ्रांसिस एच. अर्नोल्ड को "एंजाइमों के निर्देशित विकास के लिये"
    • जॉर्ज पी. स्मिथ और सर ग्रेगरी पी. विंटर को "पेप्टाइड्स और एंटीबॉडी के फेज़ प्रदर्शन के लिये"

नोबेल पुरस्कार 2023 की अन्य घोषणाओं का संदर्भ: भौतिकी, फिजियोलॉजी  या चिकित्सा


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ‘स्पेक्स 2030’ पहल

प्रिलिम्स के लिये:

स्पेक्स 2030, दृष्टि का अपवर्तन दोष, विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये:

दृष्टिबाधित होने के प्रभाव, भारत में नेत्रदोषों का निपटान करने में चुनौतियाँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

विश्वभर में लाखों लोग दृष्टि/नेत्रदोष की समस्याओं से पीड़ित हैं, इनमें से एक बड़े हिस्से को चश्मे की आवश्यकता है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में नेत्र देखभाल की सुविधाओं तक पहुँच एक बड़ी चुनौती है।

  • इस संकट को देखते हुए वर्ष 2021 में आयोजित 74वीं विश्व स्वास्थ्य सभा में एकीकृत और जन-केंद्रित नेत्र देखभाल प्रदान करने के लिये "स्पेक्स 2030" नामक एक पहल शुरू करने पर सहमति जताई गई।

स्पेक्स 2030:

  • परिचय:
    • स्पेक्स 2030 पहल की शुरुआत विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा की जाएगी। इस पहल का लक्ष्य गुणवत्तापूर्ण नेत्र देखभाल सुनिश्चित करते हुए चश्मे से संबंधित समस्या का समाधान करने में सदस्य देशों की सहायता करना है।
  • विज़न:
    • इसका दूरगामी विज़न एक ऐसे विश्व का निर्माण करना है जिसमें अपवर्तन दोष से जूझ रहे प्रत्येक व्यक्ति के पास इसके निदान हेतु गुणवत्तापूर्ण, सस्ती और जन-केंद्रित सेवाओं तक पहुँच हो।
  • मिशन:
    • इसका मिशन अपवर्तन दोष कवरेज़ पर 74वीं विश्व स्वास्थ्य सभा द्वारा समर्थित वर्ष 2030 के लक्ष्य को प्राप्त करने में सदस्य देशों की सहायता करना है।
    • यह पहल अपवर्तन दोष कवरेज में सुधार हेतु प्रमुख चुनौतियों का समाधान करने के लिये, SPECS के अक्षरों एवं उनके अर्थों के अनुरूप 5 रणनीतिक रूप से सभी हितधारकों के बीच समन्वय स्थापित कर वैश्विक कार्रवाई का आह्वान करती है।

दृष्टि की अपवर्तक त्रुटि: 

  • परिचय:
    • दृष्टि की अपवर्तक त्रुटि वह दृष्टि समस्या है जिसमें नेत्र का आकार प्रकाश द्वारा रेटिना (नेत्र के पश्च ऊतक की एक प्रकाश-संवेदनशील परत) पर सही ढंग से फोकस करने की सामान्य स्थिति को अवरोधित कर प्रभावित करता है, जिससे धुंधली या विकृत दृष्टि का अनुभव होता है।
    • यह स्थिति विभिन्न रूपों और गंभीरता स्तरों में प्रकट हो सकती है।
  • अपवर्तक त्रुटियों के प्रकार:

अपवर्तक त्रुटियों के प्रकार

विवरण

सुधार

मायोपिया  (निकट दृष्टिदोष) 

दूर की वस्तुओं को देखने में कठिनाई, स्पष्ट निकट दृष्टि। प्रकाश का फोकस रेटिना के अग्र भाग में होता है।

इसे अवतल लेंस से ठीक किया जाता है। 

हाइपरमेट्रोपिया (दूर दृष्टिदोष)

निकट की वस्तुओं को देखने में कठिनाई, दूर की दृष्टि अपेक्षाकृत स्पष्ट। प्रकाश का फोकस रेटिना के पश्च भाग में होता है।

उत्तल लेंस से ठीक किया जाता है। 

प्रेसबायोपिया

उम्र बढ़ने पर (आमतौर पर मध्य आयु वर्ग के लोगों में) दृष्टि से संबंधित कठिनाई, निकट की वस्तुओं को देखने में कठिनाई।

बाइफोकल लेंस (उत्तल और अवतल दोनों) से ठीक किया जाता है।

दृष्टिवैषम्य

किसी भी दूरी पर धुंधली या विकृत दृष्टि होना। अनियमित कॉर्निया या लेंस का आकार असमान प्रकाश के फोकस का कारण बनता है।

इसे बेलनाकार (Cylindrical) लेंस से ठीक किया जाता है।

  • अपवर्तक त्रुटियों के लक्षण:
    • सबसे आम लक्षण धुंधली दृष्टि है। अन्य लक्षणों में दोहरी दृष्टि, धुंधली दृष्टि, तीव्र ज्योति पुंज के निकट चकाचौंध या प्रभामंडल का आभास होना, सिरदर्द और नेत्र पर तनाव शामिल हैं।

अन्य प्रकार के सामान्य नेत्र दोष/रोग:

  • कलर ब्लाइंडनेस (वर्णांधता):
    • कलर ब्लाइंडनेस/वर्णांधता वर्णांधता का तात्पर्य सामान्य तरीके से रंगों को देखने में असमर्थता से है। वर्णांधता में व्यक्ति आमतौर पर हरे और लाल रंगों के बीच अंतर नहीं कर पाते हैं। दूसरा सामान्य लक्षण नीले और पीले रंग का एक जैसा दिखना होता है।
  • मोतियाबिंद:
    • इसमें किसी व्यक्ति की आँख का लेंस उत्तरोत्तर धुँधला होता जाता है जिसके परिणामस्वरूप दृष्टि धुँधली हो जाती है। इसका इलाज सर्जरी द्वारा किया जा सकता है।
    • मोतियाबिंद में व्यक्ति के नेत्र के लेंस के ऊपर एक झिल्ली बन जाती है। मोतियाबिंद से आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है।
  • आयु संबंधी मैकुलर डिजेनरेशन (Macular Degeneration):
    • यह एक नेत्र का रोग है जो केंद्रीय दृष्टि को धुंधला कर सकता है। ऐसा तब होता है जब उम्र बढ़ने से मैक्युला को नुकसान पहुँचता है- नेत्र का वह हिस्सा जो तेज़, सीधी दृष्टि को नियंत्रित करता है। मैक्युला रेटिना (नेत्र के पीछे प्रकाश-संवेदनशील ऊतक) का हिस्सा है।
  • नेत्रश्लेष्मलाशोथ/कंजक्टिवाइटिस (पिंक आइ):
    • यह नेत्र की एक स्थिति है जिसमें कंजंक्टिवा की सूजन होती है, वह पतली झिल्ली जो नेत्र के सफेद हिस्से को ढकती है और आंतरिक पलकों को रेखाबद्ध करती है।
  • मोतियाबिंद/ग्लोकोमा:
    • यह नेत्र की बीमारियों का एक समूह है जो आपकी नेत्र के पीछे ऑप्टिक नामक एक तंत्रिका को नुकसान पहुँचाकर दृष्टि हानि और अंधापन का कारण बन सकता है। 

दृष्टि हानि का प्रभाव:

  • वैश्विक दृष्टि संकट:
    • WHO के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 2.2 अरब से अधिक लोग दृष्टि संबंधी समस्याओं से पीड़ित हैं।
    • इनमें से लहभग 1 अरब मामलों को उचित नेत्र की देखभाल से रोका जा सकता था।
    • दृष्टिबाधित या अंधेपन से पीड़ित 90% व्यक्ति निम्न और मध्यम आय वाले देशों में निवास करते हैं।
  • भारत को दृष्टि देखभाल की तत्काल आवश्यकता:
    • भारत में लाखों व्यक्ति नेत्र देखभाल और चश्में की उपलब्धता संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहा है जो अपवर्तक त्रुटियों के कारण दृष्टि हानि से पीड़ित हैं। WHO के अनुसार, कम से कम 10 करोड़ भारतीयों को चश्मे की आवश्यकता है, लेकिन उन तक उनकी पहुँच नहीं है।
  • दृष्टि हानि का आर्थिक प्रभाव:
    • दृष्टि हानि के परिणामस्वरूप लगभग 410.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर की महत्त्वपूर्ण वैश्विक आर्थिक हानि हो सकती है।
    • WHO के अनुसार, सभी के लिये नेत्र की देखभाल और उपचार तक पहुँच सुनिश्चित करने की लागत का अनुमान लगभग 24.8 अरब अमेरिकी डॉलर है।
  • निकट दृष्टिदोष (Myopia) की चिंताजनक वृद्धि:
    • वैश्विक स्तर पर निकट दृष्टिदोष बढ़ रहा है। चीन में केवल दो दशकों में निकट दृष्टिदोष की समस्या पहली बार दिखाई देने की औसत आयु 10.5 वर्ष से घटकर 7.5 वर्ष हो गई है।
    • ताइवान, कोरिया, चीन, सिंगापुर और जापान सहित पूर्वी एवं दक्षिण एशियाई देशों में निकट दृष्टिदोष के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है।
    • ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2050 तक विश्व की 50% आबादी निकट दृष्टिदोष से पीड़ित होगी। साथ ही यह भी अनुमान लगाया गया है कि निकट भविष्य में विश्व की आधी आबादी को चश्मे की आवश्यकता होगी।
    • WHO के अनुसार, सभी लोगों के लिये आँखों की देखभाल और उपचार तक पहुँच सुनिश्चित करने की लागत 24.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर आंकी गई है।

आगे की राह 

  • स्क्रीन पर बिताए जाने वाले समय को कम करने, बाहरी गतिविधियों को प्रोत्साहित करने और बच्चों की आँखों के स्वास्थ्य की निगरानी करने की रणनीतियों को लागू करने से मायोपिया से निपटने में मदद मिल सकती है।
  • इसका शीघ्र पता लगाने और उपचार के लिये सभी उम्र के व्यक्तियों को नियमित आँखों की जाँच कराने के लिये प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
  • सुलभ नेत्र देखभाल सेवाओं के लिये बुनियादी ढाँचे का निर्माण, विशेष रूप से दूरदराज़ और न्यून सेवा पहुँच वाले क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण है।
  • अपवर्तक त्रुटियों और दृष्टि पर उनके प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये सार्वजनिक शिक्षा अभियान शुरू किया जाना चाहिये।
  • Specs 2030 में सहयोग और निवेश के लिये सरकारों, गैर सरकारी संगठनों व निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना इसके लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये आवश्यक है।

  UPSC सिविल सेवा, परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारत में 'सभी के लिये स्वास्थ्य' को प्राप्त करने के लिये  समुचित स्थानीय सामुदायिक स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल का मध्यक्षेप एक पूर्वापेक्षा है। व्याख्या कीजिये। (2018)


शासन व्यवस्था

भारत के कारागारों में मौतें

प्रिलिम्स के लिये:

भारत के कारागारों में मौतें, कारागार सुधार पर सर्वोच्च न्यायालय समिति, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, वर्ष 2016 का मॉडल काराहर मैनुअल तथा वर्ष 2017 का मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम

मेन्स के लिये:

भारत के कारागारों में मौतें

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कारागार सुधार पर सर्वोच्च न्यायालय समिति ने बताया कि भारतीय कैदियों की अप्राकृतिक मौतों के प्रमुख कारणों में से एक आत्महत्या है।

कारागार में होने वाली मौतों का वर्गीकरण:

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) द्वारा प्रत्येक वर्ष प्रकाशित की जाने वाली प्रिज़न स्टैटिस्टिक्स इंडिया रिपोर्ट के अनुसार कारागार में होने वाली मौतों को प्राकृतिक अथवा अप्राकृतिक के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • वर्ष 2021 में भारत में न्यायिक हिरासत में कुल 2,116 कैदियों की मौत हुई, जिनमें से लगभग 90% मामले में मौतों को प्राकृतिक मौत के रूप में दर्ज किया गया।
  • बढ़ती उम्र और बीमारियाँ प्राकृतिक मृत्यु का प्रमुख कारण हैं। इन बीमारियों को हृदय रोग, एच.आई.वी., तपेदिक और कैंसर जैसी अन्य बीमारियों में उप-वर्गीकृत किया गया है।
    • कारागारों में कैदियों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ, दर्ज की गई प्राकृतिक मौतों की संख्या वर्ष 2016 में 1,424 से बढ़कर 2021 में 1,879 हो गई।
  • अप्राकृतिक मौतों का उप-वर्गीकरण इस प्रकार है:
    • आत्महत्या (फाँसी लगाने, ज़हर देने, खुद को चोट पहुँचाने, नशीली दवाओं की अधिक मात्रा लेने, विद्युत का झटका लगने आदि के कारण)
    • सह-कैदियों के कारण
    • गोली लगने से मौत
    • लापरवाही अथवा ज्यादती के कारण मौत
    • आकस्मिक मौतें (भूकंप जैसे प्राकृतिक आपदा, सर्पदंश, डूबना, दुर्घटनावश गिरना, जलने से चोट, दवा/शराब का सेवन आदि)।
      • सामान्य जनसंख्या में दर्ज की गई आत्महत्या की घटनाओं की तुलना में कैदियों में आत्महत्या की दर दोगुनी से भी अधिक पाई गई।

कारागार में होने वाली मौतों की जाँच प्रक्रिया:

  • वर्ष 1993 के बाद से हिरासत में हुई मौत की सूचना 24 घंटे के भीतर NCRB को दी जानी चाहिये, इसके बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मजिस्ट्रेट की पूछताछ की रिपोर्ट, या पोस्टमार्टम वीडियोग्राफी रिपोर्ट भी दिया जाना अनिवार्य है।
  • हिरासत में बलात्कार और मृत्यु के मामलों में आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत कार्यकारी मजिस्ट्रेट जाँच के अतिरिक्त अनिवार्य न्यायिक मजिस्ट्रेट जाँच की भी आवश्यकता होती है।

जेल में कैदियों के मृत्यु की समस्या से निपटने हेतु प्रयास:

  • सर्वोच्च न्यायालय के फैसले:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1996 के एक फैसले में कैदियों के स्वास्थ्य के प्रति सामाजिक दायित्व को स्पष्ट किया, क्योंकि वे "दोहरी समस्या" से पीड़ित हैं:
      • “कैदियों को स्वतंत्र नागरिकों की तरह चिकित्सा विशेषज्ञता तक पहुँच का लाभ नहीं मिलता है। 
      • उनकी कैद की स्थितियों के कारण, कैदियों को स्वतंत्र नागरिकों की तुलना में अधिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • सरकारी प्रयास:
    • वर्ष 2016 का मॉडल जेल मैनुअल और वर्ष 2017 का मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, कैदियों के स्वास्थ्य देखभाल के अधिकार को रेखांकित करता है।
      • इनमें स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में पर्याप्त निवेश, मानसिक स्वास्थ्य इकाइयों की स्थापना, उन्हें बुनियादी और आपातकालीन देखभाल प्रदान करने हेतु अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान करना एवं ऐसी घटनाओं को कम करने के लिये आत्महत्या रोकथाम कार्यक्रम तैयार करना शामिल है।
    • आत्महत्या के बढ़ते मामलों के संदर्भ में NHRC ने जून 2023 में राज्यों को सलाह जारी की, जिसमें बताया गया कि आत्महत्याएँ चिकित्सा और मानसिक स्वास्थ्य दोनों समस्याओं के कारण होती हैं।
      • NHRC ने "जेल कल्याण अधिकारियों, परिवीक्षा अधिकारियों, मनोवैज्ञानिकों और चिकित्सा कर्मचारियों" के पदों को भरने की सिफारिश की।

जेल में होने वाली मौतों से संबंधित NHRC की सिफारिशें: 

  • आत्महत्या के प्रयासों को रोकना:
    • कैदियों की चादरों और कंबलों की नियमित जांँच और निगरानी करने की सलाह दी जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन वस्तुओं का उपयोग आत्महत्या के प्रयासों में नहीं किया जाता है।
  • कर्मचारियों के लिये मानसिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण:
    • जेल कर्मचारियों के बुनियादी प्रशिक्षण में मानसिक स्वास्थ्य साक्षरता का एक घटक शामिल किया जाना चाहिये। मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मामलों पर कर्मचारियों को सूचित और जागरूक रखने के लिये समय-समय पर पुनश्चर्या पाठ्यक्रमों को लागू करने की भी सिफारिश की जाती है।
  • नियमित अवलोकन और समर्थन: 
    • कारा कर्मचारियों द्वारा कैदियों की नियमित निगरानी आवश्यक है, साथ ही मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा में प्रशिक्षित एक कैदी 'मित्र' का नियुक्तिकरण, ज़रूरतमंद कैदियों को महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान कर सकता है।
  • गेटकीपर मॉडल कार्यान्वयन:
    • कारागारों में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के सुदृढ़ीकरण के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा तैयार गेटकीपर मॉडल को अपनाया जाना चाहिये।
    • इसमें आत्महत्या के जोखिम वाले साथी कैदियों की पहचान करने के लिये सावधानीपूर्वक चयनित कैदियों को प्रशिक्षण देना शामिल है, जिससे शीघ्र हस्तक्षेप और सहायता की सुविधा मिलती है।
  • व्यसन संबंधी समस्याओं का समाधान:
    • कैदियों के बीच नशे की लत से निपटने के उपायों को लागू किया जाना चाहिये, जिसमें आवश्यक सहायता और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों और नशामुक्ति विशेषज्ञों द्वारा नियमित दौरे शामिल हैं।
  • जीवन-कौशल शिक्षा और गतिविधियाँ:
    • कैदियों के लिये जीवन-कौशल-आधारित शिक्षा, योग, खेल, शिल्प, नाटक, संगीत, नृत्य एवं उपयुक्त आध्यात्मिक व वैकल्पिक धार्मिक निर्देश जैसी आकर्षक गतिविधियाँ आयोजित की जानी चाहिये।
      • ये गतिविधियाँ कैदियों की ऊर्जा को सकारात्मक रूप से प्रसारित करने और उनका समय रचनात्मक रूप से व्यतीत करने में मदद करती हैं। इसे सुविधाजनक बनाने के लिये प्रतिष्ठित गैर सरकारी संगठनों (NGO) के साथ सहयोग की मांग की जा सकती है।

कारागार सांख्यिकी से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य:

  • करागारों की संख्या:
    • राष्ट्रीय स्तर पर कारागारों की कुल संख्या 1.0% की वृद्धि के साथ वर्ष 2020 में 1,306 से बढ़कर वर्ष 2021 में 1,319 हो गई।
    • देश में सबसे अधिक कारागारों की संख्या राजस्थान (144) और उसके बाद तमिलनाडु (142), मध्य प्रदेश (131) में दर्ज की गई।
  • क्षमता:
    • कारागारों की वास्तविक क्षमता वर्ष 2020 में 4,14,033 से बढ़कर वर्ष 2021 में 2.8% की वृद्धि के साथ 4,25,609 हो गई।
    • वर्ष 2021 में 1,319 कारागारों की कुल क्षमता 4,25,609 (लोग) में से केंद्रीय जेलों की क्षमता सबसे अधिक (1,93,536) थी, इसके बाद ज़िला कारागार और उप कारागार थे।
  • दोषी कैदी
    • दोषी कैदियों की संख्या वर्ष 2020 में 1,12,589 से बढ़कर वर्ष 2021 में 1,22,852 हो गई, इस अवधि के दौरान 9.1% की वृद्धि हुई।
    • दिसंबर 2021 तक सबसे अधिक दोषी कैदी केंद्रीय कारागारों में बंद थे, उसके बाद ज़िला और उप कारागारों में बंद थे।
  • विचाराधीन कैदी:
    • विचाराधीन कैदियों की संख्या वर्ष 2020 में 3,71,848 से बढ़कर वर्ष 2021 में 4,27,165 हो गई, इस अवधि के दौरान 14.9% की वृद्धि हुई।
    • 31 दिसंबर, 2021 तक 4,27,165 विचाराधीन कैदियों में सर्वाधिक विचाराधीन कैदी ज़िला कारागारों में बंद थे, इसके बाद केंद्रीय और उप कारागारों में बंद थे।
  • बंदी:
    • बंदियों की संख्या वर्ष 2020 में 3,590 से घटकर वर्ष 2021 में 3,470 (प्रत्येक वर्ष 31 दिसंबर को) हो गई, इस अवधि के दौरान कुल 3.3% की कमी दर्ज की गई। 
    • 31 दिसंबर, 2021 तक 3,470 बंदियों में से सर्वाधिक संख्या में बंदी केंद्रीय कारागारों में बंद थे, उसके बाद ज़िला और विशेष कारागारों में बंद थे।

आगे की राह:

  • बदलती ज़रूरतों और चुनौतियों के अनुरूप नीतियों की नियमित समीक्षा तथा अद्यतन करना।
  • कैदियों की बेहतर देखभाल और सहायता सुनिश्चित करने के लिये कारागार कर्मचारियों के प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण में निवेश की आवश्यकता है।
  • कारागारों के अंदर मानसिक स्वास्थ्य देखभाल एवं लत प्रबंधन को बढ़ाने के लिये सरकारी निकायों, गैर सरकारी संगठनों और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
  • मानसिक स्वास्थ्य एवं लत से जुड़े कलंक को कम करने के लिये जागरूकता और समर्थन अभियानों को बढ़ावा देना, कारागार प्रणाली के अंदर अधिक सहानुभूतिपूर्ण वातावरण को बढ़ावा देना।
  • कार्यान्वित उपायों की चल रही निगरानी और मूल्यांकन द्वारा समर्थित, उभरते रुझानों तथा प्रभावी हस्तक्षेपों की पहचान करने के लिये अनुसंधान को प्रोत्साहित करना।

शासन व्यवस्था

मसौदा पेटेंट संशोधन नियम द्वारा अनुदान-पूर्व विरोध को सीमित करना

प्रिलिम्स के लिये:

पेटेंट, पेटेंट एवरग्रीनिंग , अनुदान-पूर्व विरोध

मेन्स के लिये:

किफायती जेनेरिक दवाओं, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) के उत्पादन और उपलब्धता पर पेटेंट नियमों का प्रभाव।

स्रोत : द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) द्वारा भारत में प्रस्तावित हालिया मसौदा पेटेंट संशोधन नियमों ने सस्ती दवाओं तथा वैक्सीन पर उनके संभावित प्रभाव पर चिंताएँ बढ़ा दी हैं। ये नियम अनुदान-पूर्व विरोध में बाधा डाल सकते हैं, साथ ही अनुचित पेटेंट विस्तार के खिलाफ गंभीर सुरक्षा तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य हेतु चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकते हैं।

मसौदा पेटेंट संशोधन नियम: 

  • मसौदा पेटेंट संशोधन नियम:
    • परिचय:
      • पेटेंट संशोधन नियमों का मसौदा भारत में मौज़ूदा पेटेंट नियमों में प्रस्तावित संशोधनों का एक सेट है, जो पेटेंट दाखिल करने, उनकी जाँच करने और उनका विरोध करने की प्रक्रियाओं एवं शुल्क को विनियमित करता है। 
    • मुख्य विशेषताएँ:
      • अनुदान-पूर्व विरोध दाखिल करने के लिये परिवर्तनीय शुल्क की शुरूआत, जो 1,500 रुपए से लेकर 40,000 रुपए हो सकती है, राशि श्रेणी और आवेदकों की संख्या के आधार पर लागू की गई है।
      • पेटेंट के नियंत्रक को अनुदान-पूर्व विरोध दर्ज़ करने की मांग करने वाले व्यक्तियों या नागरिक समाज संगठनों द्वारा प्रतिनिधित्व की स्थिरता निर्धारित करने की शक्ति देने का प्रावधान।
      • अनुदान के बाद विरोध दाखिल करने के लिये आधिकारिक शुल्क में वृद्धि, जो आवेदक द्वारा खर्च की गई कुल पेटेंट आवेदन लागत के बराबर होगी।
  • चिंताएँ:
    • सस्ती दवाओं तक पहुंच प्रतिबंधित करना: 
      • पेटेंट को चुनौती देने की प्रक्रिया अधिक कठिन बनाकर, प्रस्तावित नियम सस्ती जेनेरिक दवाओं तक पहुँच को प्रतिबंधित कर सकते हैं।
      • अनुदान-पूर्व विरोध दाखिल करने के लिये परिवर्तनीय शुल्क की शुरूआत नागरिक समाज संगठनों और रोगी समूहों पर एक व्यापक वित्तीय बोझ डाल सकती है।
    • नियंत्रक का विवेक:
      • मौज़ूदा पेटेंट अधिनियम, 1970 के तहत कोई भी व्यक्ति पेटेंट को चुनौती देने के लिये लोकतांत्रिक दृष्टिकोण के साथ अनुदान-पूर्व विरोध दर्ज करा सकता है। 
        • हालाँकि प्रारूप नियमों में नियंत्रक को अनुदान-पूर्व विरोध दाखिल करने वालों की स्थिरता तय करने का अधिकार देने का प्रावधान है। सत्ता में इस बदलाव ने पेटेंट का विरोध करने वालों के लिये संभावित पूर्वाग्रहों और चुनौतियों के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा उपायों पर प्रभाव:
      • पूर्व-अनुदान विरोध पेटेंट की एवरग्रीनिंग और अनुचित एकाधिकार देने जैसी प्रथाओं के विरुद्ध एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा के रूप में कार्य करता है।
        • पेटेंट की एवरग्रीनिंग मूल पेटेंट समाप्त होने से पहले नए पेटेंट प्राप्त करके पेटेंट की अवधि बढ़ाने की एक रणनीति है। भारत में पेटेंट अधिनियम, 1970 (2005 में संशोधित) की धारा 3(D) ज्ञात पदार्थों के नए रूपों के लिये पेटेंट प्रदान करने पर रोक लगाती है जब तक कि वे प्रभावकारिता में काफी भिन्न न हों। इसलिये भारतीय पेटेंट कानून के तहत एवरग्रीनिंग की अनुमति नहीं है।
        • यह गुणवत्ता-सुनिश्चित और किफायती जेनेरिक दवाओं तक निरंतर पहुँच सुनिश्चित करता है।
      • अनुदान-पूर्व विरोध को कमज़ोर करने से अनुचित पेटेंट विस्तार हो सकता है, जिससे आवश्यक दवाओं और टीकों तक पहुँच सीमित हो सकती है।
    • फार्मा लॉबिंग:
      • चिंताएँ व्यक्त की गई हैं कि संशोधित नियम फार्मास्युटिकल कंपनियों के पक्ष में हैं और अनुदान-पूर्व विरोध के भारत के विशेष प्रावधान को कमज़ोर कर सकते हैं।
    • वैश्विक प्रभाव:
      • आवश्यक दवाओं तक पहुँच का खतरा मरीज़ों को जोखिम में डाल सकता है और जेनेरिक दवा उद्योग को प्रभावित कर सकता है।
        • भारत और वैश्विक दक्षिण के मरीज़, जो भारत की किफायती जेनेरिक दवाओं और टीकों के उत्पादन पर काफी हद तक निर्भर हैं, प्रस्तावित परिवर्तनों से असंगत रूप से प्रभावित हो सकते हैं।

सफल पूर्व-अनुदान विरोध के उल्लेखनीय उदाहरण:

  • रोगी समूहों और नागरिक समाज संगठनों द्वारा अनुदान-पूर्व विरोध के कारण अक्सर "नावेल इन्वेंशन" के कमज़ोर दावों के आधार पर बड़ी दवा कंपनियों द्वारा मांगे गए पेटेंट विस्तार को अस्वीकार कर दिया गया है।
    • टेनोफोविर डिसप्रॉक्सिल फ्यूमरेट (TDF): 
      • वर्ष 2006 में रोगी समूहों ने दवा में एक ज्ञात यौगिक के उपयोग के कारण सहारा के TDF पेटेंट का विरोध किया।
    • नेविरापीन: 
      • बोहरिंगर इंगेलहेम के बाल चिकित्सा नेविरापीन पेटेंट को अनुदान-पूर्व विरोध के बाद वर्ष 2008 में अस्वीकार कर दिया गया था, क्योंकि यह प्रभावकारिता में महत्त्वपूर्ण सुधार दिखाने में विफल रहा था।
    • ग्लिवेक: 
      • नोवार्टिस की कैंसर दवा ग्लिवेक को वर्ष 2013 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अस्वीकृति का सामना करना पड़ा, क्योंकि इसे मौज़ूदा दवा, इमैटिनिब का संशोधित संस्करण माना गया था।

पेटेंट:

  • परिचय:
    • पेटेंट किसी आविष्कार के लिये एक वैधानिक अधिकार है जो किसी व्यक्ति या संस्था को किसी विशेष खोज या नए आईडिया के लिये दिया जाता है। यह किसी भी प्रोडक्ट, डिज़ाइन या प्रोसेस के लिये दिया जा सकता है, जिससे कोई अन्य इस पेटेंट की नकल ना कर सके।
    • पेटेंट संरक्षण एक क्षेत्रीय अधिकार है और इसलिये यह केवल भारत के क्षेत्र के अंदर ही प्रभावी है। वैश्विक पेटेंट की कोई अवधारणा नहीं है।
  • किसी आविष्कार के लिये पेटेंट योग्यता मानदंड:
    • यह नवीन होना चाहिये।
    • इसमें एक आविष्कारी कदम (तकनीकी उन्नति) शामिल होना चाहिये।
    • औद्योगिक अनुप्रयोग में सक्षम।

  • पेटेंट प्रदान करने का विरोध : 
    • भारतीय पेटेंट अधिनियम, 1970 एक व्यक्ति को दो चरणों में पेटेंट के खिलाफ आपत्तियाँ दर्ज करने की अनुमति देता है: अनुदान-पूर्व विरोध और अनुदान-पश्चात विरोध
    • अनुदान-पूर्व विरोध: 
      • विरोध दर्ज करना: 
        • कोई भी व्यक्ति पेटेंट आवेदन के बाद लेकिन अनुदान दिये जाने से पूर्व लिखित रूप में अनुदान-पूर्व विरोध दर्ज करा सकता है। इसके लिये अनुदान संबंधी संपूर्ण विशिष्टताओं की आवश्यकता होती है।
      • विरोध का आधार:
        • अनुचित तरीके से प्राप्ति (किसी आविष्कार पर अनुचित तरीके से अधिकार जताना), पूर्व प्रकाशन, पूर्व दावा, पूर्व ज्ञान अथवा उपयोग, स्पष्टता, गैर-पेटेंट योग्य विषय वस्तु, अपर्याप्त विवरण, गैर-प्रकटीकरण (आवश्यक विवरणों का खुलासा करने में विफलता), गलत प्रकटीकरण, समय सीमा (पारंपरिक आवेदन का पहले पेटेंट आवेदन किये जाने से 12 महीने के भीतर दाखिल नहीं कराया जाना), पारंपरिक ज्ञान (स्वदेशी सामुदायिक ज्ञान का उपयोग करके आविष्कार का पूर्वानुमान लगाया जाना)।
    • अनुदान-पश्चात विरोध:
      • पहले से ही जारी किये गए पेटेंट के प्रकाशन पर एक लिखित विरोध दर्ज किया जा सकता है, लेकिन इसे भारतीय पेटेंट जर्नल में पेटेंट के प्रकाशन के 12 महीने के भीतर नियंत्रक को सौंप दिया जाना चाहिये
      • इसके विरोध का आधार अनुदान-पूर्व विरोध के समान ही है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारतीय एकस्व अधिकार नियम(Patent Law) 1970 की धारा 3(D) में वर्ष 2005 बलात् संशोधन करने वाली उन परिस्थितियों को स्पष्ट करते हुए, यह विवेचना कीजिये की इसके कारण सर्वोच्च न्यायालय ने नावराटिस की ग्लाईवेक(Glivec) के एकस्व के अधिकार आवेदन को किस प्रकार अस्वीकार किया। (2013)


भारतीय विरासत और संस्कृति

अल्लाह बख्श और मेवाड़ी शैली की चित्रकला

प्रिलिम्स के लिये :

अल्लाह बख्श और मेवाड़ी शैली की चित्रकला, महाराजा जय सिंह, महाभारत, भारतीय लघु चित्रकला

मेन्स के लिये :

भारतीय लघु चित्रकला, भारतीय चित्रकला

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

17वीं सदी के अंत के मेवाड़ी लघु चित्रकार अल्लाह बख्श ने अपनी चित्रकला में महाभारत की व्याख्या को चित्रित किया और साथ ही वह अपने जटिल एवं आनंददायक प्रतिनिधित्व के लिये भी जाने जाते हैं।

अल्लाह बख्श:

  • परिचय:
    • अल्लाह बख्श 17वीं शताब्दी के अंत में उदयपुर के महाराजा जय सिंह द्वारा नियुक्त एक दरबारी चित्रकार थे।
  • चित्रकारी एवं चित्रण:
    • अल्लाह बख्श की प्रत्येक चित्रकला पात्रों की वेशभूषा, पृष्ठभूमि में वनस्पतियों, जीवों तथा जादुई एवं रहस्यमय घटनाओं के चित्रण को सावधानीपूर्वक दर्शाती है।
    • ये लघुचित्र कवि और चित्रकार की मौखिक एवं दृश्य कल्पनाओं के बीच संवाद को प्रदर्शित करते हुए, महाभारत का एक रमणीय प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करते हैं।

मेवाड़ी शैली की लघु चित्रकला:

  • परिचय:
    • मेवाड़ चित्रकला 17वीं और 18वीं शताब्दी की भारतीय लघु चित्रकला की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शाखाओं में से एक है। यह राजस्थानी शैली की एक शाखा है, इसे मेवाड़ (राजस्थान राज्य में) की हिंदू रियासत में विकसित किया गया था।
    • यह चित्रकला का एक अत्यधिक परिष्कृत एवं जटिल रूप है, जो विस्तार, जीवंत रंगों और सूक्ष्म शिल्प कौशल पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • चित्रकला शाखा के कार्यों की विशेषता सरल चमकीले रंग और प्रत्यक्ष भावनात्मक आकर्षण है।
      • शैली में तुलनात्मक रूप से बड़ी संख्या में चित्रों की तारीखें तथा उनकी उत्पत्ति के स्थान बताए जा सकते हैं, जो किसी भी अन्य राजस्थानी रियासत की तुलना में मेवाड़ में चित्रकला के विकास की अधिक व्यापक तस्वीर को दर्शाते हैं।
  • प्रसिद्ध चित्रकार: साहिबदीन (1628 ई. में रागमाला को चित्रित किया)।

लघु चित्रकला:

  • परिचय:
    • लघु चित्र रंगीन हस्तनिर्मित चित्र होते हैं जो आकार में बहुत छोटे होते हैं। इन चित्रों की उत्कृष्ट विशेषताओं में से एक जटिल ब्रशवर्क है जो उनकी विशिष्ट पहचान में योगदान देता है।
    • चित्रों में प्रयुक्त रंग विभिन्न प्राकृतिक स्रोतों जैसे सब्जियों, नील, कीमती पत्थरों, सोने और चाँदी से प्राप्त होते हैं।
    • इन्हें कागज़ और कपड़े जैसी सामग्रियों पर चित्रित किया जाता है।
      • बंगाल के पालों को भारत में लघु चित्रकला का अग्रणी माना जाता है, लेकिन यह कला मुगल शासन के दौरान अपने चरम पर पहुँच गई
      • लघु चित्रों की परंपरा को किशनगढ़, बूंदी जयपुर, मेवाड़ एवं मारवाड़ सहित विभिन्न राजस्थानी चित्रकला शाखा के कलाकारों ने आगे बढ़ाया।
  • लघु चित्रकारी की शाखाएँ:
    • पाल शाखा: प्रारंभिक भारतीय लघुचित्र 8वीं शताब्दी ई.पू. की पाल शाखा से संबंधित हैं।
      • चित्रकला की इस शाखा में रंगों के प्रतीकात्मक उपयोग पर बल दिया जाता था साथ ही विषय-वस्तु प्राय: बौद्ध तांत्रिक अनुष्ठानों से ली जाती थी।
    • जैन शाखा: जैन चित्रकला शैली को 11वीं शताब्दी में प्रसिद्धि प्राप्त हुई जब 'कल्प सूत्र' तथा 'कालकाचार्य कथा' जैसे धार्मिक ग्रंथों को लघु चित्रों के रूप में चित्रित किया गया।
    • मुगल शाखा: भारतीय चित्रकला और फारसी लघु चित्रों के समामेलन से लघु चित्रकला की मुगल शाखा का उदय हुआ।
      • दिलचस्प बात यह है कि फारसी लघु चित्रकलाओं पर काफी हद तक चीनी चित्रकला का प्रभाव देखा जा सकता है।
    • राजस्थानी शाखा: मुगल लघु चित्रकला के पतन के परिणामस्वरूप राजस्थानी शाखा का उदय हुआ। राजस्थानी चित्रकला शैली को उस क्षेत्र के आधार पर विभिन्न शैलियों में विभाजित किया जा सकता है, जहाँ उनकी रचना की गई थी।
      • मेवाड़ शाखा, मारवाड़ शाखा, हाडोती शाखा, ढूंढर शाखा, कांगड़ा और कुल्लू कला शाखा, ये सभी राजस्थानी चित्रकला की शाखाएँ हैं।
    • पहाड़ी शाखा: लघु चित्रकला की पहाड़ी शाखा का उदय 17वीं शताब्दी में हुआ। इनकी उत्पत्ति उत्तर भारत के राज्यों, हिमालय क्षेत्र में हुई।
    • डेक्कन शाखा: लघु चित्रकला की डेक्कन शाखा 16वीं से 19वीं शताब्दी तक अहमदनगर, गोलकुंडा, तंजौर, हैदराबाद और बीजापुर जैसे स्थानों में विकसित हुई।
      • लघु चित्रकला की डेक्कन शाखा काफी हद तक डेक्कन की समृद्ध परंपराओं और तुर्किये, फारस तथा ईरान की धार्मिक मान्यताओं से प्रभावित थी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. सुप्रसिद्ध पेंटिंग "बणी ठणी" किस शैली की है? (2018)

(a) बूँदी शैली 
(b) जयपुर शैली 
(c) काँगड़ा शैली 
(d) किशनगढ़ शैली 

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • किशनगढ़ शैली:
    • बणी ठणी चित्रकला किशनगढ़ शैली की है। भारतीय चित्रकला की किशनगढ़ शैली (18वीं सदी) का उदय किशनगढ़ (मध्य राजस्थान) रियासत में हुआ।
    • शैली अपने व्यक्तिवादी चेहरे के प्रकार और अपनी धार्मिक तीव्रता से स्पष्ट रूप से प्रतिष्ठित है। पुरुषों एवं महिलाओं की संवेदनशील, परिष्कृत विशेषताएँ नुकीली नाक और ठुड्डी, गहरी घुमावदार आँखें तथा बालों की सर्पिल लटों से चित्रित की जाती हैं।
    • राधा-कृष्ण विषय पर चित्रों की शानदार शृंखला काफी हद तक राजा सावंत सिंह (शासनकाल 1748-57) की प्रेरणा के कारण थी। वह एक कवि भी थे, जो नागरी दास के नाम से लिखते थे।
    • अपने संरक्षक (यानी, राजा सावंत सिंह) के रोमांटिक और धार्मिक जुनून को नई एवं ताज़ा दृश्य छवियों में प्रसारित करने के लिये मुख्य रूप से ज़िम्मेदार मास्टर कलाकार निहाल चंद थे।
  • काँगड़ा शैली:
    • लगभग 18वीं शताब्दी के मध्य में नादिर शाह (वर्ष 1739) और अहमद शाह अब्दाली (वर्ष 1744-1773) की सेनाओं ने मुगल राजधानी दिल्ली तथा आसपास के क्षेत्रों को लूट लिया। राजा गोवर्द्धन चंद (वर्ष 1744-1773) के संरक्षण में हरिपुर-गुलेर में काँगड़ा चित्रकला शैली का जन्म तब हुआ जब उन्होंने मुगल शैली की पेंटिंग में प्रशिक्षित शरणार्थी कलाकारों को आश्रय प्रदान किया।
    • कांगड़ा चित्रकला का नाम पूर्व रियासत कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) के नाम पर रखा गया है।
    • इन कलाकारों को पारंपरिक रूप से मुगल शैली में प्रशिक्षित किया गया था (जिसमें मुख्य रूप से उनके संरक्षकों और शिकार के दृश्यों के आकर्षक चित्र शामिल थे), अब जयदेव, बिहारी तथा केशव दास की प्रेम कविताओं के विषयों को शामिल किया गया, जिन्होंने राधा और कृष्ण के प्रेम के बारे में लिखा था।
  • बूँदी शैली:
    • बूँदी चित्रकला शैली का विकास 17वीं-19वीं सदी के बीच राजस्थान की बूँदी रियासत और इसके पड़ोसी राज्य कोटाह (अब कोटा) में हुआ।
    •   इसकी विशेषताएँ बाग, फव्वारे, फूलों की कतार, तारों की रातें आदि का समावेश  है, जो हरी-भरी वनस्पतियों के चित्रांकन के साथ ही गहरे रंग की पृष्ठभूमि में हल्के घुमावों के माध्यम से जल का विशेष चित्रण करते हैं। 
    • यह चित्रकला शैली 18वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में अपने चरम पर थी जिसका 19वीं शताब्दी तक भी विकास होता रहा और महाराव राम सिंह द्वितीय (1828-66) जैसे असाधारण संरक्षक के अधीन इस कला का शानदार चरण देखा गया।
    • बूंदी चित्रकला का सबसे पहला उदाहरण वर्ष 1561 में चित्रित चुनार रागमाला है।
    • बूंदी चित्रकला में शिकार, राजदरबार, त्योहारों, जुलूसों, जीवन, प्रेमियों, जानवरों, पक्षियों और भगवान कृष्ण के जीवन के दृश्यों पर ज़ोर दिया गया है।
  • जयपुर शैली:
    • चूँकि जयपुर (आमेर) रियासत के शासकों का मुगलों के साथ घनिष्ठ संबंध था, 16वीं शताब्दी के अंत और 18वीं शताब्दी की शुरुआत के बीच विकसित हुई इस कला में राजस्थानी शैली (जो 16वीं -17वीं शताब्दी के बीच कला शैली पर प्रभावी थी) तथा मुगल शैली दोनों के समकालिक तत्त्व विद्यमान थे।
    • सवाई जय सिंह और प्रताप सिंह जैसे शासकों के संरक्षण के साथ, भगवान कृष्ण पर केंद्रित शानदार चित्र (अभिजात वर्ग की प्रकृति) तथा बड़े चित्र राजस्थानी शैली के हस्ताक्षर बन गए।


सामाजिक न्याय

हैजा

प्रिलिम्स के लिये:

हैजा, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), विब्रियो कॉलरी, ओरल हैजा वैक्सीन (OCV), तीव्र दस्त संबंधी बीमारी।

मेन्स के लिये:

हैजा, इसके कारण और संबंधित पहल, स्वास्थ्य।

 स्रोत:द हिंदू

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साप्ताहिक महामारी विज्ञान रिकॉर्ड के अनुसार, विश्व में वर्ष 2022 में हैजा के मामले वर्ष 2021 की तुलना में दोगुने से भी अधिक दर्ज़ किये गए।

  • यह वृद्धि वर्ष 2030 तक वैश्विक हैजा से होने वाली मौतों को 90% तक कम करने के लिये वर्ष 2017 में निर्धारित WHO के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के लिये एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करती है।

हैजा:

  • परिचय:
    • हैजा एक जल-जनित रोग है जो मुख्य रूप से बैक्टीरिया (जीवाणु) विब्रियो कॉलरी स्ट्रेन O1 और O139 के कारण होता है, जो विश्व में एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है।
      • स्ट्रेन O1 प्रकोप का प्रमुख कारण है, O139 की घटनाएँ दुर्लभ हैं साथ ही एशिया तक ही सीमित हैं।
    • यह आंत के संक्रमण के कारण होने वाली एक तीव्र दस्त संबंधी बीमारी है।
    • संक्रमण अक्सर हल्का अथवा बिना लक्षण वाला होता है, लेकिन कभी-कभी गंभीर भी हो सकता है।
  • लक्षण:
    • अत्यधिक पानी जैसा दस्त, उल्टी, पैर में ऐंठन
  • संचरण:
    • किसी व्यक्ति को हैजा, दूषित जल पीने अथवा भोजन खाने से हो सकता है।
    • सीवेज एवं पेयजल के अपर्याप्त उपचार वाले क्षेत्रों में यह रोग तेज़ी से फैल सकता है।
  • टीका:
    • वर्तमान में तीन WHO पूर्व-योग्य ओरल हैजा वैक्सीन (OCV), डुकोरल, शांचोल और यूविचोल-प्लस हैं। पूर्ण सुरक्षा के लिये सभी तीन टीकों को दो खुराक की आवश्यकता होती है।

हैजा के मामलों में वृद्धि के ज़िम्मेदार कारक: 

  • कोविड महामारी प्रतिबंधों में कमी:
    • कोविड-19 महामारी प्रतिबंधों में कमी से हैजा का व्यापक प्रसार हुआ है। स्वास्थ्य से कमज़ोर आबादी की पर्याप्त देखभाल प्रदान करने में सीमित निवेश, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव एवं बढ़ते संघर्षों ने स्थिति को और भी अधिक गंभीर बना दिया है।
  • अपर्याप्त स्वच्छता:
    • हैजा संचरण और स्वच्छ जल और स्वच्छता सुविधाओं तक अपर्याप्त पहुंच के परिणामस्वरूप सहजीवी संबंध एक महत्त्वपूर्ण कारक है। विशेष रूप से विब्रियो कॉलेरी बैक्टीरिया कम लवणता वाले गर्म पानी में पनपते हैं, जलवायु परिवर्तन से प्रेरित बाढ़, हीटवेव, तीव्र मानसूनी बारिश, तूफान और लंबे समय तक गर्म अवधि के कारण स्थितियाँ तीव्र हो जाती हैं।
  • विब्रियो रोगजनकों और माइक्रोप्लास्टिक्स:
    • जून 2023 में फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के शोध के अनुसार, विब्रियो रोगजनकों में माइक्रोप्लास्टिक्स पर भी पनपने की एक अनूठी क्षमता होती है, जो संभावित रूप से समुद्र में भी इस वातावरण के अनुकूल हो जाते हैं। 
    • विब्रियो बैक्टीरिया और माइक्रोप्लास्टिक्स के बीच यह अंतः क्रिया हैजा संचरण के एक अतिरिक्त आयाम का प्रतीक है, जिसके लिये आगामी जाँच और नीतिगत विचारों की आवश्यकता है।
  • जलवायु परिवर्तन और हैजा संचरण:
    • द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में वर्ष 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन इस बात पर बल देता है कि जलवायु परिवर्तन किस प्रकार हैजा संबंधी चिंताओं को बढ़ा रहा है। 
    • यह अनुमान लगाया गया था कि वर्ष 2100 तक वर्ष 1850 से 2014 तक के आंकड़ों की तुलना में 38,000 किमी. अधिक समुद्री क्षेत्र विब्रियो बैक्टीरिया के विकास के लिये अनुकूल हो जाएगा। 

भौगोलिक वितरण और हैजा की प्रवृत्तियाँ:

  • हैजा के अधिकांश मामले लगातार अफ्रीका और एशिया से सामने आते हैं, यूरोप में छिटपुट रूप से "आयातित मामले" सामने आते हैं।
  • वर्ष 2022 में अफ्रीका में  हैजा की घटनाएँ वर्ष  2021 की तुलना में कम थीं, किसी भी देश ने सभी मामलों में 25% और सभी मौतों में से 30% से अधिक की रिपोर्ट नहीं की थी।
    • हालाँकि यह सुधार नाइजीरिया के अलावा अन्य देशों के मामलों और मौतों की तीन गुना वृद्धि के कारण स्पष्ट नहीं है, जहाँ वर्ष 2021 में गंभीर हैजा का प्रकोप देखा गया था।
  • बढ़ते मामलों का एक समान पैटर्न एशिया में देखा गया, विशेष रूप से लेबनान, सीरिया और अफगानिस्तान जैसे देशों में।

हैजा पर अंकुश लगाने के लिये पहलें: 

  • हैजा नियंत्रण पर एक वैश्विक रणनीति, हैजा को समाप्त करना: वर्ष 2030 तक एक वैश्विक रोडमैप, हैजा से होने वाली मौतों को 90% तक कम करने के लक्ष्य के साथ वर्ष 2017 में लॉन्च किया गया था।
  • हैजा नियंत्रण के लिये वैश्विक कार्य बल (GTFCC): WHO ने हैजा उन्मूलन में अपने कार्य को मज़बूत करने के लिये हैजा नियंत्रण के लिये वैश्विक कार्य बल (GTFCC) को पुनर्जीवित किया।
    • GTFCC का उद्देश्य हैजा को नियंत्रित करने के लिये साक्ष्य-आधारित रणनीतियों के बढ़ते कार्यान्वयन का समर्थन करना है।
  • विश्व स्तर पर हैजा के बढ़ते बोझ को संबोधित करने के लिये अनुशंसित मौखिक हैजा वैक्सीन आहार में अनुकूलन किया गया है।
  • बड़े पैमाने पर विनिर्माण निवेश के सफल होने की प्रतीक्षा करते हुए, मौखिक हैजा वैक्सीन के लिये आपातकालीन भंडार के प्रबंधन ने टीकाकरण व्यवस्था को संशोधित किया है, इसे दो खुराक से घटाकर एक खुराक कर दिया है।
    • इस रणनीतिक समायोजन का उद्देश्य हैजा के टीकाकरण की दक्षता और पहुँच को बढ़ाना है।

प्रारंभिक परीक्षा

साहित्य में नोबेल पुरस्कार- 2023

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

हाल ही में मानवीय भावनाओं को सरल शब्दों में व्यक्त करने वाले अनकही की आवाज़ जॉन फॉसे को "उनके अभिनव नाटकों और गद्य के लिये" साहित्य का नोबेल पुरस्कार- 2023 दिया गया है।

नोट:

  • वर्ष 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार रवीन्द्रनाथ टैगोर को "उनकी अत्यधिक संवेदनशील और सुंदर कविता” के लिये प्रदान किया गया था, जिसके द्वारा उन्होंने उत्कृष्ट कौशल के साथ अपने काव्य विचार को, अंग्रेज़ी जो पाश्चात्य साहित्य का एक अहम हिस्सा है, के शब्दों में व्यक्त किया।

जॉन फॉसे: 

  • जॉन फॉसे, नॉर्वे के लेखक और नाटककार हैं। फॉसे का कार्य उनकी नॉर्वेजियन नाइनोर्स्क पृष्ठभूमि की भाषा और प्रकृति में निहित है जो नॉर्वेजियन भाषा के दो आधिकारिक संस्करणों में आम बोलचाल में कम प्रयोग में लाया जाता है।
  • जॉन फॉसे को उनकी लेखन शैली के लिये जाना जाता है, जिसे प्रायः "फॉसे मिनिमलिज़्म" कहा जाता है।
  • उनकी शैली की विशेषता सरल, न्यूनतम और मार्मिक संवाद है, उनकी तुलना सैमुअल बेकेट और हेरोल्ड पिंटर जैसे साहित्यिक दिग्गजों से की जाती है, जिन्हें पहले ही साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। 
    • उनके विषय बेतुकेपन, निरर्थकता और फिर भी मानव स्थिति की शक्ति का पता लगाते हैं, दैनिक के भ्रम एवं विद्रोह करते हैं तथा वास्तविक कनेक्शन बनाने में आने वाली कठिनाई का पता लगाते हैं।
  • फॉसे की उल्लेखनीय कृतियों में "ए न्यू नेम: सेप्टोलॉजी VI-VII," "आई एम द विंड," "मेलानचोली," "बोटहाउस," और "द डेड डॉग्स" शामिल हैं।

साहित्य के क्षेत्र में हाल के अन्य नोबेल पुरस्कार विजेता:

  • वर्ष 2022:
    • एनी एर्नाक्स को "उस साहस और नैदानिक तीक्ष्णता के लिये जिसके साथ वह व्यक्तिगत स्मृति की जड़ों, अलगाव तथा सामूहिक बाधाओं को उजागर करती है"।
  • वर्ष 2021:
    • अब्दुलरज़ाक गुरनाह को "उपनिवेशवाद के प्रभावों और संस्कृतियों तथा महाद्वीपों के खाड़ी देशों में शरणार्थियों की स्थिति के प्रति उनके दयालु एवं दृढ़ भावना के लिये।"
  • वर्ष 2020:
    • लुईस ग्लुक  को " उनकी अचूक काव्यात्मक आवाज़ के लिये जो गंभीर सुंदरता के साथ व्यक्तिगत अस्तित्व को सार्वभौमिक बनाती है"।

नोबेल पुरस्कार 2023 की अन्य घोषणाओं का संदर्भ: रसायन विज्ञान, भौतिकी, शरीर विज्ञान या चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार।


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