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सामाजिक न्याय

कारागार सुधार

  • 23 Jan 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पुलिस महानिदेशकों/महानिरीक्षकों का 57वाँ अखिल भारतीय सम्मेलन, राष्ट्रीय डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क, आपराधिक न्याय प्रणाली, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB)-कारागार सांख्यिकी, भारत, हिरासत में बलात्कार, अमिताव रॉय (सेवानिवृत्त) समिति।  

मेन्स के लिये:

भारत में कारागार प्रशासन की स्थिति, भारत में कारागार से संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में प्रधानमंत्री ने खुफिया ब्यूरो (IB) द्वारा आयोजित पुलिस महानिदेशकों/महानिरीक्षकों के 57वें अखिल भारतीय सम्मेलन में कारागार प्रबंधन में सुधार के लिये कारागार सुधारों का सुझाव दिया तथा अप्रचलित आपराधिक कानूनों को निरस्त करने की सिफारिश की।  

प्रधानमंत्री के संबोधन की मुख्य बातें:

  • उन्होंने एजेंसियों के बीच डेटा विनिमय को सुचारू बनाने के लिये राष्ट्रीय डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
    • साथ ही पुलिस बलों को और अधिक संवेदनशील बनाना तथा उन्हें उभरती प्रौद्योगिकियों में प्रशिक्षित करना।
  • उन्होंने बायोमेट्रिक्स आदि जैसे तकनीकी समाधानों का लाभ उठाने तथा पैदल गश्त जैसे पारंपरिक पुलिसिंग तंत्र को और मज़बूत करने की आवश्यकता के बारे में बात की।
  • उन्होंने उभरती चुनौतियों पर चर्चा करने तथा अपनी टीमों के बीच सर्वोत्तम प्रथाओं को विकसित करने के लिये राज्य/ज़िला स्तरों पर DGsP/IGsP सम्मेलन के मॉडल की नकल करने एवं सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने हेतु राज्य पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों के बीच सहयोग बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया।

भारत में कारागार प्रशासन की स्थिति:

  • परिचय:  
    • कारागार प्रशासन आपराधिक न्याय प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। पिछली सदी में कैदियों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में एक आदर्श बदलाव आया है।
      • दंडात्मक रवैये के साथ कारागार की पूर्व प्रणाली में जहाँ कैदियों को ज़बरन कैद किया जाता था और दंड के रूप में विभिन्न प्रकार की स्वतंत्रता से वंचित किया जाता था, कारागार और कैदियों के प्रति सामाजिक धारणा में बदलाव आया है।  
    • इसे अब एक सुधार या सुधार सुविधा के रूप में माना जाता है जो स्वयं इंगित करती है कि कैदियों को दंडित करने की तुलना में उनके सुधार पर अधिक ज़ोर दिया जाता है।
  • भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली की संरचना:  
    • भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली उन सरकारी एजेंसियों से बनी है जो कानून लागू करती हैं, अपराधों पर  न्याय करती हैं और आपराधिक व्यवहार में बदलाव लाकर उसे सही करती हैं।
    • इसके चार उपतंत्र हैं:
      • विधायिका (संसद)
      • प्रवर्तन (पुलिस)
      • अधिनिर्णय (न्यायालय)
      • सुधार (जेल, सामुदायिक सुविधाएँ)
  • भारत में कारावास से संबंधित मुद्दे:
    • लंबित मामलों की संख्या: 2022 के रिकॉर्ड के अनुसार, न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों पर भारतीय अदालतों में 4.7 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं।
    • औपनिवेशिक प्रकृति और अप्रचलित कानून: भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली के मूल और प्रक्रियात्मक दोनों पहलुओं को ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में राष्ट्र पर शासन करने के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया था।
      • इस आलोक में 19वीं सदी के इन कानूनों की प्रासंगिकता 21वीं सदी में बहस का विषय बनी हुई है।
    • सलाखों के पीछे अमानवीय व्यवहार: वर्षों से आलोचकों ने बार-बार जेल कर्मचारियों के उदासीन और यहाँ तक ​​कि अमानवीय व्यवहार के बारे में शिकायत की है।
    • भीड़भाड़: भारत में कई जेलों में भीड़भाड़ है, कैदियों को रखने हेतु निर्मित कारावासों में क्षमता से अधिक कैदियों को भरा जा रहा है।
      • उदाहरण के लिये वर्ष 2020 में यह बताया गया कि दिल्ली की तिहाड़ जेल, जिसकी क्षमता लगभग 7,000 कैदियों की है, में 15,000 से अधिक कैदी थे।
    • अपर्याप्त स्टाफ: भारत में कई जेलों में कर्मचारियों की कमी है, जिससे खराब स्थिति और सुरक्षा की कमी हो सकती है।  
      • उदाहरण के लिये वर्ष 2020 में यह बताया गया कि तमिलनाडु के चेन्नई में पुझल केंद्रीय कारागार में प्रत्येक 100 कैदियों के लिये केवल एक गार्ड है।
      • साथ ही कारागार अधिनियम 1894 एवं बंदी अधिनियम 1900 के अनुसार, प्रत्येक जेल में एक कल्याण अधिकारी एवं एक विधि अधिकारी होना चाहिये लेकिन इन अधिकारियों की भर्ती लंबित रहती है।

आगे की राह 

  • कारागारों को सुधारात्मक संस्थान बनाना: कारागारों को "सुधारात्मक संस्थानों" और पुनर्वास केंद्रों में बदलने का आदर्श नीतिगत नुस्खा तभी साकार हो सकता है जब अत्यधिक कार्यभार, अवास्तविक रूप से कम बजटीय आवंटन एवं प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के संबंध में पुलिस की नासमझी जैसी समस्याओं का समाधान किया जाए।
  • कारागार सुधारों की सिफारिश: सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति अमिताव रॉय (सेवानिवृत्त) समिति की नियुक्ति की, जिसने कारागारों की भीड़भाड़ की समस्या को दूर करने के लिये निम्नलिखित सिफारिशें प्रस्तुत की हैं: 
    • कारागार में भीड़भाड़ की समस्या को दूर करने के लिये स्पीडी ट्रायल सबसे अच्छे तरीकों में से एक है।
    • प्रति 30 कैदियों के लिये कम-से-कम एक वकील होना चाहिये, जो कि फिलहाल नहीं है।
    • पाँच वर्ष से अधिक समय से लंबित छोटे-मोटे अपराधों से निपटने के लिये विशेष फास्ट-ट्रैक न्यायालयों की स्थापना की जानी चाहिये।
    • दलील सौदेबाज़ी (प्ली बार्गेनिंग) की अवधारणा, जिसके तहत किसी दंडनीय अपराध के लिये आरोपित व्यक्ति अपना अपराध स्वीकार कर कानून के तहत निर्धारित सज़ा से कम सज़ा प्राप्त करने के लिये अभियोजन से सहायता लेता है, को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • कारागार प्रबंधन में सुधार: इसमें कारागार कर्मचारियों को उचित प्रशिक्षण और संसाधन प्रदान करने के साथ-साथ निगरानी तथा उत्तरदायित्त्व के लिये प्रभावी प्रणाली लागू करना शामिल है।
    • इसमें कैदियों को स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता और चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करना भी शामिल है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न 1. मृत्यु दंडादेशों के लघुकरण में राष्ट्रपति के विलंब के उदाहरण न्याय प्रत्याख्यान (डिनायल) के रूप में लोक वाद-विवाद के अधीन आए हैं।। क्या राष्ट्रपति द्वारा ऐसी याचिकाओं को स्वीकार/अस्वीकार करने के लिये एक समयसीमा का विशेष रूप से उल्लेख किया जाना चाहिये? विश्लेषण कीजिये। (2014)

प्रश्न 2. भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) सर्वाधिक प्रभावी तभी हो सकता है जब इसके कार्यों को सरकार की जवाबदेही को सुनिश्चित करने वाले अन्य यांत्रिकत्त्वों (मैकेनिज़्म) द्वारा पर्याप्त समर्थन प्राप्त हो। उपरोक्त टिपण्णी के प्रकाश में मानव अधिकारों की प्रोन्नत करने और उनकी रक्षा करने में न्यायपालिका तथा  अन्य संस्थानों के प्रभावी पूरक के तौर पर NHRC की भूमिका का आकलन कीजिये। (2014)

स्रोत: द हिंदू

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