नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 06 Aug, 2022
  • 88 min read
शासन व्यवस्था

व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक की वापसी

प्रिलिम्स के लिये:

डेटा संरक्षण, व्यक्तिगत डेटा, प्राइवेसी, पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, डेटा लोकलाइज़ेशन, अन्य संबंधित कानून

मेन्स के लिये:

व्यक्तिगत डेटा संरक्षण का महत्त्व, डेटा सुरक्षा की चुनौतियाँ, डेटा सुरक्षा बिल के कार्यान्वयन हेतु उपाय

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने संसद से व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक वापस ले लिया है क्योंकि यह विधेयक देश में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये ऑनलाइन स्थान को विनियमित करने हेतु “व्यापक कानूनी ढाँचे” पर विचार करता है।

व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक और इसकी प्रमुख चुनौतियाँ:

  • परिचय:
    • व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री द्वारा 11 दिसंबर, 2019 को लोकसभा में पेश किया गया था।
    • आमतौर पर इसे "गोपनीयता विधेयक" के रूप में जाना जाता है, इसका उद्देश्य व्यक्तिगत डेटा (जो कि व्यक्ति की पहचान कर सकता है) के संग्रह, संचालन और प्रक्रिया को विनियमित करके व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करना है।
  • चुनौतियाँ:
    • कई लोगों का तर्क है कि डेटा का भौतिक स्थान (Physical Location of the Data) साइबर दुनिया में प्रासंगिक नहीं है क्योंकि एन्क्रिप्शन कुंजी अभी भी राष्ट्रीय एजेंसियों की पहुँच से बाहर हो सकती है।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा या उचित उद्देश्य खुले और व्यक्तिपरक शब्द हैं, जिससे नागरिकों के निजी जीवन में राज्य की घुसपैठ हो सकती है।
    • फेसबुक और गूगल जैसी बड़ी प्रौद्योगिकियाँ इसके खिलाफ हैं और उन्होंने डेटा स्थानीयकरण की संरक्षणवादी नीति की आलोचना की है क्योंकि उन्हें डर है कि इसका अन्य देशों पर भी प्रभाव पड़ेगा।
      • सोशल मीडिया फर्मों, विशेषज्ञों और यहाँ तक कि मंत्रियों ने भी इसका विरोध किया था, जिन्होंने कहा था कि उपयोगकर्त्ताओं एवं कंपनियों दोनों के लिये प्रभावी तथा फायदेमंद होने हेतु इसमें बहुत सी कमियाँ हैं।
      • इसके अलावा इसका भारत के अपने युवा स्टार्टअप्स पर जो कि वैश्विक विकास का प्रयास कर रहे हैं, या भारत में विदेशी डेटा को संसाधित करने वाली बड़ी फर्मों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।

विधेयक  वापस लेने का कारण:

  • बहुत अधिक संशोधन:
    • संयुक्त संसदीय समिति (JCP) ने व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 का विस्तृत विश्लेषण किया।
      • इस संबंध में 81 संशोधन प्रस्तावित किये गए थे, साथ ही डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र पर एक व्यापक कानूनी ढाँचे की दिशा में 12 सिफारिशें की गई थीं।
      • JCP की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक कानूनी ढाँचे पर काम किया जा रहा है।
        • इसलिये इसे वापस लेने का प्रस्ताव आया।
  • गहन अनुपालन:
    • विधेयक को देश के स्टार्टअप्स द्वारा "गहन अनुपालन के रूप में भी देखा गया था।
    • विशेष रूप से स्टार्टअप के लिये संशोधित बिल का अनुपालन करना बहुत आसान होगा।
  • डेटा स्थानीयकरण के मुद्दे:
    • टेक कंपनियों ने विधेयक में डेटा स्थानीयकरण नामक प्रस्तावित प्रावधान पर सवाल उठाया।
      • डेटा स्थानीयकरण के तहत कंपनियों के लिये भारत के भीतर कुछ संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा की एक प्रति संग्रहीत करना अनिवार्य होगा और देश से अपरिभाषित "महत्त्वपूर्ण" व्यक्तिगत डेटा का निर्यात प्रतिबंधित होगा।
      • कार्यकर्त्ताओं ने आलोचना की थी कि यह केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों को विधेयक के किसी भी और सभी प्रावधानों का पालन करने से पूरी छूट देगा।
  • हितधारकों की नकारात्मक प्रतिक्रिया:
    • इस विधेयक को हितधारकों की नकारात्मक आलोचना का सामना करना पड़ा, ये हितधारक हैं फेसबुक, गूगल जैसी बड़ी टेक कंपनियों और गोपनीयता एवं  नागरिक समाज के कार्यकर्त्ता।
  • कार्यान्वयन में देरी:
    • विधेयक में देरी के लिये कई हितधारकों ने आलोचना करते हुए कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि भारत के पास लोगों की गोपनीयता की रक्षा हेतु कोई बुनियादी ढाँचा नहीं है।

संयुक्त संसदीय समिति की सिफारिशें:

  • इसने श्रीकृष्ण पैनल द्वारा अंतिम रूप दिये गए विधेयक में 81 संशोधन और गैर-व्यक्तिगत डेटा पर चर्चा को कवर करने के लिये प्रस्तावित कानून के दायरे के विस्तार सहित 12 सिफारिशों का प्रस्ताव रखा था, इसलिये 'व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को वापस लेने और एक नया विधेयक जो व्यापक कानूनी ढाँचे में फिट बैठता हो प्रस्तुत किया जाएगा।
    • गैर-व्यक्तिगत डेटा, डेटा का ऐसा समूह है जिसमें व्यक्तिगत रूप से पहचान योग्य जानकारी नहीं होती है।
  • JCP की रिपोर्ट में सोशल मीडिया कंपनियों के नियमन और स्मार्टफोन में केवल "विश्वसनीय हार्डवेयर" का उपयोग करने आदि जैसे मुद्दों पर बदलाव की सिफारिश की गई है।
  • इसने प्रस्तावित किया कि सोशल मीडिया कंपनियाँ जो बिचौलियों के रूप में कार्य नहीं करती हैं, उन्हें सामग्री प्रकाशक के रूप में माना जाना चाहिये, जिससे उनके द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली सामग्री के लिये वे उत्तरदायी हो जाते हैं।

आगे की राह

  • डेटा स्थानीयकरण:
    • डेटा को ऐसे रूप में संग्रहीत किया जाना चाहिये जिस पर भारत सरकार का भरोसा हो और यह डेटा अपराध की जाँच के मामले में सुलभ होना चाहिये।
    • सरकार केवल "विश्वसनीय भौगोलिक सीमा" के पार डेटा प्रवाह की अनुमति देने पर भी विचार कर सकती है।
  • डेटा का वर्गीकरण:
    • नया विधेयक डेटा स्थानीयकरण के दृष्टिकोण से व्यक्तिगत डेटा के वर्गीकरण को भी समाप्त कर सकता है और केवल उस स्थिति में डेटा का वर्गीकरण किया जा सकता है यदि किसी कंपनी द्वारा किसी के व्यक्तिगत डेटा के साथ छेड़-छाड़ की गई हो।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न. 'निजता का अधिकार' भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के तहत संरक्षित है?

(a) अनुच्छेद 15
(b) अनुच्छेद 19
(c) अनुच्छेद 21
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामला, 2017 में निजता के अधिकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक मौलिक अधिकार घोषित किया गया था।
  • निजता का अधिकार, अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक भाग के रूप में तथा भारतीय संविधान के भाग III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के एक भाग के रूप में संरक्षित है।
  • निजता व्यक्तिगत स्वायत्तता की रक्षा करती है और जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को नियंत्रित करने की क्षमता को पहचानती है। निजता एक पूर्ण अधिकार नहीं है लेकिन इस पर कोई भी आक्रमण इसकी वैधता, आवश्यकता तथा आनुपातिकता पर आधारित होना चाहिये।
  • अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

प्रश्न. निजता का अधिकार  जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक भाग के रूप में संरक्षित है। निम्नलिखित में से कौन-सा भारत के संविधान में उपर्युक्त्त कथन का सही और उचित अर्थ है? (2018)

(a) अनुच्छेद 14 और संविधान के 42वें संशोधन के तहत प्रावधान।
(b) अनुच्छेद 17 और भाग IV में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत।
(c) अनुच्छेद 21 और भाग III में गारंटीकृत स्वतंत्रता।
(d) अनुच्छेद 24 और संविधान के 44वें संशोधन के तहत प्रावधान।

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय के नौ-न्यायाधीशों की बेंच ने जस्टिस के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले में सर्वसम्मति से पुष्टि की कि निजता का अधिकार भारतीय संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है।
  • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह घोषणा की थी कि अनुच्छेद 21 में गारंटीकृत प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार में निजता का अधिकार भी शामिल है।
  • निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक भाग के रूप में तथा संविधान के भाग-III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के हिस्से के रूप में संरक्षित किया गया है।
  • अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

प्रश्न. निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में मौलिक अधिकारों के दायरे का परीक्षण कीजिये। ( मुख्य परीक्षा 2017)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत और सतत् विकास लक्ष्य

प्रिलिम्स के लिये:

सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी), संयुक्त राष्ट्र, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना, हरित जलवायु कोष (जीसीएफ)।

मेन्स के लिये:

सतत् विकास लक्ष्य (SDGs) और लक्ष्यों को प्राप्त करने में भारत की अग्रणी भूमि का।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा को एक लिखित उत्तर में केंद्रीय राज्य मंत्री (पर्यावरण, वन और जलवायु) ने कहा कि भारत लगातार अपने सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त कर रहा है।

सतत् विकास लक्ष्य (SDG):

  • सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को वैश्विक लक्ष्यों के रूप में भी जाना जाता है, वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा गरीबी को समाप्त करने, ग्रह की रक्षा करने और वर्ष 2030 तक सभी की शांति एवं समृद्धि को सुनिश्चित करने के लिये इसे एक सार्वभौमिक आह्वान के रूप में अपनाया गया था
    • 17 SGDs एकीकृत हैं- इन लक्ष्यों के अंतर्गत एक क्षेत्र में की गई कार्रवाई दूसरे क्षेत्र के परिणामों को प्रभावित करेगी और इनके अंतर्गत सामाजिक, आर्थिक तथा पर्यावरणीय रूप से स्थिर/वहनीय विकास होगा।
    • यह पिछड़े देशों को विकास क्रम में प्राथमिकता प्रदान करता है।
    • SDGs को गरीबी, भुखमरी, एड्स और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने के लिये बनाया गया है।
    • भारत ने हाल के वर्षों में विशेष रूप से SDGs के 13वें लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण प्रयास किये हैं।
      • यह लक्ष्य जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों से निपटने के लिये तत्काल कार्रवाई करने का आह्वान करता है।

SDG

जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों की प्राप्ति में भारत की प्रगति:

  • भारत ने वर्ष 2020 से पहले के अपने स्वैच्छिक लक्ष्य को हासिल कर लिया है। संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के तहत कोई बाध्यकारी दायित्व नहीं होने के बावजूद, वर्ष 2009 में भारत ने वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2020 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 20-25% तक कम करने के अपने स्वैच्छिक लक्ष्य की घोषणा की।
    • भारत ने वर्ष 2005 और 2016 के बीच अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 24% की कमी की है।
  • पेरिस समझौते के अनुसार, भारत ने वर्ष 2015 में UNFCCC में अपन राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) प्रस्तुत किया, जिसमें वर्ष 2021-2030 की अवधि के लिये आठ लक्ष्यों की रूपरेखा को शामिल किया गया है, ये हैं:
    • अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक 33 से 35% तक कम करना।
    • वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40% संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता प्राप्त करने के लिये हरित जलवायु कोष (GCF) सहित प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण और कम लागत वाली अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सहायता प्राप्त करना।
    • वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्षों के आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन CO2 के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक का निर्माण करना।
    • अन्य लक्ष्य स्थायी जीवनशैली से संबंधित हैं; जलवायु के अनुकूल विकास पथ; जलवायु परिवर्तन अनुकूलन; जलवायु वित्त; प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण।
    • जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिये भारत की हालिया पहल (और इस तरह सतत् विकास लक्ष्य को प्राप्त करना)- वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो, हरित ऊर्जा संक्रमण आदि।

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC):

  • उपर्युक्त लक्ष्यों के अलावा, भारत सरकार जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना को भी लागू कर रही है जो शमन और अनुकूलन सहित सभी जलवायु कार्यों के लिये एक व्यापक नीतिगत ढाँचा प्रदान करती है।
  • इसमें सौर ऊर्जा के विशिष्ट क्षेत्रों में आठ मुख्य मिशन शामिल हैं- ऊर्जा दक्षता में वृद्धि, स्थायी आवास, जल, हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र, हरित भारत, स्थायी कृषि और जलवायु परिवर्तन के लिये रणनीतिक ज्ञान।
  • 33 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने NAPCC के उद्देश्यों के अनुरूप जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्ययोजना (SAPCC) तैयार की है।
  • भारत के राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अनुकूलन गतिविधियों को राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कोष (NAFCC) के माध्यम से समर्थन दिया जा रहा है।
    • NAFCC को प्रोजेक्ट मोड में लागू किया गया है और अब तक 27 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में NAFCC के तहत 30 अनुकूलन परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई है।

आगे की राह

  • भारत जैसे विविधता वाले देश में SDG हासिल करना निश्चित रूप से एक कठिन कार्य होगा, लेकिन यह असंभव नहीं है।
  • हमें प्राथमिकताओं को स्पष्ट रूप से पहचानने, स्थानीय रूप से प्रासंगिक और जन-केंद्रित विकास नीतियाँ एवं मज़बूत भागीदारी बनाने की आवश्यकता है।
  • सरकार को प्रभाव पर नज़र रखने और मूल्यांकन करने तथा सफल हस्तक्षेपों को बढ़ाने के लिये एक केंद्रित योजना की भी आवश्यकता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. सतत् विकास लक्ष्यों को पहली बार 1972 में 'क्लब ऑफ रोम' नामक एक वैश्विक थिंक टैंक द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
  2. सतत् विकास लक्ष्यों को 2030 तक हासिल करना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: B

व्याख्या:

  • 17 सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को वैश्विक लक्ष्यों के रूप में भी जाना जाता है, वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा गरीबी को समाप्त करने, ग्रह की रक्षा करने और वर्ष 2030 तक सभी की शांति और समृद्धि को सुनिश्चित करने के लिये इसे एक सार्वभौमिक आह्वान के रूप में अपनाया गया था।
  • ये सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों की सफलता के आधार पर बनाए गए हैं, जिसमें जलवायु परिवर्तन, आर्थिक असमानता, नवाचार, स्थायी उपभोग, शांति और न्याय जैसे नए क्षेत्रों सहित अन्य प्राथमिकताएँ शामिल हैं।
  • इन लक्ष्यों के उद्देश्य आपस में अंतःसंबंधित हैं, एक की सफलता से दूसरे मुद्दे की सफलता सुनिश्चित होती है।
  • वर्ष 2015 में अपनाया गया SDG जनवरी 2016 में प्रभावी हुआ। इसे 2030 तक हासिल किया जाना है। अतः कथन 2 सही है।
  • SDG की उत्पति वर्ष 2012 में रियो डी जनेरियो में सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में हुई थी। क्लब ऑफ रोम ने पहली बार वर्ष 1968 में अधिक व्यवस्थित तरीके से संसाधनों के संरक्षण की वकालत की थी। अतः कथन 1 सही नहीं है।

प्रश्न. सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच अनिवार्य है।" इस संबंध में भारत में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018)।

प्रश्न. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 सतत् विकास लक्ष्य-4 (2030) के अनुरूप है। यह भारत में शिक्षा प्रणाली के पुनर्गठन और पुनर्रचना का इरादा रखती है। कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020)

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

आदर्श किरायेदारी अधिनियम

प्रिलिम्स के लिये:

मॉडल टेनेंसी एक्ट।

मेन्स के लिये:

मॉडल टेनेंसी अधिनियम और उसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) के अनुसार, आदर्श किराएदार अधिनियम (मॉडल टेनेंसी एक्ट) को अभी तक केवल चार राज्यों, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और असम द्वारा ही संशोधित किया गया है।

मॉडल टेनेंसी अधिनियम की आवश्यकता:

  • मौजूदा किराया नियंत्रण कानून किराये के आवास के विकास में बाधा डाल रहा है और यह मकान-मालिक को अपने खाली मकानों पर फिर से कब्ज़ा किये जाने के डर से उन्हें किराये पर देने से हतोत्साहित करता है।
  • खाली घर को किराये पर देने के संभावित उपायों में किरायेदारी की मौजूदा प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना तथा संपत्ति के मालिक एवं किरायेदार दोनों के हितों को विवेकपूर्ण तरीके से संतुलित करना है।
    • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में 1 करोड़ से अधिक घर खाली पड़े हैं।
  • इससे पहले सभी भारतीयों में से लगभग एक-तिहाई शहरी क्षेत्रों में रह रहे थे, जिनका अनुपात 2001 में 27.82 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2011 में 31.16 प्रतिशत हो गया था। वर्ष 2050 तक भारत के आधे से ज़्यादा लोग मुख्य रूप से प्रवास के कारण शहरों या कस्बों में रह रहे होंगे।

मॉडल टेनेंसी एक्ट:

  • परिचय:
    • मॉडल टेनेंसी एक्ट, 2021 का उद्देश्य परिसर के किराये को विनियमित करने और ज़मींदारों तथा किरायेदारों के हितों की रक्षा करने के लिये एवं विवादों तथा उससे जुड़े मामलों या संबंधित मामलों के समाधान हेतु त्वरित न्यायनिर्णयन तंत्र प्रदान करने के लिये किराया प्राधिकरण की स्थापना करना है।
    • इसका उद्देश्य देश में एक जीवंत, टिकाऊ और समावेशी रेंटल हाउसिंग मार्केट बनाना है।
    • यह सभी आय समूहों के लिये पर्याप्त किराये के आवासों के निर्माण को सक्षम करेगा जिससे बेघरों की समस्या का समाधान होगा।
    • यह धीरे-धीरे औपचारिक बाज़ार की ओर स्थानांतरित होकर किराये के आवास के संस्थागतकरण को सक्षम करेगा।
  • प्रमुख प्रावधान:
    • लिखित समझौता अनिवार्य:
      • इसके लिये संपत्ति के मालिक और किरायेदार के बीच लिखित समझौता होना अनिवार्य है।
    • स्वतंत्र प्राधिकरण और रेंट कोर्ट की स्थापना:
      • यह अधिनियम किरायेदारी समझौतों के पंजीकरण के लिये हर राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में एक स्वतंत्र प्राधिकरण स्थापित करता है तथा यहाँ तक कि किरायेदारी संबंधी विवादों को सुलझाने हेतु एक अलग अदालत भी स्थापित करता है।
    • सिक्योरिटी डिपॉज़िट के लिये अधिकतम सीमा:
      • इस अधिनियम में किरायेदार की एडवांस सिक्योरिटी डिपॉज़िट (Advance Security Deposit) को आवासीय उद्देश्यों के लिये अधिकतम दो महीने के किराये और गैर-आवासीय उद्देश्यों हेतु अधिकतम छह महीने तक सीमित किया गया है।
    • मकान मालिक और किरायेदार के अधिकारों तथा दायित्वों का वर्णन करता है:
      • मकान मालिक संरचनात्मक मरम्मत (किरायेदार की वजह से हुई क्षति को नहीं) जैसे- दीवारों की सफेदी, दरवाज़ों और खिड़कियों की पेंटिंग आदि जैसी गतिविधियों के लिये ज़िम्मेदार होगा।
      • किरायेदार नाली की सफाई, स्विच और सॉकेट की मरम्मत, खिड़कियों में काँच के पैनल को बदलने, दरवाज़ों एवं बगीचों तथा खुले स्थानों के रखरखाव आदि के लिये ज़िम्मेदार होगा।
    • मकान मालिक द्वारा 24 घंटे पूर्व सूचना:
      • मकान मालिक को मरम्मत या प्रतिस्थापन करने के लिये किराये के परिसर में प्रवेश करने से पहले 24 घंटे पूर्व सूचना देनी होगी।
    • परिसर खाली करने के लिये तंत्र:
      • यदि किसी मकान मालिक ने रेंट एग्रीमेंट में बताई गई सभी शर्तों को पूरा किया है जैसे- नोटिस देना आदि और किरायेदार किराये की अवधि या समाप्ति पर परिसर को खाली करने में विफल रहता है, तो मकान मालिक मासिक किराये को दोगुना करने का हकदार है।
  • महत्त्व:
    • इस अधिनियम के अंतर्गत स्थापित प्राधिकरण विवादों और अन्य संबंधित मामलों को सुलझाने हेतु एक त्वरित तंत्र प्रदान करेगा।
    • यह अधिनियम पूरे देश में किराये के आवास के संबंध में कानूनी ढाँचे का कायापलट करने में मदद करेगा।
    • इससे आवास की भारी कमी को दूर करने के लिये एक व्यवसाय मॉडल के रूप में किराये के आवास में निजी भागीदारी को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
  • चुनौतियाँ:
    • यह अधिनियम राज्यों के लिये बाध्यकारी नहीं है क्योंकि भूमि और शहरी विकास राज्य के विषय हैं।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ट्यूनीशिया में पावर ग्रैब

प्रिलिम्स के लिये:

ट्यूनीशिया का भूगोल, इसके पड़ोसी देश और जलमार्ग

मेन्स के लिये:

संविधान में परिवर्तन का देश पर प्रभाव, सरकारी प्रणाली के प्रकार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ट्यूनीशिया में एक नए संविधान को मंज़ूरी देने के लिये जनमत संग्रह किये जाने के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, जिससे देश में फिर से राष्ट्रपति शासन लागू हो जाएगा।

Tunisia

विरोध प्रदर्शन:

  • ट्यूनीशियाई मतदाताओं ने एक नए संविधान को मंज़ूरी दी है जो देश को एक राष्ट्रपति शासन में बदल देगा, राष्ट्रपति कैस सैयद के एक-व्यक्ति शासन (जिन्होंने निर्वाचित संसद को निलंबित कर दिया और वर्ष 2021 में खुद को और अधिक शक्तियाँ प्रदान कीं) को यह संस्थागत रूप देगा, जिन्होंने निर्वाचित संसद को निलंबित कर दिया तथा पिछले साल खुद को और अधिक शक्तियाँ प्रदान कीं।
  • प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि नया संविधान ट्यूनीशिया में स्थापित उस लोकतंत्र को समाप्त कर देगा जिसकी प्राप्ति वर्ष 2011 की अरब स्प्रिंग (जैस्मीन) क्रांति के बाद हुई थी और देश को वापस एक सत्तावादी स्थिति में पहुँचा देगा।

अरब स्प्रिंग:

  • परिचय:
    • अरब स्प्रिंग, लोकतंत्र समर्थक विरोध और विद्रोह की लहर जो वर्ष 2010 और 2011 में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में शुरू हुई ने इस क्षेत्र के कुछ सत्तावादी शासनों को चुनौती दी।
    • यह लहर तब शुरू हुई जब ट्यूनीशिया और मिस्र में विरोध प्रदर्शनों ने अन्य अरब देशों को इसी तरह के प्रयासों के लिये प्रेरित करते हुए त्वरित शासन को उखाड़ फेंका।
    • विरोध आंदोलन हर देश में सफल नहीं रहे हैं, हालाँकि अपनी राजनीतिक और आर्थिक मांगों के लिये आंदोलन करने वाले प्रदर्शनकारियों को अक्सर उनके देशों के सुरक्षा बलों की हिंसक कार्रवाई का सामना करना पड़ा है।
  • ट्यूनीशिया:
    • वर्ष 2011 में तानाशाही को लेकर हुए लोकप्रिय जन विरोध की घटना वाले देशों में ट्यूनीशिया एकमात्र ऐसा देश था जहाँ लोकतंत्र को एक सफल परिवर्तन के रूप में देखा गया।
    • दिसंबर 2010 में ट्यूनीशिया में अरब स्प्रिंग का विरोध शुरू हुआ, जिससे ज़ीन एल अबिदीन बेन अली (वर्ष 1987 से सत्तारूढ़) के शासन का पतन हो गया।
      • इसे ट्यूनीशिया में जैस्मीन क्रांति के रूप में भी जाना जाता था।
    • जन विद्रोह के कारण बेन अली को देश छोड़कर भागना पड़ा।
      • शीघ्र ही विरोध अन्य अरब देशों जैसे- मिस्र, लीबिया, बहरीन, यमन और सीरिया में फैल गया।
  • मिस्र:
    • जबकि प्रदर्शनकारियों ने मिस्र में होस्नी मुबारक की 30 साल की तानाशाही को समाप्त कर दिया जिससे उस देश में क्रांति लंबे समय तक नहीं चली।
    • वर्ष 2013 में सेना ने मुस्लिम ब्रदरहुड के नेता राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी की निर्वाचित सरकार को गिराने के लिये सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया।
  • लीबिया:
    • लीबिया में मोहम्मद गद्दाफी के खिलाफ विरोध गृहयुद्ध में बदल गया, जिसमें उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) द्वारा सैन्य हस्तक्षेप देखा गया।
      • नाटो के हस्तक्षेप ने गद्दाफी शासन को गिरा दिया (लीबिया के नेता की बाद में हत्या कर दी गई), लेकिन देश अराजकता और तानाशाही में बदल गया, जो आज भी इस समस्या से परेशान है।
  • अन्य देश:
    • सुन्नी राजशाही द्वारा शासित शिया बहुल देश बहरीन में पड़ोसी सऊदी अरब ने मनामा के पर्ल स्क्वायर में विरोध प्रदर्शनों को कुचलने के लिये सेना भेजी।
    • यमन में राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह को सत्ता छोड़नी पड़ी, लेकिन देश गृहयुद्ध में बदल गया, जिससे शिया हौथी विद्रोहियों का उदय हुआ और राजधानी सना पर अब उसका नियंत्रण है।
    • सीरिया में विरोध छद्म गृहयुद्ध में बदल गया, जिसमें राष्ट्रपति बशर अल-असद के प्रतिद्वंद्वियों ने अपने दुश्मनों का समर्थन किया और हिज़्बुल्लाह, ईरान एवं रूस के सहयोगियों ने शासन का समर्थन किया।

ट्यूनीशिया में राजनीतिक संकट का कारण:

  • मौजूदा तंत्र:
    • वर्ष 2014 के संविधान ने मिश्रित संसदीय और राष्ट्रपति प्रणाली की स्थापना की।
      • राष्ट्रपति और संसद दोनों का चुनाव सीधे मतदाताओं द्वारा किया जाता था।
      • राष्ट्रपति को सैन्य और विदेशी मामलों की देख-रेख करनी थी, जबकि अधिकांश सांसदों के समर्थन से चुने गए प्रधानमंत्री को शासन के दिन-प्रतिदिन के मामलों का प्रभार सौंपा गया था।
  • ट्यूनीशिया में समस्याएँ:
    • वर्ष 2011 से वर्ष 2021 के बीच देश में नौ सरकारें बनीं।
      • लोकतांत्रिक चुनावों में इस्लामवादी एन्नाहदा पार्टी, जिसका अखिल-इस्लामी मुस्लिम ब्रदरहुड आंदोलन से वैचारिक संबंध है, देश में एक मुख्य राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी, इसने धर्मनिरपेक्ष वर्गों को परेशान किया जिस कारण राजनीति अस्थिरता की स्थिति देखी गई।
    • इसकी अर्थव्यवस्था पहले से ही खराब स्थिति में थी और COVID-19 संकट ने इसे और खराब कर दिया।
      • ट्यूनीशिया में COVID मृत्यु दर दुनिया में सबसे अधिक है।
    • बढ़ते आर्थिक और स्वास्थ्य संकट के बीच पिछले वर्ष जुलाई में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे।
      • प्रदर्शनकारियों ने सत्ताधारी दल एन्नाहदा के कार्यालयों पर धावा बोल दिया।
  • संविधान में बदलाव:
    • अशांति को रोकने के लिये सईद ने एन्नाहदा समर्थित प्रधानमंत्री हिकेम मेचिच को बर्खास्त कर दिया और संसद को निलंबित कर दिया जिससे देश में एक संवैधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई।
    • वर्ष 2014 के संविधान के तहत ऐसे संकटों का निपटारा एक संवैधानिक न्यायालय द्वारा किया जाना चाहिये, लेकिन अभी तक न्यायालय का गठन नहीं हुआ।
      • इसने राष्ट्रपति को फरमानों द्वारा देश पर शासन करने की खुली छूट दी।
        • उन्होंने आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी।
        • सरकार चलाने के लिये एक प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
        • इस वर्ष की शुरुआत में संसद को भंग कर दिया और साथ ही खुद को और अधिक शक्तियाँ प्रदान करते हुए संविधान को नया रूप दिया।

संविधान में नए बदलाव:

  • हालाँकि इसने वर्ष 2014 के संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकांश व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बरकरार रखा है, नया चार्टर संसद की शक्तियों को कम करते हुए देश को राष्ट्रपति प्रणाली में वापस ले जाने का प्रयास है।
    • राष्ट्रपति के पास अंतिम अधिकार होगा:
      • सरकार बनाने का
      • मंत्रियों को नामित करने का (संसद की मंज़ूरी के बिना)
      • न्यायाधीशों की नियुक्ति करने
      • विधानसभा को सीधे विधायिका के रूप में प्रस्तुत करने का
  • उपर्युक्त सभी परिवर्तन सांसदों के लिये राष्ट्रपति को पद से हटाना व्यावहारिक रूप से असंभव बना देंगे।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न. हाल ही में, लोगों के विद्रोह की एक शृंखला जिसे 'अरब स्प्रिंग' कहा जाता है, मूल रूप में इसकी शुरुआत कहाँ से हुई? (2014)

(a) मिस्र
(b) लेबनान
(c) सीरिया
(d) ट्यूनीशिया

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • अरब स्प्रिंग दिसंबर 2010 में शुरू हुआ जब एक ट्यूनीशियाई फुटपाथ विक्रेता मोहम्मद बउज़िज़ी (Mohammed Bouaziz) ने परमिट प्राप्त करने में विफल होने पर पुलिस द्वारा उसके सब्जी स्टैंड को मनमाने ढंग से ज़ब्त करने का विरोध करते हुए खुद को आग लगा ली। ट्यूनीशिया में तथाकथित जैस्मिन क्रांति में बउज़िज़ी के बलिदान ने उत्प्रेरक के रूप में कार्य किया।
  • अरब के अन्य देशों के कार्यकर्त्ता ट्यूनीशिया में शासन परिवर्तन से प्रेरित थे और उन्होंने अपने ही राष्ट्रों में समान सत्तावादी सरकारों का विरोध करना शुरू कर दिया। अंततः ट्यूनीशिया में पहला लोकतांत्रिक संसदीय चुनाव अक्तूबर 2011 में संपन्न हुआ था।
  • वर्ष 2011 की शुरुआत में इसे अरब स्प्रिंग के रूप में जाना जाने लगा था तथा विरोध, विद्रोह एवं अशांति की यह लहर, जो उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व तक सीमित थी, अरबी भाषी देशों में भी फैल गई। लोकतंत्र समर्थक आंदोलन, जो सोशल मीडिया के कारण तेज़ी से फैल गया था, इसने ट्यूनीशिया, मिस्र, लीबिया तथा यमन की सरकारों को गिरा दिया।
  • हालाँकि कुछ देशों में ये आंदोलन पूर्ण पैमाने पर गृहयुद्ध में बदल गए, जैसा कि लीबिया, सीरिया और यमन जैसे देशों में देखा जा सकता है।

अतः विकल्प (d) सही है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

भारत में दूरसंचार नियंत्रण

प्रिलिम्स के लिये:

दूरसंचार विभाग (DoT), भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, मोबाइल वर्चुअल नेटवर्क ऑपरेटर (MVNO), 5G, प्रति उपयोगकर्त्ता औसत राजस्व (ARPU), भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI)।

मेन्स के लिये:

भारत में दूरसंचार क्षेत्र का महत्त्व और इसके नियमन की आवश्यकता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संचार मंत्रालय के तहत दूरसंचार विभाग (DoT) ने दूरसंचार क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले कानूनी ढाँचे को संशोधित करने की आवश्यकता पर इनपुट आमंत्रित किया है।

  • इसने परामर्श पत्र भी जारी किया है जिसमें नए कानूनी ढाँचे की आवश्यकता का सुझाव दिया गया है जो स्पष्ट, सटीक और बदलते अवसरों एवं अनुप्रयुक्त विज्ञान के अनुरूप है।

नए ढाँचे की आवश्यकता:

  • भारत में दूरसंचार के लिये कानूनी आधार को भारत की स्वतंत्रता से बहुत पहले बनाए गए कानूनों द्वारा परिभाषित किया गया है।
  • 1 अक्तूबर, 1885 को भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम लागू होने के बाद से हाल के दशकों में प्रौद्योगिकी काफी उन्नत हुई है। इसलिये हितधारक इसे बदलती प्रौद्योगिकी के अनुरूप रखने हेतु कानूनी ढाँचे के विकास की मांग कर रहे हैं।

सुझाव:

  • सहयोगात्मक विनियमन:
    • उदार और तकनीकी रूप से निष्पक्ष तरीके से स्पेक्ट्रम उपयोग को सक्षम करने वाला नया कानूनी ढाँचा विकसित करना।
    • साथ ही केंद्र सरकार को जनता के हित में स्पेक्ट्रम के उपयोग के लिये सहजता की गारंटी देना।
  • आवृत्ति की रेंज पर पुनर्विचार:
    • कानून में आवृत्ति की रेंज के पुन: निर्धारण और सामंजस्य के प्रावधानों को शामिल करने की आवश्यकता है।
  • सरलीकृत ढाँचा:
    • आगे विलय, विघटन और अधिग्रहण या विभिन्न प्रकार के पुनर्गठन के लिये ढाँचे को सरल बनाना।
    • सेवा की निरंतरता और सार्वजनिक हितों की रक्षा के बीच एक महत्त्वपूर्ण संतुलन बनाना।
  • सुरक्षा बढ़ाना:
    • सार्वजनिक आपात स्थिति एवं सार्वजनिक सुरक्षा की शर्तों को संबोधित करने तथा राष्ट्रव्यापी सुरक्षा प्रयासों के बीच समन्वय हेतु प्रावधान होना चाहिये।
  • सेवा की निरंतरता:
    • दूरसंचार क्षेत्र में दिवाला संबंधी मुद्दों के मामले में सेवा की निरंतरता पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
    • जब तक सेवाएँ प्रदान करना जारी रहता है तथा दूरसंचार लाइसेंस या स्पेक्ट्रम के उपयोग के लिये देय राशि के भुगतान में कोई चूक नहीं होती है, तब तक लाइसेंस के निलंबन की कार्यवाही नहीं होनी चाहिये।

भारत में दूरसंचार क्षेत्र की वर्तमान स्थिति:

  • परिचय:
    • दूरसंचार उद्योग को निम्नलिखित उप-क्षेत्रों में विभाजित किया गया है: इन्फ्रास्ट्रक्चर, उपकरण, मोबाइल वर्चुअल नेटवर्क ऑपरेटर्स (एमएनवीओ), व्हाइट स्पेस स्पेक्ट्रम, 5 जी, टेलीफोन सेवा प्रदाता और ब्रॉडबैंड।
    • भारत में दूरसंचार उद्योग अप्रैल 2022 तक 1.17 बिलियन ग्राहक (वायरलेस + वायरलाइन ग्राहक) आधार के साथ दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार है।
      • ग्रामीण बाज़ार का टेलीघनत्त्व (एक क्षेत्र में रहने वाले प्रत्येक सौ व्यक्तियों के लिये टेलीफोन कनेक्शन की संख्या) 58.16% है, जबकि शहरी बाज़ार का टेलीघनत्व 134.70% है।
    • एफडीआई प्रवाह के मामले में दूरसंचार क्षेत्र तीसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है, जो कुल एफडीआई प्रवाह में 7% योगदान देता है और प्रत्यक्ष रूप से 2.2 मिलियन रोज़गार तथा अप्रत्यक्ष रूप से 1.8 मिलियन नौकरियों में योगदान देता है।
      • 2014 और 2021 के बीच दूरसंचार क्षेत्र में FDI प्रवाह 2002-2014 के दौरान $8.32 बिलियन से 150% बढ़कर 20.72 बिलियन डॉलर हो गया।
  • मुद्दे:
    • प्रति उपयोगकर्त्ता औसत राजस्व में गिरावट (ARPU): ARPU में गिरावट स्थिर रूप से तीव्र है, जो घटते मुनाफे और कुछ मामलों में गंभीर नुकसान के साथ भारतीय दूरसंचार उद्योग को राजस्व बढ़ाने के एकमात्र तरीके के रूप में समेकन के लिये प्रेरित कर रही है।
    • अर्ध-ग्रामीण और ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार अवसंरचना की कमी: सेवा प्रदाताओं को अर्ध-ग्रामीण और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवेश करने के लिये भारी मात्रा में प्रारंभिक निश्चित लागत को वहन करना पड़ता है।
    • प्रतिस्पर्द्धा के कारण मार्जिन पर दबाव: रिलायंस जियो के प्रवेश के बाद प्रतिस्पर्द्धा तेज़ होने के साथ अन्य दूरसंचार कंपनियाँ वॉयस कॉल और डेटा (डेटा ग्राहकों के लिये अधिक महत्त्वपूर्ण) दोनों के लिये टैरिफ दरों में भारी गिरावट महसूस कर रही हैं।
  • सरकार की पहल:
    • सूचना प्रौद्योगिकी विभाग राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना के अनुसार, पूरे भारत में 1 मिलियन से अधिक इंटरनेट-सक्षम सामान्य सेवा केंद्र स्थापित करने का लक्ष्य है।
    • टेलीकॉम सेक्टर में FDI की सीमा 74 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत कर दी गई है जिसमें से 49% स्वचालित मार्ग के माध्यम से, जबकि शेष विदेशी निवेश सुविधा पोर्टल (FIPB) अनुमोदन मार्ग के माध्यम से किया जाएगा।
    • डार्क फाइबर, इलेक्ट्रॉनिक मेल और वॉइस-मेल की पेशकश करने वाले आधारभूत संरचना प्रदाताओं के लिये 100 प्रतिशत तक की FDI की अनुमति है।
    • वर्ष 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दूरसंचार क्षेत्र में कई संरचनात्मक और प्रक्रिया सुधारों को मंज़ूरी प्रदान की थी।

आगे की राह

  • इस क्षेत्र में विशाल अवसरों को देखते हुए दूरसंचार क्षेत्र में एक सक्रिय और सुविधाजनक सरकारी भूमिका की आवश्यकता है।
  • TDSAT (दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण) द्वारा एक अधिक सक्रिय और समय पर विवाद समाधान, समय की मांग है।
  • नए नियामक अधिनियम में आपातकालीन स्थितियों, सार्वजनिक सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के उपायों पर प्रासंगिक प्रावधान होने चाहिये।
    • इसके अलावा दंड उल्लंघन के अनुपात में होना चाहिये, इसे ध्यान में रखते हुए नए कानून को अद्यतन करने की आवश्यकता है, जिसमें जुर्माने और अपराधों पर विभिन्न प्रावधानों को एक साथ लाया जाना चाहिये।

UPSC सिविल सेवा विगत पिछले वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न भारत में "सार्वजनिक कुंजी अवसंरचना" शब्द का प्रयोग किसके संदर्भ में किया जाता है? (2020)

(a) डिजिटल सुरक्षा अवसंरचना
(b) खाद्य सुरक्षा अवसंरचना
(c) स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा का बुनियादी ढाँचा
(d) दूरसंचार और परिवहन अवसंरचना

उत्तर: A

व्याख्या:

  • सार्वजनिक कुंजी अवसंरचना (PKI) डिजिटल दुनिया में उपयोगकर्त्ताओं और उपकरणों को प्रमाणित करने की एक तकनीक है। इस प्रणाली के तहत एक या अधिक विश्वसनीय पक्ष यह प्रमाणित करते हुए दस्तावेज़ों पर डिजिटल रूप से हस्ताक्षर करते हैं कि एक विशेष क्रिप्टोग्राफिक कुंजी किसी विशेष उपयोगकर्त्ता या डिवाइस से संबंधित है। तब कुंजी को डिजिटल नेटवर्क में उपयोगकर्त्ता के लिये एक पहचान के रूप में उपयोग किया जा सकता है। अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स


सामाजिक न्याय

खाद्य सुरक्षा और लैंगिक समानता: CARE

प्रिलिम्स के लिये:

खाद्य सुरक्षा, लैंगिक समानता, कोविड-19

मेन्स के लिये:

लैंगिक असमानता और खाद्य असुरक्षा के बीच की कड़ी।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में "खाद्य सुरक्षा और लैंगिक समानता: ए सिनर्जिस्टिक अंडर्स्टडी सिम्फनी" नामक रिपोर्ट जारी की गई, जिसमें लैंगिक असमानता एवं खाद्य असुरक्षा के बीच वैश्विक संबंध पर प्रकाश डाला गया।

  • यह रिपोर्ट CARE द्वारा जारी की गई थी, जो महिलाओं और लड़कियों के संदर्भ में वैश्विक गरीबी तथा भुखमरी से लड़ने वाला अंतर्राष्ट्रीय मानवीय संगठन है।

Food-Security-and-Gender-Equality

प्रमुख बिंदु

  • खाद्य सुरक्षा क्षेत्र में बढ़ता लैंगिक अंतर:
    • दुनिया भर में पुरुषों और महिलाओं की खाद्य सुरक्षा के बीच की खाई बढ़ती जा रही है।
      • वर्ष 2021 में कम-से-कम 828 मिलियन लोग भूख से प्रभावित थे। उनमें से पुरुषों की तुलना में 150 मिलियन अधिक महिलाएँ खाद्य असुरक्षा प्रभावित थीं।
    • रिपोर्ट के अनुसार, 109 देशों में लैंगिक असमानता बढ़ने के साथ ही खाद्य सुरक्षा में कमी देखी गई
      • वर्ष 2018 और वर्ष 2021 के बीच भूख से पीड़ित पुरुषों की तुलना में भूख से पीड़ित महिलाओं की संख्या में 8.4 गुना वृद्धि हुई, जिसमें वर्ष 2021 में भूख से पीड़ित पुरुषों की तुलना में 150 मिलियन अधिक महिलाएँ थीं।
  • लैंगिक असमानता और कुपोषण:
    • लैंगिक समानता स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर खाद्य एवं पोषण सुरक्षा से अत्यधिक जुड़ी हुई है।
    • किसी देश में जितनी अधिक लैंगिक असमानता होती है, वहाँ उतने ही अधिक भूखे और कुपोषित लोग होते हैं।
    • यमन, सिएरा लियोन और चाड जैसे उच्च लैंगिक असमानता वाले राष्ट्रों ने सबसे कम खाद्य सुरक्षा एवं पोषण का अनुभव किया।
  • महिलाओं पर अधिक भार:
    • यहाँ तक कि जब पुरुष और महिला दोनों तकनीकी रूप से खाद्य असुरक्षित होते हैं, तब भी महिलाएँ अक्सर ज़्यादा प्रभावित होती हैं, क्योंकि इस स्थिति में पुरुष कम भोजन करते हैं, जबकि महिलाएँ भोजन छोड़ती पाई जाती हैं।
      • लेबनान में कोविड-19 महामारी की शुरुआत में 85% लोगों ने भोजन में कमी कर दी। उस समय केवल 57% पुरुषों की तुलना में 85% महिलाएँ कम खाद्यान्न खा रही थीं।
  • महिलाओं में कम खाद्य असुरक्षा का अनुभव:
    • जब महिलाएँ नौकरी करती हैं और पैसा कमाती हैं या जब वे सीधे खेती के कार्य में शामिल होती हैं, तो उन्हें खाद्य असुरक्षा का अनुभव होने की संभावना कम होती है।
  • महिलाओं के गरीबी में रहने की अधिक संभावना:
    • पुरुषों की तुलना में महिलाओं के गरीबी में रहने की संभावना अधिक होती है, क्योंकि उनके काम का कम भुगतान किया जाता है या बिल्कुल भी भुगतान नहीं किया जाता है।
    • कोविड-19 महामारी से पहले भी महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में तीन गुना अधिक अवैतनिक कार्य किया।

सिफारिशें:

  • जिस प्रकार महिलाएँ दुनिया का भरण करती हैं, उसी तरह से उन्हें डेटा संग्रह के तरीकों और विश्लेषण में सही जगह दी जानी चाहिये ताकि वे उन अंतरालों को दृश्यमान बना सकें और उन अंतरालों का समाधान खोजने के लिये काम कर सकें।
  • यह खाद्य सुरक्षा और लैंगिक असमानता की वैश्विक समझ को अद्यतन करने का समय है तथा संकट के कारण प्रभावित समुदायों में महिला संगठनों सहित स्थानीय अभिनेताओं को महिलाओं और लड़कियों को भूख से जुड़ी लिंग-आधारित हिंसा और सुरक्षा जोखिम से बचाने के लिये आवश्यक धन और समर्थन प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • ये सभी SDG लक्ष्य 5 की उपलब्धि पर निर्भर करते हैं, जो लैंगिक समानता हासिल कर सभी महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाता है। वर्ष 2030 तक लैंगिक समानता हेतु भेदभाव के कई मूल कारणों को खत्म करने के लिये तत्काल कार्रवाई किये जाने की आवश्यकता है जो अभी भी निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों में महिलाओं के अधिकारों को कम करते हैं।

खाद्य सुरक्षा और लैंगिक समानता से संबंधित पहलें:

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन का उद्देश्य देश के चिह्नित ज़िलों में स्थायी तरीके से क्षेत्र विस्तार और उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से कुछ फसलों के उत्पादन में वृद्धि करना है। वे फसलें कौन-सी हैं? (2010)

(a) केवल चावल और गेहूँ
(b) केवल चावल, गेहूँ और दालें
(c) केवल चावल, गेहूँ, दालें और तिलहन
(d) चावल, गेहूँ, दालें, तिलहन और सब्जियाँ

उत्तर: (b)

  • राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) ने 29 मई, 2007 को आयोजित अपनी 53वीं बैठक में चावल, गेहूँ और दालों से युक्त खाद्य सुरक्षा मिशन शुरू करने के लिये एक प्रस्ताव अपनाया, जिससे चावल का वार्षिक उत्पादन 10 मिलियन टन, गेहूँ का 8 मिलियन टन और ग्यारहवीं योजना (2011-12) के अंत तक दालों में 2 मिलियन टन की वृद्धि करना था।
  • तदनुसार, एक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में 'राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन' (एनएफएसएम) को अक्तूबर 2007 में शुरू किया गया था।
  • मिशन 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 25 मिलियन टन खाद्यान्न के अतिरिक्त उत्पादन के नए लक्ष्यों के साथ जारी रहा, जिसमें 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक चावल, गेहूँ और दालों के अलावा 3 मिलियन टन मोटे अनाज का उत्पादन करना शामिल हैं।

अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा विश्व के देशों के लिये ‘सार्वभौम लैंगिक अंतराल सूचकांक (ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स)’ का श्रेणीकरण प्रदान करता है?

(a) विश्व आर्थिक मंच
(b) यूएन मानव अधिकार परिषद्
(c) यूएन वूमन
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर: (a)

  • जेंडर गैप रिपोर्ट, स्विट्ज़रलैंड स्थित विश्व आर्थिक मंच द्वारा हर वर्ष जारी की जाती है।
  • वर्ष 2006 में पहली बार जारी इस रिपोर्ट में चार बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न मानकों पर व्यापक सर्वे और अध्ययन के आधार पर आँकड़े जारी किये जाते हैं, जो हैं-
    • स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता
    • राजनीतिक सशक्तीकरण
    • शिक्षा का अवसर
    • आर्थिक भागीदारी और अवसर
  • अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।
  • हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने वर्ष 2022 के लिये अपने वैश्विक लैंगिक अंतराल (Global Gender Gap-GGG) सूचकांक में भारत को 146 देशों में से 135वें स्थान पर रखा है।
  • भारत का समग्र स्कोर 0.625 (वर्ष 2021 में) से बढ़कर 0.629 हो गया है, जो पिछले 16 वर्षों में सातवाँ उच्चतम स्कोर है।
    • वर्ष 2021 में भारत 156 देशों में 140वें स्थान पर था।

प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? खाद्य सुरक्षा विधेयक ने भारत में भूख और कुपोषण को खत्म करने में कैसे मदद की है? (मुख्य परीक्षा)

स्रोत : डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

बच्चे का उपनाम तय करने का माँ का अधिकार

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में संरक्षकता कानून।

मेन्स के लिये:

संरक्षकता पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि जैविक पिता (पति) की मृत्यु के बाद बच्चे की एकमात्र नैसर्गिक अभिभावक होने के नाते माँ को बच्चे का उपनाम तय करने का अधिकार है।

  • अदालत जनवरी 2014 में आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका पर विचार कर रही थी, दायर याचिका में बच्चे के उपनाम को अपने पहले दिवंगत पति का उपनाम हटाकर दूसरे पति के उपनाम को दर्ज करने के लिये कहा गया था।

सर्वोच्च न्यायालय के नए नियम:

  • उपनाम न केवल वंश का संकेत है और न ही इसे केवल इतिहास, संस्कृति और वंश के संदर्भ में समझा जाना चाहिये, बल्कि इससे भी महत्त्वपूर्ण भूमिका यह है कि यह सामाजिक वास्तविकता के साथ-साथ अपने विशेष वातावरण में बच्चों की भावना के संबंध में भूमिका निभाता है।
  • उपनाम की एकरूपता 'परिवार' बनाने, उसे बनाए रखने और प्रदर्शित करने की एक विधा के रूप में उभरती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि एकमात्र नैसर्गिक अभिभावक होने के नाते माँ अपने दूसरे पति को बच्चे को गोद लेने का अधिकार भी दे सकती है।

भारत में संरक्षकता से संबंधित कानून:

  • हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम:
    • भारतीय कानून नाबालिग (18 वर्ष से कम आयु) की संरक्षकता के मामले में पिता को वरीयता प्रदान करते हैं।
    • हिंदुओं के धार्मिक कानून या हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, (HMGA) 1956 के तहत नाबालिग या संपत्ति के संबंध में एक हिंदू नाबालिग का प्राकृतिक अभिभावक पिता होता है तथा उसके बाद माता का अधिकार है।
      • बशर्ते कि एक नाबालिग जिसकी पांँच वर्ष की उम्र पूरी नहीं हुई है, की कस्टडी सामान्यत माँ के पास होगी।
  • संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 (GWA):
    • यह बच्चे और संपत्ति दोनों के संबंध में एक व्यक्ति को बच्चे के 'अभिभावक' के रूप में नियुक्त करने से संबंधित है।
    • माता-पिता के बीच चाइल्ड कस्टडी, संरक्षकता और मुलाकातों के मुद्दों को GWA के तहत निर्धारित किया जाता है, अगर नैसर्गिक अभिभावक अपने बच्चे के लिये एक विशेष अभिभावक के रूप में घोषित होना चाहते हैं।
    • GWA के तहत एक याचिका में माता-पिता के बीच विवाद होने पर इसे HMGA के साथ जोड़कर पढ़ा जाता है, अभिभावकता और कस्टडी एक माता-पिता के साथ दूसरे माता-पिता के मिलने या मुलाकात के अधिकारों के साथ निहित हो सकती है।
    • ऐसा करने में नाबालिग या "बच्चे के सर्वोत्तम हित" का कल्याण सर्वोपरि होगा।

"बच्चे के सर्वोत्तम हित" का आशय:

  • मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अनुप्रयोग अधिनियम, 1937:
    • मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अनुप्रयोग अधिनियम [The Muslim Personal Law (Shariat) Application Act, 1937] के अनुसार, संरक्षकता के मामले में शरीयत या धार्मिक कानून लागू होगा, जिसके अनुसार जब तक बेटा सात साल की उम्र पूरी नहीं कर लेता है और बेटी प्रौढ़ अवस्था को प्राप्त नहीं कर लेती है तब तक पिता प्राकृतिक अभिभावक है, हालांँकि पिता को  सामान्य पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण का अधिकार प्राप्त है।
    • मुस्लिम कानून में अभिरक्षा या 'हिजानत' (Hizanat) की अवधारणा में कहा गया है कि बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है।
    • यही कारण है कि मुस्लिम कानून बाल्यावस्था (Tender Years) में बच्चों की कस्टडी के मामले में पिता के स्थान पर माता को वरीयता प्रदान करता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
    • वर्ष 1999 में गीता हरिहरन बनाम भारतीय रिज़र्व बैंक मामले में सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले ने आंशिक राहत प्रदान की।
    • इस मामले में HMGA को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत लैंगिक समानता की गारंटी के उल्लंघन के लिये चुनौती दी गई थी।
      • अनुच्छेद 14 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को भारत के क्षेत्र में कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा।
    • न्यायालय ने माना कि "बाद" शब्द का अर्थ "पिता के जीवनकाल के बाद" नहीं होना चाहिये, बल्कि "पिता की अनुपस्थिति में" होना चाहिये।
      • हालाँकि निर्णय माता-पिता दोनों को समान अभिभावक के रूप में मान्यता देने में विफल रहा, जिससे माता की भूमिका पिता की भूमिका के अधीन हो गई।
    • हालाँकि यह फैसला न्यायालयों के लिये मिसाल कायम करता है, लेकिन इससे HMGA में कोई संशोधन नहीं हुआ है।

आगे की राह

  • बाल-केंद्रित मानव अधिकार न्याय प्रणाली जो समय के साथ विकसित हुआ है, इस सिद्धांत पर स्थापित किया गया है कि सार्वजनिक भलाई बच्चे के उचित विकास की मांग करती है, जो कि राष्ट्र का भविष्य है।
    • इसलिये समान अधिकारों के साथ साझा या संयुक्त पालन-पोषण बच्चे के इष्टतम विकास के लिये व्यवहार्य, व्यावहारिक, संतुलित समाधान हो सकता है।
  • भारत के विधि आयोग ने मई 2015 में "भारत में संरक्षकता और अभिरक्षा कानूनों में सुधार" पर अपनी 257वीं रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि "एक माता-पिता की दूसरे पर श्रेष्ठता को हटा दिया जाना चाहिये"।
    • माता और पिता दोनों को एक साथ अवयस्क बच्चें के प्राकृतिक संरक्षक/अभिभावक के रूप में माना जाना चाहिये।
    • HMGA में संशोधन किया जाना चाहिये ताकि "पिता और माता दोनों को संयुक्त रूप से प्राकृतिक अभिभावक के रूप में स्थापित किया जा सके तथा नाबालिग एवं उसकी संपत्ति के संबंध में समान अधिकार हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

आंतरिक - पार्टी लोकतंत्र

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय संविधान, ब्रिटिश संविधान, भारतीय संसद, ब्रिटिश संसद

मेन्स के लिये:

अन्य देशों के संविधान के साथ भारतीय संविधान की तुलना, सांसदों की शक्तियाँ और उनकी स्वतंत्रता में बाधा।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बोरिस जॉनसन (यूके के पूर्व प्रधानमंत्री) ने (ब्रिटिश कंज़रवेटिव पार्टी के नेता के रूप में उनके खिलाफ पार्टी के संसद सदस्यों द्वारा अविश्वास मत के कारण) इस्तीफा दे दिया है।

  • यह भारत को पार्टी नेतृत्व के लिये जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु निर्वाचित प्रतिनिधियों को सशक्त बनाने पर गंभीरता से विचार करने का आह्वान करता है।

यूनाइटेड किंगडम में संसद सदस्य का चुनाव:

  • मुख्य राजनीतिक दल का प्रतिनिधित्व करने वाला सांसद बनने के लिये उम्मीदवार को पार्टी के नामांकन अधिकारी द्वारा सांसद बनने हेतु अधिकृत होना चाहिये। इसके बाद उन्हें निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक वोट हासिल करना होगा।
    • उम्मीदवार पार्टी के नेता को नामांकन प्रस्तुत नही करतें हैं, जबकि स्थानीय निर्वाचन क्षेत्र पार्टी द्वारा निर्धारित किये जाते हैं।
  • यूनाइटेड किंगडम को 650 क्षेत्रों में विभाजित किया गया है जिन्हें निर्वाचन क्षेत्र कहा जाता है।
    • चुनाव के दौरान निर्वाचन क्षेत्र में वोट डालने के लिये योग्य प्रत्येक व्यक्ति अपने सांसद हेतु एक उम्मीदवार का चयन करता है।
      • सबसे अधिक वोट पाने वाला उम्मीदवार अगले चुनाव तक उस क्षेत्र का सांसद बन जाता है।
      • यदि किसी सांसद की मृत्यु हो जाती है या सेवानिवृत्त हो जाता है, तो उस क्षेत्र हेतु एक नए सांसद के लिये उस निर्वाचन क्षेत्र में उपचुनाव होता है।
  • आम चुनाव में सभी निर्वाचन क्षेत्र के लिये उम्मीदवारों की सूची से प्रत्येक क्षेत्र के लिये संसद सदस्य चुना जाता है।
    • आम चुनाव हर पाँच साल में होते हैं।

भारत में संसद सदस्य का चुनाव:

भारत की संसद में दो सदन होते हैं और उनमें से प्रत्येक के लिये सदस्य चुने जाते हैं।

  • लोक सभा:
    • इसे लोगों का सदन भी कहा जाता है।
    • प्रतिनिधि का चुनाव:
      • प्रतिनिधियों के चुनाव के लिये प्रत्येक राज्य को क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है।
        • प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से फर्स्ट -पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली का उपयोग करके प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाता है; बहुमत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित किया जाता है।
        • केंद्रशासित प्रदेश (लोगों के सदन का प्रत्यक्ष चुनाव) अधिनियम, 1965 द्वारा केंद्रशासित प्रदेशों से लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा किया जाता है।
  • राज्यसभा:
    • इसे राज्य परिषद भी कहा जाता है।
    • प्रतिनिधि का चुनाव:
      • राज्यों के प्रतिनिधि राज्य विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं।
      • राज्यसभा में प्रत्येक केंद्रशासित प्रदेश के प्रतिनिधियों को अप्रत्यक्ष रूप से इस उद्देश्य के लिये विशेष रूप से गठित निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा चुना जाता है।
        • केवल तीन केंद्रशासित प्रदेशों (दिल्ली, पुद्दुचेरी एवं जम्मू और कश्मीर) का राज्यसभा में प्रतिनिधित्व है (अन्य के पास पर्याप्त आबादी नहीं है)।
      • राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य वे होते हैं जिन्हें कला, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवा में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होता है।
        • तर्क यह है कि प्रतिष्ठित व्यक्तियों को चुनाव के बिना राज्यसभा में जगह दी जाए।

ब्रिटेन में एक सांसद के पास प्रधानमंत्री के खिलाफ शक्तियाँ:

  • एक स्थिर सरकार चलाने के लिये प्रधानमंत्री को हर समय अपने मंत्रियों के विश्वास को बनाए रखने में सक्षम होना चाहिये।
  • यदि यह भावना ज़ोर पकड़ती है कि नेता अब देश को स्वीकार्य नहीं है तो एक सुगठित तंत्र को नया नेतृत्व प्रदान करके पार्टी के चुनावी लाभ की रक्षा के लिये कार्य करता है।
  • कंज़र्वेटिव सांसदों ने 1922 की समिति (जिसमें बैकबेंच सांसद शामिल हैं और अपने हितों की तलाश करते हैं) को यह व्यक्त करते हुए लिखा है कि उन्हें अपने नेता पर "अविश्वास" है।
    • यदि एक संख्यात्मक या प्रतिशत सीमा (यू.के. में पार्टी के सांसदों का 15%) का उल्लंघन होता है, तो पार्टी नेता को संसदीय दल से नया जनादेश प्राप्त करने के लिये मज़बूर करने के साथ स्वचालित नेतृत्व शुरू हो जाता है।

भारत में एक सांसद के पास प्रधानमंत्री के खिलाफ शक्तियाँ :

  • अविश्वास प्रस्ताव:
    • अविश्वास प्रस्ताव एक संसदीय प्रस्ताव है जिसे लोकसभा में पूरे मंत्रिपरिषद के खिलाफ पेश किया जाता है, जिसमें कहा गया है कि वे अब किसी भी तरह से अपनी अपर्याप्तता या अपने दायित्वों को पूरा करने में विफलता के कारण जिम्मेदारी के पदों को संभालने के लिये उपयुक्त नहीं समझे जाते हैं। .
    • लोकसभा में इसे पेश करने के लिये कोई पूर्व कारण की आवश्यकता नहीं होती है।
      • लोकसभा की प्रक्रि‍या तथा कार्य संचालन नियमावाली के नि‍यम 198(1) से 198(5) तक मंत्रि‍परि‍षद में अवि‍श्‍वास का प्रस्‍ताव प्रस्‍तुत करने हेतु प्रक्रि‍या नि‍र्धारि‍त की गई है।
      • भारतीय संविधान में न तो विश्वास प्रस्ताव का और न ही अविश्वास प्रस्ताव का उल्लेख है।
        • हालाँकि अनुच्छेद 75 यह निर्दिष्ट करता है कि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगी।
      • अविश्वास प्रस्ताव को तभी स्वीकार किया जा सकता है जब सदन में न्यूनतम 50 सदस्य प्रस्ताव का समर्थन करते हैं।
        • एक बार जब अध्यक्ष संतुष्ट हो जाता है कि प्रस्ताव क्रम में है तो सदन से पूछेगा कि क्या प्रस्ताव को स्वीकार किया जा सकता है।
        • यदि प्रस्ताव सदन में पारित हो जाता है, तो सरकार कार्यालय को छोड़ने के लिये बाध्य होती है।
      • सदन में अविश्वास प्रस्ताव को पारित करने के लिये बहुमत की आवश्यकता होती है।
        • यदि व्यक्ति या दल मतदान से दूर रहते हैं तो उन संख्याओं को सदन की कुल संख्या से हटा कर फिर बहुमत को ध्यान में रखा जाएगा।

भारत में सांसदों की स्वतंत्रता में बाधा:

  • दलबदल विरोधी कानून:
    • दलबदल विरोधी कानून एक राजनीतिक दल छोड़कर दूसरे राजनीतिक दल में शामिल होने के लिये संसद या राज्य विधानमंडल सदस्यों को दंडित करता है।
    • संसद ने इसे वर्ष 1985 में 52वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से दसवीं अनुसूची के रूप में संविधान में शामिल किया था। इसका उद्देश्य था सदस्यों द्वारा राजनीतिक संबद्धता बदलने की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोक लगाना और इस प्रकार सरकारों के लिये स्थिरता लाना।
      • यह किसी अन्य राजनीतिक दल में दलबदल के आधार पर निर्वाचित सदस्यों की अयोग्यता के प्रावधानों को निर्धारित करता है।
      • वर्ष 1967 के आम चुनावों के बाद निर्वाचित सदस्यों द्वारा दल बदलने से कई राज्य सरकारों के पतन की प्रतिक्रिया में इस अधिनियम को लाया गया।
    • हालाँकि इसमें सांसद/विधायकों के किसी समूह को किसी अन्य दल में शामिल होने (या विलय) की अनुमति प्राप्त है और वे किसी दंड से मुक्त रखे गए हैं। यह दलबदल के लिये प्रोत्साहित करने या ऐसे सदस्यों को शामिल करने वाले राजनीतिक दलों को भी दंडित नहीं करता है।
      • वर्ष 1985 के अधिनियम के अनुसार, किसी राजनीतिक दल के निर्वाचित सदस्यों के एक- तिहाई सदस्यों द्वारा ‘दलबदल’ को ‘विलय’ माना जाता था।
      • लेकिन 91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 ने इस प्रावधान को बदल दिया और अब कानून की नज़र में वैधता के लिये किसी दल के कम-से-कम दो-तिहाई निर्वाचित सदस्य अन्य किसी दल में विलय के पक्ष में होने चाहिये।
    • कानून के तहत अयोग्य घोषित सदस्य उसी सदन में पुनःनिर्वाचन के लिये किसी भी राजनीतिक दल की ओर से चुनाव में खड़े हो सकते हैं।
    • दलबदल के आधार पर निरर्हता संबंधी प्रश्नों पर निर्णय ऐसे सदन के सभापति या अध्यक्ष को संदर्भित किया जाता है और यह ‘न्यायिक समीक्षा’ के अधीन होता है।
    • हालाँकि कानून द्वारा कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की गई है जिसके अंदर पीठासीन अधिकारी द्वारा दलबदल मामले पर निर्णय दे दिया जाना चाहिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न. सरकार की संसदीय प्रणाली वह है जिसमें: (2020)

(a) संसद में सभी राजनीतिक दलों का सरकार में प्रतिनिधित्व होता है।
(b) सरकार संसद के प्रति उत्तरदायी है और इसे इसके द्वारा हटाया जा सकता है।
(c) सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है और उनके द्वारा हटाई जा सकती है।
(d) सरकार संसद द्वारा चुनी जाती है लेकिन एक निश्चित अवधि के पूरा होने से पहले इसे इसके द्वारा हटाया नहीं जा सकता है।

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • सरकार की संसदीय प्रणाली वह है जिसमें सरकार संसद के प्रति उत्तरदायी होती है और इसे इसके द्वारा हटाया जा सकता है। ऐसी प्रणाली में राष्ट्रपति की भूमिका मुख्य रूप से औपचारिक होती है और कैबिनेट के साथ-साथ प्रधानमंत्री प्रभावी शक्ति का प्रयोग करते हैं।
  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 75(3) के अनुसार, मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है जो संसद का एक घटक है। लोकसभा के नियम इस सामूहिक ज़िम्मेदारी के परीक्षण के लिये एक तंत्र प्रदान करते हैं। वे किसी भी लोकसभा सांसद, जो 50 सहयोगियों का समर्थन प्राप्त कर सकता है, को मंत्रिपरिषद के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने की अनुमति देता हैं। यदि लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है तो सरकार गिर जाती है।
  • अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

Mains:

प्रश्न. आपके विचार से संसद किस हद तक भारत में कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने में सक्षम है? (मुख्य परीक्षा 2021)

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

भारतीय चिकित्सा हेतु औषधकोश आयोग

प्रिलिम्स के लिये:

आयुष मंत्रालय, आयुष ड्रग्स, ड्रग रेगुलेशन

मेन्स के लिये:

PCIM & H का महत्त्व , सरकार का हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने आयुष मंत्रालय के तहत अधीनस्थ कार्यालय के रूप में भारतीय चिकित्सा और होम्योपैथी (PCIM&H) के लिये औषधकोश आयोग की स्थापना की है।

  • सरकार ने फार्माकोपिया कमीशन ऑफ इंडियन मेडिसिन एंड होम्योपैथी (PCIM&H) और दो केंद्रीय प्रयोगशालाओं का विलय कर दिया है:
    • भारतीय चिकित्सा हेतु औषधकोश प्रयोगशाला (PLIM) और
    • होम्योपैथिक औषधकोश प्रयोगशाला (HPL)।

औषधकोश आयोग:

  • परिचय:
    • PCIM&H वर्ष 2010 में स्थापित आयुष मंत्रालय के तत्वावधान में एक स्वायत्त निकाय है।
    • औषध और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और उसके तहत नियम 1945 के अनुसार औषधकोश आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त मानकों की पुस्तक है।
      • औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम की दूसरी अनुसूची के अनुसार, इसे भारत में बिक्री या वितरण के लिये आयातित और/या बिक्री, स्टॉक या प्रदर्शनी हेतु निर्मित दवाओं के मानकों की आधिकारिक पुस्तक के रूप में नामित किया गया है।
      • यह भारत में निर्मित और विपणन की जाने वाली दवाओं के मानकों को उनकी पहचान, शुद्धता एवं ताकत के संदर्भ में निर्दिष्ट करता है।
  • कार्य:
    • आयोग आयुर्वेदिक, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथिक दवाओं के लिये औषधकोश मानकों के विकास में लगा हुआ है।
    • PCIM&H भारतीय चिकित्सा और होम्योपैथी प्रणालियों के लिये केंद्रीय औषधि परीक्षण सह अपीलीय प्रयोगशाला के रूप में भी कार्य कर रहा है।
  • PLIM & HPL के विलय के लाभ:
    • तीनों संगठनों के मानकीकृत परिणामों को बढ़ाने के लिये ढाँचागत सुविधाओं, तकनीकी जनशक्ति और वित्तीय संसाधनों का इष्टतम उपयोग।
    • यह आयुष दवा मानकों के सामंजस्यपूर्ण विकास तथा औषधिकोष एवं सूत्रीकरण (पंजीकृत किये गए नुस्खे) के प्रकाशन की सुविधा प्रदान करेगा।
    • इसका एक अन्य उद्देश्य ‘ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स, 1945’ (Drugs and Cosmetics Rules, 1945) में आवश्यक संशोधन करके PCIM&H एवं इसकी प्रयोगशालाओं के विलय वाले ढाँचे को कानूनी दर्जा देना भी है।
      • इस संबंध में महानिदेशक स्वास्थ्य सेवा, औषधि महानियंत्रक और आयुर्वेद, सिद्ध एवं यूनानी औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड (ASUDTAB) के साथ परामर्श किया गया है।

आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड:

  • ASUDTAB ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के प्रावधानों के तहत एक वैधानिक निकाय है।
  • यह केंद्र और राज्य सरकारों को त्वरित शेल्फ लाइफ टेस्टिंग (ASLT) दवाओं के नियामक मामलों में सलाह देती है।
    • ASLT उत्पाद को नियंत्रित परिस्थितियों में स्टोर करके उत्पाद की स्थिरता को मापने और आकलन करने का एक अप्रत्यक्ष तरीका है जो सामान्य भंडारण स्थितियों के तहत उत्पाद में होने वाली गिरावट की दर को बढ़ाता है।

आयुष उत्पादों/दवाओं को सरकार की सहायता:

  • औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940:
    • आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी के गुणवत्ता नियंत्रण और औषधि लाइसेंस जारी करने से संबंधित कानूनी प्रावधानों के प्रवर्तन का अधिकार संबंधित राज्य द्वारा नियुक्त राज्य औषधि नियंत्रकों के पास है।
    • यह आयुर्वेदिक, सिद्ध, यूनानी दवाओं के निर्माण हेतु लाइसेंस जारी करने के लिये नियामक दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
    • निर्माताओं के लिये विनिर्माण इकाइयों और दवाओं के लाइसेंस हेतु निर्धारित निर्देशों  का पालन करना अनिवार्य है, जिसमें सुरक्षा और प्रभावशीलता के प्रमाण तथा उचित विनिर्माण प्रथाओं (जीएमपी) का अनुपालन शामिल है।
  • आयुष उत्पादों का प्रमाणन:
    • निर्यात की सुविधा के लिये आयुष मंत्रालय नीचे दिये गए विवरण के अनुसार आयुष उत्पादों के निम्नलिखित प्रमाणन को प्रोत्साहित करता है:
      • हर्बल उत्पादों के लिये डब्ल्यूएचओ दिशा-निर्देशों के अनुसार फार्मास्युटिकल उत्पादों (सीओपीपी) का प्रमाणन।
    • भारतीय गुणवत्ता परिषद (क्यूसीआई) द्वारा आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी उत्पादों के लिये गुणवत्ता प्रमाणन योजना को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुपालन की स्थिति के अनुरूप गुणवत्ता के तीसरे पक्ष के मूल्यांकन के आधार पर आयुष प्रीमियम अंक प्रदान करने के लिये लागू किया गया है।
  • आयुष औषध गुणवत्ता एवं उत्पादन संवर्द्धन योजना (AOGUSY):
    • आयुष मंत्रालय ने AOGUSY को केंद्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में लागू किया है।
    • उद्देश्य:
      • आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत भारत की विनिर्माण क्षमताओं और पारंपरिक दवाओं तथा स्वास्थ्य संवर्द्धन उत्पादों के निर्यात को बढ़ाने के लिये।
      • आयुष दवाओं और सामग्रियों के मानकीकरण, गुणवत्ता निर्माण तथा विश्लेषणात्मक परीक्षण के लिये सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में पर्याप्त ढाँचागत और तकनीकी उन्नयन, संस्थागत गतिविधियों की सुविधा के लिये ।
      • आयुष दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों की प्रभावी गुणवत्ता नियंत्रण, सुरक्षा और निगरानी के लिये केंद्र तथा राज्य स्तर पर नियामक ढाँचे को मज़बूत करना।
      • आयुष दवाओं और सामग्रियों के मानकों व गुणवत्ता को बढ़ावा देने के लिये तालमेल, सहयोग और अभिसरण दृष्टिकोण के निर्माण को प्रोत्साहित करना।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (पीवाईक्यू) 

भारत सरकार दवा के पारंपरिक ज्ञान को दवा कंपनियों द्वारा पेटेंट कराने से कैसे बचा रही है? (2019)

स्रोत: पी.आई.बी.


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow